Saturday, April 7, 2035

kkyatri.blogspot.com - MY JOURNEY TO RELIGIOUS PLACES

नमो परमात्मने

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Sunday, February 4, 2024

मोतीनाथ धाम और मोती झरना, साहेबगंज, झारखण्ड

   
मोतीनाथ धाम गुफा का प्रवेश द्वार
और मोती झरना

       एक परीक्षा दिलाने के सिलसिले में साहेबगंज जाना हुआ। चूँकि बिहार के भागलपुर जिले से आगे बढ़ने पर गंगा जी झारखण्ड के साहेबगंज जिले में प्रवेश करती है, तो सोचा कि जब तक परीक्षार्थी बाहर नहीं निकलता क्यों न गंगा-स्नान का लाभ लिया जाए। समय का सदुपयोग भी होगा और पुण्य फल मिलेगा सो अलग।
 परीक्षा केंद्र सेंट जेवियर स्कूल में था जहाँ से 300 मीटर पहले ही गंगा किनारे एक मंदिर के पास स्नान घाट था। किन्तु यह गंगा जी की मुख्य धारा न थी पर आगे जा कर यह मुख्य धारा में मिलती थी। हमने सोचा क्यों न मुख्य धारा के किनारे स्नान किया जाय। गाड़ी अपनी थी, सो हमलोग एक-डेढ़ किलोमीटर आगे मुख्य धारा के पास गए किन्तु यहाँ देखा कि यह तो फेर्री-घाट है। कोई यहाँ स्नान न कर रहा था। पक्का घाट भी न बना था। कच्चे किनारे से पानी तक जाने में तीखी ढलान थी जिससे अगर उतर भी जाते तो चढ़ना संभव न था घुटनों के कारण। सो हमलोग वापस मंदिर वाले घाट पर आये। यहाँ पक्का घाट बना था और कुछ लोग स्नान भी कर रहे थे। इनलोगों में से कई हमारी तरह अभिभावक ही थे। हमलोगों ने स्नान कर उसी मंदिर में महादेव की पूजा की। गूगल से मालूम था कि पास में मोती झरना नामक कोई दर्शनीय स्थान है। स्थानीय ऑटो वालों से पता किया तो 18 किमी दूर महाराजपुर में मोती झरना और गुफा -मंदिर की जानकारी मिली। हमारे पास चार घंटों का समय था तो हमने जाने का फैसला किया। 
मोती झरना और मोतीनाथ धाम का प्रवेश द्वार
            अपनी गाड़ी से ही निकले। शहर से निकलने पर मुख्य पथ में फोर-लैनिंग का कार्य चल रहा था तो कुछ डायवर्सन से गुजरना पड़ा। अंत में करीब तीन किलोमीटर मुख्य सड़क को छोड़ कर पहाड़ों तक जाना पड़ा जो एक गांव से होकर गुजरती थी। गाड़ी चलने लायक पी सी सी पथ बनाया गया है। पार्किंग के पास गाड़ी लगाकर आगे बढ़े तो 5 रूपये प्रति व्यक्ति का टिकट लेना पड़ा तब एक लोहे के गेट से आगे बढ़े। झरना के आसपास और वहाँ तक जाने का रास्ता विकसित किया गया है। बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले, झरना और पहाड़ को निहारने के लिए विशेष स्थान, कुछ जानवरों की मूर्तियां, झरना के ठीक नीचे चेक डैम और छोटा तालाब इत्यादि बनाये गए हैं। झरना (Waterfall) में पानी 100 फ़ीट से ज्यादा ऊंचाई से गिरती है। यह पहाड़ प्रसिद्ध राजमहल हिल्स का ही हिस्सा है। बहुत ही मनोरम नजारा है यहाँ का। आसपास की पहाड़ी पर हरे भरे जंगल भी हैं जिनमें केले के पेड़ों का भरमार है। शायद ये जंगली केले होंगे। इनके फल स्थानीय लोग नहीं खाते बल्कि यहाँ रहने वाले बन्दर खाते हैं। यूँ तो राँची के आसपास का क्षेत्र वाटरफॉल्स के लिए जाना जाता है किन्तु सुदूर साहेबगंज जिले में यह एक मात्र झरना है और बहुत ही सुन्दर स्थान है। अगर यही झरना रांची के पास होता तो बहुत ही भीड़ होती परन्तु यहाँ जब हम पहुंचे तो मुश्किल से 50-60 लोग होंगे। इस झरना के पास एक और आकर्षण है एक गुफा, जिसमें एक प्राचीन शिव-मंदिर है। यह गुफा कोई सुरंग जैसी नहीं है बल्कि झरना की तलहटी के पास तिरछा पत्थर का बड़ा भाग पहाड़ से निकल चुका है।  सामने ग्रिल से सुरक्षित कर के एक अंदर जाने का द्वार बनाया गया है जिसमे मोतीनाथ शिवलिंग हैं। एक पुजारी शिवलिंग के पास बैठे थे। शिवलिंग के पास जा कर हमने पूजा की और पुजारी जी का आशीर्वाद लिया। हमें देख कर वे बांग्ला प्रभावित हिंदी में मंदिर का इतिहास बताने लगे कि यह मन्दिर पांडवों के समय से है और उनके द्वारा ही स्थापित है। और यह कि वे पांडवों के ही वंशज हैं (पता नहीं किन्तु पांडव तो क्षत्रिय थे?) . यह भी कि माता द्रौपदी के आशीर्वाद (?) से तभी से उनके पूर्वजों को एक मात्र पुत्र होता है जो उनके वंश को आगे बढ़ता है। पुजारी जी भी एकलौते पुत्र हैं और उनका भी एक ही पुत्र है।      
गुफा के भीतर मोतीनाथ शिवलिंग

         इस गुफा मंदिर की पथरीली छत तिरछी है। बाहर झरने की तरफ छत की ऊंचाई छः -सात फ़ीट होगी जहाँ ऐसा लगता है कि सर टकरा न जाये। वहीं अंदर की तरफ तिरछी हो कर छत फर्श से मिल जाती है। गुफा का आकार लगभग 50' x 25' होगा। मंदिर के बाहर लम्बाई में बैठ कर झरना और पहाड़ियों को निहारने के लिए सीढियाँ बनी हैं। इनके सामने ही गिरे हुए झरने के पानी को बांध कर दो काम गहराई के टैंक बने हैं। इनसे ओवरफ्लो होकर पानी छोटे नाले के रूप में पहाड़ों से नीचे जाती है।झरना आने वाले पर्यटक इस नाले को एक छोटे पुलिया से पार कर गुफा मंदिर की तरफ आते हैं। इस पुलिया पर खड़े हो कर झरना और सुरम्य हरे भरे पहाड़ों को देखने का एक अलग ही आनंद है। 
मोती झरना का अप्रतिम दृश्य

        इतना मनोरम स्थान है कि हर कोई जो भी यहाँ आता है इस अविस्मरणीय क्षण को चित्र के रूप में सुरक्षित रख लेना चाहता है। सभी मोबाइल फोन से फोटो लेने में व्यस्त थे। हमने भी फोटो और वीडियो लिए और बचे हुए समय को विचार कर कुछ देर वहां रह कर वापस निकल लिए, एक और खूबसूरत स्थल और मंदिर की यादें संजोये। 
          जो भी भक्त या पर्यटक बाहर से यहाँ आना चाहते हैं उनके लिए ठहरने का इंतजाम साहेबगंज शहर के होटलों में ही है, झरना के पास नहीं। खाने का बढ़िया इंतेज़ाम पास में नहीं है। दो -तीन झोंपड़ीनुमा दुकान हैं जहाँ रिफाइन तेल में तले पूड़ी सब्जी या मुढ़ी-घुघनी-पकौड़े मिल रहे थे। इन्ही दुकानों में पानी बोतल, कोल्ड ड्रिंक्स, चॉकलेट, इत्यादि भी मिल रहे थे। यद्यपि बंदरों से सावधान रहने की बात की जा रही थी किन्तु झरने तक जाने वालों को वे ज्यादा परेशान नहीं कर रहे थे। सिर्फ दूकान के पास ही उनका आतंक था, खाने  सामान झपटने में एक्सपर्ट। हमने दो छोटे बिस्कुट के पैकेट ले कर एक खाया और दूसरा टेबल पर रखा। जरा सा असावधान होते ही बिजली की फुर्ती से टेबल पर रखा पैकेट झपट कर एक बन्दर भाग गया।हमलोग आश्चर्यचकित हो कर हंसने लगे। 
            अगर समय और मौका मिले तो अवश्य इस जगह पर जाइये, मन प्रसन्न हो जायेगा। 
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Saturday, July 2, 2022

तख्तेश्वर महादेव मंदिर, भावनगर, गुजरात, (हिन्दी ब्लॉग) - Takhteshwar Mahadev Temple, Bhavnagar, Gujrat

पिछले ब्लॉग निष्कलंक महादेव, भावनगर, गुजरात (हिन्दी ब्लॉग) से आगे ....... 

तख्तेश्वर महादेव मंदिर, भावनगर, गुजरात
Takhteshwar Mahadeva Temple, Bhavnagar, Gujrat
 

            हमलोगों ने सवेरे स्नान कर बिना कुछ खाये तख्तेश्वर महादेव, भावनगर में पूजा करने का सोचा क्योंकि यह स्थान शान्वी गेस्ट हॉउस (जहाँ हमलोग ठहरे थे) से मात्र 25 किमी की दूरी पर है। निकलते -निकलते नौ बज चुके थे। रास्ते में दोनों तरफ कुछ कीकर की झाड़ियाँ  नजर आ रहीं थीं। जमीन उपजाऊ नहीं लग रही थी। धीरे -धीरे गर्मी बढ़ने लगी। लगभग एक घंटे के अंदर हमलोग गूगल मैप के सहारे यहाँ पहुंचे। मंदिर एक छोटी पहाड़ी टीले के ऊपर बना था। गाड़ी का रास्ता आधी पहाड़ी पहाड़ी तक बना था। जगह को अच्छे से विकसित किया गया था। जो लोग पूजा के निमित्त न आ कर सिर्फ मनोरंजन के लिए आना चाहें तो उनके लिए भी जगह अच्छी है। साफ़-सुथरी। बैठने के लिए कुछ बेंच भी बने हैं। वहाँ गाड़ी खड़ी कर हमलोग सीढ़ियों से ऊपर मंदिर तक पहुँचे जो टीले पे सबसे ऊपर बना था। साफ़ सुथरा पर एक्का दुक्का आदमी। गर्भ गृह के सामने बरामदे के एक कोने में एक पंडित जी कुछ जप कर रहे थे।एक मालाकार गर्भगृह के बाहर बायीं ओर बैठा फूल माला बेच रहा था। गर्भ गृह में सामने तख्तेश्वर महादेव शिवलिंग के रूप में विराजमान थे। शिवलिंग के बायीं ओर एक बुजुर्ग पुजारी बैठे थे।  गर्भ गृह सामने बरामदे से दो फ़ीट ऊँचाई पर था। हम सोच ही रहे थे कि पता नहीं अंदर जाने की परंपरा है या नहीं, तभी एक सज्जन आये और अंदर जाकर पुजारी के सामने बैठे और पूजा की। उसके निकलने के बाद हमलोगों ने भी अंदर जा कर पूजा करने का अभिप्राय पुजारी जी को बताया।  उनकी स्वीकृति मिलने के बाद मालाकार से फूल -माला लेकर परिवार सहित अंदर अंदर गए और पुजारी जी के निर्देश के अनुसार पूजा कर निकले। 

तख्तेश्वर महादेव मंदिर, भावनगर, गुजरात
Takhteshwar Mahadeva Temple, Bhavnagar, Gujrat
 

             हमें यहाँ आने से पहले यह अनुमान था कि साळंगपुर की तरह ही यहाँ भक्तों की काफी भीड़ होगी और और मंदिर में पूजा करते-करते घंटे भर का समय तो निकल ही जायेगा। पर यहाँ तो मुहल्ले के शिव-मंदिर जैसा ही नजारा था और दस मिनट में ही पूजा से निबट गए। काफी समय था अभी हाथ में। तो मंदिर के चारों तरफ घूमने लगे। यहाँ से शहर का अच्छा दृश्य दिखाई पड़ रहा था। इस पहाड़ी पर भी कई प्रकार के पेड़ लगाए गए थे जिसमें बेल के पेड़ अधिक थे, कारण स्पष्ट था कि शिव को बेलपत्र बहुत प्रिय हैं। हमने मोबाइल से कुछ चित्र लिए और कुछ देर मंदिर की ही छाया में बैठे। 

Baba Takhteshwar Mahadeva,
Bhavnagar, Gujrat

            अब सोचा कि अगला जो मंदिर सोचा था श्री कोडियार माता मंदिर, वहाँ दर्शन -पूजन कर लें। गूगल मैप में कई कोडियार माता का मंदिर दिख रहा था, पर जो मंदिर मैप पर असली लग रहा था वह मात्र चार किमी दूर ही था। फिर भी एक बार किसी स्थानीय से पूछ लेने का सोचा। तो गए उसी मालाकार के पास। उसने तो बताया कि मंदिर अट्ठारह किमी दूर है। बड़ा कन्फ्यूजन हो गया। भूख लग रही थी, ऊपर से गर्मी भी बढ़ती जा रही थी। सोचा जैसे हमलोगों के तरफ काली माँ का मंदिर होता है, एक शहर में कई, तो वैसे ही होगा। क्यों न पास वाले में जाएँ, मैप में तो जैसे इसे ही बड़ा और ओरिजिनल मंदिर बता रहा था। सो हमलोग मैप देखते -देखते उस स्थान पर पहुंचे। पर हमलोगों का यह निर्णय बिलकुल गलत निकला। मैप के लोकेशन पर कई बार आगे पीछे हुए, एक साधारण मंदिर भी न था वहाँ। स्थानीय लोगों से पूछा पर सभी ने कहा यहाँ पर ऐसा कोई मंदिर नहीं है। पता नहीं किसने मैप पर यह इनफार्मेशन डाला था, हमलोग बिलकुल मायूस हो गए। 

भावनगर में तख्तेश्वर महादेव मन्दिर

           अब असली मंदिर दूसरी जगह खोजने की हिम्मत न रही। पता नहीं खोजते हुए इस गर्मी में भटकें और सही मंदिर मिले न मिले। भावनगर हमलोग लगभग पार ही कर चुके थे। हमलोगों ने अहमदाबाद की ओर बढ़ने का निश्चय किया और सोचा कि अगर एक घंटे के अंदर हाईवे के किनारे कोई ढंग का मंदिर मिलेगा तो पूजा कर लेंगे क्योंकि अभी तक हमलोग भूखे ही थे। शहर के बाहर निकलते ही फिर वैसा ही वातावरण। दूर तक परती सफ़ेद मैदान जिसमें कहीं कहीं झाड़ियाँ। कई जगह बड़ी -बड़ी मशीनों से नमक के टीले लगाए जा रहे थे और ट्रकों में लादे जा रहे थे। तब मैंने सोचा कि ये परती जमीन सफ़ेद क्यों नजर आ रही है। वस्तुतः खम्भात की खाड़ी से समुद्र का पानी इनमें आता है जो सूखने पर सफ़ेद नमक की परत के रूप में जमीन पर बैठ जाता है। जिन खेतों में बार बार समुद्र का पानी फैला कर सुखाया जाता है वहाँ नमक की मोटी परत आ जाती है जिसे समेत कर इकट्ठा किया जाता है और बेचा जाता है। 

भावनगर, गुजरात में तख्तेश्वर महादेव
पहाड़ी पर एक बेल से लदा वृक्ष

लगभग एक घंटा होने को चला था और कोई मंदिर न पाकर अब हमलोगों ने मन ही मन माता जी को प्रणाम किया और भोजन कर लेने का सोचा। मेरी बेटी को आज का दिन बेकार जाने जैसा लग रहा था। मैप पर ही देख कर उसने कहा कि पास ही एक वेलवाडार ब्लैक बक नेशनल पार्क है। टाइम है अभी तो क्यों न देख लें। ब्लैक-बक यानि काला हिरण का नेशनल पार्क। उसका मन रखने के लिए चले हमलोग। रास्ता हाइवे से उतर कर था और हाईवे से 10 किमी दूर था पार्क का एंट्री गेट। जमीन पर करीब सात-आठ फुट मिट्टी भराई कर सिंगल लेन का रोड बनाया गया था। गेट आने से पहले ही कई काले हिरण झुण्ड में दो तीन सौ फ़ीट की दूरी पर दिख रहे थे, कुछ और पास में भी। सड़क के दोनों ओर झाड़ीनुमा पेड़ थे जिनमें सियार और नेवले भी दिखे। एंट्री गेट के बहार गाड़ी खड़ीकर मैं छोटे से ऑफिस में गया। प्रति व्यक्ति 200 टिकट और अपनी गाड़ी से पार्क के अंदर घूमने पर 750 अलग फिर गाइड का 400 रूपये अलग। अगर उनकी खुली जीप लेकर चलेंगे तो 1200 रुपए। जब मैंने गाड़ी में आकर बताया तो कोई भी जाने को तैयार न हुआ। बोले ये लोग कि जब सिर्फ काले हिरण ही दिखाएंगे तो वो हमने रास्ते में ही देख लिया, इसके लिए पैसा और समय बर्बाद नहीं करेंगे, ऊपर से भूख और गर्मी। तो बस, उसी तरह सड़क से ही ब्लैक-बक देखते हुए लौटे हमलोग। इतना तो तय है कि इस पार्क का मज़ा लेना चाहते हैं तो जाड़े के दिनों में ही आयें। मौसम और घूमने दोनों का आनंद आएगा।

भावनगर से अहमदाबाद निकलते ही
एक सुन्दर पुल के ऊपर घूमती चिड़ियाँ 

हाईवे पर आकर ड्राइवर को बोला कि भाई जो ढंग का पहला ढाबा मिले, रोक लेना। संयोग से जल्द ही ढाबा मिल भी गया जिसमें हमें ढंग का भोजन भी मिल गया। अहमदाबाद आने के बाद भी हमारे पास समय बचा था। पत्नी ने कहा कि जब हमलोग पिछली बार सोमनाथ-द्वारकाधीश यात्रा पर आये तो अहमदाबाद घूमने के क्रम में एक काली मंदिर भी गए थे, तो क्यों न वहीँ जाएँ आठ साल बाद। तो हमलोग लाल दरवाजा के पास काली मंदिर में गए। यहाँ टोकरी में नारियल, प्रसाद और फूल ले कर माँ का दर्शन किया और प्रसाद ले कर निकले। मंदिर के बाहर एक किन्नर था, उसे कुछ पैसे देकर हमलोग आगे बढ़े। एक बुजुर्ग गुजरती दंपत्ति भी पूजा कर निकल रहे थे, पत्नी से उन्होंने बात करना चाहा पर हमारी हिंदी उन्हें समझने में दिक्कत हो रही थी। खैर किसी तरह संवाद आगे बढ़ा उन महिला ने पत्नी को बताया कि किन्नर से किस प्रकार आशीर्वाद लेना चाहिए। उनके बताये अनुसार फिर कुछ पैसे किन्नर को दे कर नियमानुसार आशीर्वाद लिया और लौटे।

                  बाहर का इलाका बहुत ही भीड़ भरा और मेले जैसा था। सड़क तरह -तरह की दुकानों से भरा पड़ा था। बस पैदल या बाइक से ही चल सकते थे। सड़क से कुछ गलियाँ भी निकल रही थीं जिसमे बाहर से छोटे लगने वाले तरह -तरह के दूकान नजर आ रहे थे। पत्नी ने खोज कर एक साड़ी के दूकान से कुछ साड़ियाँ खरीदीं। यह पूरा इलाका मुस्लिम बहुल है और अधिकतर दुकान उन्हीं लोगों का है। 

            अब शाम हो चला था। हमलोग भी थक गए थे। आठ बजे फ्लाइट थी। तो सोचा समय से पहले ही एयरपोर्ट पहुँच कर आराम करेंगे। इसलिए सालंगपुर और भावनगर की यात्रा पूर्ण कर हमलोग वापस लौटे।  

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इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची :--








































Friday, May 6, 2022

निष्कलंक महादेव, भावनगर, गुजरात - (हिंदी ब्लॉग)

पिछले ब्लॉग - "BAPS श्रीस्वामीनारायण मंदिर, सालंगपुर, गुजरात" - से आगे .........  

निष्कलंक महादेव का स्थान, भावनगर, गुजरात

         श्रीकष्टभंजनदेवजी हनुमान मंदिर, साळंगपुर से निष्कलंक महादेव की दूरी लगभग 82 किमी है। अर्थात हमें भावनगर शहर के बाईपास से होकर और आगे जाना था। निष्कलंक महादेव जी का स्थान (यदि मंदिर कहें तो बिना छत और दीवारों के) अरब सागर से जुड़े खम्भात की खाड़ी के किनारे है जो काठियावाड़ प्रायद्वीप की तरफ है। वस्तुतः यह शिव स्थान खाड़ी के किनारे जमीन पर नहीं है बल्कि किनारे से आधा किमी पानी की ओर है। यह है कि यहाँ पर तल छिछला है और समुद्र के दैनिक ज्वार-भाटे के कारण कुछ घंटों के लिए पानी दूर चला जाता है और गीली, रेतीली और पथरीली ज़मीन रहती है जिस पर चल कर महादेव तक जाया जाता है। पर्यटक और भक्त इन्हीं कुछ घंटों में वहाँ जाते हैं, पूजा करते हैं और उल्लास के साथ मस्ती, फोटो या वातावरण का आनंद लेते हैं फिर वापस किनारे पर आ जाते हैं। 

शिवलिङ्ग निष्कलंक महादेव, भावनगर, गुजरात  

      यद्यपि हमलोग मार्च के द्वितीय सप्ताह में पर्यटन के लिए गए थे फिर भी गुजरात में दिन में तीखी धूप और गर्मी थी। रास्ते में चारों ओर हरियाली के नाम पर कीकर के कुछ झाड़ीनुमा पेड़ और परती खेत। नतीजे में गर्मी तो होनी ही थी। कई जगह तो हाइवे के किनारे तपती धूप में कुछ लोग एक झंडा दिखाते हुए आने जाने वाली गाड़ियों को रुकने का इशारा कर रहे थे और पानी के लिए दान की याचना कर रहे थे। 

शान्वी रिसोर्ट, निष्कलंक महादेव के निकट

       हमलोगों का यहाँ शान्वी रिसोर्ट आरक्षित था। जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो चेक-इन का समय हो चुका था पर उन्हें और 15 मिनट देर थी, सो हमने भोजन करने का निश्चय किया क्योंकि सालंगपुर में हमलोगों ने हल्का जलपान ही किया था और  भूख लग चली थी। होटल का रेस्टोरेंट अलग में एक बड़े चबूतरे पर था जिसके चारों ओरे बाँस की रेलिंग थी और छत भी बाँस और फूस का ढलवाँ बना था। जैसे गाँव में बने होते हैं। खाना बढ़िया था पर वाश बेसिन वाला पानी कुल्ली करने में नमकीन था। शायद भूमिगत जलस्रोत में समुद्री नमकीन पानी का अंश आ चुका है वहाँ। पीने के लिए पैकेज़्ड बोतल उपलब्ध थे। 
समुद्र-किनारे से निष्कलंक महादेव को जाने की
यात्रा प्रारम्भ

     जब खाना खाकर आये तो रूम तैयार था जो भूतल पर ही था। कुल मिलाकर बेड्स ठीक ही थे पर वाशरूम में पानी के लिए कहना पड़ा क्योंकि वे लोग टंकी में पानी चढ़ाने के लिए मोटर चलना भूल गए थे।  

          होटल में रिसेप्शन के सामने दीवार पर एक सारणी लगी थी जिसमे निष्कलंक महादेव तक जाने के लिए समय का अंतराल लिखा था। यह प्रतिदिन एक समान नहीं था बल्कि चाँद के अनुसार तिथिवार एक पक्ष के लिए अलग-अलग समय था। इस लिस्ट के अनुसार उस दिन हमें लगभग चार बजे तट पर जाना उचित था। रूम में आने के बाद देखा कि चार बजने में अभी समय था। अतः हमने एक-डेढ़ घंटे आराम करना सही समझा। 

निष्कलंक महादेव चबूतरे का दृष्य 

         चार बजे जब हमलोग तट पर पहुंचे तो बाइक और चार-चक्कों की भीड़ लगी थी। झोंपड़ीनुमा दुकानों की कतारें थीं जिनमें खाने-पीने का सामान, पानी का बोतल, नारियल-पानी और चाय इत्यादि मिल रहे थे। लोगों ने बताया कि निष्कलंक महादेव समुद्र की तरफ दूर में वहाँ हैं जहाँ एक लाल-सफ़ेद रंग का स्तम्भ नज़र आ रहा था। उन्होंने कहा कि हम अपने जूते चप्पल दूकान के पास रख दें और पैदल ही जाएँ अन्यथा चलने में परेशानी होगी। उनकी बात मानकर एक दूकान के पास हमने अपने जूते चप्पल उतारे, एक पानी का बोतल लिया और चल दिए महादेव की ओर। आगे भक्तों और पर्यटकों की कतार जा भी रही थी और आ भी रही थी। कतार के चलने के कारण समुद्र तल पर पगडण्डी बन गयी थी जिसमें बगल की गीली-पथरीली जमीन से पानी रिस कर आ रहा था और नाली की तरह धीरे-धीरे बह रही थी। खाली पैर इस पानी में या इसके बगल की थोड़ी गीली रेत में चलना अच्छा लग रहा था। कहीं कहीं भीख माँगने वाले भी खड़े थे। एक भिखारी ने जो शायद काफी देर से धूप में खड़ा था, मेरे हाथ में पानी देख कर पैसे के बजाय पानी ही माँगा। जब प्यास लगी हो तो कितने भी पैसे हो पास में, वह प्यास नहीं बुझा सकता। प्यास तो बस पानी ही बुझा सकता है। उस समय एक पानी के बोतल का मोल सिर्फ 20 रूपये नहीं होता वरन अमूल्य होता है। हमलोग होटल से पानी पीकर निकले थे और संभवतः वापस किनारे तक हमलोग बिना पानी के आ सकते थे, फिर साढ़े चार बजे धूप भी काफी कमजोर हो चुकी होती थी। अतः मैंने वह बोतल माँगने वाले को दे दिया।

निष्कलंक महादेव चबूतरे के पास
पहुँचने के पहले

        जब हमलोग अपने गंतव्य पर पहुंचे तो देखा कि यह एक बड़ा सा गोल चबूतरा (Platform) है जिस पर एक तरफ लगभग 50 फ़ीट ऊँचा स्तम्भ है जो लाल-सफ़ेद के एकान्तर पट्टियों में रंगा था ताकि दूर से ही दिखाई दे। इसके निचले भाग में श्रीहनुमानजी की एक मूर्ति है। इससे थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा शिवलिंग है जिसके पास एक पंडितजी बैठे हैं जो इच्छुक भक्तों को पूजा भी करा रहे हैं। प्लेटफॉर्म पर दो और छोटे शिवलिंग भी हैं। इतनी दूर से आये थे तो हमने भी बड़े शिवलिंग पर पूजा की, नंदी को प्रणाम किया। फिर स्तम्भ वाले हनुमान जी की भी पूजा की। 

समुद्री चिड़िया (Sea Gull) को दाना

          पूजा के बाद चबूतरे पर चारों तरफ घूमे। एक तरफ पानी ज्यादा था जिसमे कई युवक नहाते हुए मस्ती कर रहे थे। कुछ परिवार बच्चों के साथ आये थे, बच्चे किनारे के कम पानी में मस्ती कर रहे थे। एक तो पालतू कुत्ते के साथ आये थे। बेचारा कुत्ता रास्ते में गीली रेतीली मिटटी से गन्दा हो गया था जिसे साफ़ करने के लिए उसे उन्होंने पानी में नहलाना चाहा पर वह डर कर उछल भागा। कुछ लोग यूँ ही बैठ कर चारों ओर के नज़ारे का आनंद ले रहे थे। कुछ लोग सीगल नामक समुद्री चिड़ियों को मकई का लावा (दस-दस रूपये में ये चिड़ियों के दानों का पैकेट वहाँ मिल रहा था) खिला कर आनंदित हो रहे थे। और जो काम सबसे ज्यादा हो रहा था वह था सेल्फी और फोटो लेना। हमलोगों ने भी ये सब एन्जॉय किया। लगभग घंटे भर वहाँ बिताने के बाद हमलोगों ने वापस किनारे जाने का फैसला लिया। मन में एक अनजाना डर यह लग रहा था कि कहीं जल स्तर बढ़ना न शुरू हो जाये यद्यपि यह डर सही न था क्योंकि अभी भी भक्त और पर्यटक आ ही रहे थे। फिर उसी प्रकार नंगे पैरों से आधे किमी की भीगी, रेतीली जमीन पर चलकर किनारे उस दूकान के पास आये जहाँ हमने अपने चप्पल रखे थे। 
गीली, रेतीली और पानी भरे पगडण्डी से किनारे
का सफर जबकि सुहावना सूर्यास्त सामने हो|
🙏निष्कलंक महादेव की जय🙏

        थोड़े थक चुके थे तो कुछ खाने का सोचा। दुकान वाले के पास नारियल पानी और स्वीट कॉर्न था। वही खाये हमलोग।  स्वीट कॉर्न बढ़िया न बना था।फिर चाय भी ट्राय किया पर ढंग का न लगा। अंततः होटल की ओरे लौट चले। 

            शाम हो चली थी। होटल का लॉन बढ़िया था और हमारे रूम के सामने भी। झूले भी थे लॉन में जिस पर दो लोग बैठ सकते थे। झूले पर बहुत अच्छा लग रहा था। डेढ़ दो घंटे हमने वहीँ मस्ती की। बाहर में बढ़िया चाय न मिली थी अतः होटल के रेस्टॉरेंट से वहीं चाय मंगाई गई और एन्जॉय किया। रात का खाना रूम में ही खाया। सबेरे जल्दी नींद खुली। रूम से बाहर निकला तो सामने लॉन और भी अच्छा लग रहा था क्योंकि सूर्योदय होने वाला था। पूरे परिवार के साथ हमलोगों ने लॉन में बैठ कर सनराइज का आनंद लिया। 

शान्वी रिसोर्ट से सूर्योदय का नजारा
भावनगर, गुजरात

         हमारे टूर का आज अंतिम दिन था और रात में अहमदाबाद से फ्लाइट लेनी थी। सोचा कि दिन में कहीं और दर्शन कर लिया जाय तो बढ़िया। नेट पर देखा तो भावनगर में दो जगह मंदिर जाने का सोचा। एक तो श्रीतख्तेश्वर महादेव मंदिर और दूसरी श्री कोडियार माता मंदिर।   


           भावनगर ज्यादा दूर न था अतः पूजा करने की सोच कर हमलोगों ने नाश्ता न किया बस स्नान कर गाड़ी से निकल पड़े। आगे की यात्रा का विवरण अगले ब्लॉग पोस्ट में।          

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