Saturday, July 2, 2022

तख्तेश्वर महादेव मंदिर, भावनगर, गुजरात, (हिन्दी ब्लॉग) - Takhteshwar Mahadev Temple, Bhavnagar, Gujrat

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तख्तेश्वर महादेव मंदिर, भावनगर, गुजरात
Takhteshwar Mahadeva Temple, Bhavnagar, Gujrat
 

            हमलोगों ने सवेरे स्नान कर बिना कुछ खाये तख्तेश्वर महादेव, भावनगर में पूजा करने का सोचा क्योंकि यह स्थान शान्वी गेस्ट हॉउस (जहाँ हमलोग ठहरे थे) से मात्र 25 किमी की दूरी पर है। निकलते -निकलते नौ बज चुके थे। रास्ते में दोनों तरफ कुछ कीकर की झाड़ियाँ  नजर आ रहीं थीं। जमीन उपजाऊ नहीं लग रही थी। धीरे -धीरे गर्मी बढ़ने लगी। लगभग एक घंटे के अंदर हमलोग गूगल मैप के सहारे यहाँ पहुंचे। मंदिर एक छोटी पहाड़ी टीले के ऊपर बना था। गाड़ी का रास्ता आधी पहाड़ी पहाड़ी तक बना था। जगह को अच्छे से विकसित किया गया था। जो लोग पूजा के निमित्त न आ कर सिर्फ मनोरंजन के लिए आना चाहें तो उनके लिए भी जगह अच्छी है। साफ़-सुथरी। बैठने के लिए कुछ बेंच भी बने हैं। वहाँ गाड़ी खड़ी कर हमलोग सीढ़ियों से ऊपर मंदिर तक पहुँचे जो टीले पे सबसे ऊपर बना था। साफ़ सुथरा पर एक्का दुक्का आदमी। गर्भ गृह के सामने बरामदे के एक कोने में एक पंडित जी कुछ जप कर रहे थे।एक मालाकार गर्भगृह के बाहर बायीं ओर बैठा फूल माला बेच रहा था। गर्भ गृह में सामने तख्तेश्वर महादेव शिवलिंग के रूप में विराजमान थे। शिवलिंग के बायीं ओर एक बुजुर्ग पुजारी बैठे थे।  गर्भ गृह सामने बरामदे से दो फ़ीट ऊँचाई पर था। हम सोच ही रहे थे कि पता नहीं अंदर जाने की परंपरा है या नहीं, तभी एक सज्जन आये और अंदर जाकर पुजारी के सामने बैठे और पूजा की। उसके निकलने के बाद हमलोगों ने भी अंदर जा कर पूजा करने का अभिप्राय पुजारी जी को बताया।  उनकी स्वीकृति मिलने के बाद मालाकार से फूल -माला लेकर परिवार सहित अंदर अंदर गए और पुजारी जी के निर्देश के अनुसार पूजा कर निकले। 

तख्तेश्वर महादेव मंदिर, भावनगर, गुजरात
Takhteshwar Mahadeva Temple, Bhavnagar, Gujrat
 

             हमें यहाँ आने से पहले यह अनुमान था कि साळंगपुर की तरह ही यहाँ भक्तों की काफी भीड़ होगी और और मंदिर में पूजा करते-करते घंटे भर का समय तो निकल ही जायेगा। पर यहाँ तो मुहल्ले के शिव-मंदिर जैसा ही नजारा था और दस मिनट में ही पूजा से निबट गए। काफी समय था अभी हाथ में। तो मंदिर के चारों तरफ घूमने लगे। यहाँ से शहर का अच्छा दृश्य दिखाई पड़ रहा था। इस पहाड़ी पर भी कई प्रकार के पेड़ लगाए गए थे जिसमें बेल के पेड़ अधिक थे, कारण स्पष्ट था कि शिव को बेलपत्र बहुत प्रिय हैं। हमने मोबाइल से कुछ चित्र लिए और कुछ देर मंदिर की ही छाया में बैठे। 

Baba Takhteshwar Mahadeva,
Bhavnagar, Gujrat

            अब सोचा कि अगला जो मंदिर सोचा था श्री कोडियार माता मंदिर, वहाँ दर्शन -पूजन कर लें। गूगल मैप में कई कोडियार माता का मंदिर दिख रहा था, पर जो मंदिर मैप पर असली लग रहा था वह मात्र चार किमी दूर ही था। फिर भी एक बार किसी स्थानीय से पूछ लेने का सोचा। तो गए उसी मालाकार के पास। उसने तो बताया कि मंदिर अट्ठारह किमी दूर है। बड़ा कन्फ्यूजन हो गया। भूख लग रही थी, ऊपर से गर्मी भी बढ़ती जा रही थी। सोचा जैसे हमलोगों के तरफ काली माँ का मंदिर होता है, एक शहर में कई, तो वैसे ही होगा। क्यों न पास वाले में जाएँ, मैप में तो जैसे इसे ही बड़ा और ओरिजिनल मंदिर बता रहा था। सो हमलोग मैप देखते -देखते उस स्थान पर पहुंचे। पर हमलोगों का यह निर्णय बिलकुल गलत निकला। मैप के लोकेशन पर कई बार आगे पीछे हुए, एक साधारण मंदिर भी न था वहाँ। स्थानीय लोगों से पूछा पर सभी ने कहा यहाँ पर ऐसा कोई मंदिर नहीं है। पता नहीं किसने मैप पर यह इनफार्मेशन डाला था, हमलोग बिलकुल मायूस हो गए। 

भावनगर में तख्तेश्वर महादेव मन्दिर

           अब असली मंदिर दूसरी जगह खोजने की हिम्मत न रही। पता नहीं खोजते हुए इस गर्मी में भटकें और सही मंदिर मिले न मिले। भावनगर हमलोग लगभग पार ही कर चुके थे। हमलोगों ने अहमदाबाद की ओर बढ़ने का निश्चय किया और सोचा कि अगर एक घंटे के अंदर हाईवे के किनारे कोई ढंग का मंदिर मिलेगा तो पूजा कर लेंगे क्योंकि अभी तक हमलोग भूखे ही थे। शहर के बाहर निकलते ही फिर वैसा ही वातावरण। दूर तक परती सफ़ेद मैदान जिसमें कहीं कहीं झाड़ियाँ। कई जगह बड़ी -बड़ी मशीनों से नमक के टीले लगाए जा रहे थे और ट्रकों में लादे जा रहे थे। तब मैंने सोचा कि ये परती जमीन सफ़ेद क्यों नजर आ रही है। वस्तुतः खम्भात की खाड़ी से समुद्र का पानी इनमें आता है जो सूखने पर सफ़ेद नमक की परत के रूप में जमीन पर बैठ जाता है। जिन खेतों में बार बार समुद्र का पानी फैला कर सुखाया जाता है वहाँ नमक की मोटी परत आ जाती है जिसे समेत कर इकट्ठा किया जाता है और बेचा जाता है। 

भावनगर, गुजरात में तख्तेश्वर महादेव
पहाड़ी पर एक बेल से लदा वृक्ष

लगभग एक घंटा होने को चला था और कोई मंदिर न पाकर अब हमलोगों ने मन ही मन माता जी को प्रणाम किया और भोजन कर लेने का सोचा। मेरी बेटी को आज का दिन बेकार जाने जैसा लग रहा था। मैप पर ही देख कर उसने कहा कि पास ही एक वेलवाडार ब्लैक बक नेशनल पार्क है। टाइम है अभी तो क्यों न देख लें। ब्लैक-बक यानि काला हिरण का नेशनल पार्क। उसका मन रखने के लिए चले हमलोग। रास्ता हाइवे से उतर कर था और हाईवे से 10 किमी दूर था पार्क का एंट्री गेट। जमीन पर करीब सात-आठ फुट मिट्टी भराई कर सिंगल लेन का रोड बनाया गया था। गेट आने से पहले ही कई काले हिरण झुण्ड में दो तीन सौ फ़ीट की दूरी पर दिख रहे थे, कुछ और पास में भी। सड़क के दोनों ओर झाड़ीनुमा पेड़ थे जिनमें सियार और नेवले भी दिखे। एंट्री गेट के बहार गाड़ी खड़ीकर मैं छोटे से ऑफिस में गया। प्रति व्यक्ति 200 टिकट और अपनी गाड़ी से पार्क के अंदर घूमने पर 750 अलग फिर गाइड का 400 रूपये अलग। अगर उनकी खुली जीप लेकर चलेंगे तो 1200 रुपए। जब मैंने गाड़ी में आकर बताया तो कोई भी जाने को तैयार न हुआ। बोले ये लोग कि जब सिर्फ काले हिरण ही दिखाएंगे तो वो हमने रास्ते में ही देख लिया, इसके लिए पैसा और समय बर्बाद नहीं करेंगे, ऊपर से भूख और गर्मी। तो बस, उसी तरह सड़क से ही ब्लैक-बक देखते हुए लौटे हमलोग। इतना तो तय है कि इस पार्क का मज़ा लेना चाहते हैं तो जाड़े के दिनों में ही आयें। मौसम और घूमने दोनों का आनंद आएगा।

भावनगर से अहमदाबाद निकलते ही
एक सुन्दर पुल के ऊपर घूमती चिड़ियाँ 

हाईवे पर आकर ड्राइवर को बोला कि भाई जो ढंग का पहला ढाबा मिले, रोक लेना। संयोग से जल्द ही ढाबा मिल भी गया जिसमें हमें ढंग का भोजन भी मिल गया। अहमदाबाद आने के बाद भी हमारे पास समय बचा था। पत्नी ने कहा कि जब हमलोग पिछली बार सोमनाथ-द्वारकाधीश यात्रा पर आये तो अहमदाबाद घूमने के क्रम में एक काली मंदिर भी गए थे, तो क्यों न वहीँ जाएँ आठ साल बाद। तो हमलोग लाल दरवाजा के पास काली मंदिर में गए। यहाँ टोकरी में नारियल, प्रसाद और फूल ले कर माँ का दर्शन किया और प्रसाद ले कर निकले। मंदिर के बाहर एक किन्नर था, उसे कुछ पैसे देकर हमलोग आगे बढ़े। एक बुजुर्ग गुजरती दंपत्ति भी पूजा कर निकल रहे थे, पत्नी से उन्होंने बात करना चाहा पर हमारी हिंदी उन्हें समझने में दिक्कत हो रही थी। खैर किसी तरह संवाद आगे बढ़ा उन महिला ने पत्नी को बताया कि किन्नर से किस प्रकार आशीर्वाद लेना चाहिए। उनके बताये अनुसार फिर कुछ पैसे किन्नर को दे कर नियमानुसार आशीर्वाद लिया और लौटे।

                  बाहर का इलाका बहुत ही भीड़ भरा और मेले जैसा था। सड़क तरह -तरह की दुकानों से भरा पड़ा था। बस पैदल या बाइक से ही चल सकते थे। सड़क से कुछ गलियाँ भी निकल रही थीं जिसमे बाहर से छोटे लगने वाले तरह -तरह के दूकान नजर आ रहे थे। पत्नी ने खोज कर एक साड़ी के दूकान से कुछ साड़ियाँ खरीदीं। यह पूरा इलाका मुस्लिम बहुल है और अधिकतर दुकान उन्हीं लोगों का है। 

            अब शाम हो चला था। हमलोग भी थक गए थे। आठ बजे फ्लाइट थी। तो सोचा समय से पहले ही एयरपोर्ट पहुँच कर आराम करेंगे। इसलिए सालंगपुर और भावनगर की यात्रा पूर्ण कर हमलोग वापस लौटे।  

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