Friday, May 6, 2022

निष्कलंक महादेव, भावनगर, गुजरात - (हिंदी ब्लॉग)

पिछले ब्लॉग - "BAPS श्रीस्वामीनारायण मंदिर, सालंगपुर, गुजरात" - से आगे .........  

निष्कलंक महादेव का स्थान, भावनगर, गुजरात

         श्रीकष्टभंजनदेवजी हनुमान मंदिर, साळंगपुर से निष्कलंक महादेव की दूरी लगभग 82 किमी है। अर्थात हमें भावनगर शहर के बाईपास से होकर और आगे जाना था। निष्कलंक महादेव जी का स्थान (यदि मंदिर कहें तो बिना छत और दीवारों के) अरब सागर से जुड़े खम्भात की खाड़ी के किनारे है जो काठियावाड़ प्रायद्वीप की तरफ है। वस्तुतः यह शिव स्थान खाड़ी के किनारे जमीन पर नहीं है बल्कि किनारे से आधा किमी पानी की ओर है। यह है कि यहाँ पर तल छिछला है और समुद्र के दैनिक ज्वार-भाटे के कारण कुछ घंटों के लिए पानी दूर चला जाता है और गीली, रेतीली और पथरीली ज़मीन रहती है जिस पर चल कर महादेव तक जाया जाता है। पर्यटक और भक्त इन्हीं कुछ घंटों में वहाँ जाते हैं, पूजा करते हैं और उल्लास के साथ मस्ती, फोटो या वातावरण का आनंद लेते हैं फिर वापस किनारे पर आ जाते हैं। 

शिवलिङ्ग निष्कलंक महादेव, भावनगर, गुजरात  

      यद्यपि हमलोग मार्च के द्वितीय सप्ताह में पर्यटन के लिए गए थे फिर भी गुजरात में दिन में तीखी धूप और गर्मी थी। रास्ते में चारों ओर हरियाली के नाम पर कीकर के कुछ झाड़ीनुमा पेड़ और परती खेत। नतीजे में गर्मी तो होनी ही थी। कई जगह तो हाइवे के किनारे तपती धूप में कुछ लोग एक झंडा दिखाते हुए आने जाने वाली गाड़ियों को रुकने का इशारा कर रहे थे और पानी के लिए दान की याचना कर रहे थे। 

शान्वी रिसोर्ट, निष्कलंक महादेव के निकट

       हमलोगों का यहाँ शान्वी रिसोर्ट आरक्षित था। जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो चेक-इन का समय हो चुका था पर उन्हें और 15 मिनट देर थी, सो हमने भोजन करने का निश्चय किया क्योंकि सालंगपुर में हमलोगों ने हल्का जलपान ही किया था और  भूख लग चली थी। होटल का रेस्टोरेंट अलग में एक बड़े चबूतरे पर था जिसके चारों ओरे बाँस की रेलिंग थी और छत भी बाँस और फूस का ढलवाँ बना था। जैसे गाँव में बने होते हैं। खाना बढ़िया था पर वाश बेसिन वाला पानी कुल्ली करने में नमकीन था। शायद भूमिगत जलस्रोत में समुद्री नमकीन पानी का अंश आ चुका है वहाँ। पीने के लिए पैकेज़्ड बोतल उपलब्ध थे। 
समुद्र-किनारे से निष्कलंक महादेव को जाने की
यात्रा प्रारम्भ

     जब खाना खाकर आये तो रूम तैयार था जो भूतल पर ही था। कुल मिलाकर बेड्स ठीक ही थे पर वाशरूम में पानी के लिए कहना पड़ा क्योंकि वे लोग टंकी में पानी चढ़ाने के लिए मोटर चलना भूल गए थे।  

          होटल में रिसेप्शन के सामने दीवार पर एक सारणी लगी थी जिसमे निष्कलंक महादेव तक जाने के लिए समय का अंतराल लिखा था। यह प्रतिदिन एक समान नहीं था बल्कि चाँद के अनुसार तिथिवार एक पक्ष के लिए अलग-अलग समय था। इस लिस्ट के अनुसार उस दिन हमें लगभग चार बजे तट पर जाना उचित था। रूम में आने के बाद देखा कि चार बजने में अभी समय था। अतः हमने एक-डेढ़ घंटे आराम करना सही समझा। 

निष्कलंक महादेव चबूतरे का दृष्य 

         चार बजे जब हमलोग तट पर पहुंचे तो बाइक और चार-चक्कों की भीड़ लगी थी। झोंपड़ीनुमा दुकानों की कतारें थीं जिनमें खाने-पीने का सामान, पानी का बोतल, नारियल-पानी और चाय इत्यादि मिल रहे थे। लोगों ने बताया कि निष्कलंक महादेव समुद्र की तरफ दूर में वहाँ हैं जहाँ एक लाल-सफ़ेद रंग का स्तम्भ नज़र आ रहा था। उन्होंने कहा कि हम अपने जूते चप्पल दूकान के पास रख दें और पैदल ही जाएँ अन्यथा चलने में परेशानी होगी। उनकी बात मानकर एक दूकान के पास हमने अपने जूते चप्पल उतारे, एक पानी का बोतल लिया और चल दिए महादेव की ओर। आगे भक्तों और पर्यटकों की कतार जा भी रही थी और आ भी रही थी। कतार के चलने के कारण समुद्र तल पर पगडण्डी बन गयी थी जिसमें बगल की गीली-पथरीली जमीन से पानी रिस कर आ रहा था और नाली की तरह धीरे-धीरे बह रही थी। खाली पैर इस पानी में या इसके बगल की थोड़ी गीली रेत में चलना अच्छा लग रहा था। कहीं कहीं भीख माँगने वाले भी खड़े थे। एक भिखारी ने जो शायद काफी देर से धूप में खड़ा था, मेरे हाथ में पानी देख कर पैसे के बजाय पानी ही माँगा। जब प्यास लगी हो तो कितने भी पैसे हो पास में, वह प्यास नहीं बुझा सकता। प्यास तो बस पानी ही बुझा सकता है। उस समय एक पानी के बोतल का मोल सिर्फ 20 रूपये नहीं होता वरन अमूल्य होता है। हमलोग होटल से पानी पीकर निकले थे और संभवतः वापस किनारे तक हमलोग बिना पानी के आ सकते थे, फिर साढ़े चार बजे धूप भी काफी कमजोर हो चुकी होती थी। अतः मैंने वह बोतल माँगने वाले को दे दिया।

निष्कलंक महादेव चबूतरे के पास
पहुँचने के पहले

        जब हमलोग अपने गंतव्य पर पहुंचे तो देखा कि यह एक बड़ा सा गोल चबूतरा (Platform) है जिस पर एक तरफ लगभग 50 फ़ीट ऊँचा स्तम्भ है जो लाल-सफ़ेद के एकान्तर पट्टियों में रंगा था ताकि दूर से ही दिखाई दे। इसके निचले भाग में श्रीहनुमानजी की एक मूर्ति है। इससे थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा शिवलिंग है जिसके पास एक पंडितजी बैठे हैं जो इच्छुक भक्तों को पूजा भी करा रहे हैं। प्लेटफॉर्म पर दो और छोटे शिवलिंग भी हैं। इतनी दूर से आये थे तो हमने भी बड़े शिवलिंग पर पूजा की, नंदी को प्रणाम किया। फिर स्तम्भ वाले हनुमान जी की भी पूजा की। 

समुद्री चिड़िया (Sea Gull) को दाना

          पूजा के बाद चबूतरे पर चारों तरफ घूमे। एक तरफ पानी ज्यादा था जिसमे कई युवक नहाते हुए मस्ती कर रहे थे। कुछ परिवार बच्चों के साथ आये थे, बच्चे किनारे के कम पानी में मस्ती कर रहे थे। एक तो पालतू कुत्ते के साथ आये थे। बेचारा कुत्ता रास्ते में गीली रेतीली मिटटी से गन्दा हो गया था जिसे साफ़ करने के लिए उसे उन्होंने पानी में नहलाना चाहा पर वह डर कर उछल भागा। कुछ लोग यूँ ही बैठ कर चारों ओर के नज़ारे का आनंद ले रहे थे। कुछ लोग सीगल नामक समुद्री चिड़ियों को मकई का लावा (दस-दस रूपये में ये चिड़ियों के दानों का पैकेट वहाँ मिल रहा था) खिला कर आनंदित हो रहे थे। और जो काम सबसे ज्यादा हो रहा था वह था सेल्फी और फोटो लेना। हमलोगों ने भी ये सब एन्जॉय किया। लगभग घंटे भर वहाँ बिताने के बाद हमलोगों ने वापस किनारे जाने का फैसला लिया। मन में एक अनजाना डर यह लग रहा था कि कहीं जल स्तर बढ़ना न शुरू हो जाये यद्यपि यह डर सही न था क्योंकि अभी भी भक्त और पर्यटक आ ही रहे थे। फिर उसी प्रकार नंगे पैरों से आधे किमी की भीगी, रेतीली जमीन पर चलकर किनारे उस दूकान के पास आये जहाँ हमने अपने चप्पल रखे थे। 
गीली, रेतीली और पानी भरे पगडण्डी से किनारे
का सफर जबकि सुहावना सूर्यास्त सामने हो|
🙏निष्कलंक महादेव की जय🙏

        थोड़े थक चुके थे तो कुछ खाने का सोचा। दुकान वाले के पास नारियल पानी और स्वीट कॉर्न था। वही खाये हमलोग।  स्वीट कॉर्न बढ़िया न बना था।फिर चाय भी ट्राय किया पर ढंग का न लगा। अंततः होटल की ओरे लौट चले। 

            शाम हो चली थी। होटल का लॉन बढ़िया था और हमारे रूम के सामने भी। झूले भी थे लॉन में जिस पर दो लोग बैठ सकते थे। झूले पर बहुत अच्छा लग रहा था। डेढ़ दो घंटे हमने वहीँ मस्ती की। बाहर में बढ़िया चाय न मिली थी अतः होटल के रेस्टॉरेंट से वहीं चाय मंगाई गई और एन्जॉय किया। रात का खाना रूम में ही खाया। सबेरे जल्दी नींद खुली। रूम से बाहर निकला तो सामने लॉन और भी अच्छा लग रहा था क्योंकि सूर्योदय होने वाला था। पूरे परिवार के साथ हमलोगों ने लॉन में बैठ कर सनराइज का आनंद लिया। 

शान्वी रिसोर्ट से सूर्योदय का नजारा
भावनगर, गुजरात

         हमारे टूर का आज अंतिम दिन था और रात में अहमदाबाद से फ्लाइट लेनी थी। सोचा कि दिन में कहीं और दर्शन कर लिया जाय तो बढ़िया। नेट पर देखा तो भावनगर में दो जगह मंदिर जाने का सोचा। एक तो श्रीतख्तेश्वर महादेव मंदिर और दूसरी श्री कोडियार माता मंदिर।   


           भावनगर ज्यादा दूर न था अतः पूजा करने की सोच कर हमलोगों ने नाश्ता न किया बस स्नान कर गाड़ी से निकल पड़े। आगे की यात्रा का विवरण अगले ब्लॉग पोस्ट में।          

===<<<O>>>===


इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची :--