Sunday, February 4, 2024

मोतीनाथ धाम और मोती झरना, साहेबगंज, झारखण्ड

   
मोतीनाथ धाम गुफा का प्रवेश द्वार
और मोती झरना

       एक परीक्षा दिलाने के सिलसिले में साहेबगंज जाना हुआ। चूँकि बिहार के भागलपुर जिले से आगे बढ़ने पर गंगा जी झारखण्ड के साहेबगंज जिले में प्रवेश करती है, तो सोचा कि जब तक परीक्षार्थी बाहर नहीं निकलता क्यों न गंगा-स्नान का लाभ लिया जाए। समय का सदुपयोग भी होगा और पुण्य फल मिलेगा सो अलग।
 परीक्षा केंद्र सेंट जेवियर स्कूल में था जहाँ से 300 मीटर पहले ही गंगा किनारे एक मंदिर के पास स्नान घाट था। किन्तु यह गंगा जी की मुख्य धारा न थी पर आगे जा कर यह मुख्य धारा में मिलती थी। हमने सोचा क्यों न मुख्य धारा के किनारे स्नान किया जाय। गाड़ी अपनी थी, सो हमलोग एक-डेढ़ किलोमीटर आगे मुख्य धारा के पास गए किन्तु यहाँ देखा कि यह तो फेर्री-घाट है। कोई यहाँ स्नान न कर रहा था। पक्का घाट भी न बना था। कच्चे किनारे से पानी तक जाने में तीखी ढलान थी जिससे अगर उतर भी जाते तो चढ़ना संभव न था घुटनों के कारण। सो हमलोग वापस मंदिर वाले घाट पर आये। यहाँ पक्का घाट बना था और कुछ लोग स्नान भी कर रहे थे। इनलोगों में से कई हमारी तरह अभिभावक ही थे। हमलोगों ने स्नान कर उसी मंदिर में महादेव की पूजा की। गूगल से मालूम था कि पास में मोती झरना नामक कोई दर्शनीय स्थान है। स्थानीय ऑटो वालों से पता किया तो 18 किमी दूर महाराजपुर में मोती झरना और गुफा -मंदिर की जानकारी मिली। हमारे पास चार घंटों का समय था तो हमने जाने का फैसला किया। 
मोती झरना और मोतीनाथ धाम का प्रवेश द्वार
            अपनी गाड़ी से ही निकले। शहर से निकलने पर मुख्य पथ में फोर-लैनिंग का कार्य चल रहा था तो कुछ डायवर्सन से गुजरना पड़ा। अंत में करीब तीन किलोमीटर मुख्य सड़क को छोड़ कर पहाड़ों तक जाना पड़ा जो एक गांव से होकर गुजरती थी। गाड़ी चलने लायक पी सी सी पथ बनाया गया है। पार्किंग के पास गाड़ी लगाकर आगे बढ़े तो 5 रूपये प्रति व्यक्ति का टिकट लेना पड़ा तब एक लोहे के गेट से आगे बढ़े। झरना के आसपास और वहाँ तक जाने का रास्ता विकसित किया गया है। बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले, झरना और पहाड़ को निहारने के लिए विशेष स्थान, कुछ जानवरों की मूर्तियां, झरना के ठीक नीचे चेक डैम और छोटा तालाब इत्यादि बनाये गए हैं। झरना (Waterfall) में पानी 100 फ़ीट से ज्यादा ऊंचाई से गिरती है। यह पहाड़ प्रसिद्ध राजमहल हिल्स का ही हिस्सा है। बहुत ही मनोरम नजारा है यहाँ का। आसपास की पहाड़ी पर हरे भरे जंगल भी हैं जिनमें केले के पेड़ों का भरमार है। शायद ये जंगली केले होंगे। इनके फल स्थानीय लोग नहीं खाते बल्कि यहाँ रहने वाले बन्दर खाते हैं। यूँ तो राँची के आसपास का क्षेत्र वाटरफॉल्स के लिए जाना जाता है किन्तु सुदूर साहेबगंज जिले में यह एक मात्र झरना है और बहुत ही सुन्दर स्थान है। अगर यही झरना रांची के पास होता तो बहुत ही भीड़ होती परन्तु यहाँ जब हम पहुंचे तो मुश्किल से 50-60 लोग होंगे। इस झरना के पास एक और आकर्षण है एक गुफा, जिसमें एक प्राचीन शिव-मंदिर है। यह गुफा कोई सुरंग जैसी नहीं है बल्कि झरना की तलहटी के पास तिरछा पत्थर का बड़ा भाग पहाड़ से निकल चुका है।  सामने ग्रिल से सुरक्षित कर के एक अंदर जाने का द्वार बनाया गया है जिसमे मोतीनाथ शिवलिंग हैं। एक पुजारी शिवलिंग के पास बैठे थे। शिवलिंग के पास जा कर हमने पूजा की और पुजारी जी का आशीर्वाद लिया। हमें देख कर वे बांग्ला प्रभावित हिंदी में मंदिर का इतिहास बताने लगे कि यह मन्दिर पांडवों के समय से है और उनके द्वारा ही स्थापित है। और यह कि वे पांडवों के ही वंशज हैं (पता नहीं किन्तु पांडव तो क्षत्रिय थे?) . यह भी कि माता द्रौपदी के आशीर्वाद (?) से तभी से उनके पूर्वजों को एक मात्र पुत्र होता है जो उनके वंश को आगे बढ़ता है। पुजारी जी भी एकलौते पुत्र हैं और उनका भी एक ही पुत्र है।      
गुफा के भीतर मोतीनाथ शिवलिंग

         इस गुफा मंदिर की पथरीली छत तिरछी है। बाहर झरने की तरफ छत की ऊंचाई छः -सात फ़ीट होगी जहाँ ऐसा लगता है कि सर टकरा न जाये। वहीं अंदर की तरफ तिरछी हो कर छत फर्श से मिल जाती है। गुफा का आकार लगभग 50' x 25' होगा। मंदिर के बाहर लम्बाई में बैठ कर झरना और पहाड़ियों को निहारने के लिए सीढियाँ बनी हैं। इनके सामने ही गिरे हुए झरने के पानी को बांध कर दो काम गहराई के टैंक बने हैं। इनसे ओवरफ्लो होकर पानी छोटे नाले के रूप में पहाड़ों से नीचे जाती है।झरना आने वाले पर्यटक इस नाले को एक छोटे पुलिया से पार कर गुफा मंदिर की तरफ आते हैं। इस पुलिया पर खड़े हो कर झरना और सुरम्य हरे भरे पहाड़ों को देखने का एक अलग ही आनंद है। 
मोती झरना का अप्रतिम दृश्य

        इतना मनोरम स्थान है कि हर कोई जो भी यहाँ आता है इस अविस्मरणीय क्षण को चित्र के रूप में सुरक्षित रख लेना चाहता है। सभी मोबाइल फोन से फोटो लेने में व्यस्त थे। हमने भी फोटो और वीडियो लिए और बचे हुए समय को विचार कर कुछ देर वहां रह कर वापस निकल लिए, एक और खूबसूरत स्थल और मंदिर की यादें संजोये। 
          जो भी भक्त या पर्यटक बाहर से यहाँ आना चाहते हैं उनके लिए ठहरने का इंतजाम साहेबगंज शहर के होटलों में ही है, झरना के पास नहीं। खाने का बढ़िया इंतेज़ाम पास में नहीं है। दो -तीन झोंपड़ीनुमा दुकान हैं जहाँ रिफाइन तेल में तले पूड़ी सब्जी या मुढ़ी-घुघनी-पकौड़े मिल रहे थे। इन्ही दुकानों में पानी बोतल, कोल्ड ड्रिंक्स, चॉकलेट, इत्यादि भी मिल रहे थे। यद्यपि बंदरों से सावधान रहने की बात की जा रही थी किन्तु झरने तक जाने वालों को वे ज्यादा परेशान नहीं कर रहे थे। सिर्फ दूकान के पास ही उनका आतंक था, खाने  सामान झपटने में एक्सपर्ट। हमने दो छोटे बिस्कुट के पैकेट ले कर एक खाया और दूसरा टेबल पर रखा। जरा सा असावधान होते ही बिजली की फुर्ती से टेबल पर रखा पैकेट झपट कर एक बन्दर भाग गया।हमलोग आश्चर्यचकित हो कर हंसने लगे। 
            अगर समय और मौका मिले तो अवश्य इस जगह पर जाइये, मन प्रसन्न हो जायेगा। 
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