Thursday, December 19, 2024

औंधा नागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग

  पिछले ब्लॉग पोस्ट "श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन-पूजन एवं तथा एलोरा गुफाएँ" से आगे :-

संध्या में श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग मंदिर, औंधा, महाराष्ट्र


     बारह ज्योतिर्लिंगों में से आठवें ज्योतिर्लिंग हैं नागेश अथवा नागेश्वर। जिनके स्थान के बारे में "द्वादशज्योतिर्लिंग स्मरणम स्तोत्र" में कहा गया है कि नागेशं दारुका वने अर्थात श्रीनागेश ज्योतिर्लिंग दारुका वन में हैं। गुजरात के द्वारका के पास दारुका वन क्षेत्र में नागेश ज्योतिर्लिंग माना जाता है पर कुछ मान्यताओं के अनुसार महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के औंधा नमक स्थान पर स्थित एक भव्य शिव मंदिर ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं जिन्हें औंधा नागनाथ भी कहा जाता है। गुजरात के नागेश ज्योतिर्लिंग का दर्शन-पूजन हमलोगों ने सन 2014 कर लिया था जिसका यात्रा विवरण इस ब्लॉग में दे चुका हूँ। यद्यपि श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन-पूजन से हमारे बारह ज्योतिर्लिंग की तीर्थ-यात्रा हो चुकी थी किन्तु महाराष्ट्र के औंधा नागनाथ और परली वैद्यनाथ ऐसे शिव-मंदिर हैं जिनका दावा कुछ लोग ज्योतिर्लिंग के रूप में करते हैं। अतः हमने पहले से ही इन दोनों स्थानों की यात्रा का भी कार्यक्रम बना लिया था। 

सूर्योदय के समय श्रीऔंधा नागनाथ  मंदिर, महाराष्ट्र


         पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दारुक नामक राक्षस ने एक शिव-भक्त सुप्रिय को उसके सेवकों के साथ पकड़ कर अपने नगर दारूकावन में कैद कर लिया तब सुप्रिय ने महादेव से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान एक ज्योति के रूप में कारागार में प्रकट हुए और उन सबकी रक्षा की। भक्तों की प्रार्थना पर महादेव उस स्थान पर नागेश ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। 

श्रीऔंधा नागनाथ मंदिर की दीवारों पर सुन्दर शिल्पकला
का अद्वितीय नमूना


        श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पूजन एवं एल्लोरा गुफाओं के भ्रमण के बाद हमलोगों ने गूगल मैप देखते हुए औंधा की ओर प्रस्थान किया। लम्बा रास्ता था, औंधा पहुँचते शाम के सात बज गए क्योंकि कुछ जगह सड़क बनायी जा रही थी इस कारण भी देर लगी। यहाँ हमलोगों ने पहले से होटल बुक नहीं किया था। मंदिर के पास ऑनलाइन कोई ढंग का होटल दिखा नहीं। तो पहले हमें ठहरने की जगह देखनी थी। सड़क पर से ही कुछ लॉज जैसे ठहरने के लिए दिख रहे थे। हमने एक लॉज जिसका नाम माहेश्वरी लॉज था उसे देखा। काम चलने लायक था और 1100 रूपये प्रति रूम दर था। दो रूम ले कर वहीं सामान रखा और फिर फ्रेश हो कर मंदिर की ओर चले। मंदिर वहां से आधा किलोमीटर होगा पर मुख्य सड़क पर हो कर जाना पड़ता है। अतः हमलोग अपनी टैक्सी से ही गए। पूछते हुए मंदिर के मुख्य द्वार से बड़े से प्रांगण में गए। सफ़ेद ऊपरी भाग वाला भव्य मंदिर शाम को बिजली रौशनी में आकर्षक लग रहा था। मंदिर का प्लिंथ काफी ऊँचा था और ग्रिल से घेरा हुआ था। शाम हो जाने के कारण भीड़ बहुत कम थी। हमलोग सामने के नंदी मूर्ति के पास से अंदर गए। मंदिर के अंदर हॉल में दाहिनी तरफ से कतार में जाने के लिए रेलिंग थी। यहाँ ज्योतिर्लिंग इस हॉल में न था बल्कि भूमिगत था अर्थात अंडरग्राउंड (बेसमेंट) में था। और वहाँ तक जाने के लिए दाहिनी ओर एक ढाई फ़ीट बाई ढाई फ़ीट का फर्श में एक छेद था मानो फर्श का एक स्लैब हटा दिया गया हो। एक बार में एक व्यक्ति ही आ जा सकता था। एक एक कर हमलोग नीचे उतरे। नीचे उतर कर झुक कर ही गर्भ गृह में जाना और खड़ा होना होता है क्योंकि यहाँ फर्श और सीलिंग के बीच मुश्किल से पाँच फ़ीट की ऊँचाई है। इसी कम उंचाई वाले गर्भ गृह में एक चबूतरे पर श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग विराजमान हैं और और उसी चबूतरे पर एक ओर मुख्य पुजारी बैठते हैं और दूसरी ओर भक्त। यद्यपि बाहर हल्की ठण्ड थी, गर्भ गृह में घुसते ही गर्मी का एहसास हुआ। हमलोगों ने संध्या दर्शन किया और सबेरे के लिए अभिषेक की पूछताछ की। गौर वर्ण के मुख्य पुजारी और वहाँ उपस्थित स्थानीय लोगों ने कहा की सबेरे साढ़े पाँच बजे आ जाना, हो जायेगा। वहाँ सीधे खड़े हो नहीं सकते थे तो ज्यादा देर रुकना संभव न था। हमलोग उसी छेद वाले रास्ते से ऊपर चढ़ कर मंदिर के हॉल में निकले। मंदिर की चौखट से ज्यों ही निकले एक वृद्ध पंडित जी ने बातचीत शुरू कर दी। उन्होंने अपनी काफी बड़ाई की और बताया की उनका लड़का सबेरे अभिषेक करा देगा और पूरे भारत में कहीं भी पूजा करनी होगी तो व्यवस्था करा देगा। हमसे अपने लड़के को फोन लगवाया और सबेरे अभिषेक के लिए बुलाया। 

आकर्षक मंदिर, श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग, औंधा, महाराष्ट्र


           मंदिर से उतर कर हमलोगों ने प्रांगण में कुछ फोटो खींचे। बाहर पार्किंग के पास एक चाय दूकान में चाय बिस्किट खाये और वापस होटल आ गए। यहाँ का मंदिर भी मुगलों ने तोड़ा था जिसके कारण ऊपर का हिस्सा जो सफ़ेद रंग का है वह अहिल्या बाई होल्कर द्वारा बनवाया गया है। उनकी एक प्रतिमा भी मंदिर के बाहर लगायी गयी है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर बहुत ही कलाकारी से छोटी बड़ी मूर्तियां उकेरी गयीं हैं। 

यही औंधा के श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के
तहखाने वाले गर्भ-गृह में जाने का रास्ता है।


       सबेरे हमें दो ज्योतिर्लिङ्ग के दर्शन पूजन करने थे, यहाँ श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के फिर परली के श्रीवैजनाथ ज्योतिर्लिंग के। अतः जल्दी उठकर स्नान किया, होटल में सबेरे गर्म पानी सप्लाई किया गया था। तैयार हो कर गाड़ी से ही मंदिर निकले। पंडित जी का बार बार फोन आ रहा था। जब मंदिर पहुंचे तो पंडित जी ने कहा कि वे फूल और पूजा सामग्री ले कर आ रहे हैं। थोड़ी देर में वे आये और हमें ले कर तहखाने वाले गर्भ-गृह में ले गए जहाँ श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग विराजमान हैं। वहाँ जब मुख्य पुजारी ने हमें इन पंडित जी के साथ देखा तो बोले कि ये लोग तो मुझसे पूजा अभिषेक कराने वाले थे। मराठी में ही उनमें कुछ बात हुई। हमारे पंडित जी ने इससे अनभिज्ञता प्रकट की और हिंदी में हमें बताया। गलती तो हमसे हुई थी पर हमारे पंडित जी के पिताजी ने कल संध्या अभिषेक के लिए इतना प्रस्ताव दिया कि ना न कह सके। तब मैंने मुख्य पुजारी जी को कहा कि हाँ आपसे बात हुयी थी पर इनके पिताजी से बाद में बात होने पर हमने उन्हें ही फाइनल किया। मुख्य पुजारी जी ने हमारे पंडित जी से कहा कि इस तरह नहीं होना चाहिए अर्थात दूसरे का यजमान नहीं लेना चाहिए। फिर हमसे कहा कि ठीक है इन्हीं से पूजा करा लीजिये, हमलोग एक ही हैं। यद्यपि उनके चेहरे के भाव मायूसी भरे थे। हमें भी अच्छा नहीं लगा। अतः जब हमारी अभिषेक पूजा गयी तो उन्हें भी अच्छा दान दिया। 

श्रीऔंधा नागनाथ मंदिर के तहखाने वाले
गर्भ-गृह के ऊपर हॉल में


           श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग की अभिषेक पूजा के साथ ही हमारे यात्रा कार्यक्रम का एक और चरण पूरा हुआ अर्थात इस यात्रा का तीसरा ज्योतिर्लिङ्ग पूजन। तहखाने के गर्भ गृह से बहार निकले। पंडित जी को जो भी देना-लेना था पूरा किया। फिर उन्होंने भी कहा कि कहीं भी पूजा करना हो तो कहना, हर तीर्थ के पुजारियों से संपर्क है हमारा। और हमारा नंबर श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम के एक व्हाट्सप्प ग्रुप पे जोड़ दिया। आगे कहा कि अभी परली में पूजा करना है तो वहाँ के एक पंडित जी "पाठक जी" का नंबर रख लो। मैं उन्हें भी बता देता हूँ। इसके बाद उन्होंने विदा ली। हमलोग थोड़ी देर मंदिर परिसर में घूमे और फोटो वगैरह खिंचवाये। सूर्योदय का समय था, भीड़ भी ज्यादा न थी। वातावरण बहुत सुहावना लग रहा था।  

श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग, औंधा के मंदिर के नन्दी द्वारपाल


         मंदिर परिसर से बाहर निकले तो जिस दुकान में पिछली शाम हमने चाय बिस्किट खाई थी वह बुलाने लगा, पर हमने उसे बताया कि अभी और जगह भी पूजा करनी है अतः कुछ खायेंगे पियेंगे नहीं। ड्राइवर को टैक्सी क साथ होटल भेज दिया था ताकि वो भी तैयार हो जाये और हमलोग सीधे परली के लिए निकल जाएँ। अतः मंदिर से पैदल ही होटल की ओर निकले। सबेरे के समय पैदल चलना अच्छा लग रहा था। होटल आ कर जल्दी से सामान समेट कर चेक आउट किया और बाबा वैजनाथ के दर्शन हेतु परली की ओर निकल पड़े।                    

(अगले ब्लॉग पोस्ट में परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग की यात्रा का विवरण)

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