Sunday, June 15, 2025

ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग - 6

  पिछले ब्लॉगपोस्ट "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग - 5" से आगे :--

          आज हमारी यात्रा छठे दिन में प्रवेश कर रही थी। प्रातः आठ बजे तक हमलोग स्नान वगैरह कर निकलने को तैयार थे। महाराज जी आज कुछ देर से आये। उनके आने के बाद हमलोग गाड़ी में बैठ कर चले। महाराज जी ने नित्य की भांति श्री राधा कृष्ण का स्मरण कराते "गोविन्द मेरो हैं गोपाल मेरो हैं" गाया। फिर आज की यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि आज हमलोग सबसे पहले राधा जी की अष्टसखियों के आठ मंदिरों में जायेंगे उसके बाद अन्य मंदिरों में। 

      1. अंजनोक गाँव में इन्दुलेखा सखी मंदिर - लगभग 45 मिनट बाद हमलोग अंजनोक गाँव में पहुंचे। महाराज जी ने बताया कि श्री राधा जी की प्रमुख आठ सखियाँ थीं जो किसी न किसी विद्या में पारंगत थीं। उन्हें महासखी अथवा अष्टसखी भी कहा जाता था। उन्हीं में से एक थीं इन्दुलेखा सखी। ये इसी अंजनोक गाँव की थीं अनेक विद्याओं में महारत तो थी ही, राधा जी के लिए काजल ये ही ले कर जाती थीं। ये काजल एक काजल-शिला से लिया जाता था जिसे रगड़ने से काजल निकलता है। यह काजल शिला अभी भी अंजनोक गाँव में इन्दुलेखा सखी के मंदिर के गर्भ गृह के द्वार के किनारे रखा है। मंदिर के बगल में एक सरोवर भी है। गर्भ गृह में श्रीराधा कृष्ण के साथ इन्दुलेखा सखी एवं एक अन्य सखी भी हैं। 
अंजनोक गाँव में इंदुलेखा सखी का मंदिर और काजल शिला
मथुरा,उत्तरप्रदेश


       2. करहेला गाँव में चम्पकलता सखी मंदिर - अष्टसखियों में से ये चम्पकलता सखी भी अनेक कलाओं में निपुण थीं विशेषकर पाक कला में। फल-फूल एकत्रित कर श्रीराधा कृष्ण जी के लिए दिव्य भोजन तैयार करती थीं। जब हमलोग इस मंदिर के पास पहुंचे तो यह एक साधारण गाँव का घर लग रहा था। प्रवेश द्वार के बगल में झड़ते हुए प्लास्टर वाली दीवार पर "मंदिर चम्पकलता सखी" लिखा दिखा। गेट से अंदर जाने पर देखा कुछ स्त्रियाँ एक कदली वृक्ष की पूजा कर रही थीं क्योंकि आज गुरुवार था और वृहस्पति देवता की पूजा कदली पेड़ के पास की जाती है। 
करहैला गाँव में चंपकलता सखी का मंदिर


       और आगे जाकर चम्पकलता सखी का मंदिर था जहाँ हमने दर्शन किया। यहाँ भी श्रीराधाकृष्ण जी के एक बगल में चम्पकलता सखी तथा दूसरी तरफ एक अन्य ललिता सखी स्थापित हैं। इसी मंदिर के बगल में एक और मंदिर है जिसमे द्वारकाधीश श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी जी हैं जिनका दर्शन किया। मंदिर के पीछे एक सरोवर है जिसे ललिता सरोवर कहा जाता है। मंदिर की एक दीवार पर चम्पकलता सखी के लिए इस प्रकार वंदन लिखा हुआ था :-

वन संरक्षित, फल फूल एकत्रित। चम्पकलता सखि, युगल समर्पित।।
चम्पकलता सखि दल, निज हाथन। माटी रेनू, निर्मित रज कन।।
गागर करुआ, हांड़ी ढक्कन। भाजन बासन, भंडा बरतन।।
अति विशिष्ट, उत्कृष्ट रसोई। पाक कला पारंगत होई।।
बरफी पेड़ा औ कलाकंद। चम्पकलता मन अति आनंद।।
सुखद सरस प्रिय, स्वादिष्ट भोजन। युगल सुरुचि, अनुसार प्रयोजन।।
नव नूतन नित, रुचिकर व्यंजन। मधुर सुगन्धित,खोया मिष्टान्न।।
प्रीतम प्यारी अति आनंद, चम्पकलता सखि परमानंद।।

चम्पकलता सखी मंदिर परिसर में श्री राधा कृष्ण झूला


      3.  कमई गाँव में विशाखा सखी मंदिर - अन्य अष्टसखियों की तरह विशाखा सखी भी कई विद्याओं में पारंगत थीं किन्तु मुख्यतः वे श्री राधा कृष्ण जी के लिए दिव्य वस्त्र एवं आभूषण का प्रबंध कर उन्हें श्रृंगार करती थीं।यह मंदिर बरसाना से लगभग छः किलोमीटर दक्षिण में है। मंदिर के सामने परिसर में बड़े बड़े वृक्ष लगे हैं। हमलोगों ने अंदर जा कर विशाखा सखी जी का दर्शन किया जो श्रीराधा कृष्ण जी के एक तरफ हैं तथा दूसरी तरफ हैं ललिता सखी। ये दोनों सखियाँ श्रीराधा जी की घनिष्ठ सखी हैं।  फिर अगले मंदिर की ओर निकले।  
कमाई गाँव में विशाखा सखी जी का मंदिर में दर्शन


        4. चिकसौली गाँव में चित्रा सखी का मंदिर - श्री राधाजी की विशिष्ट अष्टसखियों में से एक हैं चित्रा सखी। चिकसौली गाँव में इनका निवास माना जाता है। इस गाँव में इनका मंदिर है जहाँ हमलोग दर्शन करने आये। मंदिर के बाहर बोर्ड पर इनका परिचय "श्रीजी की अति प्रिय सहचरी" के रूप में दिया गया है।मंदिर में प्रवेश से पहले एक दलान जैसा बना है जिसे पार कर हमलोग मंदिर के सामने बने एक सुन्दर फुलवारी में पहुँचे। दलान से प्रवेश करते ही अनोखे दो तिरछे वृक्ष हैं जिन्हें पेंट कर उनपर राधा और कृष्ण लिखा गया है। फुलवारी को पार कर सुन्दर मंदिर की सीढ़ियों से चढ़ कर अंदर गर्भ गृह में चित्रा सखी के दर्शन हुए। चित्रा सखी चित्रकला में निपुण थीं। एक बार किसी को देख कर उसका चित्र बना देती थीं। ये योगिनी विद्या की भी ज्ञाता थीं।
चिकसौली गाँव में चित्रा सखी का मंदिर


      5. डभाला गाँव में तुंगविद्या सखी का मंदिर - अष्टसखियों में तुंगविद्या सखी नृत्य, गायन तथा वीणा वादन में निपुण थीं। उनके शरीर से ऐसी सुगंध आती थी जैसे चन्दन और कपूर का मिश्रित सुगंध। डभाला गाँव में इनका मंदिर है। यहाँ के पुजारी जी ने बताया कि यहाँ के दर्शन परिक्रमा से शरीर शुद्ध होता है तथा भक्ति बढ़ती है। जिस प्रकार राधा जी की आठ मुख्य सखी हैं उसी प्रकार प्रत्येक सखी की आठ -आठ सखियाँ हैं। इस प्रकार कुल 64 सखियाँ 64 योगिनियों का प्रतिनिधित्व करती हैं और राधा जी 64 योगिनियों की स्वामिनी हैं। वे ही महालक्ष्मी हैं। 
डभाला गाँव में तुंगविद्या सखी मंदिर


        मंदिर के बगल में सूरज कुंड है जो राजा-रानी के नित्य जल डालने से बने गड्ढे से प्रकट हुआ। यहीं सूर्यदेव प्रकट हुए और आशीर्वाद दिया।
डभाला गाँव में तुंगविद्या सखी मंदिर के पास सूरज कुंड

        6. राँकौली गाँव में रंगदेवी सखी मंदिर - अगले जिस सखी के मंदिर हम पहुँचे वह थीं अष्टसखी में से एक रंगदेवी सखी। यह राँकौली गाँव में स्थित है। श्रीराधा जी और बिहारी जी के एक ओर हैं रंग देवी सखी जब कि दूसरी ओर सुदेवी सखी। रंगदेवी और सुदेवी दोनों जुड़वाँ बहने थीं। रंगदेवी हास्य प्रिय थीं तथा गंध एवं रंग की ज्ञाता थीं। श्रीराधाजी के श्रृंगार में ये उनको महावर लगाती थीं। इसीलिए इनका नाम रंगदेवी पड़ा।  
राँकौली गाँव में रंगदेवी सखी मंदिर


                7. सुनहेरा गाँव में सुदेवी सखी मंदिर - सुदेवी सखी जुड़वाँ बहन हैं रंगदेवी सखी की। इनका निवास है सुनहरा गाँव में। ये सखी श्री राधा जी के केश सँवारती थीं। इनका स्वाभाव मधुर था। ये भी कई कलाओं में दक्ष थीं। जैसे शुभ और अशुभ घड़ियों की जानकारी रखना, श्री जी की मालिश करना एवं जल सेवा। 
सुदेवी सखी मंदिर में दर्शन

 
         सुनहेरा गाँव में हमने वहाँ पर गाड़ी खड़ी की जहाँ पर सुदेवी सखी मन्दिर जाने के लिए दिशा सूचक बोर्ड लगा था। वहाँ से पैदल चले और लगभग 200 मीटर चल कर ऊँचाई पर स्थित सुदेवी सखी के मंदिर पहुँचे। गर्भ गृह के सामने बारामदे पर कुछ ग्रामीण महिलाएँ ढोलक इत्यादि बजा कर भजन गा रही थीं। हमारे दर्शन हेतु पहुँचने पर पुजारी जी ने उन्हें थोड़ा रुकने बोला और हमें मंदिर के विग्रह के बारे में बताया। बीच में श्रीराधा-कृष्ण और उनके एक तरफ सुदेवी सखी तथा दूसरी तरफ एक अन्य सखी का विग्रह है।
सुदेवी सखी मंदिर में भजन गाती महिलाएँ


         जब हमलोग दर्शन कर लौटे तो सोनू महाराज जी ने महिलाओं को पुनः भजन प्रारम्भ करने का अनुरोध किया। जब उन्हें थोड़ी देर होने लगी तो महाराज जी ने स्वयं ही "गोविन्द मेरो हैं, गोपाल मेरो हैं  ....... " वाल भजन प्रारम्भ किया जिसे सभी महिलाओं ने गाना शुरू किया। अब हमें अष्टसखियों में से आठवीं और महत्वपूर्ण सखी "ललिता सखी" जी के मंदिर जाना था। 
गावों में उपले संरक्षित करने के लिए ऐसे बनावट दिखते हैं


           8. ऊँचा गाँव में ललिता सखी जी का मंदिर - अटोर पर्वत पर स्थित यह मंदिर भी कई सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद ऊंचाई पर स्थित है। यह बरसाना से लगभग डेढ़ किलोमीटर पश्चिम में है। मंदिर तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुयी हैं किन्तु हमलोग शुरू से सीढ़ियों पर नहीं चढ़े बल्कि महाराज जी हमें घरों के बीच से होते हुए ले गए जिससे हमलोग बीच सीढ़ियों पर निकले और चढ़े। यह बड़ा मंदिर है जिसका प्रांगण भी बड़ा है। प्रांगण में प्रवेश करते ही एक लम्बा बरामदा मिला जहाँ एक चारपाई पर पुजारी जी लेटे थे। जब हमलोग पहुंचे तो गर्मी और चढ़ाई से हाँफ रहे थे। पुजारी जी ने कहा कि अभी मंदिर बंद है थोड़ी देर में खुलेगा, तबतक यहाँ प्रतीक्षा करो। और वे उठ कर भीतर एक कमरे में चले गए। हमलोग चारपाई और एक कुर्सी पर बैठे। 
ऊँचा गाँव में ललिता सखी मंदिर में दर्शन


         जबतक प्रतीक्षा करनी थी, मैं थोड़ा मंदिर के आंगन में घूमा। ललिता सखी जी के सुन्दर मुख्य बड़े मंदिर के पीछे और बगल की दीवारों पर राधा जी की अष्टसखियों के रेखा चित्र और उनकी विशेषताएँ लिखी थीं। आँगन में कुछ और भी मूर्तियाँ हैं जबकि पीछे की तरफ गोशाला भी है। इसी बीच ट्रैवलर से आठ-दस यात्री पहुँचे, उन्हें भी प्रतीक्षा करनी पड़ी। हमारे आने के आधे घंटे बाद पुजारी जी ने मंदिर खोला और पहले भोग और आरती की। इस बीच हमलोग दर्शन करते रहे जिसमें श्रीराधा-कृष्ण और ललिता जी की मूर्तियां थीं। फिर सबको आरती प्रसाद दिया गया। 
अदोर पर्वत पर ऊँचा गाँव में ललिता सखी मंदिर


        अष्टसखियों में से ललिता सखी श्री राधा जी की सबसे प्रिय और बड़ी सखी थीं। ये अष्टसखियों का नेतृत्व करती थीं। उन्हें सुगंध की विशेष समझ थी। राधा जी को पान का बीड़ा देने का कार्य इन्ही का था। ये श्रीराधा कृष्ण की निकुंज लीलाओं की साक्षी थीं। ऊँचा गाँव में इनके मंदिर में दर्शनों के पश्चात हमलोग बरसाना के सबसे प्रमुख श्री राधारानी जी के मंदिर के लिए निकले।  

           9. बरसाना में श्री लाड़ली जू का मंदिर - श्री राधा जी का यह मंदिर जिसे श्री लाड़ली जू का मंदिर बोला जाता है, एक पहाड़ पर है जहाँ तक कार जाने का रास्ता बना हुआ है। किन्तु ये भी मंदिर तक नहीं जाते बल्कि मंदिर से लगभग 200 मीटर पहले रोक दिए जाते हैं फिर पैदल ही मंदिर तक जाना होता है। किन्तु महाराज जी ने कार नीचे ही पार्किंग में रखवाया और मोटर साइकिल से ही जाने को कहा। 
बरसाना मंदिर में श्री लाड़ली जू का दर्शन 


        एक बाइक से 200 रूपये में प्रति व्यक्ति आने जाने का रेट था। महाराज जी सहित हमलोग तीन लोग तीन बाइक से गए। ऊपर उतरने के स्थान से हमलोग पैदल मंदिर की ओर चले। इस रास्ते में फूल माला इत्यादि की छोटी छोटी दुकानें थीं। 
बरसाना में लाड़ली जू का मंदिर


        यहाँ तक आने के लिए पार्किंग से रोप-वे भी बना हुआ है किन्तु जब हमलोग पहुंचे थे तो कुछ खराबी के कारण यह बंद था। जिस रास्ते से हमलोग पहुंचे उससे मंदिर के पीछे से होते हुए हमलोग मंदिर प्रांगण में पहुंचे। यहाँ अपने चप्पल खोल कर जमा किये और दर्शन के लिए श्री लाड़ली जू के मंदिर में प्रवेश किए। मंदिर के अंदर का दृश्य भव्य था। बड़े से हॉल में सुन्दर सजावट के नीचे भक्तों की भीड़ थी। सामने एक प्लेटफार्म पर लाड़ली जू की सुन्दर प्रतिमा थी। अभी प्रतिमा के सामने का पर्दा हटा हुआ था और दर्शन अच्छी तरह हो रहे थे। हमने आगे बढ़ कर दर्शन किये और कुछ देर फर्श पर बैठे और सामने देखते रहे। अभी और कई जगह जाना था अतः थोड़ी देर बाद हमलोग वहाँ से अगले गंतव्य के लिए निकले। 
श्री लाड़ली जू मंदिर के भीतर का एक दृश्य


       10. प्रेम सरोवर - हमलोग प्रेम सरोवर के पास पहुँचे जो श्री राधा और कृष्ण के प्रेमाश्रुओं से बना है। सरोवर के चारों तरफ सुन्दर पत्थर के घर बने हुए हैं। हमने कुंड के जल से आचमन किया और शरीर पर छींटे। महराज जी ने बताया कि यह एक अति पवित्र सरोवर है जिसकी कथा इस प्रकार है - एक बार श्री राधा कृष्ण इस स्थान पर बैठे वार्तालाप कर रहे थे कि एक मधुमक्खी राधाजी के चारों ओर मंडराने लगी जिससे वे परेशान हो गयीं। श्री कृष्ण ने अपने सखा से उसे भगाने कहा। सखा ने उसे दूर तक भगा दिया और आ कर कहा मधु चला गया। राधा जी, जो उस समय प्रेम की गहरी अवस्था में थीं, ने समझा मधुसूदन अर्थात श्रीकृष्ण चले गए और वे रोने लगीं। अविरल अश्रु धारा उनके नयनों से बह चली। कृष्ण भी प्रेम मग्न थे और जब उन्होंने राधा जी को रोते देखा तो वे भी प्रेम की भावनाओं में रोने लगे और उनके भी अश्रु अविरल बहने लगे। दोनों भूल गए कि वे दोनों साथ साथ ही हैं। उन दोनों प्रिया - प्रीतम के अश्रुओं से यह प्रेम सरोवर निर्मित हुआ। काफी देर बाद जब ललिता सखी राधा जी के तोतों को ले कर पहुँचीं तो एक ने राधा जी का नाम बार बार लिया और दूसरे ने कृष्ण जी का। इससे उनकी प्रेम-तन्द्रा खुली और एक दूसरे को पास पा कर अपार प्रसन्नता हुयी।     
प्रेम सरोवर


       11. संकेत बिहारी - हमारा अगला पड़ाव था श्री संकेत बिहारी जी का मंदिर। यह संकेत नामक गाँव में है जो नंदगाँव और बरसाना के बीच में है। जब श्रीकृष्ण अपनी गैय्या चराने यहाँ पहुँचते थे तो सखी वृंदा (योग माया) श्रीराधा को संकेत कर देती थीं और वे भी मिलने आ जाती थी। इसीलिए इस स्थान का नाम संकेत पड़ा। यह श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों में से एक है। श्रीकृष्ण के पोते वज्रनाभ द्वारा यहाँ श्रीराधा कृष्ण का मंदिर बनवाया गया था जिसे संकेत बिहारी मंदिर के नाम से जाना जाता है। एक झूला और एक रासलीला स्थली भी बनवाया जहाँ अभी भी त्यौहार आदि अवसरों पर मंदिर के कार्यक्रम आयोजित होते हैं।जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो संकेत बिहारी जी का पट बंद हो चुका था अतः हमने गर्भगृह के बाहर से ही माथा टेका।  
श्री संकेत बिहारी मंदिर


           संकेत बिहारी मंदिर परिसर के पीछे झूले के स्तम्भ और रासलीला स्थली के दर्शन किए। मंदिर के बगल में ही महाप्रभुजी की बैठक है जिसके दर्शन किये। संकेत गाँव में ही श्री योगमाया संकेत देवी का भी मंदिर है जहाँ हमने देवी के दर्शन किये। इस स्थान पर श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी जप किया करते थे। 
श्री योगमाया संकेत देवी मंदिर


       12. नन्द गाँव -  अगला पड़ाव था नंदगाँव। यह वह स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण बलराम का बचपन बीता था। यह श्रीकृष्ण के पालक पिता नन्द जी का गाँव है। उनके बचपन की लीलास्थली होने के कारण यह स्थान कृष्ण-भक्तों के लिए पूजनीय है। एक पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है। पार्किंग तक जाने का भी सड़क संकरा है। गाडी यहाँ खड़ी कर हमलोग चढान वाले गलियों से मंदिर तक पहुंचे। उस समय गर्भगृह के आगे भक्तों की भीड़ बैठ कर पर्दा हटने और दर्शन की प्रतीक्षा कर रहे थे। माइक ले कर एक पुजारी जी भक्तों को दान की महिमा बता कर दान के लिए प्रेरित कर रहे थे। सोनू महाराज जी ने कहा कि खड़े हो कर खुलने की प्रतीक्षा करें और जैसे ही दर्शन की झलक मिले आ जाएं क्योंकि अभी कई मंदिर जाने थे। वहाँ के एक पुजारी जी ने 500 लेकर तुरंत दर्शन की पेशकश की परन्तु मैंने मना कर दिया।दस मिनट बाद पट खुले और मैं दर्शन कर वापस महाराज जी के साथ पार्किंग की ओर चला।   
नंद गाँव का मंदिर


          13. चरण पहाड़ी, नन्द गाँव - यहाँ श्रीकृष्ण के पैरों के चिह्न पत्थर पर अंकित हैं जिन्हें सहेज कर एक शीशे के बक्सेनुमा घेरे में रखा गया है। पाँवों के दर्शन शीशे के ऊपर से होता है। यहाँ भगवान के दो पैरों के चिह्न हैं जिसमें बायाँ चरण पूर्ण रूप में अंकित हैं जब कि दाहिने चरण के दो अँगुलियों (अंगूठे और इसके बगल वाले) का चिह्न बायें चरण के भी बायें है। ऐसा इसलिए कि बाँसुरी बजाते समय उनका बायाँ चरण सीधा था और दायाँ चरण तिरछी हो कर बायाँ चरण के पीछे था जहाँ मात्र दो अंगुलियाँ ही भूमि को छू रही थीं। दर्शन कर हमने माथा टेका और आगे बढे।    
चरण पहाड़ी में श्री कृष्ण के चरण चिह्न


            14. वृंदा कुंड - यह नंदगाँव के पास एक सुन्दर सा सरोवर है। जो वृंदा देवी के नाम से है। यहीं पर वृंदा देवी का एक मंदिर भी है। ये वही वृंदा देवी हैं जिनके नाम से वृन्दावन का भी नाम है। वृंदा देवी के कई अवतार हैं जिनमें एक वे राजकुमारी वृंदा हैं जिन्होंने हजारों वर्षों तक यहाँ तप किया था और श्री विष्णु ने प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया था कि जो भी वृन्दावन में तप अथवा पुण्य करेगा उसकी फल प्राप्ति शीघ्र होगी। फिर वृंदा तुलसी का भी नाम है जिसके साथ ही विष्णु जी को भोग लगता है। और तुलसी जी की ही एक रूप हैं श्री वृंदा जी जो श्री राधा जी की सखी भी हैं। इन्होने भी वृन्दावन में तप कर शक्तियाँ पायीं। श्री योगमाया देवी की प्रेरणा से ये राधा-कृष्ण को मिलवाने का प्रयास करती थीं और इसी कुंड के पास उन्हें मिलाती थीं। जब हम लोग यहाँ पहुँचे तो श्री वृंदा देवी मंदिर का पट बंद था। हमने कुंड के जल से आचमन किया और इस मंदिर की परिक्रमा कर माथा टेका। ब्रज 84 कोस यात्रा का हमारा अगला पड़ाव था "पावन सरोवर"।     
   
श्री वृंदा कुंड, नंदगाँव

       

            15. पावन सरोवर - कहा जाता है कि इस सरोवर का निर्माण श्री राधाजी की अष्टसखियों में से एक विशाखा सखी के पिता पावन गोप द्वारा कराया गया था जिसके कारण इसका नाम पावन सरोवर पड़ा। जब ग्वाल बाल संग श्रीकृष्ण गायों को चराकर वापस नंदगाँव लौटते थे तो उनकी गायें इसी सरोवर में जल पीती थीं। इस सरोवर के सम्बन्ध में एक कथा यह है कि जब नन्द बाबा और यशोदा मैया ने तीर्थाटन के लिए तीर्थराज प्रयाग जाने की इच्छा श्रीकृष्ण से बतायी तो श्री कृष्ण ने उन्हें अक्षय तृतीया तक रुकने कहा क्योंकि वे उन्हें परेशान होने देना नहीं चाहते थे। अगले ही दिन अक्षय तृतीया थी जब नन्द बाबा ने देखा कि स्वयं तीर्थराज प्रयाग पावन सरोवर में स्नान कर रहे थे। यह देख कर नन्द-यशोदा ने प्रयाग जाने का मन बदल लिया और पावन सरोवर में ही स्नान किया। पावन का अर्थ पवित्र होता है। वस्तुतः श्री कृष्ण ने नन्द -यशोदा के लिए सारे तीर्थों को ही ब्रज में बुला लिया था।     
श्री पावन सरोवर, नंदगाँव


    

            16. आशेश्वर महादेव - ये महादेव ब्रज के पंच महादेवों में से एक हैं। नंदगाँव के निकट ही ये स्थित हैं। इस मंदिर के बगल में ही एक कुंड है जिसे आशेश्वर कुंड कहा जाता है। कहा जाता है कि भगवान् शंकर अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण के बालरूप का दर्शन करने यहाँ द्वापर युग में आये थे। किन्तु उनकी विचित्र वेशभूषा देख कर यशोदा माई ने अपने प्यारे लाला का दर्शन करने नहीं दिया। तब शंकर जी ने इसी कुंड के बगल में धुनि रमा ली। उधर नंदलाला ने लीला रची और रोना शुरू किया जो रुकते ही न थे। 
प्राचीन मंदिर श्री आशेश्वर महादेव

  माई को लगा कि पता नहीं किसकी नजर लग गयी और शंकर जी को दिखाने बुला लिया। जब शंकर जी ने बालकृष्ण को देखा तो वे चुप हुए। जिस स्थान पर धुनि रमायी थी वहीं यह आशेश्वर महादेव मंदिर है। हमने मंदिर के अंदर जाकर दर्शन किया और कुंड में आचमन किया।   
ब्रज के आशेश्वर महादेव

 

            17. टेर कदम्ब - यह स्थान श्री कृष्ण बलराम की गौचारण भूमि और क्रीड़ा स्थली है। यह भी नंदगाँव के निकट ही है और आशेश्वर महादेव से कुछ ही दूर। पूरे स्थान पर कदम वृक्ष छाये हैं और उनकी डालियाँ सुरक्षित रहें इसके लिए लोहे के जाली के द्वारा इन्हें सपोर्ट दिया गया है। इन कदम्ब वृक्षों के बीच में ही यहाँ का मंदिर है। आज से 500 वर्ष पूर्व श्री रूप गोस्वामी ने इस वन भूमि पर भजन किया था। एक बार श्री सनातन गोस्वामी (लवंग मंजरी) दर्शन के लिए आये, उसी समय श्री राधा रानी खीर ले कर आयीं। तभी से रूपानुगा गौरीय वैष्णव द्वारा खीर भोग के साथ नित्य सेवा पूजा की जा रही है। 
नंदगाँव के पास टेर कदम्ब मंदिर


             जब हमलोग यहाँ आये तो मंदिर बंद था और कुछ देर बाद खुलने वाला था। प्रतीक्षा के पलों में हमने वहाँ लिखे बोर्ड पढ़े। एक बोर्ड पर निर्देश लिखे थे -जैसे महिलायें दुपट्टा ओढ़ कर आयें, मंदिर की पवित्रता, मर्यादा बनाये रखें, बातें न करें तथा फोटो न खींचें इत्यादि। मंदिर खुलने पर हमलोग कदम्ब के नीचे से होते हुए मंदिर के सामने गए और दर्शन किया। 
ऐसी ही कदम्ब की शाखाओं के नीचे है टेर कदम्ब मंदिर


         18. कोकिला वन - शनि महाराज श्री कृष्ण के भक्त हैं। एक बार उन्होंने श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिए तपस्या की। उनसे प्रसन्न हो कर श्रीकृष्ण ने उन्हें कोयल के रूप में इसी जगह दर्शन दिए। तभी से इस वन का नाम कोकिला वन पड़ा। कोसी कलाँ के जंगलों में यह स्थित है। यहाँ शनि महाराज का बड़ा और प्रसिद्ध मंदिर है जिसे सिद्ध माना जाता है। कहा जाता है कि जो यहाँ शनि महाराज का दर्शन करता है उसे शनि की दशा, साढ़ेसाती और ढैय्या में शनि नहीं सताते। हमने यहाँ पहुँच कर एक दुकान से सरसों तेल की बोतल खरीदी और मंदिर में दर्शन हेतु गए। मंदिर से पहले ही सामने में क्यू काम्प्लेक्स बना है। काले रंग से ही मंदिर में पेंट है। विशेष तिथियों को यहाँ लाखों श्रद्धालु का जुटान होता है।  
कोकिला वन में श्री शनि महाराज का मंदिर


         हाईवे के पास वह मोड़ जहाँ शनि मंदिर के लिए मुड़ते हैं वहाँ शनि महाराज की काले रंग की विशालकाय प्रतिमा बनायी गयी है। यह प्रतिमा इस क्षेत्र में एक लैंडमार्क है जो दूर से ही दिखती है। हाईवे से जाने वाले यात्री जिन्हें शनि मंदिर नहीं जाना होता है, इस प्रतिमा को ही देख कर सर नवाते हैं।    
कोकिला वन के शनि मंदिर जाने वाले मोड़ पर
शनि महाराज की विशाल प्रतिमा


         19. जावट गाँव - गोवर्धन तहसील में ही नंदगाँव से कुछ दूर जाटव गाँव है जहाँ श्री योगमाया देवी की प्रेरणा से राधा जी का विवाह अभिमन्यु नामक गोप से कराया गया था। अर्थात जाटव गाँव राधाजी की ससुराल है। यहाँ राधाजी अपनी सास जटिला, पति अभिमन्यु और ननद कुटिला के साथ रहती थीं। यहाँ श्री राधा कृष्ण ने अनेक लीलाएँ कीं थीं। श्री कृष्ण राधा जी से मिलने छिप-छिप कर यहाँ आते थे और कोयल की आवाज़ निकाल कर संकेत देते थे। राधा जी की सखियाँ उनके मिलने के अवसर निकालती थीं। यहाँ राधाजी की सास, पति और ननद की भी मूर्तियां हैं। सबसे अनोखी राधा जी की मूर्ति काली-रूप में कृष्ण जी के साथ है। इसके पीछे कथा यह है कि एक बार श्री राधाजी कदम्ब वन में श्री कृष्ण से मिलने गयीं। उनकी ननद को पता चला तो उसने अपने भाई अर्थात राधाजी के पति अभिमन्यु को शिकायत की और उसे सबक सिखाने राधाजी के पास भेजा। श्री कृष्ण ने दूर से उसे आते देखा तो उसकी तरफ पीठ कर खड़े हो गए। अभिमन्यु ने राधा जी को डाँटते हुए पूछा कि ये कौन है ? राधा जी डर से कुछ न बोलीं। अभिमन्यु जब श्रीकृष्ण के सामने गया तो देखा कि काली माता खड़ी हैं। श्री कृष्ण ने काली रूप धारण कर लिया था। यह देख अभिमन्यु लज्जित हुआ और राधा जी से क्षमा माँगते हुए बोला कि उससे भूल हो गयी। नहीं पता था कि काली जी की पूजा के लिए आयी हो।इसी प्रसंगवस काली रुपी कृष्ण और राधा जी की प्रतिमा यहाँ है।    
जाटव गाँव में राधाजी की ससुराल, यहाँ की एक प्रतिमा में
श्री कृष्ण काली के वेश में राधाजी के साथ हैं

           जब हमलोग यहाँ आये तो गर्भ गृह का पट बंद था। कुछ प्रतीक्षा के बाद खुला तो हमलोगों ने दर्शन किए। एक पुजारी जी ने हमें मंदिर के ऊपरी तलों को दिखाने हेतु साथ चलने कहा। प्रथम तल पर श्री राधा जी का सज्जित शयन कक्ष था जिसका दर्शन हमने शीशे वाली खिड़की से किया। फिर सबसे ऊपरी तल पर ले गए जो छत ही था किन्तु किनारे में एक छोटा सा मंदिर था जिसमें मार्बल का श्री राधा जी के चरण बने थे। उनके चरणों के दर्शन कर हमने छत से चारों ओर कोकिला वन के दर्शन किये। श्री शनि महाराज की विशाल मूर्ति इतनी दूर से भी दिखाई दे रही थी।   

         20. चौमुंहा ब्रह्म जी -  यह चौमुहां वही स्थान है जहाँ ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण के भगवान होने पर संदेह किया था और उनकी परीक्षा ली थी। जब ब्रह्मा जी ने देखा कि कृष्ण ग्वाल बालकों संग आम बच्चों की तरह खेल रहे हैं एवं उनका जूठा भी खा रहे हैं तो उन्हें संदेह हुआ कि यह भगवान कैसे हो सकते हैं। परीक्षा लेने के लिए उन्होंने ग्वाल बालों एवं उनकी गायों को एक गुफा में छिपा दिया। श्री कृष्ण को जब पता चला तो उन्होंने माया से उन सभी ग्वाल बालों एवं गायों के प्रतिरूप बना दिए जो प्रतिदिन गोकुल जाते और वन में गायों के साथ आते। उनके घर वालों को भी कुछ पता न चला। माया तो श्री कृष्ण के वश में ही होती है। उधर ब्रह्मा का रूप धर कर श्री कृष्ण ब्रह्मलोक में जा कर ब्रह्मा के स्थान पर बैठ गए। जब ब्रह्मा वापस ब्रह्मलोक पहुँचे तो द्वारपालों ने उन्हें अंदर जाने न दिया। उन्होंने कहा कि ब्रह्मा जी तो अपने स्थान पर बैठे हैं, तू कौन है?  ब्रह्मा जी  सारी बात समझ गए और श्री कृष्ण से क्षमा माँगी। उन्होंने सभी ग्वाल बालों एवं गायों को मुक्त किया। श्री कृष्ण ने उन्हें क्षमा करते हुए ब्रह्मलोक वापस किया और वरदान मांगने कहा।      
चौमुहाँ ब्रह्मा जी का मंदिर

           ब्रह्मा जी ने यहीं चौमुंहा में अपने तप पूर्ण होने का वरदान माँगा। आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व एक पुजारी को यहाँ स्वप्न में ब्रह्मा जी की मूर्ति झाड़ियों में होने का ज्ञान मिला। खोजने पर सच में वहाँ चार मुँह वाले ब्रह्मा जी की मूर्ति मिली। तभी से मूर्ति स्थापित कर पूजा की जा रही है। वैसे तो ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर पुष्कर में होने की बात कही जाती है किन्तु यहाँ भी ब्रह्मा जी मंदिर है जिनके साथ हैं सावित्री देवी। सारे तीर्थ ब्रज में मिलेंगे। यहाँ आकर हमने मंदिर में दर्शन किया और माथा टेका।      

         21. जैत गाँव - हमारा ब्रज 84 कोस यात्रा के छठे दिन का अब अंतिम पड़ाव आ गया था। यह था जैत गाँव। यहाँ कालिया नाग पत्थर का बन गया था। कथा ऐसी है कि जब यमुना में अपनी पत्नियों एवं परिवार के साथ कालिया नाग रहता था तो वृन्दावन वासियों के लिए बड़ा खतरा होता था और वे भयाक्रांत रहते थे। उसके मर्दन के लिए श्रीकृष्ण ने लीला रची। ग्वाल-बालों संग यमुना तट पर गेंद खेलते हुए उनकी गेंद यमुना जी में चली गयी। सबके मना करने पर भी कृष्ण गेंद लाने यमुना जी में कूद पड़े। कृष्ण को देख कालिया कुपित हो गया और उनकी तरफ झपटा। श्री कृष्ण के दाँव -पेच से वह परास्त हुआ और कृष्ण ने उसकी पूँछ उमेठते हुए उसके फण को पैरों से रौंदना शुरू किया। कालिया नाग और उसकी पत्नियाँ श्री कृष्ण से उसकी जान की भीख मांगने लगे।                                 
जैत गाँव में कालिया नाग का मंदिर

            श्री कृष्ण ने प्राण न लेने की यह शर्त रखी कि वह वृन्दावन छोड़ कर एक दिशा में चला जाय और पीछे मुड़ कर न देखे। यदि उसने पीछे मुड़ कर वृन्दावन की तरफ देखा तो उसी जगह वह पत्थर का बन जायेगा। जान बचा कर कालिया नाग भागा। जब वह यहाँ जैत गाँव पहुँचा तो उसे लगा कि अब तो बहुत दूर आ गया और स्वयं को वृन्दावन की तरफ मुड़ कर देखने से रोक ना सका। देखते ही वह पत्थर का बन गया। यहाँ एक पार्क जैसे स्थान में जहाँ एक सरोवर भी है, एक खुले मंदिर में पत्थर का कालिया नाग अब भी वृन्दावन की ओर मुँह किये खड़ा है। दर्शन कर हमलोग अपने होटल की ओर वापस आये।   



       सातवें दिन की यात्रा का वर्णन पढ़िए अगले ब्लॉग पोस्ट "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग -7" में।                         

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