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सिंगणापुर वाले शनि महाराज का विग्रह |
परली से हमें शनि सिंगणापुर जाना था जहाँ हमें रात्रि विश्राम करना था ताकि अगले दिन सबेरे हम शिंगणापुर वाले शनि महाराज की पूजा कर सकें। तीर्थ यात्रा के हमारे राउंड ट्रिप का यह अंतिम देवस्थल था जिनकी सूची हमने बनाई थी। शनि पूजा के बाद फिर हम मुंबई जाने वाले थे जहाँ से हमारी वापसी की फ्लाइट बुक्ड थी। हमलोग मैप देख कर ही जा रहे थे। कहीं 4 - 6 लेन रोड तो कहीं सिंगल लेन वाली ग्रामीण सड़कों से गुजरे क्योंकि मैप हमें शॉर्टेस्ट रूट दिखता है। गूगल मैप से ऐसी यात्राओं में बहुत सुविधा हो गयी है। परन्तु इसमें कभी कभी कन्फूजन हो जाता है और जब भी ऐसी स्थिति आये तो स्थानीय लोगों से रूट कन्फर्म कर लेना चाहिए। इस यात्रा में भी एक जगह ऐसी ही स्थिति आयी। एक जगह हमें फ्लाईओवर के नीचे से जा कर फ्लाईओवर वाली 4 -लेन सड़क पर जाना था पर उस जगह मैप पर अजीब सा जलेबी जैसा सड़क दिखा रहा था। अपने अनुभव से मैंने ड्राइवर को कहा की यहाँ थोड़ा सतर्क हो कर रास्ता खोजना होगा। सच में जहाँ ड्राइवर मुड़ना चाह रहा था वहाँ से आगे गाड़ी का रास्ता ही न था। गाड़ी खड़ी कर सोच ही रहा था कि सामने दूर खड़े एक आदमी ने इशारा किया कि इधर रास्ता नहीं है। ड्राइवर ने उससे इशारों में फ्लाईओवर पर जाने का रास्ता पूछा। उसने थोड़ा पीछे जाने कहा। ड्राइवर ने गाड़ी बैक की। तभी देखा की एक ट्रक बायीं ओर जा रही है, उसके पीछे चले। थोड़ी दूर के बाद ट्रक खेतों के रास्ते निकल कर ओझल हो गया। हमलोग फिर ठिठक गए। तभी एक इन्नोवा पीछे से आ कर उसी रास्ते गयी, तब हमारी भी हिम्मत हुई। बिलकुल कच्ची रास्ता, टायरों के गहरे गड्ढ़े पर धीरे -धीरे गाड़ी आगे बढ़ी। आगे जाने पर स्पष्ट हो गया कि यही रास्ता हमें 4 - लेन सड़क पर ले जाएगी। कठिनाइयों से ही सही, हमलोग उस सड़क पर पहुँच गए और आगे की यात्रा जारी रही।
शनि सिंगणापुर चबूतरे के ठीक सामने मंदिर, ऊपर वही शनि मन्त्र लिखा है, ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्। |
शाम छः बजे तक हमलोग शिंगणापुर पहुँच गए। शनि मंदिर से पहले एक पुल है जिसके पहले एक मार्किट का आँगन है। ड्राइवर ने अपने एक पहचान वाले दूकान के सामने गाड़ी रोक दिया। यह दूकान वाला शनि मंदिर के लिए फूल प्रसाद बेचता था। उसने तभी से बताना शुरू किया कि पूजा के सामान उसी के दूकान लूँ। यहाँ हमने होटल तो बुक किया नहीं था। इस मार्किट के किनारे भी एक होटल था। पर लोगों ने बताया कि मंदिर के सामने भक्त-निवास भी हैं जहाँ सस्ते रेट पर रूम मिल जाते हैं। तो पहले हमने वहीँ देखने का फैसला किया क्योंकि कई धर्मस्थल में मंदिर के भक्त निवास सस्ते, अच्छे और नजदीक होते हैं। हमलोग दो आदमी गए देखने। गेट के पास ही भक्त-निवास का कमरा बुक किया जाता है। हमने उनसे पहले कमरा देखने का आग्रह किया। तो एक लड़के को भेजा हमारे साथ। कमरे लॉज जैसे थे जिसमे लोहे के खटिये पर पतले गद्दे रखे थे। रूम भी पुराने थे। कुल मिलाकर हमें वहाँ पर अच्छी फीलिंग नहीं लग रही थी। तो बिना बुक किये हम गाड़ी के पास आ गए।
होटल रूम में बाहर से ताले नहीं लगते बल्कि ऐसी सिटकनी लगायी जाती है |
फिर मार्किट वाले होटल को ही देखने की सोचा। यह ठीक ठाक था और किराया भी 1200 प्रति दिन था। तो हमने अपना सामान होटल के रूम में रखा। सामने गाड़ी पार्किंग की काफी जगह थी। अजीब बात यह थी कि यहाँ होटल के रूम में ताले नहीं लगाए जाते। आप बहार से सिटकनी चढ़ा कर निकल सकते हो। होटल वाले ने बताया कि यहाँ शनि महाराज के भय से कोई चोरी नहीं करता। जो भी हो एक बात अच्छी थी कि CCTV कैमरे लगे थे। हम सभी फ्रेश हो कर संध्या दर्शन के लिए शनि मंदिर की ओर निकले। पूजा दूकान वाला हमपर नजरें लगाए था। निकलते ही पूजा सामान के लिए फिर आग्रह किया। हमने कहा कि अभी सिर्फ दर्शन के लिए जा रहे हैं, सबेरे पूजा के लिए जायेंगे तो जरूर सामान लेंगे।
शनि सिंगणापुर और उनके सामने मंदिर की मूर्तियाँ |
शनि मंदिर का कैंपस बहुत बड़ा है और सड़क के दोनों तरफ है। जब आप पुल से आगे बढ़ते हैं तो मुख्य मंदिर का कैंपस दाहिनी तरफ है परन्तु प्रवेश आप बायीं तरफ के कैंपस से ही कर पाएंगे। दाहिनी तरफ से सीधे मुख्य मंदिर कैंपस में जाने का एक छोटा रास्ता है जो स्टाफ एवं स्थानीय लोगों के लिए है। बायीं कैंपस में बड़ा सा खुला पार्किंग है जिसके एक तरफ दुकानें एवं भक्त-निवास है तथा दूसरी तरफ भव्य प्रवेश द्वार एवं विभिन्न structures हैं। प्रवेश द्वार के जस्ट दाहिनी तरफ जूते-चप्पल स्टैंड है। यद्यपि अधिकतर लोग बहार ही चप्पल खोल प्रवेश कर रहे थे।
प्रवेश करते ही सामने ऊपर बड़े अक्षरों में शनि मन्त्र लिखा हुआ है - "ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।'' यहाँ पर दाहिनी तरफ एक लम्बा गार्डन है।गार्डन के सामानांतर एक लम्बा कोर्रिडोर है जिसमें एक तरफ विभिन्न मूर्तियाँ नाम के साथ बनी हैं। जबकि ठीक सामने एक सुन्दर सा प्लेटफॉर्म है जो नदी में प्रोजेक्टेड है यहाँ आप सेल्फी ले सकते हैं या खड़े हो कर दृश्य निहार सकते हैं। इस मंदिर में मोबाइल ले जा सकते हैं तथा फोटो खींचने की भी मनाही नहीं है। अब इसी प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर बायीं तरफ एक लम्बा ढलान वाला गलियारा मिलेगा जो सड़क के दूसरी तरफ मुख्य मंदिर कैंपस में जाने का रास्ता है। यह रास्ता मुख्य सड़क के नीचे अंडर पास से गुजरता है। इसी रास्ते से जाकर हमलोग मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचे। यहाँ एक त्रिशूल है जिसपर भक्त आक के पत्तों की माला लगाते हैं। तथा तेल को छोड़ कर अन्य पूजा सामग्री पास के टब में छोड़ते हैं। पुनः यहाँ से एक लम्बे कॉरिडोर के अंत में एक स्टॉल के पास पहुँचते हैं जहाँ मंदिर की तरफ से सरसों तेल बेचा जाता है जो कि शनि महाराज को मुख्य्तः चढ़ाया जाता है। यहाँ से दाहिनी तरफ खुले चबूतरे पर शनि महाराज का विग्रह है जो किसी मूर्ति जैसी नहीं है बल्कि लगभग पाँच फ़ीट ऊँचे पत्थर के अंक 1 के आकार की काले ग्रेनाइट की आकृति है।
खूबसूरत दृश्य और फ़ोटो खींचते भक्त जान शनि सिंगणापुर |
यहाँ एक बात बता दूँ कि आज कल हर शहर में शनि महाराज मंदिर है जो आज से 30 -35 वर्ष पहले नहीं पाए जाते थे। इन मंदिरों में शनि महाराज की मनुष्याकृति में प्रतिमाएँ होती हैं जिनमें जाने से कई धर्माचार्य मना करते हैं जिसके पीछे कारण यह दिया जाता है कि शनि को मिले श्राप के कारण उनकी दृष्टि जिसपर जाती है उसका अनिष्ट होता है। अतः हमें शनि की नजरों के सामने पड़ने से बचना चाहिए। वे धर्माचार्य शिंगणापुर वाले शनि महाराज की जैसी विग्रह के सामने जाने की अनुमति देते हैं क्योंकि यहाँ न मूर्ती है और न उनमे आँखें बनी हैं। मैं इस मत से सहमत हूँ, इसीलिए शनि महाराज के दर्शन पूजन हेतु शिंगणापुर आने का कार्यक्रम बनाया। अपने घर/शहर में शनिवार को हमलोग श्रीहनुमान जी की पूजा करते हैं क्योंकि स्वयं शनि ने हनुमानजी को वरदान दिया था कि जिस पर आप की कृपा होगी उसे शनि का कष्ट नहीं होगा। शनिवार को व्हाट्सप्प पर भी गुड मॉर्निंग सन्देश में शनि की फोटो नहीं बल्कि हनुमानजी की फोटो भेजना उचित है। यहाँ जो विग्रह है वह एक स्थानीय व्यक्ति को जंगल में मिटटी के नीचे मिला था। ऐसा पत्थर देख कर उसे अजीब लगा। रात में शनि महाराज ने उसे सपने में दर्शन दिया और उस विग्रह को ला कर स्थापित और पूजने का निर्देश दिया। कहा जाता है कि यहाँ इनके दर्शन से शनि के ग्रह जनित सारे कष्ट दूर होते हैं।
सिंगणापुर शनि मंदिर में कलश जैसा दान पात्र |
इस शिंगणापुर के शनि मंदिर में जब आप 500 की पास खरीद कर जायेंगे तो चबूतरे पर जाकर पूजा कर सकते हैं। शाम को जब हमलोग यहाँ आये तो एक व्यक्ति को चबूतरे पर जा कर गैलन से सरसों तेल विग्रह पर डालते देखा। सामान्य लोगों के लिए चबूतरे के नीचे ही सरसों तेल डालने के लिए कई टब बने हैं जिसपर जालियाँ लगी हैं ताकि तेल छन कर जाए। यहाँ से पाइप द्वारा तेल लगातार शनि-विग्रह पर गिरता रहता है। इस चबूतरे के ठीक सामने एक हॉल जैसा मंदिर है जिसमें सामने दीवार नहीं है, बाकी तीन तरफ दीवार हैं और छत भी है। यहाँ से शनि महाराज का चबूतरा सीधा दिखता है। इस मंदिर के पिछली दीवार में एक संत की मूर्ति है जिनके बगल में श्री हनुमान जी की भी मूर्ति है। दर्शन के बाद आगे बढ़ने पर एक बड़े कलश के आकार का दानपात्र है तथा दीप-धूप के लिए जगह बना है। दर्शन के बाद निकलने के लिए भी एक लम्बा कॉरिडोर है जिसमे दो जगह प्रसाद बिक्री के काउंटर हैं। यहाँ पीले रंग के नारियल की बर्फी प्रसाद में मिलती है। एक पैकेट खरीदकर हमलोगों ने खाया।
शाम की रौशनी में फोटो खींचते भक्तजन, शनि सिंगणापुर |
यह कॉरिडोर आपको उसी अंडर पास के पास लाता है जिससे हमलोग आये थे। इस कॉरिडोर के बगल में लम्बी-लम्बी सीढ़ियाँ बनी हैं जो परिसर की चहारदीवारी के पास बने लम्बे खूबसूरत तालाब तक ले जाती हैं। यहीं एक ऊँचा सुन्दर सा टावर बना जिसमें नीचे नवग्रह की मूर्तियाँ हैं। शाम की रौशनी में दूर से यह टॉवर बहुत आकर्षक नजर आता है। कुल मिलकर मंदिर और परिसर बहुत सुन्दर बनाया गया है, यहाँ तक कि जिस छोटी नदी के किनारे है उसके साइड्स भी पक्के किये गए हैं।
इसी ढलान वाले कॉरिडोर से आप मंदिर के अंदर आयेंगे |
जैसा हम लोग सोच रहे थे कि भीड़ और लम्बी कतार होगी, संयोग से वैसा नहीं था। शाम को जब हम लोग पहुंचे तो लगभग तीस के करीब भक्तजन होंगे। यद्यपि कहा जाता है कि शनि की पूजा शाम को की जाती है परन्तु हमलोगों को सबेरे स्नान कर खाली पेट ही पूजा करने की श्रद्धा होती है। अतः हम लोग शाम को सिर्फ दर्शन और मंदिर परिसर से परिचित होने ही आये थे। दर्शन के बाद मंदिर से निकल कर हम लोग होटल की तरफ आये। यहाँ सड़क के दूसरी तरफ एक ढंग का रेस्टॉरेंट नजर आ रहा था तो वहीं पर खाना खाया और होटल आ कर सो गए।
सबेरे तैयार हो कर होटल से निकले। पूजा सामग्री के लिए हम लोग उसी दुकानदार के पास गए जिससे वादा किया था। शाम को तो सारा परिसर देख समझ ही लिया था। उसी के अनुसार दर्शन पूजन किया। सरसों तेल हम लोगों ने टब में ही डाला और पूजन कर वापसी वाले कॉरिडोर से निकले। सुबह की रौशनी में वातावरण और भी अच्छा लगरहा था और मंदिर भी ज्यादा सुन्दर लग रहा था। हमने फोटो वगैरह खिंचवाए और निकल कर वापस आये। दुकानदार को कॅश पेमेंट करना था पर खुदरा लौटाने में उसे समस्या थी तो UPI से पेमेंट किया। बाद में देखा कि फोन-पे में दुकानदार का जो नाम था वह एक मुस्लिम नाम था।
कोल्हू वाला गन्ने का रस, सिंगनापुर में |
एक रेस्टॉरेंट में चाय पी कर हमने होटल से चेक-आउट किया और अपने टैक्सी से निकल पड़े अंतिम पड़ाव मुंबई लिए। सड़क के किनारे खेत थे जिनमें खूब गन्ने की खेती थी। किसानों ने गन्ने पेरने के लिए कोल्हू लगा रखा था। ऐसे ही एक कोल्हू के पास ड्राइवर ने गाड़ी रोकी। उस दूकान में गुड़ पाउडर से बने कई प्रकार के चाय के पैकेट थे जिनमें से एक प्रकार के पैकेट ड्राइवर को अपने बच्चे के लिए लेने थे। हमने भी चाय वाली गुड़ पाउडर खरीदी। परन्तु हमलोगों का मुख्य आकर्षण तो कोल्हू का बैल था जिसकी सीधी और लम्बी सींग थी, जैसा हमारी तरफ नहीं होता। मैंने बैल के बारे में पूछ-ताछ की तो उसने एक देसी नस्ल का नाम लिया। यह भी बताया कि ऐसी सींग के लिए विशेष उपाय किया गया है और इससे भी बड़ी सींग वाला बैल दूकान के पीछे बंधा है। हमने पीछे जाकर उसे भी देखा। सुंदर लग रहा था। कोल्हू से निकलवा कर हमने गन्ने का रस भी पिया। और फिर आगे बढ़ चले।
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इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
शनि सिंगणापुर यात्रा
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