Monday, June 30, 2025

दलमा वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी में सफारी और दलमा टॉप पर मंदिर की यात्रा

           दलमा वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी जिसे हिंदी में दलमा वन्यजीव अभयारण्य कहा जाता है, भारत के झारखण्ड राज्य में स्थित है जिसका विस्तार दो जिलों सरायकेला-खरसाँवाँ और पूर्वी सिंहभूम में है। झारखण्ड नदी, जंगल और पहाड़ों से सज्जित एक ऐसा राज्य है जिसमें प्राकृतिक सौंदर्य भरपूर है। दलमा जंगल लगभग 200 वर्ग किलोमीटर में फैला है। अभ्यारण्य जमशेदपुर शहर के निकट है। वन विभाग यहाँ वन्यजीव सफारी चलाता है जिसके लिए टिकट सैंक्चुअरी के गेट पर मिलता है। यह गेट NH -33 के कंदर्बेडा मोड़ से लगभग साढ़े छः किलोमीटर दूरी पर है।

NH-33 से दलमा जाने वाले मोड़ पर स्वागत द्वार


        NH -33 से जहाँ पर सैंक्चुअरी के लिए रास्ता निकलता है वहां पर अभ्यारण्य का स्वागत-द्वार भी बना है। इस रास्ते में जगह-जगह दिशा-निर्देशक बोर्ड एवं स्वागत द्वार बने हुए हैं। सफारी के लिए वन विभाग की गाड़ी में दस यात्री बैठते हैं और कुल किराया 1400 रूपये होता है। अपनी कार या जीप ले जाने पर 600 रूपये लिए जाते हैं जबकि प्रत्येक यात्री का 10 रूपये का टिकट लगता है। पहले बाइक भी जाने देते थे किन्तु अब इस पर प्रतिबंध है।  

दलमा वन्य जीव अभयारण्य का प्रवेश द्वार


             अभ्यारण्य के प्रवेश गेट से सफारी में दलमा टॉप तक जाते हैं जहाँ पर शिव और हनुमान जी के मंदिर हैं। यह दूरी लगभग बारह किलोमीटर से अधिक है। जब हमलोग वाइल्डलाइफ सफारी में जाते हैं तो वन्य जीवों को देखने की आशा रखते हैं। अतः हमलोग जब सफारी के लिए टिकट कटाने पहुंचे तो काउंटर के व्यक्ति से ही पूछा कि कौन -कौन से जानवर दिखते हैं सफारी में ? उसने ईमानदारी से बताया कि "यात्रा में जंगली जानवर नहीं दीखते हैं। और थोड़ा सबेरे आने से मोर दिख सकते थे।" इससे सबेरे तो हमारे लिए आना संभव नहीं था जबकि अभी 3:30 PM हुए थे। हमें थोड़ी निराशा हुयी। उस समय लगभग चार गाड़ियाँ थीं पर्यटकों की जबकि कुछ सफारी पर अंदर जंगल में थे। इसके अतिरिक्त वन विभाग की गाड़ी भी दस यात्रियों को ले कर अंदर सफारी पर थी। जब इतने लोग आये थे, तो सोचा कि चलो जंगल की ही सैर हो जाएगी। 

प्रवेश द्वार के पास हथिनी को लौकी खिलाते
प्रसन्न बच्चे


          मुझे लगता है कि पर्यटकों को सांत्वना देने के लिए इन्होने एक हथिनी को गेट के पास रखा है। जो महावत था वह हथिनी के बारे में बता रहा था कि जब यह छोटी थी तो कुएँ में गिर जाने से एक पैर टूट गया था। इलाज हुआ तो अब काफी ठीक है। पर्यटकों के साथ आये बच्चे इसे देख कर बहुत खुश थे और लौकी खिला रहे थे। हथिनी भी बड़े चाव से लौकी का आनंद ले रही थी। वन विभाग के ही एक व्यक्ति ने बताया कि गेट के बगल में वह म्यूजियम है। यहाँ से कुछ यादगार वस्तुएँ खरीद भी सकते हैं। परन्तु हमने पहले जंगल की ही यात्रा करने की सोची। 

प्रवेश द्वार के पास पर्यटकों की गाड़ियाँ


          हमलोगों ने गाइड के लिए पूछा तो बताया गया कि गाइड की जरुरत नहीं है। न दायें मुड़ना है न बायें, सीधे रास्ते पर चले जाइये, दलमा टॉप पर पहुँच जायेंगे। तो हमलोग चार व्यक्ति कार से आगे बढ़े। कुछ दूर तक पेवर्स ब्लॉक रोड था जो आगे पीo सीo सीo रोड में बदल गया। कुछ किलोमीटर जाने के बाद सड़क कच्ची ही मिली। बीच-बीच में पीo सीo सीo रोड के स्ट्रेच मिलते थे। यह लम्बी जंगल की यात्रा उकता देने वाली थी। बीच-बीच में बाइक आ - जा रहे थे। शायद वे लोग स्थानीय ग्रामीण थे या वन विभाग के स्टाफ। दो तीन वापसी वाली गाड़ियाँ भी मिलीं जिनमे एक वन विभाग का सफारी वाला गाड़ी भी था।सड़क इतनी पतली थी कि आने वाली गाड़ियों को रास्ता बहुत संभल कर देना पड़ रहा था। कुछ जगहों पर पहाड़ से आने वाले बरसाती पानी को निकालने के लिए सड़क में क्रॉस नाला बना था जिससे गाड़ी को बहुत ही सावधानी से निकलना पड़ रहा था।  

शिव मंदिर के रास्ते में दो चट्टानों के बीच
संकरा रास्ता
 

       बड़े-बड़े पेड़ों और लताओं से भरे लगभग सुनसान रास्ते में कभी या तो झींगुरों की आवाज़ सुनाई देती या कोयल जैसी किसी पक्षी की। कहीं कहीं सड़क पर बन्दर भी दिखे। आगे जा कर रास्ता बिलकुल पथरीला और चढ़ाई वाला मिला। उसमें भी हेयरपिन जैसे मोड़ थे। कभी मन में होता की लौट चलें। किसी किसी बाइक वालों को रोक कर पूछते कि भैया और कितनी दूर है मंदिर? अधिकतर बोलते कि थोड़ा दूर है, जाइये न। एक बाइक वाले ने जवाब दिया कि लगभग आठ किलोमीटर होगा। हमे सुनाई पड़ा जैसे कहा हो कि हाफ किलोमीटर होगा। पूरे रास्ते में कोई भी दूकान तक नहीं है। एक जगह जो टॉप से लगभग 5 किलोमीटर पहले होगी, कुछ वन विभाग के क्वार्टर बने हैं। 

गुफा में शिव मंदिर जहाँ शिव परिवार


         इसी तरह आखिर हमलोग दलमा पहाड़ की चोटी से कुछ पहले पहुंचे जहाँ एक गुफा में शिव मंदिर है। यहाँ पर एक मात्र चाय की टपरी दिखी। गाड़ी रोक कर उतरे और शरीर सीधा किया क्योंकि इतनी देर बैठे-बैठे शरीर अकड़ गया था। चायवाले से ही यहाँ की जानकारी मिली। वह बोला कि पैदल ही पहले बगल के शिव मंदिर में चले जाइये जहाँ एक गुफा में शिवलिंग हैं। फिर गाड़ी ले कर ही टॉप तक जाइये जहाँ हनुमानजी का मंदिर है। इस जगह पर कुछ उत्पाती बंदरों की संख्या भी थी। कुछ लोग जो कार से उतर कर आस पास देख रहे थे, उनकी कार में एक बन्दर घुस कर फल चुरा लाया। जब हमलोगों ने उन्हें बताया तब कार का शीशा उठा कर उन्होंने बंद किया।  

दलमा टॉप के पास पर्यटकों की गाड़ियाँ


        चायवाला पकौड़े भी गरम छान रहा था। हम सब ने एक एक पकौड़ा खा कर पानी पिया और शिव मंदिर की ओर चले। गुफा से पहले का रास्ता दो बड़े-बड़े चट्टानों के बीच से सँकरा सा था। शिवलिंग और शिव परिवार के छोटे छोटे रूप स्थापित थे। दर्शन और प्रणाम कर हमलोग गाड़ी में आये और दलमा टॉप के पास पहुँचे जो मात्र दस मिनट की दूरी पर था। यहाँ पहले से ही तीन चार गाड़ियाँ लगी थीं। अधिकतर पर्यटक वहां बने दो वाच-टॉवरों पर चढ़ कर चारों तरफ के दृश्य का आनंद ले रहे थे। जो सबसे ऊँची जगह थी वहां एक हनुमान मंदिर बना था जो बीस पच्चीस सीढ़ियों की चढ़ाई पर था। वॉचटॉवर पर अधिक सीढियाँ चढ़नी पड़ती इसलिए हमलोग मंदिर ही गए। मंदिर का भवन साधारण सा ही है। इसके चारों ओर बालकनी सी बानी हुयी है जहाँ से हरे भरे पर्वतों का मनोहर दृश्य नजर आता है। मंदिर में श्री हनुमान जी का दर्शन कर हमलोगों ने लगभग 15 मिनट बिताये फिर वापस लौटने का सोचा क्योंकि अब साढ़े पाँच बज रहे थे। ज्यादा देर होने पर जंगल में अँधेरा बढ़ सकता था जिससे ड्राइविंग में दिक्कत हो सकता था। 

दलमा टॉप पर हनुमानजी का मंदिर


         वापसी की यात्रा अपेक्षाकृत आसान थी क्योंकि ढलान पर गाड़ी की स्पीड खुद ही बढ़ जाती थी। लौटने का समय भी कुछ कम ही लगा। अभ्यारण्य से निकल कर जमशेदपुर पहुँचने में लगभग संध्या 7 बज गए। हम सभी को काफी भूख लग चुकी थी, तो सबसे पहले कुछ खाने के लिए एक होटल में गए।  

दलमा टॉप के हनुमानजी का दर्शन


          निष्कर्ष यह कि दलमा वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी में एक बार जाया जा सकता है, यदि जंगल की यात्रा का आनंद लेना चाहें। अन्यथा यदि वन्य जीवों को देखने की इच्छा हो तो निराशा होगी। 

  


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