पिछले ब्लॉगपोस्ट "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग - 1" से आगे :--
इस यात्रा का अगला दिन अर्थात दूसरा दिन रविवार था। हमलोग तय समय सुबह 8 बजे तैयार होकर होटल से नीचे आये जहाँ हमारे पथ-प्रदर्शक सोनू कौशिक जी महाराज कार के साथ प्रतीक्षा कर रहे थे।हमलोग कार में बैठ कर चले और "गोविन्द मेरो हैं, गोपाल मेरो हैं" के भजन गाते, बृन्दावन बिहारी लाल की जयकारा करते आज की यात्रा की शुरुआत की। आज की यात्रा महाराज जी ने गोकुल के तरफ की रखी। सबसे पहला पड़ाव था "रमण-रेती" |
1. रमण रेती - यह वह स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण बाल्यावस्था में सखाओं संग खेला करते थे। रेती के गेंद बना कर एक दूसरे को मारते थे। यहाँ की रेत को पवित्र माना जाता है और भक्तजन श्रद्धा पूर्वक इसे अपने सर से लगते हैं। लोग यहाँ की रेत में लेटते हैं, नाचते हैं तथा रेती की गेंद बना बना कर एक दूसरे पर फेकते हैं बिल्कुल कान्हा की क्रीड़ाओं के भाव में। यहाँ का वातावरण बहुत ही उल्लासपूर्ण होता है। हमलोग जब यहाँ थे तो अन्य लोगों के अलावा एक दादी-पोते की जोड़ी ने हमारा ध्यान खींचा जो रेती की गेंद बना कर एक दूसरे पर दौड़ा दौड़ा कर फेंक रहे थे।
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रमण रेती पर सभी बाल-भाव से क्रीड़ा करते हैं। |
वैसे तो यह स्थान श्रीकृष्ण की बाल क्रीड़ाओं के कारण इतना महत्वपूर्ण है किन्तु आधुनिक समय में इस स्थान पर संत कवि रसखान जी की तपस्थली भी रही है। रसखान जी कृष्ण और ब्रज प्रेम में इतने रमे थे कि उन्होंने अपने मज़हब की भी परवाह न की। कृष्ण-भक्तों में उनका नाम अग्रणी है।
2. चौरासी खम्भा - ब्रज के 12 वनों में से एक महावन में स्थित यह भवन नन्द बाबा का भवन है जहाँ कृष्ण-बलराम जी का बचपन बीता था। यहाँ के पुजरियों के अनुसार यह भवन 5,500 वर्ष पुराना है जिसके शुरू के चार खम्भे ब्रह्मा जी ने बनाये थे और बाकी के 80 विश्वकर्मा जी ने। ब्रह्माजी के चार खम्भे, चार युग का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन युगों से सम्बन्धित चिह्न इन पर अंकित हैं।
यहाँ कृष्ण-बलराम, नन्द बाबा और यशोदा मैया की मूर्तियां हैं। एक स्थान पर बाल कृष्ण की छठी मनाते चित्र हैं। कहते हैं कि चौरासी खम्भा मंदिर में आने से 84 योनियों में भटकना नहीं पड़ता। मंदिर के प्रांगण में मुख्य द्वार के पास ही एक अत्यंत पुराना वृक्ष है जिसके नीचे काली जी की प्रतिमा है। इस विक्ष को लोहे जाली से सुरक्षित किया गया है। पुजारी जी ने बताया कि यह पञ्च-पीपल वृक्ष है जिसमें पाँच तरह के फूल लगते हैं, जो कार्तिक के मास में ज्यादा निकलते हैं। मनोकामनाओं को पूर्ण करता है यह।
एक पीपल का वृक्ष भी है जिसमे मनौती के लिए लोग धागे बांधते हैं। मंदिर के एक किनारे पर बाल-कृष्ण द्वारा ऊखल -बन्धन के कारण जुड़वाँ वृक्षों को गिराने की भी मूर्ति बनायी गयी है किन्तु यहाँ फोटो लेना मना है।
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वट -वृक्ष में बाँधे गए मनौतियों के धागे (चौरासी खम्बा मंदिर, महावन, मथुरा) |
3. ब्रह्माण्ड घाट - शांत यमुना जी के किनारे गोकुल में यह वही जगह है जहाँ मिट्टी खाने पर यशोदा मैया ने बाल कृष्ण का मुँह खुलवाया था ताकि मिट्टी निकलवा सके किन्तु उन्हें तो कृष्ण के मुँह में पूरा ब्रह्माण्ड ही दिखाई दिया। लोग यहाँ यमुना जी में स्नान भी करते हैं अथवा शरीर पर कुछ बूंदें छिड़क कर आँखों की पलकों पर लगते हैं। पास ही ब्रह्माण्ड बिहारीजी का मंदिर है जिसमेंभक्त दर्शन करते हैं।
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ब्रह्माण्ड विहारी जी मंदिर,गोलोक धाम, ब्रह्माण्ड घाट (मथुरा) |
मंदिर के द्वार पर यहाँ की मिट्टी की गोलियों के पैकेट्स बेची जाती हैं जिन्हें भक्तजन श्रद्धापूर्वक खरीद कर घर ले जाते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इन गोलियों में चमत्कारी उपचार होते हैं।
इस घाट के किनारे बरगद के दो बड़े वृक्ष हैं जिनपर भक्तजन मनौतियाँ मांगते हुए पटके या धागे बाँधते हैं। यमुना जी का किनारा, वट -वृक्ष, शुद्ध -पवित्र हवा और भक्तों का आना-जाना ;कुल मिला कर यहाँ एक आनंददायक वातावरण होता है।
4. चिंताहरण महादेव - हमारा अगला भ्रमण-स्थल था चिंताहरण महादेव। जब यशोदा मैया ने बाल-कृष्ण के मुख से मिट्टी उगलवाने के लिए मुँह खुलवाया तो उनके मुँह में पूरा ब्रह्माण्ड देखकर वे चिंतित हो उठीं और महादेव को स्मरण कर पुकारने लगीं। पुकार सुनकर महादेव प्रकट हुए। मैया ने उनका यमुना जल से अभिषेक किया। प्रसन्न हो कर महादेव ने उन्हें बताया कि बालक तो स्वयं विश्व का रचयिता है, चिंता की कोई बात नहीं। तब यशोदा मैया की चिंताएं दूर हो गयीं।
महादेव ने मैया को यह वरदान देते हुए कि जो भी यहाँ महादेव पर एक लोटा जल चढ़ाएगा उसकी चिंताएं दूर होंगीं, अंतर्धान हो गए। तब से इनका नाम चिंताहरण महादेव पड़ा। यहाँ ब्रजवासी और श्रद्धालु शिवलिंग पर एक लोटा जल अवश्य चढ़ाते हैं।
5. दाऊ जी का मंदिर - मथुरा शहर से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर बलदेव नामक स्थान पर बलराम जी (जिन्हें कृष्ण के बड़े भाई होने के कारण दाऊ जी कहा जाता है) का यह पुरातन और प्रसिद्ध मंदिर है। कहा जाता है कि लगभग 5000 वर्ष पहले श्रीकृष्ण के पर-पोते वज्रनाभ ने यहाँ मंदिर में विग्रहों की स्थापना की थी। मुख्य विग्रह बलराम जी की लगभग सात फ़ीट ऊँची काले पत्थर की है जिसे गर्भ-गृह के सामने से दर्शन किया जा सकता है। गर्भ-गृह के अन्दर एक कोने पर दाऊ जी की तरफ मुख किये हुए उनकी पत्नी रेवती जी का भी विग्रह है जिनका दर्शन बगल के दरवाजे से किया जा सकता है।
जब हमने दर्शन किया तो हमारे एक परिचित जिनका यहाँ की रसोई का जिम्मा है, उन्हें मिलने का आग्रह किया। वे आकर बहुत खुश हुए और हमें रसोई की तरफ ले गए और एक रेडी-मेड धोती ला कर मुझे पहनने दिया क्योंकि वे हमें गर्भ गृह में ले जा कर दर्शन करना चाहते थे। पैंट शर्ट में अंदर जाने की अनुमति नहीं है। तो अंदर जा कर पत्नी के साथ हमलोगों ने दोनों विग्रहों का दर्शन किया, प्रणाम किया और धन्य हुए।
फिर मंदिर के बगल में एक तालाब दिखाया जिसे बलभद्र-कुंड या क्षीर-सागर कहते हैं। दाऊ जी को ब्रज का राजा कहा जाता है क्योंकि जब कृष्ण ब्रज से जा कर द्वारिका नगरी बसाई और वहाँ के राजा बने तो मथुरा दाऊ जी के ही संरक्षण में रही। यह मंदिर वल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख मंदिर है।
शुरू में जब हमलोग यहाँ महाराज जी के साथ पहुंचे तो पंडे हमें घेरने लगे लेकिन उन्होंने पंडों को समझा बुझा कर अलग किया। तो जब यहाँ आएं तो इनसे थोड़ा सतर्क रहें।
6. बन्दी -आनंदी का मंदिर - हमारे गाइड सोनू जी महाराज ने कहा कि कई गाइड तो यात्रियों को यहाँ लाते भी नहीं किन्तु मैं जरूर लाता हूँ। उनके अनुसार जब श्रीकृष्ण का बंदीगृह में जन्म हुआ तो देवकी-वसुदेव के बंधन इन्हीं बंदी देवी द्वारा खोली गयी थी। आनंदी भी इनके साथ थीं। इस मंदिर में इन दोनों देवियों की मूर्तियों के अलावा एक और देवी मनोवांछा देवी की भी प्रतिमा है।
इस मंदिर में मुंडन संस्कार के लिए भी श्रद्धालु आते हैं। हमलोग जब यहाँ पहुंचे तो भीड़ न के बराबर थी। मंदिर प्रांगण बड़ा और फैला है।
7. चन्द्रावली - चन्द्रावली मंदिर महावन क्षेत्र में यमुनापार मार्ग पर स्थित चन्द्रावली देवी का 5000 वर्ष पुराना मंदिर है। ये राधा जी की अनेक सखियों में से एक थीं और श्रीकृष्ण को गोकुल आने की जिद्द करती थीं। एक बार कृष्ण जी, राधा जी और उनके सखियों को अपने पिता नन्द जी से मिलाने के लिए ले चले। इस स्थान पर आ कर चंदा थक कर बैठ गयीं और कृष्ण से थोड़ा रुकने को बोला। कृष्ण बोले तुम यहीं पर प्रतीक्षा करो मैं नन्द बाबा को यहीं लाकर तुमसे मिला दूंगा। तब से अब तक वे श्रीकृष्ण के आस में यहीं प्रतीक्षारत हैं।
इनकी प्रतिमा खुले में है। कहा जाता है कि कई बार मंदिर बनाने का प्रयास किया गया किन्तु किसी-न-किसी कारणवश नहीं बन पाया। इन्हें भी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी माना जाता है। जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो देवी के सामने 56 भोग रखे थे। सामने आर्केस्ट्रा बज रहा था और बगल के टेंट में भंडारा चल रहा था। दर्शन कर हमने माथा टेका और अगले पड़ाव की ओर निकले।
8. रावल गांव में राधा जी की जन्म स्थली - यही वह स्थान है जहाँ राधा जी एक बच्ची के रूप में वृषभानु जी को एक कमल के फूल पर मिली थीं। इसलिए इस स्थान को राधाजी की जन्म स्थली के रूप में जाना जाता है। यहाँ राधा जी का एक मंदिर और कुंड है। जब हमलोग यहाँ आये तो 15 मिनट पहले मंदिर का गेट बंद हो चुका था। कई और श्रद्धालुओं ने दर्शन करने का अनुरोध किया पर अंदर से गेट नहीं खोला गया। लगभग चार घंटे बाद पट खुलता।
अंततः हमलोगों ने दरवाजे पर ही माथा टेका और वापस गाड़ी में आये।
9. दुर्वासा मुनि आश्रम - यमुना जी के तट पर एक टीले पर बना यह मंदिर, क्रोधी ऋषि दुर्वासा के आश्रम का स्थान है। हमलोग जब यहाँ पहुंचे तो यह मंदिर भी बंद हो चुका था क्योंकि अधिकतर मंदिर 12 से 4 के बीच बंद रहते हैं।
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यमुना किनारे दुर्वासा मुनि मंदिर का बंद गर्भ-गृह। |
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चारधाम मंदिर, वृन्दावन में योग मुद्रा में महादेव की बड़ी मूर्ति और उन्हें देखते नंदी बाबा। |
चौरासी कोस यात्रा के तीसरे दिन का विवरण अगले ब्लॉगपोस्ट में पढ़ें - "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग - 3" ;
इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
34. Panchghagh Waterfalls (पंचघाघ झरने), Khunti/Ranchi, Jharkhand
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
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