Monday, December 23, 2024

परली वैजनाथ ज्योतिर्लिङ्ग

(पिछले ब्लॉग पोस्ट "औंधा नागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग" से आगे) 

परली वैजनाथ मंदिर का बायाँ प्रवेश द्वार जिधर पार्किंग है l

      श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के पूजन के बाद हमारा परली में श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग पूजन का कार्यक्रम था इसीलिए हमने कुछ खाया-पिया नहीं था। परली तक का रास्ता लगभग तीन घंटों का था। वहाँ पूजा के बाद हमें रुकना नहीं था बल्कि रुकने का कार्यक्रम था शनि सिंगणापुर में। हमलोग गूगल मैप से रास्ता देख कर जा रहे थे। परली में प्रवेश तो कर गए पर जो मैप पर मंदिर का लोकेशन दिखा रहा था वहाँ पहुँचने पर वह एक प्राथमिक विद्यालय का निकला। मंदिर के आसपास का वातावरण एक अलग किस्म का होता है किन्तु जहाँ हम पहुँचे वहाँ कोई बड़ा मंदिर आसपास नहीं लग रहा था। कुछ लोगों से पूछा तो बताया दो किलोमीटर दूर है और सही ढंग से रास्ता इस अनजान जगह में समझ नहीं आ रहा था। तब हमें याद आया की हमें यहाँ के पंडित जी पाठक जी का नंबर दिया गया था। उनको फोन कर व्हाट्सप्प पर मंदिर का लोकेशन मंगवाया। तब फिर मैप से मंदिर के पास पहुंचे। ड्राइवर ने गाड़ी को मंदिर के बायीं ओर बने पार्किंग में लगाया। यहाँ से मंदिर में प्रवेश आसान था। मंदिर के सामने से पैदल करीब 30-35 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। बायीं द्वार के पास से प्रवेश करने से पहले हम लोग पंडित पाठक जी को खोज लेना चाहते थे। वहीं चबूतरे पर कुछ पंडित जी बैठे थे। उन्हीं से पूछा तो उनमें से एक ने कहा मैं ही हूँ, मुझे सबेरे औंधा से खबर भेज दिया गया था। 

          परली वैजनाथ ज्योतिर्लिङ्ग की स्थापना के पीछे भी वही रावण वाली कथा है जो श्रीबैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग, देवघर के साथ है। अर्थात जब रावण शिवजी द्वारा दिए गए शिवलिङ्ग को एक व्यक्ति को थोड़ी देर के लिए पकड़ने कहता है ताकि वह लघुशंका से आ जाये यह नसीहत देते हुए कि इसे जमीन पर न रखे। पर रावण को लघुशंका में बहुत देर हो जाती है और वह व्यक्ति शिवलिङ्ग को धरती पर रख कर चला जाता है। शिव जी की शर्त थी कि जहाँ भी इसे धरती पर रखोगे वहीं यह स्थापित हो जायेगा। जब रावण वापस आ कर देखता है तो शिवलिंग को उखाड़ने की बहुत कोशिश करता है पर असफल हो जाने पर गुस्से में शिवलिंग पर प्रहार करता है जिससे यह जमीन में थोड़ा धँस जाता है। यद्यपि देवघर में शिवलिंग का स्वरुप ऐसा ही धँसा हुआ है अर्थात शिवलिंग की ऊँचाई काफी कम है पर परली में ऐसा नहीं है। यहाँ का शिवलिंग सामान्य से थोड़ा बड़ा ही है।   

परली वैजनाथ मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार

     बगल के चप्पल स्टैंड में चप्पल खोल कर हमलोग उनके साथ परिसर में प्रवेश किये। फूल की डलिया ले कर मंदिर में प्रवेश किया। गर्भ गृह में जाने के लिए करीब 20-25 लोगों की लाइन थी। हमे स्पर्श पूजा करनी थी तो पंडित जी ने बताया कि गर्भ गृह के अंदर जा कर कमर के ऊपर के कपड़े निकाल लें तब स्पर्श पूजा कर सकते हैं। हमने ऐसा ही किया। स्पर्श कर ज्योतिर्लिङ्ग को जल फूल आदि चढ़ाया फिर प्रणाम कर अपने कपडे पहन निकले और सामने के हॉल में बैठ कर पूजा समाप्ति और क्षमा प्रार्थना कर पंडित जी को दान-दक्षिणा दिया। फिर मंदिर प्रांगण को देखते हुए निकले। मंदिर प्रांगण में यहाँ एक अलग प्रकार का दृश्य दिखा। कोनिकल टोपियाँ पहने और सफ़ेद वेश भूषा में कुछ लोग किनारे से एक लाइन में बैठे थे। उनके सामने कुछ चावल रखे थे। वे लोगों को बुला कर उनके सर पर अपनी टोपी रख कर आशीर्वाद दे रहे थे और लोग उन्हें दान दे रहे थे। मैं उनके बारे में ज्यादा पूछ ताछ नहीं कर पाया। 

ऐसे वेशधारी परली वैजनाथ मंदिर प्रांगण में नजर
आयेंगे जो आपको अपनी टोपी सर पर रख कर आशीर्वाद देंगे l

           आँगन में और भी कई छोटे मंदिर हैं। उन्हें प्रणाम करते हुए हमलोग मंदिर से निकले। मुख्य द्वार से पहले प्रसाद का काउंटर था। कुछ प्रसाद ख़रीदे तो काउंटर वाले ने कहा कि बाहर दाहिनी तरफ मुफ्त भोजन मिलता है, खा लो। थोड़ा प्रसाद ले कर मुख्य द्वार से कुछ सीढ़ियाँ उतर कर पूछते हुए भक्त निवास के बगल से उस जगह पहुँचे जहाँ भोजन खिलाया जा रहा था। अंदर हॉल में भोजन किया जा रहा था और बाहर लोग हॉल खाली होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। हमने भी भोजन के कूपन काउंटर से लिए और प्रतीक्षा में बैठे। हमने सोचा था कि परली में पूजा के बाद भोजन ग्रहण करेंगे और हमलोग यहाँ यह सोच कर आये कि बाहर भोजन से अच्छा है कि मंदिर का भोजन प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाये। पर थोड़ी देर में ही हमें समझ में आ गया कि यह भोजन मंदिर की तरफ से नहीं है बल्कि किसी संस्था द्वारा लोगों से दान प्राप्त कर मुफ्त में खिलाया जाता है। डिस्प्ले पर प्रत्येक दिन दान में प्राप्त राशि और उस दिन भोजन खिलाये गए लोगों की संख्या लिखी थी। मैंने सोचा कि पूजा के बाद हमलोग दान देते हैं पर हमलोग यहाँ पूजा के बाद दूसरों के दिए दान से भोजन करने बैठे हैं जो उचित नहीं है। यह विचार आते ही मैं विचलित हो गया। परिवार से विचार कर हमने काउंटर पर दान दे कर रसीद लिए और भोजन का कूपन लौटा कर जाने लगे। इसपर उनलोगों ने भोजन न करने का कारण पूछा। मैंने बहाना बनाया कि हमें दूर जाना है इसलिए ज्यादा प्रतीक्षा नहीं कर सकते। इस पर उन्होंने जिद्द कर हमे उसी बैच में जो कुछ सीट खाली थे उसपर बिठा दिया। अब हमलोग स्पष्ट कारण बता नहीं पाए तो भोजन करना पड़ा। पर अब इतना संतोष था कि दूसरे के दान से न खाया बल्कि दान दे कर खाया। 

               भोजन पा लेने के बाद थोड़ी देर हमलोग मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर सीढ़ियों पर बैठे। सुबह से चाय नहीं पी थी। वहीं एक पेड़ के नीचे गुमटी में चाय बन रही थी। चाय का आर्डर दे कर हमलोग बातें करने लगे कि किस तरह हमारा कार्यक्रम कि तीन दिनों में चार ज्योतिर्लिङ्ग का दर्शन/पूजन करना सफल रहा। हम सभी संतुष्ट हो कर महादेव का आभार व्यक्त किये। 

          अब हमें रात्रि विश्राम शनि सिंगणापुर में करना था इसलिए जल्द यहाँ से निकलना उचित था। चप्पल स्टैंड में जा कर अपने-अपने चप्पल लिए और टैक्सी में बैठ कर शनि सिंगणापुर के लिए निकल पड़े।      

(अगले ब्लॉग पोस्ट में पढ़िये शनि सिंगणापुर की यात्रा के बारे में)

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