पिछले ब्लॉग पोस्ट "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग - 6" से आगे :-
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श्री राधा गुंजन बिहारी जी, तपोवन, मथुरा |
आज हमारी ब्रज 84 कोस यात्रा की पूर्णता होनी थी। सप्ताह भर पहले जब हमलोग आये थे तो प्रथम दिन की यात्रा की पूर्व-संध्या में हमारे गाइड श्री सोनू कौशिक जी महाराज ने पूछा था कि आप लोग बांके बिहारी जी का दर्शन पहले करके यात्रा प्रारम्भ करेंगे या यात्रा समाप्त करने के बाद। दोनों ही तरह से कर सकते हैं। हमारी यात्रा शनिवार से प्रारम्भ होनी थी और शनिवार एवं रविवार को सरकारी कार्यालयों में बंदी के कारण यहाँ भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है, ऊपर से बांके बिहारी मंदिर में वैसे ही भीड़ होती है। अतः हमने यात्रा के अंतिम दिन ही दर्शन करने का मन बनाया था। इस प्रकार आज ही हमें बांके बिहारी जी के दर्शनों का सौभाग्य मिलने वाला था।
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श्री सीताराम मंदिर, अक्षय वट धाम, ग्राम कजरौठ, मथुरा |
नित्य की भाँति हमलोग होटल से तैयार हो कर निकले और कार में राधा गोविन्द के स्मरण से आज की यात्रा की शुरुआत की। आज का पहला मंदिर स्थित था छाता के तरौली गाँव में।
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स्वामी बाबा मंदिर के बगल में स्वामी बाबा कुंड जिसमें स्नान करने से सारे चर्म रोग दूर होते हैं |
1. स्वामी बाबा का मंदिर - छाता के तरौली गाँव में स्थित यह मंदिर स्वामी बाबा के मंदिर के नाम से जाना जाता है। ये स्वामी बाबा शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिक स्वामी हैं। एक समय में तपस्या से पाए गए वरदान के कारण तारक नाम का असुर बहुत शक्तिशाली हो गया था और आतंक मचाने लगा था। उससे परेशान हो कर देवगण कार्तिक स्वामी के पास पहुँचे जो देवताओं के सेनापति थे और उनसे तारक का संहार करने का अनुरोध किया। कार्तिक स्वामी ने उससे भयंकर युद्ध किया और अंत में इसी मंदिर के बगल में स्थित कुण्ड में तारक का वध किया। इसी लिए इस कुंड को स्वामी बाबा कुंड के नाम से जाना जाता है। यह एक चमत्कारी कुंड है। मान्यता है कि इसमें स्नान करने से सभी प्रकार के चर्म रोग एवं कुष्ठ रोग ठीक हो जाते हैं। विशेष कर सोमवार के दिन स्नान के लिए बहुत भीड़ जुटती है। देवोष्ठान एकादशी के समय प्रत्येक वर्ष यहाँ पांच दिनों का मेला लगता है। तारकासुर के नाम से ही इस गाँव का नाम तरौली पड़ा। इसे स्वामी गाँव के नाम से भी जाना जाता है।
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स्वामी बाबा का मंदिर, ग्राम तरौली, छाता, मथुरा |
हमने यहाँ आकर कुंड का जल शरीर पर छींटा और मंदिर में स्वामी बाबा के दर्शन किये। कुछ स्थानीय युवक कुंड में ऊंचाई से कलाबाज़ी करते हुए कूद कर स्नान कर रहे थे।
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ग्राम तरौली, छाता, में स्वामी बाबा की प्रतिमा |
2. खेलन बिहारी जी का मंदिर - अगला जो स्थान हमलोग गए वह था खेलन वन। यह स्थान कृष्ण बलराम एवं उनके सखाओं के खेलने का स्थान था। जब बलराम जी द्वारका से मथुरा लौट रहे थे तो यहाँ पर रुके थे। जब नाग कन्याओं को पता चला तो वे उनसे मिलने आयीं और कहा कि हमलोग रास नहीं देख पायीं। रास देखने की बहुत इच्छा है। बलराम जी ने कहा कि रास तो मैं भी कर सकता हूँ किन्तु यदि गोपियाँ राजी हों। नाग कन्याओं ने गोपियों को राजी किया और यहाँ एक कुंड में स्नान कर और श्रृंगार कर गोपियाँ तैयार हुईं। इस कुंड को अब बलभद्र कुंड के नाम से जाना जाता है। बलराम जी ने रास प्रारम्भ किया। रास करते करते गोपियों को प्यास लगी तो बलराम जी ने यमुना जी को बुला भेजा जिससे सबकी प्यास बुझे। किन्तु यमुना जी ने बलराम जी के जेठ होने के कारण आने से मना कर दिया। गोपियों ने बलराम जी से चुगली कर दी कि यमुना तो अकड़ से नहीं आ रही। इससे बलराम जी को क्रोध आया और उन्होंने अपने हल की नोंक से यमुना जी को खींच लिया। जहाँ तक यमुना जी को खींचा वह स्थान ओबा है जहाँ ऐंचा दाऊ जी का मंदिर है।
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श्री खेलन वन रमण बिहारी जी महाराज |
यहाँ मंदिर में हमने श्री राधाजी और और श्री खेलन वन रमण बिहारी महाराज की मूर्तियों के दर्शन किये। पुजारी जी ने हमें बैठा कर यहाँ की कथा और महत्ता बताई।मंदिर के बरामदे में एक झूला और यशोदा माँ की मूर्तियाँ भी हैं। जब हमलोग आगे जाने के लिए निकले तो सोनू महाराज जी ने ऐंचा दाऊजी में बच्चों के लिए टॉफ़ी का पैकेट और विहार वन में गायों के लिए गुड़ खरीदवाए।
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श्री खेलन वन बिहारी मंदिर के बगल में बलभद्र कुंड |
3. ऐंचा दाऊजी जी का मंदिर - राम घाट, ओबा में ऐंचा दाऊ जी का मंदिर है। यह वह स्थान है जहाँ तक दाऊ जी ने हल की नोंक से यमुना जी को खींचा था ताकि उनके साथ रास करती गोपियों की प्यास बुझ सके। यहाँ जाने के रास्ते में कई मोर पंछी दिखाई दिये। यह मंदिर पूरा लाल रंग से पुता है। बाहर में एक बड़े पोस्टर पर यहाँ की कथा लिखी है। जब हमलोग यहाँ पहुँचे तो गर्भ गृह का शीशे का दरवाजा बंद था, अतः हमने शीशे से ही ऐंचा दाऊ जी के दर्शन किये। बाहर निकलते ही गाँव के बच्चे पैसा मांगने लगे किन्तु सोनू महाराज जी ने खेलन विहारी मंदिर के बाहर ही उनके लिए टॉफ़ी खरीदवा लिए थे। उनका कहना था की इन्हें पैसे की आदत मत लगाओ। बच्चे पैसे पर ज्यादा जोर दे रहे थे पर हमने टॉफ़ी ही दिया। एक दारु पिया युवक हाथ पैर टेढ़े कर दीनता से पैसे मांगने लगा। बच्चों ने ही कहा यह पिया आदमी झूठ बोल रहा है, इसके हाथ पैर सही हैं। तब हम आगे बढ़ गाड़ी में बैठे। हमारा अगला स्थान था विहार वन।
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श्री ऐंचा दाऊ जी का मंदिर, रामघाट, ओबा |
4. बिहार वन - यह वह वन है जहाँ राधा कृष्ण सखियों संग विहार किया करते थे। कहा जाता है कि यहाँ राधा जी एक छड़ी ले कर श्रीकृष्ण की नृत्य कला की परीक्षा लीं थीं, और श्री कृष्ण डरने की भंगिमा बनाते थे। यहाँ एक सरोवर है जिसमें वे नौका विहार भी किया करते थे। इस पवित्र सरोवर का दर्शन और आचमन किया।
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विहार वन में पवित्र सरोवर जिसमें गोपियों संग श्रीकृष्ण नौका विहार करते थे |
बगल में ही एक मंदिर बना है जहाँ हमने दर्शन किया। मंदिर के बगल में ही एक पुजारी जी पेड़ के नीचे बैठे थे जो गोशाला के लिए चंदा की रसीद काट रहे थे। उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण के समय की गायों की ही वंशज हैं यहाँ के गोशाला की गायें। हमने भी गोशाला के लिए रसीद कटवाए। फिर सोनू जी महाराज हमें गोशाला की ओर ले गए।उनकी सलाह पर हमने खेलन विहारी मंदिर के बाहर ही दूकान से 5 किलो गुड़ ख़रीदा था। वह ले कर गए और गायों को खिलाया। वहाँ के स्वामी जी और एक गोप जी ने भी गुड़ खिलाने में हमारी मदद की। स्वामी जी ने गोप जी को कुछ दान करने बोला और कहा की ये दस ग्वाल बाल हैं, तदनुसार हमने यथाशक्ति उन्हें दिया। स्वामी जी अपनी कुटिया के पास ले गए, हमें बाहर बैठाया और पोहा का प्रसाद खिलाया। फिर हमें एक एक गिलास गर्म दूध भी पिलाया जो बहुत ही स्वादिष्ट था। फिर हमने यथा शक्ति गायों के लिए कुछ दान स्वामी जी को किया।
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विहार वन के मंदिर में श्री राधा कृष्ण की प्रतिमा |
5. अक्षय वट - ग्रामीण इलाकों से होते हुए हमलोग यहाँ ग्राम कजरौठ आये। एक बहुत पुराना वट वृक्ष है यहाँ जिसे अक्षय वट कहा जाता है । यह लगभग 5000 वर्ष पुराना बताया जाता है। यह वट वृक्ष श्रीकृष्ण की कई लीलाओं का साक्षी रहा है। आसपास खेत और गायें चरती दिखीं। कहा जाता है कि इस वृक्ष की चार परिक्रमा करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। तो हमने भी चार परिक्रमा की। फिर बगल के मंदिर में जा कर दर्शन किया जो राम दरबार मंदिर था।
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अक्षय वट, ग्राम कजरौठ, मथुरा |
6. तपोवन - ग्रामीण और कच्चे रास्ते से होते हुए हमलोग तपोवन आये। ब्रज मंडल के चौरासी कोस यात्रा का यह भी एक पड़ाव है। एक बहुत ही शान्त स्थान है यह जहाँ एक श्री गुञ्जन बिहारी जी का मंदिर है। ब्रज के अनेक वनों में से तपो वन भी एक है। यहाँ की महत्ता यह है कि इस स्थान पर गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए तप किया था। जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो बिहारी जी के मंदिर का पट बंद था और भोग लग रहा था। प्रतीक्षा की अवधि में हमने बगल में ही शिव मंदिर में दर्शन किये और मंदिर के बगीचे को देखा। पट खुलने पर दर्शन किये और माथा टेका। पुजारी जी ने हमें भोग की खिचड़ी दी जो मात्रा में ज्यादा ही थी। हमारे दिन का भोजन प्रसाद से ही हो गया। मंदिर में कुछ दान कर हमलोगों ने आँगन में लगे चापानल का पानी पिया। पानी का स्वाद अच्छा लगा तो हमने दो तीन बोतल पानी भर लिया ताकि आगे बोतल खरीदना न पड़े। किन्तु बाद में घंटे भर बाद पानी का रंग भूरा हो गया। शायद पानी में आयरन की मात्रा ज्यादा थी। यहाँ से जब हम निकलने लगे तो याद आया कि मैंने अपने चप्पल अक्षय वट की परिक्रमा के समय जो खोले तो वहीँ भूल गया। चूँकि हमे लौटते समय अक्षय वट के बगल से ही गुजरना था तो सोचा कि देख लेते हैं कहीं मिल जाये। वहाँ जाने पर पूछा तो मंदिर के एक आदमी ने चप्पल को वट के पास से उठा कर मंदिर के बरामदे में रख दिया था ताकि कोई ले कर न चला जाए। तो मुझे चप्पल मिल गए और हमलोग अगले स्थान के लिए चले।
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श्री श्री राधा गुंजन बिहारी, तपोवन |
7. चीर घाट - यह प्राचीन चीर घाट है जो सियारहा बांगर में यमुना नदी के तट पर है। एक चीर घाट वृंदावन में भी है। यह प्राचीन चीर घाट भीड़ -भाड़ से दूर यमुना जी के तट पर है। यहाँ एक कदम्ब वृक्ष के नीचे छोटे से मंदिर में राधा-कृष्ण जी की मूर्तियां हैं। वहीँ आँगन में एक खाट पर चीर (कपड़े के टुकड़े रखे थे). वहीं से हमने चीर ख़रीदे और कदम्ब वृक्ष में बाँधे फिर सोनू जी महाराज के निर्देश के अनुसार वृक्ष की चार परिक्रमा की। चीर घाट यमुना तट पर वही स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण ने वस्त्रहीन नहाती गोपियों को सबक सिखाने के लिए उनके चीर (वस्त्र) चुराए थे। एक पीपल के पेड़ के नीचे बड़ा सा मोर पक्षी बैठा था जिसके फोटो हमने खींचे।
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सियारहा बांगर में प्राचीन चीर घाट |
8. कात्यायनी माता मंदिर - चीर घाट से थोड़ी ही दूर पर प्राचीन कात्यायनी मंदिर है। यह द्वापर युग कालीन मंदिर बताया जाता है अर्थात 5000 वर्ष पुराना। यमुना जी में गोपियाँ नहाते समय बालू से ही कात्यायनी माता की मूर्ति बनाती थीं और उनकी पूजा करती थीं। कहा जाता है कि अभी जो मूर्ति है वह वही बालू की बानी मूर्ति है। हमलोग जब यहाँ पहुंचे तो मंदिर का पट बंद था। हमने बाहर से ही माथा टेका।
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सियारहा बांगर में प्राचीन चीर घाट के पास माँ कात्यायनी का मंदिर |
9. बछवन धाम, सही गाँव - बछ वन धाम वह जगह है जहाँ श्री कृष्ण ग्वाल बाल संग वन में खेलते थे। एक बार ग्वाल बालों ने निर्णय किया कि कल सब कोई अपने घर से कुछ खाने का सामान लाएँगे। सब कोई कुछ ना कुछ लाये किन्तु गरीब मधुमंगल के घर में कुछ न था ले जाने। जब बहुत जिद्द की उसने तो उसकी माँ ने पड़ोस से माँग कर छाँछ ले आयी वह भी कई दिन की खट्टी। सभी बालक खाने का बढ़िया सामान निकालने लगे तो मधुमंगल ने शर्म से खट्टी छाँछ न निकाल कर स्वयं ही छिप कर मुँह में भर लिया। किन्तु श्रीकृष्ण ने देख लिया। वे मधुमंगल के सामने गए और पूछा -"तूने क्या छिप कर मुँह में डाला ?'' साथ ही उसके दोनों फूले गालों पर मुक्का मारा। उसके मुख से छाँछ पिचकारी की तरह निकली और श्रीकृष्ण के चेहरे पर गिरी। श्री कृष्ण ने जीभ से चाट कर उसका स्वाद लिया। ये लीला ब्रह्मा जी दूर से देख रहे थे। उन्होंने सोचा ग्वाल बालों की जूठन खाने वाला कृष्ण भगवान कैसे हो सकता है।
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श्री बछ वन बिहारी मंदिर |
ब्रह्मा ने कृष्ण की परीक्षा लेने का सोचा। श्रीकृष्ण की नजरों से छिप कर उन्होंने ग्वाल बालों और गायों को गायब कर ब्रह्म लोक में छिपा दिया। श्रीकृष्ण सब समझ गए। उन्होंने माया से उसी प्रकार ग्वाल बाल और गायें बना दीं।वे नित्य की तरह घर जाते और अगले दिन गायों को ले कर वन में चराने आ जाते। ब्रह्मा पुनः कृष्ण को देखने इस वन में आये और ग्वाल बालों और गायों को देख कर हैरान हो गए। वे पुनः ब्रह्मलोक की तरफ चले कि देखें मैंने जो ग्वाल बाल और गायें छिपाई थीं वे तो हैं न। किन्तु इस बार श्रीकृष्ण स्वयं ही ब्रह्मा का भेष रख कर पहले ही ब्रह्मलोक में बिराजमान हो गए।जब असली ब्रह्मा पहुंचे तो द्वारपालों ने उन्हें जाने न दिया और कहा ब्रह्मा जी तो अंदर बैठे हैं, तुम कौन से ब्रह्मा हो? जब ब्रह्मा जी ने ब्रह्मा-वेशधारी श्रीकृष्ण को अपनी जगह बैठे देखा तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए क्षमा माँगी। जब श्रीकृष्ण ने देखा कि ब्रह्मा की बुद्धि सही हो गयी है तो उन्हेँ क्षमा कर दिया और ब्रह्मलोक वापस कर दिया। इसीलिए इस गाँव का नाम 'सही' गाँव पड़ा।
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बछ वन बिहारी मंदिर की दीवार पर कृष्ण की बाल लीला का चित्रण |
इन लीलाओं को दर्शाती झाँकियाँ मंदिर के बाहर हैं। प्रांगण में एक तरफ हनुमान जी की मूर्ति है दूसरी तरफ शिव परिवार की। मुख्य मंदिर में बछवन बिहारी जी और राधा रानी जी की मूर्तियाँ हैं तथा चतुर्भज धारी श्रीकृष्ण की भी। बड़ा सा मंदिर का आँगन और मनोरम वातावरण है यहाँ। दर्शन और डोक दे कर हम लोग अगले स्थान के लिए निकले।
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बछ वन बिहारी मंदिर का गर्भ गृह |
10. मनसा देवी मंदिर - ये आटस ग्राम की कुल देवी हैं। जब श्रीकृष्ण ने सभी तीर्थों को ब्रज में आने का आवाहन किया तो माँ मनसा देवी भी आयीं और उन्हें यहाँ स्थान दिया गया। यहाँ श्री अष्टभुजी योगमाया जी भी विराज मान हैं। चैत्र नवरात्री में यहाँ छठ मेला लगता है और पहलवानों के दंगल भी आयोजित किये जाते हैं। यह प्राचीन मनसा मंदिर इस क्षेत्र की जनता के लिए श्रद्धा का केंद्र हैं। ब्रज चौरासी कोस यात्रा का यह भी एक पड़ाव है। हमलोगों ने भी यहाँ दर्शन कर माथा टेका।
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आटस ग्राम में मनसा देवी और अष्टभुजी योगमाया देवी का मंदिर और विग्रह |
11. ठाकुर श्री गरुण गोविन्द देव जी मंदिर - यह मंदिर छटीकरा में है जिसमें विग्रह 5000 वर्ष पुराना बताया जाता है जो भगवान् के प्रपौत्र बज्रनाभ द्वारा स्थापित किया गया है। ग्वाल बालों को श्रीकृष्ण के भगवान होने पर कभी कभी संदेह होता था। तो एक दिन खेल खेल में ही श्रीकृष्ण ने यहाँ पर गरुड़ जी पर विराज मान विष्णु रूप दिखाया जिनकी 12 भुजाएं हैं।
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ठाकुर श्री गरुड़ गोविंद जी महाराज का मंदिर,छटीकरा, मथुरा |
जिन्हें कालसर्प दोष होता है उन्हें यहाँ विधिवत पूजा करने से यह दोष दूर होता है। श्री वृन्दावन धाम के बाहर यह हमारा अंतिम मंदिर दर्शन था। हमने यहाँ दर्शन कर माथा टेका। और श्री वृन्दावन की और चले। अब हमारे मंदिर वृन्दावन में ही दर्शनों के लिए शेष थे।
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ठाकुर श्री गरुड़ गोविन्द जी महाराज |
12. निधिवन - जब हमलोग श्री वृन्दावन धाम पहुंचे तो दिन ही था, तो हमलोगों ने निधिवन जाने का निर्णय लिया क्योंकि संध्या के बाद यह बंद हो जाता है।यमुना जी के किनारे केसीघाट के पास हमलोग गाड़ी से उतरे और ड्राइवर को पार्किंग के लिए छोड़ आगे बढ़े। जैसा कि ऊपर क्रमांक 7 में वर्णन किया है कि सियारहा बांगर में हमने प्राचीन चीर घाट देखा, यहाँ भी चीर घाट है। यहाँ भी कदम्ब का एक वृक्ष है। उसमें भी कपड़े बांधे जाते हैं। यह वृक्ष भी काफी पुराना है बिलकुल कालीदह मंदिर जैसा। वृक्ष के नीचे श्रीराधा-कृष्ण की प्रतिमा भी बनी है। यहाँ प्रणाम कर हमलोग निधिवन की तरफ पैदल चले। चश्में उतार कर पॉकेट में रख लिए।
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केसी घाट के पास चीर घाट, इसी के बगल से निधिवन जाने का रास्ता है । |
श्री सोनू महाराज जी के निर्देशन में हमलोग प्रवेश द्वार से अंदर गए और चप्पलों को नियत स्थान पर रखा। निधिवन में भक्तों के रास्ते नियत हैं और उन रास्तों को जालियों से घेरा गया है ताकि कोई भी निधिवन में खुले में न जाये। क्योंकि निधिवन के वृक्ष पवित्र और पूजनीय हैं, उन्हें कोई क्षति न पहुँचे इसका ध्यान रखा जाता है। संध्या के समय प्रवेश वर्जित है और माना जाता है कि रात्रि में ये वृक्ष श्रीकृष्ण और गोपियों का रूप ले कर रास लीला करते हैं। रात्रि में इसे देखना वर्जित है और जो देखता है उसका अनिष्ट होता है। इस वन के वृक्ष अनोखे हैं, टेढ़े मेढ़े और जैसे एक दूसरे से लिपटे हुए। कुछ की डालियाँ इस गलियारे में भी हैं जिन्हें छूकर भक्तजन प्रणाम करते हैं।
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निधिवन |
निधिवन के इस सुरक्षित गलियारे में एक स्थान पर परम भक्त स्वामी हरिदास का स्थान है जहाँ भक्तजनों की भीड़ माथा टेकने के लिए होती है। वहाँ बैठे पुजारी मोर पंख से सर पर आशीर्वाद देते हैं। स्वामी हरिदास की ही अनन्य भक्ति से निधिवन में बांके बिहारी और राधा रानी मूर्ति रूप में प्रकट हुए और फिर दोनों एकाकार हो कर एक ही विग्रह बन गए। प्रारम्भ में बांके बिहारी जी के इस विग्रह की पूजा निधिवन में ही होती थी जिन्हें बाद में वर्तमान के बांके बिहारी मंदिर में स्थापित किया गया।
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बंसी चोरी राधा रानी, निधिवन |
आगे एक स्थान पर रंग महल है और श्री बंशी चोरी राधा रानी का मंदिर भी है। श्री कृष्ण की बांसुरी हमेशा उनके पास रहती थी और उनके होठों को छूती थी। अतः उनका ध्यान अपनी और खींचने के लिए राधा जी ने उनकी बंसी चोरी कर छुपा दी थी। इसी लीला को स्मरण करते हुए बंसी चोरी राधा रानी का मंदिर यहाँ पर है। निधिवन और बांके बिहारी मंदिर वृन्दावन के सबसे प्रसिद्ध स्थान हैं। ना जाने कब से आस लगाए थे हमलोग यहाँ आने की और बिहारी जी कृपा हुयी तो निधिवन आ कर हमने स्वयं को धन्य माना। यहाँ से निकल कर हमलोग होटल गए और शाम को बांके बिहारी मंदिर जाने का तय किया।
13. बांके बिहारी जी - ब्रज 84 कोस यात्रा लगभग पूरी कर चुके थे। प्रारम्भ में ही तय किया था कि अंतिम दिन बांके बिहारी जी मंदिर में दर्शन करने जायेंगे। हमलोग छः बजे संध्या होटल से निकले और जाने के लिए ऑटो या इ-रिक्शा खोजने लगे परन्तु आज शुक्रवार की संध्या थी और अगले दो दिन ऑफिस की छुट्टियाँ थीं तो दिल्ली और पास के शहरों से भीड़ आने लगी थी। एक तो ऑटो मिले ही न और जो मिलें वो भी अनाप शनाप किराया बोले। महाराज जी भी लोकल होते हुए ऐसा उम्मीद न किये थे। अंततः एक इको कार वाला आया जो पहले तो हमारे बताये किराये पर तैयार न हुआ फिर घूम कर दो सवारी को बिठा कर हमारे पास आया और तब बैठा कर ले चला। बांके बिहारी मंदिर के पास ट्रैफिक बहुत ज्यादा था। दूर में ही गाड़ी वाले को छोड़ना पड़ा और कई भीड़ वाली गलियों और मोड़ों से होते हुए पहुंचे। सबसे पहले महाराज जी ने हमारे चश्में उतरवाए। हमें लगा था की घंटों लगेंगे दर्शन में किन्तु अत्यधिक भीड़ के बावजूद श्री बांके बिहारी जी के दर्शन आधे घंटे में हो गए। दर्शन कर निकले तो महाराज जी हमें पैदल ही गली गलयारों से होते हुए श्री राधा वल्लभ जी के मंदिर ले गए।
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श्री बांके बिहारी जी |
14. राधा वल्लभ जी - जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो श्री राधा वल्लभ जी के दर्शन की प्रतीक्षा में भक्त जन खड़े थे। कुछ देर में पर्दा हटा तो हम सब ने दर्शन किया।यह एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है जिसकी स्थापना संत हित हरिवंश महाप्रभु द्वारा की गयी थी। यह राधा वल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख मंदिर भी है। मंदिर में श्रीकृष्ण की प्रतिमा है। लोक कथा यह है कि यह प्रतिमा किसी ने बनायी नहीं है बल्कि आत्मदेव नामक एक भक्त को उसकी साधना और भक्ति से प्रसन्न हो कर भगवन शिव ने दिया था। जब हरिवंश महाप्रभु देववन से वृन्दावन जा रहे थे तो राधा रानी की प्रेरणा से आत्मदेव की पुत्री का विवाह हरिवंश महाप्रभु से कराया गया। विदाई के समय आत्मदेव ने यह अलौकिक प्रतिमा अपनी पुत्री को दिया जिसे ले कर वे वृन्दावन आये। यहाँ इसकी स्थापना की गयी। कालांतर में हरिवंश महाप्रभु के पुत्र के शिष्य सुन्दरदास भटनागर ने शासन की सहायता से लाल बलुआ पत्थर से इस मंदिर को बनवाया था।
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श्री राधावल्लभ जी, वृंदावन |
15. राधा रमण जी - श्री राधा वल्लभ मंदिर से निकल कर हमलोग गलियों से होते हुए श्री राधा रमण मंदिर आये। यहाँ आकर पाया कि मंदिर का मुख्य द्वार बंद था। लगभग संध्या आठ बजने वाले थे। कोई बोले कि अब सुबह दर्शन होगा जबकि कुछ लोग द्वार के पास सीढ़ियों पर खुलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। महराज जी ने अपने अनुभव के आधार पर कहा कि हमें भी प्रतीक्षा करना चाहिए। लगभग आधे घंटे प्रतीक्षा के बाद द्वार खुला तो हमलोग भीड़ के साथ अंदर गए। गर्भ गृह ऊँचे चबूतरे पर बना है। उसपर श्री राधा रमण के दोनों तरफ बहुत से भोग लगे थे। चबूतरे के किनारे एक बड़ी सी थाल थी जिसमें भक्त जन दान के रूपये रख रहे थे। भीड़ अपरम्पार थी और भक्तजन चबूतरे पर खड़े दो तीन पुजारियों से प्रसाद पाने की इच्छा से हाथ बढ़ा रहे थे क्योंकि कुछ के हाथ में वे प्रसाद दे भी रहे थे। किन्तु कुछ देर वहाँ खड़े रहने पर यह देखा कि जो भक्त सौ, दो सौ या ज्यादा दिखा कर दान कर रहे थे उन्हीं के हाथों में प्रसाद दिया जा रहा था। यह देख कर मुझे लगा कि ये लगा कि आखिर ये पुजारी यहाँ अपनी रोजी रोटी के लिए ही हैं उनसे संतो जैसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।
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श्री राधा रमण जी, वृन्दावन |
यह भी एक पुराना मंदिर है। इस मंदिर को कृष्ण भक्त गोपाल भट्ट गोस्वामी ने बनवाया था जिन्हें गण्डकी नदी में स्नान करते समय शालिग्राम शिला मिली थी। कालांतर में वह शिला मूर्ति रूप में परिवर्तित हुयी जिन्हें हमलोग राधा-रमण जी के नाम से जानते हैं और वही विग्रह इस राधा-रमण मंदिर में स्थापित हैं। श्री राधा-रमण जी के लिए प्रसाद गोस्वामी परिवार के पुरुषों द्वारा ही बनाया जाता है। रसोई में आज भी वही अग्नि प्रज्वलित है जो प्रारम्भ में जलाई गयी थी।
16. गोपेश्वर महादेव - अंत में हमलोग प्रसिद्ध गोपेश्वर महादेव मंदिर गए जहाँ जाने की हमारी हृदय से इच्छा थी। ये वही गोपेश्वर महादेव हैं जो महारास में शामिल होना चाहते थे किन्तु उसमें कोई पुरुष शामिल नहीं हो सकता था। जब महादेव को ललिता सखी ने देखा तो उन्हें यमुना जी के पास भेजा जो उन्हें गोपी रूप दे सकती थी। महादेव ने ऐसा ही किया और गोपी रूप में महारास में भाग लिया। जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो महादेव का संध्या श्रृंगार की तैयारी चल रही थी। चूँकि हमलोग स्नान के पश्चात खाली पेट में ही शिवलिंग या प्रतिमा को छूटे हैं अतः यहाँ सिर्फ दर्शन ही किया हमने। पुजारी जी ने एक एक माला (जो महादेव पर चढ़ा था) हमदोनो पति पत्नी को पहनाया। एक किनारे में श्री हनुमान जी की प्रतिमा थी। उनके दर्शन से हमलोगों ने अपना आज का मंदिर भ्रमण और दर्शन का समापन किया और लौटे।
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गोपेश्वर महादेव, वृंदावन |
श्री सोनू महाराज जी ने कहा कि ब्रज चौरासी कोस की यात्रा हमारी पूरी हुयी जिसके उपरांत यमुना जी के पूजन करना और दक्षिणा देना होता है। किन्तु संध्या के बाद यमुना जी का पूजन नहीं किया जाता अतः कल सबेरे हमलोग यमुना पूजन से यात्रा समापन करेंगे।
यमुना पूजन के साथ ब्रज चौरासी कोस यात्रा का समापन एवं कुछ अन्य स्थानों की यात्रा का वर्णन पढ़िए अगले ब्लॉग पोस्ट "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग -8" में।
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इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
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