Tuesday, January 28, 2025

महाकुम्भ यात्रा -पौष पूर्णिमा और मकर संक्रांति पर शाही स्नान

महाकुंभ में मकर संक्रांति पर त्रिवेणी संगम स्नान
 

             जैसा कि आप सभी जानते हैं कि इस वर्ष 2025 का प्रयाग में लगने वाला कुम्भ, महाकुम्भ है जो 144 वर्षों के पश्चात आता है। प्रयागराज में जब पिछला कुम्भ लगा था तब भी जाने की इच्छा थी पर परिस्थिवश न जा पाया था। अतः इस बार कुम्भ में जाने की इच्छा प्रबल थी। दिसम्बर 2024 में इसकी प्लानिंग शुरू की और सबसे पहले होटल की ऑनलाइन खोज शुरू की। महाकुम्भ 13 जनवरी 2025 से शुरू होने वाला था और शुरू के दो लगातार दिन ही शाही स्नान का दिन था। 13 जनवरी पौष पूर्णिमा और 14 जनवरी मकर संक्रांति के कारण शाही अथवा अमृत स्नान का दिन तय था। दो लगातार अमृत स्नान का दिन होने के कारण मैंने निर्णय किया कि 12 जनवरी को होटल में चेक इन करूँगा और 13 तथा 14 जनवरी दोनों शुभ दिनों को शाही स्नान करूँगा फिर 14 जनवरी को चेक आउट कर वापसी यात्रा करूँगा। 

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 ऑनलाइन होटल काफी महँगे थे। मुझे दो रात के लिए तीन लोगों के लिए एक रूम चाहिए था जो त्रिवेणी संगम के पास भी हो जिससे हमें घाट तक ज्यादा पैदल न चलना पड़े। मैं पत्नी और बेटी के साथ जाने वाला था। अंततः मैंने अरैल की तरफ जो कि यमुना जी की ओर है कुम्भ कैंप में रूम बुक किया जो प्रति दिन लगभग 18000 रूपये की दर से थे। यह नॉन रिफंडेबल था। लोकेशन DPS तिराहा के पास था। 

             जगह मिल जाने पर अब जाने आने का ट्रेन टिकट चाहिए था पर यह मुश्किल साबित हुआ। दोनों ही तरफ का वेटिंग टिकट लेना पड़ा वह भी अपने लोकेशन से करीब 50 - 60 किलोमीटर दूर के स्टेशन से बोर्डिंग का। 9 जनवरी आते आते लगा टिकट कन्फर्म न हो पायेगा। अतः कैंसिल करा दिया। फिर अपने गाड़ी से ही जाने का निर्णय किया यह सोच कर कि ड्राइवर ले लेंगे जिससे सामान के साथ ट्रैन पर चढ़ने उतरने का झंझट न रहेगा। सीधे होटल और वहीँ से वापस। इससे हमलोग 12 जनवरी की सुबह ही चल कर प्रयाग पहुँच सकते थे। जबकि ट्रेन से टिकट 11 जनवरी का था। 

         परन्तु सब कुछ सोचा हुआ तो नहीं होता। हमलोग शाम साढ़े छः बजे जब प्रयाग से लगभग 22 किलोमीटर दूर थे तो प्रयाग में जाने के सरे रास्ते बंद कर दिए गए। स्थानीय लोगों  पूछा तो दो किलोमीटर आगे से एक रास्ता बताया गया। गूगल मैप से जाने का प्रयास किया तो आधे घंटे घुमा कर वापस उसी जगह आ गए। उस जगह कुछ ऑटो वाले थे। पहला ही ऑटोवाला बोला कि अरैल बहुत दूर है। कोशिश करूँगा पहुँचाने की पर जहाँ तक पुलिस वाले जाने देंगे वहाँ तक जाऊँगा। 700 में भाड़ा तय हुआ। हमने सारा सामन ऑटो में लादा और ड्राइवर को गाडी के साथ दो दिन वहीं आस-पास रहने का निर्देश दे कर खाने का पैसा दिया और चल पड़े ऑटो से। ऑटो वाला भी उसी रास्ते से गया जिससे अभी हमलोग घूम कर लौटे थे पर स्थानीय होने के कारण उसे रास्ते की जानकारी थी। करीब चार किलोमीटर चलने पर फिर एक चौराहे पर बैरिकेडिंग थी और घुसने नहीं दे रहे थे। ऑटो वाले ने रॉंग साइड के सर्विस लेन से एंट्री मारी और घुस गया। उसकी चिंता पुल पर घुसने की थी जो सीधे अरैल घाट जाती थी। संयोग से किसी ने उसे पुल पर जाने से न रोका। 

        पुल से उतर कर अरैल घाट तिराहे पर फिर पुलिस वालों ने आगे जाने से रोक दिया। अभी भी तीन किलोमीटर दूर थे कुम्भ कैंप से। अंततः एक पुलिस वाले जो ओहदे में कुछ ऊपर थे उनसे रिक्वेस्ट किया कि कुम्भ कैंप में हमारा रूम बुक है, साथ में महिलायें हैं कृपया जाने दें। उसने कागज़ माँगे। जब हमने दिखाया तो उसे दया आयी और हमें बढ़ने दिया। जब गूगल मैप देखते हुए हमलोग कुम्भ कैंप पहुंचे तो वहां कियारा रेस्टॉरेंट लिखा देखा। अंदर रेसप्शन पर बताया गया कि हमारे लिस्ट में आपका नाम नहीं है। हमने होटल के नंबर पर फोन किया तो एक व्यक्ति आया और कुछ देर आपस में माथापच्ची करते हुए बगल के एक परिसर में में ले गए जहाँ अस्थायी कमरे बनाये गए थे। हमें एक कमरे में घुसाया गया जहाँ चार बेड और चार कम्बल रखे थे। किन्तु देख कर यह स्पष्ट हो रहा था कि कमरे पूरी तरह तैयार नहीं थे। इस कमरे में सब कुछ तो ठीक था पर बाथरूम में शटर नहीं लगा था। यद्यपि कमोड, गीजर और पानी वगैरह था पर शटर लगाने का प्रयास किया जा रहा था। मैनेजर ने कहा कि आपलोग रात का खाना खा सकते हैं कूपन वहीं मिलेगा जहाँ पहले हमलोग पहुंचे थे। पर रास्ते में दिन को हमारा भोजन भारी था तो रात में नहीं खाया। सामने में शटर भी लगवाया। 

कुंभ कैम्प के अस्थायी कमरे, DPS तिराहा के पास, अरैल ।
   

                  अस्थायी कमरे एक लाइन से बनाये गए थे। कमरे की कतारों के बीच में गलियारा था। कमरे की एकमात्र खिड़की गलियारे में ही खुलती थी जिसमें शीशे का स्लाइडिंग शटर था। इससे गलियारे से रूम दिखाई पड़ता था। तो हमने एक कम्बल से खिड़की को अंदर से ढँक दिया और सोने गए। सबेरे तैयार हो कर स्नान पश्चात पहनने के कपडे ले कर होटल से निकले। छः बजने वाले थे। सबसे पहले हमने पास के एक दूकान से चाय पी और पक्की सड़क से नदी किनारे वाले रास्ते पर उतरे। साफ़ सुथरे और लोहे की मोटी चादरों से ढँके रास्ते थे जिस पर यात्री अरैल घाट की ओर जा रहे थे। रास्ते में एक सिद्धेश्वर घाट भी मिला। यहाँ संगम स्नान करते हैं भक्त जन। किन्तु हमलोग आगे अरैल घाट की ओर बढे जो संगम से ज्यादा नजदीक है। करीब तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। यहाँ आकर देखा कि कुछ आगे नाव वाले भी हैं जो बीच संगम में ले जा रहे हैं। हमने पहले तो घाट पर स्नान का सोचा था पर नाव सेवा देखा तो यह बेहतर लगा। 

पौष पूर्णिमा १३ जनवरी को सुबह
अरेल घाट जाने का रास्ता ।
 

        पत्नी और बेटी को एक जगह बैठा कर नाव भाड़े पर लिया और फिर उन्हें बुला कर संगम की ओर चले। ये नाव वाले पहले आपको एक ऐसी नाव पर ले जायेंगे जहाँ एक पंडित बैठे मिलेंगे। एक थाली में तीन नारियल रख कर संकल्प कराएँगे जिसमें दान के रूप में ब्राह्मण भोजन की राशि शामिल होगी। आपसे 1, 3, 5 या 11 ब्राह्मण भोजन का संकल्प कराया जायेगा और प्रत्येक ब्राह्मण भोजन की राशि 501 रूपये होगी। नारियल थाली के 100 रूपये लिए जायेंगे। फिर त्रिवेणी में दूध डालने के नाम पर एक छोटे ग्लास दूध का 100 रुपया भी लिया जा सकता है। अब त्रिवेणी में उतर कर स्नान करें जिसमें पानी  गहराई कमर से भी कम है। स्नान के बाद उसी नाव से वापस लौटते हैं। जब हमलोग लौटे तो भीड़ बढ़ चुकी थी और हमारी नाव को उस जगह आने नहीं दिया गया जहाँ से हम चढ़े थे बल्कि और दूर में उतरना पड़ा। 

13 जनवरी 2025 को त्रिवेणी संगम पर नावों की भीड़
 

            हमलोग पार्किंग के खाली जगह में बैठे और घर से लाया हुआ सूखा नाश्ता किया। वापस पैदल बढ़े। एक जगह फिर चाय पी। दो किलोमीटर पैदल वापस आते हुए पत्नी बेहाल हो गयी। एक इ-रिक्शा जाता हुआ दिखा, पत्नी ने जाने का पूछा तो बचे एक किलोमीटर के लिए उसने प्रति व्यक्ति 100 रूपये माँगा। पत्नी की हालत देख कर मैं राज़ी हो गया क्योंकि उन्हें घुटने की कुछ समस्या थी। जहाँ उसने उतारा वहाँ से 100 मीटर चल कर रूम पर हमलोग आ गए। होटल मैनेजर वहीं था। स्वयं उसने याद दिलाया कि खाने का कूपन हमलोग उस वाले कैंप से ले कर खा लें। पता कर हमने कूपन लिया और खाने वाली जगह पर गए जो एक खुले आँगन में बुफे सिस्टम से था। बढ़िया शाकाहारी भोजन था। उसी कैंप में ठहरे एक दंपत्ति से बातचीत में पता चला की वे लोग तीनों टाइम यहाँ भोजन कर रहे थे। हमलोग तो उस समय खाने के बाद रात में न खा पाए क्योंकि रूम पर आ कर थके हुए सो गए। शाम को सिर्फ चाय पीने निकले और फिर आ कर सो गए।        

14 जनवरी 2025, मकर संक्रांति की सुबह अरेल घाट का रास्ता
  

                सुबह उठ कर फ्रेश हुए और फिर निकल पड़े मकर संक्रांति के शाही स्नान पर। आज 14 जनवरी के कारण पिछले दिन से ज्यादा भीड़ थी। सबेरे हमलोग फ्रेश थे तो अरैल घाट तक 3 किलोमीटर चल लिए परन्तु नाव की खोज में और एक किलोमीटर ज्यादा VIP घाट तक जाना पड़ा। ज्यादा भीड़ के कारण नावों का घाट ज्यादा दूर कर दिया गया था। नाव वालों को भी संगम तक जाने में दूरी बढ़ गयी। यमुना में अभी आधी दूर ही गए थे कि पुलिस वालों ने संगम की तरफ जाने वाली नावों को रोक दिया। संगम पर नावों की भीड़ बढ़ गयी थी इसलिए वहाँ भीड़ कम होने पर ही हमें आगे जाने की अनुमति मिलती। करीब 20 मिनट तक हमलोग बीच यमुना में नाव में बैठे रहे। जब अनुमति मिली तो आगे बढ़े। इस बार उसने हमें सरकार द्वारा संगम पर बनाये गए फ्लोटिंग प्लेटफार्म के पास लाया। फिर वही क्रम चला। प्लेटफार्म पर जाने से पहले पंडितजी द्वारा तीन नारियल के साथ संकल्प, दक्षिणा, आदि तब प्लेटफार्म के दूसरी तरफ उतर कर स्नान किया। फिर वापसी में उसी जगह नाव वाले ने उतारा। जब हमलोग उतरे तो पता चला कि प्रशासन द्वारा अभी नाव सेवा बंद कर दी गयी थी। 

त्रिवेणी संगम पर स्नान के लिए बनाया गया तैरता प्लेटफार्म
और वस्त्र बदलने का रूम ।
 

           हमारी इच्छा अक्षय वट और हनुमान जी के दर्शन की भी थी परन्तु उसके लिए हमें पीपा पुल से उस पार जाना और आना पड़ता जो बहुत दुष्कर लग रहा था। ऊपर से यह भी पता चला कि भीड़ बढ़ने के कारण दर्शन रोक दिया गया है। 

महाकुंभ में मकर संक्रांति पर तैरते प्लेटफार्म से उतर कर
त्रिवेणी संगम में स्नान करते श्रद्धालु ।
 

         कुछ दूर वापसी कर एक खुले पार्किंग में हमलोग बैठे और कुछ साथ में लाये बिस्कुट और सूखा नाश्ता ले कर पानी पिया। वापसी में पुनः अरैल घाट आते आते पत्नी को चलना दूभर हो गया। नदी किनारे के अस्थायी रोड पर इक्का दुक्का चलने वाले इ-रिक्शा से पूछ रही थी। एक रिक्शा पर एक माँ -बेटा रिज़र्व में स्नान से लौट रहे थे, उन्हें दया आ गयी तो हम तीनों को बिठा लिया। भाड़ा रिक्शा वाले ने वही 100 रूपये प्रति व्यक्ति लिया पर आज लगभग इसमें 3 किलोमीटर चले। उतरकर रिक्शा वाले को भाड़ा दिया और उन माँ बेटे को धन्यवाद। रूम पर आये। पत्नी अभी कुछ आराम करना चाह  रही थी पर मुझे लौटने की चिंता हो रही थी। प्रशासन ने सारा रोड बंद कर रखा था। एक पुलिस वाले ने बताया था कि 100 मीटर अंदर मोहल्ले के मोड़ पर ऑटो मिलेगा। होटल छोड़ने से पहले मैं निश्चित कर लेना चाहता था कि मोड़ पर ऑटो है या नहीं ।अतः पहले अकेले ही गया । एक ऑटो देखा, उससे बात की। उसने कहा कि सहसों नहीं जाऊँगा, बस स्टैंड तक चलूँगा । समान और परिवार को लाने में आधा घंटा लगता तो वाह चला गया । चूँकि और एक ऑटो लगा था तो मैंने होटल छोड़ कर छोटी छोटी दूरी की ही सही, ऑटो से जाने का निश्चय किया । होटल छोड़ते समय मैनेजर को फ़ोन किया तो वह बोला आप कमरा खुला छोड़ कर ही चेक आउट कर जायें । किंतु बाहर निकलते ही उससे भेंट हो गई । उसने कहा कि यदि पहले बोलते तो कुछ इंतजाम करता गाड़ी का, फिर एक लड़के को साथ लगाया जो समान को ढोने में हेल्प करता और ऑटो तक पहुँचाता । जब वहाँ पहुँचा तो एक कार के साथ कुछ लड़के खड़े थे जो प्रति व्यक्ति 100 रुपये ले कर बस तक छोड़ने की बात कर रहे थे । उन्ही के साथ चला । रास्ते में उसने बताया कि समान के साथ बस में दिक्कत होगी आगे जा कर ऑटो तक छोड़ देता हूँ जो यमुना पुल तक छोड़ देगा । अतिरिक्त पैसे ले कर उसने ऑटो तक छोड़ा और ऑटो वाले ने पुल तक । अब पुल पर कोई सवारी प्रशासन चलने नहीं दे रहा था ।हमें कम से कम झूसी पहुंचना था जहाँ से सहसों तक जा सकते थे ।पुल पर कुछ मोटर साइकिल वाले थे जो एक एक आदमी को सामान के साथ उस पर पहुँचा रहे थे ।सौ - सौ रुपये ले कर। पर सामान के साथ पत्नी और बेटी को मोटर साइकिल पर बैठाना सही नहीं लगा क्योंकि तीन बक्से और दो बैग थे , गिरने का डर लग रहा था। तो मज़बूरी में पैदल ही चलने का फैसला किया। बक्से में व्हील लगे थे तो उन्हें खींच कर और ठेल कर चले। यात्रा का यही चरण सबसे कठिन था। लगभग दो किलोमीटर चले होंगे हमलोग पुल को पार करने में। उस पार जाकर संयोग से ऑटो मिला जिसने झूसी पहुँचाया फिर झूसी से सहसों दूसरा ऑटो। तो इस तरह हमलोग अपने कार तक आये जिसमें सिर्फ ऑटो मिल जाने पर ही हमलोग खुद को भाग्यशाली समझते थे, पैसे का तो सोचना ही नहीं था। जो भाड़ा माँगा, देना पड़ा। 

                      फोन कर ड्राइवर को गाडी वहीं लाने बोला जहाँ हमें उसने उतारा था। लगभग पाँच बज रहे थे। दिन भर की थकावट थी और चिंता से अब मुक्त हुए तो सबको चाय पीने की बहुत तलब हुयी। आगे जा कर एक ढाबा में चाय पिया फिर सीधे झारखण्ड के लिए निकल लिए। बस एक बार आठ बजे जी टी रोड के एक ढाबा में खाने रुके। आने में कोई परेशानी न हुयी। इस प्रकार हमारी महाकुम्भ की यात्रा पूरी हुई जिसमें हमने पौष पूर्णिमा और मकर संक्रांति के दो पावन दिनों में त्रिवेणी संगम में स्नान किया। कुम्भ जैसे अवसर पर इतना चलना तो पड़ता ही है। 

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