हमलोगों को घृष्णेश्वर पहुँचते संध्या हो चुकी थी। यह जगह महाराष्ट्र के दौलताबाद के पास खुलदाबाद में है। ऑनलाइन होटल बुकिंग की थी, मंदिर के पास देखकर। हॉटल मंदिर के पास तो था पर मंदिर तक सीधा रास्ता न था। मुख्य पथ पर आ कर मंदिर वाली गली में जाना होता था। होटल मुख्य पथ से 300 फ़ीट अंदर था जहाँ तक मूरम सड़क जाती थी। इसलिए होटल खोजने में थोड़ी पूछ ताछ करनी पड़ी। होटल नया ही खुला था और स्टाफ प्रोफेशनल नहीं लग रहे थे। जिस हिसाब से कमरे का रेट था वैसा कमरा नहीं था। हमलोग जल्दी तैयार हो कर पैदल मंदिर के लिए निकले ताकि सबेरे पूजा हेतु जाने में रास्ते का पता रहे और सबेरे के पूजा के लिए पुजारी जी से बात हो जाये। पूछते हुए हमलोग परिसर के प्रवेश द्वार पर पहुंचे। द्वार को रेलिंग से दो भाग में बाँटा गया था। बायीं ओर से प्रवेश और दाहिनी से निकास। प्रवेश द्वार से जा कर हमें कतार वाले कॉम्लेक्स से लम्बा गुजरना पड़ा यद्यपि भीड़ न के बराबर थी। बड़े से नंदी घृष्णेश्वर महादेव के सामने मंदिर में थे। वहीँ पर एक बुजुर्ग पुजारी थे। उनसे स्पर्श पूजा के बारे में पता किया। अलग अलग अभिषेक का रेट बताया गया। हमलोगों ने 2100 वाली पूजा चुनी, रूपये दिए और उन्होंने एक विजिटिंग कार्ड के पीछे लिख कर दिया और कहा कि सबेरे निकास द्वार से ही प्रवेश करना और सीधे आ जाना 5:30 से 6:00 के बीच में। गर्भ गृह में प्रवेश से पहले पुरुषों को ऊपर कपडे उतार खुले शरीर जाना होगा। अभी हमें पूजा नहीं करनी थी, तो गर्भ-गृह के द्वार से ही बाबा का दर्शन कर बाहर परिसर में आये।
सूर्योदय के समय श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर |
इस मंदिर में भी मोबाइल ला सकते हैं पर फोटो लेना मना होता है। पर जब हम लोग परिसर में आये तो हल्की ठण्ड और बिजली की रौशनी में बहुत अच्छा लग रहा था और कुछ लोग फोटो भी ले रहे थे। हमलोग भी कुछ देर एक जगह बैठ कर आनंद लिए और कुछ फोटो भी। अब मंदिर बंद होने का समय हो रहा था। ज्यादा देर होने पर बाहर रेस्टॉरेंट भी बंद हो जाते, इसलिए हमलोग मंदिर से बाहर आये। मुख्य पथ से होटल की तरफ जाने वाले मोड़ पर ही एक बड़ा सा रेस्टॉरेंट था। वहीं पर खा कर हमलोग होटल में आ कर सो गए ताकि सबेरे जल्दी तैयार हो सकें।
सबेरे हमें तैयार होकर मंदिर पहुँचने में 5:45 बज गए। पंडित जी ने कहा 5:30 से ही हमलोग आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, जल्दी से ऊपर के कपड़े निकाल कर आयें। जब हमलोग अंदर गए तो देखा कि पहले से दो यजमान और भी थे। हमारे पूरे परिवार को शिवलिंग के किनारे बिठाया और बाकि लोगों में सिर्फ पुरुषों को और उनके साथ ज्यादा महिला परिवार की थीं तो उन्हें पीछे बिठाया। फिर मन्त्र आदि से स्पर्श पूजा कराई। जलाभिषेक कराया। लगभग 15 मिनट में पूजा समाप्त कर हमलोग निकले। नंदी बाबा की पूजा की। फिर परिसर के बड़े त्रिशूल और पीपल वृक्ष के पास चबूतरे पर भी पूजा की। उसके बाद मंदिर के पीछे की ओर गए जहाँ ज्योतिर्लिङ्ग के अभिषेक वाले जल की निकासी हो रही थी। थोड़ा जल हाथ में लेकर आचमन भी किया। सबेरे का समय था तो मंदिर की दैनिक सफाई शुरू हो रही थी। एक कर्मचारी झाड़ू लगा रहा था तो पत्नी ने उनसे झाड़ू माँग कर स्वयं थोड़ा बुहारा।
अभी भी बाहर सूर्योदय के पहले वाला धुंधलका था। भीड़ -भाड़ ज्यादा नहीं थी। कुछ लोग मोबाइल से फोटो लेने लगे तो एक स्टाफ ने आ कर मना किया। हमलोगों ने भी नजरें बचाकर कुछ फोटो खींचे। हमलोगों का इस यात्रा कार्यक्रम का दूसरा ज्योतिर्लिंग पूजा पूर्ण हुआ और संतुष्ट मन से बाहर निकले। बाहर मुख्य सड़क पर एक दुकान अभी खुल ही रही थी। चाय के लिए हमलोग बैठे। देखा कि नाश्ते के लिए पोहा था और इडली। तो पहले हमने नाश्ता किया फिर चाय पी कर होटल आये। होटल में सामान समेट कर चेक आउट किया फिर अपनी टैक्सी ले कर निकले।
एलोरा गुफाएँ पास में ही थीं तो हमलोग वहाँ गए। गेट के पास कई गाइड खड़े थे और पूछ रहे थे। बिना गाइड के तो इतनी गुफाएँ देखना ठीक नहीं था तो एक गाइड को हमने हायर किया। तब उसने कहा कि यदि किसी को चलने में दिक्कत हो तो आप व्हील चेयर ले सकते हैं। मेरी पत्नी को ज्यादा पैदल चलने में परेशानी थी घुटनो के दर्द के कारण, तो एक व्हील चेयर वाले को लिया। दोनों ने बारह-बारह सौ रूपये माँगे। बहुत कहने पर एक-एक हज़ार में तैयार हुए। जब हमलोग टिकट लेने गए तो मैंने व्हील चेयर वाले से कहा कि भाई तुम्हारा तो डेली का काम है तुम ही गाइड बन जाते हमारा, पर उसने कहा नहीं वही गाइड करेगा। वहीँ जब गुफाएँ और मंदिर के बारे में बताने के बाद अंतिम में गाइड पैसे ले कर चला गया, तब व्हील चेयर वाले ने कहा कि मैं आपको उस गाइड से ज्यादा डिटेल में बताता हूँ, उसे तो इतना मालूम भी नहीं। तब मैंने कहा कि तुम्हें तो पहले ही कहा था कि तुम ही गाइड का भी काम करो, पर माने नहीं। उसने कहा आप पहले ही उसे हायर कर चुके थे, ऐसे में मैं नहीं गाइड कर सकता था। हमें फिर इसी जगह काम करना है।
एलोरा गुफाएँ पश्चिमी घाट के सह्याद्रि पर्वतमाला के चरणार्द्री पर्वत के एक भाग में बनायीं गयी हैं। लगभग 600 ईo से 1000 ईo के बीच पत्थरों को काट कर बनाई गयी ये गुफाएँ उस समय भारतीय पाषाण शिल्प कला का उत्कृष्ट उदहारण हैं जिस समय बाकी की अधिकाँश दुनिया कबीलों की लड़ाई में व्यस्त थी। लगभग 2 किलोमीटर लम्बाई में सीधी खड़ी बैसाल्ट चट्टानों में 34 गुफाएँ हैं जिनमें सबसे पुरानी 12 बौद्ध गुफाएँ (Cave No 1 to 12), फिर 17 हिन्दू गुफाएँ (Cave No 13 to 29) और 5 जैन गुफाएँ (Cave No 30 to 34) हैं। कुछ गुफाएँ अधूरी भी हैं। गाइड ने बताया कि ये अधूरी गुफाएँ ट्रायल के लिए बनायीं गयीं थीं। जब शिल्पकार इससे संतुष्ट होते जाते थे तो इसे छोड़ कर मुख्य बड़ी गुफाएँ बनाते थे। जैसा कि पूरे भारत वर्ष में इस्लामी शासन में मूर्तियों को भंग किया गया था, यहाँ भी औरंगजेब के शासन में गुफाओं में बनी मूर्तियों को तोड़ कर ख़राब किया गया है।
गुफा संख्या 1 सबसे अंत से शुरू होती है। तीन गुफाओं के बाद ऊपर पहाड़ से एक छोटा झरना भी गिरता है जिसके पीछे से सैलानी गुजरते हैं। इन गुफाओं से सटे बाहर में एक गहरा कुंड भी है जिसे लोहे की जाली से ढँक दिया गया है। बड़े हॉल जैसे शानदार गुफाओं में सारी मूर्तियाँ सीधे चट्टानों को उसी जगह पर तराश कर बनाई गयी हैं। न सिर्फ पाषाण शिल्प कला बल्कि कलाकारों की काम शुरू करने से पहले की कल्पना की भी दाद देनी होगी। ये राष्ट्रकूटों के शासन के दौरान बनायीं गयीं थीं।
एलोरा की गुफा संख्या १० (Cave Number - 10) बड़ी और महत्वपूर्ण है। शिक्षण मुद्रा में बुद्ध की बड़ी प्रतिमा एक बड़ी गुफा में है जिसकी छत मेहराबदार और धारीदार है। सामने से सीढियाँ भी बनी हैं ऊपरी बरामदे तक जाती हैं। ऊपरी बरामदे के बीच में और हॉल की बड़ी बुद्ध मूर्ति के सामने एक छोटा सा झरोखा है जिससे सूर्य किरणें हॉल में जाती हैं। गाइड ने बताया कि 10 मार्च को ये किरणें ठीक प्रतिमा के कपाल पर तिलक जैसे पड़ती हैं। उसने अपने मोबाइल से पिछले ऐसे इवेंट की फोटो ली थी जिसे हमें दिखाया।
और सबसे अंत में गुफाओं के बाद हम लोग आये कैलाश रॉक-कट मंदिर में। ये सबसे बाद में बनी (जो गाइड ने बताया) और सबसे उत्कृष्ट शिल्प कला है। Cave Number - 16 के नाम से यह सबसे बड़ी संरचना है। आठवीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण - 1 के शासन में बना यह मंदिर अद्वितीय है। कहा जाता है कि किसी कारण से शिवा भक्त महारानी ने प्रण किया कि जब तक मैं महादेव का मंदिर न बनवा लूँ, भोजन ग्रहण न करुँगी। मंदिर तो इतनी जल्दी बन नहीं सकती थी। तो सबने विचार किया कि मंदिर का शिखर पूर्ण होने पर ही मंदिर पूर्ण होता है तो क्यों न शिखर से ही प्रारम्भ किया जाय। युद्ध स्तर पर पहाड़ के ऊपर शिखर बनाना प्रारम्भ हुआ। तीन दिनों में ही महारानी को दूर से ही मंदिर का शिखर दिखा कर अनशन तुड़वाया गया। बाद में चट्टानों को ऊपर से नीचे की ओर तराश कर मंदिर बनाया गया। विशाल मुख्य द्वार के बाद प्रांगण है जिसमे दोनों साइड में बड़े आकार के हाथी और ऊँचे स्तम्भ बने हैं। दाहिने ओर वाला स्तम्भ कीर्ति स्तम्भ है जो बीस रूपये वाले पीले नोट पर भी अंकित है। मंदिर के दाहिनी दीवार पर छोटे-छोटे रामायण के प्रसंग तराशे गए हैं और बायीं दीवार पर महाभारत के। प्रांगण में प्रवेश करते ही जो सामने मूर्ति दिखती है वह है 'गज-लक्ष्मी' की। सीढ़ियों से प्रथम तल पर चढ़ कर हॉल नुमा मंदिर में प्रवेश करते हैं जिसके अंत में गर्भ गृह है। इसमें एक बड़ा सा शिवलिंग है। पत्थरों को काट कर बनाये गए प्रांगण की बाहरी दीवारों पर भी अनेक मूर्तियाँ बानी हैं। कुल मिला कर यह अप्रतिम है और यह सोच कर कि बिना गलती किये कलाकारों ने ऐसा तराशा है जैसे उन्हें सब कुछ बनावट पता हो और फालतू के पत्थरों को छील कर हटा दिया हो, बस यही मुँह से निकलता है - अद्भुत ! इस मंदिर को हमने पहले बगल से पहाड़ पर चढ़ कर देखा फिर नीचे उतर कर अंदर जा कर। मन उन अनाम कलाकारों को प्रणाम करता है।
एलोरा गुफाओं को देख कर निकलते लगभग डेढ़ बज चुके थे। हमलोगों ने यहाँ से निकल औंधा नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए प्रस्थान किया।
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इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
34. Panchghagh Waterfalls (पंचघाघ झरने), Khunti/Ranchi, Jharkhand
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
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