पिछले ब्लॉग पोस्ट "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग -7" से आगे -
हमारे पथ-प्रदर्शक श्री सोनू कौशिक जी महाराज के निर्देशन में हमारे ब्रज 84 कोस यात्रा के सभी मंदिर एवं स्थान का भ्रमण, दर्शन अथवा पूजन कल ही पूर्ण हो चुका था। अब हमें श्री यमुना जी के पूजन एवं दक्षिणा इत्यादि के साथ इसका समापन करना था। हमें आज ही वापस घर के लिए भी निकलना था। हमलोग प्रतिदिन की भाँति ही आठ बजे तैयार हो कर घर से निकले। महाराज जी ने कहा कि यमुना पूजन से पहले हमलोग वृन्दावन के दो अन्य प्रसिद्ध मंदिरों में दर्शन करने जायेंगे। पहला मंदिर था कात्यायिनी माता का मंदिर।
1. कात्यायनी माता मंदिर - यह वृन्दावन का एक प्रसिद्ध देवी मंदिर है जिसे शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। यहाँ देवी सती के केश गिरे थे। गोपियों ने श्रीकृष्ण पाने केलिए यहाँ तप किया था। उन्होंने यमुनाजी की रेत से माता कात्यायनी की प्रतिमा बनाकर पूजा था। मान्यता है कि जिन कुँवारी कन्याओं के विवाह में देर होता है उनके द्वारा यहाँ पूजन से शीघ्र विवाह होता है। मंदिर का परिसर बड़ा है एवं मंदिर एवं इसका आँगन भी। बंदरों का इतना आतंक है कि मंदिर के आँगन के ऊपर उन्हें रोकने के लिए जालियों से ढंका गया है। हमने गाड़ी से उतरते ही अपने चश्में उतार कर सुरक्षित कर लिए थे ताकि बंदर उन्हें झपट न सकें। माता रानी का दर्शन पूजन कर बगल में ही शिव मंदिर में गए और वहां भी पूजन किया।
2. श्री रंगनाथ मंदिर - इन्हें श्री रंग जी मंदिर भी कहा जाता है। सेठ गोविन्द दास और सेठ राधा कृष्ण दास के द्वारा उनके गुरु और संस्कृत के प्रकांड विद्वान स्वामी रंगाचारी द्वारा दिए गए तमिलनाडु के प्रसिद्ध रंगनाथ मंदिर के नक़्शे के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। भव्य गोपुरम, 60 फ़ीट ऊँचा ताम्बे का ध्वज स्तम्भ, ऊँची चारदीवारी, 21 स्वर्ण कलश और एक सरोवर इस मंदिर को विशाल और भव्य बनाता है। मंदिर का अपना एक बगीचा भी है।
एक लकड़ी का रथ भी है जो वर्ष में एक बार चैत्र मास में ब्रह्मोत्सव पर बाहर निकलता है।हमलोगों ने भगवान् के यहाँ दर्शन किये जिनकी मुख्य प्रतिमा के अतिरिक्त अन्य कई प्रतिमाएं हैं। दर्शन के बाद महाराज जी के कहे अनुसार हमने टिकट ख़रीदा जो नाम मात्र रूपये का था और जिसपर हमने एक संग्रहालय देखा जिसमें पीतल के बड़े बड़े धार्मिक और कलात्मक वस्तुएँ थीं। वहाँ से निकल उसी टिकट पर मंदिर के एक कोने में बने शीश महल को देखा। इसमें दीवारों और स्तम्भों पर विभिन्न रंगीन दर्पणों के अनोखे डिज़ाइन बने थे और इन्हीं के बीच में एक श्री रंगनाथ जी की मूर्ति भी थी।
परिसर साफ़ सुथरा और सुहावना है। सरोवर के किनारे खड़े हो कर दृश्य को निहारना सुहावना लगता है। यहाँ से निकल कर हमलोग यमुना पूजन के लिए चले।
3. टटिया स्थान, वृन्दावन - जब हमलोग यमुना पूजन के लिए निकले तो थोड़ी ही दूर पर टटिया स्थान वृन्दावन था। यहाँ का एक अलग ही महत्व है। यहाँ की व्यवस्था अभी भी आधुनिक लाइफ स्टाइल से दूर रखी गयी है। परिसर में मोबाइल इत्यादि का प्रवेश ही वर्जित है। गेट से अंदर जाने पर देखा कि मंदिर परिसर में पक्की फुटपाथ नहीं है बल्कि रेत मिट्टी जैसा ही पुराना ग्रामीण जीवन है। यहाँ बिजली का भी प्रवेश नहीं है। शाम होते ही पहले की तरह दीपक जलते हैं। असली ज़माने का वृन्दावन यहीं है जहाँ सिर्फ भक्ति की प्रधानता है और कहा जाता है कि अभी यहाँ कलियुग का प्रवेश नहीं हुआ है। यहाँ स्वामी हरिदास जी के शिष्य ललित किशोरी जी ध्यान भजन करते थे। बाद में इसे बाँस से घेरा गया जिससे यहाँ का नाम टटिया स्थान पड़ा। मैंने वहीँ पर माथा टेका और वापस आ गया।
4. यमुना पूजन - यमुना पूजन के लिए महाराज जी हमें यमुना जी के देवराहा बाबा घाट ले गए जहाँ पीपा पुल को पार कर हमलोग यमुना जी के दूसरे किनारे पर गए। वहीँ पर हमने यमुना पूजन का निश्चय किया। कुछ देर में एक और परिवार वहां पूजन हेतु पहुंचे। हवा तेज चल रही थी उस समय। दीपक जलाने में पसीने छूट गए। यमुनाजी का पूजन प्रणाम कर लिए तब महाराज जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि आपकी ब्रज चौरासी कोस तीर्थ यात्रा पूर्ण हुयी। हमने उनके चरण स्पर्श कर प्रणाम किया और उन्हें धन्यवाद दिया कि उन्होंने बहुत ही सहायता पूर्वक, कथाएँ सुनते हुए सुरक्षित रूप से यह बड़ा कार्य संपन्न कराया। जो हो सका यथाशक्ति दान दक्षिणा उन्हें देकर लौटने को हुए।
5. देवरहा बाबा का समाधि स्थल - बगल में ही लम्बी चहारदीवारी देख कर हमने महाराज जी से पूछा तो उन्होंने बताया की यह देवरहा बाबा का समाधि स्थल है। हमलोग यहाँ भी दर्शन कर आते हैं। गाड़ी परिसर के अंदर पार्क कर हमलोग गए। आश्रम जैसा शान्त वातावरण और पेड़ पौधों से भरपूर यह स्थान शान्ति और भक्ति का मिलन स्थल है। एक स्थान पर लगातार भजन चल रहा था। एक दो मंजिला गोलाकार मंदिर में योगिराज देवरहा बाबा की मूर्ति लगी है। माथा टेक कर और कुछ देर बैठ कर हमलोग वहां से निकले।
सप्ताह भर से महाराज जी हमलोगों के साथ दिन-दिन भर भ्रमण किये थे। हम पर उनका अनुग्रह था कि उन्होंने अपने घर पर भोजन के लिए हमें आमंत्रित किया। एक ब्रजवासी ब्राह्मण के घर का भोजन प्रसाद समान होता है। तो हमलोगों ने सहर्ष स्वीकार किया। यात्रा के लिए जो कार था उसे हमने कल ही छोड़ दिया था। नई दिल्ली एयरपोर्ट के लिए महाराज जी ने ही कैब किया था, उसी से हमलोग आज घूम रहे थे। उसी कैब से महाराज जी के घर पर गए। उनके भांजे हर्ष जी भी घर पर मिले जिन्होंने पहले दिन संध्या को प्रेम मंदिर का दर्शन कराया था और ओलावृष्टि तथा वर्षा में हमारे साथ थे। हर्ष जी यद्यपि युवा हैं किन्तु ये भागवत कथा कहते हैं। बिलकुल दिव्य संस्कारी दीखते हैं। गृहस्वामिनी द्वारा बना पराँठा सब्जी पा कर, उनके चरण छूकर हमलोग होटल आये। होटल में भी चेक आउट का समय हो रहा था और हमारे निकलने का भी। जल्दी से सामान होटल से निकाला और महाराज जी को पुनः धन्यवाद देकर हमलोग वापस लौटे।
🙏बोलो वृन्दावन बिहारी लाल की जय ! बांके बिहारी जी की जय ! कृष्ण प्रिया राधा रानी की जय 🙏
इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
34. Panchghagh Waterfalls (पंचघाघ झरने), Khunti/Ranchi, Jharkhand
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
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