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बनारस के इस नंदी जी वाले चौराहे पर आ कर आप आश्वस्त होते हैं कि सही गालियों से बाबा के दरवाजे पर जा रहे हैं |
अगली धार्मिक यात्रा हमने अपनी कार से ही करने की सोची। और इसके लिए हमने चुना बनारस और अयोध्या को। यद्यपि हमारे घर से बनारस की दूरी लगभग 700 किलोमीटर है और 14 घण्टे लगते हैं किन्तु हम चार लोगों में से दो ड्राइविंग कर लेते हैं। आधी-आधी दूरी तक जब दोनों ने ड्राइविंग की तो सुबह के चले हमलोग लगभग नौ बजे रात को बनारस के रेडिसन होटल पहुंचे जहाँ हमारा दो रातों के लिए दो कमरे बुक थे। चूँकि हमारा ड्राइवर नहीं था अतः उन्होंने हमें कार कैंपस के अंदर ही पार्क करने दिया। जब तक हमें रूम दिया गया, हमलोग रिसेप्शन के सामने बड़े हॉल में बैठे जो बहुत प्रभावशाली था।
दो कमरे हमें अगल बगल में दिए गए जो अंदर से जुड़े हुए थे। कमरे बड़े और साफ़ सुथरे थे। चादर, तौलिये सभी बिलकुल साफ़। वाशरूम भी अच्छे थे जिसमें नहाने का भाग ट्रांसपेरेंट ग्लास से घिरे थे। हमलोग लम्बी यात्रा से थके थे तो जल्दी से फ्रेश हुए। दिन का भोजन तो हमने रास्ते में किया था पर रात के भोजन की जरुरत थी। पूछ ताछ किया तो बताया गया कि खाना रूम में सर्व हो जायेगा यदि होटल से आर्डर किया। यदि बहार से आर्डर करेंगे तो लाने के किये नीचे जाना होगा क्योंकि बाहरी को रूम में आने नहीं देते।फाइव स्टार होटल था तो इनका भोजन महंगा था, पर अभी नीचे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। अतः इसी होटल से आर्डर किया। खाना खा कर हमलोग सो गए।
सबेरे उठ कर तैयार हो कर हमें निकलते नौ बज गए। यद्यपि हमारी कार थी पर शहर में घूमने के लिए ऑटो लेना उचित समझा। कहा जाता है कि बनारस में पहले काल भैरव बाबा का दर्शन करना अच्छा है जिन्हें यहाँ का नगर कोतवाल कहा जाता है किन्तु ऑटो वाले ने कहा कि देर हो गयी है, यदि पहले काल भैरव बाबा का दर्शन करेंगे तो शायद बाबा विश्वनाथ के कपाट बंद हो जाएँ। अतः पहले बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए ही चलें। हमने उसकी बात मान ली। ऑटो वाले ने एक जगह ला कर रोक दिया और कहा कि आगे ऑटो जाने पर प्रतिबन्ध है। थोड़ी दूर है पैदल या रिक्शा से चले जाएँ। बादल से दिन ढँका था तो पैदल ही जाने की सोची। रास्ते में एक दो जगह फुहार आयी तो दुकान के आगे रुकते। एक जगह तो वर्षा ही होने लगी। जहाँ हमलोग दुकान के आगे रुके वहाँ सड़क पर वर्षा के छींटे से पैंट का निचला हिस्सा भींग गया। हमें लगा कि रिक्शा ले लेना चाहिए था। अब सड़क से निकल कर गलियों में घुसे तो समझ ही न आये कि किधर जाएँ। लोगों से पूछें तो अलग अलग गली बतायें। एक गली में फूल वाला फूल लेने बुलाने लगा। उसने कहा कि कोई वी. आई. पी. पास लेने की जरुरत नहीं है। ज्यादा भीड़ नहीं है, सामने वाली गली से चले जाइये। हमने कहा कि भाई जरा हमें रास्ता तो दिखा दो। वह भला मानस तैयार हो गया और हमें मंदिर के पास तक ले आया। एंट्री से पहले एक दुकान पर चप्पल और उनके लाकर में मोबाइल रख कर आगे बढ़े। अन्नपूर्णा माता मंदिर के प्रवेश द्वार के बाद ही बाबा विश्वनाथ मंदिर के लिए प्रवेश होता है। जल्दी से जा कर लाइन में लगे। दो लाइन थे, प्रत्येक में लगभग साठ-सत्तर लोग होंगे आगे। आधे घंटे बाद बाबा के ज्योतिर्लिंग के दर्शन हुए। निकल कर आँगन में आये तो एक भगवती का मंदिर, ज्ञान वापी कुआँ और बड़े नंदी महाराज के दर्शन किये जो बाहर विवादित मस्जिद की तरफ मुँह किये थे। प्रांगण के अन्य मूर्तियों और शिवलिंगों के दर्शन कर कुछ देर बैठे फिर बहार निकले। निकलते ही अन्नपूर्णा माता मंदिर में गए, किन्तु पट बंद हो चुका था। बहार से ही प्रणाम किया। इस मंदिर के एक कोने में कुछ लोग नीचे झांक कर प्रणाम कर रहे थे। वहां उपस्थित पुजारी ने बताया की नीचे शिवलिंग है जिनका दर्शन किया जाता है।
बहार आ कर दूकान से हमने अपने फोन और चप्पल लिए और निकले। बहुत भूख लग रही थी अतः एक दूकान में नाश्ता किया और आगे दूसरी दुकान में चाय पी। अब फिर लगभग एक किलोमीटर पैदल या रिक्शा से सड़क पर जाना था। कुछ दूर जाने पर एक आदमी ने ऑटो से ले जाने की बात की। हमने पूछा कि यहाँ तो ऑटो आती नहीं कैसे ले जाओगे ? उसने कहा ऑटो थोड़ी दूर पर है आप वहां खड़ा रहना, ऑटो निकल कर आऊंगा। हमने मान लिया। चूँकि काल भैरव मंदिर भी अभी बंद हो चुका होगा अतः हमने विंध्यवासिनी देवी के दर्शन करना सोचा। गूगल पर एक ट्रेवल एजेंट से बात की, उसने एक जगह पर आने को कहा जहाँ कार वाला हमें उठाता। तो ऑटो वाले से हमने वहीँ ले जाने को कहा। वहाँ से कार ले कर हमलोग विंध्याचल चले जहाँ माता विन्ध्यवासिनी विराजीं हैं। ड्राइवर ने पार्किंग के पास हमें उतारा जहाँ से हमलोग मंदिर की ओर बढ़े। मैं लगभग बीस वर्षों के बाद यहाँ आ रहा था। बिलकुल बदल चुका था तब से। अच्छे रास्ते बन चुके हैं। एक पंडित जी साथ लग गए जिन्होंने ठीक मंदिर के बगल के दुकान से प्रसाद-फूल खरीदवाए और हमे दर्शन करवाया। सड़क के पास आकर देखा कई भोजनालय हैं। एक में जाकर खाना खाया और फिर कार से हमलोग कालीखोह की तरफ निकले। यह एक पहाड़ के नीचे में बना मंदिर है। जहाँ तक गाड़ी जा सकती थी वहाँ गाड़ी खड़ी कर हमलोग बढ़े।
मंदिर तक जाने के लिए करीब डेढ़ सौ कदम चलना पड़ता है। दोनों तरफ दुकानें हैं। एक पेड़ पर हनुमान जी की वेश-भूषा बनाये एक आदमी बैठा था जिसे कुछ लोग पैसे दे रहे थे। एक दूकान वाले ने अंदर चढ़ने वाले प्रसाद दिए। दो प्रमुख मूर्तियां हैं काली की। पहली का दर्शन खिड़की से हुआ, जिनके लिए नियत प्रसाद हमने चढ़ाये। अगली मूर्ती काली की ऐसी थी जिनका मुँह बड़ा सा खोह जैसा खुला था। पुजारी के निर्देश के अनुसार यहाँ का चढ़ने वाला प्रसाद हमने माता के खुले मुंह में ही अर्पित किये। यहाँ से निकल कर कर हमें पीछे के बरामदे से निकलना था जहाँ कुछ और भी देवताओं की मूर्तियां थीं। आँगन में एक कूप था जिसका जल निकाल कर एक महिला पिला रही थी। यहाँ से निकल कर पिछले हिस्से में गए जहाँ भैरो बाबा का मंदिर और हवन कुंड था। वहाँ के लिए प्रसाद दे कर हमलोग मंदिर से बाहर आये।
अगले मंदिर अष्टभुजा काली के लिए हमलोग कार से निकले। यह मंदिर इसी पहाड़ के ऊपर है जहाँ पैदल जाने के लिए भैरो बाबा मंदिर के बगल से सीढ़ियाँ हैं।
कार से जाने का सड़क भी है और रोप वे भी। हमलोग कार से पहाड़ के ऊपर पहुँचे। यहाँ कुछ दुकानें थीं और कार पार्क किये गए थे। हमने सोचा था कि मंदिर बस पहाड़ के ऊपर ही होगा, किन्तु पता चला कि अब सीढ़ियों से उतर कर मंदिर तक जाना होगा। सीढ़ियाँ ऊँची थीं और दोनों तरफ दुकाने थीं। रास्ते में में दर्शन कराने के नाम पर पंडित भी पीछे लगे। अच्छे खासे नीचे जा कर माँ अष्टभुजा का दर्शन किया। वापस चढ़ाई में तो दम फूलने लगा। बीच में रुक कर चाय पी। ऊपर आ कर पार्किंग के पास से नीचे गंगाजी का बहुत सुन्दर दृश्य था। हमने कुछ फोटो खींचे और वापस कार से बनारस निकले।
रास्ते में पत्नी ने बनारसी साड़ी की पूछ ताछ की तो उसने हमें एक दूकान में बैठाया। दाम बहुत ज्यादा लगे तो तो हमलोग निकल आये और ड्राइवर से कहा कि काल भैरव मंदिर जाना है। उसने कहा कि गाड़ी उधर नहीं जाएगी अतः एक इ-रिक्शा में हमें बिठाया, ड्राइवर का पेमेंट कर उसे विदा किया। रिकशा वाले ने जहाँ से उतारा वहाँ से पैदल हमलोग काल भैरव मंदिर गये और दर्शन किया। वहाँ से निकल कर हमने एक इ-रिक्शा किया और एक अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाया। खाने के बाद सबने सामने की पान दूकान में बनारसी पान का मजा लिया और ऑटो कर वापस होटल आये और रात्रि विश्राम किया।
अगली सुबह हमें दो काम करने थे -एक घर के लिए गंगाजल लेना था और बाबा मंदिर के पास प्रसिद्ध कचौरी नाश्ता करना था। होटल के बाहर ऑटोवाले से बात किया तो उसने कहा कि इधर के घाटों तक ऑटो जाना संभव नहीं है तो थोड़ा दूर जाकर कम भीड़ वाले घाट पर ले चलूँगा। उसने ऐसा ही किया पर जाने में टाइम लगा। घाट के पास ऑटो रोका और हमलोग गलियों से हो कर निचे घाट तक पहुँचे। बहुत सारी नावें थीं वहाँ। हमने जल भरा, वापस ऑटो के पास आये तो एक बड़े वट वृक्ष के नीचे पुराना मंदिर था जिसमें जल्दी से पूजा कर ऑटो में बैठे। वहाँ से हमलोग विश्वनाथ मंदिर के पास आये और खोज कर कचौड़ी वाली दूकान पर गए। भीड़ थी। अंदर बैठने की जगह पूरी भरी थी। बाहर ही खड़े खड़े खाया जबकि धूप बहुत कड़ी हो चली थी। भूख भी लगी थी। नाश्ता बहुत स्वादिष्ट था। वहाँ से निकल कर बगल के चौराहे पर ठंडई पी। और एक ऑटो वाले से बात कर होटल के लिए निकले। उसने गलियों से ऑटो को निकाला पर भीड़ भरी सँकरी गालियाँ, ट्रैफिक जाम और गर्मी से हालत पतली थी। होटल वाले से थोड़ा लेट चेक आउट का परमिशन लिया था पर वहाँ पहुँचते पहुँचते ज्यादा ही लेट हो गया। खैर, उसने देर होने का उलाहना दिया पर पैसे वगैरह नहीं मांगे। जल्दी से चेक आउट कर अपना सामान अपने कार में रखा और हम चारों अयोध्या जी के लिए निकल पड़े।
रास्ता बढ़िया था। फोर लेन सड़क थी। गाड़ी चलाने में भी मजा आया और हमलोग शाम पाँच बजे के करीब पहले से बुक किये गए होटल क्रिनॉक्सों (Hotel Krinoscco) पहुँच गए। यह भी बढ़िया होटल था पर रैडिसन से कुछ कमतर। रूम साइज भी कुछ छोटा था तुलना में। जो रूम में इलेक्ट्रिक केतली राखी थी उसका ढक्कन टूटा था। रिसेप्शन के सामने एक ट्रेवल डेस्क था जिसके मैडम ने अयोध्या घूमने के लिए पैकेज टूर की जानकारी दी और अपना कार्ड दिया। रूम में जा कर चाय पी और शाम के बचे समय में कुछ अयोध्या दर्शन करने की सोची। होटल के बहार एक ऑटो ले कर चले। ऑटो वाला एक पुराना कार सेवक था। उसने कई बातें बताईं और हमें सरयू जी के उस घाट के पास ला कर छोड़ा जहाँ सरयू आरती होती है। धीरे धीरे भीड़ बढ़ी। कुछ ठेले वाले भी खाने का सामान बेच रहे थे। शाम गहराते ही सरयू आरती प्रारम्भ हुई। बढ़िया भक्तिमय माहौल था। आरती के बाद पैदल ही हमलोग राम की पैड़ी के बगल से निकल कर सड़क पर आये। भूख लग रही थी तो एक ऑटो वाले के सलाह पर उडुपी नाम वाले एक रेस्टोरेंट में गए जिसके बारे में उसने बोला कि आस पास में यही एक ढंग का होटल है। साधारण भोजन था। अब हमने सोचा कि यहाँ आये हैं तो कम से कम राम जन्मभूमि मंदिर के बाहर से ही दर्शन हों। ऑटो से यहाँ आये। सड़क के दोनों तरफ दुकानों की भरमार थी और उसी तरह फुटपाथ पर भी। राम जन्मभूमि मंदिर परिसर का प्रवेश द्वार भी भव्य और जगमग था। सड़क से तो मंदिर दिखाई नहीं दिया। बस शेड वाली कतार की लाइन थी जो लगभग पौन किलोमीटर तक जाती थी राम मंदिर के पास। अभी तो इतनी लम्बी लाइन लग नहीं सकते थे तो कुछ फोटो खींच कर अगले सुबह दर्शन करने की सोची और होटल लौटे।
पता लगा कि विशेष पास के लिए सबेरे टिकट मिलता है पर लिमिटेड संख्या में। हमें रामजी का दर्शन कर अयोध्या के अन्य मंदिर और जगह भी जाने थे। तो ट्रेवल डेस्क वाली मैडम याद आयी। उससे कल के लिए गाड़ी मांगे जो सुबह सात बजे आता और सबसे पहले हमें सरयू जी का स्नान कराता। अगली सुबह हमलोग सात बजे तैयार हो कर गाडी से निकले। रामजी के दर्शन के बारे में ड्राइवर ने बताया कि विशेष पास के चक्कर में ये लोग प्रति व्यक्ति हज़ार रूपये तक ले लेंगे। सबसे अच्छा है आरती की टिकट ले लो जो फ्री मिलती है नौ बजे से। उसमें थोड़ी देर खड़े हो कर बिना धक्का मुक्की के दर्शन आरती देख सकते हो।
नहाने के लिए राम की पैड़ी में सरयू जी से कुछ समय के लिए बड़े बड़े पंप से पानी फेंके जाते हैं। ड्राइवर ने कहा कि पंप चल रहा होगा तभी नहाना ठीक होगा। जब हमलोग पहुंचे तो पंप नहीं चल रहा था और पता चला कि घंटे दो घंटे बाद चलेगा। मजबूरन हमलोग ठीक बगल के ही सरयू घाट पर गए जहाँ अभी लोग स्नान कर रहे थे। वहीँ हमने स्नान किया और चल पड़े श्री राम मंदिर की ओर। मंदिर गेट के पास काउंटरों में से एक में कुछ लोग लाइन में लगे थे, पता चला कि यहाँ मंगला आरती की टिकट मिलेगी। यह आरती सुबह चार बजे ही होती है। स्पष्ट था कि उन्हें अगले दिन सबेरे दर्शन होता। हमे आज ही दर्शन करना था क्योंकि अगले दिन सबेरे ही हमें वापस घर के लिए निकलना था। एक दूसरे काउंटर पर शयन आरती की टिकट कटनी थी। हम इसी में लगे। आधे घंटे से ज्यादा प्रतीक्षा के बाद काउंटर खुला जहाँ आधार कार्ड के साथ एक पर्ची भर कर देना होता था। निःशुल्क यह टिकट हम चारों को मिला और साढ़े आठ बजे संध्या को विशेष गेट पर आने को बोला गया।
ड्राइवर, जो हमारा गाइड बन चुका था, ने बोला कि राम मंदिर दर्शन में तो देर लगती है तब तक आपलोग अन्य विशेष मंदिरों में दर्शन कर लो, क्योंकि देर होने पर ये बंद हो जायेंगे। राम मंदिर के मुख्य गेट से दाहिनी गली से ले कर वह हमें हनुमान गाढ़ी मंदिर के पास लाया और एक लड्डू-पेड़े वाले दूकान में चप्पलें रखवायीं। उसी दूकान से प्रसाद ख़रीदे और हनुमान गढ़ी मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। यह मंदिर कुछ ऊंचाई पर है। आस पास बहुत सारे बन्दर थे। उन्हें भक्त जन प्रसाद दे रहे थे किन्तु वे कितना खायें। उनके मन भरे थे और प्रसाद नहीं ले रहे थे। अंदर खासी भीड़ थी। लाइन में लग कर हमने हनुमान जी के दर्शन किये। दूकान में आकर हमने कुछ मीठा खा कर पानी पिया क्योंकि सबेरे से हमने पूजा को ध्यान में रख कुछ नहीं लिया था। वहाँ से आगे बढ़े अगले मंदिर के लिए।
अगला मंदिर था दशरथ महल। चक्रवर्ती महाराज दशरथ का भव्य महल है। प्रवेश द्वार के अंदर आँगन जैसा है जिसके बाद एक और दीवार है। इस आँगन में दाहिनी ओर संकटमोचन मंदिर है और बगल में चप्पल स्टैंड। चप्पल उतार कर हमलोग अंदर वाले आँगन में गए। सामने भवन में राम जी के सभी भाइयों सहित विग्रह है। बायीं दीवार पर एक बड़ी सी पेंटिंग है जिसमे राजा दशरथ चारों पुत्रों सहित विराजमान हैं। हमलोगों ने दर्शन कर फोटो वगैरह खींचे। फिर बाहर आँगन में आकर संकटमोचन हनुमानजी के दर्शंनकर अपने अपने चप्पल लिए और बाहर निकले। धूप काफी तीखी थी। हमलोग अगले मन्दिर कनक भवन की ओर चले। यह भवन सीता-राम जी का निवास था।
यह एक सुन्दर भवन है। सामने एक फव्वारा बना है जिसमे पीले वस्त्रों में एक मूर्ति के सर पर डाला जैसा रखा है। प्रवेश तक जाने के लिए बीस सीढ़ियाँ चढ़नी होती है। सीढ़ियों के नीचे ही हमने चप्पल खोले और चढ़े। धूप में पत्थरों की सीढ़ियाँ गर्म हो चली थीं। अंदर एक बड़ा सा आँगन था जिसके चारों तरफ दो मंजिले भवन थे। सामने वाले बारामदे के पास गर्भ गृह था जिसके बाहर सुन्दर नक्कासी है। मंदिर में सीता-राम जी की सफ़ेद मूर्तियाँ हैं। प्रणाम कर चारों तरफ घूमे और फोटो खींचे। फिर कुछ देर एक जगह बैठे। यहाँ से हमलोग निकले तो गलियों में बिक रहे पापड़ी चाट खाये। वापस श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के गेट तक आते अब किसी में हिम्मत न बची थी की श्रीराम जी के दर्शन के लिए घंटों लाइन में लगते। ड्राइवर ने कहा कि शयन आरती में ही दर्शन कर लेना क्योंकि अभी अयोध्या के अन्य स्थान पर भी जाना है। अभी होटल में जा के आराम कर लो फिर एक बजे निकलेंगे। होटल जाने से पहले हमलोगों को भोजन करना था। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का गेट जिस सड़क पर है वहाँ सामने खाने के लिए कई अच्छे रेस्टोरेंट हैं। हमने उडुपी रेस्टोरेंट में खाना खाया और वापस होटल में आ कर कुछ देर रेस्ट किया।
तय समय पर हमलोगों ने ड्राइवर को कॉल किया और लगभग डेढ़ बजे कार से निकले। पहला जो स्थान हमलोग गए वह था 'गुप्तार घाट' । यह सरयू नदी के किनारे ही एक घाट है। यहाँ पर नदी चौड़ी और भरा पूरा पानी था। कई नाव वाले थे। इस घाट की महत्ता यह है कि जब राजा रामचंद्र ने अपनी अवतार लीला पूर्ण की तो उन्होंने सारे अयोध्यावासियों के साथ इसी घाट पर जल-समाधि ले ली और लीला समाप्त की।
घाट के पास एक बहुत पुराना मंदिर भी है जहाँ राम-जानकी की प्रतिमा है। चरण पादुका मंदिर, नृसिंह मंदिर और हनुमान मंदिर भी यहाँ हैं। हमने वहाँ दर्शन किया और पंडित जी से कथा सुनी। मंदिर के बहार आ कर घाट के तरफ गए जहाँ बहुत सी नौकाएँ लगी थीं और नाव वाले बोटिंग के लिए पूछ रहे थे। अभी भी धूप तीखी थी इसलिए एक शेड वाली नौका हमने चुनी और बोटिंग पर गए। यह एक मोटर बोट थी। बोटिंग में अच्छा लगा। आधी नदी के बीच से घुमाकर लाया। बोटिंग से निकल कर हमलोग पुनः कार में आये और अगले मंदिर के लिए निकले।
अगला मंदिर पहुँचने में लगभग एक घंटे लग गए जो सोहवाल क्षेत्र में नंदीग्राम में था। यह मंदिर था 'श्री भारत हनुमान मिलन मंदिर'।छोटा किन्तु सुन्दर मंदिर है। अंदर गर्भ गृह में भारत-हनुमान जी का गले मिलते संगमरमर की मूर्ति थी। एक और मूर्ति थी लव-कुश की जो अश्वमेध यज्ञ के घोड़े के साथ थी। उसी परिसर में गेट के पास ही एक दक्षिणमुखी प्राचीन श्री भारत गुफा भी है। गुफा द्वार के ठीक पहले ही एक कमरे में कुछ लोग राम-नाम संकीर्तन कर रहे थे। मेरी पत्नी ने भी पाँच मिनट वहां बैठ कर कीर्तन किया। फिर भरत-गुफा में गए जहाँ भरत जी की मूर्ति और राम जी की चरण पादुका के दर्शन हुए। जैसा कि हमलोग जानते हैं कि जब श्रीराम वन को गए तो भरतजी अयोध्या नहीं गए बल्कि श्रीराम-पादुका को यहीं नंदीग्राम में सिंहासन पर रख कर राज-काज देखते रहे। इस मंदिर परिसर से निकल कर हमलोग बगल के मंदिर परिसर में गए जहाँ लिखा था "योगिराज श्री भरत जी का प्राचीन मंदिर''। इस स्थान का नाम एक बोर्ड पर भरत कुंड लिखा था यद्यपि आसपास कोई कुंड नहीं मिला, किसी ने बताया की अब कुंड सूख गए सिर्फ नाम है। इसी बोर्ड पर लिखा है कि इस मंदिर की स्थापना महाराजा विक्रमादित्य द्वारा की गयी है तथा यहाँ श्रीराम चरण पादुका, भरत गुफा, राम-भरत मिलाप, बाण से गिरे हनुमान, नंदीश्वर महादेव, भरत हनुमान वट वृक्ष मिलन एवं श्रीकल्कि दरबार मंदिर हैं। मंदिर के सभी मूर्तियों के दर्शन किये। मंदिर की दीवार पर रामायण से सम्बंधित भित्तिचित्र भी हैं।
अब हमें अगले मंदिर जाना था जो था सूर्य कुंड। वहां जाने में हमें लगभग आधे घंटे लगे। यह एक बड़ा सा तालाब है जिसके पास सुन्दर गार्डन और मंदिर है। इसका अच्छा डेवेलपमेंट किया गया है। बहार में कार पार्किंग की सुविधा है। टिकट लगता है जिसमें सूर्य कुंड के ऊपर लेज़र लाइट शो दिखाया जाता है।
टिकट ले कर अंदर गए जहाँ गार्डन था और रिवॉल्विंग सेल्फी स्टैंड वाले कई फोटोग्राफर थे। हमलोग अंदर सूर्यकुंड के पास गए और सूर्य मंदिर में प्रणाम किया। बताया गया कि लेज़र शो शाम साथ बजे से शुरू होता है जब सूर्यास्त हो जाता है। अभी बहुत समय था शो शुरू होने में, लगभग एक घंटे।
एक बार मन किया कि इतना वेट करने से अच्छा कि निकल चलें। पर जाते कहाँ, शयन आरती की तो नौ बजे से एंट्री थी। समय बिताने के लिए कुंड की सीढ़ियों पर बैठे और मछलियों को आटा खिलने लगे। उनका झुण्ड आटे की गोलियों पर झपटता था तो देखने में अच्छा लागता था। फिर मन भर गया तो बगल में पार्क की घास पर बैठ गपशप किया।
आखिर लेज़र शो का टाइम होने लगा तो हमलोग उन सीढ़ियों की तरफ गए जहाँ से शो बढ़िया दिखता। सौ के आसपास दर्शक जुटे होंगे। यूट्यूब पर लेज़र शो का एम्बेडेड लिंक दे रहा हूँ यहाँ।
आधे घंटे बाद शो ख़तम हुआ। निकलते समय गेट के पास काफी भीड़ हो गयी थी। ड्राइवर को फोन कर अपनी लोकेशन बताया, और उसके आने के बाद कार से हमलोग वपस अयोध्या चले।
अयोध्या में जिस गेट से शयन आरती के लिए एंट्री होनी थी वहाँ तक कार से जाने के लिए सँकरी सड़कों का सहारा लिया गे क्योंकि मुख्य सीधे रास्तों में नो एंट्री होती है। गेट से 200 मीटर दूर ड्राइवर ने गाड़ी खड़ी की और हमे एक ड्राप गेट के पास से गेट की तरफ जाने कहा गया। गेट के पास सुरक्षा कर्मियों एवं पुलिस द्वारा पर्चियाँ ली जा रही थीं और प्रतीक्षा करने कहा जा रहा था। लगभग घंटे भर प्रतीक्षा पड़ी तब गेट से एंट्री होनी थी। गेट से घुसते ही मोबाइल वगैरह जमा करने का लाकर था जिसमे जमा कर आगे बढ़े। आगे एक जगह पुलिस द्वारा बॉडी सर्च किया जा रहा था और आधार कार्ड माँगा जा रहा था। चार में से दो के पास तो आधार की हार्ड कॉपी थी पर बाकि दो के आधार मोबाइल में ही थे जो लाकर में थे। खैर यही बता कर हमे अंदर जाने दिया गया। जवान लोग तो तेजी से जा कर ऊपर आरती की लाइन में लग गए हमलोगों को चलने और सीढ़ियां वचढ़ने में कुछ देर हुई तो पीछे ही लगे। पीछे लगने से दिक्कत यह होती है कि आगे के लम्बे लोगों से देखने में परेशानी होती है। फिर भी लगभग १५ मिनट का समय मिला और हमलोगों को शयन आरती में श्रीरामजी के अच्छे से दर्शन हो गए। वहाँ से निकल कर जब हमलोग कार में बैठे तो ड्राइवर वापस होटल ले जाने लगा किन्तु पौने ग्यारह बजने जा रहे थे और होटल में अभी खाना मिलता नहीं। भूख भी लग रही थी। उसने उन्हीं संकरे सड़कों से मंदिर के मुख्य गेट से थोड़ी दूर गाड़ी रोकी और हमे खा कर आने कहा। यहाँ मुख्य पथ पर रेस्टोरेंट अभी खुले थे। एक में जाकर भोजन किया और वापस होटल लौटे। ड्राइवर को तय भाड़े के अलावा 500 रूपये और दिए क्योंकि एक तरह से उसने गाइड की तरह हमें सब जगह घुमाया।
होटल में आ कर रात्रि विश्राम किया और सबेरे 6 बजे अपनी कार से वापस घर के लिए निकले। लगभग 725 किलोमीटर की दूरी तय कर रात्रि दस बजे हमलोग अपने निवास स्थान पहुँचे। ईश्वर को धन्यवाद कि हमारी सफल और सुरक्षित यात्रा रही। जय श्री राम।
इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
34. Panchghagh Waterfalls (पंचघाघ झरने), Khunti/Ranchi, Jharkhand
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
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