पिछले ब्लॉगपोस्ट "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग - 4" से आगे :--
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जल महल, डीग में अकीक पत्थर के बने हनुमान जी |
अब तक हमारी चार दिनों की यात्रा पूरी हो चुकी थी अर्थात ब्रज चौरासी कोस यात्रा की लगभग आधी अवधि पूर्ण हो चुकी थी। स्नान कर तैयार हो कर हमलोग महाराज जी के साथ गाड़ी से आज की यात्रा पर निकले। प्रतिदिन की भांति "गोविन्द मेरो हैं, गोपाल मेरो हैं" भजन के साथ भक्ति भाव से यात्रा प्रारम्भ की। महाराज जी ने कहा कि आज दूर भी जाना है और ज्यादा जगह भी जाना है जिसमें आदि बद्री, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री सहित अनेक स्थान होंगे। इसी कारण आज वापस आने में कम से कम संध्या आठ बज जाएगी।
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डीग क्षेत्र में उपले भंडारण हेतु सुरुचिपूर्ण एवं स्वच्छ निर्माण ये बरबस ही ध्यान आकर्षित करते हैं |
जैसा कि पहले भी लिख चुका हूँ कि ब्रज भूमि का विस्तार आज के राजस्थान और हरयाणा के कुछ भाग में भी है। आज हमें सबसे पहले डीग, राजस्थान ही जाना था। महाराज जी ने कहा कि जाने में तो समय लगेगा ही, वहाँ की आबादी ऐसी है कि बिना प्याज लहसुन का कोई भोजन या नाश्ता मिलना मुश्किल है। महाराज जी कभी भी लहसुन प्याज नहीं खाते और हमलोग भी तीर्थ यात्रा पर थे तो लहसुन प्याज नहीं खा रहे थे। वृन्दावन में अधिकांश होटल वाले वैसे भी बिना लहसुन प्याज का ही भोजन बनाते हैं, तो वहाँ समस्या नहीं थी। अतः नेशनल हाईवे पर पहुँच कर महाराज जी ने पहले नाश्ता कर लेने का ही सुझाव दिया। एक नाश्ते वाली होटल में खड़े-खड़े ही कचौड़ी जलेबी हमलोगों ने खाई और फिर गाड़ी से निकल चले।
1. जल महल, डीग - सबसे पहले हमलोग डीग के जल महल के प्रवेश के पास पहुंचे। गाड़ी मुख्य सड़क पर ड्राइवर को रखने बोल कर हमलोग पैदल ही पहुँच पथ से प्रवेश द्वार की ओर गए। यहाँ कुछ सुरक्षा कर्मी थे। एक तरफ टिकट का भी काउंटर था किन्तु महाराज जी ने कहा कि टिकट जल महल के म्युसियम के लिए लगता है, परिसर में फ्री घूम सकते हैं। म्युजियम में हमें ज्यादा देर भी लगेगी और हमारी यात्रा का भी भाग नहीं है, ऊपर से आज ज्यादा जगह जाना भी है। तो बिना टिकट लिए हमलोग भीतर गए। सैंड-स्टोन से बने महल प्रभावशाली हैं। महाराज जी हमें महल के एक हिस्से में ले गए जहाँ एक हनुमान जी का मंदिर था।
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राजस्थान के डीग का राजभवन जिसे जल महल के नाम से जाना जाता है, राजा सूरजमल द्वारा निर्मित |
यह हनुमान मंदिर लगभग 450 वर्ष पुराना है तथा इसकी विशेषता यह है कि लगभग पाँच फुट ऊँची हनुमान जी की प्रतिमा हक़ीक़ पत्थर से बनी है जिसे अफगानिस्तान से मंगाया गया था। इसे महाराज सवाई ब्रजेन्द्र सिंह द्वारा बनवाया गया था। अन्य हनुमान जी की प्रतिमा लाल रंग की होती है परन्तु यहाँ हक़ीक़ पत्थर वाली प्रतिमा अपने वास्तविक स्वरुप में है। यह पत्थर रत्न की तरह धारण किया जाता है जिससे जीवन की समस्याएँ दूर होती हैं तथा मनोकामना पूर्ण होती है। दूर-दूर से भक्तजन एवं पर्यटक इसे देखने आते हैं। दर्शन कर एवं सर टेक कर हमलोग अगले मंदिर के लिए निकले।
2. लक्ष्मण मंदिर, डीग - जलमहल से निकल हमलोग मुख्य पथ पर आये। सामने एक चौराहा है जहाँ काफी ट्रैफिक रहती है। सोनू जी महाराज के मार्दर्शन में हमलोग पैदल ही लगभग 200 मीटर चल कर श्री लक्ष्मण जी मंदिर के सामने पहुंचे। मंदिर जाने के लिए लगभग दो मंजिले जितनी सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। यह एक 400 वर्ष प्राचीन मंदिर है जो श्री राम जी के छोटे भाई श्री लक्ष्मण जी के लिए है। यहाँ एक हनुमान जी का भी मंदिर है। दोनों जगह डोक लगा कर अर्थात माथा टेक कर हमलोग नीचे सड़क पर आये जहाँ एक जूस वाले से सबने जूस पिया और अगले स्थान के लिए निकले।
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लक्ष्मण मंदिर, डीग |
3. आदि बद्री और तपो सरोवर, ब्रज - श्रीलक्ष्मण मंदिर से हमलोग गाड़ी में बैठ कर आदि बद्री के लिए निकले। यह रास्ता जंगलों, पहाड़ों एवं बहुत कम आबादी वाले क्षेत्र से हो कर था जहाँ मोबाइल का कोई नेटवर्क नहीं पकड़ रहा था। अगर कोई गाँव रास्ते में मिलता तो उपले रखने का उनका तरीका जरूर ध्यान आकर्षित करता। उन्हें ये लोग झोंपड़ी का आकार दे कर रखते हैं जिससे बरसात में वे गीले ना हों।
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आदि बद्री, ब्रज (भरतपुर), राजस्थान |
जब हमलोग आदि बद्री पहुंचे तो ग्यारह से ऊपर बज चुका था। परिसर में आदि बद्री मंदिर थोड़ी ऊंचाई पर है। लगभग 15-16 सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। इन सीढ़ियों तक पहुँचने से पहले बायीं तरफ एक छोटा तालाब या कुंड है जिसे तपो सरोवर कहा जाता है। माना जाता है कि इस सरोवर का निर्माण स्वयं भगवान बद्रीनाथ ने किया था। ऋषियों की तपोस्थली भी थी यह। कुछ सीढ़ियाँ उतर कर सरोवर तक गए और आचमन किया। देखा कि इसमें कुछ कछुए भी थे।
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तपो सरोवर, आदि बद्री, ब्रज, राजस्थान |
इसके बाद हमलोग आदि बद्री मंदिर गए जहाँ भगवान् बद्री नारायण, नर और उद्धव जी के दर्शन किये। पुजारी जी ने कहा कि भगवान् का भोग बंट रहा है आपलोग पा कर जाओ। हमलोग मंदिर के पीछे भाग में गए जिधर रसोई था। वहाँ से थाली-ग्लास ले कर आये और बारामदे में बंट रहे खिचड़ी ले कर बगल में ही पालथी बैठ कर खाये। खाने के बाद हमने कुछ रूपये भोग बाँट रहे व्यक्ति को देना चाहा तो उसने लेने से मना किया। बोला कि हमलोग मंदिर के सेवादार नहीं हैं बल्कि पास के गाँव के रहने वाले हैं, छोटी मोटी सेवाएं भक्तिभाव से करते हैं। हमने मंदिर में कुछ रूपये दान किये जिसका रसीद मिला। भोग से तो हमलोगों का दिन का भोजन ही हो गया।
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आदि बद्री, डीग के मंदिर में नर, बद्रीनारायण और उद्धव जी का दर्शन |
इसके बाद हमलोग गाड़ी से ही कुछ आगे एक ऊंचाई पर मंदिर में गए जहाँ यमुनोत्री और गंगोत्री देवियों के मंदिर थे। ये मंदिर एक ऊँचे टीले पर थे जहाँ तक गाड़ी जा सकती थी किन्तु हमें गाड़ी नीचे ही रखने बोला गया क्योंकि ऊपर ज्यादा जगह नहीं थी और वहां मंदिर की गाड़ियां थीं। यहाँ दो नदियों का उद्गम होता है जो गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रतिनिधित्व करते हैं, किन्तु अभी इनमे जल नहीं था। वहाँ से पीछे दो पहाड़ दाहिनी और बायीं ओर दिखाई दिए जिन्हे नर और नारायण पर्वत बताया गया। उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम में भी नर -नारायण पर्वत है। यहाँ जिस नर-नारायण पर्वत को दिखाया गया उनके बीच में एक और पर्वत-रेखा दिखाई पड़ रही थी जिसे गणेश जी बताया गया क्योंकी यह गणेश जी की सूंढ़ की तरह लग रही थी। महाराज जी ने नीचे एक बड़ी शिला दिखाई और बताया कि इस पर चढ़ने से यह हिलता है जिस कारण इसका नाम लक्ष्मण झूला पड़ा। इन मंदिरों में डोक लगाकर हमलोग पहाड़ी से नीचे उतरे।
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गंगोत्री एवं यमुनोत्री देवी की प्रतिमा, उपर दायें-नर-नारायण पहाड़ एवं बीच में गणेश पर्वत ब्रज (डीग) में चारधाम |
फिर गाड़ी में बैठकर हमलोग कुछ किलोमीटर और आगे गए। यह जगह हरिद्वार का प्रतिरूप है। यहाँ एक मनसा देवी का मंदिर है। एक महादेव मंदिर है जिन्हें हरकेश्वर महादेव कहा जाता है। बगल में ही एक छोटा सा कुण्ड बना है किसे हर की पैड़ी ब्रह्म कुंड बोला जाता है। परिसर में एक वृक्ष है जिसके तने में एक मोटा जड़ टेढ़ा हो कर गणेशजी की सूंढ़ की तरह बन गया, अतः इसे गणेश जी का स्थान बनाया गया है। यहाँ सभी देवी देवताओं को प्रणाम कर हमलोग अगले स्थान के लिए निकले।
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ब्रज (डीग) में हरिद्वार जहाँ मनसा देवी, हरि की पैड़ी हरकेश्वर महादेव और ब्रह्म कुंड |
4. ब्रज केदारनाथ - ब्रज 84 कोस यात्रा के अंतर्गत हमलोग राजस्थान के जिस भाग में आये थे यह कामां अर्थात काम्यवन कहलाता है जो कि ब्रज के 12 वनों में से एक है। यहाँ बिलोंद गाँव के निकट एक पर्वत पर ब्रज के केदारनाथ स्थित हैं। इन्हीं केदारनाथ के दर्शन हेतु हमलोग यहाँ आये। पर्वत के रास्ते जाने से पहले एक मंदिर परिसर है जिससे होकर पर्वत शिखर पर केदारनाथ तक जाते हैं। मैं और महाराज जी तो पैदल ही चढ़े किन्तु पत्नी के घुटनों में दर्द के कारण उन्हें डोली से जाना पड़ा। डोली वाले मौजूद रहते हैं। एक आदमी के लिए डोली का भाड़ा 1500 रूपये लिए गए। दो आदमी इसे उठाते हैं। धूप और गर्मी में अकेले पैदल चढ़ना ही मेहनत का काम है, डोली उठा कर चलने में तो कहना ही क्या। लौटते समय वे दोनों मिन्नतें करने लगे कि अधिकतर पैसे तो ठीकेदार ही ले लेते हैं, हमें अलग से कुछ दे दो। अतः पत्नी ने उन्हें 500 रूपये और दे दिए।
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ब्रज केदारनाथ, डीग, राजस्थान |
ऊपर दो चट्टानों के बीच एक संकरी जगह में भगवान केदारनाथ का शिवलिंग है। जहाँ बैठ कर और खिसक कर आगे निकलना होता है। ऊपर में एक चट्टान है जो बासुकी नाग स्वरुप हैं। बगल में ही एक बड़ा चट्टान नंदी स्वरुप हैं। लगभग 450 सीढ़ियाँ चढ़ कर यहाँ तक पहुँच कर हमने बाबा केदारनाथ की पूजा की। कुछ देर ऊपर रह हर फोटो वगैरह लिया। फिर वापस नीचे आये। नीचे मंदिर परिसर में वाश-रूम अच्छी स्थिति में नहीं हैं। दो झूले लगे हैं। हमलोग थकान मिटाने थोड़ी देर झूले पर बैठे फिर गाड़ी में बैठने परिसर के गेट पर आये। देखा गन्ने का जूस मिल रहा था, तो सबने बड़े-बड़े ग्लास में गन्ने का रस पिया। पीने के बाद ताजगी महसूस हुई फिर निकले।
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डोली से ब्रज केदारनाथ की चढ़ाई |
5. चरण पहाड़ी - कामवन में ही ग्राम भूड़ाका पहुंचे जहाँ चरण पहाड़ी मंदिर है। यहाँ भी कुछ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर में लगे बोर्ड के अनुसार लुक लुक कुंड में ग्वाल बालों के साथ लुका छिपी खेलते भगवान एकाएक अंतर्धान हो गए। ग्वाल बालों के बहुत खोजने पर भी जब वे न मिले तो ग्वाल बाल प्राण त्यागने लगे। तभी श्रीकृष्ण ने यहाँ एक पत्थर पर खड़े हो कर बंशी बजायी जिसे सुनकर न सिर्फ ग्वाल बाल बल्कि तीनो लोक मोहित हो गए। बंशी की मधुर धुन से वह पत्थर भी द्रवित हो गया जिस पर वे खड़े थे और उस पत्थर पर उनके चरणों के चिह्न बन गए जो आज तक हैं। यहाँ इन चरण चिह्नों के दर्शन पूजन किये जाते हैं जिससे पाप नष्ट होते हैं और भगवान के परम धाम की प्राप्ति होती है।
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शिला पर अंकित श्रीकृष्ण के चरण चिह्न, चरण पहाड़ी मंदिर, डीग,राजस्थान |
पहाड़ी पर इन चरण चिह्नों के बगल में श्रीराधा बिहारी जी का मंदिर और भोले नाथ का भी मंदिर है। यहाँ बैठने का एक पक्का शेड बना है जहाँ से चारों तरफ का दृश्य अच्छा लगता है।
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चरण पहाड़ी मंदिर,डीग में बोर्ड पर अंकित इस मंदिर का महात्म्य |
6. फिसलन शिला - अब हमारा अगला पड़ाव था भोजन थाली जहाँ श्रीकृष्ण -बलराम ग्वालबालों के साथ जंगल में भोजन करते थे। किन्तु रास्ते में ही कृष्ण-लीला से जुडी एक और जगह आती है जिसका नाम है फिसलन शिला। कलवता गाँव में इन्द्रसेन पर्वत का एक भाग है जो मुख्य सड़क से कुछ ही दूरी पर है। यहाँ चट्टान तिरछी और समतल है जिस पर कृष्ण सखाओं संग फिसला करते थे ठीक उसी तरह जैसे बच्चे चिल्ड्रन पार्क में फन स्लाइड पर फिसलते हैं। इसीलिए इसे फिसलनी शिला या फिसलन शिला कहा जाता है। भक्त जन उसी तरह यहाँ फिसलन शिला पर फिसलते हैं और मनमोहन कृष्ण को याद करते हैं। हमलोगों ने गाड़ी सड़क के किनारे पार्क की और महाराज जी के अनुसार इस पर फिसले। दिन के तीन बजने वाले थे, धूप थी और शिला अभी भी गर्म थी। पहले सोनू जी महाराज ने ही स्वयं फिसल कर दिखलाया। फिर बारी -बारी से हमलोग भी फिसले और बिहारीजी को स्मरण कर नमन किया।
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फिसलन शिला पर फिसल कर दिखाते हमारे गाइड श्री सोनू जी महाराज |
7. भोजन थाली - इस यात्रा में कृष्ण लीलाओं से जुड़े स्थानों पर जा कर स्मरण करते हुए उनकी लीला गाथा सुन कर, और कुछ-कुछ अनुसरण करने का महत्त्व है। ऐसे ही एक स्थान का नाम है "भोजन थाली"। यहाँ शिलाओं पर थाली और कटोरे जैसे चिह्न बने हुए हैं जिनमें कृष्ण-बलराम भोजन करते थे। कहा जाता है कि यहाँ पर बैठ कर कुछ खाना चाहिए। इसीलिए भक्त कुछ भोजन ले कर आते हैं। हमलोगों ने पास से ही कुछ खरीद कर यहाँ खाया। एक महिला पुजारन यहाँ बैठी थीं जिन्होंने हमें यहाँ की कथा सुनाई। यह जगह भी सड़क किनारे ही है किन्तु आपको सड़क से दिखाई नहीं देगी। एक प्राचीन "श्रीभोजन बिहारी व दूध कटोरा मंदिर" परिसर के नीचे ढलान वाली जगह पर कुछ सीढ़ियाँ उतर कर जानी पड़ती हैं। वहीं एक स्थान को क्षीरसागर बताया गया। मंदिर परिसर में श्रीनाथ जी की एक मूर्ति बनी है जिसमे हमने माथा टेका और अगले स्थान को बढ़े।
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इंद्रसेन पर्वत,डीग में भोजन थाली स्थल जहाँ श्रीकृष्ण बलराम ने भोजन किया था |
8. विमल कुंड - यह ब्रज के बड़े और पवित्र कुंडों में माना जाता है। यह कुंड राजा विमल की पुत्रियों के प्रेमाश्रुओं से निर्मित है। इन राजकुमारियों की हार्दिक इच्छा थी कि श्रीकृष्ण की रासलीला में शामिल हों जो पूरी हुयी और उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु गिरने लगे और यह पवित्र कुंड बना जो पाप नाशन है। इस स्थल के पास पांडव भी रहे थे और इसी विमल कुंड में दुर्वासा ऋषि ने अपने साठ हजार शिष्यों के साथ स्नान किया था। यहाँ हमने दर्शन कर आचमन किया और बगल में विमल बिहारी जी के मंदिर में दर्शन कर माथा टेका।
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राजा विमल की पुत्रियों के प्रेमाश्रुओं से बना विमल कुंड, ब्रज |
9. श्री गोकुल चन्द्रमा जी हवेली - यह स्थान श्री शुद्धाद्वैत पंचम पीठ है जो कामवन में एक हवेली है। इसके अंदर श्री गोकुल चन्द्रमा जी विराजमान हैं और यहाँ पुष्टिमार्गीय न्यास है। श्री गोकुल चन्द्रमा जी के दर्शन बहुत छोटी अवधि के लिए खुलते हैं। उनमें से एक संध्या 4 बजे का समय तो निश्चित होता है। इसीलिए महाराज जी ने हमें यहाँ 15 मिनट पहले ही लाया और कहा कि दर्शन मात्र 5 मिनट के लिए खुलते हैं इसलिए बैठ कर दर्शन की प्रतीक्षा करो। अगर चार बजे का समय निकल जाता तो फिर पाँच या छः बजे तक प्रतीक्षा करनी पड़ती। हमलोग प्रतीक्षा में बैठे तब तक पास की ग्रामीण महिलाओं का भी आगमन हुआ और उन्होंने पारम्परिक गीत गाना शुरू किया, कुछ नाचने भी लगीं। किवाड़ खुला तो महिलायें सीधे दरवाजे से और पुरुष बायें दरवाजे से अंदर गए। अंदर एक आँगन जैसा था जिसके बीच में एक रेलिंग बनाकर अवरोध बनाया गया था। वहीं से खड़े हो कर सबने थोड़ी दूरी पर गर्भ गृह में श्री गोकुल चन्द्रमा जी का दर्शन किया। जल्द ही दर्शन बंद भी हो गया।
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श्रीगोकुल चंद्रमा जी हवेली, कामवन |
10. श्री मदन मोहन जी हवेली - श्री गोकुलचँद्रमा मंदिर से निकलते ही हमलोग पैदल ही बगल के इस हवेलीनुमा मंदिर में गए जो श्री मदनमोहन जी का मंदिर है। यह पुष्टिमार्गीय सप्तम पीठ है। कहा जाता है कि श्री वल्लभाचार्य जी के परदादा श्री यज्ञनारायण भट्ट द्वारा किये गए सोमयज्ञ की अग्नि से स्वर्ण रूप में प्रकट हुए थे। यहाँ भी उसी तरह दर्शन हुए। छोटी सी स्वर्ण मूर्ति, बांसुरी बजाते हुए और त्रिभंगी मुद्रा में हैं श्री मदन मोहन जी। दर्शन और माथा टेक कर हमलोग निकले।
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श्री मदन मोहन जी हवेली, कामां, भरतपुर |
11. गया कुण्ड, कामवन - जैसा कि पहले कहा गया है, श्री कृष्ण ने अपने माता-पिता और व्रजवासियों की सुविधा के लिए सारे तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था उन्हीं में से श्री गया जी तीर्थ भी यहाँ कामवन में पधारे। इस क्षेत्र को आदि वृन्दावन भी कहा जाता है। श्री गया जी तीर्थ यहाँ एक कुण्ड स्वरुप में हैं जिन्हें गया-कुण्ड के नाम से जाना जाता है। यहाँ आकर हमने आचमन किया। बगल में एक बाँके बिहारीजी का मंदिर भी है जहाँ हमने बाहर से ही प्रणाम किया। यहाँ कुछ प्राचीन मंदिर के भग्नावशेष कुंड के बगल में रखे हैं।
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गया कुंड, कामवन |
12. चौरासी खम्भा, कामा - श्री गया कुंड से निकल कर लगभग 10 मिनट लगा हमें यहाँ आने में जो कामवन का चौरासी खम्भा है। यह एक छोटी पहाड़ी पर बना 84 अलग अलग प्रकार के खम्भों से बना एक स्ट्रक्चर है जो राष्ट्रीयस्तर पर पुरातात्विक महत्व का है। यहाँ कोई मूर्ति नहीं है न ही कोई पूजा होती है। फिर भी इसे चौरासी खम्भा मंदिर बोला जाता है। इसे किसने बनाया यह स्पष्ट नहीं है। एक किंवदंती के अनुसार इसे एक रात में भूतों ने बनाया। कहा जाता है कि इसके खम्भों को गिनना आसान नहीं है। या तो यह 84 से बढ़ जाता है या घट जाता है। इसमें एक पत्थर का ऊँचा सिंहासन भी बना है। उस पर बैठ कर फोटो खिंचवाया। वास्तव में जब हमलोग यहाँ गए तो इस मंदिर के अंदर एक नकारात्मक वातावरण का अनुभव हुआ। उस समय कम ही लोग थे। कुछ स्थानीय बच्चे साथ लग गए कुछ पाने की आशा में। उन्हीं में से एक ने यहाँ की कथा सुनानी शुरू की। यक्ष और युधिष्ठिर का प्रसंग भी इस स्थान से जुड़ा है।
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चौरासी खंभा, कामवन |
13. श्री कुण्ड - महाराज जी ने कहा कि अब हमलोग श्री कुण्ड चलेंगे। वहाँ के जल की बहुत महिमा बतायी उन्होंने और कहा कि कई गाइड तो भक्तो को यहाँ ले भी नहीं जाते पर मैं जरूर लाता हूँ। यहाँ का जल पी भी लेना और बोतल में ले जाकर पूरे घर में छिड़क भी देना। ग्रामीण रास्तों से यहाँ पहुँचे। एक छोटा सा मंदिर परिसर था जिसका अभी बढ़िया विकास नहीं किया गया है। इसी के पीछे एक सरोवर है जिसे श्री कुंड कहा जाता है। कुंड का स्तर काफी नीचे है किन्तु सरोवर के अंदर ही एक किनारे में कुआँ बनाया गया है जिससे बाल्टी द्वारा कुंड जल निकाला जाता है।महाराज जी ने ही बाल्टी से श्रीकुण्ड का जल कुएँ से निकला। घर लाने के लिए बोतलों में भरा और वहाँ बैठ कर उस पवित्र जल से प्यास बुझाई। बगल के मंदिर में दर्शन प्रणाम कर निकले।
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श्रीकुंड और इसमें बना कुआँ, कामां, डीग |
14. कदम खण्डी - यहाँ आने में अच्छा-खासा समय लगा। एक बड़े गाँव को बीचो बीच पार कर एक जंगल जैसे इलाके में पहुंचे जहाँ कई मोर पंछियों को विचरते देखा। इन्हीं जंगली पेड़ों के बीच में एक मंदिर था जहाँ हमलोग पहुँचे।
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कदमखंडी मंदिर,कामवन |
यह कदम खण्डी वह जगह है जहाँ एक पहुंचे हुए राधा कृष्ण के परम समर्पित संत की जटा एक टहनी में फँस गयी थी जो उनसे न निकली। जब कोई उनकी सहायता के लिए आता तो वे मना कर देते और कहते कि जिस बांके बिहारी ने जटा उलझायी है, अब वो ही सुलझायेंगे। जब बिहारी जी आये तो भी उन्होंने मना किया कि बिना राधा जी के आप बिहारी जी नहीं हो सकते। आखिर बिहारी जी के संग किशोरी जी भी आयीं तब उन्होंने अपनी जटा छुड़वाई। मंदिर में इसी प्रसंग की मूर्तियां भी हैं। राधा-कृष्ण की भी अलग मूर्तियाँ हैं। दर्शन प्रणाम कर हमलोग यहाँ से वापस निकले।
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कदमखंडी मंदिर में भक्त संत की काँटो से जटा छुड़ाते राधा संग बिहारीजी |
15. कामेश्वर महादेव - यह महादेव का एक अति प्राचीन मंदिर स्थल है। यहीं पर शिव ने कामदेव को भस्म किया था।प्राचीन मंदिर का पुनरुद्धार किया गया है जिसमें एक बड़े हॉल में बीच में कामेश्वर महादेव का शिवलिंग है और चारों तरफ दीवार पर चित्र एवं मूर्तियां लगी हैं।एक तरफ पुराने मंदिर के अवशेष में एक छोटे पत्थर पर क्षीर सागर में शयन करते विष्णु और उनके साथ ब्रह्मा और लक्ष्मी जी की महीन कलाकारी से बनी मूर्ती रखी है।
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कामेश्वर महादेव, कामां |
इस मंदिर की सीढ़ियों के बगल में एक और मंदिर है जो सेतुबंध रामेश्वर मंदिर है। हमलोगों ने यहाँ भी जा कर दर्शन -प्रणाम किया, फिर आज की यात्रा के अंतिम पड़ाव की ओर निकले।
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अद्भुत महीन कारीगरी जिसमें छोटी सी शिला पर शेषनाग पर शयन करते विष्णु, नाभि कमल पर ब्रह्मा और चरणों में लक्ष्मी जी, कामेश्वर महादेव मंदिर, कामां |
16. पाँच पांडव मंदिर - यह मंदिर भी इसी गाँव में है जहाँ कामेश्वर महादेव मंदिर है। गाड़ी को यहाँ तक जाने में मुश्किल थी तो हमलोग कामेश्वर महादेव मंदिर से पैदल ही गाँव की गलियों से होते हुए यहाँ पहुँचे। एक घरनुमा मकान में यह मंदिर है जहाँ महादेव, पाँच पांडव के अतिरिक्त नृसिंह भगवान और भूदेवी की प्रतिमा है। वहाँ मौजूद पुजारी जी ने कथाएं सुनाई। हमलोगों ने दर्शन -ढोक लगाया और वहाँ से निकले। मैं यहाँ मंदिर में कोई चित्र न ले पाया।
आज के दिन हमलोग वृन्दावन में ठहरने के स्थान से काफी दूर आये थे और कई मंदिरों में दर्शन किया जिस कारण होटल आते आते संध्या आठ बज गए। अतः आज हमलोग लोकल कहीं न निकल पाए। जल्दी ही सोये जिससे फिर सबेरे जल्दी तैयार हो कर निकल सकें।
छठे दिन की यात्रा का वर्णन पढ़िए अगले ब्लॉग पोस्ट "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग -6" में।
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इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
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