आज हमारी यात्रा का तीसरा दिन था। आज का भ्रमण मथुरा शहर की तरफ था। नित्य की भाँति 8 बजे हमलोग होटल से निकले। कार चलते ही महाराज जी ने प्रभु स्मरण और भजन से शुरुआत की, इसके बाद नियम के अनुसार हम सभी हँसे क्योंकि महाराज जी ने पहले ही कहा था यहाँ हँसी का भी महत्त्व है क्योंकि कहा जाता है कि जो वृन्दावन में हँसा, वही बसा।
आज का पहला पड़ाव था कंस का टीला।
1. कंस टीला - यह स्थान यमुना नदी के किनारे स्थित है। कच्चे रास्ते हैं पास में और थोड़ी गन्दगी भी। यद्यपि पार्क जैसा डेवलप करने का प्रयास किया गया है किन्तु मेन्टेन नहीं है। कंस टीला एक ऊँचे टीले जैसा है जो कि कंस के किले का एक भाग है। कहा जाता है कि कंस से लड़ाई में कृष्ण ने उसे इसी टीले से नीचे लुढ़काया था। महाराज जी ने कहा कि चाहो तो ऊपर चढ़ सकते हो टीले पर किन्तु ऊपर कुछ खास है नहीं। समतल जैसा मैदान है ऊपर। पत्नी के घुटनों में दर्द रहता है अतः हमने नीचे से ही प्रणाम किया और अगले पड़ाव के लिए तैयार हुए।
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कंस टीला, मथुरा |
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विश्राम घाट, मथुरा |
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कृष्ण बलराम का प्राचीन मंदिर, मथुरा।यहाँ कृष्ण ने कुब्जा का उद्धार किया फिर कंस को मार कर कुब्जा के घर विश्राम किया। इसीलिए यहाँ का नाम विश्राम घाट पड़ा। |
3. द्वारकाधीश मंदिर - मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में श्री कृष्ण द्वारका के राजा के रूप में पूजे जाते हैं। साथ में राधा रानी जी विराजमान हैं। मंदिर पुराना और भव्य है। पुष्टिमार्ग संप्रदाय का यह प्रसिद्ध मंदिर है। विश्राम घाट से गलियों से हो कर हम चले तो एक पुराना शिव मंदिर मिला जिसमें महाराज जी ने पूजा करने का सुझाव दिया। सुबह से हमलोगों ने खाया नहीं था तो यह सुझाव ठीक लगा। हमने शिवलिंग पर जल चढ़ाया और पूजा कर आगे बढ़े। द्वारकाधीश मंदिर से थोड़ा पहले एक फूल दूकान पर फूल ले कर हमने चप्प्पल वहीँ उतारे और आगे बढ़े परन्तु मंदिर का पट अभी बंद था और खुलने में थोड़ा देर था। तो महाराज जी हमें फिर फूल दुकान पर वापस लाये और उसे फूलों को रखने बोला और कहा कि हमलोग नाश्ता कर के आते हैं फिर ले जायेंगे। चप्पल पहन हमलोग एक नाश्ते की दुकान पर गए और नाश्ता -चाय ले कर वापस फूल लेकर चले।
मंदिर प्रांगण में घुसने पर देखा कि मंदिर की सीढ़ियों तक ठसाठस भीड़ थी। महाराज जी ने पत्नी को महिलाओं की लाइन में बीच में एक जगह खड़ा किया और बोले कि आराम से आगे बढ़ कर दर्शन करना। मैं और महाराज जी पुरुषों की लाइन में न लगे बल्कि प्रांगण में ही बैठ गए। उनका कहना था कि पट खुलते ही दस मिनट में भीड़ ख़तम हो जाएगी।
पट खुलने में दस मिनट लगे और दस-पंद्रह मिनट में भीड़ दर्शन कर निकल गयी। भीड़ कम होने पर हमलोग लाइन में लगे और भगवान का दर्शन किया। यहाँ सिर्फ दर्शन ही होता है। कोई भी पुजारी आपके हाथ से चढ़ावा ले कर नहीं चढ़ाता। पत्नी ने भी साथ लाये फूल द्वार के पास ही रखे।
मंदिर के एक कोने में प्रसाद बिक रहे थे। इनमें कई प्रकार के पकवान आदि थे। महाराज जी के सुझाव के अनुसार मैंने एक ऐसा प्रसाद लिया जिसमें भोजन की थाली जैसे सारे आइटम्स थे। चावल, रोटी, दाल, सब्ज़ी, मिठाई, इत्यादि। एक पैकेट में ही परिवार भर का भोजन था। यहाँ से निकल विश्राम घाट पर बैठ कर हमने कृष्ण कथा सुनी। अभी लिए गए प्रसाद की पोटली महाराज जी ने अपने कुर्ते के अंदर पेट के पास छुपा रखा था वरना बंदरो द्वारा छीने जाने का डर था। बोट का टिकट दिखा कर हमलोग वापसी में मोटर बोट से फिर कंस टीले के पास उतरे जहाँ हमारी कार लगी हुई थी।
4. ध्रुव टीला - आज का अगला पड़ाव था ध्रुव टीला। सीढ़ियों से चढ़ कर हमलोग ऊपर मंदिर में पहुंचे।मंदिर में तीन स्थानों पर सामने मूर्तियाँ स्थापित थीं। मुख्य स्थान पर बीच में भगवान् नारायण,उनकी दाहिनी ओर नारद मुनि तथा बायीं ओर श्री ध्रुव जी महाराज की मूर्तियाँ हैं। ध्रुव टीला वह स्थान बताया जाता है जहाँ पाँच वर्ष की अवस्था में बालक ध्रुव ने नारद जी के कहने पर कठोर तपस्या की थी। यहीं पर नारायण ने प्रसन्न हो कर उन्हें दर्शन और वरदान दिया था। यह स्थान राम और कृष्ण अवतार से भी बहुत प्राचीन है। जिस तरह नारायण ने ध्रुव जी की मनोकामना पूर्ण की, भक्तजन उसी तरह मनोकामना पूर्ण होने की आशा में यहाँ आते हैं।
दूसरे स्थान पर लक्ष्मी, नारायण तथा गरुड़ जी मूर्तियां हैं जबकि तीसरे स्थान पर श्री नाथ जी, श्री अम्बे माँ और श्री उद्धव जी की मूर्तियां हैं। इन सभी मूर्तियों के सामने एक बड़ा सा हॉल है। एक स्थान पर हनुमान जी की भी मूर्ति है।
5. लवणासुर की गुफा - ध्रुव टीले के पास में ही लवणासुर की गुफा है। सोनू महाराज जी हमें पैदल ही वहां ले गये। रिश्ते में लवणासुर रावण का भांजा था और मधुवन में मधु नामक राक्षस का पुत्र। उसने महादेव की तपस्या कर अमोघ त्रिशूल प्राप्त किया था। अत्याचारी होने के कारण प्रजा त्रस्त थी। मधुवन की इसी गुफा में त्रेता युग में श्री राम के भाई शत्रुघ्न ने उनकी आज्ञानुसार लवणासुर का वध किया था और यहाँ मधुरा (मधुवन स्थान के कारण) नामक राजधानी बसायी जो कालांतर में मथुरा कहलायी।
जब हमलोग यहाँ पहुँचे तो देखा कि यहाँ एक तरफ बिहारी जी और राधाजी का मंदिर था। आँगन के दूसरी तरफ एक महादेव मंदिर भी है किन्तु मंदिरों में कम यात्रियों के आने के कारण रौनक कम थी। पुजारी जी ने यहाँ की कथा सुनायी और एक किशोर वय शिष्य को गुफा दिखाने भेजा। सीढ़ी से निचे उतर कर एक कमरे में आये जहाँ सामने दीवार पर महावीर जी की मूर्ति थी, बाईं दीवार में गुफा का एक संकरा अँधेरा द्वार बना था जिसे लवणासुर की गुफा बताई गयी। उसे देख कर ऊपर आये।
यहाँ के पुजारी जी जड़ी बूटियों से एक आयुर्वेदिक तेल भी बनाते हैं जो उनके अनुसार घुटनों के दर्द में काफी आराम देता है। इस तेल को घुटनों पर लगाकर बढ़िया से मालिश करनी होती है। करीब 100 मिली के बोतल में काले रंग का यह तेल वे 100 रूपये प्रति बोतल बेचते हैं। पत्नी के घुटनों के लिए मैंने दो बोतल लिए जबकि हमारे गाइड श्री सोनू जी महाराज ने 10 बोतलें लीं, यह बोल कर कि वे लोगों को इस्तेमाल के लिए देंगे और यदि फायदा हुआ तो उनसे सारी बोतलें लेकर जायेंगे।
6. ध्रुव नारायण मंदिर और कृष्ण कुण्ड - लवणासुर की गुफा से निकल हमलोग गाड़ी में बैठे और मधुवन में ही अगले पड़ाव पर पहुंचे। यहाँ एक बड़ा सा तालाब था जिसके किनारे पक्के घाट बने थे। महाराज जी ने बताया कि इसे कृष्ण कुंड के नाम से जानते हैं। सामने एक महादेव का मंदिर है जहाँ हमने कुंड में आचमन के बाद माथा टेका। (महाराज जी ने बताया कि माथा टेकने को ब्रज में डोक लगाना बोलते हैं।) चूँकि द्वारकाधीश मंदिर में दर्शन से पहले हमलोग नाश्ता कर चुके थे अतः हम शिवलिंग पर जल न चढ़ा सके।
कुंड के किनारे एक ध्रुवनारायण मन्दिर है जहाँ एक बुजुर्ग पुजारी जी ने हमें बैठा कर ध्रुव जी की कथा सुनाई। शांत स्थान था और उस समय सिर्फ कुछ स्थानीय लोग ही परिसर में थे।
7. तालवन - ब्रज के बारह वनों में एक ताल वन भी है। यह वह स्थान है जहाँ श्री कृष्ण के बड़े भाई बलभद्र ने धेनुकासुर नामक राक्षस का वध किया था। यहाँ कृष्ण बलराम का एक मंदिर भी है। परिसर में गए किन्तु अब दोपहर का समय होने लगा था और मंदिर का पट बंद हो गया था। हमने माथा टेका और आगे बढ़े।
8. इच्छापूर्ण महाबृजेश्वर महादेव - तालवन में ही सड़क से सटे एक इच्छापूर्ण महाबृजेश्वर महादेव मंदिर है जहाँ लोक मान्यता के अनुसार इच्छा पूरी होती है। किन्तु यह मंदिर भी उस समय बंद हो चुका था, अतः यहाँ हमने सिर्फ प्रणाम किया। इसी मंदिर के सामने सड़क के दूसरी तरफ एक और मंदिर है जिसे गंगासागर मंदिर बोला जाता है। यह वह स्थान है जहाँ दाऊ जी और कपिल मुनि की भेंट हुयी थी। मंदिर में एक पुजारी जी और उनकी पत्नी थीं।
इस मंदिर में दर्शन कर माथा टेका। हमलोग कुछ देर बैठे और पानी पिया। दोपहर होने के कारण यात्री नहीं थे। गांव का वातावरण था और शांति थी।
9. कुमुदवन - ब्रज के बारह वनों में से यह सबसे छोटा वन है। यहाँ कपिल मुनि ने तपस्या की थी और श्रीकृष्ण की पूजा की थी। कपिल मुनि का एक छोटा मंदिर बना हुआ है यहाँ। पास में ही राधा-कृष्ण जी का भी मंदिर है। इसके पीछे एक तालाब है जिसे कुमुदनी कुंड या पद्म कुंड कहा जाता है। यहाँ श्रीकृष्ण और बलराम ग्वाल बाल संग खेला करते थे और कभी -कभी राधा -कृष्ण इसमें विहार करते थे। यह कुण्ड उस समय कुमुदनी फूलों से भरा होता था।
10. शांतनु कुंड - कुमुद वन से जब हमलोग चले तो अगला लक्ष्य था शांतनु कुंड। किन्तु अब भूख लगने लगी थी और हमारे पास श्री द्वारकाधीश मंदिर से लिया गया प्रसाद भी था। तो हाईवे पर एक जगह देख कर हमलोगों ने प्रसाद पाया और आगे बढ़े। सातोह में शांतनु कुंड एक बड़ा तालाब है जहाँ तक जाने के लिए हमें मोहल्ले जैसी सडकों से जाना पड़ा। यह एक पक्का तालाब है जहाँ बीच में एक ऊँचे टीले पर शांतनु बिहारी जी का मंदिर है। इस स्थान पर शांतनु ने कई हज़ार वर्षों तक तप किया था और श्रीकृष्ण को प्रसन्न किया था।
तालाब को पार कर मंदिर तक जाने के लिए एक पुल बना है। मान्यता यह है कि शान्तनु कुंड में स्नान करने से निःसंतान दम्पत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है। दोपहर का समय होने के कारण यहाँ का भी मंदिर बंद हो चुका था। मंदिर में काम कर रहे मजदूरों ने ही ऊपर से बताया कि पट बंद है। अतः चढ़ाई कर ऊपर जाने से अच्छा हमने कुंड से आचमन किया, डोक लगाया और लौटे।
11. भूतेश्वर महादेव - ब्रज के प्रमुख महादेव मंदिरों में से भूतेश्वर महादेव मंदिर एक हैं। टेढ़ी-मेढ़ी गलियों के कारण मंदिर तक गाड़ी नहीं जाती, सिर्फ दोपहिया या पैदल जा सकते हैं। एक रेलवे अंडरपास के निकट गाड़ी से उतर कर हमलोग गलियों से होते हुए मंदिर पहुँचे। यह मंदिर मथुरा का अति प्राचीन मंदिर है। मंदिर खुला था और हमने दर्शन किये, माथा टेका। शिवलिंग पर बने शिवजी के होंठ गोल खुले हैं जैसे ॐ या भू का उच्चारण कर रहे हों।
परिसर में ही एक भगवती का प्राचीन मंदिर है जो नीचे एक गुफा में है। सीढ़ियों से उतर कर हमने दर्शन किये। यह शक्तिपीठ है जहाँ माता सती के केश गिरे थे। यह उमा कात्यायिनी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता और 51 शक्तिपीठों में से यह 11 वां शक्तिपीठ है। इन्हें पाताल देवी गुफा मंदिर भी बोला जाता है। कंस इनकी पूजा करता था। दर्शन कर हमलोग थोड़ी देर मंदिर में बैठे। भोग का प्रसाद मिला, जिसे खा कर हमलोग निकले।
12. महाविद्या देवी मंदिर - हमारा अगला पड़ाव था महाविद्या देवी मंदिर जो एक टीले पर है। सीढ़ियों से चढ़ कर हमलोग ऊपर मंदिर तक पहुंचे जहाँ सामने एक बेल वृक्ष पर एक पालतु लंगूर बैठा था जिसके गले में एक लम्बी रस्सी बंधी थी। मंदिर के अंदर हॉल में पुजारी आराम कर रहे थे और उन्होंने एक और छोटा लंगूर पाल रखा था। गर्भ गृह का पट अभी बंद था। हमें लगभग आधा घंटा प्रतीक्षा करनी पड़ी तब देवी जी का दर्शन हुआ।
महाविद्या देवी को श्रीकृष्ण की कुलदेवी बताया जाता है। ऐसी लोक मान्यता है कि कंस वध से पहले उन्होंने महाविद्या देवी की पूजा और परिक्रमा की थी।
13. श्रीकृष्ण जन्म भूमि - आज की यात्रा का अंतिम पड़ाव था श्रीकृष्ण जी का जन्म स्थान। गाड़ी थोड़ी दूर में ही छोड़ कर हमलोग इस मंदिर के लिए चले। यह एक संवेदनशील स्थल है अतः सुरक्षा सम्बन्धी कड़ाई ज्यादा है। द्वार पर सुरक्षा जाँच के कारण लाइनें थीं। पर्स छोड़ कर सारी वस्तुएँ गेट पर ही जमा करनी होती है। पुरुष में भीड़ काम थी पर महिलाओं में लम्बी लाइन थी। इसी कारण द्वार के अंदर पुरुष प्रवेश के बाद भी परिवार की महिलाओं की प्रतीक्षा करते दिखे। प्रतीक्षा के बाद जब पत्नी ने प्रवेश किया तब हमलोग मंदिर की तरफ बढ़े।
जन्म स्थान कारागार की तरह लम्बे संकरे गलियारे से जाते हैं, किन्तु यहाँ जाने से पहले हमलोगों ने महाराज जी के सुझाव के अनुसार बायीं तरफ दो मंदिरों का दर्शन किया। पास ही एक कुआँ भी है जो ढँका है। इसके बाद हमलोग जन्मस्थान के लिए लाइन में लगे जहाँ थोड़ी भीड़ थी। पंद्रह मिनट लगे गलियारे से हो कर जन्म स्थान तक जाने में। यह जन्मस्थान वही कंस का कारागार है जहाँ कंस ने कृष्ण के माता-पिता देवकी और वसुदेव को बंदी बनाकर रखा था। यहाँ हमने माथा नवांया। पुलिसवाले रुकने नहीं देते और लाइन को आगे बढ़ाते रहते हैं। हमारे बढ़ते ही भगवान का पर्दा खींच दिया गया जैसा कृष्ण मंदिरों में थोड़ी-थोड़ी देर में करते हैं। यह पुराना भवन है। यहाँ से निकल हमलोग परिसर में खुले में आये। यहाँ पर भगवान् का एक बड़ा मंदिर है जो बाद में बना। सीढ़ियों से चढ़ कर इस मंदिर में गए जहाँ राधा -कृष्ण जी की सुन्दर सी प्रतिमा है। हॉल बहुत बड़ा है, दर्शन कर हमलोग थोड़ा बैठे।
मोबाइल पर प्रतिबंध के कारण कोई फोटो न खींच पाये। मंदिर की सीढ़ियों से उतरे तो महाराज जी ने एक प्रदर्शनी गैलरी का टिकट खरीदवाया। हम दोनों पति-पत्नी ही गए अंदर जहाँ कृष्ण लीलाओं से सम्बंधित मूर्तियाँ एक लाइन से लगाई गयीं थीं। टिकट सहेज कर रखने के लिए महाराज जी ने बोला था। जब हमलोग गैलरी से निकले तो सीढ़ियों से उतर कर दूसरी तरफ एक और गुफानुमा प्रदर्शनी थी उसमें भी उसी टिकट पर घुसे। इसमें भी कृष्ण द्वारा अनेक असुरों के वध की झाँकियाँ थीं।
जन्मभूमि से लौट कर हमलोग वृन्दावन में अपने होटल आये और महाराज जी दो घंटे बाद आने को बोल कर अपने आवास को गए। आराम करने के बाद हमलोग तैयार हो कर शाम 6 बजे महाराज जी के साथ निकले। सबसे पहले हमलोग वृन्दावन में प्रियकांत जू का मंदिर गए जो प्रसिद्ध कथावाचक श्री देवकीनंदन ठाकुर जी द्वारा बनवाया गया है। मंदिर प्रथम तल पर है और कमल की पंखुड़ियों जैसी संरचना बनायीं गयी है।सुन्दर मंदिर है किन्तु गर्भ गृह के पास फर्श पर लगभग तीन इंच का लेवल में अंतर होने से ठेस की संभावना रहती है। हमारे साथ अंदर प्रवेश करने वाले एक भक्त की पैर की अँगुलियों में जोर की ठेस लगी और रक्त बहने लगा। दर्शन से पहले भूतल पर गर्भ गृह के नीचे बने झाँकियों की गैलरी से हो कर प्रथम तल के मंदिर में जाना होता है। इनमें कृष्ण लीलाओं का वर्णन है। इन्हें देख कर गर्भ-गृह में प्रियकांत जू का दर्शन कर हमलोग बहार आये।
प्रियकांत जू मंदिर से थोड़ी दूर पर एक भव्य मंदिर नया बना है जिसका नाम है चंद्रोदय मंदिर। अभी भी इसमें कार्य लगा हुआ है। एक बड़े एवं सुन्दर परिसर में यह मंदिर है। दूसरे तल पर एक बहुत बड़े से हॉल में एक तरफ राधा-कृष्ण जी की सुन्दर प्रतिमाएं हैं। शाम का समय था। एक तरफ ढोलक-मृदंग पर भजन हुआ। दर्शन कर हॉल से निकले।
हॉल से निकास के पास विभिन्न प्रसाद एवं मिठाई बेचीं जा रही थी। दो फ्लोर हो कर नीचे निकलने का रास्ता कुछ ऐसी जगहों से था जहाँ कई तरह की सामग्रियाँ, किताबें, भोज्य पदार्थ इत्यादि बेचे जा रहे थे। मंदिर से निकल बाहर गार्डेन के पास थोड़ी देर बैठे जहाँ शाम का वातावरण बहुत सुहाना लग रहा था।
अब हमलोगों ने वापस लौटने का निश्चय किया। महाराज जी हमें होटल के पास विदा कर अपने निवास स्थान की ओर गये।
चौरासी कोस यात्रा के चौथे दिन का विवरण अगले ब्लॉगपोस्ट में पढ़ें - "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग -4" ;
इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
34. Panchghagh Waterfalls (पंचघाघ झरने), Khunti/Ranchi, Jharkhand
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
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