Sunday, May 18, 2025

ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग - 4

पिछले ब्लॉगपोस्ट "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग - 3" से आगे :--
मुखराय गाँव में श्री राधाजी की ननिहाल, मथुरा
प्राचीन मंदिर


           अब तक हमारी तीन दिनों की यात्रा संपन्न हुई थी। आज चौथे दिन की यात्रा प्रारम्भ हो रही थी। नित्य की भाँति आठ बजे सुबह हमलोग तैयार हो कर निकले। महाराज जी ने बताया आज हमें गोवर्धन जी के तरफ वाली रूट पर जाना है। आज सबसे पहले हमलोग गए बाटी गॉंव में।

         1. बहुला वन - बाटी गॉंव में सबसे पहले हमने महाप्रभु जी की बैठक को देखा और माथा टेका। इस क्षेत्र को बहुला वन कहा जाता है। यहाँ की महत्ता यह है कि बहुला नाम की एक गाय की रक्षा श्रीकृष्ण ने की थी। बहुला गाय वन में चर रही थी, तभी एक बाघ ने उसे अपना भोजन बनाना चाहा। गाय ने उससे अनुरोध किया कि मेरा बछड़ा भूखा है, मुझे अपने मालिक के घर जा कर उसे दूध पिलाने दो फिर मैं आ कर तुम्हें स्वयं को भोजन के लिए प्रस्तुत कर दूंगी। बाघ ने उसे जाने दिया। गाय ने अपने ब्राह्मण मालिक के घर जा कर बछड़े को कहा कि आज भर पेट दूध पी लो क्योंकि मैंने बाघ को वचन दिया है कि बछड़े को दूध पिला कर मैं तुम्हारे पास आ जाऊँगी। यह सुन कर बछड़ा बोला - नहीं, मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ, बाघ को बोलूंगा कि मुझे खा ले, तुम्हें छोड़ दे। ब्राह्मण मालिक भी उनकी बातें सुन रहा था। वह भी उनके पीछे चला। बाघ प्रतीक्षा कर रहा था। गाय ने कहा अब मुझे खा लो। बछड़े और ब्राह्मण दोनों ने बाघ से कहा कि मुझे खा लो पर गौ को छोड़ दो। उन तीनों का यह त्याग देख कर श्रीकृष्ण स्वयं प्रकट हुए जिससे बाघ का भी हृदय परिवर्तन हो गया और उसने उनको छोड़ दिया। 
बाटी गाँव में बहुला सरोवर, मथुरा


     जब चैतन्य महाप्रभु यहाँ पधारे थे तो बहुलावन उन्हें बहुत अच्छा लगा। इसके बारे में चैतन्य चरितामृत में भी विवरण दिया गया है। यहाँ मंदिर के पास एक सरोवर है जिसे बहुला सरोवर कहा जाता है। 

     2. मुखराय गाँव - हमारा अगला पड़ाव था मुखराय गाँव। यहाँ राधा जी की ननिहाल है। उनकी नानी का नाम मुखरा देवी था और माँ का नाम कीर्ति देवी। यहाँ राधाजी की प्रतिमा उनकी माँ और नानी के साथ स्थापित है। 
      राधाजी की माँ कीर्ति देवी का जन्म स्थल भी यहीं है।          
मुखराय में श्रीराधाजी का उनकी माँ और नानी के साथ मंदिर
मथुरा


     3. कुसुम सरोवर - हमलोग गोवर्धन परिक्रमा पथ पर पहुँचे। जा कर महाराज जी के सुझाव के अनुसार हमलोग गाड़ी से उतर कर परिक्रमा पथ पर माथा टेका, फिर गाड़ी में सवार हो कर परिक्रमा पथ पर आगे बढ़े। थोड़ी दूर पर एक राधा-कृष्ण मंदिर में जा कर प्रणाम किया जहाँ से करीब एक किलोमीटर आगे कुसुम सरोवर है। यहाँ राधा-कृष्ण जी सरोवर में विहार किया करते थे। चारों तरफ से पक्की दीवारों से घिरा बहुत ही सुन्दर सरोवर है जिसके एक किनारे सैंड स्टोन का बना सुन्दर भवन है। यहाँ जाट राजा सूरजमल की छतरी भी है।  
कुसुम सरोवर, गोवर्धन, मथुरा


      सरोवर के गेट के पास एक प्राचीन श्री श्री राधा बनबिहारी जी का भी मंदिर है। सरोवर के एक हिस्से में नारद कुंड है जहाँ नारद जी द्वारा भक्ति सूत्र की रचना की गयी थी। 
कुसुम सरोवर के पास प्राचीन श्री श्रीराधा बनबिहारी जी
का मंदिर, गोवर्धन, मथुरा

       4. चक्रेश्वर महादेव मन्दिर - अगला पड़ाव था श्री चक्रेश्वर महादेव मंदिर जिन्हें चकलेश्वर महादेव मंदिर भी कहा जाता है। ब्रज में पाँच मुख्य महादेव मंदिर हैं।  जब इंद्र के कोप से बचने के लिए श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को ऊँगली पर उठाया था तो अथाह जल राशि को महादेव के त्रिशूल ने पर्वत के एक किनारे पर चक्र की तरह घूम कर उड़ा दिया था। कृष्ण-प्रेम के कारण शिव जी ने चक्रेश्वर अथवा चकलेश्वर महादेव के रूप में ब्रज में रह कर ब्रजवासियों की रक्षा करना स्वीकार किया। 
प्राचीन श्री चक्रेश्वर महादेव मंदिर,
गोवर्धन, मथुरा


    यह एक प्रचीन मंदिर है और यहाँ की विशेषता यह है कि गर्भ गृह में एक नहीं बल्कि पाँचो महादेव लिंग रूप में विद्यमान हैं। जब यहाँ हमलोग पहुंचे तो सुबह से उपवास ही था और स्नान इत्यादि तो किया था ही। तो महादेव का जलाभिषेक करने और स्पर्श पूजन का अवसर मिल गया और स्वयं को धन्य मानते हुए हमलोग अगले स्थल को चले।  

       5. मानसी गंगा -  चकलेश्वर महादेव मंदिर से थोड़ी ही दूर पर एक बहुत बड़ा सरोवर है जिसे मानसी गंगा कहा जाता है। हमलोग यहाँ पैदल ही गये। कहा जाता है कि एक दिन गंगा जी कह रही थीं यमुना जी से कि तुम कितनी भाग्यशाली हो कि तुम्हें हमेशा ब्रज का सान्निध्य मिला है और मैं कितनी दूर हूँ उस पुण्य भूमि से। श्रीकृष्ण ने गंगा जी के मन की बात जान ली और अपने ध्यान से गंगा जी को एक सरोवर के रूप में व्रज में स्थान दिया। तभी से इसे मानसी गंगा कहा जाता है क्योंकि श्रीकृष्ण के मन से प्रकट हुईं। यहाँ का जल अति पवित्र माना जाता है। 
मानसी गंगा, गोवर्धन, मथुरा


       6. पैठा गाँव में ठाकुर जी का मंदिर -  अगला स्थल था पैठा गाँव के ठाकुर जी का मंदिर। यहाँ एक पर्यटन विभाग का बोर्ड भी लगा था किन्तु इस प्राचीन मंदिर के भवन की हालत जीर्ण हो रही है। बोर्ड पर श्री राधाकृष्ण मंदिर लिखा था और मंदिर द्वार के ऊपर "श्री ठाकुर राधारमण जी विराजमान -ग्राम पैंठा" अंकित था। बाहर के यात्री उस समय न थे। हमलोगों ने बिहारी जी का दर्शन किया और नारायण सरोवर की तरफ चले। 
पैंठा गाँव में श्रीराधा कृष्ण जी का मंदिर, मथुरा


       7. पैंठा गाँव में चतुर्भुज नाथ जी का मंदिर - उसी गाँव में ठाकुर श्री चतुर्भुज नारायण जी का मंदिर है जहाँ हमलोग गाड़ी से ही गए। मंदिर से पहले ही एक सरोवर मिलता है जिसे नारायण सरोवर कहा जाता है। जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो सरोवर की सफाई और विकास का कार्य चल रहा था, अतः सरोवर में पानी न के बराबर ही था।  
 
पैंठा गाँव में ठाकुर श्री चतुर्भुज नाथ जी का मंदिर,
मथुरा 

        सरोवर के आगे मुख्य श्री चतुर्भुज नाथ जी का मंदिर है जो प्रभावशाली है। पैंठा ग्राम में स्थित इस मंदिर स्थल को "श्रीधाम ऐंठा कदम" के नाम से भी जाना जाता है। महाराज जी ने बताया कि ऐसा नाम इसलिए पड़ा कि यहाँ जो भी कदम के पेड़ होते थे उनके तने इस प्रकार होते थे जैसे किसी ने इसे ऐंठ दिया हो। अभी एक छोटा सा ऐंठा वृक्ष परिसर में था। श्री चतुर्भुज नाथ जी मंदिर के सामने भी मंदिर हैं जिनमे अन्य देवताओं का भी विग्रह है। परिसर में एक घेरे में श्री गोवर्धन जी के पत्थरों से एक गोवर्धन पर्वत का प्रतिरूप बना है। यह स्थल और नारायण सरोवर भी श्री राधाकृष्ण की लीलाओं से सम्बंधित है। 
ठा. श्रीचतुर्भुज नाथ जी का मंदिर, श्रीधाम ऐंठा कदम,
ग्राम पैंठा, मथुरा


   8. पैंठा गाँव में श्रीजानकीवल्लभ मंदिर - इस मंदिर के गर्भ गृह में सामने श्री राम दरबार का विग्रह है। इनके एक तरफ श्री लक्ष्मी नारायण दरबार और दूसरी तरफ श्री राधाकृष्ण दरबार के विग्रह हैं। इस मंदिर की विशेषता है कि यहाँ एक पुराने "ऐंठा वृक्ष" का तना शीशे के घेरे में सुरक्षित है।
शीशे में सुरक्षित एक प्राचीन ऐंठा वृक्ष का तना,
श्रीजानकीवल्लभ मंदिर, पैंठा ग्राम, मथुरा


     मंदिर के परिसर में कई बड़े वृक्ष हैं तथा पुराने पत्थरों को सुरक्षित रखा गया है। परिसर के बगल में ही एक बड़ा सरोवर भी है। 
पैंठा ग्राम में श्रीजानकीवल्लभ जी का मंदिर, मथुरा


    9.  चंद्र सरोवर - श्री गोवर्धन क्षेत्र में यह एक प्रसिद्ध सरोवर है। इसी के किनारे सूरदास जी रहते थे और श्रीकृष्ण पर पद्य लिखते थे। सरोवर का बढ़िया विकास किया गया है। सरोवर अष्टकोणीय है और इसके चारो तरफ सूरदास जी के अतिरिक्त चार और कृष्ण भक्त कवियों की प्रतिमाएं लगी हैं। हमने इस पुण्य सरोवर के जल से आचमन किया। उसी समय वहाँ के दो पुजारी आये और मन्त्र इत्यादि पढ़ कर दक्षिणा के लिए खड़े हो गए। उन्हें संतुष्ट कर आगे बढ़े। यहाँ भी रास-स्थली है अतः उस स्थान पर एक बड़ा चबूतरा बनाया गया है। महाराज जी के निर्देश के अनुसार गोपीमय हो कर यहाँ नाचना चाहिए। अतः उसी भाव में जैसा हो सका हमलोग नाचे। 
चंद्र सरोवर, गोवर्धन, मथुरा


      इस के पीछे एक बिहारी जी का मंदिर भी है जहाँ हमने माथा टेका। सरोवर के किनारे पेड़ों पर बहुत सारे बन्दर हैं। सरोवर के सामने ही सूरदास जी की कुटिया है। इसी के बगल में उनका समाधि स्थल भी है जहाँ उस वृक्ष का तना सहेज कर रखा गया है जिसके नीचे बैठ कर वे पद्य रचना करते थे। उनकी संक्षिप्त जीवनी एक संगमरमर पत्थर पर अंकित है जिसे यहाँ लगाया गया है। इसके अनुसार श्रीसूरदास जी ने यहाँ अर्थात परासौली गाँव में 73 वर्ष बिताये थे और 105 वर्ष में उन्होंने शरीर त्यागा। 
चंद्र सरोवर के सामने सूर कुटी जहाँ सूरदास जी ने रचनाएँ करते
73 वर्ष बिताए, गोवर्धन, मथुरा


       सूर-कुटी परिसर में भी एक मंदिर है। वहाँ भी हमने दर्शन कर माथा टेका। और अगले मंदिर की ओर निकले।  
सूर कुटी के पास संरक्षित उस पेड़ के अवशेष
जिसके नीचे बैठकर सूरदास जी भजन लिखते थे,
चंद्र सरोवर, गोवर्धन, मथुरा


          10. श्याम ढाक तीर्थ - यह स्थान अपने कदम्ब के विशेष आकार के पत्तों के कारण प्रसिद्ध है जिनका कृष्ण-लीला से भी सम्बन्ध है। लीला कथा यह है कि इस स्थान पर गोपियाँ दही-छाँछ लेकर श्रीकृष्ण को खिलाने आयीं किन्तु भोजन हेतु पात्र लाना भूल गयीं। तब श्रीकृष्ण की लीला से वहाँ के कदम्ब के पत्ते दोने के आकार (कटोरे की तरह) के हो गए जिनमें दही-छाँछ भर कर कृष्ण ने ग्वाल सखाओं संग खाया। इस तरह के दोने को ढाक कहते हैं। आज भी यहाँ के कदम्ब के पत्ते इसी प्रकार ढाक की तरह होते हैं। इस स्थल को इसीलिए श्याम ढाक तीर्थ कहते हैं। 
श्री श्याम ढाक तीर्थ द्वार, डीग, राजस्थान


       यहाँ पर राधा-कृष्ण जी का मंदिर बना है जिसमें माथा टेक कर हम आये। बाहर पक्की कुटिया में श्रीकृष्ण और उनके सखाओं की पत्ते में भोजन करते मूर्तियां बनी हैं। यहाँ के पुजारी जी ने हमें कुछ ढाक जैसे कदम्ब के पत्ते दिखाए जो सूखी थीं। अब ये वृक्ष काफी कम हैं। अतः भक्तों को दिखाने के लिए सहेज कर रखे हैं। 
श्याम ढाक तीर्थ में दोने के आकार का कदम्ब का पत्ता,
डीग, राजस्थान


          परिसर में एक कुंड अर्थात तालाब भी है जिसके घाट पक्के हैं। इसका सौंदर्यीकरण राजा सूरज मल द्वारा कराया गया था किन्तु अभी इसकी सतह पर हरी शैवाल की परत जमी थी। मंदिर का परिसर मनोरम है। 
श्याम ढाक तीर्थ में राजा सूरज मल द्वारा बनवाया सरोवर,
डीग, राजस्थान


     11. पूंछरी का लौठा - गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में यह पूंछरी का लौठा मंदिर स्थित है। गोवर्धन जी का आकार बैठी गाय जैसा है और यह स्थान गाय के पूँछ पर स्थित है। लौठा जी श्रीकृष्ण के बचपन के सखा मधुमंगल ही थे। जब श्रीकृष्ण ब्रज छोड़ कर जाने लगे तो मधुमंगल ने कहा कि मुझे ब्रज छोड़ कर जाने की इच्छा नहीं है, मैं आपके लौटने तक यहीं रहूँगा। कहा जाता है कि श्री कृष्ण के लौटने के इंतजार में वे अभी तक वहीँ हैं। इसीलिए इस स्थान का नाम पूंछरी का लौठा पड़ा। 
श्री मंदिर पुछरी का लौठा, डीग, राजस्थान


      यह भी कहा जाता है कि लौठा सतयुग में शंकर, त्रेता में हनुमान और द्वापर में लौठा अर्थात मधुमंगल थे। श्रीलौठा बाबा के दर्शन से मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति मिलती और सदा सुख-शांति बनी रहती है। 

       12. मुखारविंद - यह स्थान श्री गोवर्धन जी के श्रृंगार का स्थान है जिसे मुखारविंद कहा जाता है। यहाँ पर पुष्प और दूध से पूजा की जाती है। गाड़ी से उतर कर हमलोग गलियों से होते हुए यहाँ तक पहुँचे। गलियों के दोनों तरफ दुकानें थीं। एक दुकान से हमने पूजा के लिए दूध लिया और यहाँ पर उससे अभिषेक किया। आगे गली में बढ़ने पर एक मंदिर मिला जिसके बगल से जिस पर लिखा था "श्री दंडवती शिला मंदिर", यहाँ हमने प्रणाम किया। इसी के बगल से गोवर्धन जी पर चढ़ने का मार्ग था जो ऊपर श्रीनाथ जी के मंदिर तक जाता है। कहा जाता है कि श्रीनाथ जी कहीं रहें, रात को यहीं आकर सोते हैं। हम वहां तक जाना चाहते थे पर चप्पल पहन कर नहीं चढ़ना था और धूप में शिलायें तप रही थीं। हमलोग अभी सोच विचार कर ही रहे थे कि वहां खड़े एक रिक्शा वाले ने कहा कि ऊपर मंदिर बंद हो चुका है। तो हमने यहीं से माथा टेका और वापस मुड़े। 
मुखारविंद, गोवर्धन, मथुरा


      गली में दूध वाले का बर्तन वापस कर पैसे देने थे। उसके सामने एक हलवाई की दुकान थी। महाराज जी ने कहा कि ये आलू की जलेबी बनता है, अगर चखना चाहो तो ले सकते हो। हमने थोड़ा जलेबी लिया और महाराज जी के साथ चखा। किन्तु सच कहूँ तो मुझे यह कोई स्वादिष्ट नहीं लगा। तेल का स्वाद जैसे बार-बार गर्म करने पर होता है वैसा ही आ रहा था। सड़क पर आ कर ड्राइवर को कॉल किया क्योंकि सँकरी सड़क पार्किंग की जगह न थी, उसने थोड़ी दूर पर पार्क किया था। गाड़ी लाने पर हमलोग अगले मंदिर की ओर चले।
श्री गोवर्धन पर्वत पर श्रीनाथ जी का मंदिर,
गोवर्धन


     13. राधा कुण्ड और कृष्ण कुण्ड - ये दोनों कुण्ड अर्थात सरोवर आस-पास ही हैं। श्री कृष्ण ने अपनी बाँसुरी से कृष्ण कुण्ड बनाया था तो श्री राधा जी ने भी अपने कंगन से राधा कुण्ड बनाया। श्री राधा कुंड की बड़ी महिमा है। ऐसी मान्यता है कि जिस दम्पति को संतान नहीं है वे यदि निर्जला व्रत रख कर कार्तिक की अहोई अष्टमी को रात्रि 12 से स्नान करें तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। राधा कुण्ड में हमने आचमन किया और पत्नी ने बगल से दोने में प्रसाद ले कर पुजारी से पूजा कराई। यहाँ की महिमा सुन कर हमलोग अगले स्थान की ओर चले। 
श्री राधा कुण्ड एवं पीछे श्रीकृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, मथुरा


    14. श्री सिद्ध हनुमान मंदिर, मघेरा - आज का हमारा मंदिरो का सिलसिला समाप्ति पर था और अब लौटना था। श्री राधा कुण्ड रोड पर ही मघेरा नामक स्थान पर यह श्री सिद्ध हनुमान जी का मंदिर है जहाँ हमेशा भक्तों की भीड़ रहती है। यह द्वापर कालीन मंदिर है जहाँ श्रीकृष्ण हनुमान जी को भोग चढ़ाते थे। यह एक सिद्ध पीठ है। 
मघेरा वाले सिद्ध हनुमान जी का मंदिर, मघेरा
मथुरा
       इस प्रकार आज की मंदिर भ्रमण यात्रा पूरी कर हमलोग वापस होटल लौटे। घंटे भर आराम कर हमलोग शाम को लोकल मंदिर -आश्रमों में  लिए निकले। कार को छोड़ दिया था आज के लिए क्योंकि उसे सिर्फ 84 कोस यात्रा के लिए ही किया था। हमलोग इ-रिक्शा से निकले और महाराज जी हमे सबसे पहले श्री अनिरुद्धाचार्य जी के आश्रम पर ले गए। 
श्री अनिरुद्धाचार्य जी महाराज का श्री वृंदावन धाम में
गौरी गोपाल वृद्धाश्रम


        यह एक बड़ा और भव्य भवन है जिसका नाम है "गौरी गोपाल वृद्धाश्रम"। हमलोग प्रथम तल पर गये जहाँ एक बहुत बड़ा और सुन्दर सा हॉल था। हॉल की अंतिम वाली दीवार पर श्री राधा कृष्ण एवं राम दरबार की मूर्तियाँ हैं। बड़े बड़े सुन्दर चित्र दीवार पर टंगे थे। तभी देखा कि एक तरफ श्री अनिरुद्धाचार्य जी महाराज मंच पर बैठे हैं और भक्त जन उनके पैर छूने लाइन में लगे हैं। बढ़िया अवसर देख हम पति-पत्नी ने भी उनके पैर छुए। बगल के बड़े हॉल में भंडारा चल रहा था। वृद्धाश्रम तो चलता ही है। 
वृंदावन के इस्कॉन मंदिर में श्री राधा जी और बिहारी का विग्रह


        इसके बाद हमलोग इस्कॉन मंदिर गए। पहले दिन हमलोग शाम को यहाँ नहीं आ पाए थे क्योंकि प्रेम मंदिर से निकलने के बाद सड़क पर अथाह भीड़ हो गयी थी और ओला-वर्षा शुरू हो गयी थी। आज हमें मौका मिला यहाँ आने का। शाम को यहाँ अच्छी भीड़ थी। यहाँ मुख्य मंदिर में श्रीराधा -कृष्ण एवं श्रीकृष्ण बलराम की प्रतिमा है। जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो संध्या भजन और भक्तों का नृत्य चल रहा था। इतना मनमोहक माहौल था कि हटने का मन न होता था। 
इस्कॉन, वृंदावन में श्री श्रीकृष्ण बलराम मंदिर


     मुख्य मंदिर के बाद हमलोग बगल के दूसरे भवन में गए। यहाँ श्रील प्रभुपाद जी की प्रतिमा थी तथा दीवारों पर श्रीकृष्ण लीला से सम्बंधित मनोरम झांकियां थीं। यहाँ दर्शन कर हमलोग बाहर आये। 
वृंदावन के इस्कॉन मंदिर में श्रील प्रभुपाद की मूर्ति

           आज के समय में वृन्दावन की चर्चा बिना श्री प्रेमानंद जी महाराज के अधूरी होती है। तो हमने उनका वह आश्रम देखने का सोचा जहाँ वे भक्तों के प्रश्नो का उत्तर देते हैं और ब्रह्म मुहूर्त में बाहर निकल कर वृन्दावन में कुछ दूर चलते हैं। सुबह उनके दर्शन के लिए भक्त शाम से ही रास्ते के किनारे बैठे रहते हैं। 
श्री प्रेमानंद जी महाराज का आश्रम, श्री हित राधा केलि कुंज
वृंदावन, मथुरा


       उनसे मिलने के लिए यदि आपके पास कोई प्रश्न है तो उनके आश्रम में पहले शिष्यों को बताना होता है। यदि वे आपके सवाल का उत्तर नहीं दे पायें तभी महाराज जी को प्रश्न भेजा जाता है जहाँ वे आपसे तीसरे दिन आश्रम में मिलेंगे। इन शर्तों पर हमारा उनसे भेंट होना तो संभव नहीं था। अतः हमलोग उनके आश्रम में गए और बहार से ही प्रणाम कर निकले। 
कालियाघाट, वृंदावन में प्राचीन कालीदह मंदिर


       इसके बाद श्री सोनू जी महाराज हमें वृन्दावन के कालिया घाट पर प्राचीन कालीदह मंदिर ले गए। यहाँ जो केलि कदम्ब का वृक्ष है वह 5500 वर्ष पुराना बताया जाता है और इसे मनोकामना सिद्ध वृक्ष कहा जाता है। यहाँ आने से पहले महाराज जी ने हमें चश्मा उतार लेने के लिए कहा क्योंकि बन्दर छिपे होते हैं और कब चश्मा छीन कर भाग जाएँ नहीं कह सकते। यह मन्दिर और केलि कदम्ब वृक्ष देख कर, प्रणाम कर हमलोग वापस होटल लौटे।     
                



 
   चौरासी कोस यात्रा के पाँचवें दिन का विवरण अगले ब्लॉगपोस्ट में पढ़ें - "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग -5" ;
                      

इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची



























































  

Wednesday, May 7, 2025

ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग - 3

पिछले ब्लॉगपोस्ट "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग - 2" से आगे :-- 
ध्रुवनारायण मंदिर, मथुरा।
 
       आज हमारी यात्रा का तीसरा दिन था। आज का भ्रमण मथुरा शहर की तरफ था। नित्य की भाँति 8 बजे हमलोग होटल से निकले। कार चलते ही महाराज जी ने प्रभु स्मरण और भजन से शुरुआत की, इसके बाद नियम के अनुसार हम सभी हँसे क्योंकि महाराज जी ने पहले ही कहा था यहाँ हँसी का भी महत्त्व है क्योंकि कहा जाता है कि जो वृन्दावन में हँसा, वही बसा। 
            आज का पहला पड़ाव था कंस का टीला। 

         1. कंस टीला - यह स्थान यमुना नदी के किनारे स्थित है। कच्चे रास्ते हैं पास में और थोड़ी गन्दगी भी। यद्यपि पार्क जैसा डेवलप करने का प्रयास किया गया है किन्तु मेन्टेन नहीं है। कंस टीला एक ऊँचे टीले जैसा है जो कि कंस के किले का एक भाग है। कहा जाता है कि कंस से लड़ाई में कृष्ण ने उसे इसी टीले से नीचे लुढ़काया था। महाराज जी ने कहा कि चाहो तो ऊपर चढ़ सकते हो टीले पर किन्तु ऊपर कुछ खास है नहीं। समतल जैसा मैदान है ऊपर। पत्नी के घुटनों में दर्द रहता है अतः हमने नीचे से ही प्रणाम किया और अगले पड़ाव के लिए तैयार हुए।  
कंस टीला, मथुरा
        2. विश्राम घाट - यमुना के किनारे यह वही घाट है जहाँ कृष्ण बलराम ने कंस को मारने के बाद विश्राम किया था। कंस टीले से वहाँ तक पैदल भी जा सकते हैं और नाव से भी। पैदल जाने में समय और थकान की बात थी अतः हमने मोटर बोट से जाने का ही फैसला किया। बोट वाले आने और जाने का एक साथ ही पैसा ले रहे थे। बोट भर जाने पर चला। महाराज जी बोट के आगे वाले भाग पर एक ऊँचे जगह पर बैठे और "गोविन्द मेरो हैं गोपाल मेरो हैं......... " भजन गाना शुरू किया। सभी साथ गाने लगे और समां बंध गया। महाराज जी पहले कभी भजन मंडली में भी गाते थे।
विश्राम घाट, मथुरा
              विश्राम घाट पर उतर कर हमलोग गलियों से होते हुए द्वारकाधीश मंदिर की ओर चले। महाराज जी ने कहा कि विश्राम घाट पर बैठ कर विश्राम करने और कथा सुनने की परंपरा है। उन्होंने कहा कि यह हमलोग वापसी में आने पर करेंगे और ऐसा ही किया। इस घाट के विपरीत वाले यमुना जी के किनारे टीले पर दुर्वासा मुनि का आश्रम वाला मंदिर दिख रहा था जहाँ हमलोग कल गए थे। 
कृष्ण बलराम का प्राचीन मंदिर, मथुरा।यहाँ कृष्ण ने कुब्जा का
उद्धार किया फिर कंस को मार कर कुब्जा के घर विश्राम किया।
इसीलिए यहाँ का नाम विश्राम घाट पड़ा।
 
       3. द्वारकाधीश मंदिर - मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर में श्री कृष्ण द्वारका के राजा के रूप में पूजे जाते हैं। साथ में राधा रानी जी विराजमान हैं। मंदिर पुराना और भव्य है। पुष्टिमार्ग संप्रदाय का यह प्रसिद्ध मंदिर है। विश्राम घाट से गलियों से हो कर हम चले तो एक पुराना शिव मंदिर मिला जिसमें महाराज जी ने पूजा करने का सुझाव दिया। सुबह से हमलोगों ने खाया नहीं था तो यह सुझाव ठीक लगा। हमने शिवलिंग पर जल चढ़ाया और पूजा कर आगे बढ़े।  द्वारकाधीश मंदिर से थोड़ा पहले एक फूल दूकान पर फूल ले कर हमने चप्प्पल वहीँ उतारे और आगे बढ़े परन्तु मंदिर का पट अभी बंद था और खुलने में थोड़ा देर था। तो महाराज जी हमें फिर फूल दुकान पर वापस लाये और उसे फूलों को रखने बोला और कहा कि हमलोग नाश्ता कर के आते हैं फिर ले जायेंगे। चप्पल पहन हमलोग एक नाश्ते की दुकान पर गए और नाश्ता -चाय ले कर वापस फूल लेकर चले।  
श्री द्वारकाधीश मंदिर, मथुरा ।
 
         मंदिर प्रांगण में घुसने पर देखा कि मंदिर की सीढ़ियों तक ठसाठस भीड़ थी। महाराज जी ने पत्नी को महिलाओं की लाइन में बीच में एक जगह खड़ा किया और बोले कि आराम से आगे बढ़ कर दर्शन करना। मैं और महाराज जी पुरुषों की लाइन में न लगे बल्कि प्रांगण में ही बैठ गए। उनका कहना था कि पट खुलते ही दस मिनट में भीड़ ख़तम हो जाएगी।     
द्वारकाधीश मंदिर के पास यम और यमुनाजी का मंदिर।
विश्व का एक मात्र भाई-बहन का मंदिर ।
 
          पट खुलने में दस मिनट लगे और दस-पंद्रह मिनट में भीड़ दर्शन कर निकल गयी। भीड़ कम होने पर हमलोग लाइन में लगे और भगवान का दर्शन किया। यहाँ सिर्फ दर्शन ही होता है। कोई भी पुजारी आपके हाथ से चढ़ावा ले कर नहीं चढ़ाता। पत्नी ने भी साथ लाये फूल द्वार के पास ही रखे।  
        मंदिर के एक कोने में प्रसाद बिक रहे थे। इनमें कई प्रकार के पकवान आदि थे। महाराज जी के सुझाव के अनुसार मैंने एक ऐसा प्रसाद लिया जिसमें भोजन की थाली जैसे सारे आइटम्स थे। चावल, रोटी, दाल, सब्ज़ी, मिठाई, इत्यादि। एक पैकेट में ही परिवार भर का भोजन था। यहाँ से निकल विश्राम घाट पर बैठ कर हमने कृष्ण कथा सुनी। अभी लिए गए प्रसाद की पोटली महाराज जी ने अपने कुर्ते के अंदर पेट के पास छुपा रखा था वरना बंदरो द्वारा छीने जाने का डर था। बोट का टिकट दिखा कर हमलोग वापसी में मोटर बोट से फिर कंस टीले के पास उतरे जहाँ हमारी कार लगी हुई थी। 

     4. ध्रुव टीला -  आज का अगला पड़ाव था ध्रुव टीला। सीढ़ियों से चढ़ कर हमलोग ऊपर मंदिर में पहुंचे।मंदिर में तीन स्थानों पर सामने मूर्तियाँ स्थापित थीं। मुख्य स्थान पर बीच में भगवान् नारायण,उनकी दाहिनी ओर नारद मुनि तथा बायीं ओर श्री ध्रुव जी महाराज की मूर्तियाँ हैं। ध्रुव टीला वह स्थान बताया जाता है जहाँ पाँच वर्ष की अवस्था में बालक ध्रुव ने नारद जी के कहने पर कठोर तपस्या की थी। यहीं पर नारायण ने प्रसन्न हो कर उन्हें दर्शन और वरदान दिया था। यह स्थान राम और कृष्ण अवतार से भी बहुत प्राचीन है। जिस तरह नारायण ने ध्रुव जी की मनोकामना पूर्ण की, भक्तजन उसी तरह मनोकामना पूर्ण होने की आशा में यहाँ आते हैं। 
ध्रुव टीला, मथुरा।
 
         दूसरे स्थान पर लक्ष्मी, नारायण तथा गरुड़ जी मूर्तियां हैं जबकि तीसरे स्थान पर श्री नाथ जी, श्री अम्बे माँ और श्री उद्धव जी की मूर्तियां हैं। इन सभी मूर्तियों के सामने एक बड़ा सा हॉल है। एक स्थान पर हनुमान जी की भी मूर्ति है। 
ध्रुवनारायण मंदिर, मथुरा।


       5. लवणासुर की गुफा - ध्रुव टीले के पास में ही लवणासुर की गुफा है। सोनू महाराज जी हमें पैदल ही वहां ले गये। रिश्ते में लवणासुर रावण का भांजा था और मधुवन में मधु नामक राक्षस का पुत्र। उसने महादेव की तपस्या कर अमोघ त्रिशूल प्राप्त किया था। अत्याचारी होने के कारण प्रजा त्रस्त थी। मधुवन की इसी गुफा में त्रेता युग में श्री राम के भाई शत्रुघ्न ने उनकी आज्ञानुसार लवणासुर का वध किया था और यहाँ मधुरा (मधुवन स्थान के कारण) नामक राजधानी बसायी जो कालांतर में मथुरा कहलायी। 
लवणासुर की गुफा, मथुरा।
 
           जब हमलोग यहाँ पहुँचे तो देखा कि यहाँ एक तरफ बिहारी जी और राधाजी का मंदिर था। आँगन के दूसरी तरफ एक महादेव मंदिर भी है किन्तु मंदिरों में कम यात्रियों के आने के कारण रौनक कम थी। पुजारी जी ने यहाँ की कथा सुनायी और एक किशोर वय शिष्य को गुफा दिखाने भेजा। सीढ़ी से निचे उतर कर एक कमरे में आये जहाँ सामने दीवार पर महावीर जी की मूर्ति थी, बाईं दीवार में गुफा का एक संकरा अँधेरा द्वार बना था जिसे लवणासुर की गुफा बताई गयी। उसे देख कर ऊपर आये। 
 
लवणासुर गुफा वाले मंदिर
के पुजारी द्वारा बनाया जड़ी-
बूटियों वाला तेल, घुटनों के
दर्द में राहत के लिए

     यहाँ के पुजारी जी जड़ी बूटियों से एक आयुर्वेदिक तेल भी बनाते हैं जो उनके अनुसार घुटनों के दर्द में काफी आराम देता है। इस तेल को घुटनों पर लगाकर बढ़िया से मालिश करनी होती है। करीब 100 मिली के बोतल में काले रंग का यह तेल वे 100 रूपये प्रति बोतल बेचते हैं। पत्नी के घुटनों के लिए मैंने दो बोतल लिए जबकि हमारे गाइड श्री सोनू जी महाराज ने 10 बोतलें लीं, यह बोल कर कि वे लोगों को इस्तेमाल के लिए देंगे और यदि फायदा हुआ तो उनसे सारी बोतलें लेकर जायेंगे। 

        6. ध्रुव नारायण मंदिर और कृष्ण कुण्ड - लवणासुर की गुफा से निकल हमलोग गाड़ी में बैठे और मधुवन में ही अगले पड़ाव पर पहुंचे। यहाँ एक बड़ा सा तालाब था जिसके किनारे पक्के घाट बने थे। महाराज जी ने बताया कि इसे कृष्ण कुंड के नाम से जानते हैं। सामने एक महादेव का मंदिर है जहाँ हमने कुंड में आचमन के बाद माथा टेका। (महाराज जी ने बताया कि माथा टेकने को ब्रज में डोक लगाना बोलते हैं।) चूँकि द्वारकाधीश मंदिर में दर्शन से पहले हमलोग नाश्ता कर चुके थे अतः हम शिवलिंग पर जल न चढ़ा सके। 
ध्रुवनारायण मंदिर, मथुरा।
 
           कुंड के किनारे एक ध्रुवनारायण मन्दिर है जहाँ एक बुजुर्ग पुजारी जी ने हमें बैठा कर ध्रुव जी की कथा सुनाई। शांत स्थान था और उस समय सिर्फ कुछ स्थानीय लोग ही परिसर में थे। 
ध्रुवनारायण मंदिर के पास कृष्ण कुंड।
 
        7. तालवन - ब्रज के बारह वनों में एक ताल वन भी है। यह वह स्थान है जहाँ श्री कृष्ण के बड़े भाई बलभद्र ने धेनुकासुर नामक राक्षस का वध किया था। यहाँ कृष्ण बलराम का एक मंदिर भी है। परिसर में गए किन्तु अब दोपहर का समय होने लगा था और मंदिर का पट बंद हो गया था। हमने माथा टेका और आगे बढ़े।  
कृष्ण-बलभद्र मंदिर, तालवन।
 
      8. इच्छापूर्ण महाबृजेश्वर महादेव - तालवन में ही सड़क से सटे एक इच्छापूर्ण महाबृजेश्वर महादेव मंदिर है जहाँ लोक मान्यता के अनुसार इच्छा पूरी होती है। किन्तु यह मंदिर भी उस समय बंद हो चुका था, अतः यहाँ हमने सिर्फ प्रणाम किया। इसी मंदिर के सामने सड़क के दूसरी तरफ एक और मंदिर है जिसे गंगासागर मंदिर बोला जाता है। यह वह स्थान है जहाँ दाऊ जी और कपिल मुनि की भेंट हुयी थी। मंदिर में एक पुजारी जी और उनकी पत्नी थीं।  
इच्छापूर्ण महादेव, तालवन, मथुरा


            इस मंदिर में दर्शन कर माथा टेका। हमलोग कुछ देर बैठे और पानी पिया। दोपहर होने के कारण यात्री नहीं थे। गांव का वातावरण था और शांति थी। 
 
गंगासागर मंदिर, तालवन, मथुरा

     9. कुमुदवन - ब्रज के बारह वनों में से यह सबसे छोटा वन है। यहाँ कपिल मुनि ने तपस्या की थी और श्रीकृष्ण की पूजा की थी। कपिल मुनि का एक छोटा मंदिर बना हुआ है यहाँ। पास में ही राधा-कृष्ण जी का भी मंदिर है। इसके पीछे एक तालाब है जिसे कुमुदनी कुंड या पद्म कुंड कहा जाता है। यहाँ श्रीकृष्ण और बलराम ग्वाल बाल संग खेला करते थे और कभी -कभी राधा -कृष्ण इसमें विहार करते थे। यह कुण्ड उस समय कुमुदनी फूलों से भरा होता था। 
कुमुद वन में कपिल मुनि का मंदिर, मथुरा
 
       10. शांतनु कुंड - कुमुद वन से जब हमलोग चले तो अगला लक्ष्य था शांतनु कुंड। किन्तु अब भूख लगने लगी थी और हमारे पास श्री द्वारकाधीश मंदिर से लिया गया प्रसाद भी था। तो हाईवे पर एक जगह देख कर हमलोगों ने प्रसाद पाया और आगे बढ़े। सातोह में शांतनु कुंड एक बड़ा तालाब है जहाँ तक जाने के लिए हमें मोहल्ले जैसी सडकों से जाना पड़ा। यह एक पक्का तालाब है जहाँ बीच में एक ऊँचे टीले पर शांतनु बिहारी जी का मंदिर है। इस स्थान पर शांतनु ने कई हज़ार वर्षों तक तप किया था और श्रीकृष्ण को प्रसन्न किया था। 
शान्तनु कुंड और शांतनु बिहारी का मंदिर, सातोह, मथुरा
 
           तालाब को पार कर मंदिर तक जाने के लिए एक पुल बना है। मान्यता यह है कि शान्तनु कुंड में स्नान करने से निःसंतान दम्पत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है। दोपहर का समय होने के कारण यहाँ का भी मंदिर बंद हो चुका था। मंदिर में काम कर रहे मजदूरों ने ही ऊपर से बताया कि पट बंद है। अतः चढ़ाई कर ऊपर जाने से अच्छा हमने कुंड से आचमन किया, डोक लगाया और लौटे। 

       11. भूतेश्वर महादेव - ब्रज के प्रमुख महादेव मंदिरों में से भूतेश्वर महादेव मंदिर एक हैं। टेढ़ी-मेढ़ी गलियों के कारण मंदिर तक गाड़ी नहीं जाती, सिर्फ दोपहिया या पैदल जा सकते हैं। एक रेलवे अंडरपास के निकट गाड़ी से उतर कर हमलोग गलियों से होते हुए मंदिर पहुँचे। यह मंदिर मथुरा का अति प्राचीन मंदिर है। मंदिर खुला था और हमने दर्शन किये, माथा टेका। शिवलिंग पर बने शिवजी के होंठ गोल खुले हैं जैसे ॐ या भू का उच्चारण कर रहे हों। 
भूतेश्वर महादेव मंदिर, मथुरा
 
         परिसर में ही एक भगवती का प्राचीन मंदिर है जो नीचे एक गुफा में है। सीढ़ियों से उतर कर हमने दर्शन किये। यह शक्तिपीठ है जहाँ माता सती के केश गिरे थे। यह उमा कात्यायिनी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता और 51 शक्तिपीठों में से यह 11 वां शक्तिपीठ है। इन्हें पाताल देवी गुफा मंदिर भी बोला जाता है। कंस इनकी पूजा करता था। दर्शन कर हमलोग थोड़ी देर मंदिर में बैठे। भोग का प्रसाद मिला, जिसे खा कर हमलोग निकले। 
उमा कात्यायनी माता, भूतेश्वर महादेव मंदिर परिसर, मथुरा
 
       12. महाविद्या देवी मंदिर - हमारा अगला पड़ाव था महाविद्या देवी मंदिर जो एक टीले पर है। सीढ़ियों से चढ़ कर हमलोग ऊपर मंदिर तक पहुंचे जहाँ सामने एक बेल वृक्ष पर एक पालतु लंगूर बैठा था जिसके गले में एक लम्बी रस्सी बंधी थी। मंदिर के अंदर हॉल में पुजारी आराम कर रहे थे और उन्होंने एक और छोटा लंगूर पाल रखा था। गर्भ गृह का पट अभी बंद था। हमें लगभग आधा घंटा प्रतीक्षा करनी पड़ी तब देवी जी का दर्शन हुआ। 
महाविद्या देवी मंदिर, मातुरा
 
        महाविद्या देवी को श्रीकृष्ण की कुलदेवी बताया जाता है। ऐसी लोक मान्यता है कि कंस वध से पहले उन्होंने महाविद्या देवी की पूजा और परिक्रमा की थी। 
महाविद्या देवी मंदिर के सामने पेड़ पर लंगूर, मथुरा
 
      13. श्रीकृष्ण जन्म भूमि - आज की यात्रा का अंतिम पड़ाव था श्रीकृष्ण जी का जन्म स्थान। गाड़ी थोड़ी दूर में ही छोड़ कर हमलोग इस मंदिर के लिए चले। यह एक संवेदनशील स्थल है अतः सुरक्षा सम्बन्धी कड़ाई ज्यादा है। द्वार पर सुरक्षा जाँच के कारण लाइनें थीं। पर्स छोड़ कर सारी वस्तुएँ गेट पर ही जमा करनी होती है। पुरुष में भीड़ काम थी पर महिलाओं में लम्बी लाइन थी। इसी कारण द्वार के अंदर पुरुष प्रवेश के बाद भी परिवार की महिलाओं की प्रतीक्षा करते दिखे। प्रतीक्षा के बाद जब पत्नी ने प्रवेश किया तब हमलोग मंदिर की तरफ बढ़े। 
          जन्म स्थान कारागार की तरह लम्बे संकरे गलियारे से जाते हैं, किन्तु यहाँ जाने से पहले हमलोगों ने महाराज जी के सुझाव के अनुसार बायीं तरफ दो मंदिरों का दर्शन किया। पास ही एक कुआँ भी है जो ढँका है। इसके बाद हमलोग जन्मस्थान के लिए लाइन में लगे जहाँ थोड़ी भीड़ थी। पंद्रह मिनट लगे गलियारे से हो कर जन्म स्थान तक जाने में। यह जन्मस्थान वही कंस का कारागार है जहाँ कंस ने कृष्ण के माता-पिता देवकी और वसुदेव को बंदी बनाकर रखा था। यहाँ हमने माथा नवांया। पुलिसवाले रुकने नहीं देते और लाइन को आगे बढ़ाते रहते हैं। हमारे बढ़ते ही भगवान का पर्दा खींच दिया गया जैसा कृष्ण मंदिरों में थोड़ी-थोड़ी देर में करते हैं। यह पुराना भवन है। यहाँ से निकल हमलोग परिसर में खुले में आये। यहाँ पर भगवान् का एक बड़ा मंदिर है जो बाद में बना। सीढ़ियों से चढ़ कर इस मंदिर में गए जहाँ राधा -कृष्ण जी की सुन्दर सी प्रतिमा है। हॉल बहुत बड़ा है, दर्शन कर हमलोग थोड़ा बैठे। 
          मोबाइल पर प्रतिबंध के कारण कोई फोटो न खींच पाये। मंदिर की सीढ़ियों से उतरे तो महाराज जी ने एक प्रदर्शनी गैलरी का टिकट खरीदवाया। हम दोनों पति-पत्नी ही गए अंदर जहाँ कृष्ण लीलाओं से सम्बंधित मूर्तियाँ एक लाइन से लगाई गयीं थीं। टिकट सहेज कर रखने के लिए महाराज जी ने बोला था। जब हमलोग गैलरी से निकले तो सीढ़ियों से उतर कर दूसरी तरफ एक और गुफानुमा प्रदर्शनी थी उसमें भी उसी टिकट पर घुसे। इसमें भी कृष्ण द्वारा अनेक असुरों के वध की झाँकियाँ थीं। 
           जन्मभूमि से लौट कर हमलोग वृन्दावन में अपने होटल आये और महाराज जी दो घंटे बाद आने को बोल कर अपने आवास को गए। आराम करने के बाद हमलोग तैयार हो कर शाम 6 बजे महाराज जी के साथ निकले। सबसे पहले हमलोग वृन्दावन में प्रियकांत जू का मंदिर गए जो प्रसिद्ध कथावाचक श्री देवकीनंदन ठाकुर जी द्वारा बनवाया गया है। मंदिर प्रथम तल पर है और कमल की पंखुड़ियों जैसी संरचना बनायीं गयी है।सुन्दर मंदिर है किन्तु गर्भ गृह के पास फर्श पर लगभग तीन इंच का लेवल में अंतर होने से ठेस की संभावना रहती है। हमारे साथ अंदर प्रवेश करने वाले एक भक्त की पैर की अँगुलियों में जोर की ठेस लगी और रक्त बहने लगा। दर्शन से पहले भूतल पर गर्भ गृह के नीचे बने झाँकियों की गैलरी से हो कर प्रथम तल के मंदिर में जाना होता है। इनमें कृष्ण लीलाओं का वर्णन है। इन्हें देख कर गर्भ-गृह में प्रियकांत जू का दर्शन कर हमलोग बहार आये। 
 
देवकीनंदन ठाकुर जी का प्रियकांत जू मंदिर,
वृंदावन

         प्रियकांत जू मंदिर से थोड़ी दूर पर एक भव्य मंदिर नया बना है जिसका नाम है चंद्रोदय मंदिर। अभी भी इसमें कार्य लगा हुआ है। एक बड़े एवं सुन्दर परिसर में यह मंदिर है। दूसरे तल पर एक बहुत बड़े से हॉल में एक तरफ राधा-कृष्ण जी की सुन्दर प्रतिमाएं हैं। शाम का समय था। एक तरफ ढोलक-मृदंग पर भजन हुआ। दर्शन कर हॉल से निकले। 
 
चन्द्रोदय मंदिर, वृंदावन

       हॉल से निकास के पास विभिन्न प्रसाद एवं मिठाई बेचीं जा रही थी। दो फ्लोर हो कर नीचे निकलने का रास्ता कुछ ऐसी जगहों से था जहाँ कई तरह की सामग्रियाँ, किताबें, भोज्य पदार्थ इत्यादि बेचे जा रहे थे। मंदिर से निकल बाहर गार्डेन के पास थोड़ी देर बैठे जहाँ शाम का वातावरण बहुत सुहाना लग रहा था। 
चंद्रोदय मंदिर में राधाजी संग विराजे बिहारी जी, वृंदावन
 
        अब हमलोगों ने वापस लौटने का निश्चय किया। महाराज जी हमें होटल के पास विदा कर अपने निवास स्थान की ओर गये। 


 
   चौरासी कोस यात्रा के चौथे दिन का विवरण अगले ब्लॉगपोस्ट में पढ़ें - "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग -4" ;
                      

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