अब तक हमारी तीन दिनों की यात्रा संपन्न हुई थी। आज चौथे दिन की यात्रा प्रारम्भ हो रही थी। नित्य की भाँति आठ बजे सुबह हमलोग तैयार हो कर निकले। महाराज जी ने बताया आज हमें गोवर्धन जी के तरफ वाली रूट पर जाना है। आज सबसे पहले हमलोग गए बाटी गॉंव में।
1. बहुला वन - बाटी गॉंव में सबसे पहले हमने महाप्रभु जी की बैठक को देखा और माथा टेका। इस क्षेत्र को बहुला वन कहा जाता है। यहाँ की महत्ता यह है कि बहुला नाम की एक गाय की रक्षा श्रीकृष्ण ने की थी। बहुला गाय वन में चर रही थी, तभी एक बाघ ने उसे अपना भोजन बनाना चाहा। गाय ने उससे अनुरोध किया कि मेरा बछड़ा भूखा है, मुझे अपने मालिक के घर जा कर उसे दूध पिलाने दो फिर मैं आ कर तुम्हें स्वयं को भोजन के लिए प्रस्तुत कर दूंगी। बाघ ने उसे जाने दिया। गाय ने अपने ब्राह्मण मालिक के घर जा कर बछड़े को कहा कि आज भर पेट दूध पी लो क्योंकि मैंने बाघ को वचन दिया है कि बछड़े को दूध पिला कर मैं तुम्हारे पास आ जाऊँगी। यह सुन कर बछड़ा बोला - नहीं, मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ, बाघ को बोलूंगा कि मुझे खा ले, तुम्हें छोड़ दे। ब्राह्मण मालिक भी उनकी बातें सुन रहा था। वह भी उनके पीछे चला। बाघ प्रतीक्षा कर रहा था। गाय ने कहा अब मुझे खा लो। बछड़े और ब्राह्मण दोनों ने बाघ से कहा कि मुझे खा लो पर गौ को छोड़ दो। उन तीनों का यह त्याग देख कर श्रीकृष्ण स्वयं प्रकट हुए जिससे बाघ का भी हृदय परिवर्तन हो गया और उसने उनको छोड़ दिया।
जब चैतन्य महाप्रभु यहाँ पधारे थे तो बहुलावन उन्हें बहुत अच्छा लगा। इसके बारे में चैतन्य चरितामृत में भी विवरण दिया गया है। यहाँ मंदिर के पास एक सरोवर है जिसे बहुला सरोवर कहा जाता है।
2. मुखराय गाँव - हमारा अगला पड़ाव था मुखराय गाँव। यहाँ राधा जी की ननिहाल है। उनकी नानी का नाम मुखरा देवी था और माँ का नाम कीर्ति देवी। यहाँ राधाजी की प्रतिमा उनकी माँ और नानी के साथ स्थापित है।
राधाजी की माँ कीर्ति देवी का जन्म स्थल भी यहीं है।
3. कुसुम सरोवर - हमलोग गोवर्धन परिक्रमा पथ पर पहुँचे। जा कर महाराज जी के सुझाव के अनुसार हमलोग गाड़ी से उतर कर परिक्रमा पथ पर माथा टेका, फिर गाड़ी में सवार हो कर परिक्रमा पथ पर आगे बढ़े। थोड़ी दूर पर एक राधा-कृष्ण मंदिर में जा कर प्रणाम किया जहाँ से करीब एक किलोमीटर आगे कुसुम सरोवर है। यहाँ राधा-कृष्ण जी सरोवर में विहार किया करते थे। चारों तरफ से पक्की दीवारों से घिरा बहुत ही सुन्दर सरोवर है जिसके एक किनारे सैंड स्टोन का बना सुन्दर भवन है। यहाँ जाट राजा सूरजमल की छतरी भी है।
सरोवर के गेट के पास एक प्राचीन श्री श्री राधा बनबिहारी जी का भी मंदिर है। सरोवर के एक हिस्से में नारद कुंड है जहाँ नारद जी द्वारा भक्ति सूत्र की रचना की गयी थी।
4. चक्रेश्वर महादेव मन्दिर - अगला पड़ाव था श्री चक्रेश्वर महादेव मंदिर जिन्हें चकलेश्वर महादेव मंदिर भी कहा जाता है। ब्रज में पाँच मुख्य महादेव मंदिर हैं। जब इंद्र के कोप से बचने के लिए श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को ऊँगली पर उठाया था तो अथाह जल राशि को महादेव के त्रिशूल ने पर्वत के एक किनारे पर चक्र की तरह घूम कर उड़ा दिया था। कृष्ण-प्रेम के कारण शिव जी ने चक्रेश्वर अथवा चकलेश्वर महादेव के रूप में ब्रज में रह कर ब्रजवासियों की रक्षा करना स्वीकार किया।
यह एक प्रचीन मंदिर है और यहाँ की विशेषता यह है कि गर्भ गृह में एक नहीं बल्कि पाँचो महादेव लिंग रूप में विद्यमान हैं। जब यहाँ हमलोग पहुंचे तो सुबह से उपवास ही था और स्नान इत्यादि तो किया था ही। तो महादेव का जलाभिषेक करने और स्पर्श पूजन का अवसर मिल गया और स्वयं को धन्य मानते हुए हमलोग अगले स्थल को चले।
5. मानसी गंगा - चकलेश्वर महादेव मंदिर से थोड़ी ही दूर पर एक बहुत बड़ा सरोवर है जिसे मानसी गंगा कहा जाता है। हमलोग यहाँ पैदल ही गये। कहा जाता है कि एक दिन गंगा जी कह रही थीं यमुना जी से कि तुम कितनी भाग्यशाली हो कि तुम्हें हमेशा ब्रज का सान्निध्य मिला है और मैं कितनी दूर हूँ उस पुण्य भूमि से। श्रीकृष्ण ने गंगा जी के मन की बात जान ली और अपने ध्यान से गंगा जी को एक सरोवर के रूप में व्रज में स्थान दिया। तभी से इसे मानसी गंगा कहा जाता है क्योंकि श्रीकृष्ण के मन से प्रकट हुईं। यहाँ का जल अति पवित्र माना जाता है।
6. पैठा गाँव में ठाकुर जी का मंदिर - अगला स्थल था पैठा गाँव के ठाकुर जी का मंदिर। यहाँ एक पर्यटन विभाग का बोर्ड भी लगा था किन्तु इस प्राचीन मंदिर के भवन की हालत जीर्ण हो रही है। बोर्ड पर श्री राधाकृष्ण मंदिर लिखा था और मंदिर द्वार के ऊपर "श्री ठाकुर राधारमण जी विराजमान -ग्राम पैंठा" अंकित था। बाहर के यात्री उस समय न थे। हमलोगों ने बिहारी जी का दर्शन किया और नारायण सरोवर की तरफ चले।
7. पैंठा गाँव में चतुर्भुज नाथ जी का मंदिर - उसी गाँव में ठाकुर श्री चतुर्भुज नारायण जी का मंदिर है जहाँ हमलोग गाड़ी से ही गए। मंदिर से पहले ही एक सरोवर मिलता है जिसे नारायण सरोवर कहा जाता है। जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो सरोवर की सफाई और विकास का कार्य चल रहा था, अतः सरोवर में पानी न के बराबर ही था।
सरोवर के आगे मुख्य श्री चतुर्भुज नाथ जी का मंदिर है जो प्रभावशाली है। पैंठा ग्राम में स्थित इस मंदिर स्थल को "श्रीधाम ऐंठा कदम" के नाम से भी जाना जाता है। महाराज जी ने बताया कि ऐसा नाम इसलिए पड़ा कि यहाँ जो भी कदम के पेड़ होते थे उनके तने इस प्रकार होते थे जैसे किसी ने इसे ऐंठ दिया हो। अभी एक छोटा सा ऐंठा वृक्ष परिसर में था। श्री चतुर्भुज नाथ जी मंदिर के सामने भी मंदिर हैं जिनमे अन्य देवताओं का भी विग्रह है। परिसर में एक घेरे में श्री गोवर्धन जी के पत्थरों से एक गोवर्धन पर्वत का प्रतिरूप बना है। यह स्थल और नारायण सरोवर भी श्री राधाकृष्ण की लीलाओं से सम्बंधित है।
8. पैंठा गाँव में श्रीजानकीवल्लभ मंदिर - इस मंदिर के गर्भ गृह में सामने श्री राम दरबार का विग्रह है। इनके एक तरफ श्री लक्ष्मी नारायण दरबार और दूसरी तरफ श्री राधाकृष्ण दरबार के विग्रह हैं। इस मंदिर की विशेषता है कि यहाँ एक पुराने "ऐंठा वृक्ष" का तना शीशे के घेरे में सुरक्षित है।
मंदिर के परिसर में कई बड़े वृक्ष हैं तथा पुराने पत्थरों को सुरक्षित रखा गया है। परिसर के बगल में ही एक बड़ा सरोवर भी है।
9. चंद्र सरोवर - श्री गोवर्धन क्षेत्र में यह एक प्रसिद्ध सरोवर है। इसी के किनारे सूरदास जी रहते थे और श्रीकृष्ण पर पद्य लिखते थे। सरोवर का बढ़िया विकास किया गया है। सरोवर अष्टकोणीय है और इसके चारो तरफ सूरदास जी के अतिरिक्त चार और कृष्ण भक्त कवियों की प्रतिमाएं लगी हैं। हमने इस पुण्य सरोवर के जल से आचमन किया। उसी समय वहाँ के दो पुजारी आये और मन्त्र इत्यादि पढ़ कर दक्षिणा के लिए खड़े हो गए। उन्हें संतुष्ट कर आगे बढ़े। यहाँ भी रास-स्थली है अतः उस स्थान पर एक बड़ा चबूतरा बनाया गया है। महाराज जी के निर्देश के अनुसार गोपीमय हो कर यहाँ नाचना चाहिए। अतः उसी भाव में जैसा हो सका हमलोग नाचे।
इस के पीछे एक बिहारी जी का मंदिर भी है जहाँ हमने माथा टेका। सरोवर के किनारे पेड़ों पर बहुत सारे बन्दर हैं। सरोवर के सामने ही सूरदास जी की कुटिया है। इसी के बगल में उनका समाधि स्थल भी है जहाँ उस वृक्ष का तना सहेज कर रखा गया है जिसके नीचे बैठ कर वे पद्य रचना करते थे। उनकी संक्षिप्त जीवनी एक संगमरमर पत्थर पर अंकित है जिसे यहाँ लगाया गया है। इसके अनुसार श्रीसूरदास जी ने यहाँ अर्थात परासौली गाँव में 73 वर्ष बिताये थे और 105 वर्ष में उन्होंने शरीर त्यागा।
सूर-कुटी परिसर में भी एक मंदिर है। वहाँ भी हमने दर्शन कर माथा टेका। और अगले मंदिर की ओर निकले।
![]() |
सूर कुटी के पास संरक्षित उस पेड़ के अवशेष जिसके नीचे बैठकर सूरदास जी भजन लिखते थे, चंद्र सरोवर, गोवर्धन, मथुरा |
10. श्याम ढाक तीर्थ - यह स्थान अपने कदम्ब के विशेष आकार के पत्तों के कारण प्रसिद्ध है जिनका कृष्ण-लीला से भी सम्बन्ध है। लीला कथा यह है कि इस स्थान पर गोपियाँ दही-छाँछ लेकर श्रीकृष्ण को खिलाने आयीं किन्तु भोजन हेतु पात्र लाना भूल गयीं। तब श्रीकृष्ण की लीला से वहाँ के कदम्ब के पत्ते दोने के आकार (कटोरे की तरह) के हो गए जिनमें दही-छाँछ भर कर कृष्ण ने ग्वाल सखाओं संग खाया। इस तरह के दोने को ढाक कहते हैं। आज भी यहाँ के कदम्ब के पत्ते इसी प्रकार ढाक की तरह होते हैं। इस स्थल को इसीलिए श्याम ढाक तीर्थ कहते हैं।
यहाँ पर राधा-कृष्ण जी का मंदिर बना है जिसमें माथा टेक कर हम आये। बाहर पक्की कुटिया में श्रीकृष्ण और उनके सखाओं की पत्ते में भोजन करते मूर्तियां बनी हैं। यहाँ के पुजारी जी ने हमें कुछ ढाक जैसे कदम्ब के पत्ते दिखाए जो सूखी थीं। अब ये वृक्ष काफी कम हैं। अतः भक्तों को दिखाने के लिए सहेज कर रखे हैं।
परिसर में एक कुंड अर्थात तालाब भी है जिसके घाट पक्के हैं। इसका सौंदर्यीकरण राजा सूरज मल द्वारा कराया गया था किन्तु अभी इसकी सतह पर हरी शैवाल की परत जमी थी। मंदिर का परिसर मनोरम है।
11. पूंछरी का लौठा - गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में यह पूंछरी का लौठा मंदिर स्थित है। गोवर्धन जी का आकार बैठी गाय जैसा है और यह स्थान गाय के पूँछ पर स्थित है। लौठा जी श्रीकृष्ण के बचपन के सखा मधुमंगल ही थे। जब श्रीकृष्ण ब्रज छोड़ कर जाने लगे तो मधुमंगल ने कहा कि मुझे ब्रज छोड़ कर जाने की इच्छा नहीं है, मैं आपके लौटने तक यहीं रहूँगा। कहा जाता है कि श्री कृष्ण के लौटने के इंतजार में वे अभी तक वहीँ हैं। इसीलिए इस स्थान का नाम पूंछरी का लौठा पड़ा।
यह भी कहा जाता है कि लौठा सतयुग में शंकर, त्रेता में हनुमान और द्वापर में लौठा अर्थात मधुमंगल थे। श्रीलौठा बाबा के दर्शन से मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति मिलती और सदा सुख-शांति बनी रहती है।
12. मुखारविंद - यह स्थान श्री गोवर्धन जी के श्रृंगार का स्थान है जिसे मुखारविंद कहा जाता है। यहाँ पर पुष्प और दूध से पूजा की जाती है। गाड़ी से उतर कर हमलोग गलियों से होते हुए यहाँ तक पहुँचे। गलियों के दोनों तरफ दुकानें थीं। एक दुकान से हमने पूजा के लिए दूध लिया और यहाँ पर उससे अभिषेक किया। आगे गली में बढ़ने पर एक मंदिर मिला जिसके बगल से जिस पर लिखा था "श्री दंडवती शिला मंदिर", यहाँ हमने प्रणाम किया। इसी के बगल से गोवर्धन जी पर चढ़ने का मार्ग था जो ऊपर श्रीनाथ जी के मंदिर तक जाता है। कहा जाता है कि श्रीनाथ जी कहीं रहें, रात को यहीं आकर सोते हैं। हम वहां तक जाना चाहते थे पर चप्पल पहन कर नहीं चढ़ना था और धूप में शिलायें तप रही थीं। हमलोग अभी सोच विचार कर ही रहे थे कि वहां खड़े एक रिक्शा वाले ने कहा कि ऊपर मंदिर बंद हो चुका है। तो हमने यहीं से माथा टेका और वापस मुड़े।
गली में दूध वाले का बर्तन वापस कर पैसे देने थे। उसके सामने एक हलवाई की दुकान थी। महाराज जी ने कहा कि ये आलू की जलेबी बनता है, अगर चखना चाहो तो ले सकते हो। हमने थोड़ा जलेबी लिया और महाराज जी के साथ चखा। किन्तु सच कहूँ तो मुझे यह कोई स्वादिष्ट नहीं लगा। तेल का स्वाद जैसे बार-बार गर्म करने पर होता है वैसा ही आ रहा था। सड़क पर आ कर ड्राइवर को कॉल किया क्योंकि सँकरी सड़क पार्किंग की जगह न थी, उसने थोड़ी दूर पर पार्क किया था। गाड़ी लाने पर हमलोग अगले मंदिर की ओर चले।
13. राधा कुण्ड और कृष्ण कुण्ड - ये दोनों कुण्ड अर्थात सरोवर आस-पास ही हैं। श्री कृष्ण ने अपनी बाँसुरी से कृष्ण कुण्ड बनाया था तो श्री राधा जी ने भी अपने कंगन से राधा कुण्ड बनाया। श्री राधा कुंड की बड़ी महिमा है। ऐसी मान्यता है कि जिस दम्पति को संतान नहीं है वे यदि निर्जला व्रत रख कर कार्तिक की अहोई अष्टमी को रात्रि 12 से स्नान करें तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। राधा कुण्ड में हमने आचमन किया और पत्नी ने बगल से दोने में प्रसाद ले कर पुजारी से पूजा कराई। यहाँ की महिमा सुन कर हमलोग अगले स्थान की ओर चले।
14. श्री सिद्ध हनुमान मंदिर, मघेरा - आज का हमारा मंदिरो का सिलसिला समाप्ति पर था और अब लौटना था। श्री राधा कुण्ड रोड पर ही मघेरा नामक स्थान पर यह श्री सिद्ध हनुमान जी का मंदिर है जहाँ हमेशा भक्तों की भीड़ रहती है। यह द्वापर कालीन मंदिर है जहाँ श्रीकृष्ण हनुमान जी को भोग चढ़ाते थे। यह एक सिद्ध पीठ है।
![]() |
मघेरा वाले सिद्ध हनुमान जी का मंदिर, मघेरा मथुरा |
यह एक बड़ा और भव्य भवन है जिसका नाम है "गौरी गोपाल वृद्धाश्रम"। हमलोग प्रथम तल पर गये जहाँ एक बहुत बड़ा और सुन्दर सा हॉल था। हॉल की अंतिम वाली दीवार पर श्री राधा कृष्ण एवं राम दरबार की मूर्तियाँ हैं। बड़े बड़े सुन्दर चित्र दीवार पर टंगे थे। तभी देखा कि एक तरफ श्री अनिरुद्धाचार्य जी महाराज मंच पर बैठे हैं और भक्त जन उनके पैर छूने लाइन में लगे हैं। बढ़िया अवसर देख हम पति-पत्नी ने भी उनके पैर छुए। बगल के बड़े हॉल में भंडारा चल रहा था। वृद्धाश्रम तो चलता ही है।
इसके बाद हमलोग इस्कॉन मंदिर गए। पहले दिन हमलोग शाम को यहाँ नहीं आ पाए थे क्योंकि प्रेम मंदिर से निकलने के बाद सड़क पर अथाह भीड़ हो गयी थी और ओला-वर्षा शुरू हो गयी थी। आज हमें मौका मिला यहाँ आने का। शाम को यहाँ अच्छी भीड़ थी। यहाँ मुख्य मंदिर में श्रीराधा -कृष्ण एवं श्रीकृष्ण बलराम की प्रतिमा है। जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो संध्या भजन और भक्तों का नृत्य चल रहा था। इतना मनमोहक माहौल था कि हटने का मन न होता था।
मुख्य मंदिर के बाद हमलोग बगल के दूसरे भवन में गए। यहाँ श्रील प्रभुपाद जी की प्रतिमा थी तथा दीवारों पर श्रीकृष्ण लीला से सम्बंधित मनोरम झांकियां थीं। यहाँ दर्शन कर हमलोग बाहर आये।
![]() |
वृंदावन के इस्कॉन मंदिर में श्रील प्रभुपाद की मूर्ति |
आज के समय में वृन्दावन की चर्चा बिना श्री प्रेमानंद जी महाराज के अधूरी होती है। तो हमने उनका वह आश्रम देखने का सोचा जहाँ वे भक्तों के प्रश्नो का उत्तर देते हैं और ब्रह्म मुहूर्त में बाहर निकल कर वृन्दावन में कुछ दूर चलते हैं। सुबह उनके दर्शन के लिए भक्त शाम से ही रास्ते के किनारे बैठे रहते हैं।
उनसे मिलने के लिए यदि आपके पास कोई प्रश्न है तो उनके आश्रम में पहले शिष्यों को बताना होता है। यदि वे आपके सवाल का उत्तर नहीं दे पायें तभी महाराज जी को प्रश्न भेजा जाता है जहाँ वे आपसे तीसरे दिन आश्रम में मिलेंगे। इन शर्तों पर हमारा उनसे भेंट होना तो संभव नहीं था। अतः हमलोग उनके आश्रम में गए और बहार से ही प्रणाम कर निकले।
इसके बाद श्री सोनू जी महाराज हमें वृन्दावन के कालिया घाट पर प्राचीन कालीदह मंदिर ले गए। यहाँ जो केलि कदम्ब का वृक्ष है वह 5500 वर्ष पुराना बताया जाता है और इसे मनोकामना सिद्ध वृक्ष कहा जाता है। यहाँ आने से पहले महाराज जी ने हमें चश्मा उतार लेने के लिए कहा क्योंकि बन्दर छिपे होते हैं और कब चश्मा छीन कर भाग जाएँ नहीं कह सकते। यह मन्दिर और केलि कदम्ब वृक्ष देख कर, प्रणाम कर हमलोग वापस होटल लौटे।
चौरासी कोस यात्रा के पाँचवें दिन का विवरण अगले ब्लॉगपोस्ट में पढ़ें - "ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग -5" ;
इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
34. Panchghagh Waterfalls (पंचघाघ झरने), Khunti/Ranchi, Jharkhand
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah