![]() |
श्री माँ नयना देवी मंदिर, नैनीताल का प्रवेश द्वार |
नैनीताल में माता नैना देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है जहाँ माता सती के एक नयन अर्थात आँख गिरी थी, जब श्री विष्णु ने शिव के कंधे पर स्थित सती के शरीर को चक्र से 51 टुकड़ों में काटा था जिससे शिव उनका शोक भूल सकें। ये 51 स्थान शक्तिपीठ कहलाते हैं जो भारत के विभिन्न भागों में स्थित हैं। शक्तिपीठों को भगवती माँ का विशेष सिद्धपीठ माना जाता है जहाँ जाना, दर्शन करना या पूजा करना कई गुना ज्यादा फलदायी माना जाता है।
![]() |
शक्तिपीठ माँ नयना देवी का मंदिर, नैनीताल |
नैनीताल का यह शक्तिपीठ मन्दिर बिलकुल नैनीताल झील के किनारे बहुत ही मनोरम स्थान में बना हुआ है। यह झील दो बहुत ही ऊंचे पहाड़ों के बीच प्राकृतिक रूप स बना हुआ है। नयना देवी के मन्दिर के कारण ही इसका नैनीताल नाम पड़ा किन्तु इस नाम के पीछे एक और भी कारण है। वह यह कि जब बगल के पहाड़ की ऊंचाईंयों से से इस झील को देखा जाता है तो इसका आकार भी आँख की आकार का दिखता है, इसलिए भी इसे नैनीताल बोला जाता है। इस वर्ष मई के महीने में जब काफी गर्मी पड़ रही थी तो हमने अपने विवाह की वर्षगाँठ इसी धार्मिक स्थल पर मानाने की सोची क्योंकि ऊंचाई पर होने के कारण वहां गर्मी से राहत होती। इसके अलावा एक और कारण था यहाँ आने का, और वह था कैंची धाम की यात्रा जो यहाँ से पास ही है। हमलोग परिवार के चार जन जाने वाले थे।
![]() |
नई दिल्ली हवाई अड्डे से कैब द्वारा नैनीताल यात्रा |
जाने से पहले यात्रा की योजना बनानी थी जिसमें यातायात एवं रात्रि विश्राम के लिए व्यवस्था सोचनी थी। दो दिन तो आने -जाने में ही लगने थे तो दो दिन हमने वहाँ रहने का सोचा। नैनीताल का मॉल रोड सबसे चहल-पहल वाला इलाका है। यह रोड नैनीताल झील के किनारे - किनारे बना है जहाँ विभिन्न प्रकार की दुकानें, रेस्टोरेंट्स एवं केक कॉफ़ी शॉप बने हैं। हमेशा झील का सुन्दर नजारा देखते हुये टहलना भी मॉल रोड पर आनंदकारी है। अतः ठहरने के लिए इसी रोड के आसपास हमलोग होटल खोजने लगे।
![]() |
नैनीताल के लिए जब पहाड़ी रास्तों की शुरुवात हुई तो शाम होने लगी थी |
धोखाधड़ी
गूगल मैप पर जो एक होटल पसंद आया वह था "लेक साइड इन"। मैप से ही उसके साइट पर जाने पर वह असली जैसा लग रहा था। गूगल से दिए नंबर पर बेटी ने कॉन्टैक्ट किया और होटल का मैनेजर बने व्यक्ति को एडवांस के रूप में पेमेंट कर दिया। जब उसने कोई रसीद न दे कर यह कहा कि आपका पेमेंट नहीं दिख रहा, फिर से पेमेंट कर दें और जब यह पेमेंट आएगा तो रिफंड हो जायेगा तब हमलोगों ने समझा कि धोखा हो चुका है। गूगल मैप पर ऐसे फर्जी होटलों के नंबर और जाली वेबसाइट्स भरे पड़े हैं विशेष कर लोकप्रिय होटलों के ये धोखेबाज़ लुटते हैं, फिर आप कितना भी बैंक को कम्प्लेन करें कुछ नहीं होता। इसलिए मेरी सलाह होगी कि किसी भरोसेमंद एप्प से ही होटल बुक करें, गूगल मैप जरिये किसी को फोन ना करें।
![]() |
वुडेन पैराडाइस होटल का कमरा जिसमें न वेंटिलेशन और न मोबाइल टावर का सिग्नल |
अब अगले होटल में क्या धोखा हुआ यह बताता हूँ। हमने मेक माय ट्रिप से अगले होटल की बुकिंग की, जो गूगल मैप पर मॉल रोड पर और झील किनारे दिख रहा था, नाम था "वुडेन पैराडाइस"। एप्प से बुकिंग करने कारण रुपयों की तो धोखाधड़ी नहीं हुयी किन्तु लोकेशन की हो गयी। जब संध्या होते होते हमलोग नैनीताल पहुंचे तो, होटल वाले से लोकेशन पूछ कर यहाँ पहुंचे। यह होटल न तो झील के किनारे मॉल रोड पर है और न ही समतल जगह पर। सड़क से सीधी तीखे चढ़ाई चढ़ कर ही यहाँ जाना होता था जिस कारण मॉल रोड निकलने या रेस्तराँ जाने से पहले सोचना पड़ता था। इस बारे में मेरे द्वारा रिव्यु यहाँ पढ़ सकते हैं - Hotel Wooden Paradise -Review.
प्रस्थान यात्रा
नई दिल्ली हवाई अड्डे से उतर कर हमलोग कैब द्वारा नैनीताल के लिए निकले। लम्बी सड़क यात्रा थी। इसमें हमने यमुना जी और गंगा जी, दोनों नदियों को पार किया। मैदानी इलाकों में तो गाड़ी तेजी से चली किन्तु ज्यों ही पहाड़ी इलाका शुरू हुआ गति धीमी हुई। किन्तु पहाड़ों पर चढ़ाई का सफर रोमांचक और खूबसूरत था। ज्यों ज्यों ऊपर चढ़ते गए, गर्मी का प्रकोप कम होता गया। लम्बी सड़क यात्रा के पास हमलोग शाम होते होते नैनीताल पहुँचे जहाँ पर्यटकों की भीड़ लगी थी। जैसा भी होटल मिला, वहाँ पहुँच कर पहले हमलोग फ्रेश हुए और बाहर निकले। अगली सुबह हमने नैना देवी मंदिर में पूजा करने की सोची थी अतः अभी हमने पहले वहाँ जाकर दर्शन करने की सोची जिससे रास्ते की जानकारी हो जाये, मार्केट भी देख लें और फिर रात का खाना खाकर वापस आ जाएँ।
![]() |
रात्रि में मंदिर के पास से नैनीताल का मनोरम नजारा दोनों तरफ़ पहाड़ और मॉल रोड की चकाचक रौशनी और प्रतिविम्ब |
हमने देखा कि मॉल रोड से एक रास्ता सीधे नैना देवी मंदिर की ओर जाता है किन्तु वह रास्ता अभी बंद था क्योंकि उसमे कुछ डेवलपमेंट के कार्य चल रहे थे। तो हमें वापस उस जगह पर आना पड़ा जहाँ से मॉल रोड शुरू होता है। यहाँ दाहिनी तरफ एक बड़ा मैदान है जिसके और मॉल रोड के बीच की जगह में पार्क जैसा है; उसमें डेली मार्केट लगता है। इसी मार्केट से होकर हमलोग निकले। इस मार्केट में पर्यटकों के लिए तरह तरह की वस्तुएँ मिलती हैं। नैना देवी मंदिर से बिल्कुल सटे पहले एक गुरुद्वारा है। गुरूद्वारे से बढ़ते ही आपको एक चौड़ी जगह में दोनों तरफ दुकाने दिखेंगी जिनमे आधे खाने पीने हैं। बाकी ल्हासा मार्किट जैसी दुकानें एक गली में हैं। वहीँ आगे बढ़ने पर झील के किनारे माता नैना देवी के मंदिर का प्रवेश द्वार है।
![]() |
नयना देवी मंदिर परिसर में घुसते ही सामने हनुमान जी का मंदिर है । |
प्रवेश द्वार से दस सीढ़ी नीचे उतर कर प्रांगण का फ्लोर है। बायीं तरफ जूते - चप्पल रखने की व्यवस्था है। ठीक सामने हनुमान जी का मंदिर है जिसमें दूर से ही उनकी बड़ी प्रतिमा के दर्शन होते हैं। बायीं तरफ माता जी का मंदिर है जिसमें तीन प्रतिमाएँ हैं। बगल में एक और दोमंजिला मंदिर है जिसमें नीचे भूतल पर तीन प्रतिमाएं हैं तथा ऊपर मंजिल पर भगवान विष्णु के दस अवतारों एवं शिव-पार्वती की मूर्तियाँ हैं। माता जी के मंदिर के सामने खुले प्रांगण में परली छोर पर शिवलिंग हैं जो बिलकुल नैनीताल झील के किनारे है। रात्रि में झील के किनारे मॉल रोड की रोशनियाँ परावर्तित हो रही थीं जो आकर्षक थीं। मंदिर से प्रणाम कर पुनः उसी डेली मार्किट वाले रस्ते से मॉल रोड पर आये। यहाँ पैदल चल कर दुकानों को देखा फिर खाने के लिए रेस्तराँ खोजने लगे। यहाँ कई वेज और नॉन-वेज रेस्तराँ हैं। एक रेस्तराँ दस फ़ीट ऊँची जगह पर था जिसका नाम था "मचान", उसी में हमलोग गए। खाना बढ़िया था। दिन भर का सफर था और हमलोग थक गए थे। पैदल ही हमलोग होटल आ कर सो गए।
![]() |
नैनीताल के मॉल रोड पर मचान रेस्टोरेंट जहाँ हमने खाया |
कैंची धाम यात्रा और नैनी झील में बोटिंग
अगली सुबह उठ कर हमलोग तैयार हुए और रात को देखे रास्ते से ही मंदिर की तरफ चले। अभी फुटपाथ वाले दुकान खुले नहीं थे। मंदिर प्रांगण में घुसते ही मन प्रसन्न हो गया। लाल नारंगी रंग से रंगे मंदिर और सामने नैनीताल ऊपर से सुबह का समय। दिव्य वातावरण लग रहा था। सभी मंदिरों में माथा टेका और कुछ देर तक झील का आनंद लिया। वहां से निकल कर अब कैंची धाम जाने की सोच रहा था। होटल वाले ने कहा था कि जल्दी जाना उचित होगा अन्यथा भीड़ बहुत बढ़ जाती है। कई गाड़ी वाले पूछ रहे थे। एक से भाड़ा तय हुआ तो तुरत कैंची धाम के लिए निकले।
![]() |
नैना देवी मंदिर परिसर में दशावतार मंदिर, नैनीताल |
मॉल रोड पार कर नैनीताल झील से आगे पहाड़ी रास्तों पर निकले। कैंची धाम ज्यों ज्यों पास आने लगा, ट्रैफिक भी बढ़ने लगी। धाम के पास पहुँच कर ड्राइवर ने हमे उतारा और आगे पार्किंग में गाड़ी लगाने चला गया। अपना नंबर दे कर कहा कि निकलने पर कॉल करें तब गाड़ी ले कर आऊंगा। यहाँ गाड़ी खड़ी करने नहीं देता। जल्दी करने भी बोला क्योंकि देर होने से ट्रैफिक बहुत बढ़ जाएगी और बेकार लेट होगा। कैंचीं धाम एक पहाड़ी नदी के दूसरे किनारे पर है जिसके पीछे बड़ा सा पहाड़ है। हमलोग नदी के इस तरफ थे क्योंकि यहाँ आने के लिए सड़क इसी तरफ है। धाम तक जाने के लिए पुल बना है। पुल पर जाने से पहले इस तरफ एक बड़े से दूकान में प्रसाद और नीब करोली बाबा के फोटो एवं अन्य वस्तुएँ बिक रही थीं। हमने प्रसाद लिए और पुल को पार कर कैंची धाम में प्रवेश किया। सारा भीड़ व्यवस्थित था और लाइन से चल कर हमने बाबा की प्रतिमा के दर्शन किये। जहाँ बाबा लेटते थे वह चौंकी भी रखा है। उनकी सेवा करने वाली भक्त माताजी की भी फोटो लगी है। वापसी में एक स्टाल पर बाबा जे जुड़ी पुस्तकें एवं अन्य यादगारी चीजें बिक रही थीं। पुनः पुल से हो कर हमलोग सड़क पर आये जहाँ नदी के इस किनारे पर भक्तों द्वारा सेल्फी, फोटो और रील बनाने की होड़ लगी थी। इस किनारे से कैंची धाम, नदी और पहाड़ का मनोहारी दृश्य जो नजर आ रहा था।
![]() |
कैंची धाम का सुंदर मंदिर |
ड्राइवर का जल्दी करने के लिए दो बार फोन आ चुका था, परन्तु पूजा करने के कारण हमलोग सबेरे से भूखे थे। अतः पहले एक दुकान में इडली-डोसा नाश्ता करने के बाद ही ड्राइवर को बुलाया। वास्तव में निकलते समय सड़क पर गाड़ियों का रेला लग गया था। हमलोग यही सोच रहे थे कि अभी आने वालों को कितनी भीड़ का सामना करना होगा। रास्ते में एक जगह व्यू पॉइंट है जहाँ से घाटी और पहाड़ों का सुन्दर नजारा देखने को मिलता है। यहाँ पर कई फोटोग्राफरों ने दिल के आकार का लाल फूलों वाला बैठकी बना रखा है जिसमे बैठ कर आप फोटो खिंचवा सकते हैं, पैसे लगेंगे चालीस रूपये। हमलोगों ने यहाँ रुक कर घाटी का सुन्दर दृश्य देखा और फोटो भी खिंचवाए।
![]() |
कैंची धाम रास्ते में व्यू पॉइंट के पास फोटोग्राफरों द्वारा बनाया गया फ़ोटो शूट पॉइंट |
नैनीताल आते आते मौसम बादलों वाला हो चला था और कभी कभी कुछ बूँदें भी गिर रही थीं। अभी दिन ही था और हमारे पास काफी समय था। वैसे तो दिन में धूप में बोटिंग अच्छा नहीं लगता किन्तु अभी मौसम सुहावना हो गया था। अतः हमने अभी ही नैनीताल झील में बोटिंग करने का निर्णय लिया। झील के किनारे नाव वालों का काउंटर लगा होता है जहाँ बोटिंग समय के अनुसार दो रेट रहते हैं, 450/- और 250/- रूपये। एक बोट पर अधिकतम तीन यात्री बैठ सकते हैं। हमलोग चार जन थे अतः दो नाव लेकर बोटिंग पर निकले। दो ऊँचे पहाड़ों के बीच ये बड़ा सा नैनी झील किनारे से तो सुन्दर लगता ही है, नाव पर बीच झील से देखना और भी आनंदकारी है। एक तरफ के पहाड़ के नीचे मॉल रोड, दूसरी तरफ के हरे भरे पहाड़ में छिपे पहाड़ी सड़क और झील के प्रारम्भ में भगवती नैना देवी का सुन्दर मंदिर। नाववाला बातूनी था। उसने बताया झील बहुत ही गहरा है और सभी को लाइफ जैकेट पहनना अनिवार्य है। नैनीताल में कहाँ कहाँ घूमने की जगह है और भोजन तथा मार्केटिंग के लिए कौन सी जगह और दूकान सही है, यह भी बताया। नाववाले ने कहा कि यहाँ बवाड़ी की नमकीन की दूकान बहुत फेमस है, यहाँ से मिक्सचर नमकीन जरूर ले जाना।
![]() |
मेघ आच्छादित दोपहर में नैनीताल झील में बोटिंग |
उस समय झील पर कई नावों में पर्यटक बोटिंग कर रहे थे। हमने सोचा था कि झील की लम्बाई में दूसरी छोर तक नाव ले जायेगा किन्तु अन्य नावों की तरह उसने भी बीच झील तक ले जा कर नाव वापस घुमा लिया। उसने बताया कि उधर वाला झील तल्लीताल है जिसके लिए उसी तरफ के नावों को लेना होता है। इधर की नावों को उस तरफ जाने की अनुमति नहीं है। हमने मोबाइल से तस्वीरें खींची। नाववाले ने भी हमारे मोबाइल से हमलोगों के फोटो खींचीं दी। आनंददायक नाव की सैर कर हमलोग किनारे पर लौटे। किनारे पर ही एक बढ़िया कपड़े की दूकान थी जो इक्का-दुक्का वैसी दुकानों में से थी जो बिल्कुल झील के किनारे है। झील के किनारे आने जाने के लिए मॉल रोड की दो सड़कें बनी हैं जिनमे एक सड़क थोड़ी नीचे लेवल पर है और यह झील के ठीक किनारे है। इसपर दूकानें नहीं हैं, बस यही कपडे की एक दो दुकानें हैं। बाकी मॉल रोड की सारी दुकानें ऊपर लेवल वाली रोड पर हैं और इनके द्वार झील की तरफ हैं। उसी कपडे की दूकान में जा कर हमने कुछ शॉपिंग की।
![]() |
पर्यटकों द्वारा नैनी झील में बोटिंग और फोटोग्राफी का आनंद |
अब भूख लगने लगी थी। शाम भी हो गयी थी। मॉल रोड के शुरू में ही एक बढ़िया केक और कॉफी की दुकान है जो दूर से ही आकर्षित करती है। इसका नाम है "लकीज कैफ़े एंड बेकरी", रौशनी और सजावट से भरपूर। घुसते ही कॉफी की वो सुगंध आयी कि कॉफी पिने का मन हो चला। आज हमारी शादी की वर्षगांठ भी थी तो हमने केक-कॉफी लेने का सोचा। भीड़ इतनी थी कि नीचे के सभी टेबल भरे थे। अंदर की तरफ आधी दूर तक बालकनी जैसी बनी थी, वहीं के टेबल पर हमलोग बैठे। बढ़िया स्वाद वाले कई केक थे। कुछ हमने लिए और कॉफी पी। फिर शाम की जगमगाती रौशनी में मॉल रोड घूमे, कुछ खरीददारी की और पैदल ही लौटे।
![]() |
शाम की लाइट में नैनादेवी मंदिर और बगल में गुरुद्वारा, नैनीताल |
हमलोग ऊपर के मार्किट की तरफ गए और नाववाले के बताये दूकान में खाना खाया। खाने के लिए यह एक अच्छी दुकान थी। खाने के बाद हमलोग पैदल ही होटल आराम करने के लिए आये जो ज्यादा दूर नहीं था पर चढ़ाव के कारण मुश्किल लग रहा था। दिन भर आराम करने के बाद हमलोग शाम को पुनः मॉल रोड, बवाड़ी की नमकीन दुकान, पोताला मार्केट और नैना देवी मंदिर गए। खरीददारी और भोजन कर थक कर होटल आये और सो गए। अब अगला एक दिन पूरा हमें यहाँ रुकना था तो उस दिन लोकल साइट सीइंग के लिए रखा।
![]() |
लकीज कैफ़े एंड केक शॉप के अंदर का दृश्य, मॉल रोड, नैनीताल |
![]() |
नैनीताल के मॉल रोड पर Lucky’s Cafe में टेस्टी कॉफी |
मुक्तेश्वर धाम, घण्टीवाला मंदिर और हनुमान गढ़ी
अगली सुबह हमलोग तैयार होकर होटल से निकले और तीखी ढलान वाली सड़क से नीचे उतर कर मुख्य सड़क पर आये जो मॉल रोड की तरफ जाती है। यहाँ आते ही कुछ टैक्सी वाले पूछने लगे लोकल साइट सीइंग के लिए। एक से बात फाइनल किया जिसकी छोटी कार थी। उसने चार पाँच जगह के नाम लिए जिनमें एक मुक्तेश्वर महादेव मंदिर भी था। हमने भीमताल के बारे में पूछा किन्तु दूर होने के कारण हमें लोकल जगह में कटौती करनी पड़ती। अतः हमने उसी के अनुसार देखने की सोची।यह कैब वाला हमे सही मिला जो हमें हर तरह की इनफार्मेशन दे रहा था। उसने कैंची धाम के बारे में भी पूछा, तो हमने बताया कि कल हमलोग वहां से हो कर आ चुके हैं। उसने पूछा कि तब तो हनुमान गढ़ी भी गए होंगे क्योकि जो कैंची धाम जाता है वो हनुमान गढ़ी भी जाता है। हमें तो यह पता ही नहीं था। पत्नी ने आग्रह किया कि हमें आप वहाँ भी ले चलना। उसने कहा कि अभी जो तय है जगह जाने का अगर उसमे टाइम बचेगा तो जायेंगे।
![]() |
नैना देवी मंदिर के सामने मैदान और पृष्ठभूमि में जमा मस्जिद |
यहाँ का जामा मस्जिद तो नैना देवी के रास्ते से ही दीखता है। अभी हमलोग जो निकले तो रास्ते में राजभवन भी दिखाया। जो सबसे पहली जगह हमलोग रुके वह एक हेयरपिन बेंड वाले मोड़ के पास था।
![]() |
व्यू पॉइंट से खुरपा ताल और घाटी का मनोरम दृश्य, नैनीताल |
यहाँ एक दो चाय की दुकान थी। ड्राइवर हमें ले कर उन दुकानों के पीछे ले गया जहाँ पेड़ों के पीछे से घाटी का बहुत ही सुन्दर दृश्य नजर आ रहा था। घाटी में एक झील भी थी जिसे खुर्पाताल बोला जाता है। यहाँ पेड़ों के पास हमने कुछ फोटो खिंचवाये और आगे चले।
![]() |
अगले दिन की नैनीताल भ्रमण यात्रा प्रारंभ |
आगे एक जगह कुछ पर्यटक रुक कर रास्ते के बगल में पत्थरों के पास कुछ देख रहे थे। ड्राइवर ने कहा कि यह एक पतली गुफा है जिससे तेज हवा निकलती है लेकिन कुछ ऊपर चढ़ कर देखना होगा। हमें यह कुछ खास न लगा तो आगे बढे। अगला जो पॉइंट ड्राइवर हमें दिखाने लाया उसका नाम था लवर्स पॉइंट। यह एक सीधे खड़े पहाड़ के किनारे था जो सड़क से उतर कर कुछ झोपड़ीनुमा घरों को पार कर गए। इन घरों में शायद घोड़े भी पाले जाते थे क्योंकि अस्तबल जैसा ही गंध वहाँ फैला था। लवर्स पॉइंट पर जाने आने में थोड़ा चढ़ना उतरना पड़ता है। बगल में ही एक और पॉइंट है जहाँ चट्टान थोड़ा आगे निकला हुआ है। उसने बताया कि इसे सुसाइड पॉइंट कहते हैं। यहाँ से देख कर और फोटो खींच कर हमलोग आगे बढ़े।
![]() |
लवर्स पॉइंट और पीछे सुसाइड पॉइंट, नैनीताल |
कुछ देर चलने के बाद हमलोग एक तीखे पहाड़ी मोड़ से कुछ सौ फ़ीट पहले रुके जहाँ से ड्राइवर ने नैनीताल झील का विहंगम दृश्य दिखाया। हमने कुछ फोटो खींचे और आगे वाले तीखे मोड़ के पास रुके।
![]() |
किलबरी बर्ड सैंक्चुअरी से पहले नैनी झील का विहंगम दृश्य |
सामने "नैना किलबरी इको टूरिज्म जोन" लिखा हुआ प्रवेश द्वार मिला जो बर्ड सैंक्चुअरी थी। इसमें कम से कम तीन किलोमीटर लम्बा ट्रेक करना होता। ना तो हममें ट्रेक करने की ताकत थी और ना हम समय लगा सकते थे।
![]() |
बर्ड सैंक्चुअरी के सामने की टपरी जहाँ हमने चाय नाश्ता किया |
इसी मोड़ के अंदर की तरफ एक टपरी थी जहाँ हमने चाय पी। ड्राइवर ने दुकान वाले को पंडित जी सम्बोधित करते हुए हमसे कहा कि ये गरमा गरम आलू पराँठे भी बना देंगे, चाहो तो खा लो। सुबह से हमने कुछ खाया नहीं था तो सबने आलू पराँठे उसी दुकान पर खाये और आगे बढे।
![]() |
नैना किलबरी ईको टूरिज्म जोन का प्रवेश द्वार |
इसके बाद हमलोग एक ऐसे स्थान पर रुके जहाँ सामने खुली घाटी थी और दूर में ऊँचे पहाड़ों की चोटियाँ दिखाई पड़ रही थीं। यह हिमालय व्यू पॉइंट था। सामने का दृश्य बहुत ही मनोरम नजर आ रहा था। सड़क किनारे एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था, "हिमालय दर्शन स्थल पर कुछ क्षण विश्राम कर मनोरम दृश्य का आनन्द लें"। यहाँ कुछ देर रुक कर पहाड़ी रास्तों पर ही हम लोग लगभग दो किलोमीटर आगे गये जहाँ इको वैल्ली है।
![]() |
नैनीताल में हिमालय व्यू पॉइंट |
इको वैली लगभग समान्तर दो हरे भरे पहाड़ों के बीच की घाटी है। दोनों पहाड़ पास पास ही हैं किन्तु आगे जाने के लिए सड़क पहले दोनों पहाड़ों के जोड़ तक जाती है, फिर दूसरे पहाड़ से घूम कर आगे बढ़ती है। जहाँ पर हमलोग रुके थे वहां से दूसरा पहाड़ सामने दीवार जैसा खड़ा था। इसी कारण जोर से बोलने पर आवाज टकरा कर वापस गूंजती थी। ध्वनि के इसी परावर्तन को अंग्रेजी में इको बोला जाता है जिसके कारण इस घाटी का नाम इको वैली पड़ा है। यहाँ हमने जोर जोर से आवाजें निकाल कर मनोरंजन किये और फोटो खींचे। फिर आगे चले स्नो व्यू पॉइन्ट की तरफ।
![]() |
इको वैली पॉइंट, नैनीताल -यह सड़क दोनों पहाड़ों के मिलन पर यू-टर्न ले कर दूसरे पहाड़ पर जाती है, उसी पहाड़ से प्रतिध्वनि आती है । |
जब स्नो व्यू पॉइन्ट पहुंचे तो देखा कि यह एक चहल पहल वाला स्थान है जहाँ कई तरह की दुकानें थीं। एक "फन एडवेंचर पार्क" भी है बगल में। हमलोग स्नो व्यू पॉइन्ट की तरफ बढे ही थे कि देखा एक फोटो ग्राफर पहाड़ी ड्रेस पहना कर फोटो खींच रहा है। मेरी बेटी ने भी फोटो खिंचवाया।
![]() |
स्नो व्यू पॉइंट के पास पहाड़ी ड्रेस में फोटोग्राफी, नैनीताल |
फिर हमलोग स्नो व्यू पॉइंट पर गए जहाँ किनारे में रेलिंग लगा था। पर्यटक खड़े थे और फोटो खिंचवा रहे थे। हमने भी खड़े हो कर देखा किन्तु दूर पहाड़ों पर वर्फ दिखाई नहीं पड़ रहा था। शायद धुंद के कारण। नैनीताल झील दिखाई जरूर पड़ रहा था। वहाँ पर भी मोबाइल से फोटो इत्यादि खींच कर बगल की की गिफ्ट दूकान में घुसे। यहाँ तरह तरह कलाकृतियाँ रखी थीं। किन्तु दाम काफी ऊँचे थे। वहाँ से पीछे वाले दरवाजे से अंदर बाजार में निकले। एक कालीन वाला हमें काफी आग्रह कर अपनी दूकान पर ले गया और ऊँची क्वालिटी का कालीन दिखाया। अब इसके काफी ऊँचे दाम और उस पर एक्सचेंज के स्कीम बताने लगा। हमलोग उठ कर निकल गए और व्यर्थ ही समय बर्बादी का पछतावा किया। बगल के एडवेंचर पार्क की तरफ भी हम लोग गए जहाँ अलग से टिकट था और समय देना था। हमने यहाँ जाने की बजाय अन्य स्थानों को देखना पसंद किया और गाड़ी से निकल गए।
![]() |
स्नो व्यू पॉइंट से पैनोरामिक व्यू में नैनी झील |
ड्राइवर ने बताया कि अगली जगह एक मंदिर है जिसे गोलुदेव मंदिर कहा जाता है। वे बहुत शक्तिशाली देवता हैं और बिना उनकी मर्जी के इस इलाके में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। आपको कुछ मांगना हो तो प्रार्थना तो करते ही हैं, आप चाहें तो एक पर्ची में अपनी मांग लिख के घण्टी के साथ मंदिर में बाँध सकते हैं, गोलुदेव पूर्ण करेंगे। ये न्याय के भी देवता हैं, कोई आप पर अत्याचार कर रहा हो तो इनके पास आप शिकायत कर सकते हैं। इस मंदिर की खासियत है कि इन्हें घण्टी चढ़ाया जाता है। भक्तों द्वारा बांधे गए घंटियों से यह मंदिर भरा पड़ा है। ड्राइवर भी अपनी कार में अपने दाहिने तरफ ऊपर एक छोटी पीतल की घंटी बंधे हुए था जो गोलुदेव का ही प्रसाद था। कई बार हमने रास्ते में देखा कि वो कार की घंटी को बजाता है। जब हमने पूछा तो उसने बताया कि रास्ते में कोई मंदिर दिखता है तो प्रणाम करने के लिए घंटी बजाता है। मंदिर तक तक पहुँचने में ट्रैफिक के कारण देर हुयी क्योंकि पतला पहाड़ी रास्ता था और इस मंदिर में भक्तों की भीड़ थी जिनकी गाड़ियों का रेला था। इस इलाके का नाम था घोड़ाखाल।
![]() |
नैनीताल के घोड़ाखाल में श्री गोलूदेवजी का घंटी वाला मंदिर |
यह मंदिर थोड़ी ऊंचाई पर है जहाँ सीढ़ियाँ चढ़ कर जानी होती है। नीचे सीढ़ी के बगल में नल था जिससे हमने हाथ-पैर धोकर शरीर पर छिड़का और बगल की दूकान से घंटियाँ और पूजा सामग्री ले कर सीढ़ियां चढ़नी शुरू की। मंदिर के पास पहुँचते ही जो अद्भुत दृश्य था वैसा पहले कभी नहीं देखा। चारों तरफ घंटियाँ ही घंटियाँ। अलग-अलग साइज के। शायद ही मंदिर का कोई कोना बचा हो जहाँ घंटियाँ न हो। घंटियाँ लिए हुए भक्तों की लम्बी कतार थी। लगभग घंटे भर कतार में लगने के बाद हमलोग देवता के दर्शन कर पाए। मंदिर में जो देवता के बारे में लिखा था उसके अनुसार ये देवता भैरव जी के अवतार हैं और यहाँ उनका नाम ग्वैल देव लिखा था। हनुमान जी और अन्य देवताओं के भी मंदिर यहाँ बने थे, हमने उनकी भी पूजा की। यहाँ परिसर में ही एक जगह भैरो बाबा का भी स्थान है जहाँ की पूजा भी जरुरी होती है। इन्हें विशेष सूखा चावल चढ़ता है जो पूजा-सामग्री वाले दुकानदार ने हमें साथ में ही दे दिया था। वहाँ की भी पूजा कर हमने एक जगह घंटी बाँधी और बचे घंटी को प्रसाद स्वरुप साथ ले आये। नीचे दूकान में आकर उनका लौटने वाला सामान और पूजा-सामग्री का मूल्य देकर हमलोग गाड़ी में बैठ कर आगे निकले।
![]() |
घंटीवाले मंदिर जाने के रास्ते से ही बँधी घंटियाँ मंदिर के एक अनोखे आकर्षक रूप को दिखाती हैं । |
कई किलोमीटर आगे जा कर ड्राइवर ने एक जगह गाड़ी रोकी जहाँ सड़क के एक तरफ ऊँचा पहाड़ था और दूसरी तरफ लम्बी ढलान थी जिस पर चाय की खेती थी। किनारे ही चाय कंपनी का भवन था जिसमें चाय बनायीं भी जाती है और सड़क के किनारे इन्हें बेचने के लिए काउंटर भी बने हैं। चाय बागान को देखने के लिए पर्यटकों से टिकट कटवाए जाते हैं।
![]() |
घोड़ाखाल में चाय बागान का मनोरम दृश्य । |
हमने भी टिकट ले कर इंट्री की। कई पर्यटक पहले से वहाँ घूम रहे थे और फोटो खींच रहे थे। सामने ढलान पर दूर तक चाय की हरी-भरी खेती और उसके पार पहाड़ों का सौंदर्य बहुत मनोरम लग रहा था। हमने भी फोटो वगैरह खींचे और परिसर में बने एक कैफ़े में चाय नाश्ते के लिए गए। छोटा सा यह कैफ़े भी लोगों से भरा था। यहाँ चाय, नाश्ता और चावल-कढ़ी जैसे भोजन भी उपलब्ध थे। हम सब ने अपनी इच्छानुसार यहाँ कुछ न कुछ खाये और चाय पी। इतना जरूर था कि जो भी आइटम हमने चखे वो सब बढ़िया और स्वादिष्ट बने थे। बहार आ कर काउंटर से कुछ डब्बे चाय के लिए यह सोच कर कि यहाँ फ्रेश चाय की पत्ती मिलेगी।
![]() |
मुक्तेश्वर धाम जाने के रास्ते में आंधी, तूफ़ान और ओलावृष्टि |
अब हमलोग आगे चले मुक्तेश्वर धाम की तरफ जो कि ड्राइवर द्वारा बताये गए स्थानों में से अंतिम था। पत्नी के आग्रह पर उसने बोला था कि टाइम बचने पर हनुमान गढ़ी जाएँगे।
![]() |
मुक्तेश्वर धाम के पहुँच पथ से पहले गोलम्बर चौराहा |
मुक्तेश्वर धाम यहाँ से दूर था और पहाड़ों पर और ऊंचाई पर था। ड्राइवर हमें रास्ते में विशेष वृक्षों का परिचय भी कराते जा रहा था। जैसे चीड़ और देवदार में क्या अंतर है। एक पेड़ जिसे मोरपंख बोला जाता है इसके पत्तों की आकृति के कारण। एक पेड़ दिखाया जिस पर गहरे लाल रंग के फूल आये थे जिसका नाम बताया "बुर्रास" । इसका जूस पिया जाता है जो गुणकारी होता है।
![]() |
चोली का जाला के पास बुर्रास का जूस और काले-पीले शाहतूत |
जाने में रास्ते में मौसम ख़राब होने लगा। दूर काले बादल तेज हवाओं के साथ पास आ रहे थे। जल्द ही बादलों ने ऐसा ढँका कि बिलकुल अँधेरा जैसा हो गया। गाड़ी की लाइट जला कर हमलोग आगे बढ़ रहे थे कि भारी वर्षा शुरू हो गयी जिसमे छोटी गोलियों जैसे ओले गिर रहे थे। गाड़ी की छत और शीशे पर टकरा कर आवाज कर रहे थे। आगे बढ़ना बिलकुल मुश्किल था क्योंकि सामने कुछ नजर ही न आ रहा था। ऊपर से ये सड़क ऊँचे पहाड़ पर थे जिनके एक तरफ चट्टान और दूसरी तरफ गहरी खाई थी। किनारे एक जगह देख कर हमने पंद्रह मिनट प्रतीक्षा की कि कुछ ओला-पानी काम हो तो आगे बढ़ें। ओले तो कुछ देर में कम हुए किन्तु मौसम बिलकुल सावन जैसा हो गया। झीनी-झीनी वर्षा होती ही रही जिसमें हमलोग आगे बढ़ते गए। उधर से वापस लौटने वाली गाड़ियाँ ज्यादा थीं।
![]() |
मुक्तेश्वर धाम के सीढ़ियों के बगल से "चोली का जाला" जाने का रास्ता |
जब हमलोग मुक्तेश्वर पहुंचे तो बाबा की कृपा से वर्षा बहुत कम हो गयी थी और बिना भींगे हमलोग खुले में चल सकते थे। मंदिर परिसर से पहले ही एक गोलंबर सड़क थी जहाँ से आगे गाड़ी ले जाने की मनाही थी यद्यपि मंदिर तक गाड़ी जाने का पक्का रास्ता बना था। इस रास्ते के दोनों तरफ फुलवारी, कुछ पुराने मकान और एक बहुत ही पुराना पोस्ट ऑफिस था। लगभग सौ मीटर पैदल चल कर मंदिर के चढ़ाई वाले प्रवेश रास्ते के पास पहुंचे। मंदिर पहाड़ की चोटी पर बना है जहाँ इसी रस्ते से सैकड़ों सीढ़ियां चढ़ कर जानी होती हैं। ड्राइवर ने हमे पहले ही बताया था कि मंदिर जाने से पहले लोग सीढ़ियों के बगल से एक पतले रास्ते से उस जगह जाते हैं जिसे चोली का जाला कहा जाता है। तो सीढ़ियों के पास कई दुकाने थीं जिनसे पूछ कर रास्ता कन्फर्म किया और हमलोग उसपर बढ़े।
चोली का जाला" के पास पर्यटकों की मस्ती और फोटोग्राफी मुक्तेश्वर धाम, नैनीताल |
पहाड़ के साइड में लगभग तीन फ़ीट चौड़ा यह रास्ता बनाया गया है जिसके एक तरफ लगभग खड़ी गहरी खाई है, इधर रेलिंग दिया गया है। इस किनारे कई पेड़ भी हैं जिन पर बंदर थे। लगभग पांच सौ मीटर चलने के बाद हमलोग एक खुले स्थान पर आये जहाँ चट्टान खड़े खड़े से थे। इनके पीछे बहुत ही गहरी खाई थी। यहाँ कई सैलानी फोटो और वीडियो ग्राफ़ी कर रहे थे। कुछ प्रोफेशनल फोटोग्राफर भी थे जो ड्रोन कैमरे से फोटोग्राफी कर रहे थे। कुछ लोग यूँ ही बैठ कर आनंद ले रहे थे। मुझे उन चट्टानों पर चढ़ना रिस्की लगा अतः हमने थोड़ा नीचे ही फोटो लिया और थोड़ी देर तक मनोरम दृश्य का आनंद लिया। इन पत्थरों की बनावट के कारण ही इसे चोली का जाला बोला जाता है जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ होता है शिवजी की जटाएँ। एक चाय की दुकान थी बगल में जहाँ हमलोग थक कर बैठे। वह एक लाल रंग का जूस बेच रहा था जो बुर्रास का जूस था, वही लाल फूल वाला पेड़ जो ड्राइवर ने हमें दिखाया था। उसने बताया कि यह काफी गुणकारी होती है। हमने एक एक गिलास जूस पिए। एक आदमी पत्तों के दोने में लाल-पीले शाहतूत बेच रहा था, वह भी हमने चखे। अब वापस मंदिर की सीढ़ियों की तरफ वापस लौटे। यह रास्ता पतला तो था पर चढ़ाव नहीं था। जब मंदिर की सीढियाँ चढ़ने लगे तब रुक रुक कर चढ़ना पड़ा क्योंकि थोड़ी ऊंचाई पर हैं बाबा मुक्तेश्वर नाथ, इस पहाड़ के सबसे ऊँचे स्थान पर।
![]() |
मुक्तेश्वर महादेव मंदिर तक जाने वाली सीढ़ियों का प्रवेश द्वार, नैनीताल |
मन्दिर के कुछ पहले और भी कुछ देवताओं के छोटे छोटे मंदिर बने हैं। अंतिम चढ़ाई से पहले एक जगह चप्पल उतरने की जगह बनी है। यहाँ चप्पल खोल कर हमलोग मंदिर के पास पहुँचे जहाँ लगभग बीस पच्चीस भक्त कतार में थे। कतार में लग कर हमलोग लगभग चालीस मिनट में बाबा मुक्तेश्वर नाथ के सामने पहुँचे जहाँ एक पुजारी पूजा करवा रहे थे। पूजा कर हमलोग मंदिर के किनारे बने व्यू पॉइन्ट से मनोरम दृश्यों का आनंद लिया।
मुक्तेश्वर धाम जाने के लिए पहाड़ पर सीढ़ियों वाला रास्ता |
फिर नीचे आने वाले रास्ते से नीचे उतरे। इसी रास्ते पर एक जगह मंदिर के बारे में लिखा था। जिसके अनुसार एक संत मुक्तेश्वर जी ने इस स्थान पर शिव जी की साधना की और यह मंदिर बनाया। मंदिर से निकल कर सीढ़ियों से उतरे और सीधे पैदल चल कर गाड़ी के पास आये और वापस निकल पड़े। अब संध्या हो चली थी। वर्षा तो समाप्त हो गयी थी पर मंदिर से निकलने वाले वाहनों की भीड़ थी। लम्बा रास्ता था, जब हमलोग नैनीताल के पास पहुंचे तो देखा कि इधर तो ओला-वर्षा का कोई असर न था। थोड़ा समय बचा था तो ड्राइवर हमे हनुमान गढ़ी भी ले गया। यहाँ पैर हाथ धो कर हमलोग मंदिर में गए।
मुक्तेश्वर महादेव मंदिर पहुँचने से पहले शक्ति-पीठ और हनुमान मंदिर |
सामने एक बड़े हनुमान जी की प्रतिमा थी। यहाँ प्रणाम कर हमने एक सेवादार से पूछा कि नीब करौली बाबा के हाथों से बनी हनुमानजी की प्रतिमा कहाँ है? उसने सामने ही एक लगभग दो फ़ीट ऊँची प्रतिमा को दिखाया। वहाँ जाकर हमने प्रणाम किया। कुछ सीढियाँ चढ़ कर हमलोग एक हॉलनुमा कमरे में गए जहाँ बाबा की मूर्ति थी और दीवारों पर सुन्दर काण्ड अंकित थे। वहाँ कुछ दे बैठ कर हमने मन ही मन हनुमान चालीसा का पाठ किया। फिर और आगे जाकर अन्य मंदिरों को देखा जिनमे भरत जी और राम दरबार और शिव जी का मंदिर भी था। वापस आते समय देखा कि हनुमान जी के मंदिर के बगल में एक कमरा है जिसमें बाबा की सदैव सेवा में रहने वाली उनकी एक भक्त माता जी के चित्र और मूर्ति हैं। निकलते समय भुने चने के कुछ दाने प्रसाद में पाये और हमलोग गाड़ी से वापस निकले। रास्ते में एक जगह ड्राइवर ने गाड़ी रोकी और बोलै कि बिलकुल नेचुरल मिनिरल वाटर पीना हो तो यहाँ एक जगह पहाड़ का पानी मिलेगा। हमने भी दो बोतल दिए। पहाड़ के किनारे झरने से निकलने वाले पानी को लेने के लिए पाइप जैसा बने गया था। एक और आदमी को पानी लेते हुए देखा। ड्राइवर ने जो पानी ला कर दिया उसका स्वाद सच में बहुत अच्छा था।
![]() |
मुक्तेश्वर महादेव मंदिर का गर्भ-गृह, नैनीताल |
जब हमें होटल के पास वापस ड्राइवर ने पहुँचाया तो उसे तय भाड़ा से पांच सौ अधिक दे कर धन्यवाद बोला और विदा किया। होटल आ कर हमलोग फ्रेश हुए। आठ बजने ही जा रहे थे और थक भी गए थे, अतः हमलोग मॉल रोड न जा कर ऊपर वाले बाजार में ही खाना खा कर आ गए। जिस कंपनी की गाड़ी से हमलोग दिल्ली से नैनीताल आये थे उसका मालिक फोन कर पूछ रहा था कि वापस उसी की गाड़ी से दिल्ली लौटूं। भाड़ा तय कर मैंने कुछ एडवांस दे दिया और बिलकुल सबेरे छह बजे गाड़ी भेजने को बोला जिससे फ्लाइट समय रहते पकड़ सकूँ। जब सबेरे उठे तो गाड़ी वाला समय पर आ चुका था। हमलोग सामान ले कर गाड़ी में बैठे और निकल पड़े दिल्ली की ओर। आते समय तो हमलोग इन पहाड़ी रास्तों पर शाम को आये थे पर अभी सुबह की ठंडी हवाओं में इन रास्तों के दोनों तरफ का दृश्य बहुत आकर्षक था। जब तक पहाड़ों पर चले बहुत आनंद आया। समय पर हमलोग एयरपोर्ट पहुँच गए और शाम से पहले अपने घर।
![]() |
हनुमान गढ़ी मन्दिर का प्रवेश द्वार, नैनीताल |
अगर होटल की छोड़ दें तो नैनीताल की यह यात्रा आनंददायक रही। और अधिक समय अगर होता हमारे पास तो अभी कई और जगह घूमने को बाकी थे।
इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah
No comments:
Post a Comment