Saturday, April 7, 2035

kkyatri.blogspot.com - MY JOURNEY TO RELIGIOUS PLACES

नमो परमात्मने

INDEX







































Saturday, May 18, 2024

श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग निजरूप दर्शन - पूजन यात्रा

निजरूप में भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग


श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग

श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का द्वादश ज्योतिर्लिंगों में छठे स्थान पर नाम लिया जाता है। यह ज्योतिर्लिंग भी श्रीशैलम पर्वत पर स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की तरह ही वनों से आच्छादित ऊँचे पर्वत पर स्थित है जो महाराष्ट्र के पुणे जिला के भीमाशंकर गाँव में है। इसके आसपास का वन रिज़र्व फारेस्ट अर्थात आरक्षित वन है जो जंगली प्राणियों के लिए अभ्यारण्य है। इस वन में ही गिलहरी की एक प्रजाति "जायंट रेड फ्लाइंग स्क्वीररेल'' (अर्थात उड़नेवाली बड़ी लाल गिलहरी) मात्र पायी जाती है। भीमाशंकर से ही पुणे जिला की एक महत्वपूर्ण नदी, भीमा नदी का उद्गम होता है। यहीं के आसपास ट्रेक्किंग के शौकीन पर्यटकों के लिए कई ट्रेक्किंग मार्ग हैं। 


यात्रा

जब भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग दर्शन पूजन का परिवार में विचार हुआ तो पहले यहाँ जाने का मार्ग पता किया। तय हुआ कि पुणे पहुँच कर कार से भीमाशंकर पहुंचेंगे। सबसे पहले एक महीने पहले पुणे का आने -जाने का विमान का टिकट लिया। इंटरनेट पर पता चला कि शनिवार, रविवार या छुट्टियों के दिन मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ होती है। अतः हमने 10 मई 2024 शुक्रवार को दर्शन पूजन का विचार किया जो संयोगवश अक्षय तृतीया का भी दिन था। सीधी और सस्ती फ्लाइट लेने के कारण हमलोग रात 11 बजे पुणे एयरपोर्ट पहुँचे। एयरपोर्ट के पास विमान नगर में होटल बुक किया था किन्तु एयरपोर्ट पर अत्यधिक भीड़ के कारण ओला कैब को आने में काफी देर हुआ। फलस्वरूप हमलोग डेढ़ बजे होटल पहुंचे। सोते-सोते 2 बज गए। 

       ऑनलाइन कैब की भी बुकिंग की थी जिसके ड्राइवर ने 6 बजे सुबह ही पहुँचकर फोन किया। उसे वस्तुस्थिति बताया और बोला कि अभी सो रहा हूँ, तैयार हो कर फोन करूँगा। हमें तैयार होने में 10 बज गए। होटल से चेक आउट कर हमलोग सामान के साथ कैब में बैठे। 


श्री दगडू सेठ हलवाई गणपति मंदिर

पुणे में एक प्रसिद्ध मंदिर का पता था - श्री दगडू सेठ हलवाई गणपति मंदिर। हमने सोचा कि तीर्थयात्रा का आरम्भ श्रीगणपति दर्शन से किया जाय। ड्राइवर स्थानीय था। उसने हमें गाइड किया। गुरुवार का दिन होने के कारण बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी। बाहर फूल-माला की डलिया खरीदकर मंदिर गए। विशाल और ऐश्वर्य से भरपूर गणपति अत्यंत प्रभावशाली हैं। बाहर निकलने से पहले मंदिर में नंदी और शिवलिंग का दर्शन भी किया। अंदर फोटोग्राफी मना है पर कुछ लोग चुपके से फोटो ले रहे थे। हमलोग दर्शन के बाहर निकले। 

श्री दगडू सेठ हलवाई गणपति, पुणे


            यह मंदिर बहुत ही भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र में है और पार्किंग की समस्या है किन्तु इस मंदिर में एक बात अच्छी है कि बिना पार्किंग के भी चलते वाहन से बाहर से भी दर्शन कर सकते हैं। बाहर सड़क की तरफ एक बड़ी  खिड़की है जिसपर पारदर्शी शीशे लगे हैं। इस शीशे से मूर्ति की दूरी मात्र तीस फ़ीट होगी। बड़ी मूर्ति होने के कारण बाहर से भी अच्छा दर्शन होता है। इस खिड़की से बाहर कई भक्त गणपति जी की फोटो लेने में भी लगे थे। यहाँ दर्शन के बाद हमलोग भीमाशंकर की ओर निकले। 


भीमाशंकर में होटल

   यहाँ अच्छे होटलों की कमी है। MTDC का एक होटल भीमाशंकर बस स्टैंड से 5 km पहले है। बाहर से बड़ा दिखने वाले इस होटल का रिव्यु अच्छा नहीं है, ऊपर से दूरी हमें नहीं चाहिए थी। क्योंकि हमलोग होटल से पैदल मंदिर तक जाना चाहते थे। कार बस स्टैंड के गेट तक ही जाने दिया जाता है अतः हमने बस स्टैंड के किनारे लॉज में रुकने का विचार किया।

भीमाशंकर बस अड्ड़ा परिसर के इसी लॉज में रुके

 लॉज वाले भी मज़बूरी का भरपूर फायदा उठाते हैं। 'भीमाशंकर होमस्टे' नामक लॉज में प्रथम तल्ले पर एक AC रूम मिला जिस तक जाने के लिए लोहे की सीढ़ियाँ थीं, इस पर भी सर बचा कर चढ़ना होता था वरना बगल के एस्बेस्टस निकले छत से सर में चोट लग सकती थी। रूम की दीवारों में दरार थे। चादर तकिये हजार रूपये प्रतिदिन वाले होटल की तरह जबकि हमसे 3000 रूपये प्रतिदिन लिया गया तीन लोगों के लिए। एक डबल बेड पलंग था और तीसरे व्यक्ति के लिए जो मैट्रेस्स डाला गया वह मोटे थर्मोकोल के तीन टुकड़ों को जोड़कर फोल्डेबल बनाया गया था। पानी बीच बीच में ख़तम हो जाता था और कहने पर मोटर चलाया जाता था। हम यहाँ दो रात बिताने वाले थे। इसके बगल में एक चेतन लॉज है वह भी इससे बेहतर नहीं है।  


मंदिर का स्थान 

    यहाँ के बस स्टैंड से हर तरफ का रास्ता हलकी ढलान में जाता है। बस स्टैंड में सिर्फ सरकारी बसें ही प्रवेश करती हैं। इसके गेट पर कार से सामान उतार कर तीस -चालीस कदम चल कर लॉज तक गए। ड्राइवर कार लेकर बगल के पार्किंग में गया। बस स्टैंड के गेट से मंदिर के बगल में बने पार्किंग तक जाने का पीसीसी रास्ता है किन्तु इस पर सभी गाड़ियों को नहीं जाने दिया जाता, अवरोध लगा कर रखा जाता है। जो गाड़ियाँ जाती हैं उनसे संभवतः 500 रूपये प्रति व्यक्ति लिया जाता है। 

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग गर्भ गृह के
सामने मंडप में भक्तजन

               यहाँ से मंदिर लगभग आधा किमी ढलान पर नीचे है। पैदल जाने वाले कुछ दूर पीसीसी सड़क पर चल कर सीढ़ियों से उतरते हुए मंदिर तक जाते हैं। मंदिर का लेवल स्टैंड के लेवल से काफी नीचे है। जबतक आप सड़क छोड़ कर सीढ़ियों की तरफ नहीं बढ़ते आपको  शिखर दिखाई नहीं देता। मंदिर के चारों तरफ हरे भरे ऊँचे पहाड़ों का दृश्य बहुत ही मनोरम है। 


भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का पहला दर्शन

    हमलोगों ने पुणे में गणपति दर्शन के बाद नाश्ते में मिसल पाव खाया था। यहाँ आने के रास्ते में मिसल के इतने बड़े छोटे होटल देखे कि पता चल गया यहाँ के लोग मिसल पाव के कितने दीवाने हैं। होटल में सामान रख फ्रेश होकर जब हमलोग नीचे आये तो तीन बज चुके थे। भूख लगी थी, बगल के ही होटल में खाना खाया। खाने में साधारण स्वाद का भोजन की थाली थी। खाने के बाद हमने सोचा कि मंदिर को देख आते हैं ताकि शाम को संध्या श्रृंगार दर्शन कर सकें। 

मंदिर भवन के सामने त्रिशूल और घंटा
सेल्फी पॉइंट

                   हमलोग ढलान पर बढ़ते गए किन्तु मंदिर दिखे ही न। जब सड़क छोड़ सीढ़ी  तरफ बढ़े तो नीचे थोड़ी दूर पर मंदिर का शिखर दिखा। सीढ़ी से उतर कर मंदिर के पास पहुंचे तो थक चुके थे, समझ चुके थे कि चढ़ाई कर वापस होटल जाने के बाद अभी दुबारा मंदिर न आ पायेंगे। तो सीढ़ियों के दोनों तरफ बने दुकानों में से अंतिम दूकान से फूलों की डलिया लेकर वहीं चप्पल रखा और दर्शन हेतु लाइन में लगे। करीब साथ-सत्तर  लोग कतार में होंगे। गर्भ गृह में जाकर दर्शन में लगभग 15 -20 मिनट लगे होंगे, गुरुवार का दिन होने के कारण भीड़ कम थी। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का जो दिनभर दर्शन पूजन पब्लिक करती है वह शिवलिङ्ग के ऊपर चाँदी से ढके हुए शिवलिङ्ग का ही करती है। जब हमने यहाँ दर्शन किया तो पास खड़े एक पंडित जी से पूछा कि नेचुरल स्वयंभू शिवलिङ्ग का स्पर्श पूजन कैसे होगा ? उन्होंने कहा कि सुबह साढ़े चार बजे आरती के समय आ जाइये, आरती के बाद पाँच बजे से छः बजे तक शिवलिङ्ग ढँका नहीं जाता और उस समय निज-रूप स्पर्श दर्शन पूजन करा दूँगा, साथ ही दक्षिणा की एक राशि भी बताई। मैं मान गया क्योंकि जितना आने, जाने, ठहरने और कार का खर्च था उसके सामने इस राशि के बारे में क्या सोचना। हमारा इस यात्रा का उद्देश्य ही भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का स्पर्श पूजन था।  
भीमाशंकर मंदिर के बहार जोड़ा नन्दी 

       इस मंदिर में फोन, बेल्ट और हैंड बैग बाहर रखने का झमेला नहीं है। आप साथ लेकर जा सकते हैं परन्तु मोबाइल से खींचने की मनाही है। फिर भी लोग गर्भ गृह से बाहर वरामदे में बैठते समय कुछ चित्र उतार ही लेते हैं, पर रक्षकों द्वारा डाँटा जाता है। गर्भ गृह के द्वार पर नंदी प्रतिमा है। नंदी के वाम तरफ वाली दीवार पर गणपति प्रतिमा है जो बाबा के दर्शन से पहले आते हैं क्योंकि वे प्रथम पूज्य हैं। नंदी के दाहिनी तरफ वाले दीवार पर काल भैरव की प्रतिमा है जिनका पूजन बाबा  दर्शन के बाद होता है। नंदी के पीछे थोड़ी दूर पर फर्श पर ही पत्थर का एक कच्छप है। मंदिर के ठीक सामने वरामदे से निकलते ही शनि महाराज की प्रतिमा है जिन्हें हमने साइड से प्रणाम किया क्योंकि जिस शनि विग्रह में आँखें बनी होती हैं उनके सामने खड़े नहीं होते। 

भीमाशंकर मंदिर के बाहर
दीप-स्तम्भ

     पास ही एक बड़ा त्रिशूल है जो एक प्रकार से सेल्फी पॉइंट बन गया है। आगे बढ़ते ही नंदी के दो बड़े पाषाण प्रतिमाएँ हैं जो प्राचीन लगती हैं। निकास के रास्ते में एक कुण्ड भी है। यहाँ सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर ही एक राम दरबार मंदिर है जिसमें राधा कृष्ण, दुर्गा, गणेश और हनुमान की प्रतिमाएँ भी हैं। आगे बढ़ कर पुनः कुछ सीढ़ियाँ उतर कर वापस जाने वाली लम्बी सीढ़ी शुरू होती है। यहीं पर बायीं ओर एक और बड़ा घेरा हुआ कुण्ड है जो मोक्ष कुण्ड है। यह मोक्ष कुण्ड वह स्थान है जहाँ ऋषि कौशिक अर्थात विश्वामित्र ने तपस्या की थी। सीढियाँ शुरू होते ही फूल वाले के दूकान में गए, फूल के पैसे दे कर चप्पल लेकर चढ़ाई करते हुए होटल आये। थक चुके थे। थोड़ी देर रेस्ट कर आठ बजे फिर खाने के लिए के लिए नीचे आये वरना भोजनालय बंद हो जाते। सोने से पहले सुबह तीन बजे का अलार्म लगाया। 


भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा 

प्रातः दर्शन-पूजन के बाद श्रीभीमाशंकर ज्योतिर्लिङ्ग
मन्दिर के बाहर का मनोहारी दृष्य

       कुम्भकर्ण के पुत्र भीमा राक्षस जो पिता की मृत्यु के बाद जन्म लिया था, बड़े हो कर पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहता था। श्री राम से वह नहीं लड़ सकता था अतः कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर विजयी होने का वरदान प्राप्त किया। फिर तो देव और मनुष्यों पर उसने अत्याचार करना प्रारम्भ किया। सभी देवता उससे मुक्ति हेतु शिव के पास गए। उसके उत्पात से मुक्ति दिलाने  के लिए भगवान शंकर ने प्रकट हो कर यहीं पर उसका वध किया था। देवताओं के अनुरोध पर महादेव ने उसी स्थान पर स्वयं को ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट किया जो भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए।  

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पीछे
आँगन में खोवा और कलाकंद प्रसाद
बेचता युवक, बैकग्राउंड में 
मोक्ष-कुण्ड

     एक अन्य कथा के अनुसार त्रेता युग में त्रिपुरासुर नामक एक विशालकाय राक्षस था, विशाल होने के कारण उसे भीमा भी कहते थे। उसने शिवजी की कठिन तपस्या कर अमरता का वरदान प्राप्त किया। शिव जी ने उसे किसी देव या मानव से न मारे जाने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त कर वह आततायी हो गया। तीनों लोकों को उसने परेशान कर दिया। देवता शिवजी के पास कैलाश पहुंचे और भीमा से मुक्ति की प्रार्थना की। शिवजी तैयार हुए और विभिन्न आयुधों से युक्त दिव्य रथ से यहाँ आये। उधर त्रिदेव ने माता पारवती को कमल के फूलों से आह्वान किया। माता प्रकट हुईं और यहाँ उनका नाम कमलजा अथवा कलमजा माता पड़ा। शिव और पार्वती ने मिलकर अर्धनारीश्वर का रूप धारण किया और कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से त्रिपुरासुर से युद्ध प्रारम्भ कर कार्तिक पूर्णिमा के दिन उसका वध किया। देवताओं ने प्रसन्न हो कर शिव से यहाँ निवास करने को कहा जिसे मान कर शिव यहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और कहा कि इस ज्योतिर्लिंग को भीमाशंकर के नाम से जाना जायेगा। इस स्वयंभू शिवलिंग के ऊपर मध्य में एक स्पष्ट रेखा है जो इसे दो भागों में दिखाती है और अर्धनारीश्वर का प्रमाण देती है।    
मोक्ष-कुंड, जहाँ ऋषि कौशिक ने
तपस्या की थी. भीमाशंकर मंदिर परिसर

       डाकिनी और शाकिनी त्रिपुरासुर की पत्नियां थीं और यह क्षेत्र डाकिनी के नाम से जाना जाता था अतः द्वादश ज्योतिर्लिंग श्लोकों में इस ज्योतिर्लिंग को "डाकिन्यां भीमशङ्करं" कहा जाता है अर्थात भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग डाकिनी क्षेत्र में है। 


मंदिर निर्माण

      यह मंदिर 13 वीं सदी में बना किन्तु शिखर और सभामंडप का निर्माण 18 वीं सदी में नाना फडणवीस ने कराया। नागर शैली में बने नक्काशीदार मंदिर स्थानीय पत्थरों से बना है जो खूबसूरत है। शिवजी महाराज द्वारा भी इस मंदिर को सहायता दी जाती थी ताकि पूजन कार्य होता रहे। पुर्तगालियों से चीमाजी अप्पा ने युद्ध जीत कर पाँच बड़ी घंटियाँ भी प्राप्त की थीं जिनमें से एक इस मंदिर को दिया गया। यह मंदिर के सामने लगा है। 

मंदिर की ओर जाती सीढ़ियाँ और
सजे दूकान

     शिवरात्रि और मासिक शिवरात्रियों में यहाँ अपार भीड़ होती है। छुट्टियों के दिन भी पास के शहरों से काफी भीड़ जमा होती है। 


निजरूप दर्शन पूजन

       अपनी यात्रा कथा को आगे बढ़ाता हूँ। 9 मई 2024 को हमलोग भीमाशंकर कैब से पहुंचे और बस-स्टैंड के पास एक लॉज "भीमाशंकर होम-स्टे" में कमरा लिया लिया और पैदल ही मंदिर तक जाकर पहला दर्शन कर पाँच बजे तक रूम पर आ गए, यहाँ तक मैंने ऊपर बताया है। अगला दिन बहुत महत्वपूर्ण होने वाला था क्योंकि प्रातः की बाबा भीमाशंकर के निजरूप दर्शन की स्पर्श पूजा होनी थी। यह दिन 10 मई 2024 अक्षय तृतीया का भी दिन था और लग रहा था कि भीड़ हो सकती थी। सो हमने सोने से पहले 3 बजे सुबह उठने का अलार्म लगाया। सुबह तैयार होते समय तो एक बार नहाने का पानी भी समाप्त हुआ। लॉज वाले को फोन कर मोटर चलवाया। हमलोग तीन व्यक्ति सवा चार बजे सुबह तैयार हो कर रूम से निकल गए।

प्रातः पूजा के बाद भीमाशंकर मंदिर के
पीछे पहाड़ों से उतरते बादलों का
मनोरम दृश्य

        पिछली शाम को रास्ता देखा हुआ था। इतनी सुबह इक्का दुक्का फूल-माला की दूकान खुली थी। कुछ दूर पीसीसी रोड और फिर सीढ़ियों से उतारते हुए हमलोग मंदिर के पास पहुँचे। यहाँ सीढ़ी के पास अंतिम दूकान फूल-बेलपत्र की ही थी जो खुली थी। फूल-बेलपत्र खरीदकर अपने अपने चप्पल उसी दुकान में रखे और दर्शन के लिए मंदिर की तरफ बढ़े। रास्ते में भी आने वाले भक्त नदारद ही लग रहे थे तो लगा था की आसानी से कम भीड़-भाड़ में पूजा हो जाएगी। किन्तु मंदिर में हमसे आगे करीब सौ भक्त खड़े मिले। अन्य ज्योतिर्लिंगों की तुलना में यह मंदिर कुछ छोटा है अतः आने और पूजा कर जाने वाले भक्तों की लाइन को अलग रखने के लिए इस तरह व्यवस्था की गयी है कि गर्भ-गृह के सामने मंडप के किनारे आने वाले भक्तों को लोहे की सीढ़ियाँ चढ़ कर पहले चौताल पर आना होता है फिर सीढियाँ उतर कर मंडप के बाँये किनारे लाइन में लगना होता है। और जो लोग दर्शन कर चुके वे गर्भ गृह से सीधे बढ़कर मंडप को पार कर इसी लोहे की सीढ़ियों वाली चौताल के नीचे से निकल कर बाहर आते हैं। 

भीमाशंकर मंदिर से निकलने के बाद
सामने श्रीराम मंदिर

       जब हमलोग लाइन में लगे तो इसी चौताल पर खड़े हुए क्योंकि आगे अभी भक्तों के लिए दर्शन शुरू नहीं हुआ था। अंदर पंडित जी लोग प्रारंभिक पूजन कर आरती कर रहे थे। इस ऊँचे चौताल से गर्भ गृह सीधे नजर आता किन्तु यहाँ से दर्शन रोकने के उद्देश्य से बोर्ड द्वारा ढँक दिया गया है। फिर भी बोर्डों के बीच के गैप से उस किनारे वाले भक्त देख भी रहे थे और मोबाइल से वीडियो भी बना रहे थे। उतनी भीड़ की तरफ हम जा कर वीडियो नहीं बना सकते थे क्योंकि फूलों वाली डलिया गिरने का डर था। गैप से हमें सिर्फ गर्भ-गृह के बहार लगे TV दिख रहा था जिसमें अंदर हो रहे पूजन दिख रहे थे। लगभग 15 मिनट लाइन में खड़े होंगे कि आरती समाप्त हुई और धीरे -धीरे लाइन आगे बढ़ने लगी। चौताल पर जब खड़े थे तो कल वाले पंडित जी को दो बार फोन किया पर बात न हो सकी। गर्भ -गृह के बाहर श्री गणपति को प्रणाम कर घुसने ही वाले थे कि पंडित जी ने हमें खोज लिया और बोले दो बार लाइन में जाकर खोज चुका हूँ। मैं बोला की मैं भी दो बार फोन किया, आपने उठाया ही नहीं। खैर ! वे हमें लेकर गर्भ -गृह घुसे। जब आप गर्भ -गृह में प्रवेश करते हैं तो शिवलिङ्ग और दाहिनी ओर की दीवार के बीच एक पंडितजी बैठे रहते हैं जो भक्तों को निर्देश देते हैं। जबकि शिवलिङ्ग और बायीं दीवार के बीच एक खिसकाए जाने वाला ग्रिल लगा होता है जिसके पास एक सुरक्षा कर्मी खड़ा होता है। इस प्रकार शिवलिंग के पीछे का आधा गर्भ-गृह खाली होता है और कतार में लगे भक्तों को इधर आने नहीं दिया जाता। कतार में भक्तजन सामने से ही दर्शन पूजन कर आगे बढ़ते हुए वापस गर्भ-गृह के दरवाजे से निकल कर सामने मंडप में आते हैं। जब पंडित जी के साथ हमलोग गर्भ-गृह घुसे तो हमे बायीं ओर के ग्रिल को खिसका कर पीछे के खाली भाग में ले गए जहाँ कोई भीड़ न थी। उन्होंने हमे एक कलश भरा जल पूजन हेतु दिया। नीचे बैठकर हमने श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का स्पर्श करते हुए पूजन किया। पीछे की दीवार में माँ पार्वती की एक छोटी प्रतिमा है तथा उसके बगल में एक श्रीयंत्र। यहाँ लगे घंटे को जब हमने बजाना चाहा तो बोले कि धीरे बजाना। हमने वैसा ही किया। दो-तीन मिनट में हमारी पूजा हो गयी। दक्षिणा दे कर गर्भ-गृह से बाहर निकल काल भैरव की प्रतिमा को प्रणाम कर आरती ली। फिर सामने बैठे नंदी बाबा को प्रणाम करते हुए मंडप में आये। मंडप के बीच फर्श पर विष्णु रूपी पत्थर के कच्छप को प्रणाम कर अन्य भक्तों के साथ कुछ देर वहाँ बैठे। जब बैठने वालों की भीड़ बढ़ी तो सुरक्षा कर्मियों द्वारा सबको निकलने के लिए बोला गया। हम उठकर वहीं साइड में बैठ गए। अक्षय तृतीया के दिन दर्शन-पूजन के कारण इतना संतोष और प्रसन्नता लग रही थी कि हटने का मन ही नहीं कर रहा था। 

           इसी बीच देखा कि निजरूप दर्शन का समय समाप्त हुआ और चाँदी का कवर शिवलिंग पर रख दिया गया। अब सभी कवर से ही दर्शन पायेंगे। कुछ मंदिर में दान करने का मन हुआ। वरामदे में ही एक पंडित जी दान की रसीद काट रहे थे। उन्होंने एक लिफाफा हमें अपना पता लिखने को दिया और कहा कि प्रसाद आपके घर एक सप्ताह में पहुँच जायेगा। हमने वैसा ही किया। फिर मंडप से निकल कर बाहर बड़े त्रिशूल के पास अन्य लोगों की तरह फोटो खिंचवाये। आगे बढ़कर जोड़ा नन्दी को प्रणाम करते हुए छोटे कुंड के पास से होकर निकले। दस सीढ़ियाँ चढ़ते ही दाहिनी ओर छोटा सा महावीर जी का मंदिर और सामने बड़ा सा राम -मंदिर। कल पहले दर्शन के बाद राम-मंदिर को बाहर से ही प्रणाम किया था। अतः अभी हमलोग अंदर गए। सामने राम-दरबार और द्वार के पास राम-दरबार को प्रणाम करते हुए हनुमान की प्रतिमा। राम-दरबार के एक ओर राधा-कृष्ण की प्रतिमा और दूसरी ओर भगवती दुर्गा की। द्वार के दाहिनी ओर गणपति प्रतिमा भी है। इसके बगल में ही एक दत्ता मंदिर भी है। यहाँ प्रणाम कर निकले और मुख्य मंदिर के पीछे प्रांगण में पहुँचे। यहीं एक ओर मोक्ष कुण्ड है। प्रांगण में एक ओर दो कड़ाहियों में ताज़ा खोवा और कलाकंद बेचा जा रहा था। प्रसाद के रूप में प्लास्टिक डब्बों में भी इसी का ठोस रूप बेचा जा रहा था। कुछ उससे खरीद कर वापस चढ़ाई वाली सीढ़ी के पास पहुंचे जहाँ फूल वाले को खाली डलिया और पैसे दे कर अपनी अपनी चप्पलें लेकर वापस चढ़ाई शुरू की। सीढ़ियों के दोनों तरफ बने दुकानों में कई अब खुल चुके थे। एक दूकान से कुछ सिन्दूर, चन्दन, मिश्री, बद्धी आदि खरीदकर वापस लौटे। अभी हमने कुछ ग्रहण नहीं किया था क्योंकि ऊपर चढ़ कर माता कमलजा के मंदिर भी जाकर प्रणाम करना था।  


भीमा नदी का उद्गम

यहीं से पगडण्डी चढ़कर थोड़ी दूर पर
भीमा नदी का उद्गम स्थल है।

            लौटते हुए सीढ़ियाँ चढ़कर पीसीसी रोड पर थोड़ी दूर आये तो दाहिनी ओर एक कच्ची पगडण्डी ऊपर की ओर जाते दिखी। बोर्ड पर लिखा था भीमा नदी का उद्गम स्थल मंदिर। एक परिवार उधर से लौट कर आ रहा था। हमने उनसे पूछा कि कितनी दूर है उद्गम स्थल? उन्होंने कहा कि बिलकुल पास है थोड़ा चढ़ते ही पास का मंदिर दिखने लगेगा। हमलोग उधर ही चले। मंदिर के पास पहुँचते ही एक बिल्ली खाने के लिए साथ साथ चलने लगी। बेटी को बिल्लियाँ अच्छी लगती है तो उसने मंदिर में ख़रीदा हुआ कुछ खोआ उसे खिलाया। ऊपर भीमा नदी का उद्गम स्थल और मंदिर था। उद्गम के पास पत्थरों के घेरे के ऊपर जाली लगाई हुयी है जिसमे झाँकने पर कुछ पानी नजर आ रहा था। अभी मई का महीना था अतः नदी तालाब में पानी कम ही होता है। 
भीमा नदी उद्गम स्थल के मंदिरों के चित्रों का कोलाज

                 इस उद्गम के बारे में एक कथा यह है कि जब महादेव अर्धनारीश्वर रूप में भीमा के सँहार के लिए युद्धरत थे तो देवतागण इसी स्थान पर बैठे थे। इस स्थान पर देवताओं को पसीना आने लगा और उस पसीने से ही भीमा नदी का उद्गम हुआ। इसे कुशारण्या तीर्थ भी कहते हैं। यहाँ से भीमा नदी उतर कर मुख्य मंदिर के बगल से गुजरती है जो जंगलों से होते हुए आगे बढ़ती है। आगे जा कर कर्णाटक में रायचूर के पास कृष्णा नदी में मिल जाती है।  


कमलजा माता मंदिर

   

कमलजामाता मंदिर,भीमाशंकर

  भीमा-उद्गम से वापस आकर हमलोग कमलजा मंदिर आये। यह मंदिर बस स्टैंड से मात्र 100 मीटर की दूरी पर होगी। सड़क से ही मंदिर के अंदर की प्रतिमा दिखती है। मंदिर के अहाते में घुसते ही कई प्राचीन छोटी बड़ी प्रतिमाएं हैं। हमलोग मंदिर के अंदर गए जहाँ सामने भगवती की प्रतिमा थी। उसी के नीचे एक धातु की प्रतिमा है जो बड़ी सी शिर की है। प्रतिमा के आगे बड़ा सा हॉल है। यहाँ प्रणाम कर निकले और द्वार के पास ही बेंच पर बैठ कर हमने प्रसाद ग्रहण किया। फिर सड़क पर एक भोजनालय में इडली सांभर नाश्ता कर होटल में आकर आराम किया। सुबह जल्दी उठने के कारण सभी तुरंत ही सो गए। 


गुप्त भीमाशंकर

      करीब 11 बजे दिन में हमारी नींद खुली। दिन भर का समय बचा था सो सोचा की आसपास में कुछ और देखने का हो तो चला जाये। नेट पर तीन जगह पास में दिखे किन्तु ये सब ट्रेक ही थे। 

1. गुप्त भीमाशंकर 

2. हनुमान लेक 

3. बॉम्बे पॉइंट  

 

गुप्त भीमाशंकर ट्रेकिंग में पहाड़ियों से
उतरती एक पगडंडी

   Gupt-Bhimashankar Trek 👆

     गूगल मैप पर देखा तो होटल से 3 किमी पैदल दिखा रहा था किन्तु कार से 40 किमी का राउंड लगा कर पहुँचने पर मात्र आधा किमी पैदल चलना होता। हमारी भाड़े की कार खड़ी ही थी, जिसका आज का कोटा बाकी ही था तो हमने कम पैदल चलने के चक्कर में कार से जाने का निर्णय लिया। ड्राइवर भी गूगल मैप से ही चला। पर यहीं हमने गलती कर दी। अनजान जगहों में गूगल मैप पर कभी भी 100% भरोसा नहीं करना चाहिए। लोकल लोगों से वेरीफाई करना सही रहता है। अब हमारे साथ हुआ यह कि करीब घंटे भर पहाड़ों और घाटियों में चलने के बाद एक ऐसी जगह पहुंचे जहाँ पहाड़ी सड़क बन रही थी। तेज ढलान पर डाली गयी महीन गिट्टी पूरी सख्त भी नहीं थी फिर भी ड्राइवर ने एर्टिगा कार चढ़ा ही दी। यह जगह काफी ऊंचाई पर थी और एक ओर 200 फ़ीट से ज्यादा ढलान की घाटी थी जो बहुत डरावनी थी। एक दो बाइक कभी दीखते। इसे पार कर एक बहुत ही छोटे से गाँव के पास पहुँचे जहाँ सड़क के किनारे खड़े एक आदमी से पूछा। उसने बताया आगे रास्ता कहीं नहीं जाता। इधर से गुप्त भीमाशंकर का रास्ता नहीं है। कुछ और लोगों से भी पूछा, सबने बोला इधर से रास्ता नहीं। सो हम वापस लौटे। चार-पाँच किमी वापस लौटने पर एक समझदार से लगने वाले बाइक वाले से ड्राइवर ने मराठी में पूछा कि मैप से ये रास्ता देख कर आये हैं। उसने बताया कि मैप पूरी तरह से गलत नहीं है। थोड़ी दूर पीछे एक कच्ची रास्ता जाता है गुप्त भीमाशंकर के पास और वहाँ से भी करीब एक-डेढ़ किमी पैदल चलना ही होगा परन्तु जो विशेष बात है वह यह कि कच्ची रास्ता पर आपकी ये कार नहीं जा पायेगी। उस रस्ते पर सिर्फ ट्रेक्टर ही चलते हैं। सो हम वापस होटल की ओर लौटे। ड्राइवर बोला मैं वहाँ लोकल लोगों से पता करूँगा। हमलोग रूम पर फ्रेश हो कर खाने के लिए नीचे आये। इस बीच ड्राइवर ने पता लगाया था एक दूकान वाले के पास से। वह हमे उसके पास ले गया। दूकान वाले ने बताया की ये तीनों पास वाले स्थान ट्रेकिंग से ही पहुँच सकते हैं किन्तु आप गूगल मैप से मत जाएँ क्योंकि जंगलों और पहाड़ों में हमेशा टावर नहीं मिलता। भटक जाने पर वापस लौटना कठिन होगा। आप एक गाइड ले लें जो तीन सौ से पाँच सौ तक आदमी की संख्या के हिसाब से लेगा और दिखा कर वापस ले आएगा। गुप्त भीमाशंकर का रास्ता राम मंदिर के बगल से जाता है और उसी मंदिर के पास से आपको गाइड भी मिल जायेगा। परन्तु अभी बहुत धूप है और शाम को जंगल में जाना ठीक नहीं। अच्छा होगा कि आप सबेरे जाना। सलाह मान कर हमने अगले दिन सुबह ही जाने का सोचा क्योंकि अगले दिन पूरा समय भी हाथ में था और हमें एयरपोर्ट 11 बजे रात में पहुँचना था। यहाँ से पुणे जाने में भी चार - साढ़े चार घंटे से ज्यादा समय नहीं लगता।  

              अगली सुबह रूम से तैयार होकर नीचे उतारते हमें 9 से ऊपर हो गए। पहले हमने नाश्ता किया। फिर सोचा कि गाइड के बारे में यहीं पता करता हूँ। होटल से सामने ही यहाँ की एकमात्र पान की गुमटी है, वहीं पहले पता करना सही लगा। गुमटी में एक युवक बैठा था, उसने कहा कि गाइड मिल जायेगा पर 500 रूपये लगेंगे। मैं बोला कि ठीक है बुला दो। युवक बोला मैं ही जाऊँगा। उसने कहा कम से कम दो बोतल पानी रख लो। और जितनी तेजी से आपलोग चल सको उसी हिसाब से लौटने में समय लगेगा। उसी की दूकान से दो बोतल पानी ले कर हम बढ़े। उसी ढलान वाली पीसीसी रोड से सीधे हमलोग मंदिर के पास वाली पार्किंग से पहले भीमा नदी के ऊपर कल्वर्ट पर पहुंचे जिसे पार कर नदी की दूसरी साइड से किनारे किनारे चले। पास हो रहे कंस्ट्रक्शन के कारण करीब 150 फ़ीट तक बड़े बोल्डर थे इन्हें पार कर हमें पथरीली जंगली रस्ते से मंजिल तक जाना था। 

           मेरी पत्नी को घुटने में दर्द की समस्या रहती है तो हमने उन्हें कहा था कि वे होटल रूम में ही रहें परन्तु वे न मानीं। सो उनकी चलने की गति धीमी थी। कुछ जाने वाले लोग हमसे आगे बढ़ जा रहे थे, कुछ लौटने वाले लोग भी थे। लौट रहे एक युवक ने हमें देख कर कहा कि अभी तो आधा दूर भी नहीं आये आपलोग। मेरी पत्नी को देख कर बोला कि आंटी कैसे जा पायेंगी। आगे पहाड़ी ढलान पर 3 - 3 फ़ीट गहरी सीढ़ियाँ हैं। हम थोड़े चिंतित तो हुए पर पत्नी हिम्मत वाली थी। धीरे -धीरे महादेव की कृपा से चली जाऊँगी। 

          जंगल में बड़े पेड़ों के कारण दोपहरी में भी छाया थी। हरे भरे पेड़, जंगली लताएँ, चिड़ियों की चहचहाहट और डालियों पर बंदर अच्छे लग रहे थे। कभी कभी कोई मधुमक्खी, ततैया या भँवरा पास मंडरा कर चला जाता। किन्तु ज्यादा परेशान किया एक बड़ी वाली मक्खी ने। एक-दो बार तो गर्दन और पैर के पास काटा भी पर कोई परेशानी न हुई। 

                आधा रास्ता पार करने पर एक छोटी पथरीली नदी मिली जिसमें अभी पानी न था। गुप्त भीमाशंकर, भीमा नदी के बीच में ही है अतः जंगल से हमें नदी तक जाना ही था। ज्यों -ज्यों हमलोग नदी के पास पहुँच रहे थे पहाड़ी ढलान तीखी होने लगी थी। पगडण्डी सचमुच दो -दो, तीन-तीन फ़ीट नीचे वाले सीढ़ियों की तरह हो गयी। मेरी पत्नी बैठ -बैठ कर उतर रही थी। मुझे चिंता हो रही थी वापसी की। कैसे वापस इन पर चढ़ पायेगी। 


 

गुप्त भीमाशंकर
              गुप्त भीमाशंकर पहुँच कर हमने देखा कि यह एक शिवलिंग है जो लगभग 10 फ़ीट ऊँचे वॉटरफॉल के नीचे है। अभी नदी में पानी न था। वरसात में नदी का पानी दस फ़ीट ऊपर से शिवलिंग पर गिरता है। वस्तुतः सितम्बर से फरवरी के बीच यहाँ आने पर मनमोहक दृश्य रहता है। हमलोग वहाँ पर फोन से फोटो लेने लगे। उसी टाइम एक और गाइड जो कि धार्मिक प्रिंट का शर्ट और मराठी टोपी लगाए था, वहाँ आया और शिवलिंग को कुछ सँवारा। उसके साथ भी एक वृद्ध नाना -नानी और बच्चे थे। लौटते समय बच्चे तो तेजी से आगे बढ़ जाते पर नाना रुक रुक कर आ रहे थे। उनका गाइड हमे सुना रहा था कि बुद्धा रुक रुक कर बीड़ी पीता है और देर करता है। फिर भी वे हमसे पहले ही वापस हुए। 

               यह देख कर संतोष हुआ की ऊँचाई पर उतरने की तुलना में पत्नी को चढ़ने में आसानी हो रही थी। उनकी परेशानी ज्यादा इस बात से थी की उनके पैरों में पसीना बहुत ज्यादा आ रहा था जिससे पैर फिसल रहा था। रह रह कर उन्हें चप्पल खोल कर धूल में पसीना सुखाना होता था। अंततः मंदिर के पार्किंग  पहुँचने से 400 फ़ीट पहले एक पत्थर पर पैर फिसल ही गया और मोच आ गयी। उस टाइम तो उतना पता न चला पर होटल आते आते सूजन आ गयी और चलना दूभर हो गया।    

                  उधर आधा जंगल का रास्ता आते आते बेटी का सैंडल टूट गया और फेंकना पड़ा। ट्रेकिंग में सैंडल पहनना उचित नहीं। मैंने जिद कर अपना सैंडल उसे दिया और खली पैर ही लौटा। धूप में पत्थर या पीसीसी पर खाली पैर चलने का कष्ट एक अलग ही होता है। जब हम पीसीसी पर उस जगह पहुँचे जहाँ से मन्दिर जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ मुड़े थे तो बहुत भीड़ नजर आयी। जब पास आये तो पता चला कि ये तो दर्शनार्थियों की भीड़ थी। लोग आते ही जा रहे थे और लाइन में लगे जा रहे थे। हम थक चुके थे अतः पहले नीम्बू सोडा पिया, फिर गन्ने का रस। 

        अब हनुमान लेक और बॉम्बे पॉइंट जाने की हिम्मत न बची थी। रूम पर आ कर एक घंटा आराम किया फिर लगभग 2 बजे होटल छोड़ कर कार से पुणे के लिए निकले। इतनी गाड़ियों की भीड़ थी कि रह रह कर ट्रैफिक जाम हो जा रहा था। सड़क के दोनों ओर पार्क की हुई गाड़ियाँ और रास्ते में पार्किंग की बड़ी बड़ी जगहें गाड़ियों से फुल। कारण कि आज द्वितीय शनिवार था, छुट्टी का दिन। बस-स्टैंड से पाँच किमी बाहर निकलने में ही घंटे भर लग गये। 

      

डिम्भे डैम और काली मैना

जंगली फल -काली मैना


भीमाशंकर से निकलते समय तो कड़ी धूप थी पर एक घंटे के अंदर मौसम बदलने लगा। कभी हल्की बारिश होती, तो कभी छूट जाती। रास्ते में सड़क किनारे कहीं कहीं स्थानीय ग्रामीण महिलायें अथवा बच्चे पत्ते के दोने में छोटे छोटे काले फल बेच रहे थे और गुजरने वाली गाड़ियों की तरफ इन्हें दिखा कर लेने का इशारा कर रहे था। भीमाशंकर आते समय भी इन्हें देखा था। हमें लगा शायद जामुन बेच रहे हों। पर ड्राइवर ने कहा कि ये जंगली बेरियां हैं इधर ही मिलती हैं और इन्हें काली मैना कहा जाता है। उसने कहा कि ये अच्छे लगते हैं खाने में। मैंने सोचा जब आये हैं तो इनका भी स्वाद देखा जाये। एक काफी बुजुर्ग महिला आगे इन फलों को लेने का इशारा कर रही थी। गाड़ी रुकवा कर उससे हमने एक दोना लिया जिसके 20 रूपये दिए। मैंने इन फलों  बिना धोये खाना उचित नहीं समझा। इसलिए इन्हें रख लिया और अगले दिन घर पर धो कर ही खाया। बेरियां खट्टी मीठी थीं। 
डिंभे डैम, महाराष्ट्र

          रास्ते में करीब 50 किमी चलने के बाद हमारी कार एक ऊँचे पहाड़ से से उतर रही थी जबकि बायीं ओर बड़ी और चौड़ी घाटी थी। कई गाड़ियाँ सड़क के किनारे रुकी थीं और लोग फोटो ले रहे थे। हमने भी गाड़ी रुकवायी तो दूर नीचे घाटी में एक डैम नजर आया। सुन्दर दृश्य का फोटो वीडियो लेकर वापस चले। एक जगह ड्राइवर ने सीएनजी भरवाया, एक मेडिकल शॉप में मैंने पत्नी के पैर में आई मोच के लिए क्रेप बैंडेज लिया फिर ढंग का होटल देख खाना खाया। पुणे घुसते ही जोरों की बारिश शुरू हो गई। गुप्त भीमाशंकर से लौटने में बेटी का सैंडल टूट गया था अब उसके लिए एक सैंडल लेना था। एक जगह बाटा की दूकान देख कर रुके तो बारिश में कार से निकलना दूभर था। आधे घंटे की प्रतीक्षा के बाद वर्षा कुछ कम हुई तो तो बाटा दूकान में सैंडिल ख़रीदा। अभी समय काफी था फ्लाइट में तो हम थोड़ी देर फ़ीनिक्स मॉल में भी घूमे। रास्ते में ही ऐतिहसिक येरवडा जेल दिखाई पड़ा। अंततः साढ़े नौ बजे ड्राइवर ने हमे एयरपोर्ट छोड़ा। उसका हिसाब कर थैंक यू के साथ विदा किया। और इस तरह हमलोग भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन की यात्रा पूर्णकर अगली सुबह फ्लाइट से अपने शहर पहुंचे। 


       अगर आपलोग भी यहाँ की यात्रा करना चाहते हैं तो जरूर जाएँ। घने जंगल जो अभ्यारण्य घोषित हैं, पहाड़ और झरने आपका मन मोह लेंगे। सितम्बर से फ़रवरी तक यात्रा करनी अच्छी मानी जाती है क्योंकि इस समय गर्मी कम होती है और अनेक छोटे बड़े झरने आपको दिखाई देंगे। 

                   ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें। इस पेज तक आकर पढ़ने के लिए धन्यवाद। 


इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची





































Sunday, February 4, 2024

मोतीनाथ धाम और मोती झरना, साहेबगंज, झारखण्ड

   
मोतीनाथ धाम गुफा का प्रवेश द्वार
और मोती झरना

       एक परीक्षा दिलाने के सिलसिले में साहेबगंज जाना हुआ। चूँकि बिहार के भागलपुर जिले से आगे बढ़ने पर गंगा जी झारखण्ड के साहेबगंज जिले में प्रवेश करती है, तो सोचा कि जब तक परीक्षार्थी बाहर नहीं निकलता क्यों न गंगा-स्नान का लाभ लिया जाए। समय का सदुपयोग भी होगा और पुण्य फल मिलेगा सो अलग।
 परीक्षा केंद्र सेंट जेवियर स्कूल में था जहाँ से 300 मीटर पहले ही गंगा किनारे एक मंदिर के पास स्नान घाट था। किन्तु यह गंगा जी की मुख्य धारा न थी पर आगे जा कर यह मुख्य धारा में मिलती थी। हमने सोचा क्यों न मुख्य धारा के किनारे स्नान किया जाय। गाड़ी अपनी थी, सो हमलोग एक-डेढ़ किलोमीटर आगे मुख्य धारा के पास गए किन्तु यहाँ देखा कि यह तो फेर्री-घाट है। कोई यहाँ स्नान न कर रहा था। पक्का घाट भी न बना था। कच्चे किनारे से पानी तक जाने में तीखी ढलान थी जिससे अगर उतर भी जाते तो चढ़ना संभव न था घुटनों के कारण। सो हमलोग वापस मंदिर वाले घाट पर आये। यहाँ पक्का घाट बना था और कुछ लोग स्नान भी कर रहे थे। इनलोगों में से कई हमारी तरह अभिभावक ही थे। हमलोगों ने स्नान कर उसी मंदिर में महादेव की पूजा की। गूगल से मालूम था कि पास में मोती झरना नामक कोई दर्शनीय स्थान है। स्थानीय ऑटो वालों से पता किया तो 18 किमी दूर महाराजपुर में मोती झरना और गुफा -मंदिर की जानकारी मिली। हमारे पास चार घंटों का समय था तो हमने जाने का फैसला किया। 
मोती झरना और मोतीनाथ धाम का प्रवेश द्वार
            अपनी गाड़ी से ही निकले। शहर से निकलने पर मुख्य पथ में फोर-लैनिंग का कार्य चल रहा था तो कुछ डायवर्सन से गुजरना पड़ा। अंत में करीब तीन किलोमीटर मुख्य सड़क को छोड़ कर पहाड़ों तक जाना पड़ा जो एक गांव से होकर गुजरती थी। गाड़ी चलने लायक पी सी सी पथ बनाया गया है। पार्किंग के पास गाड़ी लगाकर आगे बढ़े तो 5 रूपये प्रति व्यक्ति का टिकट लेना पड़ा तब एक लोहे के गेट से आगे बढ़े। झरना के आसपास और वहाँ तक जाने का रास्ता विकसित किया गया है। बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले, झरना और पहाड़ को निहारने के लिए विशेष स्थान, कुछ जानवरों की मूर्तियां, झरना के ठीक नीचे चेक डैम और छोटा तालाब इत्यादि बनाये गए हैं। झरना (Waterfall) में पानी 100 फ़ीट से ज्यादा ऊंचाई से गिरती है। यह पहाड़ प्रसिद्ध राजमहल हिल्स का ही हिस्सा है। बहुत ही मनोरम नजारा है यहाँ का। आसपास की पहाड़ी पर हरे भरे जंगल भी हैं जिनमें केले के पेड़ों का भरमार है। शायद ये जंगली केले होंगे। इनके फल स्थानीय लोग नहीं खाते बल्कि यहाँ रहने वाले बन्दर खाते हैं। यूँ तो राँची के आसपास का क्षेत्र वाटरफॉल्स के लिए जाना जाता है किन्तु सुदूर साहेबगंज जिले में यह एक मात्र झरना है और बहुत ही सुन्दर स्थान है। अगर यही झरना रांची के पास होता तो बहुत ही भीड़ होती परन्तु यहाँ जब हम पहुंचे तो मुश्किल से 50-60 लोग होंगे। इस झरना के पास एक और आकर्षण है एक गुफा, जिसमें एक प्राचीन शिव-मंदिर है। यह गुफा कोई सुरंग जैसी नहीं है बल्कि झरना की तलहटी के पास तिरछा पत्थर का बड़ा भाग पहाड़ से निकल चुका है।  सामने ग्रिल से सुरक्षित कर के एक अंदर जाने का द्वार बनाया गया है जिसमे मोतीनाथ शिवलिंग हैं। एक पुजारी शिवलिंग के पास बैठे थे। शिवलिंग के पास जा कर हमने पूजा की और पुजारी जी का आशीर्वाद लिया। हमें देख कर वे बांग्ला प्रभावित हिंदी में मंदिर का इतिहास बताने लगे कि यह मन्दिर पांडवों के समय से है और उनके द्वारा ही स्थापित है। और यह कि वे पांडवों के ही वंशज हैं (पता नहीं किन्तु पांडव तो क्षत्रिय थे?) . यह भी कि माता द्रौपदी के आशीर्वाद (?) से तभी से उनके पूर्वजों को एक मात्र पुत्र होता है जो उनके वंश को आगे बढ़ता है। पुजारी जी भी एकलौते पुत्र हैं और उनका भी एक ही पुत्र है।      
गुफा के भीतर मोतीनाथ शिवलिंग

         इस गुफा मंदिर की पथरीली छत तिरछी है। बाहर झरने की तरफ छत की ऊंचाई छः -सात फ़ीट होगी जहाँ ऐसा लगता है कि सर टकरा न जाये। वहीं अंदर की तरफ तिरछी हो कर छत फर्श से मिल जाती है। गुफा का आकार लगभग 50' x 25' होगा। मंदिर के बाहर लम्बाई में बैठ कर झरना और पहाड़ियों को निहारने के लिए सीढियाँ बनी हैं। इनके सामने ही गिरे हुए झरने के पानी को बांध कर दो काम गहराई के टैंक बने हैं। इनसे ओवरफ्लो होकर पानी छोटे नाले के रूप में पहाड़ों से नीचे जाती है।झरना आने वाले पर्यटक इस नाले को एक छोटे पुलिया से पार कर गुफा मंदिर की तरफ आते हैं। इस पुलिया पर खड़े हो कर झरना और सुरम्य हरे भरे पहाड़ों को देखने का एक अलग ही आनंद है। 
मोती झरना का अप्रतिम दृश्य

        इतना मनोरम स्थान है कि हर कोई जो भी यहाँ आता है इस अविस्मरणीय क्षण को चित्र के रूप में सुरक्षित रख लेना चाहता है। सभी मोबाइल फोन से फोटो लेने में व्यस्त थे। हमने भी फोटो और वीडियो लिए और बचे हुए समय को विचार कर कुछ देर वहां रह कर वापस निकल लिए, एक और खूबसूरत स्थल और मंदिर की यादें संजोये। 
          जो भी भक्त या पर्यटक बाहर से यहाँ आना चाहते हैं उनके लिए ठहरने का इंतजाम साहेबगंज शहर के होटलों में ही है, झरना के पास नहीं। खाने का बढ़िया इंतेज़ाम पास में नहीं है। दो -तीन झोंपड़ीनुमा दुकान हैं जहाँ रिफाइन तेल में तले पूड़ी सब्जी या मुढ़ी-घुघनी-पकौड़े मिल रहे थे। इन्ही दुकानों में पानी बोतल, कोल्ड ड्रिंक्स, चॉकलेट, इत्यादि भी मिल रहे थे। यद्यपि बंदरों से सावधान रहने की बात की जा रही थी किन्तु झरने तक जाने वालों को वे ज्यादा परेशान नहीं कर रहे थे। सिर्फ दूकान के पास ही उनका आतंक था, खाने  सामान झपटने में एक्सपर्ट। हमने दो छोटे बिस्कुट के पैकेट ले कर एक खाया और दूसरा टेबल पर रखा। जरा सा असावधान होते ही बिजली की फुर्ती से टेबल पर रखा पैकेट झपट कर एक बन्दर भाग गया।हमलोग आश्चर्यचकित हो कर हंसने लगे। 
            अगर समय और मौका मिले तो अवश्य इस जगह पर जाइये, मन प्रसन्न हो जायेगा। 
===<<<O>>>===