Saturday, April 7, 2035

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नमो परमात्मने

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Monday, January 20, 2025

मुंबई में महालक्ष्मी देवी, सिद्धिविनायक और मुम्बा देवी के दर्शन

पिछले ब्लॉग पोस्ट "अष्टविनायकों में से दो - श्री महागणपति और श्री चिंतामणि गणपति के दर्शन" से आगे :-

गेटवे ऑफ़ इंडिया, संध्या में
समुद्र की तरफ़ से
 

          हमलोगों ने अटल सेतु से मुंबई में प्रवेश किया। सेतु से पहले पश्चिमी घाट में जो चौड़ी सड़कें और अनेक सुरंगें बनायीं गयीं हैं वो अद्भुत हैं और तकनीकी प्रगति की गवाह है। इस समय अँधेरा हो चुका था और बिजली की रौशनी में शहर जगमगा रहा था। हमलोगों का मुंबई के होटल लॉर्ड्स में दो रात की बुकिंग थी। होटल आ कर हमने आउटस्टेशन कैब वाले को हिसाब कर पैसे दिए और उसे छोड़ दिया। लगभग आठ बज रहे थे। हमारे पास अभी का थोड़ा टाइम और अगले दिन का पूरा समय बचा था। हम पूरे समय का उपयोग करना चाह रहे थे तो सोचा कि अभी गेटवे ऑफ़ इंडिया के पास मरीन ड्राइव चलते हैं। उधर से रात का खाना खा कर वापस होटल आ जायेंगे। 

गेटवे के पास होटल ट्राइडेंट

                 तो फ्रेश हो कर हमलोग निकले और नीचे सड़क पर आकर एक टैक्सी की और गेटवे से पहले मरीन ड्राइव पर आ गए। समुद्र के किनारे बनी मोटी दीवार पर अनेक लोग बैठे थे। अनेक लोग टहल रहे थे। एक तरफ समुद्र था तो दूसरी ओर बिजली की रौशनी में सड़क और अट्टालिकाएँ। लोग आनंद ले रहे थे। हमलोग भी थोड़ा टहले और कुछ देर बैठे। सामने सड़क के पार ट्राईडेंट होटल का बहुमंजिला भवन आकर्षक था तो उससे आगे प्रसिद्ध होटल ताज की खूबसूरती। गेटवे ऑफ़ इंडिया का रात की रौशनी में बढ़िया फोटो नहीं आ रहा था तो हमलोगों ने अगले दिन आने का प्लान रखा। 

लियोपोल्ड कैफ़े के अंदर का दृश्य

               देर तक घूमते टहलते हमें अब भूख भी लगने लगी थी। ताज होटल के पीछे वाली सड़क पर कई होटल थे खाने के लिए जिनमें भीड़ भी थी। जैसे बड़े मिया होटल में। एक में हमलोग जाकर बैठे भी पर फिर तुरंत निकल गए। सफाई ठीक नहीं लगी। इस सड़क के सभी होटल के मालिक संभवतः मुस्लिम थे। हमलोग कोई ढंग का होटल खोजने लगे। दो सड़क के बाद एक रेस्टॉरेंट दिखा जो आधुनिक जैसा था और अच्छा लगा। यह था लियोपोल्ड कैफ़े। यहाँ खाने के साथ साथ देसी विदेशी लोग विदेशी शराब भी पी रहे थे। खाना अच्छा था। खाने के बाद हमलोग फिर टैक्सी लेकर होटल आ और अगले दिन के घूमने का प्लान बनाया। 

महालक्ष्मी मंदिर, मुंबई

           अगली सुबह उठ कर तैयार हुए तो सोचा कि पहले किसी मंदिर में दर्शन किया जाय। सबसे पास में महालक्ष्मी मंदिर था तो होटल से उतर कर वहाँ के लिए एक टैक्सी ली। ड्राइवर एक यूपी के भैया थे जो पूरे रस्ते गप्पें करते गए। उनके बारे में मैंने ब्लॉग पोस्ट "यूपी वाले ड्राइवर भैया" भी लिखा है जिसे आप पढ़ सकते हैं। वहाँ पहुँचने से पहले उनके मालिक का फोन आ गया तो हड़बड़ी में उन्होंने हमें मुख्य सड़क के पास स्वामीनारायण मंदिर के पास ही उतार दिया और कहा कि यहाँ से मंदिर पास ही है, गाड़ी जाने में दिक्कत होगी तो आप लोग पैदल ही चले जाओ। हमलोग पैदल ही मंदिर तक गए जबकि गाड़ियाँ उस सड़क से आ-जा रही थीं। एक दुकान में चप्पल खोल कर प्रसाद लिया और दर्शन कर निकले। मंदिर के अंदर ही निकास रास्ते के पास एक साड़ी की दूकान भी थी। 

महालक्ष्मी मंदिर के रास्ते में पहले मुख्य सड़क
पर यह स्वामीनारायण मंदिर और भक्त निवास
मिलता है ।

              भूख लगने लगी थी। पास ही साउथ इंडियन भोजनालय था तो हमने वहाँ नाश्ता किया और एक दूसरे दूकान में चाय पी। अब हम लोग सिद्धिविनायक के दर्शन के लिए निकले। यह मंदिर दूर से ही भव्य लग रहा था। भीड़ भी पूरी था। पुलिस वाले ने कहा जल्दी जाओ नहीं तो दोपहर का मंदिर बंद होने वाला है। हम लोग जिस एंट्री गेट से घुसे उसमे भीड़ काम थी। इस रास्ते से जाने पर हम लोग एक ऊँचे प्लेटफार्म पर पहुंचे जहाँ से श्री सिद्धिविनायक का दर्शन थोड़ा दूर से हो रहा था जो लगभग 20 फ़ीट की दुरी होगी। नीचे पास से दर्शन में लम्बी कतार थी जिसमें लगभग दो घंटे का टाइम लगता। हमारा दर्शन भी स्पष्ट हो रहा था और हमारे पास इतना समय नहीं था कि दो घंटे कतार में खड़े रहते। 

सिद्धिविनायक दर्शन, मुंबई

           बच्चे अगले दिन ताज होटल के रेस्टॉरेंट का प्लान बना रहे थे। मैंने कहा कि मैं पूरे ट्रिप के लिए चप्पल पहन कर आया हूँ, पता नहीं बिना जूते वहाँ जाने की अनुमति है या नहीं। तो सबने कहा कि मॉल चलते हैं जूते लेने। हम लोग पश्चिमी लोअर पारेल के एक बड़े मॉल में गए। वहाँ पहले तो एक ब्रांडेड चाय दूकान में चाय पी। दूकान का नाम भी चाय ही था। यहाँ चाय का रेट एयरपोर्ट जैसा था। सौ रुपये प्रति कप से ज्यादा। फिर एक जूते की दूकान से अपने लिए जूते ख़रीदे। लगभग दो बजने वाले थे। 

मरीन ड्राइव के बगल में यह सड़क समुद्र लेवल से
भी नीचे हो कर जाती है ।

           यहाँ से हमलोग टैक्सी से जुहू की तरफ निकले। रास्ता लम्बा था और हम शहर देखते हुए जा रहे थे। दोपहर का समय था, धूप भी थी फिर भी जुहू बीच पर भीड़ थी। करीब पौने तीन बज रहे थे। कई मोटर बोट्स समुद्र में चल रहे थे। बेटी ने ज़िद्द किया कि चढ़ेंगे। किनारे रेत पर टेबल लगा कर बोट्स के टिकट काटे जा रहे थे। मोल-मोलाई कर हमने चार टिकट लिए और उसी के पास चप्पल जूते रख कर बोट्स के पास गए। पैरों के पास कपड़े खींच कर ऊपर किये क्योंकि थोड़ा पानी में घुस कर बोट पर चढ़ना था। फिर भी थोड़ा कपडा तो भींग ही गया। 

जुहू बीच पर छतरी लगाये बोट वाले ।

           अब तक जितने भी बीच पर गया हूँ उनमें से यह बीच सबसे गन्दा था। यहाँ नहाने के मकसद से कोई नहीं आता। पानी का रंग भी साफ़ नहीं था। बोट पर घूम कर किनारे आते आते प्यास लगने लगी थी तो किनारे पर ही एक नारियल वाले से नारियल पानी पिया। जुहू के पास ही अमिताभ बच्चन का बंगला है। बच्चे उसे देखने की जिद्द करने लगे। यद्यपि बाहर से बंगला देखने का मुझे कोई आईडिया सही नहीं लगा फिर भी उनका मन रखने के लिए दो ऑटो किये और निकल गए बंगला देखने। ऑटो वाले ने रास्ते में बताया, इधर धर्मेंद्र का बंगला, उधर रोहित शेट्टी और शत्रुघ्न सिन्हा का बंगला आदि आदि। अमिताभ के बंगले के पास उतर कर कुछ फोटो वगैरह खिंचवाया। बच्चे लोग फिल्म सिटी जाना चाहते थे परन्तु गोरेगाँव दूर था अतः वहाँ का प्लान नहीं बनाया। 

जिओ वर्ल्ड कन्वेंशन सेंटर में पुराने जमाने का मूवी प्रोजेक्टर
और बगल में उसकी लकड़ी में बनाई गई कलाकृति ।

           अगला विजिट था जिओ वर्ल्ड कन्वेंशन सेण्टर का। बच्चों ने कहा कि इसका काफी नाम सुना है। बहुत ही भव्य भवन है। ग्राउंड फ्लोर पर एप्पल कंपनी का बड़ा स्टोर था। सामान के साथ साथ नए प्रोडक्ट्स के फीचर्स एवं कार्य प्रणाली की जानकारी दी जा रही थी। अंदर जाने पर बहुत ही विशाल और सुन्दर तरीके से मेन्टेन किये गए स्पेस थे। इनमें कुछ पुराने ज़माने की मशीने थीं और उनके बगल में लकड़ी से कलाकारी कर वैसी हूबहू नक़ल रखी गयी थीं। रेस्टॉरेंट भी थे। किन्तु यहाँ की पब्लिक ज्यादातर टेक्निकल ज्ञान वाली लग रही थी। यहाँ से निकलते पाँच बज गये। भूख लग रही थी तो गेटवे की तरफ ही खाने का सोचा। बांद्रा-वर्ली से लिंक फ्लाईओवर होते हुए लौटे। ढलती सूरज में इस रास्ते में बहुत अच्छा लगा। गेटवे ऑफ़ इंडिया के पास फेरी पर भी चढ़ने का प्लान था तो टैक्सी से उधर ही निकले जहाँ पिछली रात को खाया था। पर हम लोग एक शाकाहारी हिन्दू होटल जाना चाहते थे।    

शाम में फेरी से गेटवे और ताज का दृश्य ।

        लोगों से पूछ कर दो गली आगे जाने पर एक ढंग का होटल दिखा। वस्तुतः एक ही नाम वाले दो होटल गली में आमने-सामने थे। स्टाफ ने बताया कि दो भाइयों का ही अलग अलग होटल है। देर हो जाने के कारण वहाँ रोटी सब्ज़ी जैसा खाना न मिल पाया क्योंकि किचन अभी बंद था। तो चाट जैसा नाश्ता कर हम लोग गेटवे की तरफ निकले। पिछली शाम भी हम लोग जब आये थे तो अँधेरा हो चुका था और आज भी शाम होने लगी थी। बेटी तो एलीफैंटा केव्स जाना चाहती थी पर वहां जाने के लिए अब कोई फेरी उपलब्ध नहीं थी। गेटवे के पास ही एक फेरी सर्विस थी जो पास के समुद्र में आधा घंटा घुमा कर लाती थी। अंतिम फेरी में हमलोगों को टिकट मिली। फेरी में समुद्र से मुंबई का रात की रोशनी में दृश्य अलौकिक था, उसमे भी ताज होटल तो सचमुच ही सर्वोत्तम लग रहा था। बहुत ही अच्छा रहा यह फेरी का अनुभव। फेरी से गेटवे पर उतर कर हम लोग निकले और होटल आ कर फ्रेश हुए। 

ताज होटल, मुंबई के मुख्य गुंबद के नीचे अंदर में
सीढ़ियों वाले हॉल का भव्य दृष्य ।

          आज का समय समाप्त ही हो रहा था तो प्लान यह बना की आज अंत में मुम्बा देवी का दर्शन करते हैं। टैक्सी वाले ने जहाँ उतारा वह बहुत भीड़ भाड़ वाला इलाका था। मुम्बा देवी तक जाने के लिए आगे हमें पैदल जाना पड़ा। उसी भीड़ से बढ़ते हुए हमलोग मंदिर पहुंचे। अभी आरती हो रही थी। तो थोड़ी देर हाथ जोड़ कर मंदिर में खड़े रहे। आरती के बाद मुम्बा देवी के दर्शन किये और पैदल चल कर वहां आये जहाँ हमे टैक्सी वाले ने उतरा था। वहीं कोने पर एक ढंग का रेस्टॉरेंट दिखा तो रात का खाना वहीं खाया। पत्नी को साड़ी खरीदने का मन था पर दुकान वाले लेट हो जाने के कारण अब दूकान बंद कर रहे थे। हम लोग साड़ी दूकान की खोज में कुछ पैदल भी चले पर न मिला। अंततः टैक्सी कर होटल वापस आये। अगले दिन हमारा वापसी की फ्लाइट थी पर उससे पहले ताज होटल भी जाना था। तो फ्रेश हो कर सो गए। 

ताज होटल के प्रथम तल की खिड़की से सुबह
में गेटवे और समुद्र का मनमोहक दृष्य ।

               अगली सुबह हम लोग तैयार हो कर ताज जाने वाले थे पर बच्चों ने पहले फोन कर पूछ लिया कि हम लोग वहाँ ब्रेकफास्ट करना चाहते हैं तो एंट्री मिलेगी या नहीं। उन्होंने बुला लिया। टैक्सी से हम लोग पहुंचे। ग्राउंड फ्लोर के रेस्टॉरेंट के पास पहुँचे तो वहाँ खड़ी होस्टेस ने कहा कि अभी तो रूम में ठहरे लोगों का कॉम्प्लिमेंट्री ब्रेकफास्ट चल रहा है आप लोग फॉर्मल ड्रेस में भी हैं तो ऐसा कीजिये कि  प्रथम तल्ले के रेस्टोरेंट में चले जाइये। अगर प्रॉब्लम हो तो फिर मैं यहाँ हूँ ही। तो गलियारे देखते हम लोग पहले तल के रेस्टॉरेंट के पास आये। यहाँ बाहर खड़ी होस्टेस ने भी उसी तरह हमें पुनः ग्राउंड फ्लोर पर जाने की सलाह दी। पर जब हमने उसे बताया कि हमें वहां से ही भेजा गया है। तो थोड़ा वेट करने बोला गया। थोड़ी देर बाद हम अंदर एक टेबल पर बैठे। वहाँ बुफे सिस्टम था ब्रेकफास्ट का तो प्लेट उठा कर जो जो ठीक लगा उसे लिया। आइटम्स की भरमार थी। खाना भी सभी स्वादिष्ट। चाय भी पी। चार लोगों के ब्रेकफास्ट का बिल लगभग बारह हजार रुपये आया। उस हॉल से निकल हम लोग उस बरामदे में आये जहाँ से समुद्र और गेट वे दिखता था। वहां से कुछ फोटो लिए। सीढ़ियों से उतरते देखा कि एक युवा गायक भारतीय वेश भूषा में गाने के तैयारी कर रहा था। 

गेटवे पर परेड का अभ्यास ।

         ताज से निकल हम लोग पैदल ही गेटवे आये क्योंकि अभी तक दिन की रौशनी में यहाँ का फोटो नहीं ले पाए थे। गेटवे के पास नेवी के जवान परेड अभ्यास कर रहे थे। एक तरफ गैलेरी भी बनाई जा रही थी। शायद एक दो दिन में नेवी -दिवस था। यहाँ से फोटो आदि ले कर हम लोग टैक्सी से होटल आये। अब एयरपोर्ट निकलने की तैयारी करनी थी। तो सामान समेट कर चेक आउट किया और टैक्सी से एयरपोर्ट आ गए। इस प्रकार हमारी एक सप्ताह की धार्मिक और साथ साथ मनोरंजन वाली यात्रा निर्विघ्न संपन्न हुई।  

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Friday, January 3, 2025

अष्टविनायकों में से दो - श्री महागणपति और श्री चिंतामणि गणपति के दर्शन

श्री अष्टविनायक में से एक श्री महागणपति मंदिर,रांजणगाँव, महाराष्ट्र
का मुख्य सड़क पर शोभाद्वार
                जब हमलोग शनि सिंगणापुर से मुंबई की ओर जा रहे थे तो आपस में बातें कर रहे थे कि मुंबई में जो एक दिन का बचा हुआ समय मिल रहा था उसमें कहाँ कहाँ जाना है। मुंबई में गणपति उत्सव धूम-धाम से मनाया जाता है यह हमलोग जानते थे विशेष कर 'लालबाग का राजा' के बारे में उत्सुकता थी। ड्राइवर से पूछा तो उसने बताया कि उत्सव में वहाँ प्रत्येक वर्ष मूर्ती बनती है शायद परमानेंट मंदिर नहीं है। सिद्धविनायक मंदिर वहाँ प्रसिद्ध है। इसी सन्दर्भ में अष्टविनायक का नाम आया तो उसने बताया कि महाराष्ट्र में गणपति के आठ प्रसिद्ध मंदिर हैं जिन्हें अष्टविनायक बोला जाता है। इनमें से दो तो आगे रास्ते में ही मिलेंगे, उनके दर्शन कर लेना। एक और तो परली के पास ही था, यदि पहले बोलते तो वहाँ भी दर्शन करा देता। पर हमें तो पहले पता ही नहीं था अतः हमने उसे आगे के दो मंदिर दिखाने का आग्रह किया। 
 
श्री महागणपति, रांजणगाँव के शोभाद्वार
का पीछे का दृष्य

 
          इंटरनेट पर अष्टविनायक के बारे में सर्च किया तो महाराष्ट्र के अष्टविनायक के नाम इस प्रकार मिले - 1. मयूरेश्वर गणेश मंदिर, मोरगांव, 2. सिद्धि विनायक, सिद्धटेक, 3. बल्लेश्वर मंदिर, पाली, रायगढ़, 4. वरद विनायक (महाद मंदिर), रायगढ़, 5. चिंतामणि मंदिर, थेऊर, 6. गिरिजात्मज लेण्याद्रि मंदिर, जुन्नार (गुफा मंदिर), 7. विघ्नेश्वर ओज़ार मंदिर, कुकड़ी, जुन्नार तथा 8. रांजणगाँव में महागणपति। कहा जाता है कि ये अष्टविनायक स्वयंभू हैं और इनमें सूंढ़ तथा रत्नजड़ित आँखों के अतिरिक्त अन्य कोई अंग स्पष्टता से नहीं दिखते। 
श्रीमहागणपति मंदिर, रांजणगाँव का पीछे से दृश्य


           रास्ते में पहले हमें रांजणगाँव के महागणपति मिलने वाले थे। कहा जाता है कि स्वयं महादेव ने इस गणपति मंदिर की स्थापना की थी। आधुनिक समय में मंदिर का गर्भ गृह माधवराव पेशवा द्वारा बनवाया गया था तथा बाहरी हॉल इंदौर के सरदार किबे द्वारा। 
श्री महागणपति मंदिर, रांजणगाँव का प्रवेश द्वार


         मंदिर का प्रवेश मुख्य सड़क से करीब 150 मीटर दूर एक ब्राँच रोड में है। किन्तु मुख्य सड़क पर एक विशाल शोभा द्वार बनाया गया है। ड्राइवर ने गाड़ी इस शोभा द्वार से पहले एक मार्केट काम्प्लेक्स के पार्किंग में खड़ी की। हमलोग पैदल ही शोभा द्वार हो कर बढ़े।
श्रीमहागणपति मंदिर प्रांगण में भक्त-निवास


       किसी उत्सव की तरह एक गायक-नर्तक मंडली द्वारा जुलुस की तरह बढ़ा जा रहा था। आगे बढ़ने पर एक और टीम द्वारा गाना-बजाना किया जा रहा था। मंदिर का प्रवेश साधारण था अतः हमें पूछ कर जाना पड़ा। गेट के पास एक दुकान से प्रसाद ले कर वहां चप्पल खोले और प्रवेश किया। परिसर काफी बड़ा था। विशेष अवसर पर ज्यादा भीड़ से निबटने के लिए क्यू बनाने की भी व्यवस्था थी। ज्यादा भीड़ नहीं थी, लाइन में दस पंद्रह व्यक्ति ही थे। श्री महागणपति के दर्शन कर निकास द्वार से निकलते ही देखा कि 25-30 नर -नारी निकास द्वार से ही किसी युवा नेता और उनकी पत्नी के साथ घुसे। शायद उनका कुछ विशेष अवसर था। बाद में देखा कि मंदिर के गेट पर खूब साज-सज्जा से एक बड़ी सी गाड़ी और उसके पीछे अन्य गाड़ियाँ बारात की तरह खड़ी थीं। संभवतः नृत्य मंडलियाँ उन्हीं की थीं। 
 
श्रीमहागणपति मदिर के बाहर नृत्य मण्डली

         गर्भ गृह के पीछे एक बड़ा सा आँगन है तथा बड़ा सा भक्त निवास भी। इससे निकल कर अहाते से होकर निकलने का रास्ता था। अहाते को बढ़िया पेड़-पौधों से सजाया गया था तथा कई तरह की मूर्तियाँ बनायीं गयीं थी। इस गार्डेन में कई भक्तजन परिवार बच्चों के साथ अच्छा समय व्यतीत कर रहे थे। मंदिर परिसर से बाहर निकल कर अपने चप्पल लिए और गाड़ी के पास आये। देखा ड्राइवर नींद में था, और हमें चाय की तलब हो रही थी। मार्केट तो यहाँ था ही, तो एक चाय दुकान में हमने चाय पी और वड़ा-पाव खाया। 
श्रीमहागणपति मंदिर परिसर के गार्डन में बैलगाड़ी की मूर्ति


                 गाड़ी से हमलोग पुणे से पहले थेऊर के पास पहुँचे। यहाँ एक और अष्ट विनायक थे -श्री चिंतामणि गणपति। यह मंदिर मोरया गोस्वामी के पुत्र धरणीधर देव द्वारा स्थापित है। उनके करीब 100 वर्षों बाद माधवराव पेशवा द्वारा मंदिर का सभा मंडप बनवाया गया। मंदिर से ठीक पहले एक बड़ा पार्किंग है किन्तु यहाँ तक आने का रास्ता भीड़-भाड़ वाला है। ड्राइवर ने गाड़ी पार्किंग में खड़ी की। हमलोग मंदिर के बाहर चप्पल खोल कर अंदर गए। दर्शन में यहाँ थोड़ा समय लगा क्योंकि भीड़ थी। इस मंदिर का परिसर उतना बड़ा न था जितना श्री महागणपति मंदिर का था। दर्शन के बाद हमने फोटो वगैरह लिए और बाहर आये। यहाँ पर फल वाले कई तरह के फल बेच रहे थे। हमने कुछ अमरुद ख़रीदे और पार्किंग में खड़ी गाड़ी में बैठ कर निकल गए। करीब पाँच बजे हमलोग एक तिराहे के पास पहुंचे जहाँ कई रेस्टॉरेंट्स थे। भूख लग रही थी तो वहीँ खाया। निकलते हुए शाम का धुंधलका होने लगा था। ड्राइवर ने कहा कि रस्ते में ही लोनावला भी है। जानते थे कि अच्छी जगह है पर मुंबई में होटल बुक था ऊपर से शाम होने लगी थी तो लोनावला जा नहीं सकते थे। 
श्री चिंतामणि गणपति, थियूर, महाराष्ट्र (अष्टविनायक में से एक)


              अटल सेतु से होकर हमलोग मुंबई के होटल में आये। सेतु से पहले हाईवे पर कई सुरंगों से हो कर गाड़ी गुजरी जो बहुत ही अद्भुत और मनोहारी थी।  
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Thursday, December 26, 2024

शनि सिंगणापुर यात्रा

पिछले ब्लॉग पोस्ट "परली वैजनाथ ज्योतिर्लिंग" से आगे :-

सिंगणापुर वाले शनि महाराज का विग्रह

       परली से हमें शनि सिंगणापुर जाना था जहाँ हमें रात्रि विश्राम करना था ताकि अगले दिन सबेरे हम शिंगणापुर वाले शनि महाराज की पूजा कर सकें। तीर्थ यात्रा के हमारे राउंड ट्रिप का यह अंतिम देवस्थल था जिनकी सूची हमने बनाई थी। शनि पूजा के बाद फिर हम मुंबई जाने वाले थे जहाँ से हमारी वापसी की फ्लाइट बुक्ड थी। हमलोग मैप देख कर ही जा रहे थे। कहीं 4 - 6 लेन रोड तो कहीं सिंगल लेन वाली ग्रामीण सड़कों से गुजरे क्योंकि मैप हमें शॉर्टेस्ट रूट दिखता है। गूगल मैप से ऐसी यात्राओं में बहुत सुविधा हो गयी है। परन्तु इसमें कभी कभी कन्फूजन हो जाता है और जब भी ऐसी स्थिति आये तो स्थानीय लोगों से रूट कन्फर्म कर लेना चाहिए। इस यात्रा में भी एक जगह ऐसी ही स्थिति आयी। एक जगह हमें फ्लाईओवर के नीचे से जा कर फ्लाईओवर वाली 4 -लेन सड़क पर जाना था पर उस जगह मैप पर अजीब सा जलेबी जैसा सड़क दिखा रहा था। अपने अनुभव से मैंने ड्राइवर को कहा की यहाँ थोड़ा सतर्क हो कर रास्ता खोजना होगा। सच में जहाँ ड्राइवर मुड़ना चाह रहा था वहाँ से आगे गाड़ी का रास्ता ही न था। गाड़ी खड़ी कर सोच ही रहा था कि सामने दूर खड़े एक आदमी ने इशारा किया कि इधर रास्ता नहीं है। ड्राइवर ने उससे इशारों में फ्लाईओवर पर जाने का रास्ता पूछा। उसने थोड़ा पीछे जाने कहा। ड्राइवर ने गाड़ी बैक की। तभी देखा की एक ट्रक बायीं ओर जा रही है, उसके पीछे चले। थोड़ी दूर के बाद ट्रक खेतों के रास्ते निकल कर ओझल हो गया। हमलोग फिर ठिठक गए। तभी एक इन्नोवा पीछे से आ कर उसी रास्ते गयी, तब हमारी भी हिम्मत हुई। बिलकुल कच्ची रास्ता, टायरों के गहरे गड्ढ़े पर धीरे -धीरे गाड़ी आगे बढ़ी। आगे जाने पर स्पष्ट हो गया कि यही रास्ता हमें 4 - लेन सड़क पर ले जाएगी। कठिनाइयों से ही सही, हमलोग उस सड़क पर पहुँच गए और आगे की यात्रा जारी रही। 

शनि सिंगणापुर चबूतरे के ठीक सामने मंदिर, ऊपर वही शनि मन्त्र लिखा है,
ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।

            शाम छः बजे तक हमलोग शिंगणापुर पहुँच गए। शनि मंदिर से पहले एक पुल है जिसके पहले एक मार्किट का आँगन है। ड्राइवर ने अपने एक पहचान वाले दूकान के सामने गाड़ी रोक दिया। यह दूकान वाला शनि मंदिर के लिए फूल प्रसाद बेचता था। उसने तभी से बताना शुरू किया कि पूजा के सामान उसी के दूकान लूँ। यहाँ हमने होटल तो बुक किया नहीं था। इस मार्किट के किनारे भी एक होटल था। पर लोगों ने बताया कि मंदिर के सामने भक्त-निवास भी हैं जहाँ सस्ते रेट पर रूम मिल जाते हैं। तो पहले हमने वहीँ देखने का फैसला किया क्योंकि कई धर्मस्थल में मंदिर के भक्त निवास सस्ते, अच्छे और नजदीक होते हैं। हमलोग दो आदमी गए देखने। गेट के पास ही भक्त-निवास का कमरा बुक किया जाता है। हमने उनसे पहले कमरा देखने का आग्रह किया। तो एक लड़के को भेजा हमारे साथ। कमरे लॉज जैसे थे जिसमे लोहे के खटिये पर पतले गद्दे रखे थे। रूम भी पुराने थे। कुल मिलाकर हमें वहाँ पर अच्छी फीलिंग नहीं लग रही थी। तो बिना बुक किये हम गाड़ी के पास आ गए। 

होटल रूम में बाहर से ताले नहीं लगते बल्कि
ऐसी सिटकनी लगायी जाती है

                फिर मार्किट वाले होटल को ही देखने की सोचा। यह ठीक ठाक था और किराया भी 1200 प्रति दिन था। तो हमने अपना सामान होटल के रूम में रखा। सामने गाड़ी पार्किंग की काफी जगह थी। अजीब बात यह थी कि यहाँ होटल के रूम में ताले नहीं लगाए जाते। आप बहार से सिटकनी चढ़ा कर निकल सकते हो। होटल वाले ने बताया कि यहाँ शनि महाराज के भय से कोई चोरी नहीं करता। जो भी हो एक बात अच्छी थी कि CCTV कैमरे लगे थे। हम सभी फ्रेश हो कर संध्या दर्शन के लिए शनि मंदिर की ओर निकले। पूजा दूकान वाला हमपर नजरें लगाए था। निकलते ही पूजा सामान के लिए फिर आग्रह किया। हमने कहा कि अभी सिर्फ दर्शन के लिए जा रहे हैं, सबेरे पूजा के लिए जायेंगे तो जरूर सामान लेंगे। 

शनि सिंगणापुर और उनके सामने मंदिर की मूर्तियाँ

          शनि मंदिर का कैंपस बहुत बड़ा है और सड़क के दोनों तरफ है। जब आप पुल से आगे बढ़ते हैं तो मुख्य मंदिर का कैंपस दाहिनी तरफ है परन्तु प्रवेश आप बायीं तरफ के कैंपस से ही कर पाएंगे। दाहिनी तरफ से सीधे मुख्य मंदिर कैंपस में जाने का एक छोटा रास्ता है जो स्टाफ एवं स्थानीय लोगों के लिए है। बायीं कैंपस में बड़ा सा खुला पार्किंग है जिसके एक तरफ दुकानें एवं भक्त-निवास है तथा दूसरी तरफ भव्य प्रवेश द्वार एवं विभिन्न structures हैं। प्रवेश द्वार के जस्ट दाहिनी तरफ जूते-चप्पल स्टैंड है। यद्यपि अधिकतर लोग बहार ही चप्पल खोल प्रवेश कर रहे थे।   

          प्रवेश करते ही सामने ऊपर बड़े अक्षरों में शनि मन्त्र लिखा हुआ है - "ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।'' यहाँ पर दाहिनी तरफ एक लम्बा गार्डन है।गार्डन के सामानांतर एक लम्बा कोर्रिडोर है जिसमें एक तरफ विभिन्न मूर्तियाँ नाम के साथ बनी हैं। जबकि ठीक सामने एक सुन्दर सा प्लेटफॉर्म है जो नदी में प्रोजेक्टेड है यहाँ आप सेल्फी ले सकते हैं या खड़े हो कर दृश्य निहार सकते हैं। इस मंदिर में मोबाइल ले जा सकते हैं तथा फोटो खींचने की भी मनाही नहीं है। अब इसी प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर बायीं तरफ एक लम्बा ढलान वाला गलियारा मिलेगा जो सड़क के दूसरी तरफ मुख्य मंदिर कैंपस में जाने का रास्ता है। यह रास्ता मुख्य सड़क के नीचे अंडर पास से गुजरता है। इसी रास्ते से जाकर हमलोग मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचे। यहाँ एक त्रिशूल है जिसपर भक्त आक के पत्तों की माला लगाते हैं। तथा तेल को छोड़ कर अन्य पूजा सामग्री पास के टब में छोड़ते हैं। पुनः यहाँ से एक लम्बे कॉरिडोर के अंत में एक स्टॉल के पास पहुँचते हैं जहाँ मंदिर की तरफ से सरसों तेल बेचा जाता है जो कि शनि महाराज को मुख्य्तः चढ़ाया जाता है। यहाँ से दाहिनी तरफ खुले चबूतरे पर शनि महाराज का विग्रह है जो किसी मूर्ति जैसी नहीं है बल्कि लगभग पाँच फ़ीट ऊँचे पत्थर के अंक 1 के आकार की काले ग्रेनाइट की आकृति है। 

खूबसूरत दृश्य और फ़ोटो खींचते भक्त जान
शनि सिंगणापुर

        यहाँ एक बात बता दूँ कि आज कल हर शहर में शनि महाराज मंदिर है जो आज से 30 -35 वर्ष पहले नहीं पाए जाते थे। इन मंदिरों में शनि महाराज की मनुष्याकृति में प्रतिमाएँ होती हैं जिनमें जाने से कई धर्माचार्य मना करते हैं जिसके पीछे कारण यह दिया जाता है कि शनि को मिले श्राप के कारण उनकी दृष्टि जिसपर जाती है उसका अनिष्ट होता है। अतः हमें शनि की नजरों के सामने पड़ने से बचना चाहिए। वे धर्माचार्य शिंगणापुर वाले शनि महाराज की जैसी विग्रह के सामने जाने की अनुमति देते हैं क्योंकि यहाँ न मूर्ती है और न उनमे आँखें बनी हैं। मैं इस मत से सहमत हूँ, इसीलिए शनि महाराज के दर्शन पूजन हेतु शिंगणापुर आने का कार्यक्रम बनाया। अपने घर/शहर में शनिवार को हमलोग श्रीहनुमान जी की पूजा करते हैं क्योंकि स्वयं शनि ने हनुमानजी को वरदान दिया था कि जिस पर आप की कृपा होगी उसे शनि का कष्ट नहीं होगा। शनिवार को व्हाट्सप्प पर भी गुड मॉर्निंग सन्देश में शनि की फोटो नहीं बल्कि हनुमानजी की फोटो भेजना उचित है। यहाँ जो विग्रह है वह एक स्थानीय व्यक्ति को जंगल में मिटटी के नीचे मिला था। ऐसा पत्थर देख कर उसे अजीब लगा। रात में शनि महाराज ने उसे सपने में दर्शन दिया और उस विग्रह को ला कर स्थापित और पूजने का निर्देश दिया। कहा जाता है कि यहाँ इनके दर्शन से शनि के ग्रह जनित सारे कष्ट दूर होते हैं। 

सिंगणापुर शनि मंदिर में कलश जैसा दान पात्र

         इस शिंगणापुर के शनि मंदिर में जब आप 500 की पास खरीद कर जायेंगे तो चबूतरे पर जाकर पूजा कर सकते हैं। शाम को जब हमलोग यहाँ आये तो एक व्यक्ति को चबूतरे पर जा कर गैलन से सरसों तेल विग्रह पर डालते देखा। सामान्य लोगों के लिए चबूतरे के नीचे ही सरसों तेल डालने के लिए कई टब बने हैं जिसपर जालियाँ लगी हैं ताकि तेल छन कर जाए। यहाँ से पाइप द्वारा तेल लगातार शनि-विग्रह पर गिरता रहता है। इस चबूतरे के ठीक सामने एक हॉल जैसा मंदिर है जिसमें सामने दीवार नहीं है, बाकी तीन तरफ दीवार हैं और छत भी है। यहाँ से शनि महाराज का चबूतरा सीधा दिखता है। इस मंदिर के पिछली दीवार में एक संत की मूर्ति है जिनके बगल में श्री हनुमान जी की भी मूर्ति है। दर्शन के बाद आगे बढ़ने पर एक बड़े कलश के आकार का दानपात्र है तथा दीप-धूप के लिए जगह बना है। दर्शन के बाद निकलने के लिए भी एक लम्बा कॉरिडोर है जिसमे दो जगह प्रसाद बिक्री के काउंटर हैं। यहाँ पीले रंग के नारियल की बर्फी प्रसाद में मिलती है। एक पैकेट खरीदकर हमलोगों ने खाया।  

शाम की रौशनी में फोटो खींचते भक्तजन,
शनि सिंगणापुर

             यह कॉरिडोर आपको उसी अंडर पास के पास लाता है जिससे हमलोग आये थे। इस कॉरिडोर के बगल में लम्बी-लम्बी सीढ़ियाँ बनी हैं जो परिसर की चहारदीवारी के पास बने लम्बे खूबसूरत तालाब तक ले जाती हैं। यहीं एक ऊँचा सुन्दर सा टावर बना जिसमें नीचे नवग्रह की मूर्तियाँ हैं। शाम की रौशनी में दूर से यह टॉवर बहुत आकर्षक नजर आता है। कुल मिलकर मंदिर और परिसर बहुत सुन्दर बनाया गया है, यहाँ तक कि जिस छोटी नदी के किनारे है उसके साइड्स भी पक्के किये गए हैं।   

इसी ढलान वाले कॉरिडोर से आप मंदिर के अंदर आयेंगे

             जैसा हम लोग सोच रहे थे कि भीड़ और लम्बी कतार होगी, संयोग से वैसा नहीं था। शाम को जब हम लोग पहुंचे तो लगभग तीस के करीब भक्तजन होंगे। यद्यपि कहा जाता है कि शनि की पूजा शाम को की जाती है परन्तु हमलोगों को सबेरे स्नान कर खाली पेट ही पूजा करने की श्रद्धा होती है। अतः हम लोग शाम को सिर्फ दर्शन और मंदिर परिसर से परिचित होने ही आये थे। दर्शन के बाद मंदिर से निकल कर हम लोग होटल की तरफ आये। यहाँ सड़क के दूसरी तरफ एक ढंग का रेस्टॉरेंट नजर आ रहा था तो वहीं पर खाना खाया और होटल आ कर सो गए।  

          सबेरे तैयार हो कर होटल से निकले। पूजा सामग्री के लिए हम लोग उसी दुकानदार के पास गए जिससे वादा किया था। शाम को तो सारा परिसर देख समझ ही लिया था। उसी के अनुसार दर्शन पूजन किया। सरसों तेल हम लोगों ने टब में ही डाला और पूजन कर वापसी वाले कॉरिडोर से निकले। सुबह की रौशनी में वातावरण और भी अच्छा लगरहा था और मंदिर भी ज्यादा सुन्दर लग रहा था। हमने फोटो वगैरह खिंचवाए और निकल कर वापस आये। दुकानदार को कॅश पेमेंट करना था पर खुदरा लौटाने में उसे समस्या थी तो UPI से पेमेंट किया। बाद में देखा कि फोन-पे में दुकानदार का जो नाम था वह एक मुस्लिम नाम था।   

कोल्हू वाला गन्ने का रस, सिंगनापुर में

  

             एक रेस्टॉरेंट में चाय पी कर हमने होटल से चेक-आउट किया और अपने टैक्सी से निकल पड़े अंतिम पड़ाव मुंबई  लिए। सड़क के किनारे खेत थे जिनमें खूब गन्ने की खेती थी। किसानों ने गन्ने पेरने के लिए कोल्हू लगा रखा था। ऐसे ही एक कोल्हू के पास ड्राइवर ने गाड़ी रोकी। उस दूकान में गुड़ पाउडर से बने कई प्रकार के चाय के पैकेट थे जिनमें से एक प्रकार के पैकेट ड्राइवर को अपने बच्चे के लिए लेने थे। हमने भी चाय वाली गुड़ पाउडर खरीदी। परन्तु हमलोगों का मुख्य आकर्षण तो कोल्हू का बैल था जिसकी सीधी और लम्बी सींग थी, जैसा हमारी तरफ नहीं होता। मैंने बैल के बारे में पूछ-ताछ की तो उसने एक देसी नस्ल का नाम लिया। यह भी बताया कि ऐसी सींग के लिए विशेष उपाय किया गया है और इससे भी बड़ी सींग वाला बैल  दूकान के पीछे बंधा है। हमने पीछे जाकर उसे भी देखा। सुंदर लग रहा था। कोल्हू से निकलवा कर हमने गन्ने का रस भी पिया। और फिर आगे बढ़ चले।   

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