Saturday, April 7, 2035

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नमो परमात्मने

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Tuesday, January 28, 2025

महाकुम्भ यात्रा -पौष पूर्णिमा और मकर संक्रांति पर शाही स्नान

महाकुंभ में मकर संक्रांति पर त्रिवेणी संगम स्नान
 

             जैसा कि आप सभी जानते हैं कि इस वर्ष 2025 का प्रयाग में लगने वाला कुम्भ, महाकुम्भ है जो 144 वर्षों के पश्चात आता है। प्रयागराज में जब पिछला कुम्भ लगा था तब भी जाने की इच्छा थी पर परिस्थिवश न जा पाया था। अतः इस बार कुम्भ में जाने की इच्छा प्रबल थी। दिसम्बर 2024 में इसकी प्लानिंग शुरू की और सबसे पहले होटल की ऑनलाइन खोज शुरू की। महाकुम्भ 13 जनवरी 2025 से शुरू होने वाला था और शुरू के दो लगातार दिन ही शाही स्नान का दिन था। 13 जनवरी पौष पूर्णिमा और 14 जनवरी मकर संक्रांति के कारण शाही अथवा अमृत स्नान का दिन तय था। दो लगातार अमृत स्नान का दिन होने के कारण मैंने निर्णय किया कि 12 जनवरी को होटल में चेक इन करूँगा और 13 तथा 14 जनवरी दोनों शुभ दिनों को शाही स्नान करूँगा फिर 14 जनवरी को चेक आउट कर वापसी यात्रा करूँगा। 

{इस ब्लॉग पोस्ट को नीचे के यूट्यूब एम्बेडेड लिंक में सुन सकते हैं}

 ऑनलाइन होटल काफी महँगे थे। मुझे दो रात के लिए तीन लोगों के लिए एक रूम चाहिए था जो त्रिवेणी संगम के पास भी हो जिससे हमें घाट तक ज्यादा पैदल न चलना पड़े। मैं पत्नी और बेटी के साथ जाने वाला था। अंततः मैंने अरैल की तरफ जो कि यमुना जी की ओर है कुम्भ कैंप में रूम बुक किया जो प्रति दिन लगभग 18000 रूपये की दर से थे। यह नॉन रिफंडेबल था। लोकेशन DPS तिराहा के पास था। 

             जगह मिल जाने पर अब जाने आने का ट्रेन टिकट चाहिए था पर यह मुश्किल साबित हुआ। दोनों ही तरफ का वेटिंग टिकट लेना पड़ा वह भी अपने लोकेशन से करीब 50 - 60 किलोमीटर दूर के स्टेशन से बोर्डिंग का। 9 जनवरी आते आते लगा टिकट कन्फर्म न हो पायेगा। अतः कैंसिल करा दिया। फिर अपने गाड़ी से ही जाने का निर्णय किया यह सोच कर कि ड्राइवर ले लेंगे जिससे सामान के साथ ट्रैन पर चढ़ने उतरने का झंझट न रहेगा। सीधे होटल और वहीँ से वापस। इससे हमलोग 12 जनवरी की सुबह ही चल कर प्रयाग पहुँच सकते थे। जबकि ट्रेन से टिकट 11 जनवरी का था। 

         परन्तु सब कुछ सोचा हुआ तो नहीं होता। हमलोग शाम साढ़े छः बजे जब प्रयाग से लगभग 22 किलोमीटर दूर थे तो प्रयाग में जाने के सरे रास्ते बंद कर दिए गए। स्थानीय लोगों  पूछा तो दो किलोमीटर आगे से एक रास्ता बताया गया। गूगल मैप से जाने का प्रयास किया तो आधे घंटे घुमा कर वापस उसी जगह आ गए। उस जगह कुछ ऑटो वाले थे। पहला ही ऑटोवाला बोला कि अरैल बहुत दूर है। कोशिश करूँगा पहुँचाने की पर जहाँ तक पुलिस वाले जाने देंगे वहाँ तक जाऊँगा। 700 में भाड़ा तय हुआ। हमने सारा सामन ऑटो में लादा और ड्राइवर को गाडी के साथ दो दिन वहीं आस-पास रहने का निर्देश दे कर खाने का पैसा दिया और चल पड़े ऑटो से। ऑटो वाला भी उसी रास्ते से गया जिससे अभी हमलोग घूम कर लौटे थे पर स्थानीय होने के कारण उसे रास्ते की जानकारी थी। करीब चार किलोमीटर चलने पर फिर एक चौराहे पर बैरिकेडिंग थी और घुसने नहीं दे रहे थे। ऑटो वाले ने रॉंग साइड के सर्विस लेन से एंट्री मारी और घुस गया। उसकी चिंता पुल पर घुसने की थी जो सीधे अरैल घाट जाती थी। संयोग से किसी ने उसे पुल पर जाने से न रोका। 

        पुल से उतर कर अरैल घाट तिराहे पर फिर पुलिस वालों ने आगे जाने से रोक दिया। अभी भी तीन किलोमीटर दूर थे कुम्भ कैंप से। अंततः एक पुलिस वाले जो ओहदे में कुछ ऊपर थे उनसे रिक्वेस्ट किया कि कुम्भ कैंप में हमारा रूम बुक है, साथ में महिलायें हैं कृपया जाने दें। उसने कागज़ माँगे। जब हमने दिखाया तो उसे दया आयी और हमें बढ़ने दिया। जब गूगल मैप देखते हुए हमलोग कुम्भ कैंप पहुंचे तो वहां कियारा रेस्टॉरेंट लिखा देखा। अंदर रेसप्शन पर बताया गया कि हमारे लिस्ट में आपका नाम नहीं है। हमने होटल के नंबर पर फोन किया तो एक व्यक्ति आया और कुछ देर आपस में माथापच्ची करते हुए बगल के एक परिसर में में ले गए जहाँ अस्थायी कमरे बनाये गए थे। हमें एक कमरे में घुसाया गया जहाँ चार बेड और चार कम्बल रखे थे। किन्तु देख कर यह स्पष्ट हो रहा था कि कमरे पूरी तरह तैयार नहीं थे। इस कमरे में सब कुछ तो ठीक था पर बाथरूम में शटर नहीं लगा था। यद्यपि कमोड, गीजर और पानी वगैरह था पर शटर लगाने का प्रयास किया जा रहा था। मैनेजर ने कहा कि आपलोग रात का खाना खा सकते हैं कूपन वहीं मिलेगा जहाँ पहले हमलोग पहुंचे थे। पर रास्ते में दिन को हमारा भोजन भारी था तो रात में नहीं खाया। सामने में शटर भी लगवाया। 

कुंभ कैम्प के अस्थायी कमरे, DPS तिराहा के पास, अरैल ।
   

                  अस्थायी कमरे एक लाइन से बनाये गए थे। कमरे की कतारों के बीच में गलियारा था। कमरे की एकमात्र खिड़की गलियारे में ही खुलती थी जिसमें शीशे का स्लाइडिंग शटर था। इससे गलियारे से रूम दिखाई पड़ता था। तो हमने एक कम्बल से खिड़की को अंदर से ढँक दिया और सोने गए। सबेरे तैयार हो कर स्नान पश्चात पहनने के कपडे ले कर होटल से निकले। छः बजने वाले थे। सबसे पहले हमने पास के एक दूकान से चाय पी और पक्की सड़क से नदी किनारे वाले रास्ते पर उतरे। साफ़ सुथरे और लोहे की मोटी चादरों से ढँके रास्ते थे जिस पर यात्री अरैल घाट की ओर जा रहे थे। रास्ते में एक सिद्धेश्वर घाट भी मिला। यहाँ संगम स्नान करते हैं भक्त जन। किन्तु हमलोग आगे अरैल घाट की ओर बढे जो संगम से ज्यादा नजदीक है। करीब तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। यहाँ आकर देखा कि कुछ आगे नाव वाले भी हैं जो बीच संगम में ले जा रहे हैं। हमने पहले तो घाट पर स्नान का सोचा था पर नाव सेवा देखा तो यह बेहतर लगा। 

पौष पूर्णिमा १३ जनवरी को सुबह
अरेल घाट जाने का रास्ता ।
 

        पत्नी और बेटी को एक जगह बैठा कर नाव भाड़े पर लिया और फिर उन्हें बुला कर संगम की ओर चले। ये नाव वाले पहले आपको एक ऐसी नाव पर ले जायेंगे जहाँ एक पंडित बैठे मिलेंगे। एक थाली में तीन नारियल रख कर संकल्प कराएँगे जिसमें दान के रूप में ब्राह्मण भोजन की राशि शामिल होगी। आपसे 1, 3, 5 या 11 ब्राह्मण भोजन का संकल्प कराया जायेगा और प्रत्येक ब्राह्मण भोजन की राशि 501 रूपये होगी। नारियल थाली के 100 रूपये लिए जायेंगे। फिर त्रिवेणी में दूध डालने के नाम पर एक छोटे ग्लास दूध का 100 रुपया भी लिया जा सकता है। अब त्रिवेणी में उतर कर स्नान करें जिसमें पानी  गहराई कमर से भी कम है। स्नान के बाद उसी नाव से वापस लौटते हैं। जब हमलोग लौटे तो भीड़ बढ़ चुकी थी और हमारी नाव को उस जगह आने नहीं दिया गया जहाँ से हम चढ़े थे बल्कि और दूर में उतरना पड़ा। 

13 जनवरी 2025 को त्रिवेणी संगम पर नावों की भीड़
 

            हमलोग पार्किंग के खाली जगह में बैठे और घर से लाया हुआ सूखा नाश्ता किया। वापस पैदल बढ़े। एक जगह फिर चाय पी। दो किलोमीटर पैदल वापस आते हुए पत्नी बेहाल हो गयी। एक इ-रिक्शा जाता हुआ दिखा, पत्नी ने जाने का पूछा तो बचे एक किलोमीटर के लिए उसने प्रति व्यक्ति 100 रूपये माँगा। पत्नी की हालत देख कर मैं राज़ी हो गया क्योंकि उन्हें घुटने की कुछ समस्या थी। जहाँ उसने उतारा वहाँ से 100 मीटर चल कर रूम पर हमलोग आ गए। होटल मैनेजर वहीं था। स्वयं उसने याद दिलाया कि खाने का कूपन हमलोग उस वाले कैंप से ले कर खा लें। पता कर हमने कूपन लिया और खाने वाली जगह पर गए जो एक खुले आँगन में बुफे सिस्टम से था। बढ़िया शाकाहारी भोजन था। उसी कैंप में ठहरे एक दंपत्ति से बातचीत में पता चला की वे लोग तीनों टाइम यहाँ भोजन कर रहे थे। हमलोग तो उस समय खाने के बाद रात में न खा पाए क्योंकि रूम पर आ कर थके हुए सो गए। शाम को सिर्फ चाय पीने निकले और फिर आ कर सो गए।        

14 जनवरी 2025, मकर संक्रांति की सुबह अरेल घाट का रास्ता
  

                सुबह उठ कर फ्रेश हुए और फिर निकल पड़े मकर संक्रांति के शाही स्नान पर। आज 14 जनवरी के कारण पिछले दिन से ज्यादा भीड़ थी। सबेरे हमलोग फ्रेश थे तो अरैल घाट तक 3 किलोमीटर चल लिए परन्तु नाव की खोज में और एक किलोमीटर ज्यादा VIP घाट तक जाना पड़ा। ज्यादा भीड़ के कारण नावों का घाट ज्यादा दूर कर दिया गया था। नाव वालों को भी संगम तक जाने में दूरी बढ़ गयी। यमुना में अभी आधी दूर ही गए थे कि पुलिस वालों ने संगम की तरफ जाने वाली नावों को रोक दिया। संगम पर नावों की भीड़ बढ़ गयी थी इसलिए वहाँ भीड़ कम होने पर ही हमें आगे जाने की अनुमति मिलती। करीब 20 मिनट तक हमलोग बीच यमुना में नाव में बैठे रहे। जब अनुमति मिली तो आगे बढ़े। इस बार उसने हमें सरकार द्वारा संगम पर बनाये गए फ्लोटिंग प्लेटफार्म के पास लाया। फिर वही क्रम चला। प्लेटफार्म पर जाने से पहले पंडितजी द्वारा तीन नारियल के साथ संकल्प, दक्षिणा, आदि तब प्लेटफार्म के दूसरी तरफ उतर कर स्नान किया। फिर वापसी में उसी जगह नाव वाले ने उतारा। जब हमलोग उतरे तो पता चला कि प्रशासन द्वारा अभी नाव सेवा बंद कर दी गयी थी। 

त्रिवेणी संगम पर स्नान के लिए बनाया गया तैरता प्लेटफार्म
और वस्त्र बदलने का रूम ।
 

           हमारी इच्छा अक्षय वट और हनुमान जी के दर्शन की भी थी परन्तु उसके लिए हमें पीपा पुल से उस पार जाना और आना पड़ता जो बहुत दुष्कर लग रहा था। ऊपर से यह भी पता चला कि भीड़ बढ़ने के कारण दर्शन रोक दिया गया है। 

महाकुंभ में मकर संक्रांति पर तैरते प्लेटफार्म से उतर कर
त्रिवेणी संगम में स्नान करते श्रद्धालु ।
 

         कुछ दूर वापसी कर एक खुले पार्किंग में हमलोग बैठे और कुछ साथ में लाये बिस्कुट और सूखा नाश्ता ले कर पानी पिया। वापसी में पुनः अरैल घाट आते आते पत्नी को चलना दूभर हो गया। नदी किनारे के अस्थायी रोड पर इक्का दुक्का चलने वाले इ-रिक्शा से पूछ रही थी। एक रिक्शा पर एक माँ -बेटा रिज़र्व में स्नान से लौट रहे थे, उन्हें दया आ गयी तो हम तीनों को बिठा लिया। भाड़ा रिक्शा वाले ने वही 100 रूपये प्रति व्यक्ति लिया पर आज लगभग इसमें 3 किलोमीटर चले। उतरकर रिक्शा वाले को भाड़ा दिया और उन माँ बेटे को धन्यवाद। रूम पर आये। पत्नी अभी कुछ आराम करना चाह  रही थी पर मुझे लौटने की चिंता हो रही थी। प्रशासन ने सारा रोड बंद कर रखा था। एक पुलिस वाले ने बताया था कि 100 मीटर अंदर मोहल्ले के मोड़ पर ऑटो मिलेगा। होटल छोड़ने से पहले मैं निश्चित कर लेना चाहता था कि मोड़ पर ऑटो है या नहीं ।अतः पहले अकेले ही गया । एक ऑटो देखा, उससे बात की। उसने कहा कि सहसों नहीं जाऊँगा, बस स्टैंड तक चलूँगा । समान और परिवार को लाने में आधा घंटा लगता तो वाह चला गया । चूँकि और एक ऑटो लगा था तो मैंने होटल छोड़ कर छोटी छोटी दूरी की ही सही, ऑटो से जाने का निश्चय किया । होटल छोड़ते समय मैनेजर को फ़ोन किया तो वह बोला आप कमरा खुला छोड़ कर ही चेक आउट कर जायें । किंतु बाहर निकलते ही उससे भेंट हो गई । उसने कहा कि यदि पहले बोलते तो कुछ इंतजाम करता गाड़ी का, फिर एक लड़के को साथ लगाया जो समान को ढोने में हेल्प करता और ऑटो तक पहुँचाता । जब वहाँ पहुँचा तो एक कार के साथ कुछ लड़के खड़े थे जो प्रति व्यक्ति 100 रुपये ले कर बस तक छोड़ने की बात कर रहे थे । उन्ही के साथ चला । रास्ते में उसने बताया कि समान के साथ बस में दिक्कत होगी आगे जा कर ऑटो तक छोड़ देता हूँ जो यमुना पुल तक छोड़ देगा । अतिरिक्त पैसे ले कर उसने ऑटो तक छोड़ा और ऑटो वाले ने पुल तक । अब पुल पर कोई सवारी प्रशासन चलने नहीं दे रहा था ।हमें कम से कम झूसी पहुंचना था जहाँ से सहसों तक जा सकते थे ।पुल पर कुछ मोटर साइकिल वाले थे जो एक एक आदमी को सामान के साथ उस पर पहुँचा रहे थे ।सौ - सौ रुपये ले कर। पर सामान के साथ पत्नी और बेटी को मोटर साइकिल पर बैठाना सही नहीं लगा क्योंकि तीन बक्से और दो बैग थे , गिरने का डर लग रहा था। तो मज़बूरी में पैदल ही चलने का फैसला किया। बक्से में व्हील लगे थे तो उन्हें खींच कर और ठेल कर चले। यात्रा का यही चरण सबसे कठिन था। लगभग दो किलोमीटर चले होंगे हमलोग पुल को पार करने में। उस पार जाकर संयोग से ऑटो मिला जिसने झूसी पहुँचाया फिर झूसी से सहसों दूसरा ऑटो। तो इस तरह हमलोग अपने कार तक आये जिसमें सिर्फ ऑटो मिल जाने पर ही हमलोग खुद को भाग्यशाली समझते थे, पैसे का तो सोचना ही नहीं था। जो भाड़ा माँगा, देना पड़ा। 

                      फोन कर ड्राइवर को गाडी वहीं लाने बोला जहाँ हमें उसने उतारा था। लगभग पाँच बज रहे थे। दिन भर की थकावट थी और चिंता से अब मुक्त हुए तो सबको चाय पीने की बहुत तलब हुयी। आगे जा कर एक ढाबा में चाय पिया फिर सीधे झारखण्ड के लिए निकल लिए। बस एक बार आठ बजे जी टी रोड के एक ढाबा में खाने रुके। आने में कोई परेशानी न हुयी। इस प्रकार हमारी महाकुम्भ की यात्रा पूरी हुई जिसमें हमने पौष पूर्णिमा और मकर संक्रांति के दो पावन दिनों में त्रिवेणी संगम में स्नान किया। कुम्भ जैसे अवसर पर इतना चलना तो पड़ता ही है। 

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Monday, January 20, 2025

मुंबई में महालक्ष्मी देवी, सिद्धिविनायक और मुम्बा देवी के दर्शन

पिछले ब्लॉग पोस्ट "अष्टविनायकों में से दो - श्री महागणपति और श्री चिंतामणि गणपति के दर्शन" से आगे :-

गेटवे ऑफ़ इंडिया, संध्या में
समुद्र की तरफ़ से
 

          हमलोगों ने अटल सेतु से मुंबई में प्रवेश किया। सेतु से पहले पश्चिमी घाट में जो चौड़ी सड़कें और अनेक सुरंगें बनायीं गयीं हैं वो अद्भुत हैं और तकनीकी प्रगति की गवाह है। इस समय अँधेरा हो चुका था और बिजली की रौशनी में शहर जगमगा रहा था। हमलोगों का मुंबई के होटल लॉर्ड्स में दो रात की बुकिंग थी। होटल आ कर हमने आउटस्टेशन कैब वाले को हिसाब कर पैसे दिए और उसे छोड़ दिया। लगभग आठ बज रहे थे। हमारे पास अभी का थोड़ा टाइम और अगले दिन का पूरा समय बचा था। हम पूरे समय का उपयोग करना चाह रहे थे तो सोचा कि अभी गेटवे ऑफ़ इंडिया के पास मरीन ड्राइव चलते हैं। उधर से रात का खाना खा कर वापस होटल आ जायेंगे। 

गेटवे के पास होटल ट्राइडेंट

                 तो फ्रेश हो कर हमलोग निकले और नीचे सड़क पर आकर एक टैक्सी की और गेटवे से पहले मरीन ड्राइव पर आ गए। समुद्र के किनारे बनी मोटी दीवार पर अनेक लोग बैठे थे। अनेक लोग टहल रहे थे। एक तरफ समुद्र था तो दूसरी ओर बिजली की रौशनी में सड़क और अट्टालिकाएँ। लोग आनंद ले रहे थे। हमलोग भी थोड़ा टहले और कुछ देर बैठे। सामने सड़क के पार ट्राईडेंट होटल का बहुमंजिला भवन आकर्षक था तो उससे आगे प्रसिद्ध होटल ताज की खूबसूरती। गेटवे ऑफ़ इंडिया का रात की रौशनी में बढ़िया फोटो नहीं आ रहा था तो हमलोगों ने अगले दिन आने का प्लान रखा। 

लियोपोल्ड कैफ़े के अंदर का दृश्य

               देर तक घूमते टहलते हमें अब भूख भी लगने लगी थी। ताज होटल के पीछे वाली सड़क पर कई होटल थे खाने के लिए जिनमें भीड़ भी थी। जैसे बड़े मिया होटल में। एक में हमलोग जाकर बैठे भी पर फिर तुरंत निकल गए। सफाई ठीक नहीं लगी। इस सड़क के सभी होटल के मालिक संभवतः मुस्लिम थे। हमलोग कोई ढंग का होटल खोजने लगे। दो सड़क के बाद एक रेस्टॉरेंट दिखा जो आधुनिक जैसा था और अच्छा लगा। यह था लियोपोल्ड कैफ़े। यहाँ खाने के साथ साथ देसी विदेशी लोग विदेशी शराब भी पी रहे थे। खाना अच्छा था। खाने के बाद हमलोग फिर टैक्सी लेकर होटल आ और अगले दिन के घूमने का प्लान बनाया। 

महालक्ष्मी मंदिर, मुंबई

           अगली सुबह उठ कर तैयार हुए तो सोचा कि पहले किसी मंदिर में दर्शन किया जाय। सबसे पास में महालक्ष्मी मंदिर था तो होटल से उतर कर वहाँ के लिए एक टैक्सी ली। ड्राइवर एक यूपी के भैया थे जो पूरे रस्ते गप्पें करते गए। उनके बारे में मैंने ब्लॉग पोस्ट "यूपी वाले ड्राइवर भैया" भी लिखा है जिसे आप पढ़ सकते हैं। वहाँ पहुँचने से पहले उनके मालिक का फोन आ गया तो हड़बड़ी में उन्होंने हमें मुख्य सड़क के पास स्वामीनारायण मंदिर के पास ही उतार दिया और कहा कि यहाँ से मंदिर पास ही है, गाड़ी जाने में दिक्कत होगी तो आप लोग पैदल ही चले जाओ। हमलोग पैदल ही मंदिर तक गए जबकि गाड़ियाँ उस सड़क से आ-जा रही थीं। एक दुकान में चप्पल खोल कर प्रसाद लिया और दर्शन कर निकले। मंदिर के अंदर ही निकास रास्ते के पास एक साड़ी की दूकान भी थी। 

महालक्ष्मी मंदिर के रास्ते में पहले मुख्य सड़क
पर यह स्वामीनारायण मंदिर और भक्त निवास
मिलता है ।

              भूख लगने लगी थी। पास ही साउथ इंडियन भोजनालय था तो हमने वहाँ नाश्ता किया और एक दूसरे दूकान में चाय पी। अब हम लोग सिद्धिविनायक के दर्शन के लिए निकले। यह मंदिर दूर से ही भव्य लग रहा था। भीड़ भी पूरी था। पुलिस वाले ने कहा जल्दी जाओ नहीं तो दोपहर का मंदिर बंद होने वाला है। हम लोग जिस एंट्री गेट से घुसे उसमे भीड़ काम थी। इस रास्ते से जाने पर हम लोग एक ऊँचे प्लेटफार्म पर पहुंचे जहाँ से श्री सिद्धिविनायक का दर्शन थोड़ा दूर से हो रहा था जो लगभग 20 फ़ीट की दुरी होगी। नीचे पास से दर्शन में लम्बी कतार थी जिसमें लगभग दो घंटे का टाइम लगता। हमारा दर्शन भी स्पष्ट हो रहा था और हमारे पास इतना समय नहीं था कि दो घंटे कतार में खड़े रहते। 

सिद्धिविनायक दर्शन, मुंबई

           बच्चे अगले दिन ताज होटल के रेस्टॉरेंट का प्लान बना रहे थे। मैंने कहा कि मैं पूरे ट्रिप के लिए चप्पल पहन कर आया हूँ, पता नहीं बिना जूते वहाँ जाने की अनुमति है या नहीं। तो सबने कहा कि मॉल चलते हैं जूते लेने। हम लोग पश्चिमी लोअर पारेल के एक बड़े मॉल में गए। वहाँ पहले तो एक ब्रांडेड चाय दूकान में चाय पी। दूकान का नाम भी चाय ही था। यहाँ चाय का रेट एयरपोर्ट जैसा था। सौ रुपये प्रति कप से ज्यादा। फिर एक जूते की दूकान से अपने लिए जूते ख़रीदे। लगभग दो बजने वाले थे। 

मरीन ड्राइव के बगल में यह सड़क समुद्र लेवल से
भी नीचे हो कर जाती है ।

           यहाँ से हमलोग टैक्सी से जुहू की तरफ निकले। रास्ता लम्बा था और हम शहर देखते हुए जा रहे थे। दोपहर का समय था, धूप भी थी फिर भी जुहू बीच पर भीड़ थी। करीब पौने तीन बज रहे थे। कई मोटर बोट्स समुद्र में चल रहे थे। बेटी ने ज़िद्द किया कि चढ़ेंगे। किनारे रेत पर टेबल लगा कर बोट्स के टिकट काटे जा रहे थे। मोल-मोलाई कर हमने चार टिकट लिए और उसी के पास चप्पल जूते रख कर बोट्स के पास गए। पैरों के पास कपड़े खींच कर ऊपर किये क्योंकि थोड़ा पानी में घुस कर बोट पर चढ़ना था। फिर भी थोड़ा कपडा तो भींग ही गया। 

जुहू बीच पर छतरी लगाये बोट वाले ।

           अब तक जितने भी बीच पर गया हूँ उनमें से यह बीच सबसे गन्दा था। यहाँ नहाने के मकसद से कोई नहीं आता। पानी का रंग भी साफ़ नहीं था। बोट पर घूम कर किनारे आते आते प्यास लगने लगी थी तो किनारे पर ही एक नारियल वाले से नारियल पानी पिया। जुहू के पास ही अमिताभ बच्चन का बंगला है। बच्चे उसे देखने की जिद्द करने लगे। यद्यपि बाहर से बंगला देखने का मुझे कोई आईडिया सही नहीं लगा फिर भी उनका मन रखने के लिए दो ऑटो किये और निकल गए बंगला देखने। ऑटो वाले ने रास्ते में बताया, इधर धर्मेंद्र का बंगला, उधर रोहित शेट्टी और शत्रुघ्न सिन्हा का बंगला आदि आदि। अमिताभ के बंगले के पास उतर कर कुछ फोटो वगैरह खिंचवाया। बच्चे लोग फिल्म सिटी जाना चाहते थे परन्तु गोरेगाँव दूर था अतः वहाँ का प्लान नहीं बनाया। 

जिओ वर्ल्ड कन्वेंशन सेंटर में पुराने जमाने का मूवी प्रोजेक्टर
और बगल में उसकी लकड़ी में बनाई गई कलाकृति ।

           अगला विजिट था जिओ वर्ल्ड कन्वेंशन सेण्टर का। बच्चों ने कहा कि इसका काफी नाम सुना है। बहुत ही भव्य भवन है। ग्राउंड फ्लोर पर एप्पल कंपनी का बड़ा स्टोर था। सामान के साथ साथ नए प्रोडक्ट्स के फीचर्स एवं कार्य प्रणाली की जानकारी दी जा रही थी। अंदर जाने पर बहुत ही विशाल और सुन्दर तरीके से मेन्टेन किये गए स्पेस थे। इनमें कुछ पुराने ज़माने की मशीने थीं और उनके बगल में लकड़ी से कलाकारी कर वैसी हूबहू नक़ल रखी गयी थीं। रेस्टॉरेंट भी थे। किन्तु यहाँ की पब्लिक ज्यादातर टेक्निकल ज्ञान वाली लग रही थी। यहाँ से निकलते पाँच बज गये। भूख लग रही थी तो गेटवे की तरफ ही खाने का सोचा। बांद्रा-वर्ली से लिंक फ्लाईओवर होते हुए लौटे। ढलती सूरज में इस रास्ते में बहुत अच्छा लगा। गेटवे ऑफ़ इंडिया के पास फेरी पर भी चढ़ने का प्लान था तो टैक्सी से उधर ही निकले जहाँ पिछली रात को खाया था। पर हम लोग एक शाकाहारी हिन्दू होटल जाना चाहते थे।    

शाम में फेरी से गेटवे और ताज का दृश्य ।

        लोगों से पूछ कर दो गली आगे जाने पर एक ढंग का होटल दिखा। वस्तुतः एक ही नाम वाले दो होटल गली में आमने-सामने थे। स्टाफ ने बताया कि दो भाइयों का ही अलग अलग होटल है। देर हो जाने के कारण वहाँ रोटी सब्ज़ी जैसा खाना न मिल पाया क्योंकि किचन अभी बंद था। तो चाट जैसा नाश्ता कर हम लोग गेटवे की तरफ निकले। पिछली शाम भी हम लोग जब आये थे तो अँधेरा हो चुका था और आज भी शाम होने लगी थी। बेटी तो एलीफैंटा केव्स जाना चाहती थी पर वहां जाने के लिए अब कोई फेरी उपलब्ध नहीं थी। गेटवे के पास ही एक फेरी सर्विस थी जो पास के समुद्र में आधा घंटा घुमा कर लाती थी। अंतिम फेरी में हमलोगों को टिकट मिली। फेरी में समुद्र से मुंबई का रात की रोशनी में दृश्य अलौकिक था, उसमे भी ताज होटल तो सचमुच ही सर्वोत्तम लग रहा था। बहुत ही अच्छा रहा यह फेरी का अनुभव। फेरी से गेटवे पर उतर कर हम लोग निकले और होटल आ कर फ्रेश हुए। 

ताज होटल, मुंबई के मुख्य गुंबद के नीचे अंदर में
सीढ़ियों वाले हॉल का भव्य दृष्य ।

          आज का समय समाप्त ही हो रहा था तो प्लान यह बना की आज अंत में मुम्बा देवी का दर्शन करते हैं। टैक्सी वाले ने जहाँ उतारा वह बहुत भीड़ भाड़ वाला इलाका था। मुम्बा देवी तक जाने के लिए आगे हमें पैदल जाना पड़ा। उसी भीड़ से बढ़ते हुए हमलोग मंदिर पहुंचे। अभी आरती हो रही थी। तो थोड़ी देर हाथ जोड़ कर मंदिर में खड़े रहे। आरती के बाद मुम्बा देवी के दर्शन किये और पैदल चल कर वहां आये जहाँ हमे टैक्सी वाले ने उतरा था। वहीं कोने पर एक ढंग का रेस्टॉरेंट दिखा तो रात का खाना वहीं खाया। पत्नी को साड़ी खरीदने का मन था पर दुकान वाले लेट हो जाने के कारण अब दूकान बंद कर रहे थे। हम लोग साड़ी दूकान की खोज में कुछ पैदल भी चले पर न मिला। अंततः टैक्सी कर होटल वापस आये। अगले दिन हमारा वापसी की फ्लाइट थी पर उससे पहले ताज होटल भी जाना था। तो फ्रेश हो कर सो गए। 

ताज होटल के प्रथम तल की खिड़की से सुबह
में गेटवे और समुद्र का मनमोहक दृष्य ।

               अगली सुबह हम लोग तैयार हो कर ताज जाने वाले थे पर बच्चों ने पहले फोन कर पूछ लिया कि हम लोग वहाँ ब्रेकफास्ट करना चाहते हैं तो एंट्री मिलेगी या नहीं। उन्होंने बुला लिया। टैक्सी से हम लोग पहुंचे। ग्राउंड फ्लोर के रेस्टॉरेंट के पास पहुँचे तो वहाँ खड़ी होस्टेस ने कहा कि अभी तो रूम में ठहरे लोगों का कॉम्प्लिमेंट्री ब्रेकफास्ट चल रहा है आप लोग फॉर्मल ड्रेस में भी हैं तो ऐसा कीजिये कि  प्रथम तल्ले के रेस्टोरेंट में चले जाइये। अगर प्रॉब्लम हो तो फिर मैं यहाँ हूँ ही। तो गलियारे देखते हम लोग पहले तल के रेस्टॉरेंट के पास आये। यहाँ बाहर खड़ी होस्टेस ने भी उसी तरह हमें पुनः ग्राउंड फ्लोर पर जाने की सलाह दी। पर जब हमने उसे बताया कि हमें वहां से ही भेजा गया है। तो थोड़ा वेट करने बोला गया। थोड़ी देर बाद हम अंदर एक टेबल पर बैठे। वहाँ बुफे सिस्टम था ब्रेकफास्ट का तो प्लेट उठा कर जो जो ठीक लगा उसे लिया। आइटम्स की भरमार थी। खाना भी सभी स्वादिष्ट। चाय भी पी। चार लोगों के ब्रेकफास्ट का बिल लगभग बारह हजार रुपये आया। उस हॉल से निकल हम लोग उस बरामदे में आये जहाँ से समुद्र और गेट वे दिखता था। वहां से कुछ फोटो लिए। सीढ़ियों से उतरते देखा कि एक युवा गायक भारतीय वेश भूषा में गाने के तैयारी कर रहा था। 

गेटवे पर परेड का अभ्यास ।

         ताज से निकल हम लोग पैदल ही गेटवे आये क्योंकि अभी तक दिन की रौशनी में यहाँ का फोटो नहीं ले पाए थे। गेटवे के पास नेवी के जवान परेड अभ्यास कर रहे थे। एक तरफ गैलेरी भी बनाई जा रही थी। शायद एक दो दिन में नेवी -दिवस था। यहाँ से फोटो आदि ले कर हम लोग टैक्सी से होटल आये। अब एयरपोर्ट निकलने की तैयारी करनी थी। तो सामान समेट कर चेक आउट किया और टैक्सी से एयरपोर्ट आ गए। इस प्रकार हमारी एक सप्ताह की धार्मिक और साथ साथ मनोरंजन वाली यात्रा निर्विघ्न संपन्न हुई।  

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Friday, January 3, 2025

अष्टविनायकों में से दो - श्री महागणपति और श्री चिंतामणि गणपति के दर्शन

श्री अष्टविनायक में से एक श्री महागणपति मंदिर,रांजणगाँव, महाराष्ट्र
का मुख्य सड़क पर शोभाद्वार
                जब हमलोग शनि सिंगणापुर से मुंबई की ओर जा रहे थे तो आपस में बातें कर रहे थे कि मुंबई में जो एक दिन का बचा हुआ समय मिल रहा था उसमें कहाँ कहाँ जाना है। मुंबई में गणपति उत्सव धूम-धाम से मनाया जाता है यह हमलोग जानते थे विशेष कर 'लालबाग का राजा' के बारे में उत्सुकता थी। ड्राइवर से पूछा तो उसने बताया कि उत्सव में वहाँ प्रत्येक वर्ष मूर्ती बनती है शायद परमानेंट मंदिर नहीं है। सिद्धविनायक मंदिर वहाँ प्रसिद्ध है। इसी सन्दर्भ में अष्टविनायक का नाम आया तो उसने बताया कि महाराष्ट्र में गणपति के आठ प्रसिद्ध मंदिर हैं जिन्हें अष्टविनायक बोला जाता है। इनमें से दो तो आगे रास्ते में ही मिलेंगे, उनके दर्शन कर लेना। एक और तो परली के पास ही था, यदि पहले बोलते तो वहाँ भी दर्शन करा देता। पर हमें तो पहले पता ही नहीं था अतः हमने उसे आगे के दो मंदिर दिखाने का आग्रह किया। 
 
श्री महागणपति, रांजणगाँव के शोभाद्वार
का पीछे का दृष्य

 
          इंटरनेट पर अष्टविनायक के बारे में सर्च किया तो महाराष्ट्र के अष्टविनायक के नाम इस प्रकार मिले - 1. मयूरेश्वर गणेश मंदिर, मोरगांव, 2. सिद्धि विनायक, सिद्धटेक, 3. बल्लेश्वर मंदिर, पाली, रायगढ़, 4. वरद विनायक (महाद मंदिर), रायगढ़, 5. चिंतामणि मंदिर, थेऊर, 6. गिरिजात्मज लेण्याद्रि मंदिर, जुन्नार (गुफा मंदिर), 7. विघ्नेश्वर ओज़ार मंदिर, कुकड़ी, जुन्नार तथा 8. रांजणगाँव में महागणपति। कहा जाता है कि ये अष्टविनायक स्वयंभू हैं और इनमें सूंढ़ तथा रत्नजड़ित आँखों के अतिरिक्त अन्य कोई अंग स्पष्टता से नहीं दिखते। 
श्रीमहागणपति मंदिर, रांजणगाँव का पीछे से दृश्य


           रास्ते में पहले हमें रांजणगाँव के महागणपति मिलने वाले थे। कहा जाता है कि स्वयं महादेव ने इस गणपति मंदिर की स्थापना की थी। आधुनिक समय में मंदिर का गर्भ गृह माधवराव पेशवा द्वारा बनवाया गया था तथा बाहरी हॉल इंदौर के सरदार किबे द्वारा। 
श्री महागणपति मंदिर, रांजणगाँव का प्रवेश द्वार


         मंदिर का प्रवेश मुख्य सड़क से करीब 150 मीटर दूर एक ब्राँच रोड में है। किन्तु मुख्य सड़क पर एक विशाल शोभा द्वार बनाया गया है। ड्राइवर ने गाड़ी इस शोभा द्वार से पहले एक मार्केट काम्प्लेक्स के पार्किंग में खड़ी की। हमलोग पैदल ही शोभा द्वार हो कर बढ़े।
श्रीमहागणपति मंदिर प्रांगण में भक्त-निवास


       किसी उत्सव की तरह एक गायक-नर्तक मंडली द्वारा जुलुस की तरह बढ़ा जा रहा था। आगे बढ़ने पर एक और टीम द्वारा गाना-बजाना किया जा रहा था। मंदिर का प्रवेश साधारण था अतः हमें पूछ कर जाना पड़ा। गेट के पास एक दुकान से प्रसाद ले कर वहां चप्पल खोले और प्रवेश किया। परिसर काफी बड़ा था। विशेष अवसर पर ज्यादा भीड़ से निबटने के लिए क्यू बनाने की भी व्यवस्था थी। ज्यादा भीड़ नहीं थी, लाइन में दस पंद्रह व्यक्ति ही थे। श्री महागणपति के दर्शन कर निकास द्वार से निकलते ही देखा कि 25-30 नर -नारी निकास द्वार से ही किसी युवा नेता और उनकी पत्नी के साथ घुसे। शायद उनका कुछ विशेष अवसर था। बाद में देखा कि मंदिर के गेट पर खूब साज-सज्जा से एक बड़ी सी गाड़ी और उसके पीछे अन्य गाड़ियाँ बारात की तरह खड़ी थीं। संभवतः नृत्य मंडलियाँ उन्हीं की थीं। 
 
श्रीमहागणपति मदिर के बाहर नृत्य मण्डली

         गर्भ गृह के पीछे एक बड़ा सा आँगन है तथा बड़ा सा भक्त निवास भी। इससे निकल कर अहाते से होकर निकलने का रास्ता था। अहाते को बढ़िया पेड़-पौधों से सजाया गया था तथा कई तरह की मूर्तियाँ बनायीं गयीं थी। इस गार्डेन में कई भक्तजन परिवार बच्चों के साथ अच्छा समय व्यतीत कर रहे थे। मंदिर परिसर से बाहर निकल कर अपने चप्पल लिए और गाड़ी के पास आये। देखा ड्राइवर नींद में था, और हमें चाय की तलब हो रही थी। मार्केट तो यहाँ था ही, तो एक चाय दुकान में हमने चाय पी और वड़ा-पाव खाया। 
श्रीमहागणपति मंदिर परिसर के गार्डन में बैलगाड़ी की मूर्ति


                 गाड़ी से हमलोग पुणे से पहले थेऊर के पास पहुँचे। यहाँ एक और अष्ट विनायक थे -श्री चिंतामणि गणपति। यह मंदिर मोरया गोस्वामी के पुत्र धरणीधर देव द्वारा स्थापित है। उनके करीब 100 वर्षों बाद माधवराव पेशवा द्वारा मंदिर का सभा मंडप बनवाया गया। मंदिर से ठीक पहले एक बड़ा पार्किंग है किन्तु यहाँ तक आने का रास्ता भीड़-भाड़ वाला है। ड्राइवर ने गाड़ी पार्किंग में खड़ी की। हमलोग मंदिर के बाहर चप्पल खोल कर अंदर गए। दर्शन में यहाँ थोड़ा समय लगा क्योंकि भीड़ थी। इस मंदिर का परिसर उतना बड़ा न था जितना श्री महागणपति मंदिर का था। दर्शन के बाद हमने फोटो वगैरह लिए और बाहर आये। यहाँ पर फल वाले कई तरह के फल बेच रहे थे। हमने कुछ अमरुद ख़रीदे और पार्किंग में खड़ी गाड़ी में बैठ कर निकल गए। करीब पाँच बजे हमलोग एक तिराहे के पास पहुंचे जहाँ कई रेस्टॉरेंट्स थे। भूख लग रही थी तो वहीँ खाया। निकलते हुए शाम का धुंधलका होने लगा था। ड्राइवर ने कहा कि रस्ते में ही लोनावला भी है। जानते थे कि अच्छी जगह है पर मुंबई में होटल बुक था ऊपर से शाम होने लगी थी तो लोनावला जा नहीं सकते थे। 
श्री चिंतामणि गणपति, थियूर, महाराष्ट्र (अष्टविनायक में से एक)


              अटल सेतु से होकर हमलोग मुंबई के होटल में आये। सेतु से पहले हाईवे पर कई सुरंगों से हो कर गाड़ी गुजरी जो बहुत ही अद्भुत और मनोहारी थी।  
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