Thursday, December 19, 2024

औंधा नागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग

  पिछले ब्लॉग पोस्ट "श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन-पूजन एवं तथा एलोरा गुफाएँ" से आगे :-

संध्या में श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग मंदिर, औंधा, महाराष्ट्र


     बारह ज्योतिर्लिंगों में से आठवें ज्योतिर्लिंग हैं नागेश अथवा नागेश्वर। जिनके स्थान के बारे में "द्वादशज्योतिर्लिंग स्मरणम स्तोत्र" में कहा गया है कि नागेशं दारुका वने अर्थात श्रीनागेश ज्योतिर्लिंग दारुका वन में हैं। गुजरात के द्वारका के पास दारुका वन क्षेत्र में नागेश ज्योतिर्लिंग माना जाता है पर कुछ मान्यताओं के अनुसार महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के औंधा नमक स्थान पर स्थित एक भव्य शिव मंदिर ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं जिन्हें औंधा नागनाथ भी कहा जाता है। गुजरात के नागेश ज्योतिर्लिंग का दर्शन-पूजन हमलोगों ने सन 2014 कर लिया था जिसका यात्रा विवरण इस ब्लॉग में दे चुका हूँ। यद्यपि श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन-पूजन से हमारे बारह ज्योतिर्लिंग की तीर्थ-यात्रा हो चुकी थी किन्तु महाराष्ट्र के औंधा नागनाथ और परली वैद्यनाथ ऐसे शिव-मंदिर हैं जिनका दावा कुछ लोग ज्योतिर्लिंग के रूप में करते हैं। अतः हमने पहले से ही इन दोनों स्थानों की यात्रा का भी कार्यक्रम बना लिया था। 

सूर्योदय के समय श्रीऔंधा नागनाथ  मंदिर, महाराष्ट्र


         पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दारुक नामक राक्षस ने एक शिव-भक्त सुप्रिय को उसके सेवकों के साथ पकड़ कर अपने नगर दारूकावन में कैद कर लिया तब सुप्रिय ने महादेव से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान एक ज्योति के रूप में कारागार में प्रकट हुए और उन सबकी रक्षा की। भक्तों की प्रार्थना पर महादेव उस स्थान पर नागेश ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। 

श्रीऔंधा नागनाथ मंदिर की दीवारों पर सुन्दर शिल्पकला
का अद्वितीय नमूना


        श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पूजन एवं एल्लोरा गुफाओं के भ्रमण के बाद हमलोगों ने गूगल मैप देखते हुए औंधा की ओर प्रस्थान किया। लम्बा रास्ता था, औंधा पहुँचते शाम के सात बज गए क्योंकि कुछ जगह सड़क बनायी जा रही थी इस कारण भी देर लगी। यहाँ हमलोगों ने पहले से होटल बुक नहीं किया था। मंदिर के पास ऑनलाइन कोई ढंग का होटल दिखा नहीं। तो पहले हमें ठहरने की जगह देखनी थी। सड़क पर से ही कुछ लॉज जैसे ठहरने के लिए दिख रहे थे। हमने एक लॉज जिसका नाम माहेश्वरी लॉज था उसे देखा। काम चलने लायक था और 1100 रूपये प्रति रूम दर था। दो रूम ले कर वहीं सामान रखा और फिर फ्रेश हो कर मंदिर की ओर चले। मंदिर वहां से आधा किलोमीटर होगा पर मुख्य सड़क पर हो कर जाना पड़ता है। अतः हमलोग अपनी टैक्सी से ही गए। पूछते हुए मंदिर के मुख्य द्वार से बड़े से प्रांगण में गए। सफ़ेद ऊपरी भाग वाला भव्य मंदिर शाम को बिजली रौशनी में आकर्षक लग रहा था। मंदिर का प्लिंथ काफी ऊँचा था और ग्रिल से घेरा हुआ था। शाम हो जाने के कारण भीड़ बहुत कम थी। हमलोग सामने के नंदी मूर्ति के पास से अंदर गए। मंदिर के अंदर हॉल में दाहिनी तरफ से कतार में जाने के लिए रेलिंग थी। यहाँ ज्योतिर्लिंग इस हॉल में न था बल्कि भूमिगत था अर्थात अंडरग्राउंड (बेसमेंट) में था। और वहाँ तक जाने के लिए दाहिनी ओर एक ढाई फ़ीट बाई ढाई फ़ीट का फर्श में एक छेद था मानो फर्श का एक स्लैब हटा दिया गया हो। एक बार में एक व्यक्ति ही आ जा सकता था। एक एक कर हमलोग नीचे उतरे। नीचे उतर कर झुक कर ही गर्भ गृह में जाना और खड़ा होना होता है क्योंकि यहाँ फर्श और सीलिंग के बीच मुश्किल से पाँच फ़ीट की ऊँचाई है। इसी कम उंचाई वाले गर्भ गृह में एक चबूतरे पर श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग विराजमान हैं और और उसी चबूतरे पर एक ओर मुख्य पुजारी बैठते हैं और दूसरी ओर भक्त। यद्यपि बाहर हल्की ठण्ड थी, गर्भ गृह में घुसते ही गर्मी का एहसास हुआ। हमलोगों ने संध्या दर्शन किया और सबेरे के लिए अभिषेक की पूछताछ की। गौर वर्ण के मुख्य पुजारी और वहाँ उपस्थित स्थानीय लोगों ने कहा की सबेरे साढ़े पाँच बजे आ जाना, हो जायेगा। वहाँ सीधे खड़े हो नहीं सकते थे तो ज्यादा देर रुकना संभव न था। हमलोग उसी छेद वाले रास्ते से ऊपर चढ़ कर मंदिर के हॉल में निकले। मंदिर की चौखट से ज्यों ही निकले एक वृद्ध पंडित जी ने बातचीत शुरू कर दी। उन्होंने अपनी काफी बड़ाई की और बताया की उनका लड़का सबेरे अभिषेक करा देगा और पूरे भारत में कहीं भी पूजा करनी होगी तो व्यवस्था करा देगा। हमसे अपने लड़के को फोन लगवाया और सबेरे अभिषेक के लिए बुलाया। 

आकर्षक मंदिर, श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग, औंधा, महाराष्ट्र


           मंदिर से उतर कर हमलोगों ने प्रांगण में कुछ फोटो खींचे। बाहर पार्किंग के पास एक चाय दूकान में चाय बिस्किट खाये और वापस होटल आ गए। यहाँ का मंदिर भी मुगलों ने तोड़ा था जिसके कारण ऊपर का हिस्सा जो सफ़ेद रंग का है वह अहिल्या बाई होल्कर द्वारा बनवाया गया है। उनकी एक प्रतिमा भी मंदिर के बाहर लगायी गयी है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर बहुत ही कलाकारी से छोटी बड़ी मूर्तियां उकेरी गयीं हैं। 

यही औंधा के श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के
तहखाने वाले गर्भ-गृह में जाने का रास्ता है।


       सबेरे हमें दो ज्योतिर्लिङ्ग के दर्शन पूजन करने थे, यहाँ श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के फिर परली के श्रीवैजनाथ ज्योतिर्लिंग के। अतः जल्दी उठकर स्नान किया, होटल में सबेरे गर्म पानी सप्लाई किया गया था। तैयार हो कर गाड़ी से ही मंदिर निकले। पंडित जी का बार बार फोन आ रहा था। जब मंदिर पहुंचे तो पंडित जी ने कहा कि वे फूल और पूजा सामग्री ले कर आ रहे हैं। थोड़ी देर में वे आये और हमें ले कर तहखाने वाले गर्भ-गृह में ले गए जहाँ श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग विराजमान हैं। वहाँ जब मुख्य पुजारी ने हमें इन पंडित जी के साथ देखा तो बोले कि ये लोग तो मुझसे पूजा अभिषेक कराने वाले थे। मराठी में ही उनमें कुछ बात हुई। हमारे पंडित जी ने इससे अनभिज्ञता प्रकट की और हिंदी में हमें बताया। गलती तो हमसे हुई थी पर हमारे पंडित जी के पिताजी ने कल संध्या अभिषेक के लिए इतना प्रस्ताव दिया कि ना न कह सके। तब मैंने मुख्य पुजारी जी को कहा कि हाँ आपसे बात हुयी थी पर इनके पिताजी से बाद में बात होने पर हमने उन्हें ही फाइनल किया। मुख्य पुजारी जी ने हमारे पंडित जी से कहा कि इस तरह नहीं होना चाहिए अर्थात दूसरे का यजमान नहीं लेना चाहिए। फिर हमसे कहा कि ठीक है इन्हीं से पूजा करा लीजिये, हमलोग एक ही हैं। यद्यपि उनके चेहरे के भाव मायूसी भरे थे। हमें भी अच्छा नहीं लगा। अतः जब हमारी अभिषेक पूजा गयी तो उन्हें भी अच्छा दान दिया। 

श्रीऔंधा नागनाथ मंदिर के तहखाने वाले
गर्भ-गृह के ऊपर हॉल में


           श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग की अभिषेक पूजा के साथ ही हमारे यात्रा कार्यक्रम का एक और चरण पूरा हुआ अर्थात इस यात्रा का तीसरा ज्योतिर्लिङ्ग पूजन। तहखाने के गर्भ गृह से बहार निकले। पंडित जी को जो भी देना-लेना था पूरा किया। फिर उन्होंने भी कहा कि कहीं भी पूजा करना हो तो कहना, हर तीर्थ के पुजारियों से संपर्क है हमारा। और हमारा नंबर श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम के एक व्हाट्सप्प ग्रुप पे जोड़ दिया। आगे कहा कि अभी परली में पूजा करना है तो वहाँ के एक पंडित जी "पाठक जी" का नंबर रख लो। मैं उन्हें भी बता देता हूँ। इसके बाद उन्होंने विदा ली। हमलोग थोड़ी देर मंदिर परिसर में घूमे और फोटो वगैरह खिंचवाये। सूर्योदय का समय था, भीड़ भी ज्यादा न थी। वातावरण बहुत सुहावना लग रहा था।  

श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग, औंधा के मंदिर के नन्दी द्वारपाल


         मंदिर परिसर से बाहर निकले तो जिस दुकान में पिछली शाम हमने चाय बिस्किट खाई थी वह बुलाने लगा, पर हमने उसे बताया कि अभी और जगह भी पूजा करनी है अतः कुछ खायेंगे पियेंगे नहीं। ड्राइवर को टैक्सी क साथ होटल भेज दिया था ताकि वो भी तैयार हो जाये और हमलोग सीधे परली के लिए निकल जाएँ। अतः मंदिर से पैदल ही होटल की ओर निकले। सबेरे के समय पैदल चलना अच्छा लग रहा था। होटल आ कर जल्दी से सामान समेट कर चेक आउट किया और बाबा वैजनाथ के दर्शन हेतु परली की ओर निकल पड़े।                    

(अगले ब्लॉग पोस्ट में परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग की यात्रा का विवरण)

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Tuesday, December 17, 2024

श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन-पूजन तथा एलोरा गुफाएँ

संध्या के समय श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर
  
      हमलोगों को घृष्णेश्वर पहुँचते संध्या हो चुकी थी। यह जगह महाराष्ट्र के दौलताबाद के पास खुलदाबाद में है। ऑनलाइन होटल बुकिंग की थी, मंदिर के पास देखकर। हॉटल मंदिर के पास तो था पर मंदिर तक सीधा रास्ता न था। मुख्य पथ पर आ कर मंदिर वाली गली में जाना होता था। होटल मुख्य पथ से 300 फ़ीट अंदर था जहाँ तक मूरम सड़क जाती थी। इसलिए होटल खोजने में थोड़ी पूछ ताछ करनी पड़ी। होटल नया ही खुला था और स्टाफ प्रोफेशनल नहीं लग रहे थे। जिस हिसाब से कमरे का रेट था वैसा कमरा नहीं था। हमलोग जल्दी तैयार हो कर पैदल मंदिर के लिए निकले ताकि सबेरे पूजा हेतु जाने में रास्ते का पता रहे और सबेरे के पूजा के लिए पुजारी जी से बात हो जाये। पूछते हुए हमलोग परिसर के प्रवेश द्वार पर पहुंचे। द्वार को रेलिंग से दो भाग में बाँटा गया था। बायीं ओर से प्रवेश और दाहिनी से निकास। प्रवेश द्वार से जा कर हमें कतार वाले कॉम्लेक्स से लम्बा गुजरना पड़ा यद्यपि भीड़ न के बराबर थी। बड़े से नंदी घृष्णेश्वर महादेव के सामने मंदिर में थे। वहीँ पर एक बुजुर्ग पुजारी थे। उनसे स्पर्श पूजा के बारे में पता किया। अलग अलग अभिषेक का रेट बताया गया। हमलोगों ने 2100 वाली पूजा चुनी, रूपये दिए और उन्होंने एक विजिटिंग कार्ड के पीछे लिख कर दिया और कहा कि सबेरे निकास द्वार से ही प्रवेश करना और सीधे आ जाना 5:30 से 6:00 के बीच में। गर्भ गृह में प्रवेश से पहले पुरुषों को ऊपर कपडे उतार खुले शरीर जाना होगा। अभी हमें पूजा नहीं करनी थी, तो गर्भ-गृह के द्वार से ही बाबा का दर्शन कर बाहर परिसर में आये।
सूर्योदय के समय श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर
         द्वादश ज्योतिर्लिंग का जो स्तोत्र हमलोग पढ़ते हैं उसमें घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का बारहवाँ स्थान है। इन्हें घुसृणेश्वर या घुश्मेश्वर नाम से भी जाना जाता है। ये दौलताबाद स्टेशन से बारह मील दूर बेरूल नामक स्थान में स्थित हैं। पौराणिक कथा के अनुसार यहाँ सुधर्मा और सुदेहा नाम के एक दम्पति थे, जिन्हें बहुत दिनों तक संतान न हुई। पत्नी सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा से पति का विवाह करा दिया। घुश्मा शिव-भक्त थी और नित्य 100 पार्थिव शिवलिंग बना कर शिव की पूजा करती थी। शिव-कृपा से जल्द ही उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। धीरे-धीरे सुदेहा को अपनी छोटी बहन के संतान सुख से ईर्ष्या होने लगी और एक दिन मौका पा कर उसने बहन के पुत्र की हत्या कर दी और शव को एक तालाब में फेंक दिया। पीड़ा से भरी घुश्मा ने स्वयं को संभाला और शिव-भक्ति में और भी तल्लीन हो गयी। महादेव उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और कृपा की। एक दिन उसने अपने पुत्र को उसी तालाब से आते देखा और तभी भगवन शिव ने भी दर्शन दे कर वरदान माँगने कहा। घुश्मा ने प्रार्थना की कि वे सदा यहाँ विराजमान रहें ताकि भक्तों को दर्शन का लाभ मिल सके। महादेव ने उसकी इच्छा पूरी की और ज्योतिर्लिङ्ग रूप में विराजमान हुए। घुश्मा के नाम पर ही इन्हें घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। 
          इस मंदिर में भी मोबाइल ला सकते हैं पर फोटो लेना मना होता है। पर जब हम लोग परिसर में आये तो हल्की ठण्ड और बिजली की रौशनी में बहुत अच्छा लग रहा था और कुछ लोग फोटो भी ले रहे थे। हमलोग भी कुछ देर एक जगह बैठ कर आनंद लिए और कुछ फोटो भी। अब मंदिर बंद होने का समय हो रहा था। ज्यादा देर होने पर बाहर रेस्टॉरेंट भी बंद हो जाते, इसलिए हमलोग मंदिर से बाहर आये। मुख्य पथ से होटल की तरफ जाने वाले मोड़ पर ही एक बड़ा सा रेस्टॉरेंट था। वहीं पर खा कर हमलोग होटल में आ कर सो गए ताकि सबेरे जल्दी तैयार हो सकें।
             सबेरे हमें तैयार होकर मंदिर पहुँचने में 5:45 बज गए। पंडित जी ने कहा 5:30 से ही हमलोग आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, जल्दी से ऊपर के कपड़े निकाल कर आयें। जब हमलोग अंदर गए तो देखा कि पहले से दो यजमान और भी थे। हमारे पूरे परिवार को शिवलिंग के किनारे बिठाया और बाकि लोगों में सिर्फ पुरुषों को और उनके साथ ज्यादा महिला परिवार की थीं तो उन्हें पीछे बिठाया। फिर मन्त्र आदि से स्पर्श पूजा कराई। जलाभिषेक कराया। लगभग 15 मिनट में पूजा समाप्त कर हमलोग निकले। नंदी बाबा की पूजा की। फिर परिसर के बड़े त्रिशूल और पीपल वृक्ष के पास चबूतरे पर भी पूजा की। उसके बाद मंदिर के पीछे की ओर गए जहाँ ज्योतिर्लिङ्ग के अभिषेक वाले जल की निकासी हो रही थी। थोड़ा जल हाथ में लेकर आचमन भी किया। सबेरे का समय था तो मंदिर की दैनिक सफाई शुरू हो रही थी। एक कर्मचारी झाड़ू लगा रहा था तो पत्नी ने उनसे झाड़ू माँग कर स्वयं थोड़ा बुहारा। 
कैलाश मंदिर, एलोरा


           अभी भी बाहर सूर्योदय के पहले वाला धुंधलका था। भीड़ -भाड़ ज्यादा नहीं थी। कुछ लोग मोबाइल से फोटो लेने लगे तो एक स्टाफ ने आ कर मना किया। हमलोगों ने भी नजरें बचाकर कुछ फोटो खींचे। हमलोगों का इस यात्रा कार्यक्रम का दूसरा ज्योतिर्लिंग पूजा पूर्ण हुआ और संतुष्ट मन से बाहर निकले। बाहर मुख्य सड़क पर एक दुकान अभी खुल ही रही थी। चाय के लिए हमलोग बैठे। देखा कि नाश्ते के लिए पोहा था और इडली। तो पहले हमने नाश्ता किया फिर चाय पी कर होटल आये। होटल में सामान समेट कर चेक आउट किया फिर अपनी टैक्सी ले कर निकले। 
           एलोरा गुफाएँ पास में ही थीं तो हमलोग वहाँ गए। गेट के पास कई गाइड खड़े थे और पूछ रहे थे। बिना गाइड के तो इतनी गुफाएँ देखना ठीक नहीं था तो एक गाइड को हमने हायर किया। तब उसने कहा कि यदि किसी को चलने में दिक्कत हो तो आप व्हील चेयर ले सकते हैं। मेरी पत्नी को ज्यादा पैदल चलने में परेशानी थी घुटनो के दर्द के कारण, तो एक व्हील चेयर वाले को लिया। दोनों ने बारह-बारह सौ रूपये माँगे। बहुत कहने पर एक-एक हज़ार में तैयार हुए। जब हमलोग टिकट लेने गए तो मैंने व्हील चेयर वाले से कहा कि भाई तुम्हारा तो डेली का काम है तुम ही गाइड बन जाते हमारा, पर उसने कहा नहीं वही गाइड करेगा। वहीँ जब गुफाएँ और मंदिर के बारे में बताने के बाद अंतिम में गाइड पैसे ले कर चला गया, तब व्हील चेयर वाले ने कहा कि मैं आपको उस गाइड से ज्यादा डिटेल में बताता हूँ, उसे तो इतना मालूम भी नहीं। तब मैंने कहा कि तुम्हें तो पहले ही कहा था कि तुम ही गाइड का भी काम करो, पर माने नहीं। उसने कहा आप पहले ही उसे हायर कर चुके थे, ऐसे में मैं नहीं गाइड कर सकता था। हमें फिर इसी जगह काम करना है। 
रॉक कट मंदिर, एलोरा में कीर्ति स्तंभ


              एलोरा गुफाएँ पश्चिमी घाट के सह्याद्रि पर्वतमाला के चरणार्द्री पर्वत के एक भाग में बनायीं गयी हैं। लगभग 600 ईo से 1000 ईo के बीच पत्थरों को काट कर बनाई गयी ये गुफाएँ उस समय भारतीय पाषाण शिल्प कला का उत्कृष्ट उदहारण हैं जिस समय बाकी की अधिकाँश दुनिया कबीलों की लड़ाई में व्यस्त थी। लगभग 2 किलोमीटर लम्बाई में सीधी खड़ी बैसाल्ट चट्टानों में 34 गुफाएँ हैं जिनमें सबसे पुरानी 12 बौद्ध गुफाएँ (Cave No 1 to 12), फिर 17 हिन्दू गुफाएँ (Cave No 13 to 29) और 5 जैन गुफाएँ (Cave No 30 to 34) हैं। कुछ गुफाएँ अधूरी भी हैं। गाइड ने बताया कि ये अधूरी गुफाएँ ट्रायल के लिए बनायीं गयीं थीं। जब शिल्पकार इससे संतुष्ट होते जाते थे तो इसे छोड़ कर मुख्य बड़ी गुफाएँ बनाते थे। जैसा कि पूरे भारत वर्ष में इस्लामी शासन में मूर्तियों को भंग किया गया था, यहाँ भी औरंगजेब के शासन में गुफाओं में बनी मूर्तियों  को तोड़ कर ख़राब किया गया है। 
इसी वेंटीलेटर से सूर्य किरणें प्रतिमा तक जाती हैं,
एल्लोरा गुफाएँ


           गुफा संख्या 1 सबसे अंत से शुरू होती है। तीन गुफाओं के बाद ऊपर पहाड़ से एक छोटा झरना भी गिरता है जिसके पीछे से सैलानी गुजरते हैं। इन गुफाओं से सटे बाहर में एक गहरा कुंड भी है जिसे लोहे की जाली से ढँक दिया गया है। बड़े हॉल जैसे शानदार गुफाओं में सारी मूर्तियाँ सीधे चट्टानों को उसी जगह पर तराश कर बनाई गयी हैं। न सिर्फ पाषाण शिल्प कला बल्कि कलाकारों की काम शुरू करने से पहले की कल्पना की भी दाद देनी होगी। ये राष्ट्रकूटों के शासन के दौरान बनायीं गयीं थीं। 
प्रभावशाली गुफा संख्या 10 में शिक्षण मुद्रा में बुद्ध,
एल्लोरा गुफाएँ


          एलोरा की गुफा संख्या १० (Cave Number - 10) बड़ी और महत्वपूर्ण है। शिक्षण मुद्रा में बुद्ध की बड़ी प्रतिमा एक बड़ी गुफा में है जिसकी छत मेहराबदार और धारीदार है। सामने से सीढियाँ भी बनी हैं ऊपरी बरामदे तक जाती हैं। ऊपरी बरामदे के बीच में और हॉल की बड़ी बुद्ध मूर्ति के सामने एक छोटा सा झरोखा है जिससे सूर्य किरणें हॉल में जाती हैं। गाइड ने बताया कि 10 मार्च को ये किरणें ठीक प्रतिमा के कपाल पर तिलक जैसे पड़ती हैं। उसने अपने मोबाइल से पिछले ऐसे इवेंट की फोटो ली थी जिसे हमें दिखाया। 
एल्लोरा के रॉक-कट कैलाश मंदिर में शिवलिंग


                और सबसे अंत में गुफाओं के बाद हम लोग आये कैलाश रॉक-कट मंदिर में। ये सबसे बाद में बनी (जो गाइड ने बताया) और सबसे उत्कृष्ट शिल्प कला है। Cave Number - 16 के नाम से यह सबसे बड़ी संरचना है। आठवीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण - 1 के शासन में बना यह मंदिर अद्वितीय है। कहा जाता है कि किसी कारण से शिवा भक्त महारानी ने प्रण किया कि जब तक मैं महादेव का मंदिर न बनवा लूँ, भोजन ग्रहण न करुँगी। मंदिर तो इतनी जल्दी बन नहीं सकती थी। तो सबने विचार किया कि मंदिर का शिखर पूर्ण होने पर ही मंदिर पूर्ण होता है तो  क्यों न शिखर से ही प्रारम्भ किया जाय। युद्ध स्तर पर पहाड़ के ऊपर शिखर बनाना प्रारम्भ हुआ। तीन दिनों में ही महारानी को दूर से ही मंदिर का शिखर दिखा कर अनशन तुड़वाया गया। बाद में चट्टानों को ऊपर से नीचे की ओर तराश कर मंदिर बनाया गया। विशाल मुख्य द्वार के बाद प्रांगण है जिसमे दोनों साइड में बड़े आकार के हाथी और ऊँचे स्तम्भ बने हैं। दाहिने ओर वाला स्तम्भ कीर्ति स्तम्भ है जो बीस रूपये वाले पीले नोट पर भी अंकित है। मंदिर के दाहिनी दीवार पर छोटे-छोटे रामायण के प्रसंग तराशे गए हैं और बायीं दीवार पर महाभारत के। प्रांगण में प्रवेश करते ही जो सामने मूर्ति दिखती है वह है 'गज-लक्ष्मी' की। सीढ़ियों से प्रथम तल पर चढ़ कर हॉल नुमा मंदिर में प्रवेश करते हैं जिसके अंत में गर्भ गृह है। इसमें एक बड़ा सा शिवलिंग है। पत्थरों को काट कर बनाये गए प्रांगण की बाहरी दीवारों पर भी अनेक मूर्तियाँ बानी हैं। कुल मिला कर यह अप्रतिम है और यह सोच कर कि बिना गलती किये कलाकारों ने ऐसा तराशा है जैसे उन्हें सब कुछ बनावट पता हो और फालतू के पत्थरों को छील कर हटा दिया हो, बस यही मुँह से निकलता है - अद्भुत ! इस मंदिर को हमने पहले बगल से पहाड़ पर चढ़ कर देखा फिर नीचे उतर कर अंदर जा कर। मन उन अनाम कलाकारों को प्रणाम करता है।
एल्लोरा गुफाओं में कैलाश मंदिर के प्रवेश पर गज लक्ष्मी


             एलोरा गुफाओं को देख कर निकलते लगभग डेढ़ बज चुके थे। हमलोगों ने यहाँ से निकल औंधा नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए प्रस्थान किया। 

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Tuesday, December 10, 2024

पंचवटी, नाशिक और साईं बाबा मंदिर, शिरडी की यात्रा

पिछले ब्लॉग श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग यात्रा से आगे :--

राम कुण्ड, पञ्चवटी, नाशिक
 

      होटल से चेक आउट कर हमलोग तो निकल चुके पर भाड़े की जो हम लोग टैक्सी लेते हैं वे लोग बचत के लिए प्रायः सीo एनo जीo वाले टैक्सी लाते हैं, अब सीo एनo जीo भरवाने के लिए पेट्रोल पम्प पर भीड़ के कारण एक घंटे लग गए। पञ्चवटी, राम कुंड पहुँचते -पहुँचते हमें साढ़े बारह बज गए। पंचवटी नाशिक का एक ऐसा क्षेत्र है जो श्रीराम जी के वनवास से जुड़ा है। नाशिक में ही सूर्पनखा की नाशिका (नाक) कटी थी इसलिए यहाँ का ऐसा नाम भी पड़ा। पंचवटी में कई ऐसे जगह हैं जो सीता-राम से सम्बन्ध रखते हैं। यहाँ ऑटो वाले प्रति व्यक्ति 100 रूपये ले कर लगभग 17 स्थान घुमाते हैं जिसमें करीब डेढ़ से दो घंटे लगते हैं। हमारे पास समय ज्यादा नहीं था इसलिए हमलोग सिर्फ राम कुंड ही घूमे। यहाँ टैक्सी को पार्किंग में रखकर पैदल ही आसपास देखने लगे। पास में कई फल वाले शरीफा, अमरुद, सेव, आदि बेच रहे थे। जो बड़ा वाला शरीफा हमलोग 120 - 150 रूपये में लाते हैं वो 100 रूपये में तीन किलो बोल रहे थे। आगे बढे तो दूसरा 100 में चार किलो बोल कर बुलाने लगा। हमें आश्चर्य हुआ पर शीध्र ही पता चला कि तौल में कुछ हेर फेर है। हमने 100 रूपये का तुलवाया, देखने में कम से कम दो किलो लग ही रहा था। फिर भी सस्ता था। ले लिया। यहीं हनुमान जी की खुले में एक बड़ी प्रतिमा है जिसमें दोनों तरफ हनुमान जी बने हैं। इनका नाम दुटोंडिया मारुती मंदिर है। ठीक इसी जगह गोदावरी पर एक कम ऊंचाई का चेक डैम बनाया गया है जिससे कुण्ड में पानी बना रहे। चेक डैम के बगल -बगल कम ऊँचाई का ही एक पुल बना है जिससे हो कर हमलोग दूसरी पार गए। उसपार एक और तालाब था जिसे मैप पर गाँधी तालाब लिखा है। इसमें बोटिंग हो रही थी, 30 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से। हमलोगों ने स्पीड बोट से बोटिंग का आनंद लिया। करीब डेढ़ बज रहे थे। हमें शिरडी जाना था और दर्शन कर फिर घृष्णेश्वर में रात्रि विश्राम करना था जहाँ पहले से ही होटल बुक कर रखा था। सो हमने यहाँ से चलने का फैसला किया। 

रामकुण्ड, पञ्चवटी, नाशिक, महाराष्ट्र 

                सड़क अच्छी थी। हमलोग लगभग दो घंटे में शिरडी पहुँच गए। यहाँ यह बता दूँ कि हमारे समाज में कुछ लोग साईं बाबा के इतने भक्त हैं कि भगवान की पूजा करें या न करें साईं बाबा की पूजा अवश्य करेंगे। यदि भगवान की पूजा करते भी हैं तो भगवान की फोटो के साथ साईं बाबा की भी फोटो रखेंगे। लेकिन सनातन धर्म के शंकराचार्यों ने स्पष्ट कहा है कि इनकी मूर्ति ईश्वर की मूर्ति के बगल में नहीं रखी जानी चाहिए। यदि इनकी पूजा करते है तो अलग स्थान या मंदिर में करनी चाहिए। ऊपर से सोशल मीडिया से यह काफी प्रचारित है कि ये मुसलमान थे। मेरे कुछ रिश्तेदार तो बहुत साईं भक्त हैं किन्तु मेरे परिवार में ऐसा नहीं है। इसी लिए जब मैंने शिरडी जाने का प्लान किया तो परिवार ने कुछ ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया। मैं भी विशेष कर यहाँ का कार्यक्रम नहीं बनाता किन्तु यह हमारे रास्ते में था और मेरा मानना है कि ये भले ही भगवान नहीं हैं किन्तु एक संत तो हैं। जो भी इनकी कहानियाँ सुनी हैं उनमें इन्होंने परोपकार ही किया है और मुसलमान हो कर भी कोई धर्म -परिवर्तन नहीं कराया और न ही मूर्तिपूजकों के प्रति नफरत दिखाई। अतः श्रद्धा के साथ दर्शन करने में कोई बुराई नहीं। 

दुटोंडिया हनुमान, रामकुंड, नाशिक

                  ड्राइवर ने कहा था कि बहुत लम्बी कतार होती है तो हमने ऑनलाइन ही 200 रूपये वाला पास बुक कर रखा था। यहाँ पहुँचते ही गाइड के नाम पर दलाल जैसे लोग मिलेंगे। पहली बार यहाँ आये थे, गाड़ी के साथ एक गाइड लग गया। बोला गाड़ी सड़क पर रखनी होगी सौ रूपये लगेंगे, अंदर 50 में लगवा दूंगा और गाइड भी कर दूंगा। हम उसकी बातों में आ गए। गाड़ी तो उसने लगवा दी पर एक दुकान में जूते रखवाए और प्रसाद के नाम पर चादर मिठाई वगैरह लगा कर 950 के बिल बना दिए। दूकान में ही सबके फ़ोन रखवाए। एक छोटा पैकेट हमें दिया कि साईं बाबा के पास इसे टच करवा लेना। दूसरा बड़ा वाला जिसमें चादर थे उसने एक लड़के से भिजवा दिया कि यह इसकी पूजा करवा कर ले आएगा। किन्तु बहार आने तक हमने उसे नहीं देखा कि वह गया भी या नहीं। पर लौटते समय दुकान से हमे दे दिया गया। 

रामकुंड, पंचवटी के गाँधी तालाब में स्पीड बोटिंग

                बताया गया कि सीनियर सिटीजन का स्पेशल प्रवेश द्वार है जिसमें बिना पास के ही आधार कार्ड दिखा कर एक अटेंडेंट के साथ जा सकते हैं, जल्दी दर्शन हो जायेगा। पर हम में से सिर्फ एक ही सीनियर सिटीजन थे और कुल आदमी चार। यद्यपि हमारे पास स्पेशल पास थे, पर गाइड ने कहा कि यह बोलना कि एक आदमी को चलने में दिक्कत है। तो सीनियर सिटीजन के एंट्री गेट पर हमने जा कर बोला कि एक सीनियर सिटीजन हैं,  एक को चलने में प्रॉब्लम है और हमारे पास स्पेशल पास भी है। उसने कहा चलने में दिक्कत है तो गेट नंबर तीन से जाओ क्योंकि इधर से सीढ़ी चढ़नी पड़ेगी। अब हमलोग घूम कर तीन नंबर गेट से गए। चलते हुए हमलोग जब दर्शन हॉल से पहले पहुंचे तो आगे लगभग 40 व्यक्ति कतार में होंगे। साईं बाबा की संगमरमर की बड़ी सी सुन्दर प्रतिमा के सामने दो सेवादार बैठे थे जो दर्शनार्थियों की दी गयी वस्तुओं को बाबा के पैरों के सामने छुआ कर वापस कर रहे थे। हमने देखा, एक महिला ने अपने दुधमुहे बच्चे को भी दिया जिसे बाबा के पैरों के सामने रखकर वापस किया गया। 

शिरडी के साईं मंदिर के बाहर के प्रवेश-द्वार

         अपनी बारी आने पर हमलोग भी दर्शन करते हुए माथा टेका और बाहर निकल आये। चूँकि यहाँ मोबाइल नहीं लाने दिया जाता, (हमलोग अपना मोबाइल दूकान में ही जमा कर आये थे) यहाँ अंदर कोई फोटो न ले सके। निकास द्वार से निकल कर परिसर में आते समय सभी दर्शनार्थियों को एक -एक प्रसाद का पैकेट दिया जा रहा था। जिसे ले कर हमने खाया। परिसर में गणेश और शनि का भी एक एक छोटा मंदिर भी है। इस प्रकार दर्शन कर हमलोग परिसर से बाहर निकले, दुकान से जूते, चप्पल, मोबाइल और प्रसाद आदि ले कर भोजन करने जाना उचित समझा क्योंकि अब भूख लगने लगी थी। उस दुकान के अपोजिट ही एक बढ़िया रेस्टॉरेंट था। तो हम सभी ने वहाँ पर खाना खाया। फिर अपने गंतव्य श्रीघृष्णेश्वर धाम के लिए निकल पड़े। 

        (अगले पोस्ट में श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन-पूजन यात्रा)      

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Friday, December 6, 2024

श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग यात्रा

रात्रि में श्रीत्रयम्बकेश्वर मंदिर



     जैसा कि मैं पिछले ब्लॉग में महाराष्ट्र में चार ज्योतिर्लिङ्ग, शिरडी एवं शनि-सिंगणापुर की यात्रा का कार्यक्रम (Itinerary) लिख चुका हूँ, उसी के अनुरूप हमारी पहली यात्रा श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के दर्शन पूजन हेतु होनी थी। विमान से छत्रपति शिवजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुँच कर बहार निकलते-निकलते दिन के डेढ़ बज चुके थे। ऑनलाइन राउंड ट्रिप के लिए बुक किये हुए कैब को ढूंढकर सीधे हमलोग नाशिक जाने वाले रोड पर निकले क्योंकि हमारा लक्ष्य था त्रिम्बक पहुँचना जो नाशिक से लगभग १५ किलोमीटर पहले है। यहीं पर श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग विराजमान हैं। मुंबई शहर के भीड़ और आगे घाटियों से बढ़ते हुए हमलोग Ertiga टैक्सी में बढ़े जा रहे थे और ज्यों ज्यों समय बीत रहा था हमें जोर की भूख लगनी शुरू हो गयी। परन्तु कोई ढंग का हिन्दू होटल नजर नहीं आ रहा था। लगभग साढ़े चार बजे हमें एक ढंग का होटल दिखा और हमलोग हमलोग वहाँ खाने रुके। शायद सिद्धू होटल नाम था। खाना बढ़िया था। खा कर जब आगे बढ़े तो फिर कई अच्छे होटल दिखने लगे। ड्राइवर कोल्हापुर का रहने वाला था और कम बोलता था। आजकल कहीं जाने के लिए ड्राइवर्स को किसी से रास्ता पूछना नहीं पड़ता बल्कि गूगल मैप से शॉर्टेस्ट समय वाला रास्ता खोज लेते हैं। उसने भी पूरे ट्रिप में मैप खोल कर फोन को गोद में ही रखा। 

     हमलोग त्रिम्बक लगभग आठ बजे शाम में पहुँचे। रविवार का दिन था, भीड़ थी यहाँ। हमने मंदिर के पास देखकर जो होटल लिया था वह था होटल साईं यात्री। मैप देख कर ड्राइवर गाड़ी को होटल के सामने लाया और भीड़ देख कर बोला कि सबेरे गाड़ी यहाँ तक न आ पायेगी, इधर नहीं आने देता, गाड़ी पिछले चौक पर खड़ा करूँगा। मैं सोच में पड़ गया कि इतना सारा सामान होटल से गाडी तक कैसे जायेगा ! सामान उतारने से पहले मैं होटल के रिसेप्शन पर गया ताकि रूम कन्फर्म कर सकूँ जो ऑनलाइन बुक किया था। उन्होंने रूम कन्फर्म किया और पूछा कि गाड़ी से आये हैं ? मैंने कहा हाँ। उसने कहा कि गाड़ी को होटल के दूसरी तरफ लायें क्योंकि होटल का फ्रंट पैरेलल सड़क में दूसरी तरफ था, यह बैक साइड था होटल का। हमलोग रिसेप्शन पर गए, रजिस्टर में नाम वगैरह भरा, तबतक ड्राइवर गाड़ी को होटल के सामने घुमा कर ला चुका था। वहां से सामन उतार कर लिफ्ट तक लाना आसान था। सामान उतार कर होटल स्टाफ ने गाड़ी को सामने ही पार्क करा दिया। 

          हमलोग रूम पर जा कर फ्रेश हुए। और मंदिर जा कर संध्या दर्शन करने का सोचा। साथ ही सबेरे की पूजा के लिए किसी पंडित जी से भी बात करने सोची थी। होटल वाले ने ही बताया कि जल्दी जाओ, नौ बजे मन्दिर का पट बंद हो जाता है। मंदिर परिसर का मुख्य द्वार जो उत्तरी द्वार भी है, से सामान्य जनों को नहीं जाने दिया जाता। सामान्य प्रवेश पूर्वी द्वार से होता है जिधर पूछते हमलोग चले। गलियों में फूल दुकान वाले फूल लेने और दुकान में चप्पल रखने बुला रहे थे। एक दुकान अंदर चप्पल रख कर और एक दोना फूल लेकर हमलोग पूर्वी द्वार से घुसे और लाइन में लगने आगे जाते दर्शनार्थियों के पीछे - पीछे चले। जब लाइन में लगे तो पाया कि हमलोग क्यू -काम्प्लेक्स (लाइन में रखने के लिए बने कमरों) में खड़े हैं। भक्तों को लाइन में रखने के लिए हॉल में स्टील की रेलिंग्स बनी थी जिसमें बीच -बीच में बैठने के लिए बेंच भी थे। धीरे -धीरे लाइन बढ़ रही थी। इस हॉल को लाइन में पूरा चल कर हमलोग दूसरे इसी तरह के हॉल में पहुँचे। पता लगा कि हमलोगों को ऐसे पाँच हॉल पार कर मन्दिर तक पहुँचना था। दो हॉल को पार करने में ही एक घंटे पार गए। दर्शन बंद होने का डर सता रहा था, पर एक सिक्यूरिटी वाले ने बोला कि जो भी लाइन में हैं उन्हें दर्शन करा कर ही पट बंद होगा। 

        नमः शिवाय जपते -जपते भी लाइन में खड़े बोर हो रहे थे। जब अन्तिम हॉल से निकले तो साढ़े दस बज चुके थे। मंदिर में प्रवेश से पहले तीन लाइनें बनायीं गयीं थी। ये एक छोटे रूम के सामने थीं। हमलोग बीच की लाइन से घुसे जबकि कुछ लोग दोनों साइड से रूम के बहार किनारे से बढ़े। हमलोग जब रूम में घुसे तो पाया कि यहाँ एक नंदी जी की मूर्ती थी। जो साइड से गए उन्होंने नंदी जी को बाईपास कर दिया था। यहाँ से निकल हमलोग मुख्य मंदिर में पूरब ओर से प्रवेश किये। घुसते ही एक हॉल था जिसके सामने गर्भ -गृह था। दर्शन के लिए हॉल के दाहिने किनारे से गर्भ -गृह तक लाइन की व्यवस्था थी। हॉल के बीच में फर्श पर एक मार्बल का कछुआ बना था। 

           जब हमलोग दर्शन के लिए गर्भ-गृह के सामने पहुंचे तो पाया कि श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग सब शिवलिंगों से अलग हैं। इनके बारे में मंदिर में प्रवेश के समय एक बोर्ड पर भी भक्तों को बताया गया है। जहाँ सामान्य शिवलिंग सतह से ऊँचे उठे होते हैं, श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग पत्थर में एक लगभग दस इंच व्यास के गड्ढ़े में तीन कोनों पर छोटे -छोटे तीन लिंगों के रूप में विराजमान हैं। इन तीनों को महेश, विष्णु और ब्रह्मा माना जाता है। पुजारी इन्हें स्पर्श करते समय एक साथ अंगूठे, तर्जनी एवं कनिष्ठ उँगलियों से छूते हैं। यद्यपि गर्भ-गृह के दरवाजे पर दर्शन करने के स्थान से श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग थोड़े नीचे लेवल पर हैं फिर भी सीधे देखने पर पूरा नजर नहीं आते, अतः मन्दिर प्रशासन द्वारा सामने की दीवार पर एक बड़ा सा आइना तिरछा कर इस प्रकार लगाया गया है कि दर्शनार्थी को उसमें श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्पष्ट नजर आये। हमलोगों ने दर्शन कर सामने हॉल में कुछ देर बैठने का निर्णय किया। सामने लगे CCTV स्क्रीन पर गर्भ-गृह में श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग का थोड़ी देर और दर्शन किया। फिर सबेरे की स्पर्श पूजा हेतु वहाँ के एक पंडितजी से पूछा तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि यहाँ दर्शनार्थियों को गर्भ-गृह में जाने की अनुमति नहीं है सिर्फ कुछ पुजारी ही जा सकते हैं। स्पर्श पूजा नहीं कर सकते। 

      मन्दिर के पट बंद होने का समय हो रहा था। वहाँ से निकल परिसर के मुख्य द्वार से बहार आये। लगभग 11 बजने वाले थे। भूख भी लग रही थी, पर पहले फ़ूल वाले का प्लास्टिक डलिया लौटना था और अपने चप्पल भी लेने थे। दूकान जा कर देखा तो पाया कि हमारे चप्पल बंद शटर के सामने थे। हमने दूकान का डलिया वहीं डेस्क के नीचे रखा और चप्पल ले कर होटल की तरफ चले। होटल  के नीचे ही खाने के दो दूकान खुले थे। एक में खा कर कमरे पर आये। सबेरे पूजा कर आगे भी निकलना था, सो कतार में ३ घंटे समय नहीं दे सकते थे। अतः दो-दो सौ रूपये का पास ऑनलाइन ही कटा लिया।  

     सबेरे तैयार हो कर 5:45 बजे हमलोग उत्तर द्वार पर पहुंचे क्योंकि पास वाले का प्रवेश इधर से ही होता है। वहाँ पर मौजूद सुरक्षाकर्मी द्वारा बताया गया कि पास वाले की एंट्री 6:00 बजे प्रातः से शुरू होती है। समय बिताने के लिए हमलोगों ने पूजा के लिए फूल ख़रीदे और द्वार के पास ही फोटो -वीडियो बनाने लगे। समय पर द्वार से प्रवेश कर हमलोग मंदिर के पास पहुँचे। मन्दिर का जो प्रवेश हमारे सामने था उससे हमलोग सीधे मंदिर के हॉल में उस जगह पहुँचे जहाँ से दर्शनार्थियों की कतार आगे बढ़ रही थी और उस स्थान से लगभग 15 लोग आगे थे। हमलोग उसी स्थान पर लाइन में घुसे। तभी हॉल के अंदर के एक पुजारी ने अभिषेक पूजा कराने के बारे में पूछा। जलाभिषेक 1100/-, पंचामृत अभिषेक 2500/- से लेकर अन्य पूजा 5100/- से अधिक के बताया। हमलोगों ने 2500/- वाली पूजा कराने का बोला, तब उन्होंने हमें हॉल के अंदर बुला लिया जहाँ कई और पुजारी भी भक्तों को बिठाकर पूजा करा रहे थे। हमें भी 15 मिनट बिठा कर विधि पूर्वक संकल्प पूजा इत्यादि कराया, फिर वे संकल्पित जल को श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के अभिषेक हेतु ले कर गर्भ-गृह में प्रवेश किये और हमें बैठे-बैठे ही टीo वीo पर उन्हें अभिषेक करते हुए देखने को कहा। स्क्रीन पर गर्भ-गृह का दृश्य लगातार आ रहा था। हमलोगों ने संकल्पित जल-आदि से अभिषेक करते हुए देखा। फिर पूजा समाप्त कर सीधे दर्शन कराया। इसके बाद हमलोग निकास द्वार से मुख्य मंदिर से बहार निकले। मंदिर परिसर में एक बड़ा सा त्रिशूल है जिसके साथ लोग फोटो भी खिचवाते हैं। एक चबूतरे पर हनुमान जी का भी पूजन स्थल है। परिसर में हमलोग लगभग 15 मिनट तक घूमे और फोटो खिचवाया। मंदिर के बाहर उत्तर-पूर्वी कोने के पास एक श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रतिकृति एवं एक सामान्य शिवलिंग भी रखा गया है। यहाँ आप स्पर्श कर पूजा भी कर सकते हैं। 

मंदिर के बाहर श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
की प्रतिकृति 

              मंदिर से निकलने के बाद हमने आस-पास स्थित कुंडों को देखने का सोचा। जो सबसे प्रसिद्ध कुंड है वह है कुशावर्त कुण्ड जहाँ स्नान का बहुत महत्व है। जब नाशिक में कुम्भ लगता है तो संत लोग पहले यहीं से स्नान शुरू करते हैं। हमारी इच्छा थी कि दिन में त्रिम्बक पहुँचने पर संध्या को पहले यहाँ स्नान करते किन्तु कल हमलोग काफी देर से पहुँचे थे तो स्नान न कर पाये। अतः आज पूजा के बाद यहाँ आ कर कुंड का जल अपने ऊपर छिड़का। मैप पर देखते हुए हमलोग बढे थे। एक इंद्र-कुंड है पर एक गंदे तालाब की तरह। एक और बड़ा तालाब देखा जो गौतम तालाब है। इसमें एक जगह काफी मछलियाँ उछाल रही थीं। मैप पर एक अमृत कुण्ड दिख रहा था जो देखने में गौतमी नदी का उद्गम प्रतीत हो रहा था। जब हमलोग वहाँ पहुंचे तो कोई कुण्ड न था, इसके स्थान पर एक गायत्री माता मंदिर था। बगल से जो गौतमी नदी थी वह एक बड़े पक्के नाले की तरह था जिसमें पानी नाम मात्र ही था। आगे बढ़ने पर अहिल्या-गोदावरी संगम के पास तर्पण करने का स्थान था जहाँ कुछ लोग दिखाई दिए। यह मंदिर के पीछेवाला हिस्सा था। पूछते हुए हमलोग पूर्वी द्वार की तरफ से घूम कर मुख्य द्वार के सामने आये जहाँ सभी ने नाश्ता किया और कुछ सामान की खरीददारी कर होटल आये। होटल से चेक-आउट कर हमलोग अपने अगले पड़ाव पंचवटी, नाशिक की ओर बढ़ चले। 

(पंचवटी, नाशिक और साईं मंदिर शिरडी की यात्रा अगले ब्लॉग में)

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