Thursday, October 2, 2025

बनारस और अयोध्या की यात्रा

बनारस के इस नंदी जी वाले चौराहे पर आ कर आप
आश्वस्त होते हैं कि सही गालियों से बाबा के दरवाजे पर जा रहे हैं


              अगली धार्मिक यात्रा हमने अपनी कार से ही करने की सोची। और इसके लिए हमने चुना बनारस और अयोध्या को। यद्यपि हमारे घर से बनारस की दूरी लगभग 700 किलोमीटर है और 14 घण्टे लगते हैं किन्तु हम चार लोगों में से दो ड्राइविंग कर लेते हैं। आधी-आधी दूरी तक जब दोनों ने ड्राइविंग की तो सुबह के चले हमलोग लगभग नौ बजे रात को बनारस के रेडिसन होटल पहुंचे जहाँ हमारा दो रातों के लिए दो कमरे बुक थे। चूँकि हमारा ड्राइवर नहीं था अतः उन्होंने हमें कार कैंपस के अंदर ही पार्क करने दिया। जब तक हमें रूम दिया गया, हमलोग रिसेप्शन के सामने बड़े हॉल में बैठे जो बहुत प्रभावशाली था। 
         दो कमरे हमें अगल बगल में दिए गए जो अंदर से जुड़े हुए थे। कमरे बड़े और साफ़ सुथरे थे। चादर, तौलिये सभी बिलकुल साफ़। वाशरूम भी अच्छे थे जिसमें नहाने का भाग ट्रांसपेरेंट ग्लास से घिरे थे। हमलोग लम्बी यात्रा से थके थे तो जल्दी से फ्रेश हुए। दिन का भोजन तो हमने रास्ते में किया था पर रात के भोजन की जरुरत थी। पूछ ताछ किया तो बताया गया कि खाना रूम में सर्व हो जायेगा यदि होटल से आर्डर किया। यदि बहार से आर्डर करेंगे तो लाने के किये नीचे जाना होगा क्योंकि बाहरी को रूम में आने नहीं देते।फाइव स्टार होटल था तो इनका भोजन महंगा था, पर अभी नीचे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। अतः इसी होटल से आर्डर किया। खाना खा कर हमलोग सो गए। 
               सबेरे उठ कर तैयार हो कर हमें निकलते नौ बज गए। यद्यपि हमारी कार थी पर शहर में घूमने के लिए ऑटो लेना उचित समझा। कहा जाता है कि बनारस में पहले काल भैरव बाबा का दर्शन करना अच्छा है जिन्हें यहाँ का नगर कोतवाल कहा जाता है किन्तु ऑटो वाले ने कहा कि देर हो गयी है, यदि पहले काल भैरव बाबा का दर्शन करेंगे तो शायद बाबा विश्वनाथ के कपाट बंद हो जाएँ। अतः पहले बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए ही चलें। हमने उसकी बात मान ली। ऑटो वाले ने एक जगह ला कर रोक दिया और कहा कि आगे ऑटो जाने पर प्रतिबन्ध है। थोड़ी दूर है पैदल या रिक्शा से चले जाएँ। बादल से दिन ढँका था तो पैदल ही जाने की सोची। रास्ते में एक दो जगह फुहार आयी तो दुकान के आगे रुकते। एक जगह तो वर्षा ही होने लगी। जहाँ हमलोग दुकान के आगे रुके वहाँ सड़क पर वर्षा के छींटे से पैंट का निचला हिस्सा भींग गया। हमें लगा कि रिक्शा ले लेना चाहिए था। अब सड़क से निकल कर गलियों में घुसे तो समझ ही न आये कि किधर जाएँ। लोगों से पूछें तो अलग अलग गली बतायें। एक गली में फूल वाला फूल लेने बुलाने लगा। उसने कहा कि कोई वी. आई. पी. पास लेने की जरुरत नहीं है। ज्यादा भीड़ नहीं है, सामने वाली गली से चले जाइये। हमने कहा कि भाई जरा हमें रास्ता तो दिखा दो। वह भला मानस तैयार हो गया और हमें मंदिर के पास तक ले आया। एंट्री से पहले एक दुकान पर चप्पल और उनके लाकर में मोबाइल रख कर आगे बढ़े। अन्नपूर्णा माता मंदिर के प्रवेश द्वार के बाद ही बाबा विश्वनाथ मंदिर के लिए प्रवेश होता है। जल्दी से जा कर लाइन में लगे। दो लाइन थे, प्रत्येक में लगभग साठ-सत्तर लोग होंगे आगे। आधे घंटे बाद बाबा के ज्योतिर्लिंग के दर्शन हुए। निकल कर आँगन में आये तो एक भगवती का मंदिर, ज्ञान वापी कुआँ और बड़े नंदी महाराज के दर्शन किये जो बाहर विवादित मस्जिद की तरफ मुँह किये थे।  प्रांगण के अन्य मूर्तियों और शिवलिंगों के दर्शन कर कुछ देर बैठे फिर बहार निकले। निकलते ही अन्नपूर्णा माता मंदिर में गए, किन्तु पट बंद हो चुका था। बहार से ही प्रणाम किया। इस मंदिर के एक कोने में कुछ लोग नीचे झांक कर प्रणाम कर रहे थे। वहां उपस्थित पुजारी ने बताया की नीचे शिवलिंग है जिनका दर्शन किया जाता है। 
             बहार आ कर दूकान से हमने अपने फोन और चप्पल लिए और निकले। बहुत भूख लग रही थी अतः एक दूकान में नाश्ता किया और आगे दूसरी दुकान में चाय पी। अब फिर लगभग एक किलोमीटर पैदल या रिक्शा से सड़क पर जाना था। कुछ दूर जाने पर एक आदमी ने ऑटो से ले जाने की बात की। हमने पूछा कि यहाँ तो ऑटो आती नहीं कैसे ले जाओगे ? उसने कहा ऑटो थोड़ी दूर पर है आप वहां खड़ा रहना, ऑटो निकल कर आऊंगा। हमने मान लिया। चूँकि काल भैरव मंदिर भी अभी बंद हो चुका होगा अतः हमने विंध्यवासिनी देवी के दर्शन करना सोचा। गूगल पर एक ट्रेवल एजेंट से बात की, उसने एक जगह पर आने को कहा जहाँ कार वाला हमें उठाता। तो ऑटो वाले से हमने वहीँ ले जाने को कहा। वहाँ से कार ले कर हमलोग विंध्याचल चले जहाँ माता विन्ध्यवासिनी विराजीं हैं। ड्राइवर ने पार्किंग के पास हमें उतारा जहाँ से हमलोग मंदिर की ओर बढ़े। मैं लगभग बीस वर्षों के बाद यहाँ आ रहा था। बिलकुल बदल चुका था तब से। अच्छे रास्ते बन चुके हैं। एक पंडित जी साथ लग गए जिन्होंने ठीक मंदिर के बगल के दुकान से प्रसाद-फूल खरीदवाए और हमे दर्शन करवाया। सड़क के पास आकर देखा कई भोजनालय हैं। एक में जाकर खाना खाया और फिर कार से हमलोग कालीखोह की तरफ निकले। यह एक पहाड़ के नीचे में बना मंदिर है। जहाँ तक गाड़ी जा सकती थी वहाँ गाड़ी खड़ी कर हमलोग बढ़े।  
 
माता विंध्यवासिनी देवी मंदिर का प्रवेश द्वार

              मंदिर तक जाने के लिए करीब डेढ़ सौ कदम चलना पड़ता है। दोनों तरफ दुकानें हैं। एक पेड़ पर हनुमान जी की वेश-भूषा बनाये एक आदमी बैठा था जिसे कुछ लोग पैसे दे रहे थे। एक दूकान वाले ने अंदर चढ़ने वाले प्रसाद दिए। दो प्रमुख मूर्तियां हैं काली की। पहली का दर्शन खिड़की से हुआ, जिनके लिए नियत प्रसाद हमने चढ़ाये। अगली मूर्ती काली की ऐसी थी जिनका मुँह बड़ा सा खोह जैसा खुला था। पुजारी के निर्देश के अनुसार यहाँ का चढ़ने वाला प्रसाद हमने माता के खुले मुंह में ही अर्पित किये। यहाँ से निकल कर कर हमें पीछे के बरामदे से निकलना था जहाँ कुछ और भी देवताओं की मूर्तियां थीं। आँगन में एक कूप था जिसका जल निकाल कर एक महिला पिला रही थी। यहाँ से निकल कर पिछले हिस्से में गए जहाँ भैरो बाबा का मंदिर और हवन कुंड था। वहाँ के लिए प्रसाद दे कर हमलोग मंदिर से बाहर आये। 
काली खोह मंदिर के प्रांगण में पवित्र कूप जिसका जल
ये महिला भक्तों को पिला रही थी


       अगले मंदिर अष्टभुजा काली के लिए हमलोग कार से निकले। यह मंदिर इसी पहाड़ के ऊपर है जहाँ पैदल जाने के लिए भैरो बाबा मंदिर के बगल से सीढ़ियाँ हैं।
काली खोह मंदिर के पिछले भाग में भैरव बाबा का मंदिर


         कार से जाने का सड़क भी है और रोप वे भी। हमलोग कार से पहाड़ के ऊपर पहुँचे। यहाँ कुछ दुकानें थीं और कार पार्क किये गए थे। हमने सोचा था कि मंदिर बस पहाड़ के ऊपर ही होगा, किन्तु पता चला कि अब सीढ़ियों से उतर कर मंदिर तक जाना होगा। सीढ़ियाँ ऊँची थीं और दोनों तरफ दुकाने थीं। रास्ते में में दर्शन कराने के नाम पर पंडित भी पीछे लगे। अच्छे खासे नीचे जा कर माँ अष्टभुजा का दर्शन किया। वापस चढ़ाई में तो दम फूलने लगा। बीच में रुक कर चाय पी। ऊपर आ कर पार्किंग के पास से नीचे गंगाजी का बहुत सुन्दर दृश्य था। हमने कुछ फोटो खींचे और वापस कार से बनारस निकले। 
अष्टभुजा पहाड़ी के उपर से गंगाजी का विहंगम दृश्य


       रास्ते में पत्नी ने बनारसी साड़ी की पूछ ताछ की तो उसने हमें एक दूकान में बैठाया। दाम बहुत ज्यादा लगे तो तो हमलोग निकल आये और ड्राइवर से कहा कि काल भैरव मंदिर जाना है। उसने कहा कि गाड़ी उधर नहीं जाएगी अतः एक इ-रिक्शा में हमें बिठाया, ड्राइवर का पेमेंट कर उसे विदा किया। रिकशा वाले ने जहाँ से उतारा वहाँ से पैदल हमलोग काल भैरव मंदिर गये और दर्शन किया। वहाँ से निकल कर हमने एक इ-रिक्शा किया और एक अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाया। खाने के बाद सबने सामने की पान दूकान में बनारसी पान का मजा लिया और ऑटो कर वापस होटल आये और रात्रि विश्राम किया।  
मिर्जापुर में पुल से सूर्यास्त का दृश्य


               अगली सुबह हमें दो काम करने थे -एक घर के लिए गंगाजल लेना था और बाबा मंदिर के पास प्रसिद्ध कचौरी नाश्ता करना था। होटल के बाहर ऑटोवाले से बात किया तो उसने कहा कि इधर के घाटों तक ऑटो जाना संभव नहीं है तो थोड़ा दूर जाकर कम भीड़ वाले घाट पर ले चलूँगा। उसने ऐसा ही किया पर जाने में टाइम लगा। घाट के पास ऑटो रोका और हमलोग गलियों से हो कर निचे घाट तक पहुँचे। बहुत सारी नावें थीं वहाँ। हमने जल भरा, वापस ऑटो के पास आये तो एक बड़े वट वृक्ष के नीचे पुराना मंदिर था जिसमें जल्दी से पूजा कर ऑटो में बैठे। वहाँ से हमलोग विश्वनाथ मंदिर के पास आये और खोज कर कचौड़ी वाली दूकान पर गए। भीड़ थी। अंदर बैठने की जगह पूरी भरी थी। बाहर ही खड़े खड़े खाया जबकि धूप बहुत कड़ी हो चली थी। भूख भी लगी थी। नाश्ता बहुत स्वादिष्ट था। वहाँ से निकल कर बगल के चौराहे पर ठंडई पी। और एक ऑटो वाले से बात कर होटल के लिए निकले। उसने गलियों से ऑटो को निकाला पर भीड़ भरी सँकरी गालियाँ, ट्रैफिक जाम और गर्मी से हालत पतली थी। होटल वाले से थोड़ा लेट चेक आउट का परमिशन लिया था पर वहाँ पहुँचते पहुँचते ज्यादा ही लेट हो गया। खैर, उसने देर होने का उलाहना दिया पर पैसे वगैरह नहीं मांगे। जल्दी से चेक आउट कर अपना सामान अपने कार में रखा और हम चारों अयोध्या जी के लिए निकल पड़े।   
सरयू आरती के घाट पर सूर्यास्त का दृश्य


         रास्ता बढ़िया था। फोर लेन सड़क थी। गाड़ी चलाने में भी मजा आया और हमलोग शाम पाँच बजे के करीब पहले से बुक किये गए होटल क्रिनॉक्सों (Hotel Krinoscco) पहुँच गए। यह भी बढ़िया होटल था पर रैडिसन से कुछ कमतर। रूम साइज भी कुछ छोटा था तुलना में। जो रूम में इलेक्ट्रिक केतली राखी थी उसका ढक्कन टूटा था। रिसेप्शन के सामने एक ट्रेवल डेस्क था जिसके मैडम ने अयोध्या घूमने के लिए पैकेज टूर की जानकारी दी और अपना कार्ड दिया। रूम में जा कर चाय पी और शाम के बचे समय में कुछ अयोध्या दर्शन करने की सोची। होटल के बहार एक ऑटो ले कर चले। ऑटो वाला एक पुराना कार सेवक था। उसने कई बातें बताईं और हमें सरयू जी के उस घाट के पास ला कर छोड़ा जहाँ सरयू आरती होती है। धीरे धीरे भीड़ बढ़ी। कुछ ठेले वाले भी खाने का सामान बेच रहे थे। शाम गहराते ही सरयू आरती प्रारम्भ हुई। बढ़िया भक्तिमय माहौल था। आरती के बाद पैदल ही हमलोग राम की पैड़ी के बगल से निकल कर सड़क पर आये। भूख लग रही थी तो एक ऑटो वाले के सलाह पर उडुपी नाम वाले एक रेस्टोरेंट में गए जिसके बारे में उसने बोला कि आस पास में यही एक ढंग का होटल है। साधारण भोजन था। अब हमने सोचा कि यहाँ आये हैं तो कम से कम राम जन्मभूमि मंदिर के बाहर से ही दर्शन हों। ऑटो से यहाँ आये। सड़क के दोनों तरफ दुकानों की भरमार थी और उसी तरह फुटपाथ पर भी। राम जन्मभूमि मंदिर परिसर का प्रवेश द्वार भी भव्य और जगमग था। सड़क से तो मंदिर दिखाई नहीं दिया। बस शेड वाली कतार की लाइन थी जो लगभग पौन किलोमीटर तक जाती थी राम मंदिर के पास। अभी तो इतनी लम्बी लाइन लग नहीं सकते थे तो कुछ फोटो खींच कर अगले सुबह दर्शन करने की सोची और होटल लौटे।
 
सरयू जी की आरती

       पता लगा कि विशेष पास के लिए सबेरे टिकट मिलता है पर लिमिटेड संख्या में। हमें रामजी का दर्शन कर अयोध्या के अन्य मंदिर और जगह भी जाने थे। तो ट्रेवल डेस्क वाली मैडम याद आयी। उससे कल के लिए गाड़ी मांगे जो सुबह सात बजे आता और सबसे पहले हमें सरयू जी का स्नान कराता। अगली सुबह हमलोग सात बजे तैयार हो कर गाडी से निकले। रामजी के दर्शन के बारे में ड्राइवर ने बताया कि विशेष पास के चक्कर में ये लोग प्रति व्यक्ति हज़ार रूपये तक ले लेंगे। सबसे अच्छा है आरती की टिकट ले लो जो फ्री मिलती है नौ बजे से। उसमें थोड़ी देर खड़े हो कर बिना धक्का मुक्की के दर्शन आरती देख सकते हो।  
अयोध्या जी में लता मंगेशकर चौंक


           नहाने के लिए राम की पैड़ी में सरयू जी से कुछ समय के लिए बड़े बड़े पंप से पानी फेंके जाते हैं। ड्राइवर ने कहा कि पंप चल रहा होगा तभी नहाना ठीक होगा। जब हमलोग पहुंचे तो पंप नहीं चल रहा था और पता चला कि घंटे दो घंटे बाद चलेगा। मजबूरन हमलोग ठीक बगल के ही सरयू घाट पर गए जहाँ अभी लोग स्नान कर रहे थे। वहीँ हमने स्नान किया और चल पड़े श्री राम मंदिर की ओर। मंदिर गेट के पास काउंटरों में से एक में कुछ लोग लाइन में लगे थे, पता चला कि यहाँ मंगला आरती की टिकट मिलेगी। यह आरती सुबह चार बजे ही होती है। स्पष्ट था कि उन्हें अगले दिन सबेरे दर्शन होता। हमे आज ही दर्शन करना था क्योंकि अगले दिन सबेरे ही हमें वापस घर के लिए निकलना था। एक दूसरे काउंटर पर शयन आरती की टिकट कटनी थी। हम इसी में लगे। आधे घंटे से ज्यादा प्रतीक्षा के बाद काउंटर खुला जहाँ आधार कार्ड के साथ एक पर्ची भर कर देना होता था। निःशुल्क यह टिकट हम चारों को मिला और साढ़े आठ बजे संध्या को विशेष गेट पर आने को बोला गया। 
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर परिसर का मुख्य गेट, अयोध्या


               ड्राइवर, जो हमारा गाइड बन चुका था, ने बोला कि राम मंदिर दर्शन में तो देर लगती है तब तक आपलोग अन्य विशेष मंदिरों में दर्शन कर लो, क्योंकि देर होने पर ये बंद हो जायेंगे। राम मंदिर के मुख्य गेट से दाहिनी गली से ले कर वह हमें हनुमान गाढ़ी मंदिर के पास लाया और एक लड्डू-पेड़े वाले दूकान में चप्पलें रखवायीं। उसी दूकान से प्रसाद ख़रीदे और हनुमान गढ़ी मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। यह मंदिर कुछ ऊंचाई पर है। आस पास बहुत सारे बन्दर थे। उन्हें भक्त जन प्रसाद दे रहे थे किन्तु वे कितना खायें। उनके मन भरे थे और प्रसाद नहीं ले रहे थे। अंदर खासी भीड़ थी। लाइन में लग कर हमने हनुमान जी के दर्शन किये। दूकान में आकर हमने कुछ मीठा खा कर पानी पिया क्योंकि सबेरे से हमने पूजा को ध्यान में रख कुछ नहीं लिया था। वहाँ से आगे बढ़े अगले मंदिर के लिए। 
सरयूजी के स्नान घाट का प्रभात दृश्य


             अगला मंदिर था दशरथ महल। चक्रवर्ती महाराज दशरथ का भव्य महल है। प्रवेश द्वार के अंदर आँगन जैसा है जिसके बाद एक और दीवार है। इस आँगन में दाहिनी ओर संकटमोचन मंदिर है और बगल में चप्पल स्टैंड। चप्पल उतार कर हमलोग अंदर वाले आँगन में गए। सामने भवन में राम जी के सभी भाइयों सहित विग्रह है। बायीं दीवार पर एक बड़ी सी पेंटिंग है जिसमे राजा दशरथ चारों पुत्रों सहित विराजमान हैं। हमलोगों ने दर्शन कर फोटो वगैरह खींचे। फिर बाहर आँगन में आकर संकटमोचन हनुमानजी के दर्शंनकर अपने अपने चप्पल लिए और बाहर निकले। धूप काफी तीखी थी। हमलोग अगले मन्दिर कनक भवन की ओर चले। यह भवन सीता-राम जी का निवास था। 
हनुमान गढ़ी मंदिर, अयोध्या


            यह एक सुन्दर भवन है। सामने एक फव्वारा बना है जिसमे पीले वस्त्रों में एक मूर्ति के सर पर डाला जैसा रखा है। प्रवेश तक जाने के लिए बीस सीढ़ियाँ चढ़नी होती है। सीढ़ियों के नीचे ही हमने चप्पल खोले और चढ़े। धूप में पत्थरों की सीढ़ियाँ गर्म हो चली थीं। अंदर एक बड़ा सा आँगन था जिसके चारों तरफ दो मंजिले भवन थे। सामने वाले बारामदे के पास गर्भ गृह था जिसके बाहर सुन्दर नक्कासी है। मंदिर में सीता-राम जी की सफ़ेद मूर्तियाँ हैं। प्रणाम कर चारों तरफ घूमे और फोटो खींचे। फिर कुछ देर एक जगह बैठे। यहाँ से हमलोग निकले तो गलियों में बिक रहे पापड़ी चाट खाये। वापस श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के गेट तक आते अब किसी में हिम्मत न बची थी की श्रीराम जी के दर्शन के लिए घंटों लाइन में लगते। ड्राइवर ने कहा कि शयन आरती में ही दर्शन कर लेना क्योंकि अभी अयोध्या के अन्य स्थान पर भी जाना है। अभी होटल में जा के आराम कर लो फिर एक बजे निकलेंगे। होटल जाने से पहले हमलोगों को भोजन करना था। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का गेट जिस सड़क पर है वहाँ सामने खाने के लिए कई अच्छे रेस्टोरेंट हैं। हमने उडुपी रेस्टोरेंट में खाना खाया और वापस होटल में आ कर कुछ देर रेस्ट किया।  
दशरथ भवन, अयोध्या


                तय समय पर हमलोगों ने ड्राइवर को कॉल किया और लगभग डेढ़ बजे कार से निकले। पहला जो स्थान हमलोग गए वह था 'गुप्तार घाट' । यह सरयू नदी के किनारे ही एक घाट है। यहाँ पर नदी चौड़ी और भरा पूरा पानी था। कई नाव वाले थे। इस घाट की महत्ता यह है कि जब राजा रामचंद्र ने अपनी अवतार लीला पूर्ण की तो उन्होंने सारे अयोध्यावासियों के साथ इसी घाट पर जल-समाधि ले ली और लीला समाप्त की।
कनक भवन, अयोध्या जिसमें राजा रामचन्द्र रहते थे


            घाट के पास एक बहुत पुराना मंदिर भी है जहाँ राम-जानकी की प्रतिमा है। चरण पादुका मंदिर, नृसिंह मंदिर और हनुमान मंदिर भी यहाँ हैं। हमने वहाँ दर्शन किया और पंडित जी से कथा सुनी। मंदिर के बहार आ कर घाट के तरफ गए जहाँ बहुत सी नौकाएँ लगी थीं और नाव वाले बोटिंग के लिए पूछ रहे थे। अभी भी धूप तीखी थी इसलिए एक शेड वाली नौका हमने चुनी और बोटिंग पर गए। यह एक मोटर बोट थी। बोटिंग में अच्छा लगा। आधी नदी के बीच से घुमाकर लाया। बोटिंग से निकल कर हमलोग पुनः कार में आये और अगले मंदिर के लिए निकले।   
गुप्तार घाट, अयोध्या


            अगला मंदिर पहुँचने में लगभग एक घंटे लग गए जो सोहवाल क्षेत्र में नंदीग्राम में था। यह मंदिर था 'श्री भारत हनुमान मिलन मंदिर'।छोटा किन्तु सुन्दर मंदिर है। अंदर गर्भ गृह में भारत-हनुमान जी का गले मिलते संगमरमर की मूर्ति थी। एक और मूर्ति थी लव-कुश की जो अश्वमेध यज्ञ के घोड़े के साथ थी। उसी परिसर में गेट के पास ही एक दक्षिणमुखी प्राचीन श्री भारत गुफा भी है। गुफा द्वार के ठीक पहले ही एक कमरे में कुछ लोग राम-नाम संकीर्तन कर रहे थे। मेरी पत्नी ने भी पाँच मिनट वहां बैठ कर कीर्तन किया। फिर भरत-गुफा में गए जहाँ भरत जी की मूर्ति और राम जी की चरण पादुका के दर्शन हुए। जैसा कि हमलोग जानते हैं कि जब श्रीराम वन को गए तो भरतजी अयोध्या नहीं गए बल्कि श्रीराम-पादुका को यहीं नंदीग्राम में सिंहासन पर रख कर राज-काज देखते रहे। इस मंदिर परिसर से निकल कर हमलोग बगल के मंदिर परिसर में गए जहाँ लिखा था "योगिराज श्री भरत जी का प्राचीन मंदिर''। इस स्थान का नाम एक बोर्ड पर भरत कुंड लिखा था यद्यपि आसपास कोई कुंड नहीं मिला, किसी ने बताया की अब कुंड सूख गए सिर्फ नाम है। इसी बोर्ड पर लिखा है कि इस मंदिर की स्थापना महाराजा विक्रमादित्य द्वारा की गयी है तथा यहाँ श्रीराम चरण पादुका, भरत गुफा, राम-भरत मिलाप, बाण से गिरे हनुमान, नंदीश्वर महादेव, भरत हनुमान वट वृक्ष मिलन एवं श्रीकल्कि दरबार मंदिर हैं। मंदिर के सभी मूर्तियों के दर्शन किये। मंदिर की दीवार पर रामायण से सम्बंधित भित्तिचित्र भी हैं। 
गुप्तार घाट, अयोध्या का प्राचीन मंदिर


                अब हमें अगले मंदिर जाना था जो था सूर्य कुंड। वहां जाने में हमें लगभग आधे घंटे लगे। यह एक बड़ा सा तालाब है जिसके पास सुन्दर गार्डन और मंदिर है। इसका अच्छा डेवेलपमेंट किया गया है। बहार में कार पार्किंग की सुविधा है। टिकट लगता है जिसमें सूर्य कुंड के ऊपर लेज़र लाइट शो दिखाया जाता है।
बोटिंग करते हुए गुप्तार घाट का दृश्य


           टिकट ले कर अंदर गए जहाँ गार्डन था और रिवॉल्विंग सेल्फी स्टैंड वाले कई फोटोग्राफर थे। हमलोग अंदर सूर्यकुंड के पास गए और सूर्य मंदिर में प्रणाम किया। बताया गया कि लेज़र शो शाम साथ बजे से शुरू होता है जब सूर्यास्त हो जाता है। अभी बहुत समय था शो शुरू होने में, लगभग एक घंटे। 
श्री भारत-हनुमान मिलन मंदिर, नंदीग्राम, अयोध्या


        एक बार मन किया कि इतना वेट करने से अच्छा कि निकल चलें। पर जाते कहाँ, शयन आरती की तो नौ बजे से एंट्री थी। समय बिताने के लिए कुंड की सीढ़ियों पर बैठे और मछलियों को आटा खिलने लगे। उनका झुण्ड आटे की गोलियों पर झपटता था तो देखने में अच्छा लागता था। फिर मन भर गया तो बगल में पार्क की घास पर बैठ गपशप किया। 
सूर्य कुण्ड, अयोध्या - इन्ही सीढ़ियों पर बैठ लेज़र शो देखा जाता है


         आखिर लेज़र शो का टाइम होने लगा तो हमलोग उन सीढ़ियों की तरफ गए जहाँ से शो बढ़िया दिखता। सौ के आसपास दर्शक जुटे होंगे। यूट्यूब पर लेज़र शो का एम्बेडेड लिंक दे रहा हूँ यहाँ।



       आधे घंटे बाद शो ख़तम हुआ। निकलते समय गेट के पास काफी भीड़ हो गयी थी। ड्राइवर को फोन कर अपनी लोकेशन बताया, और उसके आने के बाद कार से हमलोग वपस अयोध्या चले।  
सूर्य कुण्ड, अयोध्या में मछलियों को दाना देते


                 अयोध्या में जिस गेट से शयन आरती के लिए एंट्री होनी थी वहाँ तक कार से जाने के लिए सँकरी सड़कों का सहारा लिया गे क्योंकि मुख्य सीधे रास्तों में नो एंट्री होती है। गेट से 200 मीटर दूर ड्राइवर ने गाड़ी खड़ी की और हमे एक ड्राप गेट के पास से गेट की तरफ जाने कहा गया। गेट के पास सुरक्षा कर्मियों एवं पुलिस द्वारा पर्चियाँ ली जा रही थीं और प्रतीक्षा करने कहा जा रहा था। लगभग घंटे भर प्रतीक्षा पड़ी तब गेट से एंट्री होनी थी। गेट से घुसते ही मोबाइल वगैरह जमा करने का लाकर था जिसमे जमा कर आगे बढ़े। आगे एक जगह पुलिस द्वारा बॉडी सर्च किया जा रहा था और आधार कार्ड माँगा जा रहा था। चार में से दो के पास तो आधार की हार्ड कॉपी थी पर बाकि दो के आधार मोबाइल में ही थे जो लाकर में थे। खैर यही बता कर हमे अंदर जाने दिया गया। जवान लोग तो तेजी से जा कर ऊपर आरती की लाइन में लग गए हमलोगों को चलने और सीढ़ियां वचढ़ने में कुछ देर हुई तो पीछे ही लगे। पीछे लगने से दिक्कत यह होती है कि आगे के लम्बे लोगों से देखने में परेशानी होती है। फिर भी लगभग १५ मिनट का समय मिला और हमलोगों को शयन आरती में श्रीरामजी के अच्छे से दर्शन हो गए। वहाँ से निकल कर जब हमलोग कार में बैठे तो ड्राइवर वापस होटल ले जाने लगा किन्तु पौने ग्यारह बजने जा रहे थे और होटल में अभी खाना मिलता नहीं। भूख भी लग रही थी। उसने उन्हीं संकरे सड़कों से मंदिर के मुख्य गेट से थोड़ी दूर गाड़ी रोकी और हमे खा कर आने कहा। यहाँ मुख्य पथ पर रेस्टोरेंट अभी खुले थे। एक में जाकर भोजन किया और वापस होटल लौटे। ड्राइवर को तय भाड़े के अलावा 500 रूपये और दिए क्योंकि एक तरह से उसने गाइड की तरह हमें सब जगह घुमाया। 
नंदीग्राम, अयोध्या में प्राचीन भारत गुफा, श्रीरामजी की पादुकाएँ
और भारत जी का मंदिर


           होटल में आ कर रात्रि विश्राम किया और सबेरे 6 बजे अपनी कार से वापस घर के लिए निकले। लगभग 725 किलोमीटर की दूरी तय कर रात्रि दस बजे हमलोग अपने निवास स्थान पहुँचे। ईश्वर को धन्यवाद कि हमारी सफल और सुरक्षित यात्रा रही। जय श्री राम। 


  


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Sunday, August 17, 2025

नैना देवी मन्दिर के लिए नैनीताल यात्रा

श्री माँ नयना देवी मंदिर, नैनीताल का प्रवेश द्वार


         नैनीताल में माता नैना देवी का  प्रसिद्ध मन्दिर है जहाँ माता सती के एक नयन अर्थात आँख गिरी थी, जब श्री विष्णु ने शिव के कंधे पर स्थित सती के शरीर को चक्र से 51 टुकड़ों में काटा था जिससे शिव उनका शोक भूल सकें। ये 51 स्थान शक्तिपीठ कहलाते हैं जो भारत के विभिन्न भागों में स्थित हैं। शक्तिपीठों को भगवती माँ का विशेष सिद्धपीठ माना जाता है जहाँ जाना, दर्शन करना या पूजा करना कई गुना ज्यादा फलदायी माना जाता है।

शक्तिपीठ माँ नयना देवी का मंदिर, नैनीताल


           नैनीताल का यह शक्तिपीठ मन्दिर बिलकुल नैनीताल झील के किनारे बहुत ही मनोरम स्थान में बना हुआ है। यह झील दो बहुत ही ऊंचे पहाड़ों के बीच प्राकृतिक रूप स बना हुआ है। नयना देवी के मन्दिर के कारण ही इसका नैनीताल नाम पड़ा किन्तु इस नाम के पीछे एक और भी कारण है। वह यह कि जब बगल के पहाड़ की ऊंचाईंयों से से इस झील को देखा जाता है तो इसका आकार भी आँख की आकार का दिखता है, इसलिए भी इसे नैनीताल बोला जाता है। इस वर्ष मई के महीने में जब काफी गर्मी पड़ रही थी तो हमने अपने विवाह की वर्षगाँठ इसी धार्मिक स्थल पर मानाने की सोची क्योंकि ऊंचाई पर होने के कारण वहां गर्मी से राहत होती। इसके अलावा एक और कारण था यहाँ आने का, और वह था कैंची धाम की यात्रा जो यहाँ से पास ही है। हमलोग परिवार के चार जन जाने वाले थे।  

नई दिल्ली हवाई अड्डे से कैब द्वारा नैनीताल यात्रा


             जाने से पहले यात्रा की योजना बनानी थी जिसमें यातायात एवं रात्रि विश्राम के लिए व्यवस्था सोचनी थी। दो दिन तो आने -जाने में ही लगने थे तो दो दिन हमने वहाँ रहने का सोचा। नैनीताल का मॉल रोड सबसे चहल-पहल वाला इलाका है। यह रोड नैनीताल झील के किनारे - किनारे बना है जहाँ विभिन्न प्रकार की दुकानें, रेस्टोरेंट्स एवं केक कॉफ़ी शॉप बने हैं। हमेशा झील का सुन्दर नजारा देखते हुये टहलना भी मॉल रोड पर आनंदकारी है। अतः ठहरने के लिए इसी रोड के आसपास हमलोग होटल खोजने लगे।    

नैनीताल के लिए जब पहाड़ी रास्तों की शुरुवात हुई
तो शाम होने लगी थी


धोखाधड़ी

       गूगल मैप पर जो एक होटल पसंद आया वह था "लेक साइड इन"। मैप से ही उसके साइट पर जाने पर वह असली जैसा लग रहा था। गूगल से दिए नंबर पर बेटी ने कॉन्टैक्ट किया और होटल का मैनेजर बने व्यक्ति को एडवांस के रूप में पेमेंट कर दिया। जब उसने कोई रसीद न दे कर यह कहा कि आपका पेमेंट नहीं दिख रहा, फिर से पेमेंट कर दें और जब यह पेमेंट आएगा तो रिफंड हो जायेगा तब हमलोगों ने समझा कि धोखा हो चुका है। गूगल मैप पर ऐसे फर्जी होटलों के नंबर और जाली वेबसाइट्स भरे पड़े हैं विशेष कर लोकप्रिय होटलों के  ये धोखेबाज़ लुटते हैं, फिर आप कितना भी बैंक को कम्प्लेन करें कुछ नहीं होता। इसलिए मेरी सलाह होगी कि किसी भरोसेमंद एप्प से ही होटल बुक करें, गूगल मैप जरिये किसी को फोन ना करें। 

वुडेन पैराडाइस होटल का कमरा जिसमें न वेंटिलेशन
और न मोबाइल टावर का सिग्नल


        अब अगले होटल में क्या धोखा हुआ यह बताता हूँ। हमने मेक माय ट्रिप से अगले होटल की बुकिंग की, जो गूगल मैप पर मॉल रोड पर और झील  किनारे दिख रहा था, नाम था "वुडेन पैराडाइस"। एप्प से बुकिंग करने कारण रुपयों की तो धोखाधड़ी नहीं हुयी किन्तु लोकेशन की हो गयी। जब संध्या होते होते हमलोग नैनीताल पहुंचे तो, होटल वाले से लोकेशन पूछ कर यहाँ पहुंचे। यह होटल न तो झील के किनारे मॉल रोड पर है और न ही समतल जगह पर। सड़क से सीधी तीखे चढ़ाई चढ़ कर ही यहाँ जाना होता था जिस कारण मॉल रोड निकलने या रेस्तराँ जाने से पहले सोचना पड़ता था। इस बारे में मेरे द्वारा रिव्यु यहाँ पढ़ सकते हैं - Hotel Wooden Paradise -Review.           

        प्रस्थान यात्रा

       नई दिल्ली हवाई अड्डे से उतर कर हमलोग कैब द्वारा नैनीताल के लिए निकले। लम्बी सड़क यात्रा थी। इसमें हमने यमुना जी और गंगा जी, दोनों नदियों को पार किया। मैदानी इलाकों में तो गाड़ी तेजी से चली किन्तु ज्यों ही पहाड़ी इलाका शुरू हुआ गति धीमी हुई। किन्तु पहाड़ों पर चढ़ाई का सफर रोमांचक और खूबसूरत था। ज्यों ज्यों ऊपर चढ़ते गए, गर्मी का प्रकोप कम होता गया। लम्बी सड़क यात्रा के पास हमलोग शाम होते होते नैनीताल पहुँचे जहाँ पर्यटकों की भीड़ लगी थी। जैसा भी होटल मिला, वहाँ पहुँच कर पहले हमलोग फ्रेश हुए और बाहर निकले। अगली सुबह हमने नैना देवी मंदिर में पूजा करने की सोची थी अतः अभी हमने पहले वहाँ जाकर दर्शन करने की सोची जिससे रास्ते की जानकारी हो जाये, मार्केट भी देख लें और फिर रात का खाना खाकर वापस आ जाएँ।

रात्रि में मंदिर के पास से नैनीताल का मनोरम नजारा
दोनों तरफ़ पहाड़ और मॉल रोड की चकाचक रौशनी और प्रतिविम्ब


       हमने देखा कि मॉल रोड से एक रास्ता सीधे नैना देवी मंदिर की ओर जाता है किन्तु वह रास्ता अभी बंद था क्योंकि उसमे कुछ डेवलपमेंट के कार्य चल रहे थे। तो हमें वापस उस जगह पर आना पड़ा जहाँ से मॉल रोड शुरू होता है। यहाँ दाहिनी तरफ एक बड़ा मैदान है जिसके और मॉल रोड के बीच की जगह में पार्क जैसा है; उसमें डेली मार्केट लगता है। इसी मार्केट से होकर हमलोग निकले। इस मार्केट में पर्यटकों के लिए तरह तरह की वस्तुएँ मिलती हैं। नैना देवी मंदिर से बिल्कुल सटे पहले एक गुरुद्वारा है। गुरूद्वारे से बढ़ते ही आपको एक चौड़ी जगह में दोनों तरफ दुकाने दिखेंगी जिनमे आधे खाने पीने हैं। बाकी ल्हासा मार्किट जैसी दुकानें एक गली में हैं। वहीँ आगे बढ़ने पर झील के किनारे माता नैना देवी के मंदिर का प्रवेश द्वार है। 

नयना देवी मंदिर परिसर में घुसते ही सामने हनुमान जी
का मंदिर है ।


          प्रवेश द्वार से दस सीढ़ी नीचे उतर कर प्रांगण का फ्लोर है। बायीं तरफ जूते - चप्पल रखने की व्यवस्था है। ठीक सामने हनुमान जी का मंदिर है जिसमें दूर से ही उनकी बड़ी प्रतिमा के दर्शन होते हैं। बायीं तरफ माता जी का मंदिर है जिसमें तीन प्रतिमाएँ हैं। बगल में एक और दोमंजिला मंदिर है जिसमें नीचे भूतल पर तीन प्रतिमाएं हैं तथा ऊपर मंजिल पर भगवान विष्णु के दस अवतारों एवं शिव-पार्वती की मूर्तियाँ हैं। माता जी के मंदिर के सामने खुले प्रांगण में परली छोर पर शिवलिंग हैं जो बिलकुल नैनीताल झील के किनारे है। रात्रि में झील के किनारे मॉल रोड की रोशनियाँ परावर्तित हो रही थीं जो आकर्षक थीं। मंदिर से प्रणाम कर पुनः उसी डेली मार्किट वाले रस्ते से मॉल रोड पर आये। यहाँ पैदल चल कर दुकानों को देखा फिर खाने के लिए रेस्तराँ खोजने लगे। यहाँ कई वेज और नॉन-वेज रेस्तराँ हैं। एक रेस्तराँ दस फ़ीट ऊँची जगह पर था जिसका नाम था "मचान", उसी में हमलोग गए। खाना बढ़िया था। दिन भर का सफर था और हमलोग थक गए थे। पैदल ही हमलोग होटल आ कर सो गए। 

नैनीताल के मॉल रोड पर मचान रेस्टोरेंट जहाँ हमने खाया


कैंची धाम यात्रा और नैनी झील में बोटिंग

       अगली सुबह उठ कर हमलोग तैयार हुए और रात को देखे रास्ते से ही मंदिर की तरफ चले। अभी फुटपाथ वाले दुकान खुले नहीं थे। मंदिर प्रांगण में घुसते ही मन प्रसन्न हो गया। लाल नारंगी रंग से रंगे मंदिर और सामने नैनीताल ऊपर से सुबह का समय। दिव्य वातावरण लग रहा था। सभी मंदिरों में माथा टेका और कुछ देर तक झील का आनंद लिया। वहां से निकल कर अब कैंची धाम जाने की सोच रहा था। होटल वाले ने कहा था कि जल्दी जाना उचित होगा अन्यथा भीड़ बहुत बढ़ जाती है। कई गाड़ी वाले पूछ रहे थे। एक से भाड़ा तय हुआ तो तुरत कैंची धाम के लिए निकले।

नैना देवी मंदिर परिसर में दशावतार मंदिर, नैनीताल


        मॉल रोड पार कर नैनीताल झील से आगे पहाड़ी रास्तों पर निकले। कैंची धाम ज्यों ज्यों पास आने लगा, ट्रैफिक भी बढ़ने लगी। धाम के पास पहुँच कर ड्राइवर ने हमे उतारा और आगे पार्किंग में गाड़ी लगाने चला गया। अपना नंबर दे कर कहा कि निकलने पर कॉल करें तब गाड़ी ले कर आऊंगा। यहाँ गाड़ी खड़ी करने नहीं देता। जल्दी करने भी बोला क्योंकि देर होने से ट्रैफिक बहुत बढ़ जाएगी और बेकार लेट होगा। कैंचीं धाम एक पहाड़ी नदी के दूसरे किनारे पर है जिसके पीछे बड़ा सा पहाड़ है। हमलोग नदी के इस तरफ थे क्योंकि यहाँ आने के लिए सड़क इसी तरफ है। धाम तक जाने के लिए पुल बना है। पुल पर जाने से पहले इस तरफ एक बड़े से दूकान में प्रसाद और नीब करोली बाबा के फोटो एवं अन्य वस्तुएँ बिक रही थीं। हमने प्रसाद लिए और पुल को पार कर कैंची धाम में प्रवेश किया। सारा भीड़ व्यवस्थित था और लाइन से चल कर हमने बाबा की प्रतिमा के दर्शन किये। जहाँ बाबा लेटते थे वह चौंकी भी रखा है। उनकी सेवा करने वाली भक्त माताजी की भी फोटो लगी है। वापसी में एक स्टाल पर बाबा जे जुड़ी पुस्तकें एवं अन्य यादगारी चीजें बिक रही थीं। पुनः पुल से हो कर हमलोग सड़क पर आये जहाँ नदी के इस किनारे पर भक्तों द्वारा सेल्फी, फोटो और रील बनाने की होड़ लगी थी। इस किनारे से कैंची धाम, नदी और पहाड़ का मनोहारी दृश्य जो नजर आ रहा था। 

कैंची धाम का सुंदर मंदिर


      ड्राइवर का जल्दी करने के लिए दो बार फोन आ चुका था, परन्तु पूजा करने के कारण हमलोग सबेरे से भूखे थे। अतः पहले एक दुकान में इडली-डोसा नाश्ता करने के बाद ही ड्राइवर को बुलाया। वास्तव में निकलते समय सड़क पर गाड़ियों का रेला लग गया था। हमलोग यही सोच रहे थे कि अभी आने वालों को कितनी भीड़ का सामना करना होगा। रास्ते में एक जगह व्यू पॉइंट है जहाँ से घाटी और पहाड़ों का सुन्दर नजारा देखने को मिलता है। यहाँ पर कई फोटोग्राफरों ने दिल के आकार का लाल फूलों वाला बैठकी बना रखा है जिसमे बैठ कर आप फोटो खिंचवा सकते हैं, पैसे लगेंगे चालीस रूपये। हमलोगों ने यहाँ रुक कर घाटी का सुन्दर दृश्य देखा और फोटो भी खिंचवाए। 

कैंची धाम रास्ते में व्यू पॉइंट के पास फोटोग्राफरों
द्वारा बनाया गया फ़ोटो शूट पॉइंट


        नैनीताल आते आते मौसम बादलों वाला हो चला था और कभी कभी कुछ बूँदें भी गिर रही थीं। अभी दिन ही था और हमारे पास काफी समय था। वैसे तो दिन में धूप में बोटिंग अच्छा नहीं लगता किन्तु अभी मौसम सुहावना हो गया था। अतः हमने अभी ही नैनीताल झील में बोटिंग करने का निर्णय लिया। झील के किनारे नाव वालों का काउंटर लगा होता है जहाँ बोटिंग समय के अनुसार दो रेट रहते हैं, 450/- और 250/- रूपये। एक बोट पर अधिकतम तीन यात्री बैठ सकते हैं। हमलोग चार जन थे अतः दो नाव लेकर बोटिंग पर निकले। दो ऊँचे पहाड़ों के बीच ये बड़ा सा नैनी झील किनारे से तो सुन्दर लगता ही है, नाव पर बीच झील से देखना और भी आनंदकारी है। एक तरफ के पहाड़ के नीचे मॉल रोड, दूसरी तरफ के हरे भरे पहाड़ में छिपे पहाड़ी सड़क और झील के प्रारम्भ में भगवती नैना देवी का सुन्दर मंदिर। नाववाला बातूनी था। उसने बताया झील बहुत ही गहरा है और सभी को लाइफ जैकेट पहनना अनिवार्य है। नैनीताल में कहाँ कहाँ घूमने की जगह है और भोजन तथा मार्केटिंग के लिए कौन सी जगह और दूकान सही है, यह भी बताया। नाववाले ने कहा कि यहाँ बवाड़ी की नमकीन की दूकान बहुत फेमस है, यहाँ से मिक्सचर नमकीन जरूर ले जाना। 

मेघ आच्छादित दोपहर में नैनीताल झील में बोटिंग


         उस समय झील पर कई नावों में पर्यटक बोटिंग कर रहे थे। हमने सोचा था कि झील की लम्बाई में दूसरी छोर तक नाव ले जायेगा किन्तु अन्य नावों की तरह उसने भी बीच झील तक ले जा कर नाव वापस घुमा लिया। उसने बताया कि उधर वाला झील तल्लीताल है जिसके लिए उसी तरफ के नावों को लेना होता है। इधर की नावों को उस तरफ जाने की अनुमति नहीं है। हमने मोबाइल से तस्वीरें खींची। नाववाले ने भी हमारे मोबाइल से हमलोगों के फोटो खींचीं दी। आनंददायक नाव की सैर कर हमलोग किनारे पर लौटे। किनारे पर ही एक बढ़िया कपड़े की दूकान थी जो इक्का-दुक्का वैसी दुकानों में से थी जो बिल्कुल झील के किनारे है। झील के किनारे आने जाने के लिए मॉल रोड की दो सड़कें बनी हैं जिनमे एक सड़क थोड़ी नीचे लेवल पर है और यह झील के ठीक किनारे है। इसपर दूकानें नहीं हैं, बस यही कपडे की एक दो दुकानें हैं। बाकी मॉल रोड की सारी दुकानें ऊपर लेवल वाली रोड पर हैं और इनके द्वार झील की तरफ हैं। उसी कपडे की दूकान में जा कर हमने कुछ शॉपिंग की।  

पर्यटकों द्वारा नैनी झील में बोटिंग और फोटोग्राफी का आनंद


       अब भूख लगने लगी थी। शाम भी हो गयी थी। मॉल रोड के शुरू में ही एक बढ़िया केक और कॉफी की दुकान है जो दूर से ही आकर्षित करती है। इसका नाम है "लकीज कैफ़े एंड बेकरी", रौशनी और सजावट से भरपूर। घुसते ही कॉफी की वो सुगंध आयी कि कॉफी पिने का मन हो चला। आज हमारी शादी की वर्षगांठ भी थी तो हमने केक-कॉफी लेने का सोचा। भीड़ इतनी थी कि नीचे के सभी टेबल भरे थे। अंदर की तरफ आधी दूर तक बालकनी जैसी बनी थी, वहीं के टेबल पर हमलोग बैठे। बढ़िया स्वाद वाले कई केक थे। कुछ हमने लिए और कॉफी पी। फिर शाम की जगमगाती रौशनी में मॉल रोड घूमे, कुछ खरीददारी की और पैदल ही लौटे।   

शाम की लाइट में नैनादेवी मंदिर और बगल में गुरुद्वारा, नैनीताल


      हमलोग ऊपर के मार्किट की तरफ गए और नाववाले के बताये दूकान में खाना खाया। खाने के लिए यह एक अच्छी दुकान थी। खाने के बाद हमलोग पैदल ही होटल आराम करने के लिए आये जो ज्यादा दूर नहीं था पर चढ़ाव के कारण मुश्किल लग रहा था। दिन भर आराम करने के बाद हमलोग शाम को पुनः मॉल रोड, बवाड़ी की नमकीन दुकान, पोताला मार्केट और नैना देवी मंदिर गए। खरीददारी और भोजन कर थक कर होटल आये और सो गए। अब अगला एक दिन पूरा हमें यहाँ रुकना था तो उस दिन लोकल साइट सीइंग के लिए रखा। 

लकीज कैफ़े एंड केक शॉप के अंदर का दृश्य, मॉल रोड, नैनीताल

नैनीताल के मॉल रोड पर Lucky’s Cafe में टेस्टी कॉफी


मुक्तेश्वर धाम, घण्टीवाला मंदिर और हनुमान गढ़ी

         अगली सुबह हमलोग तैयार होकर होटल से निकले और तीखी ढलान वाली सड़क से नीचे उतर कर मुख्य सड़क पर आये जो मॉल रोड की तरफ जाती है। यहाँ आते ही कुछ टैक्सी वाले पूछने लगे लोकल साइट सीइंग के लिए। एक से बात फाइनल किया जिसकी छोटी कार थी। उसने चार पाँच जगह के नाम लिए जिनमें एक मुक्तेश्वर महादेव मंदिर भी था। हमने भीमताल के बारे में पूछा किन्तु दूर होने के कारण हमें लोकल जगह में कटौती करनी पड़ती। अतः हमने उसी के अनुसार देखने की सोची।यह कैब वाला हमे सही मिला जो हमें हर तरह की इनफार्मेशन दे रहा था। उसने कैंची धाम के बारे में भी पूछा, तो हमने बताया कि कल हमलोग वहां से हो कर आ चुके हैं। उसने पूछा कि तब तो हनुमान गढ़ी भी गए होंगे क्योकि जो कैंची धाम जाता है वो हनुमान गढ़ी भी जाता है। हमें तो यह पता ही नहीं था। पत्नी ने आग्रह किया कि हमें आप वहाँ भी ले चलना। उसने कहा कि अभी जो तय है जगह जाने का अगर उसमे टाइम बचेगा तो जायेंगे। 

नैना देवी मंदिर के सामने मैदान और पृष्ठभूमि में जमा मस्जिद


           यहाँ का जामा मस्जिद तो नैना देवी के रास्ते से ही दीखता है। अभी हमलोग जो निकले तो रास्ते में राजभवन भी दिखाया। जो सबसे पहली जगह हमलोग रुके वह एक  हेयरपिन बेंड वाले मोड़ के पास था। 

व्यू पॉइंट से खुरपा ताल और घाटी का मनोरम दृश्य, नैनीताल


    यहाँ एक दो चाय की दुकान थी। ड्राइवर हमें ले कर उन दुकानों के पीछे ले गया जहाँ पेड़ों के पीछे से घाटी का बहुत ही सुन्दर दृश्य नजर आ रहा था। घाटी में एक झील भी थी जिसे खुर्पाताल बोला जाता है। यहाँ पेड़ों के पास हमने कुछ फोटो खिंचवाये और आगे चले। 

अगले दिन की नैनीताल भ्रमण यात्रा प्रारंभ


         आगे एक जगह कुछ पर्यटक रुक कर रास्ते के बगल में पत्थरों के पास कुछ देख रहे थे। ड्राइवर ने कहा कि यह एक पतली गुफा है जिससे तेज हवा निकलती है लेकिन कुछ ऊपर चढ़ कर देखना होगा। हमें यह कुछ खास न लगा तो आगे बढे। अगला जो पॉइंट ड्राइवर हमें दिखाने लाया उसका नाम था लवर्स पॉइंट। यह एक सीधे खड़े पहाड़ के किनारे था जो सड़क से उतर कर कुछ झोपड़ीनुमा घरों को पार कर गए। इन घरों में शायद घोड़े भी पाले जाते थे क्योंकि अस्तबल जैसा ही गंध वहाँ फैला था। लवर्स पॉइंट पर जाने आने में थोड़ा चढ़ना उतरना पड़ता है। बगल में ही एक और पॉइंट है जहाँ चट्टान थोड़ा आगे निकला हुआ है। उसने बताया कि इसे सुसाइड पॉइंट कहते हैं। यहाँ से देख कर और फोटो खींच कर हमलोग आगे बढ़े। 

लवर्स पॉइंट और पीछे सुसाइड पॉइंट, नैनीताल


         कुछ देर चलने के बाद हमलोग एक तीखे पहाड़ी मोड़ से कुछ सौ फ़ीट पहले रुके जहाँ से ड्राइवर ने नैनीताल झील का विहंगम दृश्य दिखाया। हमने कुछ फोटो खींचे और आगे वाले तीखे मोड़ के पास रुके। 

किलबरी बर्ड सैंक्चुअरी से पहले नैनी झील का विहंगम दृश्य


         सामने "नैना किलबरी इको टूरिज्म जोन" लिखा हुआ प्रवेश द्वार मिला जो बर्ड सैंक्चुअरी थी। इसमें कम से कम तीन किलोमीटर लम्बा ट्रेक करना होता। ना तो हममें ट्रेक करने की ताकत थी और ना हम समय लगा सकते थे।

बर्ड सैंक्चुअरी के सामने की टपरी जहाँ हमने चाय नाश्ता किया


         इसी मोड़ के अंदर की तरफ एक टपरी थी जहाँ हमने चाय पी।  ड्राइवर ने दुकान वाले को पंडित जी सम्बोधित करते हुए हमसे कहा कि ये गरमा गरम आलू पराँठे भी बना देंगे, चाहो तो खा लो। सुबह से हमने कुछ खाया नहीं था तो सबने आलू पराँठे उसी दुकान पर खाये और आगे बढे। 

नैना किलबरी ईको टूरिज्म जोन का प्रवेश द्वार


          इसके बाद हमलोग एक ऐसे स्थान पर रुके जहाँ सामने खुली घाटी थी और दूर में ऊँचे पहाड़ों की चोटियाँ दिखाई पड़ रही थीं। यह हिमालय व्यू पॉइंट था। सामने का दृश्य बहुत ही मनोरम नजर आ रहा था। सड़क किनारे एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था, "हिमालय दर्शन स्थल पर कुछ क्षण विश्राम कर मनोरम दृश्य का आनन्द लें"। यहाँ कुछ देर रुक कर पहाड़ी रास्तों पर ही हम लोग लगभग दो किलोमीटर आगे गये जहाँ इको वैल्ली है। 

नैनीताल में हिमालय व्यू पॉइंट


          इको वैली लगभग समान्तर दो हरे भरे पहाड़ों के बीच की घाटी है। दोनों पहाड़ पास पास ही हैं किन्तु आगे जाने के लिए सड़क पहले दोनों पहाड़ों के जोड़ तक जाती है, फिर दूसरे पहाड़ से घूम कर आगे बढ़ती है। जहाँ पर हमलोग रुके थे वहां से दूसरा पहाड़ सामने दीवार जैसा खड़ा था। इसी कारण जोर से बोलने पर आवाज टकरा कर वापस गूंजती थी। ध्वनि के इसी परावर्तन को अंग्रेजी में इको बोला जाता है जिसके कारण इस घाटी का नाम इको वैली पड़ा है। यहाँ हमने जोर जोर से आवाजें निकाल कर मनोरंजन किये और फोटो खींचे। फिर आगे चले स्नो व्यू पॉइन्ट की तरफ।  

इको वैली पॉइंट, नैनीताल -यह सड़क दोनों पहाड़ों के मिलन
पर यू-टर्न ले कर दूसरे पहाड़ पर जाती है, उसी पहाड़ से प्रतिध्वनि
आती है ।


           जब स्नो व्यू पॉइन्ट पहुंचे तो देखा कि यह एक चहल पहल वाला स्थान है जहाँ कई तरह की दुकानें थीं। एक "फन एडवेंचर पार्क" भी है बगल में। हमलोग स्नो व्यू पॉइन्ट की तरफ बढे ही थे कि देखा एक फोटो ग्राफर पहाड़ी ड्रेस पहना कर फोटो खींच रहा है। मेरी बेटी ने भी फोटो खिंचवाया। 

स्नो व्यू पॉइंट के पास पहाड़ी ड्रेस में फोटोग्राफी, नैनीताल


      फिर हमलोग स्नो व्यू पॉइंट पर गए जहाँ किनारे में रेलिंग लगा था। पर्यटक खड़े थे और फोटो खिंचवा रहे थे। हमने भी खड़े हो कर देखा किन्तु दूर पहाड़ों पर वर्फ दिखाई नहीं पड़ रहा था। शायद धुंद के कारण। नैनीताल झील दिखाई जरूर पड़ रहा था। वहाँ पर भी मोबाइल से फोटो इत्यादि खींच कर बगल की की गिफ्ट दूकान में घुसे। यहाँ तरह तरह कलाकृतियाँ रखी थीं। किन्तु दाम काफी ऊँचे थे। वहाँ से पीछे वाले दरवाजे से अंदर बाजार में निकले। एक कालीन वाला हमें काफी आग्रह कर अपनी दूकान पर ले गया और ऊँची क्वालिटी का कालीन दिखाया। अब इसके काफी ऊँचे दाम और उस पर एक्सचेंज के स्कीम बताने लगा। हमलोग उठ कर निकल गए और व्यर्थ ही समय बर्बादी का पछतावा किया। बगल के एडवेंचर पार्क की तरफ भी हम लोग गए जहाँ अलग से टिकट था और समय देना था। हमने यहाँ जाने की बजाय अन्य स्थानों को देखना पसंद किया और गाड़ी से निकल गए। 

स्नो व्यू पॉइंट से पैनोरामिक व्यू में नैनी झील


          ड्राइवर ने बताया कि अगली जगह एक मंदिर है जिसे गोलुदेव मंदिर कहा जाता है। वे बहुत शक्तिशाली देवता हैं और बिना उनकी मर्जी के इस इलाके में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। आपको कुछ मांगना हो तो प्रार्थना तो करते ही हैं, आप चाहें तो एक पर्ची में अपनी मांग लिख के घण्टी के साथ मंदिर में बाँध सकते हैं, गोलुदेव पूर्ण करेंगे। ये न्याय के भी देवता हैं, कोई आप पर अत्याचार कर रहा हो तो इनके पास आप शिकायत कर सकते हैं। इस मंदिर की खासियत है कि इन्हें घण्टी चढ़ाया जाता है। भक्तों द्वारा बांधे गए घंटियों से यह मंदिर भरा पड़ा है। ड्राइवर भी अपनी कार में अपने दाहिने तरफ ऊपर एक छोटी पीतल की घंटी बंधे हुए था जो गोलुदेव का ही प्रसाद था। कई बार हमने रास्ते में देखा कि वो कार की घंटी को बजाता है। जब हमने पूछा तो उसने बताया कि रास्ते में कोई मंदिर दिखता है तो प्रणाम करने के लिए घंटी बजाता है। मंदिर तक तक पहुँचने में ट्रैफिक के कारण देर हुयी क्योंकि पतला पहाड़ी रास्ता था और इस मंदिर में भक्तों की भीड़ थी जिनकी गाड़ियों का रेला था। इस इलाके का नाम था घोड़ाखाल। 

नैनीताल के घोड़ाखाल में श्री गोलूदेवजी का
घंटी वाला मंदिर


          यह मंदिर थोड़ी ऊंचाई पर है जहाँ सीढ़ियाँ चढ़ कर जानी होती है। नीचे सीढ़ी के बगल में नल था जिससे हमने हाथ-पैर धोकर शरीर पर छिड़का और बगल की दूकान से घंटियाँ और पूजा सामग्री ले कर सीढ़ियां चढ़नी शुरू की। मंदिर के पास पहुँचते ही जो अद्भुत दृश्य था वैसा पहले कभी नहीं देखा। चारों तरफ घंटियाँ ही घंटियाँ। अलग-अलग साइज के। शायद ही मंदिर का कोई कोना बचा हो जहाँ घंटियाँ न हो। घंटियाँ लिए हुए भक्तों की लम्बी कतार थी। लगभग घंटे भर कतार में लगने के बाद हमलोग देवता के दर्शन कर पाए। मंदिर में जो देवता के बारे में लिखा था उसके अनुसार ये देवता भैरव जी के अवतार हैं और यहाँ उनका नाम ग्वैल देव लिखा था। हनुमान जी और अन्य देवताओं के भी मंदिर यहाँ बने थे, हमने उनकी भी पूजा की। यहाँ परिसर में ही एक जगह भैरो बाबा का भी स्थान है जहाँ की पूजा भी जरुरी होती है। इन्हें विशेष सूखा चावल चढ़ता है जो पूजा-सामग्री वाले दुकानदार ने हमें साथ में ही दे दिया था। वहाँ की भी पूजा कर हमने एक जगह घंटी बाँधी और बचे घंटी को प्रसाद स्वरुप साथ ले आये। नीचे दूकान में आकर उनका लौटने वाला सामान और पूजा-सामग्री का मूल्य देकर हमलोग गाड़ी में बैठ कर आगे निकले। 

घंटीवाले मंदिर जाने के रास्ते से ही बँधी घंटियाँ
मंदिर के एक अनोखे आकर्षक रूप को दिखाती हैं ।


          कई किलोमीटर आगे जा कर ड्राइवर ने एक जगह गाड़ी रोकी जहाँ सड़क के एक तरफ ऊँचा पहाड़ था और दूसरी तरफ लम्बी ढलान थी जिस पर चाय की खेती थी। किनारे ही चाय कंपनी का भवन था जिसमें चाय बनायीं भी जाती है और सड़क के किनारे इन्हें बेचने के लिए काउंटर भी बने हैं। चाय बागान को देखने के लिए पर्यटकों से टिकट कटवाए जाते हैं।

घोड़ाखाल में चाय बागान का मनोरम दृश्य ।


        हमने भी टिकट ले कर इंट्री की। कई पर्यटक पहले से वहाँ घूम रहे थे और फोटो खींच रहे थे। सामने ढलान पर दूर तक चाय की हरी-भरी खेती और उसके पार पहाड़ों का सौंदर्य बहुत मनोरम लग रहा था। हमने भी फोटो वगैरह खींचे और परिसर में बने एक कैफ़े में चाय नाश्ते के लिए गए। छोटा सा यह कैफ़े भी लोगों से भरा था। यहाँ चाय, नाश्ता और चावल-कढ़ी जैसे भोजन भी उपलब्ध थे। हम सब ने अपनी इच्छानुसार यहाँ कुछ न कुछ खाये और चाय पी। इतना जरूर था कि जो भी आइटम हमने चखे वो सब बढ़िया और स्वादिष्ट बने थे। बहार आ कर काउंटर से कुछ डब्बे चाय के लिए यह सोच कर कि यहाँ फ्रेश चाय की पत्ती मिलेगी। 

मुक्तेश्वर धाम जाने के रास्ते में आंधी, तूफ़ान और ओलावृष्टि


       अब हमलोग आगे चले मुक्तेश्वर धाम की तरफ जो कि ड्राइवर द्वारा बताये गए स्थानों में से अंतिम था। पत्नी के आग्रह पर उसने बोला था कि टाइम बचने पर हनुमान गढ़ी जाएँगे।  

मुक्तेश्वर धाम के पहुँच पथ से पहले गोलम्बर चौराहा


       मुक्तेश्वर धाम यहाँ से दूर था और पहाड़ों पर और ऊंचाई पर था। ड्राइवर हमें रास्ते में विशेष वृक्षों का परिचय भी कराते जा रहा था। जैसे चीड़ और देवदार में क्या अंतर है। एक पेड़ जिसे मोरपंख बोला जाता है इसके पत्तों की आकृति के कारण। एक पेड़ दिखाया जिस पर गहरे लाल रंग के फूल आये थे जिसका नाम बताया "बुर्रास" । इसका जूस पिया जाता है जो गुणकारी होता है। 

चोली का जाला के पास बुर्रास का जूस और काले-पीले शाहतूत


       जाने में रास्ते में मौसम ख़राब होने लगा। दूर काले बादल तेज हवाओं के साथ पास आ रहे थे। जल्द ही बादलों ने ऐसा ढँका कि बिलकुल अँधेरा जैसा हो गया। गाड़ी की लाइट जला कर हमलोग आगे बढ़ रहे थे कि भारी वर्षा शुरू हो गयी जिसमे छोटी गोलियों जैसे ओले गिर रहे थे। गाड़ी की छत और शीशे पर टकरा कर आवाज कर रहे थे। आगे बढ़ना बिलकुल मुश्किल था क्योंकि सामने कुछ नजर ही न आ रहा था। ऊपर से ये सड़क ऊँचे पहाड़ पर थे जिनके एक तरफ चट्टान और दूसरी तरफ गहरी खाई थी। किनारे एक जगह देख कर हमने पंद्रह मिनट प्रतीक्षा की कि कुछ ओला-पानी काम हो तो आगे बढ़ें। ओले तो कुछ देर में कम हुए किन्तु मौसम बिलकुल सावन जैसा हो गया। झीनी-झीनी वर्षा होती ही रही जिसमें हमलोग आगे बढ़ते गए। उधर से वापस लौटने वाली गाड़ियाँ ज्यादा थीं।

मुक्तेश्वर धाम के सीढ़ियों के बगल से
"चोली का जाला" जाने का रास्ता


       जब हमलोग मुक्तेश्वर पहुंचे तो बाबा की कृपा से वर्षा बहुत कम हो गयी थी और बिना भींगे हमलोग खुले में चल सकते थे। मंदिर परिसर से पहले ही एक गोलंबर सड़क थी जहाँ से आगे गाड़ी ले जाने की मनाही थी यद्यपि मंदिर तक गाड़ी जाने का पक्का रास्ता बना था। इस रास्ते के दोनों तरफ फुलवारी, कुछ पुराने मकान और एक बहुत ही पुराना पोस्ट ऑफिस था। लगभग सौ मीटर पैदल चल कर मंदिर के चढ़ाई वाले प्रवेश रास्ते के पास पहुंचे। मंदिर पहाड़ की चोटी पर बना है जहाँ इसी रस्ते से सैकड़ों सीढ़ियां चढ़ कर जानी होती हैं। ड्राइवर ने हमे पहले ही बताया था कि मंदिर जाने से पहले लोग सीढ़ियों के बगल से एक पतले रास्ते से उस जगह जाते हैं जिसे चोली का जाला कहा जाता है। तो सीढ़ियों के पास कई दुकाने थीं जिनसे पूछ कर रास्ता कन्फर्म किया और हमलोग उसपर बढ़े। 

चोली का जाला" के पास पर्यटकों की मस्ती और फोटोग्राफी
मुक्तेश्वर धाम, नैनीताल 


          पहाड़ के साइड में लगभग तीन फ़ीट चौड़ा यह रास्ता बनाया गया है जिसके एक तरफ लगभग खड़ी गहरी खाई है, इधर रेलिंग दिया गया है। इस किनारे कई पेड़ भी हैं जिन पर बंदर थे। लगभग पांच सौ मीटर चलने के बाद हमलोग एक खुले स्थान पर आये जहाँ चट्टान खड़े खड़े से थे। इनके पीछे बहुत ही गहरी खाई थी। यहाँ कई सैलानी फोटो और वीडियो ग्राफ़ी कर रहे थे।  कुछ प्रोफेशनल फोटोग्राफर भी थे जो ड्रोन कैमरे से फोटोग्राफी कर रहे थे। कुछ लोग यूँ ही बैठ कर आनंद ले रहे थे। मुझे उन चट्टानों पर चढ़ना रिस्की लगा अतः हमने थोड़ा नीचे ही फोटो लिया और थोड़ी देर तक मनोरम दृश्य का आनंद लिया। इन पत्थरों की बनावट के कारण ही इसे चोली का जाला बोला जाता है जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ होता है शिवजी की जटाएँ। एक चाय की दुकान थी बगल में जहाँ हमलोग थक कर बैठे। वह एक लाल रंग का जूस बेच रहा था जो बुर्रास का जूस था, वही लाल फूल वाला पेड़ जो ड्राइवर ने हमें दिखाया था। उसने बताया कि यह काफी गुणकारी होती है। हमने एक एक गिलास जूस पिए। एक आदमी पत्तों के दोने में लाल-पीले शाहतूत बेच रहा था, वह भी हमने चखे। अब वापस मंदिर की सीढ़ियों की तरफ वापस लौटे। यह रास्ता पतला तो था पर चढ़ाव नहीं था। जब मंदिर की सीढियाँ चढ़ने लगे तब रुक रुक कर चढ़ना पड़ा क्योंकि थोड़ी ऊंचाई पर हैं बाबा मुक्तेश्वर नाथ, इस पहाड़ के सबसे ऊँचे स्थान पर। 

मुक्तेश्वर महादेव मंदिर तक जाने वाली सीढ़ियों का प्रवेश द्वार, नैनीताल


            मन्दिर के कुछ पहले और भी कुछ देवताओं के छोटे छोटे मंदिर बने हैं। अंतिम चढ़ाई से पहले एक जगह चप्पल उतरने की जगह बनी है। यहाँ चप्पल खोल कर हमलोग मंदिर के पास पहुँचे जहाँ लगभग बीस पच्चीस भक्त कतार में थे। कतार में लग कर हमलोग लगभग चालीस मिनट में बाबा मुक्तेश्वर नाथ के सामने पहुँचे जहाँ एक पुजारी पूजा करवा रहे थे। पूजा कर हमलोग मंदिर के किनारे बने व्यू पॉइन्ट से मनोरम दृश्यों का आनंद लिया। 

मुक्तेश्वर धाम जाने के लिए पहाड़ पर सीढ़ियों वाला रास्ता


        फिर नीचे आने वाले रास्ते से नीचे उतरे। इसी रास्ते पर एक जगह मंदिर के बारे में लिखा था। जिसके अनुसार एक संत मुक्तेश्वर जी ने इस स्थान पर शिव जी की साधना की और यह मंदिर बनाया। मंदिर से निकल कर सीढ़ियों से उतरे और सीधे पैदल चल कर गाड़ी के पास आये और वापस निकल पड़े। अब संध्या हो चली थी। वर्षा तो समाप्त हो गयी थी पर मंदिर से निकलने वाले वाहनों की भीड़ थी। लम्बा रास्ता था,  जब हमलोग नैनीताल के पास पहुंचे तो देखा कि इधर तो ओला-वर्षा का कोई असर न था। थोड़ा समय बचा था तो ड्राइवर हमे हनुमान गढ़ी भी ले गया। यहाँ पैर हाथ धो कर हमलोग मंदिर में गए। 

मुक्तेश्वर महादेव मंदिर पहुँचने से पहले शक्ति-पीठ और हनुमान मंदिर


         सामने एक बड़े हनुमान जी की प्रतिमा थी। यहाँ प्रणाम कर हमने एक सेवादार से पूछा कि नीब करौली बाबा के हाथों से बनी हनुमानजी की प्रतिमा कहाँ है? उसने सामने ही एक लगभग दो फ़ीट ऊँची प्रतिमा को दिखाया। वहाँ जाकर हमने प्रणाम किया। कुछ सीढियाँ चढ़ कर हमलोग एक हॉलनुमा कमरे में गए जहाँ बाबा की मूर्ति थी और दीवारों पर सुन्दर काण्ड अंकित थे। वहाँ कुछ दे बैठ कर हमने मन ही मन हनुमान चालीसा का पाठ किया। फिर और आगे जाकर अन्य मंदिरों को देखा जिनमे भरत जी और राम दरबार और शिव जी का मंदिर भी था। वापस आते समय देखा कि हनुमान जी के मंदिर के बगल में एक कमरा है जिसमें बाबा की सदैव सेवा में रहने वाली उनकी एक भक्त माता जी के चित्र और मूर्ति हैं। निकलते समय भुने चने के कुछ दाने प्रसाद में पाये और हमलोग गाड़ी से वापस निकले। रास्ते में एक जगह ड्राइवर ने गाड़ी रोकी और बोलै कि बिलकुल नेचुरल मिनिरल वाटर पीना हो तो यहाँ एक जगह पहाड़ का पानी मिलेगा। हमने भी दो बोतल दिए। पहाड़ के किनारे झरने से निकलने वाले पानी को लेने के लिए पाइप जैसा बने गया था। एक और आदमी को पानी लेते हुए देखा। ड्राइवर ने जो पानी ला कर दिया उसका स्वाद सच में बहुत अच्छा था। 

मुक्तेश्वर महादेव मंदिर का गर्भ-गृह, नैनीताल


          जब हमें होटल के पास वापस ड्राइवर ने पहुँचाया तो उसे तय भाड़ा से पांच सौ अधिक दे कर धन्यवाद बोला और विदा किया। होटल आ कर हमलोग फ्रेश हुए।  आठ बजने ही जा रहे थे और थक भी गए थे, अतः हमलोग मॉल रोड न जा कर ऊपर वाले बाजार में ही खाना खा कर आ गए। जिस कंपनी की गाड़ी से हमलोग दिल्ली से नैनीताल आये थे उसका मालिक फोन कर पूछ रहा था कि वापस उसी की गाड़ी से दिल्ली लौटूं। भाड़ा तय कर मैंने कुछ एडवांस दे दिया और बिलकुल सबेरे छह बजे गाड़ी भेजने को बोला जिससे फ्लाइट समय रहते पकड़ सकूँ। जब सबेरे उठे तो गाड़ी वाला समय पर आ चुका था। हमलोग सामान ले कर गाड़ी में बैठे और निकल पड़े दिल्ली की ओर। आते समय तो हमलोग इन पहाड़ी रास्तों पर शाम को आये थे पर अभी सुबह की ठंडी हवाओं में इन रास्तों के दोनों तरफ का दृश्य बहुत आकर्षक था। जब तक पहाड़ों पर चले बहुत आनंद आया। समय पर हमलोग एयरपोर्ट पहुँच गए और शाम से पहले अपने घर।     

हनुमान गढ़ी मन्दिर का प्रवेश द्वार, नैनीताल


         अगर होटल की छोड़ दें तो नैनीताल की यह यात्रा आनंददायक रही। और अधिक समय अगर होता हमारे पास तो अभी कई और जगह घूमने को बाकी थे।                                                     

  


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