ब्रज, जहाँ परमात्मा श्रीकृष्ण ने अवतार लिया, लीलायें कीं और ब्रजवासियों का हृदय-मन को मोह लिया वह ब्रज भगवान श्रीकृष्ण को भी बहुत प्रिय था। ब्रज छोड़ने के बाद फिर कभी वे वापस न लौटे पर वह कभी ब्रज को भूल भी न सके। जैसा कि सूरदास जी ने लिखा है कि श्रीकृष्ण कहते हैं, "उधो, मोहे ब्रज बिसरत नाहीं .."
![]() |
चौरासी कोस यात्रा से पूर्व श्रीयमुना पूजन एवं संकल्प |
राधा जी सहित गोपियों और ब्रजवासियों के कृष्ण-प्रेम और भक्ति ने ब्रज के कण-कण को पवित्र कर दिया। आज भी भक्तजन ब्रज की धूलि मस्तक पर लगा कर स्वयं को धन्य समझते हैं। ब्रजवासियों ने भी श्रीकृष्ण की यादों को सहेज कर रखा है। जहाँ कहीं भी श्रीकृष्ण और राधा जी के चरण -कमल पड़े या उनसे जुड़ी कोई लीला स्थली हो वहाँ -वहाँ मंदिर पायेंगे। ब्रज एक तीर्थ है जहाँ की यात्रा से समस्त तीर्थों की यात्रा का फल मिलता है क्योंकि भगवान ने सभी तीर्थों को ब्रज में आने का आदेश दिया था। इसका प्रसंग यह है कि एक बार नन्द बाबा और यशोदा मैया तथा वसुदेव और देवकी जी ने श्रीकृष्ण से आग्रह किया कि उन्हें तीर्थ यात्रा करा दें। श्रीकृष्ण ने कहा आपलोगों को तीर्थों में भटकने की जरुरत नहीं है, मैं सारे तीर्थों को ब्रज में ही बुला देता हूँ, आपलोग यहीं दर्शन कर लेना। और यही उन्होंने किया भी।कौन सा ऐसा तीर्थ है जो ब्रज में नहीं है? ये सभी तीर्थ ब्रज के 84 (चौरासी) कोस जो की लगभग 252 किलोमीटर की परिधि में हैं, में बसे हैं। इसी लिए ब्रज चौरासी कोस यात्रा का महत्व है कि इस यात्रा में सभी तीर्थों के दर्शन के पुण्य प्राप्त हो जाते हैं।
![]() |
श्री राधा मानसरोवर, वृन्दावन |
नंगे पैर पैदल इस यात्रा को करने से ब्रज धूलि आपके शरीर को छूती है। ऐसी यात्रा में लगभग 40 से 50 दिन लग जाते हैं और जब मौसम नरम होता है तब ऐसे तीर्थ यात्रियों की कमी नहीं रहती। किन्तु सभी में यह शारीरिक क्षमता नहीं होती और न सबके पास इतना समय होता है। अतः लोग वाहनों से भी इस यात्रा को करते हैं जिसमें पाँच से सात दिन का समय लगता है। कार-टैक्सी, ट्रेवेलेर और बसों से यात्री सालों भर इस 84 कोस ब्रज यात्रा पर आते रहते हैं।
![]() |
श्री राधा रानी मंदिर, मट, वृन्दावन |
हमने भी हाल में ही सात दिनों में भाड़े की कार से ब्रज 84 कोस की यात्रा पूरी की। इस यात्रा में एक गाइड या पथ प्रदर्शक होना आवश्यक है जिसे इस यात्रा के मंदिरों और स्थान का पता हो। प्रायः इसमें एक ब्रजवासी ब्राह्मण को गाइड रखा जाना चाहिए जो पथ -प्रदर्शन के साथ-साथ संकल्प इत्यादि का भी कार्य करा सकें। हमारे गाइड श्री सोनू कौशिक जी महाराज थे जो एक ब्रजवासी ब्राह्मण हैं। इन्होने हमें एक-एक मंदिर का भ्रमण कराया, साथ ही प्रत्येक स्थान की कथा भी सुनाते गए। किस मंदिर में क्या चढ़ाना चाहिए और किस रीति से करना चाहिए, ये सब बताते गए। इसके अलावा हमलोग सुरक्षित रहें इसका भी इन्होंने विशेष ध्यान रखा। प्रत्येक दिन के भ्रमण किये गए मंदिरों / स्थानों की सूची भी शाम को व्हाट्सएप्प पर भेज देते थे ताकि हमें याद रहे। हमलोग उनके आभारी हैं।
![]() |
श्री ललिता महात्रिपुरसुन्दरी जी मंदिर, (राधा मंदिर, मट, वृन्दावन) |
अब मैं अपनी यात्रा का विवरण लिखता हूँ जिससे यदि आप भी इस यात्रा पर जाना चाहें तो कुछ जानकारी मिल सके। हमारे एक परिचित ने वृन्दावन में बढ़िया होटल बुक किया था, नाम है SNJ Laxmi Dham, भाड़े की कार भी उन्होंने ही बुक किया था तथा गाइड श्री सोनू कौशिक महाराज जी को भी उन्होंने ही साथ लगाया था। समस्त यात्रा अच्छी तरह पूर्ण होने के कारण उनका भी धन्यवाद करता हूँ।
यात्रा जिस दिन प्रारम्भ होनी थी उससे पहले दिन शाम को हमलोग होटल पहुंचे। हमलोग अगले दिन की यात्रा की प्लानिंग तथा सोनू कौशिक जी से परिचित होने हेतु उन्हें होटल में शाम में ही बुलाया था। किन्तु शाम को मौसम एकाएक इतना ख़राब हुआ कि उन्हें होटल आने में बहुत परेशानी हुई। वर्षा, ओले और आंधी में रास्ते में पेड़ और पोल गिर गए। बेचारे एक फ्लाईओवर के नीचे घंटों खड़े रहे। इसलिए काफी देर से हमसे मिल पाए। तय हुआ की अगले दिन यात्रा प्रारम्भ करने से पहले हमलोग सर्वप्रथम यमुना जी का पूजन करेंगे तथा यात्रा का संकल्प लेंगे ताकि यमुना जी इस यात्रा की साक्षी रहें। ब्रज में यमुना जी का अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि यही हैं जिन्होंने परमात्मा श्रीकृष्ण के अवतार का सबसे पहले दर्शन किया था। जब वसुदेव जी उन्हें सर पर टोकरी में रख कर गोकुल जा रहे थे तब यमुना जी ने टोकरी में श्रीकृष्ण के पैर छूने के बाद ही उन्हें रास्ता दिया था।
अगले दिन शनिवार था और पूर्णिमा भी। दिल्ली राजधानी क्षेत्र में शनिवार को सरकारी छुट्टी होती है जिसके कारण तथा पूर्णिमा के कारण भी वृन्दावन में काफी भीड़ थी। होटल से आठ बजे हमलोग निकले। सोनू जी हमें थोड़ी दूर यमुना जी के ऐसे घाट पर ले गये जहाँ भीड़ भाड़ नहीं थी। उन्होंने फूल, पूजा सामग्री तथा नैवेद्य ले लिए थे। यमुना पूजन और संकल्प के बाद हमलोगों ने पहले दिन की यात्रा प्रारम्भ की।
पहला दिन :--
1. राधा मानसरोवर और राधा मंदिर - यह सरोवर राधाजी के आंसुओं से बना है। कथा यह है कि जब महारास हो रहा था तो सभी देवी देवता स्वर्ग से इसके साक्षी बने किन्तु किसी को भी पुरुष रूप में महारास में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। महादेव जी की उत्कट इच्छा हुई महारास में जाने की किन्तु प्रवेश द्वार पर रक्षक ललिता सखी ने कहा सिर्फ स्त्री ही प्रवेश कर सकती है। यदि आपको जाना है तो यमुनाजी के पास जाइये, वे आपको स्त्री रूप दे सकती हैं। महादेव ने यमुनाजी के पास जा कर अनुरोध किया तो वे मान गयीं। महादेव जब यमुना जी में डुबकी लगा के निकले तो एक साँवली गोपी रूप पा लिया। यह रूप ले कर वे महारास में प्रवेश किये। राधाजी के साथ बैठे श्रीकृष्ण उन्हें देखते ही पहचान गए किन्तु प्रत्यक्ष रूप में उन्होंने "आओ गोप सुन्दरी!" कह कर शंकर जी का स्वागत किया। यह सुनते ही राधा जी के मान को ठेस लगा क्योंकि वे महादेव न पहचान सकीं। राधा जी ने सोचा मैं कृष्ण की प्रिय और इतना सज-धज कर बैठी हूँ और मेरे सामने कृष्ण इस साँवली गोपी को "आओ गोप सुंदरी" कह कर इतना मान दे रहे हैं। वे रूठ कर महारास से चली गयीं और इसी स्थान पर बैठ कर रोने लगीं। उनके आंसुओं से यहाँ एक सरोवर बन गया जिसे राधा मान सरोवर का नाम पड़ा। यहाँ राधा जी का एक मंदिर भी है जिसमें महिलायें गोबर से मंदिर की पिछली दीवार पर स्वस्तिक बना कर मनौती मानती हैं। इसी मंदिर के बगल में एक छोटा सा उपवन है जिसे छोटा निधि वन भी बोला जाता है। इसे चारों तरफ और ऊपर से लोहे की जाली से घेरा गया है। बगल में ही महप्रभु जी की बैठक भी है।
बाद में श्रीकृष्ण ने राधा जी को मनाया कि यदि मैं शंकर जी को नाम से पुकारता तो सभी गोपियाँ महारास छोड़कर उनके पैर छूने चली जातीं। इसीलिए "आओ गोप सुंदरी" कह कर स्वागत किया।
![]() |
श्रीराधा मंदिर के बगल में छोटा निधिवन |
2. बेल वन में महालक्ष्मी मंदिर - महाराज जी ने बताया कि ब्रज में कुल बारह वन और चौबीस उपवन हैं। उन्हीं में से यह एक वन है बेल वन। यहाँ महालक्ष्मी जी का मंदिर है और मंदिर की पिछ्ली दीवार से सटे उनका पत्थर पर बना हजारों साल पुराना चरण चिन्ह है।
![]() |
बेलवन में श्रीमहालक्ष्मी मंदिर, वृन्दावन |
3. वंशी वट - भांडीरवन में स्थित यह स्थान है जहाँ आज भी एक 5500 वर्ष पुराना वट -वृक्ष अर्थात बरगद का पेड़ है। श्रीकृष्ण यहाँ इस इस पेड़ की डालियों पर बैठकर मधुर बाँसुरी बजाते हुए गोपियों को बुलाया करते थे और रास करते थे। यहाँ वे गायें चराने भी आते थे। वह प्रसिद्ध पंक्तियाँ - "चार पहर वंशी वट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ......" इसी स्थान से सम्बंधित हैं जब छोटे से कृष्ण यशोदा मैया को माखन चोरी से इनकार करते हुए तर्क देते हैं। यात्री गण इस वृक्ष की परिक्रमा करते हैं और इसके तना में कान लगा कर इससे आती आवाज सुनते हैं जो प्रायः ढोल जैसी होती है अथवा 'राधा' जैसी। पास ही एक मंदिर भी है जहाँ चैतन्य महाप्रभु भी पधारे थे।
![]() |
वंशी - वट, वृन्दावन |
4. भांडीरवन और भद्र वन - इस वन में एक बड़े बरगद वृक्ष के नीचे छोटा सा मंदिर है जिसमे ब्रह्मा जी राधा और कृष्ण का बचपन में विवाह करा रहे हैं। भक्त जन बरगद (भांडीर-वट) की तीन परिक्रमा करते हैं और मंदिर के पास रखी सिंदूर को पति अपनी पत्नी को पहनाते हैं। इसी स्थान पर बलराम जी ने प्रलम्बासुर का वध किया था सो बगल में दाऊजी का भी एक मंदिर है जिसके प्रांगण में स्थानीय ब्राह्मण महिला लकड़ी-उपले के चूल्हे पर बनी बाजरे की रोटी खिला रही थी जिसे मधुकरी बोला जाता है। ब्रजवासी के घर में बनी इस रोटी को प्रसाद की तरह खाया जाता है। ये बेचा नहीं जाता बल्कि प्रसाद पाने वाले अपनी इच्छा से इन्हें जो देना चाहें देते हैं। इस मंदिर के बगल में श्रीकृष्ण ने वंशी से एक कूप बनाया था जो वेणु -कूप कहा जाता है। इसका पवित्र जल लोग आचमन करते हैं। बगल में एक और बड़ा मंदिर है जहाँ ब्रह्मा जी का राधा और कृष्ण का विवाह कराते मूर्तियां हैं।
![]() |
भाण्डीरवट, जहाँ बचपन में राधा-कृष्ण का ब्रह्मा ने विवाह कराया था, वृन्दावन |
5. लोहवन - इस स्थान पर एक बड़ा सरोवर है जिसे कृष्ण कुंड कहा जाता है। यहाँ कृष्ण नौका विहार भी करते थे। कहा जाता है कि इस स्थान पर कृष्ण ने जरासंध को कई बार हराया था। सरोवर के पास एक योगमाया जी का मंदिर भी है जिसमें द्वापर युग के योगमाया का विग्रह है। हमलोग जब यहाँ पहुंचे तो पट बंद हो चूका था। इसके अलावा यहाँ एक छोटा सा मंडप है जिसमे एक ऐसी प्रतिमा लगी है जो सिर्फ जांघों तक है अर्थात कमर से नीचे तक। कहा जाता है कि इस स्थान पर कृष्ण ने लोहासुर अथवा लोहजंघासुर का वध किया था जो पास ही एक गुफा में रहता था। यहाँ एक पंडित जी मिलेंगे जो लोहजंघासुर की जंघा तक वाली प्रतिमा पर लोहे की कढ़ाई से सरसों तेल से अभिषेक कराते हैं। इस तेल को शरीर के दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द दूर होता है। हमने गुफा में जा कर भी देखा। यहाँ ऋषि तप करते थे।
![]() |
लोहवन में कृष्ण-कुंड |
6. भतरोड बिहारी मंदिर, अशोक वन -यह मंदिर एक टीले पर बना है जहाँ तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनीं हैं। दोपहर होने के कारण यह मंदिर भी बंद था। हमने बंद दरवाजे पर ही माथा टेका। इस स्थान पर श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण पत्नियों के द्वारा दिया गया मुख्यतः भात का भोजन ग्वाल बालों के साथ किया था। आधी सीढ़ी चढ़ने पर बगल में एक नाव रखा है जिसमें एक हैंडपंप और पूजा स्थान बना है। एक संत ने इस पर लगातार 12 वर्ष तक यमुना जी में रह कर तप किया था। तब यमुना जी इस मंदिर के पास ही बहती थीं। तप के बाद नाव इसी जगह आकर लगी। उन्होंने ही यह मंदिर बनवाया और अभी तक यह नाव यहाँ दर्शन हेतु रखा हुआ है।
![]() |
भतरौड़ बिहारी मंदिर और संत की नाव, अशोक वन |
7. अक्रूर जी का मंदिर - दोपहर होने के कारण यहाँ के भी पट बंद थे। इस मंदिर की दीवारों पर कृष्ण लीलाओं का चित्र अंकित है। यहाँ श्रीकृष्ण बलराम के साथ अक्रूर जी को पूजा जाता है। परिसर के एक छोर पर पंचमुखी हनुमान जी का मंदिर है जिसके बगल में एक बड़ा पुराना वृक्ष है जिसमें पाँच प्रकार के वृक्ष एक साथ हैं। पुजारी जी ने बताया कि इसकी जड़ों में दाढ़ी-मूंछ वाले नाग बाबा रहते हैं।
![]() |
अक्रूर जी का मंदिर, वृन्दावन |
8. पागल बाबा मंदिर - सफ़ेद संगमरमर पत्थरों से आच्छादित सात मंजिला यह भव्य मंदिर एक बाबा जी ने बनवाया था जो वृंदावन में पागल बाबा के नाम से मशहूर थे। उनका यह नाम उनके अजीबोगरीब कार्य के कारण मिला था। वे भक्ति भाव में इतना रम चुके थे कि सांसारिक व्यावहारिकता भूल चुके थे। बाँके बिहारी का नाम लेते दिनभर भटकते। कहीं भंडारे का बचा पत्तल मिलता तो उसी से भगवान को खिलाते और खुद भी खाते।शुरू में लोगों को यह अच्छा नहीं लगता पर धीरे धीरे लोग उनकी भक्ति को देखकर आदर देने लगे और सहयोग से यह मंदिर बनाया। इसमें जाने के लिए टिकट लगता है। भूतल पर एक तरफ कृष्ण लीला और दूसरी तरफ राम लीला से सम्बंधित सुन्दर झाँकियाँ हैं। प्रत्येक तल पर अलग अलग भगवान् की मूर्तियां हैं। सबसे ऊपर की तल पर निराकार ब्रह्म को दर्शाता 'ॐ' की आकृति बानी है।
![]() |
पागलबाबा मंदिर, वात्सल्य ग्राम, वृंदावन |
9. प्रेम मंदिर - यह 84 कोस यात्रा में नहीं आता किन्तु वृन्दावन में आकर इसे देखना कोई नहीं छोड़ता। इसीलिए पहले दिन की यात्रा "पागल बाबा मंदिर' तक पूरी करने बाद चार बजे हमलोग होटल में आकर सो गए और शाम 6 बजे प्रेम मंदिर और इस्कॉन मंदिर देखने निकले। शनिवार की छुट्टी और पूर्णिमा होने के कारण वृन्दावन में अपार भीड़ थी। होटल से प्रेम मंदिर लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर था पर पत्नी इतना पैदल नहीं चल सकती थी। आधा किलोमीटर चलने के बाद एक चाय दुकान पर बैठ गयी।हमारे गाइड सोनू जी महाराज स्वयं नहीं आ पाए थे। उन्होंने अपने भांजे हर्ष जी को भेजा जो स्कूटी से आये। हमने चाय पी और जाने का साधन खोजने लगे किन्तु इतनी भीड़ में कुछ न मिला ऊपर से सड़क पर पैदल चलने वालों रेला और जगह जगह पुलिस की बार्रिकडिंग। हर्ष जी ने हम दोनों को स्कूटी पर बिठा कर थोड़ी दूर ले गए पर उनकी स्कूटी रह रह कर बंद हो जा रही थी। अतः मैं उतर कर पैदल चला और पत्नी स्कूटी से। प्रेम मंदिर के पास उन्होंने स्कूटी लगायी और हमलोग सिक्योरिटी से निकल कर अंदर गए। आचार्य कृपालु जी महाराज का बनवाया यह भव्य मंदिर और परिसर अत्यंत आकर्षक है। शाम के समय जब यहाँ रंग बिरंगी रोशनियों में झाँकियाँ हिलती हैं तो बहुत मनमोहक लगता है। घुसते ही बायें तरफ के पार्क में कालिया मर्दन की जीवंत झाँकी को लोग देखते ही रह जाते हैं। मंदिर पर पड़ने वाले प्रकाश का रंग भी बदलता रहता है जिससे मंदिर थोड़ी थोड़ी देर में अलग अलग रंग का दिखता है। पीछे के हिस्से में एक फव्वारे से बानी पानी की दीवार पर चलचित्र प्रोजेक्ट किया जाता है जिसमें कृपालु जी महाराज का भजन दिखाया जाता है। दाहिनी तरफ गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊँगली से उठाये श्री कृष्ण की बड़ी सी झांकी है। कई झाँकियाँ हैं परिसर में। मंदिर के अंदर का दृश्य भी भव्य है। इस दिन तो ठसाठस भीड़ थी फिर भी हमने अंदर जाकर दर्शन किये। शाम को लाइट शो में यह मंदिर मनोहारी लगता है। जब भी वृन्दावन आयें तो शाम को जरूर यहाँ आयें। यहाँ कोई एंट्री फीस नहीं है।
![]() |
प्रेम मंदिर और कालिया मर्दन की झाँकी (बायें), वृन्दावन |
यहाँ से निकल कर हमने इस्कॉन मंदिर जाने को सोचा। थोड़ी दूर आगे एक गली बायें निकलती थी। इस चौक से आगे स्कूटी नहीं जा पाई तो हर्ष जी ने बगल के एक दुकान के पास स्कूटी लगाई और हम तीनों पैदल आगे बढ़े। कुछ दूर बढ़े पर भीड़ के कारण आगे बढ़ना मुश्किल हो गया। पैदल, दोपहिया, इ-रिक्सा और कार की मिलीजुली भीड़ ऐसी थी कि एक जगह से आगे बढ़ ही न सके। फिर जैसे भीड़ वापस आ रही हो ऐसा लगा। साढ़े आठ से ऊपर हो गए थे जो मंदिर बंद होने का समय था। हमने वापस लौटना ही उचित समझा। ज्यों ही हमलोग स्कूटी तक आये, ओले के साथ वर्षा शुरू हो गयी। कहीं सर छुपाने की जगह न थी। कुछ ओले की मार खाते हमलोग पूरी तरह सराबोर हो गए।पौन घंटे बाद जब वर्षा समाप्त हुई तो होटल लौटने से पहले भोजन करना चाहा। बगल के एक मारवाड़ी बासा में सीट के लिए ही 40 मिनट की प्रतीक्षा थी। स्कूटी सही हालत में न थी अतः उसे लॉक छोड़ कर हमलोग पैदल लौटे। एक छोटे से होटल में दस मिनट खड़े रह कर बैठने की जगह मिली जहाँ भोजन कर निकले। हमने हर्ष जी को अपनी स्कूटी ले कर वापस लौटा दिया और दोनों आदमी सवारी को पूछते पूछते पैदल होटल की ओर चले। काफी पैदल चलने के बाद एक इ-रिक्शा वाले ने आगे की सीट पर हम दोनों को बैठाया और होटल के पास उतारा।
(अगले पोस्ट में दूसरे दिन की यात्रा का विवरण पढ़ें - ब्रज 84 कोस यात्रा, भाग - 2)
इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah