Saturday, July 2, 2022

तख्तेश्वर महादेव मंदिर, भावनगर, गुजरात, (हिन्दी ब्लॉग) - Takhteshwar Mahadev Temple, Bhavnagar, Gujrat

पिछले ब्लॉग निष्कलंक महादेव, भावनगर, गुजरात (हिन्दी ब्लॉग) से आगे ....... 

तख्तेश्वर महादेव मंदिर, भावनगर, गुजरात
Takhteshwar Mahadeva Temple, Bhavnagar, Gujrat
 

            हमलोगों ने सवेरे स्नान कर बिना कुछ खाये तख्तेश्वर महादेव, भावनगर में पूजा करने का सोचा क्योंकि यह स्थान शान्वी गेस्ट हॉउस (जहाँ हमलोग ठहरे थे) से मात्र 25 किमी की दूरी पर है। निकलते -निकलते नौ बज चुके थे। रास्ते में दोनों तरफ कुछ कीकर की झाड़ियाँ  नजर आ रहीं थीं। जमीन उपजाऊ नहीं लग रही थी। धीरे -धीरे गर्मी बढ़ने लगी। लगभग एक घंटे के अंदर हमलोग गूगल मैप के सहारे यहाँ पहुंचे। मंदिर एक छोटी पहाड़ी टीले के ऊपर बना था। गाड़ी का रास्ता आधी पहाड़ी पहाड़ी तक बना था। जगह को अच्छे से विकसित किया गया था। जो लोग पूजा के निमित्त न आ कर सिर्फ मनोरंजन के लिए आना चाहें तो उनके लिए भी जगह अच्छी है। साफ़-सुथरी। बैठने के लिए कुछ बेंच भी बने हैं। वहाँ गाड़ी खड़ी कर हमलोग सीढ़ियों से ऊपर मंदिर तक पहुँचे जो टीले पे सबसे ऊपर बना था। साफ़ सुथरा पर एक्का दुक्का आदमी। गर्भ गृह के सामने बरामदे के एक कोने में एक पंडित जी कुछ जप कर रहे थे।एक मालाकार गर्भगृह के बाहर बायीं ओर बैठा फूल माला बेच रहा था। गर्भ गृह में सामने तख्तेश्वर महादेव शिवलिंग के रूप में विराजमान थे। शिवलिंग के बायीं ओर एक बुजुर्ग पुजारी बैठे थे।  गर्भ गृह सामने बरामदे से दो फ़ीट ऊँचाई पर था। हम सोच ही रहे थे कि पता नहीं अंदर जाने की परंपरा है या नहीं, तभी एक सज्जन आये और अंदर जाकर पुजारी के सामने बैठे और पूजा की। उसके निकलने के बाद हमलोगों ने भी अंदर जा कर पूजा करने का अभिप्राय पुजारी जी को बताया।  उनकी स्वीकृति मिलने के बाद मालाकार से फूल -माला लेकर परिवार सहित अंदर अंदर गए और पुजारी जी के निर्देश के अनुसार पूजा कर निकले। 

तख्तेश्वर महादेव मंदिर, भावनगर, गुजरात
Takhteshwar Mahadeva Temple, Bhavnagar, Gujrat
 

             हमें यहाँ आने से पहले यह अनुमान था कि साळंगपुर की तरह ही यहाँ भक्तों की काफी भीड़ होगी और और मंदिर में पूजा करते-करते घंटे भर का समय तो निकल ही जायेगा। पर यहाँ तो मुहल्ले के शिव-मंदिर जैसा ही नजारा था और दस मिनट में ही पूजा से निबट गए। काफी समय था अभी हाथ में। तो मंदिर के चारों तरफ घूमने लगे। यहाँ से शहर का अच्छा दृश्य दिखाई पड़ रहा था। इस पहाड़ी पर भी कई प्रकार के पेड़ लगाए गए थे जिसमें बेल के पेड़ अधिक थे, कारण स्पष्ट था कि शिव को बेलपत्र बहुत प्रिय हैं। हमने मोबाइल से कुछ चित्र लिए और कुछ देर मंदिर की ही छाया में बैठे। 

Baba Takhteshwar Mahadeva,
Bhavnagar, Gujrat

            अब सोचा कि अगला जो मंदिर सोचा था श्री कोडियार माता मंदिर, वहाँ दर्शन -पूजन कर लें। गूगल मैप में कई कोडियार माता का मंदिर दिख रहा था, पर जो मंदिर मैप पर असली लग रहा था वह मात्र चार किमी दूर ही था। फिर भी एक बार किसी स्थानीय से पूछ लेने का सोचा। तो गए उसी मालाकार के पास। उसने तो बताया कि मंदिर अट्ठारह किमी दूर है। बड़ा कन्फ्यूजन हो गया। भूख लग रही थी, ऊपर से गर्मी भी बढ़ती जा रही थी। सोचा जैसे हमलोगों के तरफ काली माँ का मंदिर होता है, एक शहर में कई, तो वैसे ही होगा। क्यों न पास वाले में जाएँ, मैप में तो जैसे इसे ही बड़ा और ओरिजिनल मंदिर बता रहा था। सो हमलोग मैप देखते -देखते उस स्थान पर पहुंचे। पर हमलोगों का यह निर्णय बिलकुल गलत निकला। मैप के लोकेशन पर कई बार आगे पीछे हुए, एक साधारण मंदिर भी न था वहाँ। स्थानीय लोगों से पूछा पर सभी ने कहा यहाँ पर ऐसा कोई मंदिर नहीं है। पता नहीं किसने मैप पर यह इनफार्मेशन डाला था, हमलोग बिलकुल मायूस हो गए। 

भावनगर में तख्तेश्वर महादेव मन्दिर

           अब असली मंदिर दूसरी जगह खोजने की हिम्मत न रही। पता नहीं खोजते हुए इस गर्मी में भटकें और सही मंदिर मिले न मिले। भावनगर हमलोग लगभग पार ही कर चुके थे। हमलोगों ने अहमदाबाद की ओर बढ़ने का निश्चय किया और सोचा कि अगर एक घंटे के अंदर हाईवे के किनारे कोई ढंग का मंदिर मिलेगा तो पूजा कर लेंगे क्योंकि अभी तक हमलोग भूखे ही थे। शहर के बाहर निकलते ही फिर वैसा ही वातावरण। दूर तक परती सफ़ेद मैदान जिसमें कहीं कहीं झाड़ियाँ। कई जगह बड़ी -बड़ी मशीनों से नमक के टीले लगाए जा रहे थे और ट्रकों में लादे जा रहे थे। तब मैंने सोचा कि ये परती जमीन सफ़ेद क्यों नजर आ रही है। वस्तुतः खम्भात की खाड़ी से समुद्र का पानी इनमें आता है जो सूखने पर सफ़ेद नमक की परत के रूप में जमीन पर बैठ जाता है। जिन खेतों में बार बार समुद्र का पानी फैला कर सुखाया जाता है वहाँ नमक की मोटी परत आ जाती है जिसे समेत कर इकट्ठा किया जाता है और बेचा जाता है। 

भावनगर, गुजरात में तख्तेश्वर महादेव
पहाड़ी पर एक बेल से लदा वृक्ष

लगभग एक घंटा होने को चला था और कोई मंदिर न पाकर अब हमलोगों ने मन ही मन माता जी को प्रणाम किया और भोजन कर लेने का सोचा। मेरी बेटी को आज का दिन बेकार जाने जैसा लग रहा था। मैप पर ही देख कर उसने कहा कि पास ही एक वेलवाडार ब्लैक बक नेशनल पार्क है। टाइम है अभी तो क्यों न देख लें। ब्लैक-बक यानि काला हिरण का नेशनल पार्क। उसका मन रखने के लिए चले हमलोग। रास्ता हाइवे से उतर कर था और हाईवे से 10 किमी दूर था पार्क का एंट्री गेट। जमीन पर करीब सात-आठ फुट मिट्टी भराई कर सिंगल लेन का रोड बनाया गया था। गेट आने से पहले ही कई काले हिरण झुण्ड में दो तीन सौ फ़ीट की दूरी पर दिख रहे थे, कुछ और पास में भी। सड़क के दोनों ओर झाड़ीनुमा पेड़ थे जिनमें सियार और नेवले भी दिखे। एंट्री गेट के बहार गाड़ी खड़ीकर मैं छोटे से ऑफिस में गया। प्रति व्यक्ति 200 टिकट और अपनी गाड़ी से पार्क के अंदर घूमने पर 750 अलग फिर गाइड का 400 रूपये अलग। अगर उनकी खुली जीप लेकर चलेंगे तो 1200 रुपए। जब मैंने गाड़ी में आकर बताया तो कोई भी जाने को तैयार न हुआ। बोले ये लोग कि जब सिर्फ काले हिरण ही दिखाएंगे तो वो हमने रास्ते में ही देख लिया, इसके लिए पैसा और समय बर्बाद नहीं करेंगे, ऊपर से भूख और गर्मी। तो बस, उसी तरह सड़क से ही ब्लैक-बक देखते हुए लौटे हमलोग। इतना तो तय है कि इस पार्क का मज़ा लेना चाहते हैं तो जाड़े के दिनों में ही आयें। मौसम और घूमने दोनों का आनंद आएगा।

भावनगर से अहमदाबाद निकलते ही
एक सुन्दर पुल के ऊपर घूमती चिड़ियाँ 

हाईवे पर आकर ड्राइवर को बोला कि भाई जो ढंग का पहला ढाबा मिले, रोक लेना। संयोग से जल्द ही ढाबा मिल भी गया जिसमें हमें ढंग का भोजन भी मिल गया। अहमदाबाद आने के बाद भी हमारे पास समय बचा था। पत्नी ने कहा कि जब हमलोग पिछली बार सोमनाथ-द्वारकाधीश यात्रा पर आये तो अहमदाबाद घूमने के क्रम में एक काली मंदिर भी गए थे, तो क्यों न वहीँ जाएँ आठ साल बाद। तो हमलोग लाल दरवाजा के पास काली मंदिर में गए। यहाँ टोकरी में नारियल, प्रसाद और फूल ले कर माँ का दर्शन किया और प्रसाद ले कर निकले। मंदिर के बाहर एक किन्नर था, उसे कुछ पैसे देकर हमलोग आगे बढ़े। एक बुजुर्ग गुजरती दंपत्ति भी पूजा कर निकल रहे थे, पत्नी से उन्होंने बात करना चाहा पर हमारी हिंदी उन्हें समझने में दिक्कत हो रही थी। खैर किसी तरह संवाद आगे बढ़ा उन महिला ने पत्नी को बताया कि किन्नर से किस प्रकार आशीर्वाद लेना चाहिए। उनके बताये अनुसार फिर कुछ पैसे किन्नर को दे कर नियमानुसार आशीर्वाद लिया और लौटे।

                  बाहर का इलाका बहुत ही भीड़ भरा और मेले जैसा था। सड़क तरह -तरह की दुकानों से भरा पड़ा था। बस पैदल या बाइक से ही चल सकते थे। सड़क से कुछ गलियाँ भी निकल रही थीं जिसमे बाहर से छोटे लगने वाले तरह -तरह के दूकान नजर आ रहे थे। पत्नी ने खोज कर एक साड़ी के दूकान से कुछ साड़ियाँ खरीदीं। यह पूरा इलाका मुस्लिम बहुल है और अधिकतर दुकान उन्हीं लोगों का है। 

            अब शाम हो चला था। हमलोग भी थक गए थे। आठ बजे फ्लाइट थी। तो सोचा समय से पहले ही एयरपोर्ट पहुँच कर आराम करेंगे। इसलिए सालंगपुर और भावनगर की यात्रा पूर्ण कर हमलोग वापस लौटे।  

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Friday, May 6, 2022

निष्कलंक महादेव, भावनगर, गुजरात - (हिंदी ब्लॉग)

पिछले ब्लॉग - "BAPS श्रीस्वामीनारायण मंदिर, सालंगपुर, गुजरात" - से आगे .........  

निष्कलंक महादेव का स्थान, भावनगर, गुजरात

         श्रीकष्टभंजनदेवजी हनुमान मंदिर, साळंगपुर से निष्कलंक महादेव की दूरी लगभग 82 किमी है। अर्थात हमें भावनगर शहर के बाईपास से होकर और आगे जाना था। निष्कलंक महादेव जी का स्थान (यदि मंदिर कहें तो बिना छत और दीवारों के) अरब सागर से जुड़े खम्भात की खाड़ी के किनारे है जो काठियावाड़ प्रायद्वीप की तरफ है। वस्तुतः यह शिव स्थान खाड़ी के किनारे जमीन पर नहीं है बल्कि किनारे से आधा किमी पानी की ओर है। यह है कि यहाँ पर तल छिछला है और समुद्र के दैनिक ज्वार-भाटे के कारण कुछ घंटों के लिए पानी दूर चला जाता है और गीली, रेतीली और पथरीली ज़मीन रहती है जिस पर चल कर महादेव तक जाया जाता है। पर्यटक और भक्त इन्हीं कुछ घंटों में वहाँ जाते हैं, पूजा करते हैं और उल्लास के साथ मस्ती, फोटो या वातावरण का आनंद लेते हैं फिर वापस किनारे पर आ जाते हैं। 

शिवलिङ्ग निष्कलंक महादेव, भावनगर, गुजरात  

      यद्यपि हमलोग मार्च के द्वितीय सप्ताह में पर्यटन के लिए गए थे फिर भी गुजरात में दिन में तीखी धूप और गर्मी थी। रास्ते में चारों ओर हरियाली के नाम पर कीकर के कुछ झाड़ीनुमा पेड़ और परती खेत। नतीजे में गर्मी तो होनी ही थी। कई जगह तो हाइवे के किनारे तपती धूप में कुछ लोग एक झंडा दिखाते हुए आने जाने वाली गाड़ियों को रुकने का इशारा कर रहे थे और पानी के लिए दान की याचना कर रहे थे। 

शान्वी रिसोर्ट, निष्कलंक महादेव के निकट

       हमलोगों का यहाँ शान्वी रिसोर्ट आरक्षित था। जब हमलोग यहाँ पहुंचे तो चेक-इन का समय हो चुका था पर उन्हें और 15 मिनट देर थी, सो हमने भोजन करने का निश्चय किया क्योंकि सालंगपुर में हमलोगों ने हल्का जलपान ही किया था और  भूख लग चली थी। होटल का रेस्टोरेंट अलग में एक बड़े चबूतरे पर था जिसके चारों ओरे बाँस की रेलिंग थी और छत भी बाँस और फूस का ढलवाँ बना था। जैसे गाँव में बने होते हैं। खाना बढ़िया था पर वाश बेसिन वाला पानी कुल्ली करने में नमकीन था। शायद भूमिगत जलस्रोत में समुद्री नमकीन पानी का अंश आ चुका है वहाँ। पीने के लिए पैकेज़्ड बोतल उपलब्ध थे। 
समुद्र-किनारे से निष्कलंक महादेव को जाने की
यात्रा प्रारम्भ

     जब खाना खाकर आये तो रूम तैयार था जो भूतल पर ही था। कुल मिलाकर बेड्स ठीक ही थे पर वाशरूम में पानी के लिए कहना पड़ा क्योंकि वे लोग टंकी में पानी चढ़ाने के लिए मोटर चलना भूल गए थे।  

          होटल में रिसेप्शन के सामने दीवार पर एक सारणी लगी थी जिसमे निष्कलंक महादेव तक जाने के लिए समय का अंतराल लिखा था। यह प्रतिदिन एक समान नहीं था बल्कि चाँद के अनुसार तिथिवार एक पक्ष के लिए अलग-अलग समय था। इस लिस्ट के अनुसार उस दिन हमें लगभग चार बजे तट पर जाना उचित था। रूम में आने के बाद देखा कि चार बजने में अभी समय था। अतः हमने एक-डेढ़ घंटे आराम करना सही समझा। 

निष्कलंक महादेव चबूतरे का दृष्य 

         चार बजे जब हमलोग तट पर पहुंचे तो बाइक और चार-चक्कों की भीड़ लगी थी। झोंपड़ीनुमा दुकानों की कतारें थीं जिनमें खाने-पीने का सामान, पानी का बोतल, नारियल-पानी और चाय इत्यादि मिल रहे थे। लोगों ने बताया कि निष्कलंक महादेव समुद्र की तरफ दूर में वहाँ हैं जहाँ एक लाल-सफ़ेद रंग का स्तम्भ नज़र आ रहा था। उन्होंने कहा कि हम अपने जूते चप्पल दूकान के पास रख दें और पैदल ही जाएँ अन्यथा चलने में परेशानी होगी। उनकी बात मानकर एक दूकान के पास हमने अपने जूते चप्पल उतारे, एक पानी का बोतल लिया और चल दिए महादेव की ओर। आगे भक्तों और पर्यटकों की कतार जा भी रही थी और आ भी रही थी। कतार के चलने के कारण समुद्र तल पर पगडण्डी बन गयी थी जिसमें बगल की गीली-पथरीली जमीन से पानी रिस कर आ रहा था और नाली की तरह धीरे-धीरे बह रही थी। खाली पैर इस पानी में या इसके बगल की थोड़ी गीली रेत में चलना अच्छा लग रहा था। कहीं कहीं भीख माँगने वाले भी खड़े थे। एक भिखारी ने जो शायद काफी देर से धूप में खड़ा था, मेरे हाथ में पानी देख कर पैसे के बजाय पानी ही माँगा। जब प्यास लगी हो तो कितने भी पैसे हो पास में, वह प्यास नहीं बुझा सकता। प्यास तो बस पानी ही बुझा सकता है। उस समय एक पानी के बोतल का मोल सिर्फ 20 रूपये नहीं होता वरन अमूल्य होता है। हमलोग होटल से पानी पीकर निकले थे और संभवतः वापस किनारे तक हमलोग बिना पानी के आ सकते थे, फिर साढ़े चार बजे धूप भी काफी कमजोर हो चुकी होती थी। अतः मैंने वह बोतल माँगने वाले को दे दिया।

निष्कलंक महादेव चबूतरे के पास
पहुँचने के पहले

        जब हमलोग अपने गंतव्य पर पहुंचे तो देखा कि यह एक बड़ा सा गोल चबूतरा (Platform) है जिस पर एक तरफ लगभग 50 फ़ीट ऊँचा स्तम्भ है जो लाल-सफ़ेद के एकान्तर पट्टियों में रंगा था ताकि दूर से ही दिखाई दे। इसके निचले भाग में श्रीहनुमानजी की एक मूर्ति है। इससे थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा शिवलिंग है जिसके पास एक पंडितजी बैठे हैं जो इच्छुक भक्तों को पूजा भी करा रहे हैं। प्लेटफॉर्म पर दो और छोटे शिवलिंग भी हैं। इतनी दूर से आये थे तो हमने भी बड़े शिवलिंग पर पूजा की, नंदी को प्रणाम किया। फिर स्तम्भ वाले हनुमान जी की भी पूजा की। 

समुद्री चिड़िया (Sea Gull) को दाना

          पूजा के बाद चबूतरे पर चारों तरफ घूमे। एक तरफ पानी ज्यादा था जिसमे कई युवक नहाते हुए मस्ती कर रहे थे। कुछ परिवार बच्चों के साथ आये थे, बच्चे किनारे के कम पानी में मस्ती कर रहे थे। एक तो पालतू कुत्ते के साथ आये थे। बेचारा कुत्ता रास्ते में गीली रेतीली मिटटी से गन्दा हो गया था जिसे साफ़ करने के लिए उसे उन्होंने पानी में नहलाना चाहा पर वह डर कर उछल भागा। कुछ लोग यूँ ही बैठ कर चारों ओर के नज़ारे का आनंद ले रहे थे। कुछ लोग सीगल नामक समुद्री चिड़ियों को मकई का लावा (दस-दस रूपये में ये चिड़ियों के दानों का पैकेट वहाँ मिल रहा था) खिला कर आनंदित हो रहे थे। और जो काम सबसे ज्यादा हो रहा था वह था सेल्फी और फोटो लेना। हमलोगों ने भी ये सब एन्जॉय किया। लगभग घंटे भर वहाँ बिताने के बाद हमलोगों ने वापस किनारे जाने का फैसला लिया। मन में एक अनजाना डर यह लग रहा था कि कहीं जल स्तर बढ़ना न शुरू हो जाये यद्यपि यह डर सही न था क्योंकि अभी भी भक्त और पर्यटक आ ही रहे थे। फिर उसी प्रकार नंगे पैरों से आधे किमी की भीगी, रेतीली जमीन पर चलकर किनारे उस दूकान के पास आये जहाँ हमने अपने चप्पल रखे थे। 
गीली, रेतीली और पानी भरे पगडण्डी से किनारे
का सफर जबकि सुहावना सूर्यास्त सामने हो|
🙏निष्कलंक महादेव की जय🙏

        थोड़े थक चुके थे तो कुछ खाने का सोचा। दुकान वाले के पास नारियल पानी और स्वीट कॉर्न था। वही खाये हमलोग।  स्वीट कॉर्न बढ़िया न बना था।फिर चाय भी ट्राय किया पर ढंग का न लगा। अंततः होटल की ओरे लौट चले। 

            शाम हो चली थी। होटल का लॉन बढ़िया था और हमारे रूम के सामने भी। झूले भी थे लॉन में जिस पर दो लोग बैठ सकते थे। झूले पर बहुत अच्छा लग रहा था। डेढ़ दो घंटे हमने वहीँ मस्ती की। बाहर में बढ़िया चाय न मिली थी अतः होटल के रेस्टॉरेंट से वहीं चाय मंगाई गई और एन्जॉय किया। रात का खाना रूम में ही खाया। सबेरे जल्दी नींद खुली। रूम से बाहर निकला तो सामने लॉन और भी अच्छा लग रहा था क्योंकि सूर्योदय होने वाला था। पूरे परिवार के साथ हमलोगों ने लॉन में बैठ कर सनराइज का आनंद लिया। 

शान्वी रिसोर्ट से सूर्योदय का नजारा
भावनगर, गुजरात

         हमारे टूर का आज अंतिम दिन था और रात में अहमदाबाद से फ्लाइट लेनी थी। सोचा कि दिन में कहीं और दर्शन कर लिया जाय तो बढ़िया। नेट पर देखा तो भावनगर में दो जगह मंदिर जाने का सोचा। एक तो श्रीतख्तेश्वर महादेव मंदिर और दूसरी श्री कोडियार माता मंदिर।   


           भावनगर ज्यादा दूर न था अतः पूजा करने की सोच कर हमलोगों ने नाश्ता न किया बस स्नान कर गाड़ी से निकल पड़े। आगे की यात्रा का विवरण अगले ब्लॉग पोस्ट में।          

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Friday, April 15, 2022

BAPS श्रीस्वामीनारायण मंदिर, साळंगपुर, गुजरात (हिंदी ब्लॉग)

अतिसुन्दर लैंडस्केप के बीच BAPSश्रीस्वामीनारायण मंदिर का भव्य भवन 
 

      श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान मंदिर, साळंगपुर, गुजरात के पिछले दरवाजे से निकल कर हमलोग BAPSश्री
स्वामीनारायण मंदिर की तरफ बढ़े। गेट के बाहर ही एक बड़ी बड़ी सींगों वाली गौ माता के दर्शन हुए। 
मंदिर द्वार से बाहर गौमाता के दर्शन 

           जिस गेट से हमलोगों ने प्रांगण में प्रवेश किया, उधर मुख्य मंदिर के बगल वाला भाग हमारे सम्मुख था। गर्भ गृह दोतल्ले के ऊपर था जहाँ जाने के लिए बगल से भी सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। किन्तु हमारे सामने वाली सीढ़ियों से प्रवेश बंद था। हमलोग मंदिर के सामने पहुंचे जहाँ से भव्य मंदिर के भवन का दर्शन हो रहा था। मंदिर में अभी भी निर्माण कार्य का "फिनिशिंग" कार्य चल रहा था जिसके "शटरिंग" लगे हुए थे। सीढ़ियों से चढ़कर प्रथम तल पर पहुंचे जहाँ एक हॉल में अनेक संतों के चित्र और विवरण थे। इससे ऊपर वाले तल पर जाने पर देखा की गर्भ गृह के चारो तरफ वरामदे से बायीं ओर जाने का रास्ता रखा गया था किन्तु एक रस्सी से अवरोध जैसा बनाया गया था। अंदर गर्भ गृह के  सामने हॉल में लोग मौजूद थे। मैं सोच ही रहा था कि अंदर जाने की क्या व्यवस्था है, तभी रस्सी के बगल में बैठी एक बुजुर्ग महिला ने गुजराती में हमें कुछ कहा। थोड़ी कठिनाई से उसने हमें यह समझाया कि अन्दर सिर्फ भाई लोग ही जा सकते हैं, बहनों का जाना वर्जित है। इसके बाद झुककर रस्सी के नीचे से मैं अंदर गया। हॉल से गर्भ - गृह में कई देव - विग्रहों का दर्शन किया जिनमे श्रीराम, हनुमान सहित श्री स्वामीनारायण प्रभु भी थे। दर्शन कर मैं बगल वाली सीढ़ियों से नीचे उतरा। सीढ़ी पर कई छात्र पारम्परिक धोती -कुर्ता में बैठे थे। पता चला कि इसी परिसर में एक महाविद्यालय भी है जहाँ संस्कृत और वेदों की शिक्षा दी जाती है। छात्रों के रहने की व्यवस्था भी परिसर में ही है। फूल -पत्तियों से सजे वाटिका और करीने से काटे गए हेज के कारण यह परिसर बहुत ही सुन्दर है। भव्य मुख्य मंदिर के सामने एक ऊँचे पेडस्टल पर घोड़े पर सवार भगवान की सुनहली मूर्ति है जो बहुत ही भव्य है। 
BAPSश्रीस्वामीनारायण मंदिर, सालंगपुर के सामने
घोड़े पर सवार प्रभु की सुनहली प्रतिमा

       इस घोड़े वाली मूर्ति के सामने लगभग १०० फ़ीट की दूरी पर, एक चबूतरे पर भगवान के चरण-कमल बनाये गए हैं, जिसकी भक्तगण परिक्रमा कर रहे थे। यहाँ भी महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। मुख्य मंदिर से निकलने के बाद मैंने भी यहाँ परिक्रमा की और चरण -कमलों को प्रणाम किया।  
   यहाँ से थोड़ी दूर पर एक सुन्दर सा मंदिर और दिखा तो उधर भी गया। यहाँ स्वामीनारायण -संप्रदाय से जुड़े और इसे मजबूत कर जन जन तक फ़ैलाने में योगदान देने वाले गुरुओं की मूर्तियाँ थीं। भक्तगण गुरुओं को प्रणाम कर रहे थे। इस मंदिर से निकल कर मैं मुख्य मंदिर तरफ वापस आने लगा जिसके पास पत्नी और पुत्री मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। 
संतों को समर्पित मनोहारी मंदिर, साळंगपुर, गुजरात

     मंदिर से निकलते ही पास में एक पवित्र वृक्ष है जिसको भक्त जन श्रद्धापूर्वक स्पर्श कर प्रणाम कर रहे थे। मैंने भी वैसा ही किया किन्तु उस वृक्ष की प्रजाति नहीं पहचान पाया। यहाँ उस वृक्ष की फोटो दे रहा हूँ। 
पवित्र वृक्ष, Sacred tree, श्रीस्वामीनारायण मंदिर-
परिसर, साळंगपुर, गुजरात
Saalangpur, Gujrat

       यहाँ आ कर बहुत ही मन को शांति मिली और जो सौंदर्य के साथ भव्यता का संगम है वह अद्भुत है। आप की भक्ति का स्तर जो भी हो, किन्तु यहाँ आ कर मंदिर की वास्तुकला, वाटिका (गार्डन) को संजो कर रखने का प्रयास, अतिसुन्दर लैंडस्केपिंग, परिसर की स्वच्छता और इस संप्रदाय द्वारा शिक्षा के प्रसार की सराहना किये बिना न रह पायेँगे। सुन्दर नेपथ्य के परिदृश्य के कारण हमने बहुत से फोटो लिए तब स्वयं को इस अनमोल क्षण में पाने के लिए प्रभु का आभार मानते हुए परिसर से बाहर आये। 
 (Official site of this temple is - https://www.baps.org/home.aspx)

       अभी तक सबेरे से हम लोग बिना भोजन-पानी के ही थे क्योंकि श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान मंदिर और BAPS श्रीस्वामीनारायण मंदिर दोनों ही जगह दर्शन करने थे। अगला पड़ाव 80 किलोमीटर दूर भावनगर से आगे निष्कलंक महादेव का दर्शन करना था। अतः हमलोगों ने अल्पाहार करना उचित समझा। दोनों मंदिरों के बीच वाले रास्ते (जिसमें कई छोटे-छोटे दुकान थे) से चल कर हमलोग एक साइड पहुंचे जहाँ एक ढंग का देसी दुकान नजर आया। यहाँ पकौड़े और गुजराती नाश्ते मिल रहे थे और साथ में चाय भी। हमने स्वादिष्ट नाश्ते का मजा लिया और अतिथिशाला में अपना कमरा खाली कर चाभी काउंटर पर दिया। उन्होंने मेरी सिक्योरिटी मनी वापस की और हमलोगों ने सामान कार में रख कर भावनगर की तरफ प्रस्थान किया जहाँ समुद्र तट के पास निष्कलंक महादेव हैं। इसी के पास हमारा शान्वी रिसोर्ट में कमरा आरक्षित था। 
      अगले ब्लॉग पोस्ट में निष्कलंक महादेव की यात्रा और दर्शन का वर्णन करूँगा।               

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Friday, April 1, 2022

श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान मंदिर, सालंगपुर, गुजरात (हिंदी ब्लॉग)

भूमिका
श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान मंदिर, सालंगपुर, गुजरात

श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान मंदिर, सालंगपुर, गुजरात एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है जो स्वामीनारायण संप्रदाय से जुड़ा है। देश के कोने कोने से भक्तजन यहाँ दर्शन के लिए आते हैं ताकि उनके कष्टों का नाश हो और मनोरथ पूरा हो। बहुत से लोग जिन्हें भूत-प्रेत बाधा होती है उनका भी झाड़-फूँक की व्यवस्था है जो परिसर के ही हरिमंदिर के बेसमेंट में होता है। परिसर बहुत ही बड़ा है एवं साफ़ सुथरा है। बहार से आने वाले भक्तों को रुकने के लिए गेस्ट हॉउस / धर्मशाला की भी बढ़िया व्यवस्था है।

श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान जी
साळंगपुर, गुजरात 


मन्दिर की स्थापना

    श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान जी की स्थापना सद्गुरु गोपालानंद स्वामी द्वारा की गयी है। सद्गुरु गोपालानंद स्वामी का उद्धव सम्प्रदाय (स्वामीनारायण संप्रदाय) के विस्तार में बड़ी भूमिका है। स्वामी जी एकबार बोटाद पधारे थे | उनके दर्शन के लिए साळंगपुर के ठाकुर वाघाखाचर आये | प्रणाम के उपरांत स्वामीजी जी ने कुशल मंगल पूछा | वाघाखाचर ने चिंतित होकर दीन स्वर में प्रार्थना की - "स्वामी जी, पिछले तीन साल से अकाल पड़ रहा है और आर्थिक स्थितियाँ कमजोर हो गयी हैं। संतजन आते तो हैं पर हमारी परिस्थितियाँ देखकर रुकते नहीं, अतः सत्संग दुर्लभ हो गए हैं।" यह सुनकर स्वामीजी का संत हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने कहा -"मैं तुम्हें एक भाई देता हूँ जिससे आपकी सब समस्याओं का समाधान हो जायेगा। सब कष्टों का भंजन करनेवाले हनुमानजी की प्रतिष्ठा मैं साळंगपुर में कर देता हूँ। इससे आपके सब कष्ट सर्वदा के लिए मिट जायेंगे।" यह सुनकर ठाकुर साहेब भावविभोर हुए और स्वामीजी के चरणों में अपना मस्तक रख दिया। स्वामीजी ने स्वयं हनुमानजी का चित्र तैयार किया और शिल्पकार कानजी मिस्त्री को मूर्ति तैयार करने हेतु दिया। मूर्ति और मंदिर के तैयार होते ही संवत 1905 के आश्विन कृष्ण पंचमी के दिन शाश्त्रोक्त विधिपूर्वक श्रीकष्टभंजनदेव हनुमानजी की प्राण-प्रतिष्ठा संपन्न हुई। प्रतिष्ठा के बाद स्वामीजी ने हनुमानजी महाराज का आवाह्न किया। हनुमानजी महाराज के मूर्ति प्रवेश होते ही मूर्ति में कम्पन होने लगा। तब स्वामीजी ने हनुमानजी से कहा कि -"जो भी मनुष्य यहाँ स्वामिनारायणजी में निष्ठा रखते हुए अपने कोई भी दुःख ले के आपकी शरण में आये, आप उनके दुःखों का अंत करके उन्हें सुखी करें।" फिर स्वामीजी ने अपने पास से एक लकड़ी देकर कहा - जब किसी भी प्रकार से उपद्रव का नाश न हो तब अंत में इस लकड़ी से स्पर्श किये जल से छिड़काव करने से तुरंत उपद्रव शांत हो जायेगा। 

मंदिर के सामने धार्मिक
पुस्तकों और गिफ्ट सामग्री
की दूकान


स्वामीजी की बात सच्ची हुई। आज भी जो कोई दीन - दुःखी लोग अपने कष्टों को ले कर आते हैं, श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान जी की कृपा से उनका दुःख दूर होता है। श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान जी आज भी यहाँ साक्षात विराजमान हैं, उनकी कृपा से भक्त-जन लोग यहाँ से हँसते हुए जाते हैं। बिना किसी भेदभाव के यहाँ सभी के कष्टों का निवारण होता है, कोई जात -पात नहीं देखी जाती।

मन्त्र

 श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान जी का कष्टहरण मन्त्र निम्नलिखित है। 

"ॐ नमो हनुमते भयभंजनाय सुखं कुरु फट् स्वाहा"

 

व्यवस्था

बाहर से आने वाले भक्तों को चिंता होती है कि रात्रि विश्राम के लिए रेस्ट हाउस में रूम पूर्व से ही बुक हो जाये पर पहले से फोन या ऑनलाइन रूम बुक करने की व्यवस्था नहीं रखी गयी है। इस सम्बन्ध में जब मैंने फोन से पहले पूछा था तो बताया गया कि आने के बाद आपको रुकने की व्यवस्था मिल जाएगी। और उनका यह कहना बिलकुल सत्य था। संयोग ऐसा था की हमें शनिवार के दिन पहुंचना था। सभी जानते हैं कि शनिवार और मंगलवार को श्री हनुमान जी का विशेष दिन होता है और मंदिरों में कई गुना ज्यादा भीड़ होती है। रुकने की व्यवस्था को लेकर मैं थोड़ा चिंतित था क्योंकि परिवार के साथ जाना था, पर बड़े बड़े तीन रेस्ट हाउस देखकर चिंता दूर होगयी और बड़े आराम से एक AC रूम दिया गया जो पर्याप्त बड़ा था और चार सिंगल पलंग लगा था। 

यात्रा
अतिथि गृह, श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान मंदिर-
परिसर, रात्रि दृष्य

  हमलोगों का मुख्य उद्देश्य श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान मंदिर, सालंगपुर में दर्शन और रात्रि विश्राम था। हमने एक दिन अतिरिक्त रखा ताकि आसपास के धार्मिक स्थलों का भी दर्शन कर लिया जाय। जब ऑनलाइन पड़ताल की तो लगभग 90 किमी दूर भावनगर के पास एक निष्कलंक महादेव मंदिर का पता चला। हमने अगले दिन वहीँ जाने का कार्यक्रम रखा। अतः अगले दिन के रात्रि विश्राम के लिए इसीके पास ठहरने के लिए रूम बुक किया जो "शान्वी रिसोर्ट" में था। चूँकि हमारे निवास स्थान से साळंगपुर बहुत ही दूर है अतः हमने समय बचाने के लिए हवाई यात्रा बुक की जो दिल्ली से एक कनेक्टिंग फ्लाइट द्वारा थी। ठहरने और आने -जाने का इंतेज़ाम होने बाद समस्या थी गुजरात में भ्रमण के लिए टैक्सी की। सबेरे हमें अहमदाबाद एयरपोर्ट पर उतरना था और तीसरे दिन रात में वापसी की फ्लाइट भी वहीं से थी। अतः मैंने तीन दिनों के लिए राउंड ट्रिप टैक्सी की तलाश की। बड़े बड़े यात्रा वाली साइटों जैसे MMT पर टैक्सी का रेट बहुत ही महंगा दिखा। फिर मुझे एक साइट मिला जो cabbazar.com के नाम से था। इसपर मैंने तीन दिनों के लिए रॉउंडट्रिप की टैक्सी बुक कर ली जो एक एर्टिगा कार थी। मुझे ड्राइवर और गाडी का नंबर दे दिया गया जिससे मैंने बात कर अहमदबाद एयरपोर्ट पर सबेरे आने का टाइम दे दिया। 


श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान मंदिर परिसर 
स्थित रेस्ट हाउस 

इंडिगो की फ्लाइट थी पर जब आप सस्ता फ्लाइट देखते हैं तो कनेक्टिंग फ्लाइट में बीच में विमान बदलने के दौरान जो इंतज़ार का समय होता है वह बहुत बोरियत भरा होता है अगर समय रात का हो और लगभग छः सात घंटे हो। वही हमारे साथ हुआ। आने और जाने दोनों समय। उसपर भी जाते समय दिल्ली में टर्मिनल 2 पर उतारा गया जबकि कनेक्टिंग फ्लाइट टर्मिनल 1 से थी। पहली बार ऐसा मौका था। सो टर्मिनल बदलने के लिए कुछ यूट्यूब से सीखा और परेशानी न हुई पर दोनों टर्मिनल अच्छी दूरी पर हैं, लगभग आठ किलोमीटर।

श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान मंदिर परिसर में बैलगाड़ी
की मूर्ति

सबेरे जब हमलोग अहमदाबाद एयरपोर्ट से निकले तो ड्राइवर और गाड़ी को खोजने में पंद्रह मिनट लग गए क्योंकि जगह और ड्राइवर दोनों ही अपरिचित थे। वहां से हमलोग सीधे साळंगपुर के लिए निकले जो 160 किलोमीटर दूर था। रस्ते में एक जगह चाय पी। जब हमलोग एक बजे मंदिर परिसर पहुंचे तो गाड़ियों की अपार संख्या देखकर दंग रह गए। गाड़ी की पार्किंग के लिए जगह नहीं मिल रही थी। मुझे रात्रि विश्राम के लिए कमरे की चिंता थी तो मैंने पार्किंग के लिए निर्देश दे कर गेस्ट हाउस के रिसेप्शन पर पहुंचा। मेंबर्स की संख्या और कमरे का प्रकार जान कर उन्होंने मुझे एक AC कमरा दिया जिसके लिए 1200 रूपये चार्ज और 500 रूपये सिक्योरिटी मनी लिया गया। कमरे में अटैच टॉयलेट वाशरूम और एक बालकनी थे। परिवार और सामान को कमरे पर लाकर पहले तो हमलोग फ्रेश हुए फिर श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान जी (दादा) के दर्शन के लिए परिसर स्थित मंदिर की ओर चले। अभी दर्शन बंद था, तो तबतक हमलोगों ने आसपास स्थित सुविधाओं का जायजा लिया। मंदिर के पास ही कुछ दुकान हैं जिनमें भगवन को छुलाया जल का बोतल 10-10 रूपये में दिए जा रहे थे। रक्षा -सूत्र और पुस्तकों की अलग दुकान थी। एक बड़ी दुकान जिसमें दादा के विभिन्न साइज़ के फोटो और souvenir मिल रहे थे। बगल में ही बड़ी सी भोजनशाला थी। मंदिर के बगल में ही विभिन्न प्रकार के दान के लिए काउंटर भी बने थे।

1. श्रीहरि मंदिर में विग्रह, 2. अंदर के हॉल का दृश्य 
3. हॉल के अंदर श्रीस्वामीनारायण प्रभु की बैलगाड़ी
4. मंदिर के सामने यज्ञशाला
(श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान जी मंदिर परिसर, सालंगपुर,गुजरात) 

लगभग तीन बजे दर्शन के लिए मंदिर का पट खुला जिसमे महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग अलग लाइन की व्यवस्था थी और भीड़ अत्यधिक। यद्यपि फोटो खींचना मना था पर लोग आराम से अपने अपने मोबाइल से फोटो और वीडियो बना रहे थे। इस वजह से जब तक आप नजदीक न पहुँच जाएँ या आपकी हाइट सामान्य से अधिक न हो तब तक दादा का दर्शन होना मुश्किल है। पहली बार श्रीकष्टभंजनदेव हनुमान जी का दर्शन कर स्वयं को धन्य मानते हुए मंदिर से निकले। मंदिर के दाहिने द्वार से निकलते ही देखा की पुआल की बनी छोटी सी यज्ञशाला में कुछलोग हवन यज्ञ कर रहे हैं। इसके बगल में ही एक हरी मंदिर है जिसमे स्वामीनारायण प्रभु की मूर्तियां हैं। मंदिर के बड़े से हाल में एक कोने में श्री स्वामीनारायण प्रभु की बैलगाड़ी लटका कर रखी गयी है जिसे सभी आस्थापूर्वक छू रहे हैं। उनके नहाने का पत्थर भी दूसरे कोने में रखा गया है। मंदिर के बरामदे पर कुछ भीड़ देखी तो पता चला कि भूत व्याधियों से ग्रस्त लोग आते हैं जिनका बेसमेंट में झाड़फूंक होता है, उनको नंबर से पुकारा जा रहा था।


भोजनशाला          

भोजनशाला के अंदर का दृष्य,
SriKashtbhanjandev Hanuman Mandir Campus
Salangpur, Gujrat

 अब हम सभी को भूख का एहसास हुआ तो गए भोजनशाला के अंदर। भोजनशाला का हॉल बहुत बड़ा है। स्टील की थालियाँ, कटोरी और चम्मच एक जगह रखीं थीं। हमने एक -एक सेट बर्तन उठाये और लाइन में लगकर चावल, दाल, सब्ज़ी, खीर और हलवा लिए और बैठने के लिए टेबल पर थोड़ी साफ़ जगह देखकर भोजन प्राप्त किया। हमलोग देर से भोजनशाला में आये थे इसलिए अधिकतर टेबल पर भोजन के अंश गिरे थे। इन्हें लगातार सफाई की व्यवस्था न थी। खाने के बाद जूठे बर्तनों को सफाई के स्थान पर रखकर हमने हाथ धोये। निकलने वाले द्वार के पास पीने के पानी की व्यवस्था है।  


परिसर
भव्य पिछला द्वार, श्रीकष्टभंजनदेव हनुमानजी
मंदिर, सालंगपुर,गुजरात

  भोजन के पश्चात् हमलोग परिसर में घूमे और और मोबाइल से फोटोग्राफी किया। लाइफ साइज बैलों की जोड़ी की मूर्तियों के पास फोटो खींचने वालों का जमावड़ा था। इस तरफ भी एक बड़ा सा सजावटी द्वार है जिधर से सिर्फ पदयात्री ही प्रवेश कर सकते हैं। क्योंकि इधर सीढ़ियाँ बनी हुई हैं और वाहन प्रवेश संभव नहीं है।  इस द्वार से निकलने पर पाया कि यह सड़क आगे कहीं गाँव में जाती है। सड़क के दूसरी ओर एक और बड़ा परिसर है जो श्रीस्वामिनारायण मंदिर का परिसर है। इस समय गेट बंद था तो हमने सबेरे इस मंदिर में आने की योजना बनाई। इस सड़क के एक तरफ छोटी छोटी दुकानें थीं जिसमे खिलौने, फोटो, मूर्तियां, कलाकृतियाँ और जूस -कोल्ड ड्रिंक्स बिक रहे थे। वहां से वापस मंदिर परिसर में घूमते -देखते रूम पर आये और आराम किया।  फिर संध्या आरती देखने शाम को मुख्य मंदिर गए। वहाँ जब दर्शन बंद हुआ तो हमलोग मुख्य गेट के पास चाय पीने गए। इस गेट के पास भी परिसर में कई दुकानें हैं जिसमे एक अच्छा सा रेस्टॉरेंट भी है। पर यहाँ भीड़ बहुत थी।  किसी तरह चाय मिली पर पता नहीं क्यों चाय जैसी स्वाद नहीं आ रहा था।

Neelkanth Mahadev Temple at
SriKashtbhanjandev Hanumanji Temple campus
Salangpur, Gujrat

काफी देर के बाद जब भीड़ कुछ कम हुई तो हमने पंजाबी और गुजराती थाली ले कर यहीं भोजन किया। अबतक मौसम सुहाना हो चुका था, परिसर में रौशनी, चौड़े रास्ते और गार्डन बहुत ही अच्छा महसूस हो रहा था। जगह- जगह बैठने के लिए बैंच बने थे। हमलोगों ने भी वहां बैठ कर मौसम और समय का आनंद लिया। फ़िर जल्दी ही रूम में सोने गये ताकि सबेरे उठकर बिना कुछ खाये दर्शन हो जाये। योजना के अनुसार अगले दिन दर्शन कर परिसर मे कुछ फोटो, छुलाये जल का बोतल और रक्षा सूत्र खरीदा और दान वाले काउन्टर पर यथोचित दान किया |


नारियल फोडने वाले हनुमान्  
प्रसाद का नारियल फोड़नेवाले
हनुमानजी, सालंगपुर, गुजरात

     इसके बाद प्रसाद मे चढ़ाये गए सूखे नारियल को कैसे फोड़ें यह समस्या थी क्योंकि सुरक्षा कारणों से इन्हें हवाई यात्रा में ले जाने में झिझक हो रही थी। हमने देखा कि भोजनशाला के कोने पर एक बड़े से पीतल के हनुमान जी की मूर्ति है जिनका मुख बड़ा सा खुला हुआ है। लोग नारियल को उनके मुख में डाल रहे हैं और वह अंदर से आधा टूट कर मूर्ति के बायें हाथ से नीचे एक बर्तन में गिर रहा है। हमने भी ऐसा ही किया। यह कौतुक भरा दृष्य यूट्यूब के इस लिंक पर देखा जा सकता है।  

नारियल फोड़ते हनुमान जी

साळंगपुर मंदिर 

     इसके बाद हमलोगों ने पड़ोस के परिसर स्थित श्री स्वामीनारायण मंदिर में दर्शन करने का सोचा। पिछले द्वार से निकल कर हमलोग श्रीस्वामीनारायण मंदिर के परिसर की और चले। इसका विवरण अगले ब्लॉग में।     

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