Thursday, December 26, 2024

शनि सिंगणापुर यात्रा

पिछले ब्लॉग पोस्ट "परली वैजनाथ ज्योतिर्लिंग" से आगे :-

सिंगणापुर वाले शनि महाराज का विग्रह

       परली से हमें शनि सिंगणापुर जाना था जहाँ हमें रात्रि विश्राम करना था ताकि अगले दिन सबेरे हम शिंगणापुर वाले शनि महाराज की पूजा कर सकें। तीर्थ यात्रा के हमारे राउंड ट्रिप का यह अंतिम देवस्थल था जिनकी सूची हमने बनाई थी। शनि पूजा के बाद फिर हम मुंबई जाने वाले थे जहाँ से हमारी वापसी की फ्लाइट बुक्ड थी। हमलोग मैप देख कर ही जा रहे थे। कहीं 4 - 6 लेन रोड तो कहीं सिंगल लेन वाली ग्रामीण सड़कों से गुजरे क्योंकि मैप हमें शॉर्टेस्ट रूट दिखता है। गूगल मैप से ऐसी यात्राओं में बहुत सुविधा हो गयी है। परन्तु इसमें कभी कभी कन्फूजन हो जाता है और जब भी ऐसी स्थिति आये तो स्थानीय लोगों से रूट कन्फर्म कर लेना चाहिए। इस यात्रा में भी एक जगह ऐसी ही स्थिति आयी। एक जगह हमें फ्लाईओवर के नीचे से जा कर फ्लाईओवर वाली 4 -लेन सड़क पर जाना था पर उस जगह मैप पर अजीब सा जलेबी जैसा सड़क दिखा रहा था। अपने अनुभव से मैंने ड्राइवर को कहा की यहाँ थोड़ा सतर्क हो कर रास्ता खोजना होगा। सच में जहाँ ड्राइवर मुड़ना चाह रहा था वहाँ से आगे गाड़ी का रास्ता ही न था। गाड़ी खड़ी कर सोच ही रहा था कि सामने दूर खड़े एक आदमी ने इशारा किया कि इधर रास्ता नहीं है। ड्राइवर ने उससे इशारों में फ्लाईओवर पर जाने का रास्ता पूछा। उसने थोड़ा पीछे जाने कहा। ड्राइवर ने गाड़ी बैक की। तभी देखा की एक ट्रक बायीं ओर जा रही है, उसके पीछे चले। थोड़ी दूर के बाद ट्रक खेतों के रास्ते निकल कर ओझल हो गया। हमलोग फिर ठिठक गए। तभी एक इन्नोवा पीछे से आ कर उसी रास्ते गयी, तब हमारी भी हिम्मत हुई। बिलकुल कच्ची रास्ता, टायरों के गहरे गड्ढ़े पर धीरे -धीरे गाड़ी आगे बढ़ी। आगे जाने पर स्पष्ट हो गया कि यही रास्ता हमें 4 - लेन सड़क पर ले जाएगी। कठिनाइयों से ही सही, हमलोग उस सड़क पर पहुँच गए और आगे की यात्रा जारी रही। 

शनि सिंगणापुर चबूतरे के ठीक सामने मंदिर, ऊपर वही शनि मन्त्र लिखा है,
ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।

            शाम छः बजे तक हमलोग शिंगणापुर पहुँच गए। शनि मंदिर से पहले एक पुल है जिसके पहले एक मार्किट का आँगन है। ड्राइवर ने अपने एक पहचान वाले दूकान के सामने गाड़ी रोक दिया। यह दूकान वाला शनि मंदिर के लिए फूल प्रसाद बेचता था। उसने तभी से बताना शुरू किया कि पूजा के सामान उसी के दूकान लूँ। यहाँ हमने होटल तो बुक किया नहीं था। इस मार्किट के किनारे भी एक होटल था। पर लोगों ने बताया कि मंदिर के सामने भक्त-निवास भी हैं जहाँ सस्ते रेट पर रूम मिल जाते हैं। तो पहले हमने वहीँ देखने का फैसला किया क्योंकि कई धर्मस्थल में मंदिर के भक्त निवास सस्ते, अच्छे और नजदीक होते हैं। हमलोग दो आदमी गए देखने। गेट के पास ही भक्त-निवास का कमरा बुक किया जाता है। हमने उनसे पहले कमरा देखने का आग्रह किया। तो एक लड़के को भेजा हमारे साथ। कमरे लॉज जैसे थे जिसमे लोहे के खटिये पर पतले गद्दे रखे थे। रूम भी पुराने थे। कुल मिलाकर हमें वहाँ पर अच्छी फीलिंग नहीं लग रही थी। तो बिना बुक किये हम गाड़ी के पास आ गए। 

होटल रूम में बाहर से ताले नहीं लगते बल्कि
ऐसी सिटकनी लगायी जाती है

                फिर मार्किट वाले होटल को ही देखने की सोचा। यह ठीक ठाक था और किराया भी 1200 प्रति दिन था। तो हमने अपना सामान होटल के रूम में रखा। सामने गाड़ी पार्किंग की काफी जगह थी। अजीब बात यह थी कि यहाँ होटल के रूम में ताले नहीं लगाए जाते। आप बहार से सिटकनी चढ़ा कर निकल सकते हो। होटल वाले ने बताया कि यहाँ शनि महाराज के भय से कोई चोरी नहीं करता। जो भी हो एक बात अच्छी थी कि CCTV कैमरे लगे थे। हम सभी फ्रेश हो कर संध्या दर्शन के लिए शनि मंदिर की ओर निकले। पूजा दूकान वाला हमपर नजरें लगाए था। निकलते ही पूजा सामान के लिए फिर आग्रह किया। हमने कहा कि अभी सिर्फ दर्शन के लिए जा रहे हैं, सबेरे पूजा के लिए जायेंगे तो जरूर सामान लेंगे। 

शनि सिंगणापुर और उनके सामने मंदिर की मूर्तियाँ

          शनि मंदिर का कैंपस बहुत बड़ा है और सड़क के दोनों तरफ है। जब आप पुल से आगे बढ़ते हैं तो मुख्य मंदिर का कैंपस दाहिनी तरफ है परन्तु प्रवेश आप बायीं तरफ के कैंपस से ही कर पाएंगे। दाहिनी तरफ से सीधे मुख्य मंदिर कैंपस में जाने का एक छोटा रास्ता है जो स्टाफ एवं स्थानीय लोगों के लिए है। बायीं कैंपस में बड़ा सा खुला पार्किंग है जिसके एक तरफ दुकानें एवं भक्त-निवास है तथा दूसरी तरफ भव्य प्रवेश द्वार एवं विभिन्न structures हैं। प्रवेश द्वार के जस्ट दाहिनी तरफ जूते-चप्पल स्टैंड है। यद्यपि अधिकतर लोग बहार ही चप्पल खोल प्रवेश कर रहे थे।   

          प्रवेश करते ही सामने ऊपर बड़े अक्षरों में शनि मन्त्र लिखा हुआ है - "ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।'' यहाँ पर दाहिनी तरफ एक लम्बा गार्डन है।गार्डन के सामानांतर एक लम्बा कोर्रिडोर है जिसमें एक तरफ विभिन्न मूर्तियाँ नाम के साथ बनी हैं। जबकि ठीक सामने एक सुन्दर सा प्लेटफॉर्म है जो नदी में प्रोजेक्टेड है यहाँ आप सेल्फी ले सकते हैं या खड़े हो कर दृश्य निहार सकते हैं। इस मंदिर में मोबाइल ले जा सकते हैं तथा फोटो खींचने की भी मनाही नहीं है। अब इसी प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर बायीं तरफ एक लम्बा ढलान वाला गलियारा मिलेगा जो सड़क के दूसरी तरफ मुख्य मंदिर कैंपस में जाने का रास्ता है। यह रास्ता मुख्य सड़क के नीचे अंडर पास से गुजरता है। इसी रास्ते से जाकर हमलोग मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचे। यहाँ एक त्रिशूल है जिसपर भक्त आक के पत्तों की माला लगाते हैं। तथा तेल को छोड़ कर अन्य पूजा सामग्री पास के टब में छोड़ते हैं। पुनः यहाँ से एक लम्बे कॉरिडोर के अंत में एक स्टॉल के पास पहुँचते हैं जहाँ मंदिर की तरफ से सरसों तेल बेचा जाता है जो कि शनि महाराज को मुख्य्तः चढ़ाया जाता है। यहाँ से दाहिनी तरफ खुले चबूतरे पर शनि महाराज का विग्रह है जो किसी मूर्ति जैसी नहीं है बल्कि लगभग पाँच फ़ीट ऊँचे पत्थर के अंक 1 के आकार की काले ग्रेनाइट की आकृति है। 

खूबसूरत दृश्य और फ़ोटो खींचते भक्त जान
शनि सिंगणापुर

        यहाँ एक बात बता दूँ कि आज कल हर शहर में शनि महाराज मंदिर है जो आज से 30 -35 वर्ष पहले नहीं पाए जाते थे। इन मंदिरों में शनि महाराज की मनुष्याकृति में प्रतिमाएँ होती हैं जिनमें जाने से कई धर्माचार्य मना करते हैं जिसके पीछे कारण यह दिया जाता है कि शनि को मिले श्राप के कारण उनकी दृष्टि जिसपर जाती है उसका अनिष्ट होता है। अतः हमें शनि की नजरों के सामने पड़ने से बचना चाहिए। वे धर्माचार्य शिंगणापुर वाले शनि महाराज की जैसी विग्रह के सामने जाने की अनुमति देते हैं क्योंकि यहाँ न मूर्ती है और न उनमे आँखें बनी हैं। मैं इस मत से सहमत हूँ, इसीलिए शनि महाराज के दर्शन पूजन हेतु शिंगणापुर आने का कार्यक्रम बनाया। अपने घर/शहर में शनिवार को हमलोग श्रीहनुमान जी की पूजा करते हैं क्योंकि स्वयं शनि ने हनुमानजी को वरदान दिया था कि जिस पर आप की कृपा होगी उसे शनि का कष्ट नहीं होगा। शनिवार को व्हाट्सप्प पर भी गुड मॉर्निंग सन्देश में शनि की फोटो नहीं बल्कि हनुमानजी की फोटो भेजना उचित है। यहाँ जो विग्रह है वह एक स्थानीय व्यक्ति को जंगल में मिटटी के नीचे मिला था। ऐसा पत्थर देख कर उसे अजीब लगा। रात में शनि महाराज ने उसे सपने में दर्शन दिया और उस विग्रह को ला कर स्थापित और पूजने का निर्देश दिया। कहा जाता है कि यहाँ इनके दर्शन से शनि के ग्रह जनित सारे कष्ट दूर होते हैं। 

सिंगणापुर शनि मंदिर में कलश जैसा दान पात्र

         इस शिंगणापुर के शनि मंदिर में जब आप 500 की पास खरीद कर जायेंगे तो चबूतरे पर जाकर पूजा कर सकते हैं। शाम को जब हमलोग यहाँ आये तो एक व्यक्ति को चबूतरे पर जा कर गैलन से सरसों तेल विग्रह पर डालते देखा। सामान्य लोगों के लिए चबूतरे के नीचे ही सरसों तेल डालने के लिए कई टब बने हैं जिसपर जालियाँ लगी हैं ताकि तेल छन कर जाए। यहाँ से पाइप द्वारा तेल लगातार शनि-विग्रह पर गिरता रहता है। इस चबूतरे के ठीक सामने एक हॉल जैसा मंदिर है जिसमें सामने दीवार नहीं है, बाकी तीन तरफ दीवार हैं और छत भी है। यहाँ से शनि महाराज का चबूतरा सीधा दिखता है। इस मंदिर के पिछली दीवार में एक संत की मूर्ति है जिनके बगल में श्री हनुमान जी की भी मूर्ति है। दर्शन के बाद आगे बढ़ने पर एक बड़े कलश के आकार का दानपात्र है तथा दीप-धूप के लिए जगह बना है। दर्शन के बाद निकलने के लिए भी एक लम्बा कॉरिडोर है जिसमे दो जगह प्रसाद बिक्री के काउंटर हैं। यहाँ पीले रंग के नारियल की बर्फी प्रसाद में मिलती है। एक पैकेट खरीदकर हमलोगों ने खाया।  

शाम की रौशनी में फोटो खींचते भक्तजन,
शनि सिंगणापुर

             यह कॉरिडोर आपको उसी अंडर पास के पास लाता है जिससे हमलोग आये थे। इस कॉरिडोर के बगल में लम्बी-लम्बी सीढ़ियाँ बनी हैं जो परिसर की चहारदीवारी के पास बने लम्बे खूबसूरत तालाब तक ले जाती हैं। यहीं एक ऊँचा सुन्दर सा टावर बना जिसमें नीचे नवग्रह की मूर्तियाँ हैं। शाम की रौशनी में दूर से यह टॉवर बहुत आकर्षक नजर आता है। कुल मिलकर मंदिर और परिसर बहुत सुन्दर बनाया गया है, यहाँ तक कि जिस छोटी नदी के किनारे है उसके साइड्स भी पक्के किये गए हैं।   

इसी ढलान वाले कॉरिडोर से आप मंदिर के अंदर आयेंगे

             जैसा हम लोग सोच रहे थे कि भीड़ और लम्बी कतार होगी, संयोग से वैसा नहीं था। शाम को जब हम लोग पहुंचे तो लगभग तीस के करीब भक्तजन होंगे। यद्यपि कहा जाता है कि शनि की पूजा शाम को की जाती है परन्तु हमलोगों को सबेरे स्नान कर खाली पेट ही पूजा करने की श्रद्धा होती है। अतः हम लोग शाम को सिर्फ दर्शन और मंदिर परिसर से परिचित होने ही आये थे। दर्शन के बाद मंदिर से निकल कर हम लोग होटल की तरफ आये। यहाँ सड़क के दूसरी तरफ एक ढंग का रेस्टॉरेंट नजर आ रहा था तो वहीं पर खाना खाया और होटल आ कर सो गए।  

          सबेरे तैयार हो कर होटल से निकले। पूजा सामग्री के लिए हम लोग उसी दुकानदार के पास गए जिससे वादा किया था। शाम को तो सारा परिसर देख समझ ही लिया था। उसी के अनुसार दर्शन पूजन किया। सरसों तेल हम लोगों ने टब में ही डाला और पूजन कर वापसी वाले कॉरिडोर से निकले। सुबह की रौशनी में वातावरण और भी अच्छा लगरहा था और मंदिर भी ज्यादा सुन्दर लग रहा था। हमने फोटो वगैरह खिंचवाए और निकल कर वापस आये। दुकानदार को कॅश पेमेंट करना था पर खुदरा लौटाने में उसे समस्या थी तो UPI से पेमेंट किया। बाद में देखा कि फोन-पे में दुकानदार का जो नाम था वह एक मुस्लिम नाम था।   

कोल्हू वाला गन्ने का रस, सिंगनापुर में

  

             एक रेस्टॉरेंट में चाय पी कर हमने होटल से चेक-आउट किया और अपने टैक्सी से निकल पड़े अंतिम पड़ाव मुंबई  लिए। सड़क के किनारे खेत थे जिनमें खूब गन्ने की खेती थी। किसानों ने गन्ने पेरने के लिए कोल्हू लगा रखा था। ऐसे ही एक कोल्हू के पास ड्राइवर ने गाड़ी रोकी। उस दूकान में गुड़ पाउडर से बने कई प्रकार के चाय के पैकेट थे जिनमें से एक प्रकार के पैकेट ड्राइवर को अपने बच्चे के लिए लेने थे। हमने भी चाय वाली गुड़ पाउडर खरीदी। परन्तु हमलोगों का मुख्य आकर्षण तो कोल्हू का बैल था जिसकी सीधी और लम्बी सींग थी, जैसा हमारी तरफ नहीं होता। मैंने बैल के बारे में पूछ-ताछ की तो उसने एक देसी नस्ल का नाम लिया। यह भी बताया कि ऐसी सींग के लिए विशेष उपाय किया गया है और इससे भी बड़ी सींग वाला बैल  दूकान के पीछे बंधा है। हमने पीछे जाकर उसे भी देखा। सुंदर लग रहा था। कोल्हू से निकलवा कर हमने गन्ने का रस भी पिया। और फिर आगे बढ़ चले।   

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Monday, December 23, 2024

परली वैजनाथ ज्योतिर्लिङ्ग

(पिछले ब्लॉग पोस्ट "औंधा नागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग" से आगे) 

परली वैजनाथ मंदिर का बायाँ प्रवेश द्वार जिधर पार्किंग है l

      श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के पूजन के बाद हमारा परली में श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग पूजन का कार्यक्रम था इसीलिए हमने कुछ खाया-पिया नहीं था। परली तक का रास्ता लगभग तीन घंटों का था। वहाँ पूजा के बाद हमें रुकना नहीं था बल्कि रुकने का कार्यक्रम था शनि सिंगणापुर में। हमलोग गूगल मैप से रास्ता देख कर जा रहे थे। परली में प्रवेश तो कर गए पर जो मैप पर मंदिर का लोकेशन दिखा रहा था वहाँ पहुँचने पर वह एक प्राथमिक विद्यालय का निकला। मंदिर के आसपास का वातावरण एक अलग किस्म का होता है किन्तु जहाँ हम पहुँचे वहाँ कोई बड़ा मंदिर आसपास नहीं लग रहा था। कुछ लोगों से पूछा तो बताया दो किलोमीटर दूर है और सही ढंग से रास्ता इस अनजान जगह में समझ नहीं आ रहा था। तब हमें याद आया की हमें यहाँ के पंडित जी पाठक जी का नंबर दिया गया था। उनको फोन कर व्हाट्सप्प पर मंदिर का लोकेशन मंगवाया। तब फिर मैप से मंदिर के पास पहुंचे। ड्राइवर ने गाड़ी को मंदिर के बायीं ओर बने पार्किंग में लगाया। यहाँ से मंदिर में प्रवेश आसान था। मंदिर के सामने से पैदल करीब 30-35 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। बायीं द्वार के पास से प्रवेश करने से पहले हम लोग पंडित पाठक जी को खोज लेना चाहते थे। वहीं चबूतरे पर कुछ पंडित जी बैठे थे। उन्हीं से पूछा तो उनमें से एक ने कहा मैं ही हूँ, मुझे सबेरे औंधा से खबर भेज दिया गया था। 

          परली वैजनाथ ज्योतिर्लिङ्ग की स्थापना के पीछे भी वही रावण वाली कथा है जो श्रीबैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग, देवघर के साथ है। अर्थात जब रावण शिवजी द्वारा दिए गए शिवलिङ्ग को एक व्यक्ति को थोड़ी देर के लिए पकड़ने कहता है ताकि वह लघुशंका से आ जाये यह नसीहत देते हुए कि इसे जमीन पर न रखे। पर रावण को लघुशंका में बहुत देर हो जाती है और वह व्यक्ति शिवलिङ्ग को धरती पर रख कर चला जाता है। शिव जी की शर्त थी कि जहाँ भी इसे धरती पर रखोगे वहीं यह स्थापित हो जायेगा। जब रावण वापस आ कर देखता है तो शिवलिंग को उखाड़ने की बहुत कोशिश करता है पर असफल हो जाने पर गुस्से में शिवलिंग पर प्रहार करता है जिससे यह जमीन में थोड़ा धँस जाता है। यद्यपि देवघर में शिवलिंग का स्वरुप ऐसा ही धँसा हुआ है अर्थात शिवलिंग की ऊँचाई काफी कम है पर परली में ऐसा नहीं है। यहाँ का शिवलिंग सामान्य से थोड़ा बड़ा ही है।   

परली वैजनाथ मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार

     बगल के चप्पल स्टैंड में चप्पल खोल कर हमलोग उनके साथ परिसर में प्रवेश किये। फूल की डलिया ले कर मंदिर में प्रवेश किया। गर्भ गृह में जाने के लिए करीब 20-25 लोगों की लाइन थी। हमे स्पर्श पूजा करनी थी तो पंडित जी ने बताया कि गर्भ गृह के अंदर जा कर कमर के ऊपर के कपड़े निकाल लें तब स्पर्श पूजा कर सकते हैं। हमने ऐसा ही किया। स्पर्श कर ज्योतिर्लिङ्ग को जल फूल आदि चढ़ाया फिर प्रणाम कर अपने कपडे पहन निकले और सामने के हॉल में बैठ कर पूजा समाप्ति और क्षमा प्रार्थना कर पंडित जी को दान-दक्षिणा दिया। फिर मंदिर प्रांगण को देखते हुए निकले। मंदिर प्रांगण में यहाँ एक अलग प्रकार का दृश्य दिखा। कोनिकल टोपियाँ पहने और सफ़ेद वेश भूषा में कुछ लोग किनारे से एक लाइन में बैठे थे। उनके सामने कुछ चावल रखे थे। वे लोगों को बुला कर उनके सर पर अपनी टोपी रख कर आशीर्वाद दे रहे थे और लोग उन्हें दान दे रहे थे। मैं उनके बारे में ज्यादा पूछ ताछ नहीं कर पाया। 

ऐसे वेशधारी परली वैजनाथ मंदिर प्रांगण में नजर
आयेंगे जो आपको अपनी टोपी सर पर रख कर आशीर्वाद देंगे l

           आँगन में और भी कई छोटे मंदिर हैं। उन्हें प्रणाम करते हुए हमलोग मंदिर से निकले। मुख्य द्वार से पहले प्रसाद का काउंटर था। कुछ प्रसाद ख़रीदे तो काउंटर वाले ने कहा कि बाहर दाहिनी तरफ मुफ्त भोजन मिलता है, खा लो। थोड़ा प्रसाद ले कर मुख्य द्वार से कुछ सीढ़ियाँ उतर कर पूछते हुए भक्त निवास के बगल से उस जगह पहुँचे जहाँ भोजन खिलाया जा रहा था। अंदर हॉल में भोजन किया जा रहा था और बाहर लोग हॉल खाली होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। हमने भी भोजन के कूपन काउंटर से लिए और प्रतीक्षा में बैठे। हमने सोचा था कि परली में पूजा के बाद भोजन ग्रहण करेंगे और हमलोग यहाँ यह सोच कर आये कि बाहर भोजन से अच्छा है कि मंदिर का भोजन प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाये। पर थोड़ी देर में ही हमें समझ में आ गया कि यह भोजन मंदिर की तरफ से नहीं है बल्कि किसी संस्था द्वारा लोगों से दान प्राप्त कर मुफ्त में खिलाया जाता है। डिस्प्ले पर प्रत्येक दिन दान में प्राप्त राशि और उस दिन भोजन खिलाये गए लोगों की संख्या लिखी थी। मैंने सोचा कि पूजा के बाद हमलोग दान देते हैं पर हमलोग यहाँ पूजा के बाद दूसरों के दिए दान से भोजन करने बैठे हैं जो उचित नहीं है। यह विचार आते ही मैं विचलित हो गया। परिवार से विचार कर हमने काउंटर पर दान दे कर रसीद लिए और भोजन का कूपन लौटा कर जाने लगे। इसपर उनलोगों ने भोजन न करने का कारण पूछा। मैंने बहाना बनाया कि हमें दूर जाना है इसलिए ज्यादा प्रतीक्षा नहीं कर सकते। इस पर उन्होंने जिद्द कर हमे उसी बैच में जो कुछ सीट खाली थे उसपर बिठा दिया। अब हमलोग स्पष्ट कारण बता नहीं पाए तो भोजन करना पड़ा। पर अब इतना संतोष था कि दूसरे के दान से न खाया बल्कि दान दे कर खाया। 

               भोजन पा लेने के बाद थोड़ी देर हमलोग मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर सीढ़ियों पर बैठे। सुबह से चाय नहीं पी थी। वहीं एक पेड़ के नीचे गुमटी में चाय बन रही थी। चाय का आर्डर दे कर हमलोग बातें करने लगे कि किस तरह हमारा कार्यक्रम कि तीन दिनों में चार ज्योतिर्लिङ्ग का दर्शन/पूजन करना सफल रहा। हम सभी संतुष्ट हो कर महादेव का आभार व्यक्त किये। 

          अब हमें रात्रि विश्राम शनि सिंगणापुर में करना था इसलिए जल्द यहाँ से निकलना उचित था। चप्पल स्टैंड में जा कर अपने-अपने चप्पल लिए और टैक्सी में बैठ कर शनि सिंगणापुर के लिए निकल पड़े।      

(अगले ब्लॉग पोस्ट में पढ़िये शनि सिंगणापुर की यात्रा के बारे में)

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Thursday, December 19, 2024

औंधा नागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग

  पिछले ब्लॉग पोस्ट "श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन-पूजन एवं तथा एलोरा गुफाएँ" से आगे :-

संध्या में श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग मंदिर, औंधा, महाराष्ट्र

     बारह ज्योतिर्लिंगों में से आठवें ज्योतिर्लिंग हैं नागेश अथवा नागेश्वर। जिनके स्थान के बारे में "द्वादशज्योतिर्लिंग स्मरणम स्तोत्र" में कहा गया है कि नागेशं दारुका वने अर्थात श्रीनागेश ज्योतिर्लिंग दारुका वन में हैं। गुजरात के द्वारका के पास दारुका वन क्षेत्र में नागेश ज्योतिर्लिंग माना जाता है पर कुछ मान्यताओं के अनुसार महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के औंधा नमक स्थान पर स्थित एक भव्य शिव मंदिर ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं जिन्हें औंधा नागनाथ भी कहा जाता है। गुजरात के नागेश ज्योतिर्लिंग का दर्शन-पूजन हमलोगों ने सन 2014 कर लिया था जिसका यात्रा विवरण इस ब्लॉग में दे चुका हूँ। यद्यपि श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन-पूजन से हमारे बारह ज्योतिर्लिंग की तीर्थ-यात्रा हो चुकी थी किन्तु महाराष्ट्र के औंधा नागनाथ और परली वैद्यनाथ ऐसे शिव-मंदिर हैं जिनका दावा कुछ लोग ज्योतिर्लिंग के रूप में करते हैं। अतः हमने पहले से ही इन दोनों स्थानों की यात्रा का भी कार्यक्रम बना लिया था। 

सूर्योदय के समय श्रीऔंधा नागनाथ  मंदिर, महाराष्ट्र

          पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दारुक नामक राक्षस ने एक शिव-भक्त सुप्रिय को उसके सेवकों के साथ पकड़ कर अपने नगर दारूकावन में कैद कर लिया तब सुप्रिय ने महादेव से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान एक ज्योति के रूप में कारागार में प्रकट हुए और उन सबकी रक्षा की। भक्तों की प्रार्थना पर महादेव उस स्थान पर नागेश ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। 

श्रीऔंधा नागनाथ मंदिर की दीवारों पर सुन्दर शिल्पकला
का अद्वितीय नमूना

         श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पूजन एवं एल्लोरा गुफाओं के भ्रमण के बाद हमलोगों ने गूगल मैप देखते हुए औंधा की ओर प्रस्थान किया। लम्बा रास्ता था, औंधा पहुँचते शाम के सात बज गए क्योंकि कुछ जगह सड़क बनायी जा रही थी इस कारण भी देर लगी। यहाँ हमलोगों ने पहले से होटल बुक नहीं किया था। मंदिर के पास ऑनलाइन कोई ढंग का होटल दिखा नहीं। तो पहले हमें ठहरने की जगह देखनी थी। सड़क पर से ही कुछ लॉज जैसे ठहरने के लिए दिख रहे थे। हमने एक लॉज जिसका नाम माहेश्वरी लॉज था उसे देखा। काम चलने लायक था और 1100 रूपये प्रति रूम दर था। दो रूम ले कर वहीं सामान रखा और फिर फ्रेश हो कर मंदिर की ओर चले। मंदिर वहां से आधा किलोमीटर होगा पर मुख्य सड़क पर हो कर जाना पड़ता है। अतः हमलोग अपनी टैक्सी से ही गए। पूछते हुए मंदिर के मुख्य द्वार से बड़े से प्रांगण में गए। सफ़ेद ऊपरी भाग वाला भव्य मंदिर शाम को बिजली रौशनी में आकर्षक लग रहा था। मंदिर का प्लिंथ काफी ऊँचा था और ग्रिल से घेरा हुआ था। शाम हो जाने के कारण भीड़ बहुत कम थी। हमलोग सामने के नंदी मूर्ति के पास से अंदर गए। मंदिर के अंदर हॉल में दाहिनी तरफ से कतार में जाने के लिए रेलिंग थी। यहाँ ज्योतिर्लिंग इस हॉल में न था बल्कि भूमिगत था अर्थात अंडरग्राउंड (बेसमेंट) में था। और वहाँ तक जाने के लिए दाहिनी ओर एक ढाई फ़ीट बाई ढाई फ़ीट का फर्श में एक छेद था मानो फर्श का एक स्लैब हटा दिया गया हो। एक बार में एक व्यक्ति ही आ जा सकता था। एक एक कर हमलोग नीचे उतरे। नीचे उतर कर झुक कर ही गर्भ गृह में जाना और खड़ा होना होता है क्योंकि यहाँ फर्श और सीलिंग के बीच मुश्किल से पाँच फ़ीट की ऊँचाई है। इसी कम उंचाई वाले गर्भ गृह में एक चबूतरे पर श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग विराजमान हैं और और उसी चबूतरे पर एक ओर मुख्य पुजारी बैठते हैं और दूसरी ओर भक्त। यद्यपि बाहर हल्की ठण्ड थी, गर्भ गृह में घुसते ही गर्मी का एहसास हुआ। हमलोगों ने संध्या दर्शन किया और सबेरे के लिए अभिषेक की पूछताछ की। गौर वर्ण के मुख्य पुजारी और वहाँ उपस्थित स्थानीय लोगों ने कहा की सबेरे साढ़े पाँच बजे आ जाना, हो जायेगा। वहाँ सीधे खड़े हो नहीं सकते थे तो ज्यादा देर रुकना संभव न था। हमलोग उसी छेद वाले रास्ते से ऊपर चढ़ कर मंदिर के हॉल में निकले। मंदिर की चौखट से ज्यों ही निकले एक वृद्ध पंडित जी ने बातचीत शुरू कर दी। उन्होंने अपनी काफी बड़ाई की और बताया की उनका लड़का सबेरे अभिषेक करा देगा और पूरे भारत में कहीं भी पूजा करनी होगी तो व्यवस्था करा देगा। हमसे अपने लड़के को फोन लगवाया और सबेरे अभिषेक के लिए बुलाया। 

आकर्षक मंदिर, श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग, औंधा, महाराष्ट्र

            मंदिर से उतर कर हमलोगों ने प्रांगण में कुछ फोटो खींचे। बाहर पार्किंग के पास एक चाय दूकान में चाय बिस्किट खाये और वापस होटल आ गए। यहाँ का मंदिर भी मुगलों ने तोड़ा था जिसके कारण ऊपर का हिस्सा जो सफ़ेद रंग का है वह अहिल्या बाई होल्कर द्वारा बनवाया गया है। उनकी एक प्रतिमा भी मंदिर के बाहर लगायी गयी है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर बहुत ही कलाकारी से छोटी बड़ी मूर्तियां उकेरी गयीं हैं। 

यही औंधा के श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के
तहखाने वाले गर्भ-गृह में जाने का रास्ता है।

        सबेरे हमें दो ज्योतिर्लिङ्ग के दर्शन पूजन करने थे, यहाँ श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के फिर परली के श्रीवैजनाथ ज्योतिर्लिंग के। अतः जल्दी उठकर स्नान किया, होटल में सबेरे गर्म पानी सप्लाई किया गया था। तैयार हो कर गाड़ी से ही मंदिर निकले। पंडित जी का बार बार फोन आ रहा था। जब मंदिर पहुंचे तो पंडित जी ने कहा कि वे फूल और पूजा सामग्री ले कर आ रहे हैं। थोड़ी देर में वे आये और हमें ले कर तहखाने वाले गर्भ-गृह में ले गए जहाँ श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग विराजमान हैं। वहाँ जब मुख्य पुजारी ने हमें इन पंडित जी के साथ देखा तो बोले कि ये लोग तो मुझसे पूजा अभिषेक कराने वाले थे। मराठी में ही उनमें कुछ बात हुई। हमारे पंडित जी ने इससे अनभिज्ञता प्रकट की और हिंदी में हमें बताया। गलती तो हमसे हुई थी पर हमारे पंडित जी के पिताजी ने कल संध्या अभिषेक के लिए इतना प्रस्ताव दिया कि ना न कह सके। तब मैंने मुख्य पुजारी जी को कहा कि हाँ आपसे बात हुयी थी पर इनके पिताजी से बाद में बात होने पर हमने उन्हें ही फाइनल किया। मुख्य पुजारी जी ने हमारे पंडित जी से कहा कि इस तरह नहीं होना चाहिए अर्थात दूसरे का यजमान नहीं लेना चाहिए। फिर हमसे कहा कि ठीक है इन्हीं से पूजा करा लीजिये, हमलोग एक ही हैं। यद्यपि उनके चेहरे के भाव मायूसी भरे थे। हमें भी अच्छा नहीं लगा। अतः जब हमारी अभिषेक पूजा गयी तो उन्हें भी अच्छा दान दिया। 

श्रीऔंधा नागनाथ मंदिर के तहखाने वाले
गर्भ-गृह के ऊपर हॉल में

            श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग की अभिषेक पूजा के साथ ही हमारे यात्रा कार्यक्रम का एक और चरण पूरा हुआ अर्थात इस यात्रा का तीसरा ज्योतिर्लिङ्ग पूजन। तहखाने के गर्भ गृह से बहार निकले। पंडित जी को जो भी देना-लेना था पूरा किया। फिर उन्होंने भी कहा कि कहीं भी पूजा करना हो तो कहना, हर तीर्थ के पुजारियों से संपर्क है हमारा। और हमारा नंबर श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम के एक व्हाट्सप्प ग्रुप पे जोड़ दिया। आगे कहा कि अभी परली में पूजा करना है तो वहाँ के एक पंडित जी "पाठक जी" का नंबर रख लो। मैं उन्हें भी बता देता हूँ। इसके बाद उन्होंने विदा ली। हमलोग थोड़ी देर मंदिर परिसर में घूमे और फोटो वगैरह खिंचवाये। सूर्योदय का समय था, भीड़ भी ज्यादा न थी। वातावरण बहुत सुहावना लग रहा था।  

श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग, औंधा के मंदिर के नन्दी द्वारपाल


         मंदिर परिसर से बाहर निकले तो जिस दुकान में पिछली शाम हमने चाय बिस्किट खाई थी वह बुलाने लगा, पर हमने उसे बताया कि अभी और जगह भी पूजा करनी है अतः कुछ खायेंगे पियेंगे नहीं। ड्राइवर को टैक्सी क साथ होटल भेज दिया था ताकि वो भी तैयार हो जाये और हमलोग सीधे परली के लिए निकल जाएँ। अतः मंदिर से पैदल ही होटल की ओर निकले। सबेरे के समय पैदल चलना अच्छा लग रहा था। होटल आ कर जल्दी से सामान समेट कर चेक आउट किया और बाबा वैजनाथ के दर्शन हेतु परली की ओर निकल पड़े।                    

(अगले ब्लॉग पोस्ट में परली वैजनाथ ज्योतिर्लिङ्ग की यात्रा का विवरण)

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Tuesday, December 17, 2024

श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन-पूजन तथा एलोरा गुफाएँ

संध्या के समय श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर
  
      हमलोगों को घृष्णेश्वर पहुँचते संध्या हो चुकी थी। यह जगह महाराष्ट्र के दौलताबाद के पास खुलदाबाद में है। ऑनलाइन होटल बुकिंग की थी, मंदिर के पास देखकर। हॉटल मंदिर के पास तो था पर मंदिर तक सीधा रास्ता न था। मुख्य पथ पर आ कर मंदिर वाली गली में जाना होता था। होटल मुख्य पथ से 300 फ़ीट अंदर था जहाँ तक मूरम सड़क जाती थी। इसलिए होटल खोजने में थोड़ी पूछ ताछ करनी पड़ी। होटल नया ही खुला था और स्टाफ प्रोफेशनल नहीं लग रहे थे। जिस हिसाब से कमरे का रेट था वैसा कमरा नहीं था। हमलोग जल्दी तैयार हो कर पैदल मंदिर के लिए निकले ताकि सबेरे पूजा हेतु जाने में रास्ते का पता रहे और सबेरे के पूजा के लिए पुजारी जी से बात हो जाये। पूछते हुए हमलोग परिसर के प्रवेश द्वार पर पहुंचे। द्वार को रेलिंग से दो भाग में बाँटा गया था। बायीं ओर से प्रवेश और दाहिनी से निकास। प्रवेश द्वार से जा कर हमें कतार वाले कॉम्लेक्स से लम्बा गुजरना पड़ा यद्यपि भीड़ न के बराबर थी। बड़े से नंदी घृष्णेश्वर महादेव के सामने मंदिर में थे। वहीँ पर एक बुजुर्ग पुजारी थे। उनसे स्पर्श पूजा के बारे में पता किया। अलग अलग अभिषेक का रेट बताया गया। हमलोगों ने 2100 वाली पूजा चुनी, रूपये दिए और उन्होंने एक विजिटिंग कार्ड के पीछे लिख कर दिया और कहा कि सबेरे निकास द्वार से ही प्रवेश करना और सीधे आ जाना 5:30 से 6:00 के बीच में। गर्भ गृह में प्रवेश से पहले पुरुषों को ऊपर कपडे उतार खुले शरीर जाना होगा। अभी हमें पूजा नहीं करनी थी, तो गर्भ-गृह के द्वार से ही बाबा का दर्शन कर बाहर परिसर में आये।
सूर्योदय के समय श्रीघृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर
         द्वादश ज्योतिर्लिंग का जो स्तोत्र हमलोग पढ़ते हैं उसमें घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का बारहवाँ स्थान है। इन्हें घुसृणेश्वर या घुश्मेश्वर नाम से भी जाना जाता है। ये दौलताबाद स्टेशन से बारह मील दूर बेरूल नामक स्थान में स्थित हैं। पौराणिक कथा के अनुसार यहाँ सुधर्मा और सुदेहा नाम के एक दम्पति थे, जिन्हें बहुत दिनों तक संतान न हुई। पत्नी सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा से पति का विवाह करा दिया। घुश्मा शिव-भक्त थी और नित्य 100 पार्थिव शिवलिंग बना कर शिव की पूजा करती थी। शिव-कृपा से जल्द ही उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। धीरे-धीरे सुदेहा को अपनी छोटी बहन के संतान सुख से ईर्ष्या होने लगी और एक दिन मौका पा कर उसने बहन के पुत्र की हत्या कर दी और शव को एक तालाब में फेंक दिया। पीड़ा से भरी घुश्मा ने स्वयं को संभाला और शिव-भक्ति में और भी तल्लीन हो गयी। महादेव उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और कृपा की। एक दिन उसने अपने पुत्र को उसी तालाब से आते देखा और तभी भगवन शिव ने भी दर्शन दे कर वरदान माँगने कहा। घुश्मा ने प्रार्थना की कि वे सदा यहाँ विराजमान रहें ताकि भक्तों को दर्शन का लाभ मिल सके। महादेव ने उसकी इच्छा पूरी की और ज्योतिर्लिङ्ग रूप में विराजमान हुए। घुश्मा के नाम पर ही इन्हें घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। 
          इस मंदिर में भी मोबाइल ला सकते हैं पर फोटो लेना मना होता है। पर जब हम लोग परिसर में आये तो हल्की ठण्ड और बिजली की रौशनी में बहुत अच्छा लग रहा था और कुछ लोग फोटो भी ले रहे थे। हमलोग भी कुछ देर एक जगह बैठ कर आनंद लिए और कुछ फोटो भी। अब मंदिर बंद होने का समय हो रहा था। ज्यादा देर होने पर बाहर रेस्टॉरेंट भी बंद हो जाते, इसलिए हमलोग मंदिर से बाहर आये। मुख्य पथ से होटल की तरफ जाने वाले मोड़ पर ही एक बड़ा सा रेस्टॉरेंट था। वहीं पर खा कर हमलोग होटल में आ कर सो गए ताकि सबेरे जल्दी तैयार हो सकें।
             सबेरे हमें तैयार होकर मंदिर पहुँचने में 5:45 बज गए। पंडित जी ने कहा 5:30 से ही हमलोग आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, जल्दी से ऊपर के कपड़े निकाल कर आयें। जब हमलोग अंदर गए तो देखा कि पहले से दो यजमान और भी थे। हमारे पूरे परिवार को शिवलिंग के किनारे बिठाया और बाकि लोगों में सिर्फ पुरुषों को और उनके साथ ज्यादा महिला परिवार की थीं तो उन्हें पीछे बिठाया। फिर मन्त्र आदि से स्पर्श पूजा कराई। जलाभिषेक कराया। लगभग 15 मिनट में पूजा समाप्त कर हमलोग निकले। नंदी बाबा की पूजा की। फिर परिसर के बड़े त्रिशूल और पीपल वृक्ष के पास चबूतरे पर भी पूजा की। उसके बाद मंदिर के पीछे की ओर गए जहाँ ज्योतिर्लिङ्ग के अभिषेक वाले जल की निकासी हो रही थी। थोड़ा जल हाथ में लेकर आचमन भी किया। सबेरे का समय था तो मंदिर की दैनिक सफाई शुरू हो रही थी। एक कर्मचारी झाड़ू लगा रहा था तो पत्नी ने उनसे झाड़ू माँग कर स्वयं थोड़ा बुहारा। 
कैलाश मंदिर, एलोरा


           अभी भी बाहर सूर्योदय के पहले वाला धुंधलका था। भीड़ -भाड़ ज्यादा नहीं थी। कुछ लोग मोबाइल से फोटो लेने लगे तो एक स्टाफ ने आ कर मना किया। हमलोगों ने भी नजरें बचाकर कुछ फोटो खींचे। हमलोगों का इस यात्रा कार्यक्रम का दूसरा ज्योतिर्लिंग पूजा पूर्ण हुआ और संतुष्ट मन से बाहर निकले। बाहर मुख्य सड़क पर एक दुकान अभी खुल ही रही थी। चाय के लिए हमलोग बैठे। देखा कि नाश्ते के लिए पोहा था और इडली। तो पहले हमने नाश्ता किया फिर चाय पी कर होटल आये। होटल में सामान समेट कर चेक आउट किया फिर अपनी टैक्सी ले कर निकले। 
           एलोरा गुफाएँ पास में ही थीं तो हमलोग वहाँ गए। गेट के पास कई गाइड खड़े थे और पूछ रहे थे। बिना गाइड के तो इतनी गुफाएँ देखना ठीक नहीं था तो एक गाइड को हमने हायर किया। तब उसने कहा कि यदि किसी को चलने में दिक्कत हो तो आप व्हील चेयर ले सकते हैं। मेरी पत्नी को ज्यादा पैदल चलने में परेशानी थी घुटनो के दर्द के कारण, तो एक व्हील चेयर वाले को लिया। दोनों ने बारह-बारह सौ रूपये माँगे। बहुत कहने पर एक-एक हज़ार में तैयार हुए। जब हमलोग टिकट लेने गए तो मैंने व्हील चेयर वाले से कहा कि भाई तुम्हारा तो डेली का काम है तुम ही गाइड बन जाते हमारा, पर उसने कहा नहीं वही गाइड करेगा। वहीँ जब गुफाएँ और मंदिर के बारे में बताने के बाद अंतिम में गाइड पैसे ले कर चला गया, तब व्हील चेयर वाले ने कहा कि मैं आपको उस गाइड से ज्यादा डिटेल में बताता हूँ, उसे तो इतना मालूम भी नहीं। तब मैंने कहा कि तुम्हें तो पहले ही कहा था कि तुम ही गाइड का भी काम करो, पर माने नहीं। उसने कहा आप पहले ही उसे हायर कर चुके थे, ऐसे में मैं नहीं गाइड कर सकता था। हमें फिर इसी जगह काम करना है। 
रॉक कट मंदिर, एलोरा में कीर्ति स्तंभ


              एलोरा गुफाएँ पश्चिमी घाट के सह्याद्रि पर्वतमाला के चरणार्द्री पर्वत के एक भाग में बनायीं गयी हैं। लगभग 600 ईo से 1000 ईo के बीच पत्थरों को काट कर बनाई गयी ये गुफाएँ उस समय भारतीय पाषाण शिल्प कला का उत्कृष्ट उदहारण हैं जिस समय बाकी की अधिकाँश दुनिया कबीलों की लड़ाई में व्यस्त थी। लगभग 2 किलोमीटर लम्बाई में सीधी खड़ी बैसाल्ट चट्टानों में 34 गुफाएँ हैं जिनमें सबसे पुरानी 12 बौद्ध गुफाएँ (Cave No 1 to 12), फिर 17 हिन्दू गुफाएँ (Cave No 13 to 29) और 5 जैन गुफाएँ (Cave No 30 to 34) हैं। कुछ गुफाएँ अधूरी भी हैं। गाइड ने बताया कि ये अधूरी गुफाएँ ट्रायल के लिए बनायीं गयीं थीं। जब शिल्पकार इससे संतुष्ट होते जाते थे तो इसे छोड़ कर मुख्य बड़ी गुफाएँ बनाते थे। जैसा कि पूरे भारत वर्ष में इस्लामी शासन में मूर्तियों को भंग किया गया था, यहाँ भी औरंगजेब के शासन में गुफाओं में बनी मूर्तियों  को तोड़ कर ख़राब किया गया है। 
इसी वेंटीलेटर से सूर्य किरणें प्रतिमा तक जाती हैं,
एल्लोरा गुफाएँ


           गुफा संख्या 1 सबसे अंत से शुरू होती है। तीन गुफाओं के बाद ऊपर पहाड़ से एक छोटा झरना भी गिरता है जिसके पीछे से सैलानी गुजरते हैं। इन गुफाओं से सटे बाहर में एक गहरा कुंड भी है जिसे लोहे की जाली से ढँक दिया गया है। बड़े हॉल जैसे शानदार गुफाओं में सारी मूर्तियाँ सीधे चट्टानों को उसी जगह पर तराश कर बनाई गयी हैं। न सिर्फ पाषाण शिल्प कला बल्कि कलाकारों की काम शुरू करने से पहले की कल्पना की भी दाद देनी होगी। ये राष्ट्रकूटों के शासन के दौरान बनायीं गयीं थीं। 
प्रभावशाली गुफा संख्या 10 में शिक्षण मुद्रा में बुद्ध,
एल्लोरा गुफाएँ


          एलोरा की गुफा संख्या १० (Cave Number - 10) बड़ी और महत्वपूर्ण है। शिक्षण मुद्रा में बुद्ध की बड़ी प्रतिमा एक बड़ी गुफा में है जिसकी छत मेहराबदार और धारीदार है। सामने से सीढियाँ भी बनी हैं ऊपरी बरामदे तक जाती हैं। ऊपरी बरामदे के बीच में और हॉल की बड़ी बुद्ध मूर्ति के सामने एक छोटा सा झरोखा है जिससे सूर्य किरणें हॉल में जाती हैं। गाइड ने बताया कि 10 मार्च को ये किरणें ठीक प्रतिमा के कपाल पर तिलक जैसे पड़ती हैं। उसने अपने मोबाइल से पिछले ऐसे इवेंट की फोटो ली थी जिसे हमें दिखाया। 
एल्लोरा के रॉक-कट कैलाश मंदिर में शिवलिंग


                और सबसे अंत में गुफाओं के बाद हम लोग आये कैलाश रॉक-कट मंदिर में। ये सबसे बाद में बनी (जो गाइड ने बताया) और सबसे उत्कृष्ट शिल्प कला है। Cave Number - 16 के नाम से यह सबसे बड़ी संरचना है। आठवीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण - 1 के शासन में बना यह मंदिर अद्वितीय है। कहा जाता है कि किसी कारण से शिवा भक्त महारानी ने प्रण किया कि जब तक मैं महादेव का मंदिर न बनवा लूँ, भोजन ग्रहण न करुँगी। मंदिर तो इतनी जल्दी बन नहीं सकती थी। तो सबने विचार किया कि मंदिर का शिखर पूर्ण होने पर ही मंदिर पूर्ण होता है तो  क्यों न शिखर से ही प्रारम्भ किया जाय। युद्ध स्तर पर पहाड़ के ऊपर शिखर बनाना प्रारम्भ हुआ। तीन दिनों में ही महारानी को दूर से ही मंदिर का शिखर दिखा कर अनशन तुड़वाया गया। बाद में चट्टानों को ऊपर से नीचे की ओर तराश कर मंदिर बनाया गया। विशाल मुख्य द्वार के बाद प्रांगण है जिसमे दोनों साइड में बड़े आकार के हाथी और ऊँचे स्तम्भ बने हैं। दाहिने ओर वाला स्तम्भ कीर्ति स्तम्भ है जो बीस रूपये वाले पीले नोट पर भी अंकित है। मंदिर के दाहिनी दीवार पर छोटे-छोटे रामायण के प्रसंग तराशे गए हैं और बायीं दीवार पर महाभारत के। प्रांगण में प्रवेश करते ही जो सामने मूर्ति दिखती है वह है 'गज-लक्ष्मी' की। सीढ़ियों से प्रथम तल पर चढ़ कर हॉल नुमा मंदिर में प्रवेश करते हैं जिसके अंत में गर्भ गृह है। इसमें एक बड़ा सा शिवलिंग है। पत्थरों को काट कर बनाये गए प्रांगण की बाहरी दीवारों पर भी अनेक मूर्तियाँ बानी हैं। कुल मिला कर यह अप्रतिम है और यह सोच कर कि बिना गलती किये कलाकारों ने ऐसा तराशा है जैसे उन्हें सब कुछ बनावट पता हो और फालतू के पत्थरों को छील कर हटा दिया हो, बस यही मुँह से निकलता है - अद्भुत ! इस मंदिर को हमने पहले बगल से पहाड़ पर चढ़ कर देखा फिर नीचे उतर कर अंदर जा कर। मन उन अनाम कलाकारों को प्रणाम करता है।
एल्लोरा गुफाओं में कैलाश मंदिर के प्रवेश पर गज लक्ष्मी


             एलोरा गुफाओं को देख कर निकलते लगभग डेढ़ बज चुके थे। हमलोगों ने यहाँ से निकल औंधा नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए प्रस्थान किया। 

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