निजरूप में भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग |
श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का द्वादश ज्योतिर्लिंगों में छठे स्थान पर नाम लिया जाता है। यह ज्योतिर्लिंग भी श्रीशैलम पर्वत पर स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की तरह ही वनों से आच्छादित ऊँचे पर्वत पर स्थित है जो महाराष्ट्र के पुणे जिला के भीमाशंकर गाँव में है। इसके आसपास का वन रिज़र्व फारेस्ट अर्थात आरक्षित वन है जो जंगली प्राणियों के लिए अभ्यारण्य है। इस वन में ही गिलहरी की एक प्रजाति "जायंट रेड फ्लाइंग स्क्वीररेल'' (अर्थात उड़नेवाली बड़ी लाल गिलहरी) मात्र पायी जाती है। भीमाशंकर से ही पुणे जिला की एक महत्वपूर्ण नदी, भीमा नदी का उद्गम होता है। यहीं के आसपास ट्रेक्किंग के शौकीन पर्यटकों के लिए कई ट्रेक्किंग मार्ग हैं।
यात्रा
जब भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग दर्शन पूजन का परिवार में विचार हुआ तो पहले यहाँ जाने का मार्ग पता किया। तय हुआ कि पुणे पहुँच कर कार से भीमाशंकर पहुंचेंगे। सबसे पहले एक महीने पहले पुणे का आने -जाने का विमान का टिकट लिया। इंटरनेट पर पता चला कि शनिवार, रविवार या छुट्टियों के दिन मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ होती है। अतः हमने 10 मई 2024 शुक्रवार को दर्शन पूजन का विचार किया जो संयोगवश अक्षय तृतीया का भी दिन था। सीधी और सस्ती फ्लाइट लेने के कारण हमलोग रात 11 बजे पुणे एयरपोर्ट पहुँचे। एयरपोर्ट के पास विमान नगर में होटल बुक किया था किन्तु एयरपोर्ट पर अत्यधिक भीड़ के कारण ओला कैब को आने में काफी देर हुआ। फलस्वरूप हमलोग डेढ़ बजे होटल पहुंचे। सोते-सोते 2 बज गए।
ऑनलाइन कैब की भी बुकिंग की थी जिसके ड्राइवर ने 6 बजे सुबह ही पहुँचकर फोन किया। उसे वस्तुस्थिति बताया और बोला कि अभी सो रहा हूँ, तैयार हो कर फोन करूँगा। हमें तैयार होने में 10 बज गए। होटल से चेक आउट कर हमलोग सामान के साथ कैब में बैठे।
श्री दगडू सेठ हलवाई गणपति मंदिर
पुणे में एक प्रसिद्ध मंदिर का पता था - श्री दगडू सेठ हलवाई गणपति मंदिर। हमने सोचा कि तीर्थयात्रा का आरम्भ श्रीगणपति दर्शन से किया जाय। ड्राइवर स्थानीय था। उसने हमें गाइड किया। गुरुवार का दिन होने के कारण बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी। बाहर फूल-माला की डलिया खरीदकर मंदिर गए। विशाल और ऐश्वर्य से भरपूर गणपति अत्यंत प्रभावशाली हैं। बाहर निकलने से पहले मंदिर में नंदी और शिवलिंग का दर्शन भी किया। अंदर फोटोग्राफी मना है पर कुछ लोग चुपके से फोटो ले रहे थे। हमलोग दर्शन के बाहर निकले।
श्री दगडू सेठ हलवाई गणपति, पुणे |
यह मंदिर बहुत ही भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र में है और पार्किंग की समस्या है किन्तु इस मंदिर में एक बात अच्छी है कि बिना पार्किंग के भी चलते वाहन से बाहर से भी दर्शन कर सकते हैं। बाहर सड़क की तरफ एक बड़ी खिड़की है जिसपर पारदर्शी शीशे लगे हैं। इस शीशे से मूर्ति की दूरी मात्र तीस फ़ीट होगी। बड़ी मूर्ति होने के कारण बाहर से भी अच्छा दर्शन होता है। इस खिड़की से बाहर कई भक्त गणपति जी की फोटो लेने में भी लगे थे। यहाँ दर्शन के बाद हमलोग भीमाशंकर की ओर निकले।
भीमाशंकर में होटल
यहाँ अच्छे होटलों की कमी है। MTDC का एक होटल भीमाशंकर बस स्टैंड से 5 km पहले है। बाहर से बड़ा दिखने वाले इस होटल का रिव्यु अच्छा नहीं है, ऊपर से दूरी हमें नहीं चाहिए थी। क्योंकि हमलोग होटल से पैदल मंदिर तक जाना चाहते थे। कार बस स्टैंड के गेट तक ही जाने दिया जाता है अतः हमने बस स्टैंड के किनारे लॉज में रुकने का विचार किया।
भीमाशंकर बस अड्ड़ा परिसर के इसी लॉज में रुके |
मंदिर का स्थान
यहाँ के बस स्टैंड से हर तरफ का रास्ता हलकी ढलान में जाता है। बस स्टैंड में सिर्फ सरकारी बसें ही प्रवेश करती हैं। इसके गेट पर कार से सामान उतार कर तीस -चालीस कदम चल कर लॉज तक गए। ड्राइवर कार लेकर बगल के पार्किंग में गया। बस स्टैंड के गेट से मंदिर के बगल में बने पार्किंग तक जाने का पीसीसी रास्ता है किन्तु इस पर सभी गाड़ियों को नहीं जाने दिया जाता, अवरोध लगा कर रखा जाता है। जो गाड़ियाँ जाती हैं उनसे संभवतः 500 रूपये प्रति व्यक्ति लिया जाता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग गर्भ गृह के सामने मंडप में भक्तजन |
यहाँ से मंदिर लगभग आधा किमी ढलान पर नीचे है। पैदल जाने वाले कुछ दूर पीसीसी सड़क पर चल कर सीढ़ियों से उतरते हुए मंदिर तक जाते हैं। मंदिर का लेवल स्टैंड के लेवल से काफी नीचे है। जबतक आप सड़क छोड़ कर सीढ़ियों की तरफ नहीं बढ़ते आपको शिखर दिखाई नहीं देता। मंदिर के चारों तरफ हरे भरे ऊँचे पहाड़ों का दृश्य बहुत ही मनोरम है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का पहला दर्शन
हमलोगों ने पुणे में गणपति दर्शन के बाद नाश्ते में मिसल पाव खाया था। यहाँ आने के रास्ते में मिसल के इतने बड़े छोटे होटल देखे कि पता चल गया यहाँ के लोग मिसल पाव के कितने दीवाने हैं। होटल में सामान रख फ्रेश होकर जब हमलोग नीचे आये तो तीन बज चुके थे। भूख लगी थी, बगल के ही होटल में खाना खाया। खाने में साधारण स्वाद का भोजन की थाली थी। खाने के बाद हमने सोचा कि मंदिर को देख आते हैं ताकि शाम को संध्या श्रृंगार दर्शन कर सकें।
मंदिर भवन के सामने त्रिशूल और घंटा सेल्फी पॉइंट |
भीमाशंकर मंदिर के बहार जोड़ा नन्दी |
इस मंदिर में फोन, बेल्ट और हैंड बैग बाहर रखने का झमेला नहीं है। आप साथ लेकर जा सकते हैं परन्तु मोबाइल से खींचने की मनाही है। फिर भी लोग गर्भ गृह से बाहर वरामदे में बैठते समय कुछ चित्र उतार ही लेते हैं, पर रक्षकों द्वारा डाँटा जाता है। गर्भ गृह के द्वार पर नंदी प्रतिमा है। नंदी के वाम तरफ वाली दीवार पर गणपति प्रतिमा है जो बाबा के दर्शन से पहले आते हैं क्योंकि वे प्रथम पूज्य हैं। नंदी के दाहिनी तरफ वाले दीवार पर काल भैरव की प्रतिमा है जिनका पूजन बाबा दर्शन के बाद होता है। नंदी के पीछे थोड़ी दूर पर फर्श पर ही पत्थर का एक कच्छप है। मंदिर के ठीक सामने वरामदे से निकलते ही शनि महाराज की प्रतिमा है जिन्हें हमने साइड से प्रणाम किया क्योंकि जिस शनि विग्रह में आँखें बनी होती हैं उनके सामने खड़े नहीं होते।
भीमाशंकर मंदिर के बाहर दीप-स्तम्भ |
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा
प्रातः दर्शन-पूजन के बाद श्रीभीमाशंकर ज्योतिर्लिङ्ग मन्दिर के बाहर का मनोहारी दृष्य |
कुम्भकर्ण के पुत्र भीमा राक्षस जो पिता की मृत्यु के बाद जन्म लिया था, बड़े हो कर पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहता था। श्री राम से वह नहीं लड़ सकता था अतः कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर विजयी होने का वरदान प्राप्त किया। फिर तो देव और मनुष्यों पर उसने अत्याचार करना प्रारम्भ किया। सभी देवता उससे मुक्ति हेतु शिव के पास गए। उसके उत्पात से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शंकर ने प्रकट हो कर यहीं पर उसका वध किया था। देवताओं के अनुरोध पर महादेव ने उसी स्थान पर स्वयं को ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट किया जो भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पीछे आँगन में खोवा और कलाकंद प्रसाद बेचता युवक, बैकग्राउंड में मोक्ष-कुण्ड |
मोक्ष-कुंड, जहाँ ऋषि कौशिक ने तपस्या की थी. भीमाशंकर मंदिर परिसर |
डाकिनी और शाकिनी त्रिपुरासुर की पत्नियां थीं और यह क्षेत्र डाकिनी के नाम से जाना जाता था अतः द्वादश ज्योतिर्लिंग श्लोकों में इस ज्योतिर्लिंग को "डाकिन्यां भीमशङ्करं" कहा जाता है अर्थात भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग डाकिनी क्षेत्र में है।
मंदिर निर्माण
यह मंदिर 13 वीं सदी में बना किन्तु शिखर और सभामंडप का निर्माण 18 वीं सदी में नाना फडणवीस ने कराया। नागर शैली में बने नक्काशीदार मंदिर स्थानीय पत्थरों से बना है जो खूबसूरत है। शिवजी महाराज द्वारा भी इस मंदिर को सहायता दी जाती थी ताकि पूजन कार्य होता रहे। पुर्तगालियों से चीमाजी अप्पा ने युद्ध जीत कर पाँच बड़ी घंटियाँ भी प्राप्त की थीं जिनमें से एक इस मंदिर को दिया गया। यह मंदिर के सामने लगा है।
मंदिर की ओर जाती सीढ़ियाँ और सजे दूकान |
शिवरात्रि और मासिक शिवरात्रियों में यहाँ अपार भीड़ होती है। छुट्टियों के दिन भी पास के शहरों से काफी भीड़ जमा होती है।
निजरूप दर्शन पूजन
अपनी यात्रा कथा को आगे बढ़ाता हूँ। 9 मई 2024 को हमलोग भीमाशंकर कैब से पहुंचे और बस-स्टैंड के पास एक लॉज "भीमाशंकर होम-स्टे" में कमरा लिया लिया और पैदल ही मंदिर तक जाकर पहला दर्शन कर पाँच बजे तक रूम पर आ गए, यहाँ तक मैंने ऊपर बताया है। अगला दिन बहुत महत्वपूर्ण होने वाला था क्योंकि प्रातः की बाबा भीमाशंकर के निजरूप दर्शन की स्पर्श पूजा होनी थी। यह दिन 10 मई 2024 अक्षय तृतीया का भी दिन था और लग रहा था कि भीड़ हो सकती थी। सो हमने सोने से पहले 3 बजे सुबह उठने का अलार्म लगाया। सुबह तैयार होते समय तो एक बार नहाने का पानी भी समाप्त हुआ। लॉज वाले को फोन कर मोटर चलवाया। हमलोग तीन व्यक्ति सवा चार बजे सुबह तैयार हो कर रूम से निकल गए।
प्रातः पूजा के बाद भीमाशंकर मंदिर के पीछे पहाड़ों से उतरते बादलों का मनोरम दृश्य |
पिछली शाम को रास्ता देखा हुआ था। इतनी सुबह इक्का दुक्का फूल-माला की दूकान खुली थी। कुछ दूर पीसीसी रोड और फिर सीढ़ियों से उतारते हुए हमलोग मंदिर के पास पहुँचे। यहाँ सीढ़ी के पास अंतिम दूकान फूल-बेलपत्र की ही थी जो खुली थी। फूल-बेलपत्र खरीदकर अपने अपने चप्पल उसी दुकान में रखे और दर्शन के लिए मंदिर की तरफ बढ़े। रास्ते में भी आने वाले भक्त नदारद ही लग रहे थे तो लगा था की आसानी से कम भीड़-भाड़ में पूजा हो जाएगी। किन्तु मंदिर में हमसे आगे करीब सौ भक्त खड़े मिले। अन्य ज्योतिर्लिंगों की तुलना में यह मंदिर कुछ छोटा है अतः आने और पूजा कर जाने वाले भक्तों की लाइन को अलग रखने के लिए इस तरह व्यवस्था की गयी है कि गर्भ-गृह के सामने मंडप के किनारे आने वाले भक्तों को लोहे की सीढ़ियाँ चढ़ कर पहले चौताल पर आना होता है फिर सीढियाँ उतर कर मंडप के बाँये किनारे लाइन में लगना होता है। और जो लोग दर्शन कर चुके वे गर्भ गृह से सीधे बढ़कर मंडप को पार कर इसी लोहे की सीढ़ियों वाली चौताल के नीचे से निकल कर बाहर आते हैं।
भीमाशंकर मंदिर से निकलने के बाद सामने श्रीराम मंदिर |
इसी बीच देखा कि निजरूप दर्शन का समय समाप्त हुआ और चाँदी का कवर शिवलिंग पर रख दिया गया। अब सभी कवर से ही दर्शन पायेंगे। कुछ मंदिर में दान करने का मन हुआ। वरामदे में ही एक पंडित जी दान की रसीद काट रहे थे। उन्होंने एक लिफाफा हमें अपना पता लिखने को दिया और कहा कि प्रसाद आपके घर एक सप्ताह में पहुँच जायेगा। हमने वैसा ही किया। फिर मंडप से निकल कर बाहर बड़े त्रिशूल के पास अन्य लोगों की तरह फोटो खिंचवाये। आगे बढ़कर जोड़ा नन्दी को प्रणाम करते हुए छोटे कुंड के पास से होकर निकले। दस सीढ़ियाँ चढ़ते ही दाहिनी ओर छोटा सा महावीर जी का मंदिर और सामने बड़ा सा राम -मंदिर। कल पहले दर्शन के बाद राम-मंदिर को बाहर से ही प्रणाम किया था। अतः अभी हमलोग अंदर गए। सामने राम-दरबार और द्वार के पास राम-दरबार को प्रणाम करते हुए हनुमान की प्रतिमा। राम-दरबार के एक ओर राधा-कृष्ण की प्रतिमा और दूसरी ओर भगवती दुर्गा की। द्वार के दाहिनी ओर गणपति प्रतिमा भी है। इसके बगल में ही एक दत्ता मंदिर भी है। यहाँ प्रणाम कर निकले और मुख्य मंदिर के पीछे प्रांगण में पहुँचे। यहीं एक ओर मोक्ष कुण्ड है। प्रांगण में एक ओर दो कड़ाहियों में ताज़ा खोवा और कलाकंद बेचा जा रहा था। प्रसाद के रूप में प्लास्टिक डब्बों में भी इसी का ठोस रूप बेचा जा रहा था। कुछ उससे खरीद कर वापस चढ़ाई वाली सीढ़ी के पास पहुंचे जहाँ फूल वाले को खाली डलिया और पैसे दे कर अपनी अपनी चप्पलें लेकर वापस चढ़ाई शुरू की। सीढ़ियों के दोनों तरफ बने दुकानों में कई अब खुल चुके थे। एक दूकान से कुछ सिन्दूर, चन्दन, मिश्री, बद्धी आदि खरीदकर वापस लौटे। अभी हमने कुछ ग्रहण नहीं किया था क्योंकि ऊपर चढ़ कर माता कमलजा के मंदिर भी जाकर प्रणाम करना था।
भीमा नदी का उद्गम
यहीं से पगडण्डी चढ़कर थोड़ी दूर पर भीमा नदी का उद्गम स्थल है। |
भीमा नदी उद्गम स्थल के मंदिरों के चित्रों का कोलाज |
इस उद्गम के बारे में एक कथा यह है कि जब महादेव अर्धनारीश्वर रूप में भीमा के सँहार के लिए युद्धरत थे तो देवतागण इसी स्थान पर बैठे थे। इस स्थान पर देवताओं को पसीना आने लगा और उस पसीने से ही भीमा नदी का उद्गम हुआ। इसे कुशारण्या तीर्थ भी कहते हैं। यहाँ से भीमा नदी उतर कर मुख्य मंदिर के बगल से गुजरती है जो जंगलों से होते हुए आगे बढ़ती है। आगे जा कर कर्णाटक में रायचूर के पास कृष्णा नदी में मिल जाती है।
कमलजा माता मंदिर
कमलजामाता मंदिर,भीमाशंकर |
गुप्त भीमाशंकर
करीब 11 बजे दिन में हमारी नींद खुली। दिन भर का समय बचा था सो सोचा की आसपास में कुछ और देखने का हो तो चला जाये। नेट पर तीन जगह पास में दिखे किन्तु ये सब ट्रेक ही थे।
1. गुप्त भीमाशंकर
2. हनुमान लेक
3. बॉम्बे पॉइंट
गुप्त भीमाशंकर ट्रेकिंग में पहाड़ियों से उतरती एक पगडंडी |
Gupt-Bhimashankar Trek 👆
गूगल मैप पर देखा तो होटल से 3 किमी पैदल दिखा रहा था किन्तु कार से 40 किमी का राउंड लगा कर पहुँचने पर मात्र आधा किमी पैदल चलना होता। हमारी भाड़े की कार खड़ी ही थी, जिसका आज का कोटा बाकी ही था तो हमने कम पैदल चलने के चक्कर में कार से जाने का निर्णय लिया। ड्राइवर भी गूगल मैप से ही चला। पर यहीं हमने गलती कर दी। अनजान जगहों में गूगल मैप पर कभी भी 100% भरोसा नहीं करना चाहिए। लोकल लोगों से वेरीफाई करना सही रहता है। अब हमारे साथ हुआ यह कि करीब घंटे भर पहाड़ों और घाटियों में चलने के बाद एक ऐसी जगह पहुंचे जहाँ पहाड़ी सड़क बन रही थी। तेज ढलान पर डाली गयी महीन गिट्टी पूरी सख्त भी नहीं थी फिर भी ड्राइवर ने एर्टिगा कार चढ़ा ही दी। यह जगह काफी ऊंचाई पर थी और एक ओर 200 फ़ीट से ज्यादा ढलान की घाटी थी जो बहुत डरावनी थी। एक दो बाइक कभी दीखते। इसे पार कर एक बहुत ही छोटे से गाँव के पास पहुँचे जहाँ सड़क के किनारे खड़े एक आदमी से पूछा। उसने बताया आगे रास्ता कहीं नहीं जाता। इधर से गुप्त भीमाशंकर का रास्ता नहीं है। कुछ और लोगों से भी पूछा, सबने बोला इधर से रास्ता नहीं। सो हम वापस लौटे। चार-पाँच किमी वापस लौटने पर एक समझदार से लगने वाले बाइक वाले से ड्राइवर ने मराठी में पूछा कि मैप से ये रास्ता देख कर आये हैं। उसने बताया कि मैप पूरी तरह से गलत नहीं है। थोड़ी दूर पीछे एक कच्ची रास्ता जाता है गुप्त भीमाशंकर के पास और वहाँ से भी करीब एक-डेढ़ किमी पैदल चलना ही होगा परन्तु जो विशेष बात है वह यह कि कच्ची रास्ता पर आपकी ये कार नहीं जा पायेगी। उस रस्ते पर सिर्फ ट्रेक्टर ही चलते हैं। सो हम वापस होटल की ओर लौटे। ड्राइवर बोला मैं वहाँ लोकल लोगों से पता करूँगा। हमलोग रूम पर फ्रेश हो कर खाने के लिए नीचे आये। इस बीच ड्राइवर ने पता लगाया था एक दूकान वाले के पास से। वह हमे उसके पास ले गया। दूकान वाले ने बताया की ये तीनों पास वाले स्थान ट्रेकिंग से ही पहुँच सकते हैं किन्तु आप गूगल मैप से मत जाएँ क्योंकि जंगलों और पहाड़ों में हमेशा टावर नहीं मिलता। भटक जाने पर वापस लौटना कठिन होगा। आप एक गाइड ले लें जो तीन सौ से पाँच सौ तक आदमी की संख्या के हिसाब से लेगा और दिखा कर वापस ले आएगा। गुप्त भीमाशंकर का रास्ता राम मंदिर के बगल से जाता है और उसी मंदिर के पास से आपको गाइड भी मिल जायेगा। परन्तु अभी बहुत धूप है और शाम को जंगल में जाना ठीक नहीं। अच्छा होगा कि आप सबेरे जाना। सलाह मान कर हमने अगले दिन सुबह ही जाने का सोचा क्योंकि अगले दिन पूरा समय भी हाथ में था और हमें एयरपोर्ट 11 बजे रात में पहुँचना था। यहाँ से पुणे जाने में भी चार - साढ़े चार घंटे से ज्यादा समय नहीं लगता।
अगली सुबह रूम से तैयार होकर नीचे उतारते हमें 9 से ऊपर हो गए। पहले हमने नाश्ता किया। फिर सोचा कि गाइड के बारे में यहीं पता करता हूँ। होटल से सामने ही यहाँ की एकमात्र पान की गुमटी है, वहीं पहले पता करना सही लगा। गुमटी में एक युवक बैठा था, उसने कहा कि गाइड मिल जायेगा पर 500 रूपये लगेंगे। मैं बोला कि ठीक है बुला दो। युवक बोला मैं ही जाऊँगा। उसने कहा कम से कम दो बोतल पानी रख लो। और जितनी तेजी से आपलोग चल सको उसी हिसाब से लौटने में समय लगेगा। उसी की दूकान से दो बोतल पानी ले कर हम बढ़े। उसी ढलान वाली पीसीसी रोड से सीधे हमलोग मंदिर के पास वाली पार्किंग से पहले भीमा नदी के ऊपर कल्वर्ट पर पहुंचे जिसे पार कर नदी की दूसरी साइड से किनारे किनारे चले। पास हो रहे कंस्ट्रक्शन के कारण करीब 150 फ़ीट तक बड़े बोल्डर थे इन्हें पार कर हमें पथरीली जंगली रस्ते से मंजिल तक जाना था।
मेरी पत्नी को घुटने में दर्द की समस्या रहती है तो हमने उन्हें कहा था कि वे होटल रूम में ही रहें परन्तु वे न मानीं। सो उनकी चलने की गति धीमी थी। कुछ जाने वाले लोग हमसे आगे बढ़ जा रहे थे, कुछ लौटने वाले लोग भी थे। लौट रहे एक युवक ने हमें देख कर कहा कि अभी तो आधा दूर भी नहीं आये आपलोग। मेरी पत्नी को देख कर बोला कि आंटी कैसे जा पायेंगी। आगे पहाड़ी ढलान पर 3 - 3 फ़ीट गहरी सीढ़ियाँ हैं। हम थोड़े चिंतित तो हुए पर पत्नी हिम्मत वाली थी। धीरे -धीरे महादेव की कृपा से चली जाऊँगी।
जंगल में बड़े पेड़ों के कारण दोपहरी में भी छाया थी। हरे भरे पेड़, जंगली लताएँ, चिड़ियों की चहचहाहट और डालियों पर बंदर अच्छे लग रहे थे। कभी कभी कोई मधुमक्खी, ततैया या भँवरा पास मंडरा कर चला जाता। किन्तु ज्यादा परेशान किया एक बड़ी वाली मक्खी ने। एक-दो बार तो गर्दन और पैर के पास काटा भी पर कोई परेशानी न हुई।
आधा रास्ता पार करने पर एक छोटी पथरीली नदी मिली जिसमें अभी पानी न था। गुप्त भीमाशंकर, भीमा नदी के बीच में ही है अतः जंगल से हमें नदी तक जाना ही था। ज्यों -ज्यों हमलोग नदी के पास पहुँच रहे थे पहाड़ी ढलान तीखी होने लगी थी। पगडण्डी सचमुच दो -दो, तीन-तीन फ़ीट नीचे वाले सीढ़ियों की तरह हो गयी। मेरी पत्नी बैठ -बैठ कर उतर रही थी। मुझे चिंता हो रही थी वापसी की। कैसे वापस इन पर चढ़ पायेगी।
गुप्त भीमाशंकर |
यह देख कर संतोष हुआ की ऊँचाई पर उतरने की तुलना में पत्नी को चढ़ने में आसानी हो रही थी। उनकी परेशानी ज्यादा इस बात से थी की उनके पैरों में पसीना बहुत ज्यादा आ रहा था जिससे पैर फिसल रहा था। रह रह कर उन्हें चप्पल खोल कर धूल में पसीना सुखाना होता था। अंततः मंदिर के पार्किंग पहुँचने से 400 फ़ीट पहले एक पत्थर पर पैर फिसल ही गया और मोच आ गयी। उस टाइम तो उतना पता न चला पर होटल आते आते सूजन आ गयी और चलना दूभर हो गया।
उधर आधा जंगल का रास्ता आते आते बेटी का सैंडल टूट गया और फेंकना पड़ा। ट्रेकिंग में सैंडल पहनना उचित नहीं। मैंने जिद कर अपना सैंडल उसे दिया और खली पैर ही लौटा। धूप में पत्थर या पीसीसी पर खाली पैर चलने का कष्ट एक अलग ही होता है। जब हम पीसीसी पर उस जगह पहुँचे जहाँ से मन्दिर जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ मुड़े थे तो बहुत भीड़ नजर आयी। जब पास आये तो पता चला कि ये तो दर्शनार्थियों की भीड़ थी। लोग आते ही जा रहे थे और लाइन में लगे जा रहे थे। हम थक चुके थे अतः पहले नीम्बू सोडा पिया, फिर गन्ने का रस।
अब हनुमान लेक और बॉम्बे पॉइंट जाने की हिम्मत न बची थी। रूम पर आ कर एक घंटा आराम किया फिर लगभग 2 बजे होटल छोड़ कर कार से पुणे के लिए निकले। इतनी गाड़ियों की भीड़ थी कि रह रह कर ट्रैफिक जाम हो जा रहा था। सड़क के दोनों ओर पार्क की हुई गाड़ियाँ और रास्ते में पार्किंग की बड़ी बड़ी जगहें गाड़ियों से फुल। कारण कि आज द्वितीय शनिवार था, छुट्टी का दिन। बस-स्टैंड से पाँच किमी बाहर निकलने में ही घंटे भर लग गये।
डिम्भे डैम और काली मैना
जंगली फल -काली मैना |
डिंभे डैम, महाराष्ट्र |
रास्ते में करीब 50 किमी चलने के बाद हमारी कार एक ऊँचे पहाड़ से से उतर रही थी जबकि बायीं ओर बड़ी और चौड़ी घाटी थी। कई गाड़ियाँ सड़क के किनारे रुकी थीं और लोग फोटो ले रहे थे। हमने भी गाड़ी रुकवायी तो दूर नीचे घाटी में एक डैम नजर आया। सुन्दर दृश्य का फोटो वीडियो लेकर वापस चले। एक जगह ड्राइवर ने सीएनजी भरवाया, एक मेडिकल शॉप में मैंने पत्नी के पैर में आई मोच के लिए क्रेप बैंडेज लिया फिर ढंग का होटल देख खाना खाया। पुणे घुसते ही जोरों की बारिश शुरू हो गई। गुप्त भीमाशंकर से लौटने में बेटी का सैंडल टूट गया था अब उसके लिए एक सैंडल लेना था। एक जगह बाटा की दूकान देख कर रुके तो बारिश में कार से निकलना दूभर था। आधे घंटे की प्रतीक्षा के बाद वर्षा कुछ कम हुई तो तो बाटा दूकान में सैंडिल ख़रीदा। अभी समय काफी था फ्लाइट में तो हम थोड़ी देर फ़ीनिक्स मॉल में भी घूमे। रास्ते में ही ऐतिहसिक येरवडा जेल दिखाई पड़ा। अंततः साढ़े नौ बजे ड्राइवर ने हमे एयरपोर्ट छोड़ा। उसका हिसाब कर थैंक यू के साथ विदा किया। और इस तरह हमलोग भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन की यात्रा पूर्णकर अगली सुबह फ्लाइट से अपने शहर पहुंचे।
अगर आपलोग भी यहाँ की यात्रा करना चाहते हैं तो जरूर जाएँ। घने जंगल जो अभ्यारण्य घोषित हैं, पहाड़ और झरने आपका मन मोह लेंगे। सितम्बर से फ़रवरी तक यात्रा करनी अच्छी मानी जाती है क्योंकि इस समय गर्मी कम होती है और अनेक छोटे बड़े झरने आपको दिखाई देंगे।
ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें। इस पेज तक आकर पढ़ने के लिए धन्यवाद।
इस ब्लॉग के पोस्टों की सूची
33. Rajrappa Waterfalls, Ramgarh, Jharkhand
32. Khutta Baba Mandir and the Tenughat Dam
31. Maya Tungri Mandir - The Mahamaya Temple, Ramgarh, Jharkhand
30. Toti Jharna, Tuti Jharna Temple at Ramgarh, Jharkhand
29. ISKCON Temple and The Birla Temple at Kolkata
28. Belur Math, Howrah